कानून प्रीमियम

भारत के सुप्रीम कोर्ट का बुलडोज़र एक्शन पर सख़्त रुख़, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

भारत के सुप्रीम कोर्ट का बुलडोज़र एक्शन पर सख़्त रुख़, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सोमवार, 2 सितम्बर 2024

भारत के कई राज्यों में अभियुक्तों की संपत्ति के ख़िलाफ़ कथित तौर पर बुलडोज़र एक्शन की कार्रवाई करने के मामले को लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 2 सितम्बर 2024 को सख़्त टिप्पणी किया।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की पीठ ने कहा कि किसी का घर सिर्फ़ इसलिए कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह अभियुक्त है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथ की बेंच ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश तय करेगा जिसके आधार पर ही जब भी तोड़फोड़ की कार्रवाई की ज़रूरत होगी तो उसी आधार पर वो की जाएगी।

जस्टिस बीआर गवई ने भारत के राज्य उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, "किसी का घर केवल इसी आधार पर कैसे ढहाया जा सकता है कि वो किसी मामले में अभियुक्त है?"

इसके आगे जस्टिस गवई ने कहा, "कोई व्यक्ति दोषी भी है तो बिना क़ानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता।''

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी इमारत को ढहाने की कार्रवाई इसलिए नहीं की गई है कि वो शख़्स किसी अपराध में अभियुक्त था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'हमने एफिडेविट के माध्यम से दिखाया है कि नोटिस काफ़ी पहले ही भेजा गया था।'

तुषार मेहता ने विस्तार से बताते हुए कहा कि ढहाने की प्रक्रिया एक स्वतंत्र मामला है जिसका किसी भी अपराध से कोई संबंध नहीं है।

वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे और सीयू सिंह ने इसके जवाब में कहा कि घर इस कारण ध्वस्त किए गए क्योंकि वो किसी मामले के अभियुक्त हैं।

बेंच ने इसी दौरान मौखिक तौर पर कहा कि किसी भी इमारत को ढहाने के लिए क़ानून मौजूद हैं, लेकिन इसका ‘अधिक बार उल्लंघन’ देखा गया है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी साफ़ कहा है कि, "हम पूरे देश के लिए दिशानिर्देश तय करेंगे, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि किसी भी अनाधिकृत निर्माण को संरक्षण देंगे।''

बेंच ने दोनों पक्षों से कहा है कि वो इस मामले में दिशानिर्देश तय करने के लिए सुझाव के साथ उसके पास आएं और इस मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर 2024 को तय की गई है।

सुप्रीम कोर्ट की सोमवार, 2 सितम्बर 2024 की कार्यवाही पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपना मत रखा है।

सोशल मीडिया साइट एक्स पर राहुल गांधी ने पोस्ट किया, ''भाजपा की असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण बुलडोज़र नीति पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी स्वागत योग्य है। बुलडोज़र के नीचे मानवता और इंसाफ को कुचलने वाली भाजपा का संविधान विरोधी चेहरा अब देश के सामने बेनक़ाब हो चुका है।''

राहुल गांधी ने कहा कि 'त्वरित न्याय' की आड़ में 'भय का राज' स्थापित करने की मंशा से चलाए जा रहे बुलडोज़र के पहियों के नीचे अक्सर बहुजनों और गरीबों की ही घर-गृहस्थी आती है।

राहुल गांधी ने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट इस अति संवेदनशील विषय पर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करेगा।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी इस मामले पर टिप्पणी की है।

प्रशांत भूषण ने एक्स पर लिखा, "सुप्रीम कोर्ट की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने क़ानून के शासन के लिए इस ख़तरे को आख़िरकार समझा है।  इंसाफ़ को ढहाने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया जा रहा है।''

भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर पोस्ट किया है।

अखिलेश यादव ने लिखा है- ‘अन्याय के बुलडोज़र’ से बड़ा होता है, ‘न्याय का तराज़ू’।

कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदित राज ने भी इस मामले पर अपना बयान दिया है।

उदित राज ने कहा कि आरोपी हो या आरोप साबित हो जाए, जब बुलडोज़र की कार्रवाई चल गई तो फिर अदालत और संविधान की ज़रूरत क्या है।

उदित राज ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, ''ये बर्बर युग की याद दिलाता है कि देश में तानाशाही है और संविधान है ही नहीं। अदालत के द्वारा ये फ़ैसला लिया जाना चाहिए कि घर गिराया जाना चाहिए या नहीं, जेल जाना है या नहीं, फ़ाइन लगना है या नहीं।''

उदित राज ने कहा, "नेताओं या हुकूमत के कहने से अगर अधिकारी लोग ही फ़ैसला करने लगेंगे तो फिर संविधान, अदालत और क़ानून की किताब की क्या ज़रूरत है।"

सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी 2024 के परीक्षा परिणाम रद्द करने से इनकार किया

सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी 2024 के परीक्षा परिणाम रद्द करने से इनकार किया

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी परीक्षा को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

भारत के चीफ़ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले तीन जजों की बेंच ने कहा है कि इस बात के कोई पुख़्ता प्रमाण नहीं हैं जो यह साबित कर सकें कि परीक्षा के प्रश्न पत्र योजनाबद्ध तरीके़ से लीक हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि परीक्षा की पवित्रता पर सवाल नहीं उठता है, इसलिए कोर्ट ने दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से इनकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर किसी छात्र को ग़लत तरीक़े से फ़ायदा होते हुए दिखता है तो ऐसे छात्रों को बाद में सज़ा दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि फिर से परीक्षा होने से 20 लाख से ज़्यादा छात्रों पर इसका गंभीर असर होगा। इससे मेडिकल की पढ़ाई के लिए दाख़िले का कार्यक्रम प्रभावित होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ़ किया कि ये आदेश नीट परीक्षा की शुचिता पर है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "अगर किसी छात्र को कोई व्यक्तिगत शिकायत है तो वह क़ानून के अनुसार अपने अधिकारों को पाने के लिए स्वतंत्र है।  ऐसे छात्र अपनी मांगों को लेकर हाई कोर्ट जा सकते हैं।"

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो भारत सरकार द्वारा गठित सात सदस्यीय कमेटी को कुछ सुझाव भेजेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कमेटी अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए ये सुनिश्चित करेगी कि एनटीए द्वारा करवाई जाने वाली नीट यूजी और अन्य परीक्षाओं की प्रक्रिया को मज़बूत किया जाए ताकि भविष्य में ऐसी ग़लतियां न हों।''

मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई

मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई

सोमवार, 22 जुलाई 2024

भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के मुज़फ़्फ़रनगर एसएसपी के आदेश पर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।

जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली पीठ ने ये आदेश दिया है।

इसके साथ ही पीठ ने कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने को लेकर भारत के राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया है।

इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 26 जुलाई 2024 को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो निर्देशों को अमल में लाने पर रोक लगा रही है, दूसरे शब्दों में कहें तो खाना बेचने वालों को ये बताना ज़रूरी है कि वो किस तरह का खाना दे रहे हैं लेकिन उन पर मालिक या स्टाफ़ का नाम सार्वजनिक करने के लिए ज़ोर नहीं डाला जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला: तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाएं भी गुज़ारा भत्ता की हक़दार

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला: तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाएं भी गुज़ारा भत्ता की हक़दार

बुधवार, 10 जुलाई 2024

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 10 जुलाई 2024 को एक फ़ैसला देते हुए कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की सेक्शन 125 के तहत मुस्लिम महिला गुज़ारा भत्ता की मांग कर सकती है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली दो जजों की बेंच ने इस सेक्शन के तहत गुज़ारा भत्ता की मांग करने वाली एक मुस्लिम महिला के केस की सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला दिया।

दस हज़ार रुपये गुज़ारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को एक मुस्लिम व्यक्ति ने चुनौती दी थी।

उसके वकील की दलील थी कि चूंकि मुस्लिम महिला (तलाक़ मामले में अधिकारों का संरक्षण) क़ानून 1986 लागू है, इसलिए सेक्शन 125 के तहत उन्हें गुज़ारा भत्ता नहीं मिल सकता।

दोनों जजों ने एकमत से यह फ़ैसला दिया है। अभी आदेश लिखा जाना बाक़ी है।

1985 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्शन 125 एक सेक्युलर क़ानून है जो सभी महिलाओं पर लागू होता है।

जिसके बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।

इसके बाद 1986 में भारत सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक़ मामले में अधिकारों का संरक्षण) क़ानून पास किया था।

तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने के मामले पर मुस्लिम धर्मगुरु ने क्या है?

बुधवार, 10 जुलाई 2024

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 10 जुलाई 2024 को एक फ़ैसला देते हुए कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता के सेक्शन 125 के तहत मुस्लिम महिला गुज़ारा भत्ता की मांग कर सकती है।

इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के संस्थापक सदस्य मोहम्मद सुलेमान ने प्रतिक्रिया दी है।

मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि "शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1985 में जो फ़ैसला सुनाया था। उसके ख़िलाफ़ पर्सनल बोर्ड ने आंदोलन चलाया। इसके बाद एक क़ानून वजूद में आया। उस क़ानून की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट करता है।''

"उस वक्त ही सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था। जो लोग धारा 125 के तहत राहत चाहेंगे उनको राहत दी जाएगी। इसमें मुस्लिम समुदाय भी शामिल है।''

मोहम्मद सुलेमान ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय की ये मान्यता रही है कि जो महिलाओं के अधिकार के लिए धार्मिक गारंटी है वो पर्याप्त नहीं है।''

"हालिया फ़ैसले पर मुझे यही कहना है कि जो हमारी बहनें हैं, तलाक़ या किसी वजह से अलग हो जाने पर वो इस्लामिक कानून के मुताबिक न्याय चाहती हैं तो यह उनके लिए बेहतर है। जिन बहनों को यह लगता है कि धारा 125 के तहत भरण पोषण मिलना चाहिए वो कोर्ट जा सकती हैं।''

"लेकिन इसमें एक मसला है कि अलग होने के बाद भी वो रिश्ता ख़त्म नहीं होता और महिला दूसरी शादी नहीं कर सकती क्योंकि भरण पोषण लेने की वजह से दोनों के बीच वो ताल्लुक बना रहता है। इसलिए ये अप्राकृतिक अमल है।''

सीएए प्रदर्शनकारियों से वसूली गई रकम वापस करे यूपी सरकार: सुप्रीम कोर्ट

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022 को उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वो 2019 में सीएए प्रदर्शनकारियों से वसूले गए करोड़ों रुपए वापस करे।

उत्तर प्रदेश सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रदर्शनकारियों से करोड़ों रुपए वसूले थे।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील दी थी कि उसने साल 2019 में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में जारी नोटिस को वापस ले लिया है।

इसके तहत 274 नोटिस जारी किए गए थे।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की बेंच ने आदेश देते हुए कहा कि राज्य सरकार कथित प्रदर्शनकारियों से वसूले गए करोड़ों रुपए वापस करे।

हालाँकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार नए क़ानून के तहत कार्रवाई कर सकेगी।

अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की उत्तर प्रदेश वसूली विधेयक, 2020 के तहत नए सिरे से कार्रवाई और नोटिस देने की अनुमति दी।

इस नए क़ानून के तहत अगर प्रदर्शनकारियों को सरकारी और निजी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने का दोषी पाया गया, तो उन्हें जेल या एक लाख रुपए तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।

किसी अन्य धर्म का जीवन साथी चुनने की आज़ादी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला क्या है?

एक अहम फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2020 को दिए आदेश में कहा है कि अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका मज़हब कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार का स्वाभाविक तत्व है।

आदेश को आए 15 दिन हो गए हैं लेकिन इसकी प्रति इसी हफ़्ते उपलब्ध हुई है जिसके बाद इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने यह अहम फ़ैसला सुनाया है।

प्रियांशी उर्फ़ समरीन और अन्य, बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य में दिए गए आदेश और इसके बाद आए नूर जहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में दिए गए आदेशों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ''इनमें से किसी भी आदेश में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने की आज़ादी के अधिकार को नहीं देखा गया है।"

कोर्ट ने आदेश दिया, ''नूर जहां और प्रियांशी के मामलों में दिए गए फ़ैसलों को हम अच्छा क़ानून नहीं मानते हैं।''

आइए नज़र डालते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या अहम बातें कहीं हैं ...

- कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ''हम प्रियंका खरवार और सलामत को हिंदू और मुस्लिम के तौर पर नहीं देखते हैं। इसके बजाय हम इन्हें दो वयस्क लोगों के रूप में देखते हैं जो अपनी इच्छा और चुनाव से शांतिपूर्वक और ख़ुशी से एक साथ रह रहे हैं।''
- "अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार में निहित है। निजी संबंधों में दख़ल दो लोगों के चुनाव करने की आज़ादी में गंभीर अतिक्रमण होगा।''
- कोर्ट ने कहा है, "वयस्क हो चुके शख़्स का अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का फ़ैसला किसी व्यक्ति के अधिकार से जुड़ा है और जब इस अधिकार का उल्लंघन होता है तो यह उस शख़्स के जीवन जीने और निजी आज़ादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है क्योंकि इसमें चुनाव की आज़ादी, साथी चुनने और सम्मान के साथ जीने के संविधान के आर्टिकल-21 के सिद्धांत शामिल हैं।''
- कोर्ट ने अपने फ़ैसले में शफ़ीन जहां बनाम अशोकन केएम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार एक वयस्क हो चुके व्यक्ति की आज़ादी का सम्मान किया है।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया। इसके अलावा कोर्ट ने नंद कुमार बनाम केरल सरकार में आए फ़ैसले का भी हवाला दिया और कहा कि इन फ़ैसलों में साफ़ है कि वयस्क हो चुके शख़्स के पास अपना चुनाव करने की आज़ादी है।
- कोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर के एस पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया और कहा कि साथी चुनने के अधिकार का जाति, पंथ या मज़हब से कोई लेना-देना नहीं है और यह आर्टिकल-21 के अभिन्न हिस्से जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता में निहित है।
- नूरजहां और ऐसे ही दूसरे मामलों में आए फ़ैसलों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि वयस्क हो चुके शख़्स की मर्ज़ी को अनदेखा करना न केवल चुनाव की आज़ादी के विपरीत होगा बल्कि यह विविधता में एकता के सिद्धांत के लिए भी ख़तरा होगा।
- प्रियांशी और नूरजहां मामलों में आए फ़ैसलों पर कोर्ट ने कहा कि इनमें से किसी भी फ़ैसले में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने या उन्हें किसके साथ रहना है। इसका चुनाव करने की आज़ादी के जीवन और आज़ादी से जुड़े मसले को ध्यान में नहीं रखा गया है। कोर्ट ने आगे कहा है कि नूर जहां और प्रियांशी मामलों में आए फ़ैसले क़ानून के लिहाज़ से अच्छे नहीं हैं।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने अपने इसी आदेश में टिप्पणी की है, "हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर क़ानून दो समलैंगिक लोगों को शांतिपूर्वक एक साथ रहने की इजाज़त देता है तो न तो किसी शख़्स न ही किसी परिवार या यहां तक कि राज्य को भी दो वयस्क लोगों को अपनी इच्छा से एक साथ रहने पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।''

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला और पृष्ठभूमि

इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ''इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया जजमेंट में जो एफ़आईआर ख़ारिज की गई है वह इस बात पर आधारित है कि क्या दो वयस्क लोग आर्टिकल-21 के तहत एक साथ रह सकते हैं या नहीं?"

त्रिपाठी कहते हैं कि ''जहां तक शादी की बात है तो शादी का धर्म से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध इच्छा से है। और इच्छा का संबंध आर्टिकल-21 की लिबर्टी से है। ऐसे में पहले के फ़ैसलों के मुक़ाबले इस फ़ैसले में ज़्यादा स्पष्टता है।''

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला बहुत अच्छा है और इसमें निजता की स्वतंत्रता और इच्छा की स्वतंत्रता को आधार बनाया गया है।

इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि सलामत अंसारी और तीन अन्य की तरफ़ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल की गई थी। सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया ने दो अन्य लोगों के साथ हाईकोर्ट में उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर को ख़ारिज करने की माँग की थी।

इस मामले में प्रियंका धर्म परिवर्तन कर आलिया बन गई थीं और और उन्होंने सलामत अंसारी से निकाह कर लिया था। इसके विरोध में प्रियंका के पिता ने एफ़आईआर दर्ज करा दी थी। इस एफ़आईआर में 363, 366, 352 समेत पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 भी लगाई गई थीं। इसमें सलामत, उनके भाई और उनकी मां को आरोपी बनाया गया था।

कोर्ट ने प्रियंका उर्फ़ आलिया की जन्मतिथि देखी और पाया गया कि वो वयस्क हैं। आनंद कहते हैं कि ऐसे में पॉक्सो के सारे एक्ट ख़ारिज हो गए। साथ ही ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली धाराओं को कोर्ट ने माना कि इन्हें फँसाने के लिए लगाया गया है।

सलामत अंसारी की ओर से हाईकोर्ट में तर्क दिया गया था कि सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया वयस्क हैं और शादी करने के लिए योग्य हैं। इस पक्ष ने कहा कि प्रियंका के अपनी हिंदू पहचान को छोड़ने और इस्लाम अपनाने के बाद इन दोनों ने 19.8.2019 को मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह कर लिया था।

दोनों लोग बीते एक साल से बतौर पति-पत्नी साथ रह रहे हैं। दोनों ने कहा कि प्रियंका के पिता ने ग़लत मक़सद से उनके विवाह को ख़त्म करने के लिए यह एफ़आईआर दर्ज कराई है और चूंकि इन दोनों ने कोई अपराध नहीं किया है, ऐसे में यह एफ़आईआर ख़ारिज की जानी चाहिए।

दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया कि शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन निषिद्ध है और इस तरह से हुई शादी की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में कोर्ट को इन लोगों को किसी तरह की राहत नहीं देनी चाहिए।

आनंद कहते हैं कि सरकार ने पिछले दो फ़ैसलों के आधार पर सलामत को राहत न देने की माँग की थी। आनंद कहते हैं, ''कोर्ट ने कहा कि जब इन दो वयस्क लोगों ने साथ रहने का तय कर लिया तो हमें आर्टिकल-21 का आदर करना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने इस एफ़आईआर को ख़ारिज कर दिया।''

नूरजहां और प्रियांशी के मामले

सितंबर 2020 में प्रियांशी के मामले में सिंगल बेंच ने 2014 में नूरजहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का ज़िक्र किया था जिसमें कहा गया था कि महज़ शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है।

नूरजहां बेगम मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादीशुदा जोड़े के तौर पर सुरक्षा की दरकार के लिए दायर की गई याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था। इस मामले में भी लड़की ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया था और इसके बाद निकाह कर लिया था।

इसी तरह के चार अन्य मामले भी कोर्ट के सामने आए थे।

इन मामलों में महिलाएं अपने कथित धर्म परिवर्तन को प्रमाणित नहीं कर पाई थीं क्योंकि वे इस्लाम की समझ को साबित करने में नाकाम रही थीं।  ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया था कि ये कथित शादी अवैध हैं क्योंकि इसे एक ऐसे धर्म परिवर्तन के बाद किया गया था जिसे क़ानून के मुताबिक़ जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।

आनंद कहते हैं, ''लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने इस फ़ैसले में कहा है कि जब एक बार यह साबित हो गया था कि शादी करने वाले दोनों लोग वयस्क हैं तो कोर्ट को इनके मज़हब पर जाना ही नहीं चाहिए था।''

हालिया फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में ऐसे ही पिछले मामलों में आए फ़ैसलों का ज़िक्र किया है।

योगी सरकार का जबरन धर्मांतरण रोकने का अध्यादेश

हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने के बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 24 नवंबर 2020 को 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' को मंज़ूरी दे दी है।

इस क़ानून के अनुसार 'जबरन धर्मांतरण' उत्तर प्रदेश में दंडनीय होगा।  इसमें एक साल से 10 साल तक जेल हो सकती है और 15 हज़ार से 50 हज़ार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

योगी सरकार के इस अध्यादेश के अनुसार 'अवैध धर्मांतरण' अगर किसी नाबालिग़ या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के साथ होता है तो तीन से 10 साल की क़ैद और 25 हज़ार रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता विनोद मिश्रा कहते हैं, "सरकार ने इस क़ानून के ज़रिए जबरन धर्मांतरण या दूसरी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश की है। सरकार कथित 'लव जिहाद' पर लगाम लगाना चाहती है।"

क्या टकराव पैदा होगा?

क्या उत्तर प्रदेश सरकार के लाए गए 'अवैध धर्मांतरण' रोकने के क़ानून और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के बीच आने वाले दिनों में टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है?

इस मसले पर हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "अभी ये कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि सरकार ने जो अध्यादेश पास किया है जो अभी न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं बना है। जब तक इस पर केस फ़ाइल नहीं होता तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि ये दोनों फ़ैसले एक-दूसरे से टकरा सकते हैं या नहीं।"

त्रिपाठी कहते हैं, "दिलचस्प बात यह है कि जिस कथित लव जिहाद को लेकर माहौल बनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अध्यादेश को पेश किया है वह ज्यूडिशियल रिव्यू में टिक नहीं पाएगा. लेकिन, जब इसे चैलेंज किया जाएगा तब स्थिति साफ़ होगी।"

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि योगी सरकार का लाया गया क़ानून दरअसल ज़बरदस्ती होने वाले धर्मांतरण पर है और इसे 'लव जिहाद' का क़ानून कहना सही नहीं होगा।

वह कहते हैं, "उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश ज़बरदस्ती होने वाले धर्म-परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। अब अगर कभी इस क़ानून का दुरुपयोग होता है तो इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फ़ैसला एक दीवार बनकर काम करेगा।"

वह कहते हैं कि इस तरह के मामलों में एक पक्ष कहेगा कि यह जबरन धर्मांतरण है जबकि दूसरा पक्ष इसे सहमति से बताएगा। ऐसे में योगी सरकार के क़ानून के ग़लत इस्तेमाल पर हाईकोर्ट का फ़ैसला ढाल का काम करेगा।

आने वाले वक़्त में यह साफ़ हो सकेगा कि योगी सरकार के लाए गए अध्यादेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला कैसे प्रभावित करेगा?

भारत में अंतर-धार्मिक शादी के हंगामे पर विदेशी मीडिया की प्रतिक्रिया क्या है?

डिस्क्लेमर: भारत के ''मौजूदा क़ानून में 'लव जिहाद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी की ओर से 'लव जिहाद' का कोई मामला सूचित नहीं किया गया है।''

रिपोर्ट की शुरुआत में इस तरह के डिस्क्लेमर का ख़ास संदर्भ है। कई राजनीतिक नेता इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन ऊपर लिखा वाक्य भारत के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी की तरफ़ से चार फ़रवरी 2020 को लोकसभा में दिए गए एक तारांकित प्रश्न के जवाब का अंश है।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अंतर-धार्मिक विवाह के ख़िलाफ़ एक अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है। भारतीय जनता पार्टी की चार और राज्य सरकारें इसी तरह के अध्यादेश लाने की बात कर चुकी हैं।

भारत में इस मुद्दे पर ज़ोरों से बहस छिड़ी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस कथित जबरन अंतर-धार्मिक शादी (जिसे बीजेपी लव जिहाद कहती है) के अध्यादेश के विरोध को अपने पन्नों पर जगह दी है।

सिंगापुर के स्ट्रैट टाइम्स अख़बार ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया है कि ''लव जिहाद'' लाने की बात करने वाले पाँच राज्य वो हैं जहाँ बीजेपी की सरकारें हैं। अख़बार के अनुसार उत्तर प्रदेश में लाए गए अध्यादेश और दूसरे चार राज्यों में इस पर प्रस्ताव से ''लव जिहाद'' के मुद्दे को हवा मिलेगी।

अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में योगी आदित्यनाथ के बयानों को काफ़ी जगह दी है। 24 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश में इस पर एक अध्यादेश को मंज़ूरी मिली है।

अख़बार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के 31 अक्टूबर 2020 वाले एक बयान को प्रमुखता से छापा है। अख़बार ने लिखा है, ''योगी आदित्यनाथ, एक हिन्दू पुरोहित जो भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, 31 अक्टूबर 2020 को एक चुनावी सभा में कहते हैं कि सरकार 'लव जिहाद' को रोकने के लिए एक फ़ैसला ले रही है। हम उन लोगों को वार्निंग देते हैं जो अपनी शिनाख़्त को छिपाते हैं और हमारी बहनों की बेइज़्ज़ती करते हैं। अगर आप बाज़ नहीं आए तो आपका अंतिम संस्कार जल्द होगा।''

'यूएस न्यूज़' नाम की अमेरिका की एक मीडिया आउटलेट ने लखनऊ डेटलाइन से ताज़ा अध्यादेश पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''भारतीय राज्य ने विवाह के लिए 'जबरन' धर्म परिवर्तन को अपराध ठहराया।''

आलोचकों के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है, ''आलोचक कहते हैं कि योगी की कैबिनेट ने जिस ग़ैर-क़ानूनी धर्म परिवर्तन वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दी है उसका उद्देश्य भारत के 17 करोड़ मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग करना है।''

अख़बार ने इस रिपोर्ट में तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां के एक बयान को भी जगह दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि ''लव जिहाद'' नाम की कोई चीज़ है ही नहीं और ये बीजेपी की केवल एक सियासी चाल है।

अल-जज़ीरा ने अपनी वेबसाइट पर इसे जगह दी है और पश्चिमी देशों के कई अख़बारों की वेबसाइट ने भी इस ख़बर को छापा है।

अधिकतर मीडिया आउटलेट भारत में इससे जुड़े मुद्दों को भी साझा कर रहे हैं। अल-जज़ीरा ने अक्टूबर 2020 में हुई उस घटना का हवाला दिया है जिसमें तनिष्क जेवेलरी स्टोर को वो विज्ञापन हटाना पड़ा था जिसमें एक हिन्दू बहू को उसके मुस्लिम पति के साथ दिखाया गया था।

फ़र्स्टपोस्ट वेबसाइट ने नेटफ्लिक्स में दिखाई जा रही मीरा नायर की फ़िल्म 'ऐ सूटेबल बॉय' में एक मंदिर के अंदर एक चुंबन दृश्य पर हुए विवाद को ''लव जिहाद'' के अध्यादेश से जोड़ते हुए भारत में बढ़ते असहिष्णुता पर रिपोर्टिंग की है।

इस किसिंग सीन में एक मुस्लिम युवा एक मंदिर के अंदर अपनी हिन्दू गर्लफ़्रेंड को चूमते हुए दिखाई देता है जिसके ख़िलाफ़ कुछ हिन्दू संस्थाओं ने पुलिस से शिकायत दर्ज की है। मध्य प्रदेश में नेटफ्लिक्स के कुछ अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की जा चुकी है।

लव जिहाद क्या है?

हिन्दू राइट विंग संस्थाएं 'लव जिहाद' ऐसे प्रेम विवाह को कहती हैं जिसमें एक मुस्लिम मर्द एक हिन्दू औरत से शादी करके उसे इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर करता है। अगर उल्टा हो यानी एक मुस्लिम औरत एक हिन्दू मर्द से शादी करे तो इस पर कुछ हिन्दू संस्थाएं ख़ामोश हैं तो कुछ संस्थाएं ऐसी शादियों का बढ़चढ़ कर समर्थन करती हैं।

भारत सरकार और निजी सामाजिक संस्थाओं के पास इन शादियों के आंकड़ें नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक़ ऐसी शादियाँ तीन प्रतिशत से भी कम हैं।

सरकारी एजेंसियों की कई रिपोर्टों में हिन्दू औरत और मुस्लिम मर्द के बीच विवाह में 'जिहाद' के इल्ज़ाम ग़लत पाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद बीजेपी की पाँच राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए क़ानून का सहारा ले रही हैं।

इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल कहाँ और कब हुआ? ये कहना मुश्किल है लेकिन 2009 के आसपास कर्नाटक और केरल में इस शब्द के इस्तेमाल की मिसाल मिलती हैं जहाँ के कुछ हिंदू और ईसाई संस्थानों को मुस्लिम मर्दों द्वारा हिन्दू या ईसाई महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए धोखा देकर शादी करने की साज़िश का उल्लेख किया गया है।

भारत में अंतर-धार्मिक शादियाँ स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत होती हैं जिसके लिए अदालत में शादी रजिस्टर करानी पड़ती है और इससे पहले अदालत एक महीने का नोटिस जारी करती है ताकि किसी को इस विवाह से आपत्ति हो तो अदालत को बता सकते हैं।

''लव जिहाद'' शब्द के प्रचलन से पहले सालों से दक्षिणपंथी हिन्दू संस्थाएं अदालत में ऐसी शादियों का विरोध करते आए थे जिसमें जोड़े को धमिकयां भी दी जाती थीं लेकिन ये इतना सार्वजनिक तरीक़े से नहीं किया जाता था।

"लव जिहाद" के ख़िलाफ़ मुहिम के अंतर्गत हिन्दू-मुस्लिम शादियों का खुल कर विरोध होना शुरू हो गया, ख़ास तौर से उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार संस्थाओं और मीडिया ने इसे एक नागरिक के मौलिक अधिकारों पर प्रहार बताया है।

शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन पर आपत्ति जताने वाले फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं थे: इलाहाबाद हाई कोर्ट

भारत में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि देश के नागरिकों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हो।

इंग्लिश डेली न्यूज़ पेपर हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन पर आपत्ति जताने वाले पिछले दो फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं थे।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और विवेक अग्रवाल की दो जजों की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रहने वाले सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये कहा।

प्रियंका ने अपना धर्म परिवर्तन किया था और उनके पिता ने पुलिस में इस बाबत शिकायत की थी। पुलिस की कार्रवाई को निरस्त करने के लिए पति-पत्नी दोनों ने अदालत की शरण ली।

हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि यह फ़ैसला अदालत ने 11 नवंबर 2020 को ही दे दिया था लेकिन इसे सार्वजनिक 23 नवंबर 2020 को किया गया है।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार अब जबकि उत्तर प्रदेश सरकार शादी के लिए धर्म परिवर्तन से जुड़ा एक क़ानून बनाने की योजना पर काम कर रही थी तो हाई कोर्ट का यह फ़ैसला उसके लिए समस्या पैदा कर सकता है।