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संसद का शीतकालीन सत्र: आरक्षण बिल पर लोकसभा में शशि थरूर का भाषण

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संसद का शीतकालीन सत्र: आरक्षण बिल पर लोकसभा में दीपेंद्र सिंह हुड्डा का भाषण

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संसद का शीतकालीन सत्र: आरक्षण विधेयक पर लोकसभा में केवी थॉमस का भाषण

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नागरिकता बिल पर संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे का भाषण

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ट्रांसगेंडर व्यक्तियों (अधिकारों के संरक्षण) विधेयक, 2016 पर शशि थरूर

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कंपनी निवेशकों ने मार्क जुकरबर्ग से इस्तीफा मांगा

फेसबुक के चेयरमैन मार्क जुकरबर्ग पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया है। फेसबुक द्वारा अपनी आलोचना को दबाने के लिए जनसंचार कंपनी नियुक्त करने की खबर के बाद निवेशकों ने जुकरबर्ग से इस्तीफा देने को कहा है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित कर खुलासा किया था कि फेसबुक आलोचनाओं को दबाने और लोगों के मन में कंपनी के खिलाफ गुस्से को दूर करने के लिए अरबपति कार्यकर्ता जॉर्ज सोरोस की सेवाएं लेती है।

इसके अलावा आलोचना को प्रतिद्वंदी कंपनियों के तरफ मोड़ने का काम भी करती है।

वहीं टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कैंब्रिज एनालिटिका के मामले में आलोचना को दबाने के लिए उसने जनसंचार कंपनी डिफाइनर्स पब्लिक अफेयर्स की सहायता ली है। फेसबुक में 85 लाख पौंड की हिस्सेदारी रखने वाले ट्रिलियम एसेट मैनेजमेंट के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जोनास करॉन ने जुकरबर्ग से इस्तीफा मांगा है।

अखबार ने उनके हवाले से लिखा है, फेसबुक अजीब तरह का व्यवहार कर रही है। यह सही नहीं है, यह एक कंपनी है और कंपनियों को चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पदों को अलग रखने जरूरत होती है।

समीक्षा : 1971 और अन्य कहानियां

समीक्षा : 1971 और अन्य कहानियां
लेखक: राशिद आसकारी
समीक्षक: डा. मोहम्मद अलीम

कहानियां सदैव ही मानव मन को उद्वेलित एवं संचालित करती रही हैं। कुछ कहानियां तो ऐसी होती हैं जिसका प्रभाव काफी देर तक मन और मस्तिष्क पर बना रहता है और वह जिंदगी की दशा एवं दिशा को बदलने की योग्यता रखती हैं। मगर कुछ कहानियां ऐसी भी होती हैं जो आपको आक्रोशित एवं परेशान करती हैं। कई बार आप सोचते हैं कि लेखक के लिखने का तात्पर्य ही क्या था? और अगर यह न लिखी जातीं तो इससे क्या अंतर पड़ जाता। कुछ कहानियां तो ऐसी होती हैं जिसे पढ़कर यह लगता है कि व्यर्थ ही समय बर्बाद किया।

लेकिन राशिद आकसारी जो कि बंग्लादेश के एक प्रसिद्ध लेखक एवं विद्वान हैं, उनकी कहानियां पढ़कर एक सुखद अनुभूति का एहसास हुआ। कम से कम यह तो नहीं लगा कि मैंने बेकार ही अपना अमूल्य समय इन कहानियों को पढ़ने में लगाया। कारण स्पष्ट है। यह कहानियां शुरू से अंत तक बांधे रखने की अपने अंदर ग़ज़ब की सलाहियत रखती हैं। सच पूछिए तो पहली कहानी पढ़कर ही मुझे एक ताज़ा हवा के झोंके का एहसास हुआ जो लगा कि एक ऐसी जगह से आ रही है जिसके वातावरण और परिवेश से भले ही मैं ज्यादा परिचित नहीं हूं, मगर उसकी ताज़गी आपको काफी देर तक ताज़ादम रखने और सोचने पर मजबूर करने की सलाहियत रखती हैं। मैं बिना लाग लपेट के साथ कह सकता हूं कि बहुत दिनों बाद मुझे ऐसी कहानियां पढ़ने का मौक़ा मिला जो मुझे बार-बार समय की क़िल्लत के बावजूद पढ़वाने पर मजबूर करती रही और अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करती रही जो कि किसी भी रचना और रचनाकार के लिए आज के इस मारा-मारी और भागम-भाग और अत्यधिक छपाऊ दुनिया में किसी उपलब्धि से कम नहीं है।

हम सब जानते हैं कि बांग्लादेश हमारा एक पड़ोसी देश है जो सुदूर पूर्व में बसा है। कभी यह भारत का अभिन्न अंग हुआ करता था। मगर बदक़िस्मती से 1947 के विभाजन के समय यह पाकिस्तान नाम के एक विचित्र देश का हिस्सा बना। विचित्र इन मानों में कि न तो इस देश को स्थापित करने की ठीक ठीक मंशा मुझे आज तक समझ में आई और न ही इसका कोई औचित्य दिखाई दिया। यह विचित्र देश आज तक अपनी असली पहचान स्थापित नहीं कर पाया कि यह किस दिशा में जाना चाहता है।

बहरकैफ़, बंग्लादेश भी कभी इसी पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था जिसकी भाषा अलग, संस्कृति अलग, सोच और संवेदना अलग। फिर भी बंगालियों को जबरदस्ती पश्चिमी पाकिस्तान के साथ बांध दिया गया जो अपने अस्तित्व के पहले दिन से ही वह बंगालियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करने लगा मानों यह उसका एक उपनिवेश हो और जिन अंग्रेजों की गुलामी और बर्बरता से यह स्वयं निकल कर बाहर आया था,  उसी बर्बर सोच और ताक़त के साथ जमीन के इस भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाए रखेगा। चूंकि यह सोच ही ग़लत थी और मंशा भी ठीक नहीं थी,  तो एक न एक दिन विद्रोह का स्वर उठना तो लाज़मी था। और अपने अस्तित्व में आने के ठीक 20-21 वर्षों बाद ही एक पुरज़ोर और ताक़तवर आंदोलन वहां पाकिस्तानियों के ख़िलाफ़ छिड़ गया। जो उन्हें समान धर्म के आधार पर भी अपने साथ जोड़े रखने में विफल रहा ।

1971 का युद्ध इस उपनिवेशिक भाग और सताए हुए लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ। भारत के प्रत्यक्ष मदद से यह युद्ध पाकिस्तानियों से जीत लिया गया। एक नया स्वतंत्र देश वजूद में आया। हालांकि यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि बंग्लादेश ने सही मायनों में उस स्वतंत्रता की लाज रखी या नहीं। कहां तक तरक्की की सीढ़ियां चढ़ीं?  या फिर आजादी भी वहां के लोगों के लिए एक छलावा ही साबित हुआ?

प्रस्तुत कहानी संग्रह को पढ़कर तो ऐसा ही महसूस हुआ कि जिस गुलामी के दर्द से छुटकारा पाकर वहां के लोग एक नई जिंदगी का अनुभव करना चाहते थे, वहां के करोड़ों लोगों के लिए एक छलावा ही साबित हुआ। भूखमरी, ग़रीबी, और बेराजगारी जैसे जिंदगी के अहम मुद्दे आज भी वहां के लोगों का पीछा नहीं छोड़ सके।

दुर्भाग्य से यही स्थिति इन तीनों पड़ोसी देशों की एक सी है यानि भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश। भले ही अपने-अपने स्वतंत्र वजूद के साथ दुनिया के नक़्शे पर खड़े हैं. मगर दुर्भाग्य से आज भी इन तीनों देशों के बहुसंख्यक लोग दो वक़्त की इज्जत की रोटी जुटाने से महरूम हैं।

इस संग्रह में कुल बारह कहानियां हैं। ''1971'' के नाम से पहली कहानी निस्संदेह बंग्लादेश युद्ध पर केंद्रित है कि किस प्रकार पाकिस्तानी सैनिकों ने बंग्लादेशियों पर जुल्म की सारी हदें पार कर दी थीं। उनके लिए उनका हममज़हब होना और एक ही पैगंबर और अल्लाह का मानने वाला होना किसी भी रूप में उनके जुल्म से बचने के लिए काफी नहीं था। वह महज़ एक गुलाम देश के गुलाम लोग थे जिनके साथ कुछ भी किया जा सकता था। उनकी हत्याएं की जा सकती थीं,  उनकी औरतों से धड़ल्ले से बलात्कार किया जा सकता था। उनको बिना सोचे-समझे अपंग और अपाहिज बनाया जा सकता था।

बाकी कहानियां वहां की सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का बेहद सुंदर एवं अद्भुत चित्रण हैं जैसे कि ''गाभिन गाय'', ''एक लंबा ट्रैफिक जाम'', ''मल्कियत की व्यथा'', ''लाटरी'', ''कवि'' और अन्य कहानियां।

इन कहानियों में वहां के साधारण एवं हाशिये पर मौजूद लोगों की अंतर्व्यथा एवं संवेदना को बड़े सुंदर ढ़ंग से सामने रखने का प्रयास किया गया है।

इस संग्रह की अंतिम कहानी ''जिहाद'' है जो इस धर्म युद्ध के बेजा उपयोग एवं परिभाषा को बड़ी खूबसूरती एवं मार्मिकता के साथ बयान करती है। हम इस धर्म युद्ध की तबाही को दुनिया के अन्य देशों में देख ही रहे हैं जैसे कि इराक, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, लीबिया, सीरिया एवं अन्य देशों में।

मैं लेखक राशिद आसकारी को दिल से मुबारकबाद देता हूं कि उन्होंने बहुत ही संवेदनशील मुद्दों को अपनी कहानियों में जगह दी और गहरी मार्मिकता के साथ उन्हें शब्दों का जामा पहनाया।

इस पुस्तक को दिल्ली स्थित प्रकाशन 'भाषक' ने प्रकाशित किया जो कि रबरिक पब्लिशिंग की एक इंप्रिंट है।

इस प्रकाशन संस्थान की मालकिन वीणा विश्वास हैं जो कि स्वयं एक प्रसिद्ध अंग्रेजी की लेखिका हैं। और इन कहानियों को हिंदी में बेहद सरल एवं सुंदर ढ़ंग से ढ़ाला है डा. उषा वंदे ने। दोनों ही इस काम के लिए मुबारकबाद के हक़दार हैं।

मोहम्मद अलीम संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित उपन्यासकार, नाटककार और पटकथा लेखक हैं।

(इस साहित्यिक लेख में व्यक्त विचार लेखक और समीक्षक के निजी हैं, इससे संपादक का सहमत होना जरूरी नही है।)

आईबीटीएन खबर पर परवेज़ अनवर लाइव

आईबीटीएन खबर पर परवेज़ अनवर लाइव

अमेरिका में मध्यावधि चुनावों में दखल देने के लिये कोई फेसबुक के इस्तेमाल की कोशिश कर रहा है : मार्क जुकरबर्ग

अमेरिका में 2016 में हुए चुनावों में रूसी हस्तक्षेप के आरोपों के बीच मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि उन्हें पक्का विश्वास है कि नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों में दखल देने के लिये कोई फेसबुक के इस्तेमाल की कोशिश कर रहा है।

अभी चुनावों में दखल की संभावनाओं पर सी एन एन द्वारा पूछे जाने पर फेसबुक के सी ई ओ ने कहा, ''मुझे विश्वास है कि कोई कोशिश कर रहा है।'' उन्होंने कहा, ''रूस का 2016 में जो भी प्रयास था। मुझे विश्वास है कि उसका वी2, या दूसरा संस्करण भी है, मुझे यकीन है कि वे उस पर काम कर रहे हैं। और इस बार कुछ अलग युक्ति अपनाई जाएगी जिसके बारे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम उसकी पहचान कर सकें और उसका मुकाबला कर सकें।''

उनका यह बयान कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण के सामने आने के बाद आया है जिसमें राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान से जुड़ी ब्रिटिश डेटा कंपनी ने कथित तौर पर पांच करोड़ फेसबुक यूजर्स का आंकड़ा बिना उनकी जानकारी के हासिल और इस्तेमाल किया था।

जुकरबर्ग ने कहा कि फेसबुक कर्मचारियों को कुछ अलग चीज होने की भनक थी जिसे हमें सामने लाना होगा। उन्होंने कहा कि कर्मचारी तकनीक निर्माण कर रहे हैं और मानव समीक्षकों की सेवा ले रहे हैं जिससे दुष्प्रचार और दूसरे हमलों को रोका जा सके। उन्होंने कहा, ''इस साल हमने जो बड़ी प्रतिबद्धताएं व्यक्त की हैं, उनमें से कंपनी में सुरक्षा के लिये काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या दोगुनी करना शामिल है। सुरक्षा और कंटेंट की समीक्षा के लिये इस साल के अंत तक कंपनी में हम 20,000 लोगों के साथ काम करने जा रहे हैं।

व्हाट्सएप के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन ने यूजर्स से कहा, यह फेसबुक को डिलीट करने का समय है

राजनीतिक उद्देश्यों के लिए फेसबुक उपभोक्ताओं के कथित डेटा लीक की खबरों के बीच व्हाट्सएप के सह-संस्थापक ब्रायन एक्टन ने मंगलवार को उपभोक्ताओं से सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक को डिलीट करने के लिए कहा।

ब्रायन एक्टन ने ट्वीट कर अपने 23,000 से ज्यादा फालोवर्स से कहा, ''यह फेसबुक को हटाने का समय है।''

फेसबुक ने 2014 में व्हाट्स एप का अधिग्रहण किया था। राजनीतिक डेटा विश्लेषक कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका के फेसबुक के पांच करोड़ उपभोक्ताओं के डेटा तक बिना अनुमति के पहुंचने की रपट सामने आने के बाद फेसबुक कड़ी प्रतिक्रिया का सामना कर रहा है।

कंपनी ने उपभोक्ताओं के डेटा एक फेसबुक एप से सालों पहले हासिल किए थे, जिसे कथित तौर पर मनोवैज्ञानिक उपकरण होने की बात कही गई थी। हालांकि, कंपनी उस जानकारी के लिए अधिकृत नहीं थी।

इससे पहले मंगलवार को ब्रिटेन की डेटा संरक्षण वॉचडाग ने राजनीतिक डेटा विश्लेषक और परामर्शदाता के लंदन मुख्यालय की तलाशी के लिए अदालती वारंट की मांग की। इस परामर्शदाता ने डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी टीम के साथ काम किया है और कथित तौर पर मतदान को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी मतदाताओं के फेसबुक प्रोफाइल का इस्तेमाल किया।

यू के इंफार्मेशन कमिश्नर ने कैंब्रिज एनालिटिका के मुख्यालय का दौरा करते समय फेसबुक द्वारा नियुक्त किए गए लेखापरीक्षकों को नीचे खड़े रहने का भी आदेश दिया था।

इस बीच अमेरिका व ब्रिटेन के सांसदों ने फेसबुक उपभोक्ताओं के डेटा लीक की रपट के बाद कार्रवाई की मांग की है। मार्क जुकरबर्ग के फेसबुक ने व्हाट्स एप को 2014 में 19 अरब डॉलर में खरीदा था, लेकिन एक्टन 2018 की शुरुआत में 'सिंगल फाउंडेशन' शुरू करने से पहले कंपनी के साथ कई साल बने रहे। बीते महीने उन्होंने 'सिंगल' में पांच करोड़ डालर का निवेश किया, जो बेहद लोकप्रिय व्हाट्स एप के लिए एक स्वतंत्र विकल्प है। एक अन्य व्हाट्स एप के सह-संस्थापक जान कोउम अब भी कंपनी की अगुवाई कर रहे हैं और फेसबुक के बोर्ड में हैं।