संपादकीय

सीरिया का भविष्य क्या तय करेगा?

सीरिया का भविष्य क्या तय करेगा?

शुक्रवार, 31 जनवरी, 2025
अहमद अल शारा सीरिया के नए राष्ट्रपति हैं और हमें इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि उनकी सरकार कैसी हो सकती है। उन्होंने वादा किया है कि एक अस्थायी विधान परिषद फिलहाल कानून पारित करेगी - और इसमें सीरिया के विभिन्न समूह और गुट शामिल होंगे। अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव बना रहा है कि वे अपने वादे पूरे करें। लेकिन क्या राष्ट्रपति शारा अपने देश को एकजुट कर पाएंगे? और क्या उनकी सरकार सीरियाई लोगों के जीवन को बेहतर बना पाएगी - जो एक दशक से भी ज़्यादा समय से युद्ध से त्रस्त हैं?

प्रस्तुतकर्ता: सिरिल वेनियर
अतिथि
डैनी अल बाज - सीरियाई फोरम फॉर एडवोकेसी एंड पब्लिक रिलेशंस के उपाध्यक्ष। उन्होंने 2000 के दशक के अंत में सीरिया के उप विदेश मंत्री के मंत्रिमंडल का भी नेतृत्व किया।
जोशुआ लैंडिस - ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय में मध्य पूर्व अध्ययन केंद्र के निदेशक।
मोहम्मद अल अब्दुल्ला - सीरिया न्याय और जवाबदेही केंद्र के कार्यकारी निदेशक।

संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतंत्र मौजूद नहीं है: क्रिस हेजेस

संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतंत्र मौजूद नहीं है: क्रिस हेजेस

शुक्रवार, 31 जनवरी, 2025
डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने के बाद, कई लोग उदार लोकतंत्र के संभावित पतन के बारे में चिंता जता रहे हैं।

तो फिर ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल का संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अगले चार वर्षों में क्या मतलब होगा? और राष्ट्रपति की विदेश नीति का मध्य पूर्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

इस सप्ताह अपफ्रंट पर, मार्क लैमोंट हिल पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार और पूर्व युद्ध संवाददाता क्रिस हेजेस के साथ इन मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

हमास के आत्मविश्वास के नाटकीय प्रदर्शन में जोखिम भी शामिल हैं: मारवान बिशारा

हमास के आत्मविश्वास के नाटकीय प्रदर्शन में जोखिम भी शामिल हैं: मारवान बिशारा

शुक्रवार, 31 जनवरी, 2025
अल जजीरा के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मारवान बिशारा ने चल रहे संघर्ष के इर्द-गिर्द तीव्र भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आयामों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने दोनों पक्षों के बंदियों की रिहाई के बीच लोगों की भावनाओं - खुशी और राहत से लेकर गुस्सा और निराशा तक - के बीच स्पष्ट अंतर पर जोर दिया।

बिशारा यह भी सुझाव देते हैं कि भावनात्मक उफान से परे, एक सुनियोजित रणनीतिक तत्व भी काम कर रहा है, जिसमें इसराइल और हमास दोनों मनोवैज्ञानिक युद्ध में शामिल हैं। हमास लचीलापन और अवज्ञा की छवि पेश करना चाहता है, जबकि इसराइल व्यापक निहितार्थों के बावजूद अपने कार्यों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

उन्होंने आगे कहा कि शक्ति के ऐसे प्रदर्शन से तनाव बढ़ने का जोखिम है, जो संभावित रूप से आगे की प्रतिक्रियाओं को भड़का सकता है। अंततः, बिशारा हमास के उल्लेखनीय धीरज पर विचार करते हैं, क्योंकि यह अथक इसराइली सैन्य दबाव के बावजूद काम करना जारी रखता है।

सीरिया के अहमद अल-शरा को संक्रमणकालीन अवधि के लिए राष्ट्रपति नियुक्त किया गया

सीरिया के अहमद अल-शरा को संक्रमणकालीन अवधि के लिए राष्ट्रपति नियुक्त किया गया

गुरुवार, 30 जनवरी, 2025
सीरिया के वास्तविक नेता अहमद अल-शरा को संक्रमणकालीन अवधि के लिए राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है, सीरियाई राज्य समाचार एजेंसी (SANA) ने रिपोर्ट की है। शरा को संक्रमणकालीन चरण के लिए एक अस्थायी विधान परिषद बनाने के लिए भी अधिकृत किया गया था, जो एक नया संविधान अपनाए जाने तक अपना कार्य करेगी, एसएएनए ने बुधवार को कमांडर हसन अब्देल गनी का हवाला देते हुए रिपोर्ट की।

अल जज़ीरा के ओसामा बिन जावेद दमिश्क से लाइव जुड़ते हैं।

ट्रम्प का शपथ ग्रहण: ट्रम्प के 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद मुख्य बातें

ट्रम्प का शपथ ग्रहण: ट्रम्प के 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद मुख्य बातें

मंगलवार, 21 जनवरी, 2025

डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है, वे अपनी हार के चार साल बाद व्हाइट हाउस में वापस लौटे हैं।

सोमवार, 20 जनवरी, 2025 को अपने उद्घाटन भाषण में 78 वर्षीय ट्रम्प ने आक्रामक रुख अपनाया, कैपिटल रोटुंडा में अपने मंच का उपयोग निवर्तमान डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बिडेन की आलोचना करने के लिए किया। ट्रम्प ने "सामान्य ज्ञान की क्रांति" की कसम खाई और बिडेन के राष्ट्रपति पद की निंदा की।

उन्होंने बिडेन की प्रमुख नीतियों को उलटने के लिए कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए और 2021 में 6 जनवरी को कैपिटल दंगे के लिए आरोपित लगभग 1,500 व्यक्तियों को क्षमा कर दिया।

अल जज़ीरा के माइक हन्ना वाशिंगटन, डीसी से रिपोर्ट करते हैं।

ट्रम्प की पनामा नहर की धमकी संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन करेगी: विश्लेषण

ट्रम्प की पनामा नहर की धमकी संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन करेगी: विश्लेषण

मंगलवार, 21 जनवरी, 2025

अल जज़ीरा के कूटनीतिक संपादक जेम्स बेज़ कहते हैं:
ट्रम्प संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और उनका कहना है कि वे पनामा नहर को वापस लेने जा रहे हैं। अब, अगर उन्होंने ऐसा किया, तो यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन होगा, यह वह शासी दस्तावेज़ है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को आकार दिया है। हालाँकि यह सिर्फ़ इतिहास की बात नहीं है, बल्कि यह एक मिसाल कायम करता है।

स्वर्णिम युग: डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

स्वर्णिम युग: डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली

मंगलवार, 21 जनवरी, 2025
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है, जो व्हाइट हाउस में उनकी ऐतिहासिक वापसी है।

उन्होंने पद की शपथ ली है, एक नए प्रशासन की शुरुआत की है और जो बिडेन के राष्ट्रपति पद का अंत हुआ है।

उनका शपथ ग्रहण कैपिटल रोटुंडा में हुआ - 40 वर्षों में पहली बार अत्यधिक ठंड के कारण इसे अंदर ले जाया गया।

ट्रम्प पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विदेशी नेताओं को आमंत्रित किया है।

वे रिपब्लिकन नियंत्रण वाले सदन और सीनेट द्वारा समर्थित ओवल ऑफिस में लौट रहे हैं।

और उन्होंने बिडेन की नीतियों को पूर्ववत करने और अपने वादों को आगे बढ़ाने के लिए पहले दिन ही व्यापक कार्यकारी आदेश जारी करने का वादा किया है।

जी-20: जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों में गंभीर असहमति

जलवायु परिवर्तन के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलनों के उलट जी-20 की बैठकों में इस समस्या को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर आमतौर पर विकसित और विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर असहमतियां नहीं दिखती हैं।

लेकिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में इसे लेकर तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। जी-20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने, रिन्युबल एनर्जी के लक्ष्यों को बढ़ाने और ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी जैसे लक्ष्यों को हासिल कर कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है।

जबकि जी-20 के देश दुनिया के 75 ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन में रूस, चीन, सऊदी अरब और भारत ने 2030 तक रिन्युबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ाने के विकसित देशों के लक्ष्य का विरोध किया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 6 सितंबर 2023 को शेरपा स्तर की बैठक में ये देश 2035 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 60 फीसदी घटाने के विकसित देशों के लक्ष्य से असहमत दिखे।

चीन ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि जुलाई 2023 में हुई जी-20 के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उसने जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बनने वाली सहमति में बाधा डाली थी।

चीन ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन की समस्या को खत्म करने के लिए अपनी क्षमता, जिम्मेदारियों और कर्तव्य के मुताबिक काम करने की अपील की थी।

चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का कहना है कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

जबकि विकासशील देशों का कहना है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को साथ आए बगैर ये काम मुश्किल है। जी-20 में दोनों ओर के देश अड़े हुए हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन के वार्षिक सम्मेलन सीओपी 28 में क्या होने वाला है।

क्वॉड समूह की बैठक को लेकर चीन ने क्या कहा?

चीन ने कहा है कि 'देशों के बीच आदान-प्रदान और परस्पर सहयोग आपसी समझ और विश्वास को बेहतर करने के लिए होना चाहिए, ना कि किसी तीसरे पक्ष और उसके हितों को नुकसान पहुँचाने के लिए'।

शुक्रवार, 12 मार्च, 2021 को भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच बने 'क्वॉड समूह' की पहले बैठक से कुछ घंटे पहले चीन की ओर से यह बयान आया।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान ने क्वॉड-बैठक से संबंधित एक प्रश्न के जवाब में कहा, ''हमें उम्मीद है कि ये देश खुलेपन और समावेशी नज़रिये का ध्यान रखेंगे, ताकि सबका भला हो। इसके अलावा ये किसी 'एक्सक्लूसिव ब्लॉक' को बनाने से बचेंगे और उन्हीं कामों को करेंगे जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के अनुकूल हैं।''

क्वॉड समूह की पहली बैठक को चीन में बहुत बारीकी से कवर किया गया।  चीन के सरकारी मीडिया ने इस पर कई रिपोर्ट लिखी हैं जिनमें व्यापक रूप से इसे 'अमेरिका के नेतृत्व वाला एक प्रयास बताया गया है, ताकि मिलकर चीन को रोका जा सके'।

वहीं, कुछ चीनी विशेषज्ञों ने इस बैठक पर कम ऊर्जा ख़र्च करने की सलाह दी है और कहा है कि 'क्वॉड की बैठक को ज़्यादा गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है'।

पीपल्स लिब्रेशन आर्मी के पूर्व वरिष्ठ कर्नल चाऊ बो, जो चीन में रणनीतिक मामलों के नामी टिप्पणीकार भी हैं, उन्होंने सरकारी प्रसारक 'चाइना ग्लोबल टीवी नेटवर्क' से बातचीत में कहा कि ''चीन को इसे बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।''

उन्होंने कहा, ''मैं आपको एक वाक्य में क्वॉड पर अपनी टिप्पणी दे सकता हूँ। इन चार देशों में से कोई भी अन्य तीन देशों के हितों के लिए अपने स्वयं के हितों (चीन के संबंध में) का बलिदान नहीं करना चाहेगा।''

उन्होंने चारों देशों के चीन के साथ मौजूदा व्यापारिक संबंधों का हवाला देते हुए यह बात कही।

उन्होंने कहा, ''अगर आप क्वॉड में शामिल चारों देशों से पूछते हैं कि 'क्या आप चीन के ख़िलाफ़ हैं' या 'एक चीन-विरोधी क्लब हैं', तो वो साफ़ इनकार करते हैं। ऐसे में मेरा निष्कर्ष यह है कि क्वॉड निश्चित रूप से चीन की वजह से स्थापित किया गया है, पर वो ये कह नहीं सकते कि यह चीन के ख़िलाफ़ है। इसे अगर एक सैन्य गठबंधन के रूप में देखा जाये, तो भारत साफ़तौर पर इससे पूरी तरह इनकार करेगा।''

''क्वॉड अभी विकसित हो रहा है और अपना आकार ले रहा है। मगर फ़िलहाल यह तय नहीं है कि ये सैन्य या आर्थिक, किस रास्ते पर जायेगा।''

बहरहाल, 18 मार्च 2021 को चीन और अमेरिका के बीच एक उच्च-स्तरीय बैठक होने वाली है जिसमें दोनों सरकारों के विदेश मंत्रालयों के प्रतिनिधि आपस में बात करेंगे। चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे एक 'उच्च-स्तरीय रणनीतिक वार्ता' कहा है।

चीन ने कहा है कि वो बाइडन प्रशासन के साथ नये सिरे से बातचीत करना चाहता है, लेकिन पिछले चार वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों का दोष उसने अमेरिका पर ही डाला है।

वहीं, बाइडन प्रशासन ने अब तक के अपने बयानों में यह संकेत दिये हैं कि वो चीन के संबंध में पिछले प्रशासन की कुछ नीतियों को जारी रख सकता है।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान के अनुसार, अमेरिका-चीन रिश्तों पर चीन की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है।

उन्होंने कहा, ''हम चाहते हैं कि अमेरिका, चीन के साथ अपने संबंधों को उद्देश्यपूर्ण और तर्कसंगत तरीक़े से देखे। शीत-युद्ध की स्थिति को दरकिनार करे और चीन की संप्रभुता, सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों का सम्मान करना सीखे। साथ ही वो चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना बंद कर दे।''

किसी अन्य धर्म का जीवन साथी चुनने की आज़ादी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला क्या है?

एक अहम फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2020 को दिए आदेश में कहा है कि अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका मज़हब कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार का स्वाभाविक तत्व है।

आदेश को आए 15 दिन हो गए हैं लेकिन इसकी प्रति इसी हफ़्ते उपलब्ध हुई है जिसके बाद इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने यह अहम फ़ैसला सुनाया है।

प्रियांशी उर्फ़ समरीन और अन्य, बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य में दिए गए आदेश और इसके बाद आए नूर जहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में दिए गए आदेशों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ''इनमें से किसी भी आदेश में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने की आज़ादी के अधिकार को नहीं देखा गया है।"

कोर्ट ने आदेश दिया, ''नूर जहां और प्रियांशी के मामलों में दिए गए फ़ैसलों को हम अच्छा क़ानून नहीं मानते हैं।''

आइए नज़र डालते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या अहम बातें कहीं हैं ...

- कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ''हम प्रियंका खरवार और सलामत को हिंदू और मुस्लिम के तौर पर नहीं देखते हैं। इसके बजाय हम इन्हें दो वयस्क लोगों के रूप में देखते हैं जो अपनी इच्छा और चुनाव से शांतिपूर्वक और ख़ुशी से एक साथ रह रहे हैं।''
- "अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार में निहित है। निजी संबंधों में दख़ल दो लोगों के चुनाव करने की आज़ादी में गंभीर अतिक्रमण होगा।''
- कोर्ट ने कहा है, "वयस्क हो चुके शख़्स का अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का फ़ैसला किसी व्यक्ति के अधिकार से जुड़ा है और जब इस अधिकार का उल्लंघन होता है तो यह उस शख़्स के जीवन जीने और निजी आज़ादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है क्योंकि इसमें चुनाव की आज़ादी, साथी चुनने और सम्मान के साथ जीने के संविधान के आर्टिकल-21 के सिद्धांत शामिल हैं।''
- कोर्ट ने अपने फ़ैसले में शफ़ीन जहां बनाम अशोकन केएम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार एक वयस्क हो चुके व्यक्ति की आज़ादी का सम्मान किया है।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया। इसके अलावा कोर्ट ने नंद कुमार बनाम केरल सरकार में आए फ़ैसले का भी हवाला दिया और कहा कि इन फ़ैसलों में साफ़ है कि वयस्क हो चुके शख़्स के पास अपना चुनाव करने की आज़ादी है।
- कोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर के एस पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया और कहा कि साथी चुनने के अधिकार का जाति, पंथ या मज़हब से कोई लेना-देना नहीं है और यह आर्टिकल-21 के अभिन्न हिस्से जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता में निहित है।
- नूरजहां और ऐसे ही दूसरे मामलों में आए फ़ैसलों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि वयस्क हो चुके शख़्स की मर्ज़ी को अनदेखा करना न केवल चुनाव की आज़ादी के विपरीत होगा बल्कि यह विविधता में एकता के सिद्धांत के लिए भी ख़तरा होगा।
- प्रियांशी और नूरजहां मामलों में आए फ़ैसलों पर कोर्ट ने कहा कि इनमें से किसी भी फ़ैसले में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने या उन्हें किसके साथ रहना है। इसका चुनाव करने की आज़ादी के जीवन और आज़ादी से जुड़े मसले को ध्यान में नहीं रखा गया है। कोर्ट ने आगे कहा है कि नूर जहां और प्रियांशी मामलों में आए फ़ैसले क़ानून के लिहाज़ से अच्छे नहीं हैं।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने अपने इसी आदेश में टिप्पणी की है, "हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर क़ानून दो समलैंगिक लोगों को शांतिपूर्वक एक साथ रहने की इजाज़त देता है तो न तो किसी शख़्स न ही किसी परिवार या यहां तक कि राज्य को भी दो वयस्क लोगों को अपनी इच्छा से एक साथ रहने पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।''

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला और पृष्ठभूमि

इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ''इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया जजमेंट में जो एफ़आईआर ख़ारिज की गई है वह इस बात पर आधारित है कि क्या दो वयस्क लोग आर्टिकल-21 के तहत एक साथ रह सकते हैं या नहीं?"

त्रिपाठी कहते हैं कि ''जहां तक शादी की बात है तो शादी का धर्म से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध इच्छा से है। और इच्छा का संबंध आर्टिकल-21 की लिबर्टी से है। ऐसे में पहले के फ़ैसलों के मुक़ाबले इस फ़ैसले में ज़्यादा स्पष्टता है।''

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला बहुत अच्छा है और इसमें निजता की स्वतंत्रता और इच्छा की स्वतंत्रता को आधार बनाया गया है।

इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि सलामत अंसारी और तीन अन्य की तरफ़ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल की गई थी। सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया ने दो अन्य लोगों के साथ हाईकोर्ट में उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर को ख़ारिज करने की माँग की थी।

इस मामले में प्रियंका धर्म परिवर्तन कर आलिया बन गई थीं और और उन्होंने सलामत अंसारी से निकाह कर लिया था। इसके विरोध में प्रियंका के पिता ने एफ़आईआर दर्ज करा दी थी। इस एफ़आईआर में 363, 366, 352 समेत पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 भी लगाई गई थीं। इसमें सलामत, उनके भाई और उनकी मां को आरोपी बनाया गया था।

कोर्ट ने प्रियंका उर्फ़ आलिया की जन्मतिथि देखी और पाया गया कि वो वयस्क हैं। आनंद कहते हैं कि ऐसे में पॉक्सो के सारे एक्ट ख़ारिज हो गए। साथ ही ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली धाराओं को कोर्ट ने माना कि इन्हें फँसाने के लिए लगाया गया है।

सलामत अंसारी की ओर से हाईकोर्ट में तर्क दिया गया था कि सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया वयस्क हैं और शादी करने के लिए योग्य हैं। इस पक्ष ने कहा कि प्रियंका के अपनी हिंदू पहचान को छोड़ने और इस्लाम अपनाने के बाद इन दोनों ने 19.8.2019 को मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह कर लिया था।

दोनों लोग बीते एक साल से बतौर पति-पत्नी साथ रह रहे हैं। दोनों ने कहा कि प्रियंका के पिता ने ग़लत मक़सद से उनके विवाह को ख़त्म करने के लिए यह एफ़आईआर दर्ज कराई है और चूंकि इन दोनों ने कोई अपराध नहीं किया है, ऐसे में यह एफ़आईआर ख़ारिज की जानी चाहिए।

दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया कि शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन निषिद्ध है और इस तरह से हुई शादी की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में कोर्ट को इन लोगों को किसी तरह की राहत नहीं देनी चाहिए।

आनंद कहते हैं कि सरकार ने पिछले दो फ़ैसलों के आधार पर सलामत को राहत न देने की माँग की थी। आनंद कहते हैं, ''कोर्ट ने कहा कि जब इन दो वयस्क लोगों ने साथ रहने का तय कर लिया तो हमें आर्टिकल-21 का आदर करना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने इस एफ़आईआर को ख़ारिज कर दिया।''

नूरजहां और प्रियांशी के मामले

सितंबर 2020 में प्रियांशी के मामले में सिंगल बेंच ने 2014 में नूरजहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का ज़िक्र किया था जिसमें कहा गया था कि महज़ शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है।

नूरजहां बेगम मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादीशुदा जोड़े के तौर पर सुरक्षा की दरकार के लिए दायर की गई याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था। इस मामले में भी लड़की ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया था और इसके बाद निकाह कर लिया था।

इसी तरह के चार अन्य मामले भी कोर्ट के सामने आए थे।

इन मामलों में महिलाएं अपने कथित धर्म परिवर्तन को प्रमाणित नहीं कर पाई थीं क्योंकि वे इस्लाम की समझ को साबित करने में नाकाम रही थीं।  ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया था कि ये कथित शादी अवैध हैं क्योंकि इसे एक ऐसे धर्म परिवर्तन के बाद किया गया था जिसे क़ानून के मुताबिक़ जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।

आनंद कहते हैं, ''लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने इस फ़ैसले में कहा है कि जब एक बार यह साबित हो गया था कि शादी करने वाले दोनों लोग वयस्क हैं तो कोर्ट को इनके मज़हब पर जाना ही नहीं चाहिए था।''

हालिया फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में ऐसे ही पिछले मामलों में आए फ़ैसलों का ज़िक्र किया है।

योगी सरकार का जबरन धर्मांतरण रोकने का अध्यादेश

हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने के बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 24 नवंबर 2020 को 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' को मंज़ूरी दे दी है।

इस क़ानून के अनुसार 'जबरन धर्मांतरण' उत्तर प्रदेश में दंडनीय होगा।  इसमें एक साल से 10 साल तक जेल हो सकती है और 15 हज़ार से 50 हज़ार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

योगी सरकार के इस अध्यादेश के अनुसार 'अवैध धर्मांतरण' अगर किसी नाबालिग़ या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के साथ होता है तो तीन से 10 साल की क़ैद और 25 हज़ार रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता विनोद मिश्रा कहते हैं, "सरकार ने इस क़ानून के ज़रिए जबरन धर्मांतरण या दूसरी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश की है। सरकार कथित 'लव जिहाद' पर लगाम लगाना चाहती है।"

क्या टकराव पैदा होगा?

क्या उत्तर प्रदेश सरकार के लाए गए 'अवैध धर्मांतरण' रोकने के क़ानून और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के बीच आने वाले दिनों में टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है?

इस मसले पर हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "अभी ये कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि सरकार ने जो अध्यादेश पास किया है जो अभी न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं बना है। जब तक इस पर केस फ़ाइल नहीं होता तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि ये दोनों फ़ैसले एक-दूसरे से टकरा सकते हैं या नहीं।"

त्रिपाठी कहते हैं, "दिलचस्प बात यह है कि जिस कथित लव जिहाद को लेकर माहौल बनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अध्यादेश को पेश किया है वह ज्यूडिशियल रिव्यू में टिक नहीं पाएगा. लेकिन, जब इसे चैलेंज किया जाएगा तब स्थिति साफ़ होगी।"

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि योगी सरकार का लाया गया क़ानून दरअसल ज़बरदस्ती होने वाले धर्मांतरण पर है और इसे 'लव जिहाद' का क़ानून कहना सही नहीं होगा।

वह कहते हैं, "उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश ज़बरदस्ती होने वाले धर्म-परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। अब अगर कभी इस क़ानून का दुरुपयोग होता है तो इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फ़ैसला एक दीवार बनकर काम करेगा।"

वह कहते हैं कि इस तरह के मामलों में एक पक्ष कहेगा कि यह जबरन धर्मांतरण है जबकि दूसरा पक्ष इसे सहमति से बताएगा। ऐसे में योगी सरकार के क़ानून के ग़लत इस्तेमाल पर हाईकोर्ट का फ़ैसला ढाल का काम करेगा।

आने वाले वक़्त में यह साफ़ हो सकेगा कि योगी सरकार के लाए गए अध्यादेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला कैसे प्रभावित करेगा?