क्या हिज़्बुल्लाह अभी भी इसराइल से लड़ने में सक्षम है?
शुक्रवार, 4 अक्टूबर, 2024
हिज़्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मृत्यु हो गई है, साथ ही कई अन्य वरिष्ठ नेता भी मारे गए हैं।
लेकिन हिज़्बुल्लाह का कहना है कि वह लड़ाई जारी रखेगा।
और असफलताओं के बावजूद, उसने इसराइली सैनिकों के सामने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है।
इसराइली सेना ने मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024 को लेबनान में शुरू हुए एक ग्राउंड ऑपरेशन के बाद से अपने कई सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की है।
तो, क्या हिज़्बुल्लाह इसराइल के साथ लंबी लड़ाई के लिए तैयार है?
और एक और युद्ध की संभावना पर लेबनानी नागरिकों के बीच असंतोष का सामना वह कैसे करेगा?
प्रस्तुतकर्ता: हाशेम अहेलबरा
अतिथि:
सामी अताल्लाह - द पॉलिसी इनिशिएटिव के संस्थापक निदेशक, एक स्वतंत्र लेबनानी थिंक टैंक
यज़ीद सईघ - मैल्कम एच केर कार्नेगी मिडिल ईस्ट सेंटर में वरिष्ठ फेलो
जोसेफ डेहर - लॉज़ेन विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर और 'हिज़्बुल्लाह: द पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ़ लेबनान पार्टी ऑफ़ गॉड' पुस्तक के लेखक
लाइव: ईरान ने इसराइल पर मिसाइलें दागी
मंगलवार, 1 अक्टूबर, 2024
इसराइली सेना ने बताया कि ईरान से मिसाइलें दागी गई हैं, जबकि पूरे देश में सायरन बज रहे हैं। तेल अवीव के आसमान में फ्लेयर्स और मिसाइलें दिखाई दे रही हैं।
ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कहा कि इसराइल पर मिसाइल हमला पिछले हफ्ते हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या के साथ-साथ इस साल की शुरुआत में हमास नेता इस्माइल हनीया की हत्या के जवाब में किया जा रहा है, ईरान की फ़ार्स समाचार एजेंसी ने बताया।
मध्य और दक्षिणी इसराइल में रेड अलर्ट सायरन सक्रिय कर दिए गए हैं।
इसराइली सेना ने कहा, ईरान ने इसराइल पर मिसाइलें दागी
मंगलवार, 1 अक्टूबर, 2024
इसराइली सेना ने बताया कि ईरान से मिसाइलें दागी गई हैं, जबकि पूरे देश में सायरन बज रहे हैं। तेल अवीव के आसमान में फ्लेयर्स और मिसाइलें दिखाई दे रही हैं।
ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने कहा कि इसराइल पर मिसाइल हमला पिछले हफ्ते हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या के साथ-साथ इस साल की शुरुआत में हमास नेता इस्माइल हनीया की हत्या के जवाब में किया जा रहा है, ईरान की फ़ार्स समाचार एजेंसी ने बताया।
मध्य और दक्षिणी इसराइल में रेड अलर्ट सायरन सक्रिय कर दिए गए हैं।
ताजा घटनाक्रम पर चर्चा करने के लिए हमारे साथ तेल अवीव से राजनीतिक विश्लेषक अकीवा एल्डर और तेहरान से ईरानी मामलों के विशेषज्ञ तोहिद असादी शामिल हैं।
इसराइल को हथियार भेजते समय अमेरिका द्वारा युद्ध विराम की बात का कोई मतलब नहीं: विश्लेषण
रविवार, 29 सितंबर, 2024
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने नसरल्लाह की हत्या पर एक बयान जारी किया है, जिसमें इसे "हजारों अमेरिकियों, इसराइलियों और लेबनानी नागरिकों सहित उनके कई पीड़ितों के लिए न्याय का एक उपाय" कहा गया है।
बिडेन ने कहा कि अमेरिका "हिजबुल्लाह, हमास, हौथिस और किसी भी अन्य ईरानी समर्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ खुद का बचाव करने के इसराइल के अधिकार का पूरी तरह से समर्थन करता है"।
बिडेन ने कहा कि उनकी सरकार "आक्रामकता को रोकने और व्यापक क्षेत्रीय युद्ध के जोखिम को कम करने के लिए मध्य पूर्व क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य बलों की रक्षा स्थिति को बढ़ा रही है"।
अल जज़ीरा के शिहाब रतनसी ने वाशिंगटन, डीसी से अमेरिकी प्रतिक्रिया के बारे में अधिक जानकारी दी है।
फिलिस बेनिस इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज की फेलो हैं। फिलिस का कहना है कि इसराइल को हथियारों की निरंतर आपूर्ति के कारण बिडेन प्रशासन के युद्ध विराम को सुरक्षित करने के प्रयासों को कमजोर किया जा रहा है।
क्या हसन नसरल्लाह की हत्या कोई बड़ा बदलाव है?
शनिवार, 28 सितंबर, 2024 #हसननसरल्लाह #हिजबुल्लाह #इसराइल
उन्होंने तीन दशकों से ज़्यादा समय तक हिजबुल्लाह का नेतृत्व किया और इसे मध्य पूर्व में लंबे समय से चल रहे संघर्ष में एक सैन्य और राजनीतिक ताकत बनाया।
बेरूत के दक्षिणी उपनगर में एक बड़े इसराइली हवाई हमले में हसन नसरल्लाह की हत्या निश्चित रूप से चल रहे युद्ध में एक नया अध्याय खोलेगी।
इसराइल हाई अलर्ट पर है और कहता है कि वह उसकी मौत की घोषणा के बाद सभी विकल्पों के लिए तैयार है।
लेकिन क्या हिजबुल्लाह जवाब देगा - और अगर हाँ, तो कैसे?
और नवीनतम घटनाक्रम सशस्त्र समूह के भविष्य और क्षेत्र में इसकी भूमिका को कैसे आकार देगा?
प्रस्तुतकर्ता: हाशेम अहेलबरा
अतिथि:
निकोलस नोए, बेरूत स्थित मिडईस्टवायर डॉट कॉम के प्रधान संपादक।
स्टीफन ज़ुनेस, राजनीति के प्रोफेसर और सैन फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय में मध्य पूर्वी अध्ययन के संस्थापक अध्यक्ष।
गिदोन लेवी, हारेत्ज़ समाचार पत्र के स्तंभकार और 'द पनिशमेंट ऑफ़ गाजा' पुस्तक के लेखक।
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित व्यास तहखाने में आज से पूजा शुरू हुई
गुरुवार, 1 फरवरी 2024
भारत के राज्य उत्तरप्रदेश के वाराणसी की ज़िला अदालत के बुधवार, 31 जनवरी 2024 को दिए फ़ैसले को लागू करते हुए ज़िला प्रशासन ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 की सुबह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित व्यास तहखाने में पूजा अर्चना शुरू करवा दी।
वाराणसी के ज़िलाधिकारी एस राजलिंगम ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 के तड़के पत्रकारों को इसकी जानकारी दी।
एस राजलिंगम ने कहा, "मुझे न्यायालय का जो ऑर्डर है, उसका कंप्लायन्स (पालन) किया गया।''
वहीं ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास तहखाने के सामने की बैरिकेडिंग के बारे में पूछे गए सवाल के उत्तर में एस राजलिंगम ने फिर यही कहा कि 'कोर्ट के ऑर्डर का कंप्लायन्स' किया गया।
पत्रकारों ने जब एस राजलिंगम से पूछा कि क्या पूजा कराई गई तो एस राजलिंगम ने फिर वही जवाब दिया, "कोर्ट ने जो बोला है उसका कंप्लायन्स किया गया।''
इसे एक संयोग कहे या पूर्व नियोजित योजना कहे कि आज (गुरुवार, 1 फरवरी 2024) से 38 साल पहले 1986 में अयोध्या के बाबरी मस्जिद का ताला 1 फरवरी को ही खोला गया था।
वहीं इस मामले के एक वादी और वकील सोहन लाल आर्य ने गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को एएनआई से हुई बातचीत में पुष्टि की है कि व्यास तहखाने में जाने का रास्ता बन गया है, लेकिन दर्शन करने वालों को अभी वहां जाने की इजाज़त नहीं है।
सोहन लाल आर्य ने कहा, "आज (गुरुवार, 1 फरवरी 2024) का दिन बहुत गौरवान्वित क्षण लग रहा है। हमारा रोम रोम पुलकित है। ज़िला जज का कल (बुधवार, 31 जनवरी 2024) का फ़ैसला अभूतपूर्व लगा। अभी वहां की सारी व्यवस्थाएं पूरी हैं लेकिन अभी वहां (व्यास का तहखाना) जनता को दर्शन करने नहीं दिया जा रहा है। इस क्षण का हम 40 सालों से इंतज़ार कर रहे थे।''
सोहन लाल आर्य के अनुसार, "अभी नंदी के बगल से (उत्तर की ओर) बाबा के तहखाने की ओर जाने के लिए अलग से दरवाज़ा बन गया है। वहां पर तीन पुलिसकर्मी थे। उनसे हमने कहा कि दर्शन करने दिया जाए। इस पर उन्होंने कहा कि अभी दर्शन पूजन का अधिकार नहीं है, जैसे ही मिलेगा सभी दर्शनार्थियों को वहां जाने दिया जाएगा।''
इससे पहले, बहुत जल्दी दिखाते हुए वाराणसी के डीएम एस राजलिंगम के साथ पुलिस और प्रशासन के अन्य आला अधिकारी बुधवार, 31 जनवरी 2024 को लगभग रात 11 बजे काशी कॉरिडोर के गेट नंबर चार से अंदर गए। वहां से ज्ञानवापी परिसर के भीतर जाने का रास्ता है।
वहीं ज्ञानवापी परिसर के चारों ओर लगे बैरिकेड में से कुछ हिस्सा काटकर विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित नंदी की प्रतिमा के सामने से रास्ता बनाने के लिए कई मजदूर वहां पहुंचे।
भारी संख्या में पुलिस के जवान भी वहां तैनात किए गए। वाराणसी के पुलिस कमिश्नर अशोक जैन ने बताया कि क़ानून और व्यवस्था के सारे इंतज़ाम किए गए।
तक़रीबन तीन घंटे बाद गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को अहले सुबह 2 बजे डीएम एस राजलिंगम ने परिसर से बाहर आकर मीडिया को बताया, ''न्यायालय के आदेश का कंप्लायन्स किया गया।''
वाराणसी की ज़िला अदालत ने बुधवार, 31 जनवरी 2024 को सुनाया था आदेश
बुधवार, 31 जनवरी 2024 को वाराणसी की ज़िला अदालत ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया था।
वाराणसी की ज़िला अदालत ने अपने आदेश में लिखा था, "ज़िला मजिस्ट्रेट, वाराणसी/रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेंट प्लॉट नं-9130 थाना- चौक, ज़िला वाराणसी स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने, जो कि वादग्रस्त संपत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड, पुजारी से तहखाने में स्थित मूर्तियों का पूजा, राग-भोग शुरू कराए।''
अदालत ने इस आदेश को लागू करने के लिए प्रशासन को 7 दिन का समय दिया था। लेकिन जिला प्रशासन ने बहुत जल्दी दिखाते हुए 12 घंटे पूरा होते होते कोर्ट के इस आदेश का पालन किया।
काश, भारत के राज्यों के जिला प्रशासन (खासकर वाराणसी का जिला प्रशासन) विकास के कार्यों में इतनी तत्परता दिखाते तो भारत का हर जिला विकसित जिला होता और भारत एक विकसित देश होता। भारत भयंकर गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की समस्याओं से गंभीर रूप से जूझ रहा है। लेकिन इस ओर भारत और उसके राज्यों की विधायिकाओं और कार्यपलिकाओं का ध्यान नहीं। भारत की राजनीति धार्मिक मुद्दों, धार्मिक आस्था और धार्मिक भावनाओं पर केंद्रित हो गई है। जिसका खामियाजा भारत के अधिकांश लोग भयंकर गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की जैसी समस्याओं के रूप में झेल रहे हैं।
हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष ने वाराणसी की ज़िला अदालत के फ़ैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।
इतना तो तय है कि वाराणसी की ज़िला अदालत के इस फैसले से भारत में हिन्दू और मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा। जिस प्रकार कोर्ट के फैसले से बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के बाद भारत सांप्रदायिकता की आग में दशकों से जल रहा है। अभीतक भारत में सांप्रदायिकता की यह आग बुझी नहीं है कि वाराणसी की ज़िला अदालत के इस फैसले ने भारत को सांप्रदायिकता की आग में दशकों के लिए झोंक दिया। आने वाले वक़्त में क्या होगा? कोई नहीं जनता, लेकिन इतना तो तय है कि भविष्य के भारत पर इसका बुरा असर होगा। भारत का भविष्य अच्छा हो, इसके लिए जरूरी है कि भारत की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को बिना सोचे-समझे या किसी एजेंडा के तहत कोई ऐसा विवादास्पद काम और फैसला करने से परहेज करना चाहिए जिससे भारत में आंतरिक अशांति फैले या भारत का भविष्य खतरे में पड़ जाये।
हमारे सामने मणिपुर हाई कोर्ट के द्वारा दिए फैसले का उदाहरण है जिसकी वजह से मणिपुर पिछले कई महीनों से मैतेई (हिन्दू, सनातन धर्म के अनुयायी) और कुकी आदिवासी (ईसाई) के बीच बड़े पैमाने हिंसा का शिकार है। इस हिंसा से लाखों लोग विस्थापित हुए और सैकड़ों लोग मारे गए। कई महिलाओं का बलात्कार हुआ और कई महिलाओं को नंगा घुमाया गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मणिपुर हिंसा की वजह से भारत को व्यापक आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा।
साल 2023 में दुबई में जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर आयोजित हुए सीओपी28 में दुनिया के 198 देश एक ऐसे ऐतिहासिक समझौते पर पहुंच गए हैं, जिसके तहत ईंधन के लिए कोयले, तेल और गैस के इस्तेमाल को धीरे-धीरे ख़त्म किया जाएगा।
लेकिन कुछ विकासशील देश इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस समझौते की बारीक़ शर्तें कमज़ोर हैं और इस समझौते को लागू करने के लिए करना क्या है? ये भी स्पष्ट नहीं है।
साल 2023 में दुबई में जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर आयोजित हुए सीओपी28 का एक ही प्रमुख मक़सद था कि दुनिया को उसी रास्ते पर वापस लाया जाए जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सके।
लेकिन, जब परिचर्चाएं ख़त्म हुईं और लोगों का ग़ुस्सा बढ़ने लगा, तो ऐसा लगा कि ये योजना खटाई में पड़ गई है। आख़िरी मौक़े तक सीओपी28 शिखर सम्मेलन बहुत हद तक इस सवाल तक सिमट कर रह गया था कि अंत में समझौता होगा या नहीं। सीओपी28 सम्मेलन के दौरान कोई समझौता होने के लिए ये बेहद ज़रूरी था कि इसमें शामिल सभी 198 देश या तो किसी बयान पर सहमत हों या फिर ख़ाली हाथ लौट जाएं।
सीओपी28 सम्मेलन में समझौते का जो शुरुआती प्रस्ताव तैयार हुआ उससे बहुत से देशों को सदमा लगा तो कई देशों का ग़ुस्सा भड़क उठा क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि समझौते में जीवाश्म ईंधन जलाने को ‘धीरे धीरे ख़त्म किए जाने’ की बात शामिल की जाएगी।
इसके बजाय सीओपी28 सम्मेलन के आख़िरी मौक़े तक जो बातचीत चलती रही, उसका नतीजा इस मुद्दे पर एक खोखले बयान के तौर पर सामने आया। इसमें कहा गया कि ‘जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में बदलाव की दिशा में आगे बढ़ना’ है।
ख़बरों के मुताबिक़ तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) में शामिल सदस्य उन देशों की टोली में शामिल थे, जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल पूरी तरह ख़त्म करने को लेकर वैश्विक समझौते का सबसे ज़्यादा विरोध कर रही थी।
इसके बजाय, संयुक्त अरब अमीरात जैसे तेल उत्पादक देश, सीओपी28 सम्मेलन के दौरान कार्बन जमा करने की तकनीकों पर अधिक ज़ोर देने की वकालत कर रहे थे।
आख़िरी लम्हों में हुए समझौते के बावजूद, बोलीविया और समोआ जैसे देशों ने चिंता जताई है कि इस समझौते में विकसित देशों के ऊपर ये ज़िम्मेदारी नहीं डाली गई है कि वो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल ख़त्म करने के मामले में दुनिया की अगुवाई करें।
इन विकासशील देशों का कहना है कि सारे देशों पर एक साथ ये क़दम उठाने का बोझ डालना नाइंसाफ़ी है क्योंकि, विकसित देश तो पहले ही तेल, गैस और कोयले के इस्तेमाल से आर्थिक तौर पर बहुत फ़ायदा उठा चुके हैं।
और, सबसे अहम बात तो ये है कि ये बदलाव लाने के लिए जो रक़म दी जानी है, उसे भी बहुत घटा दिया गया है।
समझौते में बस यही उल्लेख किया गया है कि, जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारी करने के लिए ग़रीब देशों को अधिक पूंजी की ज़रूरत है।
ऑक्सफैम इंटरनेशनल के जलवायु परिवर्तन नीति की प्रमुख नफ्कोटे डाबी ने कहा कि दुबई सम्मेलन का जो नतीजा निकला है, वो ‘बेहद नाकाफ़ी’ है।
नफ्कोटे डाबी ने कहा, ''जिन ऐतिहासिक और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने का वादा हमसे किया गया था, दुबई का जलवायु सम्मेलन उस मंज़िल तक पहुंचने से बहुत दूर रह गया।''
नफ्कोटे डाबी ने कहा, ''दुबई का जलवायु सम्मेलन दोहरी निराशा वाला रहा, क्योंकि, एक तो इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीनीकरण योग्य ऊर्जा अपनाने के लिए विकासशील देशों को पैसे देने का कोई इंतज़ाम नही किया गया।''
''दूसरे, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को सबसे ज़्यादा झेल रहे लोगों, जैसे कि, उत्तरी पूर्वी अफ्रीका की मदद करने के वादे से अमीर देश एक बार फिर मुकर गए। जबकि हाल के दिनों में इस इलाक़े के लोगों ने भयंकर बाढ़ में अपना सब कुछ गंवा दिया था। उससे पहले वो लगातार पांच साल तक ऐतिहासिक सूखे और भुखमरी के शिकार रहे थे।''
चैथम हाउस में रिसर्च फेलो रूथ टाउनेंड ने कहा कि विकासशील देशों से कहा जा रहा है कि वो ‘विकास के लिए एकदम नए रास्ते पर चलें’, तो ज़ाहिर है कि विकासशील देश ये जानना चाहते थे कि इस नए रास्ते पर चलने के लिए उनके पास पैसे कहां से आएंगे।
लेकिन, इन तमाम आशंकाओं के बावजूद, दुबई का जलवायु सम्मेलन, दुनिया भर के क़रीब एक लाख प्रतिनिधियों, वार्ताकारों, लॉबी करने वालों, शाही परिवारों के सदस्यों और वकीलों को जलवायु के मसलों पर चर्चा करने के लिए एक मंच पर इकट्ठा कर पाने में सफल रहा, ताकि वो भविष्य की योजना तैयार कर सकें और जलवायु परिवर्तन से जुड़े आविष्कारों से मिले सबक़ को सबके सामने पेश कर सकें।
दुबई के सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में हुए वाद-विवाद और परिचर्चाओं से पांच बड़े नतीजे निकले।
मसौदे में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे धीरे ख़त्म करने को लेकर क्या लिखा जाए, इसको लेकर सीओपी28 सम्मेलन में तीखी तकरार हुई।
सौ से ज़्यादा देश 2030 तक दुनिया की नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बढ़ाकर तीन गुना करने पर सहमत हो गए।
प्रेरणा हासिल करने के लिए ये राष्ट्र, उरुग्वे जैसे देश से सीख सकते हैं, जो अपनी ज़रूरत की 98 फ़ीसदी ऊर्जा रिन्यूएबल स्रोतों से बना रहा है।
जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिका और चीन ने नवीनीकरण योग्य ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने और कार्बन कैप्चर की परियोजनाओं में तेज़ी लाने पर मिलकर काम करने के लिए, आपस में एक समझौता किया।
दोनों देश, अपनी अगली राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में सभी ग्रीनहाउस गैसों को शामिल करने जा रहे हैं। ये योजना 2025 में आने की संभावना है।
इस बीच, 50 तेल और गैस कंपनियां मीथेन का उत्सर्जन कम करने और तेल निकालने के दौरान गैस जलाने का काम बंद करने पर राज़ी हो गईं।
मीथेन, सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैसों में से एक है और दुनिया में मानवीय गतिविधियों से धरती का तापमान बढ़ने में उसका एक तिहाई योगदान रहता है।
हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस सम्मेलन में निजी तौर पर शामिल नहीं होने का फ़ैसला किया। लेकिन उनके जलवायु प्रतिनिधि जॉन केरी ने मीथेन गैस का उत्सर्जन कम करने का वादा किया।
साल 2023 में सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में पहली बार स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। दुनिया भर के दानदाताओं ने गर्म देशों में होने वाली उपेक्षित बीमारियों से मुक़ाबला करने के लिए 70 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया।
ये ऐसा प्रस्ताव है जिससे अफ़्रीका के तमाम देशों को फ़ायदा होगा। इस मदद का एक हिस्सा 2030 तक अफ़्रीका में होने वाली उन बीमारियों को जड़ से मिटाने में इस्तेमाल किया जाएगा, जिनकी अब तक अनदेखी होती रही है। जैसे कि लिम्फैटिक फिलारियासिस और ओंकोसरसियासिस, जिसे रिवर ब्लाइंडनेस के नाम से भी जाना जाता है।
रिवर ब्लाइंडनेस, आंखों और त्वचा में होने वाली ऐसी बीमारी है, जो परजीवी कीड़े से होती है, ये कीड़ा संक्रमित मक्खियों के बार-बार काटने से इंसानों तक पहुंच जाता है।
परजीवी - ओंकोसेरसियासिस (जिसे रिवर ब्लाइंडनेस के रूप में भी जाना जाता है) इस बीमारी को रिवर ब्लाइंडनेस कहा जाता है क्योंकि संक्रमण फैलाने वाली काली मक्खी तेजी से बहने वाली धाराओं और नदियों के पास रहती है और प्रजनन करती है। ये काली मक्खी ज्यादातर दूरदराज के ग्रामीण गांवों के पास रहती है। संक्रमण के परिणामस्वरूप दृष्टि हानि और कभी-कभी अंधापन हो सकता है।
गेट्स फाउंडेशन के मुताबिक़ ये बीमारी, सहारा क्षेत्र के देशों में अंधेपन की बीमारी की सबसे बड़ी वजह है। इस बीमारी को आइवरमेक्टिन नाम की दवा से ठीक किया जा सकता है।
साल 2023 में नाइजर अफ्रीका का पहला देश बन गया था, जिसने अपने यहां रिवर ब्लाइंडनेस की बीमारी का पूरी तरह से ख़ात्मा कर डाला है।
सेनेगल ये उपलब्धि हासिल करने वाला दूसरा देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही तंज़ानिया, इस बीमारी को जड़ से मिटा देने वाला तीसरा देश बन जाएगा।
लॉस एंड डैमेज फंड का मक़सद उन देशों को वित्तीय मदद देना है, जो जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों के सबसे ज़्यादा शिकार हो रहे हैं।
शर्म अल-शेख़ में हुए 27वें जलवायु सम्मेलन (COP27) में नेता आख़िरी मौक़े पर इस बात पर सहमत हुए थे कि ख़ास तौर से विकासशील देशों की मदद के लिए नुक़सान और भरपाई के ऐसे फंड का इंतज़ाम किया जाए, जिससे ये देश जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़, जंगल की आग और सूखे जैसी भारी तबाही वाली घटनाओं से निपट सकें।
दुबई के सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के पहले ही दिन नुक़सान और क्षतिपूर्ति के फंड के लिए 70 करोड़ डॉलर का फंड बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई।
मगर, इन वादों के बावजूद विश्लेषकों का कहना है कि विकासशील देशों को जितनी रक़म की ज़रूरत है, उसकी तुलना में ये फंड बेहद कम है।
इस समय पूर्वी अफ्रीका के ऐसे कई देश हैं, जिनको फ़ौरी तौर पर मदद की दरकार है। हाल ही में आई भयंकर और अभूतपूर्व बाढ़ की वजह से इन देशों के बड़े इलाक़े डूब गए थे। सोमालिया का कहना है कि अकेले उसको ही इस दशक में पांच अरब डॉलर की वित्तीय सहायता की ज़रूरत होगी।
दुबई के सीओपी28 सम्मेलन में पहुंचे प्रतिनिधियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वो जलवायु सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल कारोबारी बातचीत के लिए करते हैं।
एक बेहतर ख़बर के तौर पर दुबई के सीओपी28 सम्मेलन में कॉन्गो बेसिन की गहराई से वैज्ञानिक पड़ताल की रिपोर्ट तैयार करने को मंज़ूरी दी गई। कॉन्गो बेसिन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वर्षा वन कहा जाता है।
इस रिपोर्ट को सीओपी28 शिखर सम्मेलन की वार्ताओं से अलग मंज़ूरी दी गई। ये रिपोर्ट उसी रास्ते को अख़्तियार करके तैयार की जाएगी, जैसा रास्ता 2021 में अमेज़न पर वैज्ञानिक पैनल ने अपनाया था जिसके बाद, वर्षा वनों पर वैज्ञानिक आम सहमति जताने वाली 1300 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई थी।
प्रकृति और कॉन्गो बेसिन की पारिस्थितिकी की गहराई से होने वाली इस पड़ताल में इस बात का भी पता लगाया जाएगा कि इलाक़े की जलवायु को वर्षा वन किस तरह से नियमित करते हैं और इंसानों ने इसके इकोसिस्टम पर किस तरह से असर डाला है।
सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के मेज़बान के तौर पर संयुक्त अरब अमीरात का चुनाव एक विवादित मसला था।
सीओपी28 शिखर सम्मेलन से पहले बीबीसी की एक पड़ताल में पता चला था कि मेज़बान संयुक्त अरब अमीरात ने सीओपी28 सम्मेलन का इस्तेमाल तेल और गैस के सौदे करने की योजना बनाई थी।
लीक हुए दस्तावेज़ों ने दिखाया कि संयुक्त अरब अमीरात ने 15 देशों के साथ जीवाश्म ईंधन के सौदे पर चर्चा की तैयारी कर रखी थी।
इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर, सम्मेलन के लिए ज़िम्मेदार संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने कहा कि वो ये अपेक्षा करते हैं कि सीओपी28 सम्मेलन के मेज़बान बिना किसी पूर्वाग्रह या निजी हित को बढ़ावा दिए बग़ैर ये आयोजन करेंगे।
संयुक्त अरब अमीरात की टीम ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वो सीओपी28 सम्मेलन की बैठकों में कारोबार की बात करेंगे, और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘निजी बैठकें निजी ही होती हैं'।
इन बैठकों में किन मुद्दों पर चर्चा हुई, इसकी जानकारी देने से इनकार करते हुए, संयुक्त अरब अमीरात ने कहा कि उसका ज़ोर ‘जलवायु बचाने के लिए अर्थपूर्ण क़दम उठाने’ पर था।
इसी बीच दुबई सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के अध्यक्ष और संयुक्त अरब अमीरात की तेल कंपनी के अधिकारी सुल्तान अल-जबर, जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए नफ़रत का बायस बन गए जब शिखर सम्मेलन के पहले एक कार्यक्रम में उनकी ज़ुबान से ये निकल गया कि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना मुमकिन है।
जो एक देश नुक़सान और क्षतिपूर्ति के फंड से सबसे ज़्यादा लाभ उठाने की उम्मीद लगाए हुए था वो नाइजीरिया था, जिसको इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए 1411 प्रतिनिधियों के बैज दिए गए थे।
इतने ही लोग चीन से भी शामिल हुए। नाइजीरिया के विपक्षी दल ने दावा किया कि उनके देश के समूह में प्रतिनिधियों की ‘पत्नियां, गर्लफ्रेंड और उनके साथ रहने वाले लोग’ भी शामिल थे।
एक विशाल प्रतिनिधिमंडल भेजने के फ़ैसले की योजना को सोशल मीडिया पर ‘करदाताओं के पैसे की बर्बादी’ के तौर पर प्रचारित किया गया.
साल 2023 की बैठक में ब्राज़ील ने एक दोस्त बनाया, तो एक गंवाया भी। ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनाशियो लुला डा सिल्वा ने एक ज़बरदस्त जज़्बाती तक़रीर की और कहा कि असमानता से निपटे बग़ैर जलवायु के संकट से निपट पाना मुमकिन नहीं है।
हालांकि, इसके साथ ही साथ ब्राज़ील ने ये ऐलान भी किया कि वो दुनिया में तेल उत्पादक देशों के सबसे बड़े संगठन ओपेक में शामिल होगा।
इसकी तुलना में कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो की इस बात के लिए तारीफ़ की गई कि वो जीवाश्म ईंधन को ख़त्म करने का समझौता करने के लिए बने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में शामिल हो रहे हैं।
गुस्तावो पेट्रो ने जब ये कहा कि टिकाऊ विकास के लिए देशों को ऐसे रास्ते पर चलना होगा जिसमें कोयले और गैस पर निर्भरता न हो, तो इस बात के लिए भी उनकी सराहना की गई।
भारत, मध्य पूर्व देशों और यूरोप को जोड़ने वाले कॉरिडोर का काम जल्द ही शुरू हो सकता है। जी-20 सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इनवेस्टमेंट (पीजीआईआई) और इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर का ऐलान करते हुए कहा कि ये भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक जुड़ाव का एक प्रभावी माध्यम बनेगा।
नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूरोपियन कमीशन की प्रमुख उर्सला वॉन डेर लियेन की मौजूदगी में कहा, ''ये पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबल दिशा प्रदान करेगा। मजबूत कनेक्टिविटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार हैं। भारत ने अपनी विकास यात्रा में इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। फिजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ सोशल, डिजिटल और फाइनेंशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर में अभूतपूर्व पैमाने पर निवेश हो रहा है। इससे हम एक विकसित भारत की मजबूत नींव रख रहे हैं।''
नरेंद्र मोदी ने कहा, ''हमने ग्लोबल साउथ के अनेक देशों में एक विश्वसनीय पार्टनर के रूप में एनर्जी, रेलवे, पानी, टेक्नोलॉजी पार्क जैसे टेक्नोलॉजी क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे किए हैं। हमने डिमांड ड्रिवेन और ट्रांसपरेंट अप्रोच पर बल दिया है। पीजीआईआई के माध्यम से हम ग्लोबल साउथ के देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर गैप को कम करने में अहम योगदान दे सकते हैं। भारत कनेक्टिविटी को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधता। हमारा मानना है कि कनेक्टिविटी आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाता है।''
यूरोपियन कमीशन की प्रमुख उर्स वॉन डेर लियेन ने कहा कि इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर ऐतिहासिक है। ये अब तक इन तीनों को जोड़ने वाला सबसे तेज संपर्क होगा। इससे कारोबार की रफ्तार और तेज हो जाएगी।
जलवायु परिवर्तन के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलनों के उलट जी-20 की बैठकों में इस समस्या को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर आमतौर पर विकसित और विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर असहमतियां नहीं दिखती हैं।
लेकिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में इसे लेकर तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। जी-20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने, रिन्युबल एनर्जी के लक्ष्यों को बढ़ाने और ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी जैसे लक्ष्यों को हासिल कर कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है।
जबकि जी-20 के देश दुनिया के 75 ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन में रूस, चीन, सऊदी अरब और भारत ने 2030 तक रिन्युबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ाने के विकसित देशों के लक्ष्य का विरोध किया है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 6 सितंबर 2023 को शेरपा स्तर की बैठक में ये देश 2035 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 60 फीसदी घटाने के विकसित देशों के लक्ष्य से असहमत दिखे।
चीन ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि जुलाई 2023 में हुई जी-20 के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उसने जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बनने वाली सहमति में बाधा डाली थी।
चीन ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन की समस्या को खत्म करने के लिए अपनी क्षमता, जिम्मेदारियों और कर्तव्य के मुताबिक काम करने की अपील की थी।
चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का कहना है कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
जबकि विकासशील देशों का कहना है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को साथ आए बगैर ये काम मुश्किल है। जी-20 में दोनों ओर के देश अड़े हुए हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन के वार्षिक सम्मेलन सीओपी 28 में क्या होने वाला है।
भारत की कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वॉशिंगटन डीसी के नेशनल प्रेस क्लब में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि मुस्लिम लीग पूरी तरह से सेक्युलर पार्टी है।
राहुल गांधी से पूछा गया था कि क्या केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से कांग्रेस का गठबंधन धर्मनिरपेक्षता के ख़िलाफ़ नहीं है?
इसी के जवाब में राहुल ने कहा, ''मुस्लिम लीग के साथ धर्मनिरपेक्षता के ख़िलाफ़ जैसी कोई बात नहीं है। मुझे लगता है कि जिस व्यक्ति ने यह सवाल भेजा है, उसने मुस्लिम लीग को ठीक से पढ़ा नहीं है।''
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) केरल की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है और यह पारंपरिक रूप से कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन यूडीएफ़ में शामिल रहती है।
क्या इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का जिन्ना की मुस्लिम लीग से कोई सम्बन्ध है?
1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के गठन का आंदोलन चलाने वाली ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को भंग कर दिया गया था। पाकिस्तान के गठन के बाद मोहम्मद अली जिन्ना देश के गवर्नर जनरल बने थे। अगले कुछ महीनों के बाद पश्चिमी पाकिस्तान में मुस्लिम लीग और पूर्वी पाकिस्तान में द ऑल पाकिस्तान अवामी मुस्लिम लीग अस्तित्व में आई।
मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को शुरुआती छह प्रधानमंत्री दिए, उनके कार्यकाल बेहद छोटे थे और आख़िरकार जनरल अय्यूब ख़ान ने मार्शल लॉ लगा दिया जिसके बाद मुस्लिम लीग भी भंग हो गई।
जनरल अय्यूब ख़ान ने बाद में मुस्लिम लीग को पाकिस्तान मुस्लिम लीग के रूप में पुनर्जीवित किया जो कई दशकों तक बनती और फिर बिगड़ती रही। पाकिस्तान मुस्लिम लीग का सबसे चर्चित धड़ा नवाज़ शरीफ़ की पार्टी है जिसके अध्यक्ष शहबाज़ शरीफ़ हैं।
पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग ने बंगालियों के राष्ट्रवाद के लिए लड़ाई लड़ी और पंजाबी बहुल पश्चिमी पाकिस्तान से स्वतंत्रता की राह तलाशने की कोशिश की। शेख़ मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान टूटकर बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया।
स्वतंत्र भारत में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की जगह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने ले ली और उसका इतिहास बिलकुल अलग है। आईयूएमएल भारत के संविधान के तहत चुनाव लड़ती है और लगातार उसकी उपस्थिति लोकसभा में रही है।
आईयूएमएल केरल की मज़बूत पार्टी है और उसकी एक यूनिट तमिलनाडु में भी है। भारत के चुनाव आयोग ने उसे केरल की राज्य पार्टी के तौर पर लंबे समय से मान्यता दी हुई है।
आईयूएमएल के हरे झंडे में ऊपर की बाईं ओर सफ़ेद रंग में एक चांद और सितारा है और ये पाकिस्तान के झंडे से बिलकुल अलग है।
तीसरी से 16वीं लोकसभा तक आईयूएमएल के दो सांसद हमेशा लोकसभा में रहे हैं। केवल दूसरी लोकसभा में उनका कोई सांसद नहीं था जबकि चौथी लोकसभा में उसके तीन सांसद थे।
आईयूएमएल लंबे समय से कांग्रेस का गठबंधन सहयोगी है और केरल में विपक्षी यूडीएफ़ गठबंधन का हिस्सा है। वर्तमान केरल विधानसभा में आईयूएमएल के 18 विधायक हैं जबकि 2011 में केरल विधानसभा में 20 विधायक थे।