क्या कोरोना वायरस को बिना लॉकडाउन के काबू किया जा सकता है?
कोरोना वायरस तुर्की में देर से आया। यहां संक्रमण का पहला मामला 19 मार्च को दर्ज किया गया था। लेकिन जल्द ही यह तुर्की के हर कोने में फैल गया। महीने भर के भीतर ही तुर्की के सभी 81 प्रांतों में कोरोना वायरस फैल चुका था।
तुर्की में दुनिया में सबसे तेज़ी से कोरोना संक्रमण फैल रहा था। हालात चीन और ब्रिटेन से भी ज़्यादा ख़राब थे। आशंकाएं थी कि बड़े पैमानों पर मौतें होंगी और तुर्की इटली को भी पीछे छोड़ देगा। उस समय इटली सबसे ज़्यादा प्रभावित देश था।
तीन महीने गुज़र गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं है, वो भी तब जब तुर्की ने पूर्ण लॉकडाउन लागू ही नहीं किया।
तुर्की में आधिकारिक तौर पर 4397 लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत की पुष्टि की गई है। दावे किए जा रहे हैं कि वास्तविक संख्या इसके दो गुना तक हो सकती है क्योंकि तुर्की में सिर्फ़ उन लोगों को ही मौत के आंकड़ों में शामिल किया गया है जिनकी टेस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव थीं।
लेकिन अगर दूसरे देशों की तुलना में देखा जाए तो सवा आठ करोड़ की आबादी वाले इस देश के लिए ये संख्या कम ही है।
विशेषज्ञ चेताते हैं कि कोरोना संक्रमण को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना या दो देशों के आंकड़ों की तुलना करना मुश्किल है, वो भी तब जब कई देशों में मौतें जारी हैं।
लेकिन यूनिवर्सिटी आफ़ केंट में वायरलॉजी के लेक्चरर डॉ. जेरेमी रॉसमैन के मुताबिक़ 'तुर्की ने बर्बादी को टाल दिया है।'
उन्होंने बीबीसी से कहा, ''तुर्की उन देशों में शामिल है जिसने बहुत जल्द प्रतिक्रिया दी। ख़ासकर टेस्ट करने, पहचान करने, अलग करने और आवागमन को रोकने के मामले में। तुर्की उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो वायरस की गति को प्रभावी तरीक़े से कम करने में कामयाब रहे हैं।''
जब वायरस की रफ़्तार बढ़ रही थी, अधिकारियों ने रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। कॉफ़ी हाउस जाने पर रोक लग गई, शापिंग बंद हो गई, मस्जिदों में सामूहिक नमाज़ रोक दी गई।
पैंसठ साल से ऊपर और बीस साल से कम उम्र के लोगों को पूरी तरह लॉकडाउन में बंद कर दिया गया। सप्ताहांत में कर्फ्यू लगाए गए और मुख्य शहरों को सील कर दिया गया।
इस्तांबुल तुर्की में महामारी का केंद्र था। इस शहर ने अपनी रफ़्तार खो दी, जैसे कोई दिल धड़कना बंद कर दे।
अब प्रतिबंधों में धीरे-धीरे ढील दी जा रही है, लेकिन डॉ. मेले नूर असलान अभी भी चौकन्नी रहती हैं। वो फ़तीह ज़िले की स्वास्थ्य सेवाओं की निदेशक हैं। ये इस्तांबुल के केंद्र में एक भीड़भाड़ वाला इलाक़ा है। ऊर्जावान और बातूनी डॉ. असलान कांटेक्ट ट्रेसिंग अभियान का नेतृत्व कर रही हैं। पूरे तुर्की में कांटेक्ट ट्रेसिंग अभियान की छह हज़ार टीमें हैं।
वो बताती हैं, ऐसा लगता है जैसे हम युद्धक्षेत्र में हों। मेरी टीम के लोग घर जाना ही भूल जाते हैं, आठ घंटे के बाद भी वो काम करते रहते हैं। वो घर जाने की परवाह नहीं करते क्योंकि वो जानते हैं कि वो अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।
डॉ. मेले नूर असलान कहती हैं कि उन्होंने मार्च 11, यानी पहले दिन से ही वायरस को ट्रैक करना शुरू कर दिया था, इसमें ख़सरे की बीमारी को ट्रैक करने का उनका अनुभव काम आया।
वो कहती हैं, ''हमारी योजना तैयार थी। हमने सिर्फ़ अलमारी से अपनी फ़ाइलें निकालीं और हम काम पर लग गए।''
फ़तीह की तंग गलियों में हम दो डॉक्टरों के साथ हो लिए। पीपीई किटें पहने ये डॉक्टर एक एप का इस्तेमाल कर रहे थे। वो एक अपार्टमेंट में एक फ्लैट में गए जहां दो युवतियां क्वारंटीन में थीं। उनका दोस्त कोविड पॉज़िटिव है।
अपार्टमेंट के गलियारे में ही दोनों महिलाओं के कोविड के लिए परीक्षण किए गए, उन्हें रिपोर्ट चौबीस घंटों के भीतर मिल जाएगी। एक दिन पहले उन्हें हल्के लक्षण दिखने शुरु हुए हैं। 29 वर्षीया मज़ली देमीरअल्प शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें तुरंत रेस्पांस मिला है।
वो कहती हैं, ''हम विदेशों की ख़बरें सुनते हैं। शुरू में जब हमें वायरस के बारे में पता चला तो हम बेहद डर गए थे लेकिन जितना हमने सोचा था तुर्की ने उससे तेज़ काम किया। यूरोप या अमरीका के मुक़ाबले बहुत तेज़ काम किया।''
तुर्की में विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी प्रमुख डॉ. इरशाद शेख कहते हैं कि तुर्की के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर दुनिया के लिए कई सबक़ हैं।
उन्होंने बीबीसी से कहा, ''शुरुआत में हम चिंतित थे। रोज़ाना साढ़े तीन हज़ार तक नए मामले आ रहे थे। लेकिन टेस्टिंग ने बहुत काम किया। और नतीजों के लिए लोगों को पांच-छह दिनों का इंतेज़ार नहीं करना पड़ा।''
उन्होंने तुर्की की कामयाबी का श्रेय कांटेक्ट ट्रेसिंग, क्वारंटीन और तुर्की की अलग-थलग करने की नीति को भी दिया।
तुर्की में मरीज़ों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भी दी गई। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इसकी जमकर तारीफ़ की थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय शोध ने इस दवा को खारिज कर दिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के इलाज के तौर पर इस दवा का ट्रायल रोक दिया है। मेडिकल जर्नल लेंसेट में प्रकाशित एक शोध पत्र में दावा किया गया है कि इस दवा से कोविड-19 के मरीज़ों में कार्डिएक अरेस्ट का ख़तरा बढ़ जाता है और इससे फ़ायदे से ज़्यादा नुकसान हो सकता है।
हमें उन अस्पतालों में जाने की अनुमति दी गई जहां हज़ारों लोगों को दवा के रूप में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई है। दो साल पहले बना डॉ. सेहित इल्हान वारांक अस्पताल कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई का केंद्र बना हुआ है।
यहां की चीफ़ डॉक्टर नुरेत्तिन यीयीत कहते हैं कि शुरू में ही हाड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन इस्तेमाल करना अहम है। डॉ यीयीत के बनाए चित्र इस नए चमकदार अस्पताल की दीवारों पर लगे हैं।
वो कहती हैं, ''दूसरे देशों ने इस दवा का इस्तेमाल देरी से शुरू किया है, ख़ासकर अमरीका ने, हम इसका इस्तेमाल सिर्फ़ शुरुआती दिनों में करते हैं, हमें इस दवा को लेकर कोई झिझक नहीं है। हमें लगता है कि ये प्रभावशाली है क्योंकि हमें नतीजे मिल रहे हैं।''
अस्पताल का दौरा कराते हुए डॉ, यीयीत कहते हैं कि तुर्की ने वायरस से आगे रहने की कोशिश की है। हमने शुरू में ही इलाज किया है और आक्रामक रवैया अपनाया है।
यहां डॉक्टर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के अलावा दूसरी दवाओं, प्लाज़्मा और बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं।
डॉ. यीयीत को गर्व है कि उनके अस्पताल में कोविड से मरने वालों की दर एक प्रतिशत से भी कम रही है। यहां कि इंटेसिव केयर यूनिट यानी आईसीयू में बिस्तर खाली हैं। वो मरीज़ों को यहां से बाहर और वेंटिलेटर के बिना ही रखने की कोशिश करते हैं।
हम चालीस साल के हाकिम सुकूक से मिले जो इलाज कराने के बाद अब अपने घर लौट रहे हैं। वो डॉक्टरों के शुक्रगुज़ार हैं।
वो कहते हैं, ''सभी ने मेरा बहुत ध्यान रखा है। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी मां की गोद में हूं।''
तुर्की मेडिकल एसोसिएशन ने अभी महामारी पर सरकार के रेस्पांस को क्लीन चिट नहीं दी है। एसोसिएशन कहती है कि सरकार ने जिस तरह से महामारी को लेकर क़दम उठाए उनमें कई कमियां थीं।
इनमें सीमाओं को खुला छोड़ देना भी शामिल है।
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन तुर्की को कुछ श्रेय दे रहा है। डॉ शेख कहते हैं, ''ये महामारी अपने शुरुआती दिनों में है। हमें लगता है कि और भी बहुत से लोग गंभीर रूप से बीमार होंगे। कुछ तो है जो ठीक हो रहा है।''
कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में तुर्की के पक्ष में भी कई चीज़ें हैं। जैसे, युवा आबादी और आईसीयू के बिस्तरों की अधिक संख्या। लेकिन अभी भी रोज़ाना लगभग एक हज़ार नए मामले सामने आ ही रहे हैं।
तुर्की को कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में कामयाबी की कहानी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन अभी भी सावधानी बरतने की ज़रूरत है क्योंकि अभी ये कहानी ख़त्म नहीं हुई है।