संपादकीय

रणदीप सिंह सुरजेवाला ने हैदराबाद, तेलंगाना में मीडिया को संबोधित किया

रणदीप सिंह सुरजेवाला ने हैदराबाद, तेलंगाना में मीडिया को संबोधित किया 

जनता तेल की बढ़ती कीमतों से त्रस्त, मोदी जुमलेबाजी में व्यस्त

गिरता रुपया, महंगा तेल मोदी के भाषण फेल। पेट्रोल 80 रुपया के पार, डीजल लगभग 72 रुपया के पार, और रुपया भी 72 के पार और भारत की जनता पर रोज हो रहा वार। जनता पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से त्रस्त और मोदी जी जुमलेबाजी में व्यस्त।

सबसे पहले, मोदी सरकार ने साढ़े चार साल में, पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाकर 11 लाख करोड़ रुपया कमाया, देशवासियों को कहा गया कि ये कुर्बानी आप राष्ट्रहित में दे रहे हैं। देश के हित में ये 11 लाख करोड़ रुपया का अतिरिक्त टैक्स का भार जो आम जनमानस की जेब पर डाका डाल कर और आम जनमानस का बजट बिगाड़ कर, डीजल, पेट्रोल और गैस की कीमतें बढ़ा कर डाला जा रहा है, ये किसलिए है, पर वो 11 लाख करोड़ रूपया किसकी जेब में गया? इसका जबाव आज तक मोदी जी नहीं दे पाए।

16 मई, 2014 में कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें 106.24 यूएस डॉलर प्रति बैरल थी जो अब घटकर 73 से 77 यूएस डॉलर प्रति बैरल हो गई है। इसके बावजूद पेट्रोल की कीमत थी 71 रुपया 41 पैसे दिल्ली में, बाकी शहरों में और ज्यादा थी। आज वो कीमत है 79 रुपया 51 पैसे यानी बहुत सस्ते कच्चे तेल के बावजूद पेट्रोल 8 रुपया महंगा।

सवा चार- साढ़े चार साल में मोदी सरकार ने डीजल की कीमत बढ़ाई है, 16 मई, 2014 को डीजल 55 रुपया 49 पैसे, जबकि आज वो कीमत है 71 रुपया 55 पैसे प्रति लीटर यानी 16 रुपया प्रति लीटर कीमत डीजल में बढ़ा दी।

लगभग 8 रुपए पेट्रोल में और 16 रुपया डीजल की कीमतों में साढ़े चार साल में इजाफा हुआ है। इतना भारी इजाफा मोदी कर चुके, ये पैसा कहां गया? क्या इसका जवाब देंगे?

तीसरी बात, मई, 2014 से पेट्रोल की एक्साईज में 211 प्रतिशत इजाफा मोदी सरकार ने किया जो सीधा भारत की सरकार के खजाने में जाता है। मई, 2014 में एक्साईज ड्यूटी का पैसा था 9 रुपया 20 पैसे प्रति लीटर, आज ये पैसा बढ़कर है, एक्साईज एक्साईज ड्यूटी का 19 रुपया 48 पैसे प्रति लीटर, डीजल पर और ज्यादा मार की गई। डीजल पर भारत सरकार के द्वारा लगाया जाने वाला एक्साईज ड्यूटी मई, 2014 के बाद 444 प्रतिशत मोदी सरकार बढ़ा चुकी है। 3 रुपया 46 पैसे, मई 2014 में, डीजल पर एक्साईज ड्यूटी थी, जो आज बढ़कर 15 रुपया 33 पैसे प्रति लीटर हो गई है। सेन्ट्रल एक्साईज ड्यूटी 12 बार बढ़ी दी गई, 11 लाख करोड़ रुपया, देश की जनता की गाढ़ी कमाई से, उनका बजट बिगाड कर डीजल, पेट्रोल और गैस का निकाल लिया गया। इसके लिए कौन जिम्मेवार है?

एनआरसी का असर अन्य राज्यों पर भी पड़ना तय है

एनआरसी में कुल 3,29,91,384 आवेदकों में से अंतिम मसौदे में शामिल किए जाने के लिए 2,89,83,677 लोगों को योग्य पाया गया है। इस दस्तावेज में 40.07 लाख आवेदकों को जगह नहीं मिली है। यह 'ऐतिहासिक दस्तावेज' असम का निवासी होने का प्रमाण पत्र होगा।

बता दें कि 1951 के बाद से भारत में पहली बार अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए इस तरह का कोई लिस्ट जारी किया गया है। माना जा रहा है कि इस लिस्ट के जारी होने के बाद बांगलादेश से हो रहे अवैध प्रवास को रोकने में मदद मिलेगी। इस लिस्ट में 25 मार्च 1971 से पहले से रह रहे लोगों को ही असम का नागरिक माना गया है।

लेकिन एनआरसी पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष ने इस पर कई गंभीर सवाल उठाये हैं और 40 लाख लोगों को इस लिस्ट से निकाले जाने पर इसकी कड़ी आलोचना की है। इन 40 लाख लोगों में सबसे बड़ी संख्या बंगाल के निवासियों की है। दूसरे नंबर पर बिहार, तीसरे पर चंडीगढ़, चौथे पर मणिपुर और पांचवें पर मेघालय के उन निवासियों की है जो चाय बागान में काम करने के दौरान असम में बस गए थे। और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए है जिसे सुनकर ताज्जुब होता है। असम के एनआरसी लिस्ट में बाप का नाम है तो बेटा का नहीं, पति का नाम है तो पत्नी का। इसे आप क्या कहेंगे? गंभीर भ्रष्टाचार या गंभीर अनियमितता या गहरी साजिश!

भारत एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। भारत राज्यों का संघ है। भारत में संघवाद है। जिस तरह से असम के एनआरसी लिस्ट से दूसरे राज्यों के निवासियों को निकाला गया है। यह भारतीय संघवाद पर हमला है और निश्चित तौर पर इसके गंभीर परिणाम होंगे। इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ना तय है।