कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा की असलियत क्या है?
भारत के राज्य कर्नाटक में बीजेपी सरकार ने विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मुसलमानों को मिलने वाला 4 फ़ीसदी आरक्षण रद्द कर दिया और इसे कर्नाटक के लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के बीच 2-2 फ़ीसदी बांट दिया।
बीजेपी का कहना है कि धर्म के आधार पर आरक्षण देना संविधान के खिलाफ़ है, इसलिए ये आरक्षण हटाया गया।
मार्च 2023 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने इस फ़ैसले के बाद कहा था, "संविधान में धार्मिक आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। खुद डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि आरक्षण जाति के आधार पर तय होना चाहिए।''
कर्नाटक में साल 1994 में मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों के तहत मुसलमानों की कुछ जातियों को अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) की श्रेणी में एक उप-श्रेणी बनाकर शामिल किया गया था।
इसके तहत मुसलमानों को 'सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन' के आधार पर चार फ़ीसदी आरक्षण देने की बात की गई।
कर्नाटक सरकार ने साल 1986 में चिनप्पा रेड्डी आयोग बनाया था। इस आयोग को काम दिया गया कि वह राज्य में आरक्षण के लिए योग्य जातियों-समुदायों की लिस्ट तैयार करे।
चिनप्पा रेड्डी आयोग की सलाह पर ही ओबीसी के 32 फ़ीसदी कोटे में से मुसलमानों को चार फ़ीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला किया।
ओबीसी श्रेणी में ही वोक्कालिगा और लिंगायतों को क्रमशः 4 फ़ीसदी और 5 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था। वोक्कालिगा और लिंगायत कर्नाटक में काफ़ी प्रभावशाली समुदाय हैं।
अब कर्नाटक में जो आरक्षण की बदली व्यवस्था है उसमें मुसलमानों को मिलने वाला 4 फ़ीसदी आरक्षण ख़त़्म हो गया है। हालांकि नौ मई 2023 तक भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बहाल रखी है।
बीजेपी कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा जोर शोर से उठा रही है ताकि हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। बीजेपी इसमें कितना सफल हो पाती है इसका पता तो कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद ही चल पायेगा!