भारत में गंगा और यमुना नदियों पर चीन-अफ्रीका की मछलियों का कब्जा होता जा रहा है। कभी तालाबों में पालने के लिए लाई गई विदेशी मछलियों की संख्या इन नदियों में इस कदर बढ़ती जा रही है कि स्थानीय प्रजाति की मछलियों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
पश्चिम बंगाल के बैरकपुर स्थित सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि विदेशी प्रजाति की अधिकता से नदी की जैव विविधता खतरे में पड़ गई है। भारत की सबसे प्रमुख नदियों गंगा-यमुना में स्थानीय प्रजाति की मछलियों का जीवन संकट में पड़ गया है।
हाल के दिनों में इन नदियों के पानी में विदेशी प्रजाति की मछलियों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। दरअसल, भारत के अलग-अलग हिस्सों में ज्यादा मांस वाली मछलियों की विदेशी प्रजातियों के बीज तालाबों में डाले गए थे, लेकिन बाढ़ और बरसात की वजह से कई मछलियां नदियों के पानी में चली गईं। एक बार नदी के पानी में आने के बाद उनकी संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संरक्षण शिक्षण संस्थान में मस्त्य विशेषज्ञ इश्तियाक अहमद ने कहा कि अफ्रीकन कैट फिश जैसी मछली पहले बांग्लादेश में पाली गई थी। लेकिन, धीरे-धीरे गंगा सागर से होते हुए यह पटना, इलाहाबाद, कानपुर और हरिद्वार तक के पानी में पहुंच गई है। इलाहाबाद में यमुना के संगम के साथ ही यमुना के पानी में भी इनकी पहुंच हो गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि मूलत: बैंकाक से आई तिलपिया मछली की रीढ़ की हड्डी काफी मजबूत होती है। इसे खाने वाले जीवों के जीवन पर भी संकट आ जाता है। माना जाता है कि चंबल नदी में स्थित घड़ियाल सेंचुरी में तिलपिया मछली खाकर कई घड़ियालों की मौत हो चुकी है।
नदी के पारिस्थितिक तंत्र में स्थानीय प्रजाति की मछलियों की महत्वपूर्व भूमिका होती है। ये नदी की सफाई का काम करती हैं। जबकि, विदेशी प्रजातियां स्थानीय मछलियों की संख्या को समाप्त कर रही हैं। इससे नदी की सेहत भी खतरे में पड़ती है।
पूर्व एडीजी इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च और सेंट्रल इनलैंड फिशरीज इंस्टिट्यूट के सलाहकार डॉ. वी आर चित्रांशी ने कहा, ''स्थानीय प्रजाति की मछलियां भारत की नदियों की सेहत का ज्यादा अच्छी तरह से ख्याल रखती रही हैं। विदेशी मछलियों की बहुतायत से इनका अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है जो चिंता का विषय है।''