मकार्थी ने ऑस्ट्रेलिया को अपने हितों की उम्मीद भारत से रखने में सावधानी बरतने की सलाह दी
मंगलवार, 23 मई, 2023 आई बी टी एन खबर ब्यूरो
भारत में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व उच्चायुक्त जॉन मकार्थी ने कहा है कि भारत अपने हितों को ही सर्वोपरि रखता है न कि सहयोगियों के हितों का ध्यान रखता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ के साथ मंगलवार, 23 मई 2023 को सिडनी में भारतीय प्रवासियों के एक कार्यक्रम को संबोधित भी किया और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के रिश्ते को आपसी विश्वास और सम्मान वाला बताया।
मकार्थी का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम में यह धारणा है कि भारत की कूटनीति ऑस्ट्रेलिया की तरह ही है लेकिन ऐसा नहीं है। ऑस्ट्रेलिया जिस तरह से दुनिया को देखता है, भारत वैसे नहीं देखता।
फ़ाइनेंशियल रिव्यू के एक आर्टिकल में उन्होंने कहा, ''दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई चीज़ें घटित हुईं। ऑस्ट्रेलिया ने कुछ समय तक बड़े देशों को काफ़ी महत्व दिया लेकिन यह उत्साह धीरे-धीरे कम होता चला गया। वहीं कुछ देशों के भारत और इंडोनेशिया के साथ कभी रिश्ते शिखर पर रहे हैं तो कभी यह नीचे भी आया है।''
उन्होंने लिखा, ''60 से 80 तक आर्थिक कारणों की वजह से जापान केंद्र में था। फिर इसके बाद हमने सोचा कि और दूसरे देश इससे ज़्यादा दिलचस्प हैं। जापान की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे सपाट होती चली गई। हमने जापान से सीखना और जापान जाना बंद कर दिया। हाल के समय में सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव की वजह से फिर से संबंधों में गर्मजोशी आई है।''
मकार्थी ने ऑस्ट्रेलिया को अपने हितों की उम्मीद भारत से रखने में सावधानी बरतने की सलाह दी है। उन्होंने कहा, ''इंडोनेशिया के साथ भी संबंध एक समय में काफ़ी अच्छे थे लेकिन फिर ख़राब हुए और उसे सामान्य करने में कई वर्ष लग गए। चीन के साथ संबंध कुछ अच्छे नहीं हैं। इस इतिहास को देखते हुए हमें भारत से उम्मीद रखने में सावधान रहने की ज़रूरत है।''
पिछले दो दशक से ऑस्ट्रेलिया ने भारत की उभार को पहचाना है। इसकी जनसंख्या चीन से आगे निकल चुकी है। यह बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है।
उन्होंने कहा, ''ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम में यह धारणा है कि भारत की कूटनीति को हमारे जैसा देखते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। हाल ही में भारतीय मूल के अमेरिकी विशेषज्ञ एश्ले टेलिस ने यह तर्क दिया था कि अमेरिका और चीन के बीच टकराव की स्थिति में भारत ख़ुद को कभी शामिल नहीं करेगा जब तक कि ख़तरा उस पर न हो। टेलिस 2008 में 'परमाणु समझौते' के मुख्य बौद्धिक ताक़त में से एक थे।''
उन्होंने कहा कि भारत बहुध्रुवीय दुनिया में एक शक्तिशाली ध्रुव बनना चाहता है। भारत के लिए जो अच्छा है, वह उस पर ही आगे बढ़ेगा न कि उसके सहयोगियों या दूसरे लोग चाहते हैं, उस पर आगे जाएगा।