रणदीप हुड्डा ने लिखा, एक हंसी के लिए मुझे फांसी पर मत चढ़ाओ

गुरमेहर कौर पर परोक्ष रूप से निशाना साधने वाली वीरेंद्र सहवाग के ट्वीट को लाइक करने के बाद निशाने पर आए एक्‍टर रणदीप हुड्डा ने फेसबुक के जरिए अपना पक्ष रखा है। उन्‍होंने कुछ पत्रकारों पर इस मामले के जरिए अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया।

27 फरवरी की रात को हुड्डा ने लिखा, ''एक हंसी के लिए मुझे फांसी पर मत चढ़ाओ।'' बता दें कि सहवाग ने रविवार (26 फरवरी) को अपनी एक फोटो ट्वीट की थी। इसमें वे 'मैंने नहीं मेरे बल्‍ले ने दो तिहरे शतक मारे थे' लिखी तख्‍ती थामे हुए दिखते हैं।

उनका यह ट्वीट परोक्ष रूप से दिल्‍ली यूनिवर्सिटी की छात्रा गुरमेहर कौर पर निशाना था। गुरमेहर ने पिछले दिनों एक वीडियो पोस्‍ट किया था जिसमें वे भारत-पाकिस्‍तान की दोस्‍ती की पैरवी करते हुए एक तख्‍ती दिखाती हैं। इस तख्‍ती पर लिखा है, ''मेरे पिता को पाकिस्‍तान ने नहीं युद्ध ने मारा था।''

रणदीप हुड्डा ने पोस्‍ट में लिखा है, - ''वीरू ने एक जोक सुनाया और मैंने माना कि मैं हंसा था। वह बहुत हाजिर जवाब है और यह उन लाखों बातों में से एक हैं जिन पर हंस चुका हूं। लेकिन अब मुझे एक युवा लड़की के खिलाफ नफरत भरी धमकियों को भड़काने के लिए जिम्‍मेदार ठहराया जा रहा है। हैरान कर देने वाली बात है कि वह लड़की भी यही समझ रही है। यह बिलकुल गलत है। वह मेरी मंशा कभी नहीं थी और हमारे ट्वीट उसे मिल रही नफरत का जरिया नहीं है। वह बोली, वह किसी बात के लिए खड़ी हुई तो फिर उसे इतना साहस भी रखना चाहिए कि वह विरोधी आवाजें सुन सकें। किसी और पर (इस मामले में मुझ पर) अंगुली उठाना और मिल रही प्रतिक्रियाओं के लिए उसे जिम्‍मेदार ठहराना सही नहीं है। मैं उसके खिलाफ नहीं हूं और मजबूती से मानता हूं कि हिंसा गलत है। एक महिला को हिंसा से डराना और भी जघन्‍य अपराध है और ऐसे लोगों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।''

सरबजीत, हाइवे, रंगरसिया, सुल्‍तान जैसी फिल्‍मों में काम कर चुके हुड्डा ने गुरमेहर कौर के भारत-पाकिस्‍तान के बीच दोस्‍ती की पैरवी के वीडियो की तारीफ की। हालांकि उन्‍होंने सवाल उठाते हुए कहा कि उस बात का वर्तमान हालात से क्‍या मतलब? उसे अगर कुछ गलत लगा तो उसने आवाज उठाई और यह वीरू का हक है कि वह इस पर मजाक बनाए। यह लोकतंत्र है और सभी की अभिव्‍यक्ति की आजादी है। उसे तो जोक में टैग भी नहीं किया गया था।

उन्‍होंने लिखा, ''कुछ पत्रकारों ने हमारी छवि को खराब करने और उनका पॉइंट प्रूव करने के लिए इस मामले को अलग रंग देना चाहा। वे अपने एजेंडे के साथ हमें जोड़ना चाहते थे। यह दादागिरी है। दिल्‍ली की हिंसा का उसकी जंग के खिलाफ अपील का क्‍या संबंध है? वीरू की हाजिर जवाबी का हिंसा का समर्थन करने से क्‍या रिश्‍ता है? बात यह है कि कोई संबंध नही है।''