गुजरात में बुलेट ट्रेन उद्घाटन: नरेंद्र मोदी के पूरे चुनाव अभियान का हिस्सा है

जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने भारत में पहले बुलेट ट्रेन नेटवर्क के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया है।

ये ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच दौड़ेगी। इसकी ज़्यादातर फ़ंडिंग जापान के मिलने वाले $17 अरब (क़रीब 1088 अरब रुपये) के कर्ज़ से होगी।

उम्मीद जताई जा रही है कि इससे 500 किलोमीटर की यात्रा करने में अभी लगने वाला 8 घंटे का समय घटकर तीन घंटे का रह जाएगा।

गुजरात में बुलेट ट्रेन के नाम पर जिस तरह से सीक्वेंस में इवेंट का आयोजन चल रहा है, ये पूरे चुनाव अभियान का हिस्सा है।

गुजरात को मेट्रो देने की बात चली थी, तब जब मोदी मुख्यमंत्री बने थे। 2001 में मोदी मुख्यमंत्री बने थे और यहां से 2014 में प्रधानमंत्री बन कर चले गए। गुजरात में मेट्रो ट्रेन आज तक शुरू नहीं हो पाई है।

उसका काम अब जाकर शुरू हुआ है। कोशिश बहुत चल रही है कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उसका छोटा-सा हिस्सा भी शुरू हो जाए।

मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद कई महीनों तक गुजरात आए भी नहीं, वाइब्रेंट गुजरात में आए थे, लेकिन उसके बाद लंबे समय तक नहीं आए, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय नज़दीक आ रहा है उनकी गुजरात की यात्राएं बढ़ती जा रही हैं।

इसकी वजहें भी हैं क्योंकि जैसे विशाल पेड़ के नीचे दूसरा पेड़ नहीं उग पाता है, उसी तरह से मोदी के जाने के बाद जो भी आए, चाहे वो आनंदीबेन पटेल हों या विजय रुपाणी हों- वे लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए।

मोदी लोगों को रिझाने की कोशिश बहुत कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्थिति और जो दिखाने की कोशिश हो रही है, उसमें काफ़ी फर्क है।

अभी पिछले दिनों अहमदाबाद में बारिश हुई तो सारी सड़कें ध्वस्त हो गईं। ख़बरें लगातार आती रही हैं कि लोग सड़कों पर घायल हो कर अस्पताल पहुंच रहे थे।

इसके बाद ख़बर आई कि शिंजो आबे आ रहे हैं तो उन सड़कों को चमकाया जाने लगा, जिन पर उन्हें जाना था।

आम लोगों को ये लगने लगा है कि हम लोगों के लिए कुछ नहीं करते, लेकिन बाहरी मेहमान के लिए गुजरात का पूरा प्रशासन जुट गया।

मोदी इस आयोजन के बहाने चुनावी राजनीति ही कर रहे हैं। शिद्दी सैयद मस्जिद में फ़ंक्शन हुआ, लेकिन इस मस्जिद से जुड़े लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया। उस मस्जिद के ऐतिहासिक संदर्भ बताने का काम उन्होंने ख़ुद किया। मस्जिद के लोगों को इजाज़त नहीं मिली।

अगर पीछे देखें तो मोदी ने जब सद्भावना का व्रत रखा था, तब उन्होंने मुसलमानी टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। तो एक तरफ़ तो दुनिया भर में अपनी छवि मज़बूत करने के लिए दो क़दम आगे चलते हैं, लेकिन भारत के मतदाताओं के लिए वो एक क़दम पीछे चलते हैं।

गुजरात पर दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है, उस राज्य पर ऐसी चीज़ लाद रहे हैं जिससे क्या फर्क़ पड़ेगा, कितना फर्क़ पड़ेगा।

नर्मदा बांध के पास सरदार पटेल की मूर्ति लगाई जा रही है, इस मूर्ति को बनाने का चुनावी फ़ायदा लेने के लिए राज्य में यात्रा निकल रही है, लेकिन इस यात्रा में सरदार पटेल की तस्वीर है ही नहीं, केवल नरेंद्र मोदी हैं और राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

ये चुनावी अभियान है, इसलिए इसका उद्घाटन गुजरात से हो रहा है, महाराष्ट्र से क्यों नहीं हो रहा है?

इन सबकी वजह से गुजरात के सोशल मीडिया पर लोग अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं और 'विकास पागल हो गया है' टॉप ट्रेंड बन गया है।

लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस इसके पीछे है, लेकिन ये हक़ीकत नहीं है। कांग्रेस तो लोगों के ग़ुस्से पर सवारी करने की कोशिश कर रही है।

मौजूदा समय में अगर भारतीय जनता पार्टी की ताक़त या मज़बूती की बात करें तो नरेंद्र मोदी के समय में गुजरात में बीजेपी कभी उतनी कमज़ोर नहीं रही जितना कि इस समय है।

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की ताक़त की सबसे बड़ी वजह पाटीदारों का सहयोग था।

बीजेपी के सत्ता में आने की सबसे बड़ी वजहों में एक पाटीदारों का साथ था, लेकिन मौजूदा समय में ये समुदाय विद्रोह पर उतारू है।

उनके विरोध को बांटने की कोशिश हो रही है, लेकिन ये समुदाय विद्रोह पर उतारू है। ओबीसी भी बीजेपी से नाराज़ चल रही है।

आम आदमी पार्टी ने गुजरात में शिंज़ो आबे के आने पर कोई प्रदर्शन नहीं किया है, ना ही करने वाली है, लेकिन राज्य प्रशासन, उनके एक छोटे से नेता को घर से निकलने नहीं दे रहा है।

ऐसी ज़रूरत क्यों पड़ रही है? ये समझने की ज़रूरत है। ये सब स्थितियां बताती हैं कि जो बताने की कोशिश हो रही है स्थिति वैसी है नहीं।

इन सबके बीच बीजेपी 182 में से 150 सीटें जीतने का दावा कर रही है। इस मर्म को भी समझने की ज़रूरत है। 1985 में कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में इतनी सीटें जीती थीं।

नरेंद्र मोदी ने गुजरात में तमाम झंडे गाड़े, लेकिन माधव सिंह सोलंकी का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए। लिहाज़ा बीजेपी जो भी दावा करे, जो भी बताने की कोशिश करे, लेकिन हक़ीकत यही है कि पार्टी के अंदर चिंता है।