क्या भारत का मुस्लिम फिर से वोट बैंक बन पायेगा?

जब बारिश से पूरा मुंबई बेहाल था तो इस मुसीबत की घड़ी में मुंबई के लोगों को मस्जिदों ने सहारा दिया।

जब मुसलमान इस तरह का कोई अच्छा काम करते है तो भारत के न्यूज़ चैनल्स इन कामों को नही दिखाते हैं। बस बगदादी को दिखाते रहते हैं क्योंकि इससे टीआरपी मिलती है। जबकि मुसलमानों द्वारा किये जा रहे अच्छे कामों को दिखाने से न्यूज़ चैनल्स को टीआरपी नहीं मिलती है!

भारत का 20 करोड़ मुसलमान आज न तो वोट बैंक हैं। ना ही टीआरपी न्यूज़ चैनल्स की निगाह में।

क्योंकि मुसलमानों से संबंधित कार्यक्रम दिखाने से न्यूज़ चैनल्स को विज्ञापन नहीं मिलते। वजह सबको पता है।

रही वोट बैंक की बात तो बीजेपी और आरएसएस ने कई सालों तक मुसलमानों को वोट बैंक कहकर कोसती रही परिणामस्वरूप मुसलमानों को ऐसा लगने लगा कि वोट बैंक होना गलत बात है।

और कई वजहों से मुसलमानों में इतना बिखराव आया कि आज मुसलमान कोई वोट बैंक नहीं है। इस तरह से मुसलमानों ने लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत को खो दिया। इसका सबसे ज्यादा फायदा हुआ बीजेपी और आरएसएस को।

बीजेपी और आरएसएस जो चाहती थी, मुसलमानों ने बीजेपी और आरएसएस की मुराद को पूरा किया।

आज बाबाओं ने अपने-अपने वोट बैंक बना लिए हैं, लेकिन मुसलमानों ने अपने वोट बैंक को ख़त्म कर दिया।

क्या भारत का मुस्लिम फिर से वोट बैंक बन पायेगा, यह बड़ा सवाल है!