भारत में केंद्र की मोदी सरकार ने माना है कि किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान समर्थन मूल्य से जुड़े एक सवाल के मौखिक जवाब में कहा, ''यह सही है कि किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है, हालांकि किसानों को उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए देशव्यापी स्तर पर उपाय किए जा रहे हैं।''
कांग्रेस सदस्य विप्लव ठाकुर द्वारा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के बावजूद किसानों को इसके मुताबिक उपज की कीमत नहीं मिल पाने के सवाल पर राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार ने कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर धान, ज्वार, बाजरा सहित 22 फसलों के साल 2017-18 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में लागत पर लाभ 50 प्रतिशत से अधिक रखा था।
उन्होंने कहा, ''इसके बावजूद मेरा अनुभव कहता है कि दिल्ली से कोलकाता तक समूचे इलाके में सौ किमी के दायरे में धान की खेती करने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है।'' राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार राज्यों में फसलों की खरीद प्रक्रिया पर पूरी निगरानी रख रही है जिससे किसानों को उपज की निर्धारित कीमत मिल सके। राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार इस समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में नीति आयोग और राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर रही है जिससे बेहतर व्यवस्था कायम की जा सके।
राधा मोहन सिंह ने इस समस्या के समाधान के तौर पर गेंहू और धान से इतर अन्य फसलों की पैदावार करने वाले किसानों के लिए मूल्य समर्थन योजना को बेहतर विकल्प बताया। इसके तहत उपज की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होने पर फसल की खरीद राज्य सरकार को करना चाहिए। इस बारे में राज्य सरकारों से जब भी प्रस्ताव आते हैं, केन्द्र सरकार इस योजना के तहत अतिरिक्त राशि जारी करती है। इस योजना में केन्द्र सरकार ने राज्यों से आठ लाख मीट्रिक टन दाल और कपास आदि की खरीद की है।
भारत में केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए शुक्रवार को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पहला अनुमान जारी किया। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) के अनुसार, इस वित्त वर्ष में विकास दर में कमी देखने को मिलेगी। विकास दर 6.5 फीसदी के आसपास होगी। जबकि, बीते साल यह 7.1 फीसदी थी। वहीं, 2015-16 में विकास दर आठ फीसदी के करीब थी। 2014-15 में यह 7.5 प्रतिशत थी।
बता दें कि तीन तिमाही के आंकड़ों के साथ जीडीपी का दूसरा अनुमान 28 फरवरी को जारी किया जाएगा। पूरे साल के आंकड़े 2018 में जारी किए जाएंगे। कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से जीडीपी की वृद्धि दर चालू 2017-18 में 6.5 प्रतिशत के चार साल के निचले स्तर पर रहेगी। नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में यह सबसे कम वृद्धि दर होगी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने मई 2014 में अपना कार्यभार संभाला था। जानकार इसे आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए झटके के तौर पर देख रहे हैं।
सीएसओ ने जीडीपी को लेकर कहा, ''चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 7.1 प्रतिशत रही थी।'' वास्तविक सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के आधार पर 2017-18 में वृद्धि 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो इससे पिछले साल 6.6 प्रतिशत थी।
आर्थिक गतिविधियां नोटबंदी और उसके बाद माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से प्रभावित चालू वित्त वर्ष में आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दिख रही है। सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार, कृषि, वन और मत्स्यपालन क्षेत्र की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में घटकर 2.1 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में यह 4.9 प्रतिशत थी। इसके अलावा विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर भी घटकर 4.6 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो 2016-17 में 7.9 प्रतिशत रही थी।
गुजरात चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। बीजेपी अब वहां नए मुख्यमंत्री की तलाश में जुटी है, मगर राज्य में छठी बार सरकार बनाने जा रही बीजेपी को इन चुनावों में कांग्रेस ने जबर्दस्त टक्कर दी। चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में कांग्रेस बीजेपी से लंबी लकीर खींच चुकी थी, मगर अंतिम दौर आने तक सियासी घमासान में फिर से बीजेपी ने कांग्रेस पर निर्णायक बढ़त बना ली।
कांग्रेस की ओर से जहां राहुल गांधी ने मोर्चा संभाल रखा था, वहीं बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राज्य में लगातार कैम्प किए हुए थे। दोनों ही दलों ने गुजरात में लगभग एक साथ ही तैयारी शुरू की थी। कांग्रेस पिछले कुछ विधानसभा चुनावों की तुलना में अच्छी रणनीति के साथ गुजरात में उतरी थी। लिहाजा, उसने 22 साल से सत्ता में रहने वाली बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी, लेकिन अंतिम दौर में बीजेपी ही बाजी मारने में सफल रही।
सीएसडीएस के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो गुजरात की राजनीति में बीजेपी को लगातार कड़ी टक्कर दे रही कांग्रेस अंतिम समय में लोगों का विश्वास जीतने में पीछे रह गई। सीएसडीएस के इस सर्वे में साफ देखा जा सकता है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दो सप्ताह में बीजेपी को कांग्रेस पर बढ़त बनाने में जबर्दस्त सफलता हाथ लगी।
सर्वे के मुताबिक, गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान की शुरुआत से पहले 48 प्रतिशत जनता कांग्रेस के साथ खड़ी थी, जबकि 46 प्रतिशत जनता का भरोसा बीजेपी पर कायम था। यानी कांग्रेस को जहां 10 प्रतिशत का फायदा हो रहा था, वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी को आठ प्रतिशत का नुकसान। सर्वे के मुताबिक 6 फीसदी लोग अन्य के साथ भी खड़े दिखाई दिए।
सर्वे के मुताबिक, चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में 100 में से 42 लोग कांग्रेस को और 47 लोग बीजेपी के समर्थन में मतदान करने का मन बना चुके थे। चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में कांग्रेस को 7 प्रतिशत का फायदा हो रहा था, जबकि बीजेपी को 4 प्रतिशत का नुकसान। मगर आखिरी दो सप्ताह में कांग्रेस को जबर्दस्त झटका लगा और वोटर चुपचाप बीजेपी की तरफ सरक गए।
माना जा रहा है कि पीएम मोदी पर कांग्रेस नेता मणिशंक्कर अय्यर का 'नीच' वाला बयान बीजेपी को लाभ पहुंचा गया। बयान पर भावनात्मक अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को गुजरात का बेटा बताते हुए इसे गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया। यही वजह रही कि अंतिम दो सप्ताह में बीजेपी कांग्रेस पर बढ़त बनाने में सफल रही। आखिरकार अंतिम दौर में 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 100 में से 53 लोग बीजेपी के पक्ष में वोट करने का मन बना चुके थे। कांग्रेस को इस दौरान काफी नुकसान झेलना पड़ा और उसे महज 38 प्रतिशत जनता का समर्थन ही हासिल हो सका।
भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा शीर्ष 20 शहरों तक ही सीमित है। इसके अलावा 30 फीसदी भारतीय हर साल स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च की वजह से गरीबी रेखा की जद में आ जाते हैं।
पीडब्ल्यूसी और सीआईआई द्वारा संयुक्त रूप से जारी किए गए 'कैसे एमहेल्थ भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकता हैं', नामक ज्ञान पत्र के मुताबिक, भारत में 30 फीसदी लोग प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। इसमें कहा गया है कि भारत अकेले वैश्विक बीमारी का 21 फीसदी बोझ झेल रहा है।
पीडब्ल्यूसी के 14वें भारत स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में जारी ज्ञान पत्र में कहा गया कि बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच एक चुनौती है, क्योंकि सहायक बुनियादी ढांचा और संसाधन अपर्याप्त हैं। ज्ञान पत्र में भारत के अंदर स्वास्थ्य सेवाओं के खस्ताहाल को दर्शाया गया, जिसमें कहा गया है कि भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा शीर्ष 20 शहरों तक ही सीमित है, साथ ही 30 फीसदी भारतीयों के पास प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा तक पहुंच नहीं है।
पत्र में कहा गया है, ''भारत में प्रति 1000 आबादी पर केवल 0.7 डॉक्टर, 1.3 नर्स और 1.1 अस्पताल बेड हैं। जिससे इस प्रकार के एक एमहेल्थ (मोबाइल हेल्थ) चैनल की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र में वास्तव में कुछ आंकड़े चिंताजनक हैं, जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी प्राथमिक इलाज से वंचित है। स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा की गुणवत्ता व सस्ती स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए नए तरीकों का लाभ उठाना जरूरी है।''
भारत में वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण चैनल के रूप में एमहेल्थ (मोबाइल स्वास्थ्य) का लाभ उठाने की काफी क्षमता है और यह सुविधा भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकती हैं। पीडब्ल्यूसी इंडिया हेल्थकेयर के डॉ. राणा मेहता ने कहा, ''अगर भारत में एमहेल्थ को पूरी तरह से अपना लिया जाता है, तो देश के स्वास्थ्य सेवा में सुधार लाने में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।''
उन्होंने कहा, ''भारत की आबादी करीब 1.3 अरब है और अगर हम 6-8 फीसदी के एक रूढ़िवादी अनुमान लेते हैं, तो हम अतिरिक्त 7.9 से 10.5 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करने की उम्मीद कर सकते हैं।''
सीआईआई हेल्थकेयर काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. नरेश त्रेहन ने कहा, ''भारत को नए और अभिनव तरीकों की जरूरत है, ताकि स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों और अवसंरचना की कमी के लिए देखभाल और क्षतिपूर्ति प्रदान करें।''
डॉक्टर्स विदआउथ बॉर्डर्स (एम एस एफ) ने गुरुवार को बताया कि म्यांमार के रखाइन राज्य में विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के पहले ही महीने में कम से कम 6,700 रोहिंग्या मुसलमान मारे गए थे। यह कार्रवाई अगस्त के आखिर में शुरू हुई थी।
एम एस एफ के आंकड़े सर्वाधिक अनुमानित मृतक संख्या हैं। रखाइन राज्य में हिंसा 25 अगस्त को शुरू हुई और इसने बड़ा शरणार्थी संकट खड़ा कर दिया जब तीन महीने में 620,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से बांग्लादेश चले गए थे।
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने सैन्य अभियान को मुस्लिम अल्पसंख्यकों का जातीय सफाया बताया था, लेकिन हिंसा में मरने वालों की अनुमानित संख्या जारी नहीं की थी।
एम एस एफ ने बृहस्पतिवार को बताया कि कम से कम भी अनुमान लगाए तो भी 6,700 रोहिंग्या हिंसा में मारे गए थे। इनमें पांच साल से कम उम्र के 730 बच्चे भी शामिल हैं। समूह की यह पड़ताल रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में 2,434 से ज्यादा घरों पर किए गए छह सर्वेक्षण से सामने आई है। ये सर्वेक्षण एक माह में किए गए थे।
समूह के मेडिकल निदेशक सिडनी वॉन्ग ने कहा कि हम म्यांमार में हुई हिंसा के पीड़ितों से मिले तथा बात की। वे बांग्लादेश में क्षमता से अधिक भरे तथा गंदे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक, 69 फीसदी मामलों में मौत गोली लगने से हुई, जबकि नौ फीसदी मौतें घरों में जिंदा जलाने से हुईं। पांच प्रतिशत लोगों को पीट-पीटकर मारा डाला गया।
पांच साल से कम उम्र के करीब 60 फीसदी बच्चों की मौत गोली लगने की वजह से हुई है।
म्यांमार की सेना ने किसी भी तरह का दुर्व्यवहार किए जाने से इंकार करते हुए कहा है कि 376 रोहिंग्या आतंकवादियों सहित केवल 400 लोगों की मौत कार्रवाई शुरू होने के शुरुआती कुछ सप्ताह में हुई।
स्वराज इंडिया पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी राय जाहिर की है। आधिकारिक अकाउंट से ट्वीट कर योगेंद्र यादव ने कुछ आंकड़ों के जरिए बताया कि किस पार्टी को कितने प्रतिशत वोट और सीटें मिल सकती हैं।
ट्वीट में उन्होंने तीन परिदृश्य भी बताए हैं। इसके साथ उन्होंने आंकड़ों की एक तस्वीर पोस्ट की है। इसके नीचे यह भी लिखा है कि सभी आंकड़ों का अनुमान योगेंद्र यादव ने लगाया है और यह किसी एग्जिट पोल का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
इसके अलावा जिन सीटों का अनुमान लगाया गया है वे सीएसडीएस पोल पर आधारित हैं और एबीपी के अनुमान से अलग है।
इस अनुमान के मुताबिक, गुजरात में इस बार कांग्रेस बाजी मार सकती है और बीजेपी को अब विपक्ष में बैठना पड़ेगा।
योगेंद्र यादव चुनावी विश्लेषक हैं और पहले भी चुनावी नतीजों पर अपनी राय देते रहे हैं।
योगेंद्र यादव के मुताबिक, पहले 'मुमकिन' परिदृश्य में बीजेपी को 86 सीटें (43 प्रतिशत वोट) और कांग्रेस को 92 सीट (43 प्रतिशत) मिलेंगी।
वहीं दूसरे 'संभावित' परिदृश्य में योगेंद्र यादव ने बीजेपी को 65 (41 प्रतिशत वोट) और कांग्रेस को 113 सीटें (45 प्रतिशत) दी हैं।
वहीं तीसरे व अंतिम परिदृश्य के आगे योगेंद्र यादव ने 'इनकार नहीं किया जा सकता' लिखा है। इसके बाद उन्होंने लिखा कि बीजेपी को बड़ी हार भी मिल सकती है।

अगर बात योगेंद्र यादव द्वारा पोस्ट किए गए आंकड़ों की करें तो इसके मुताबिक बीजेपी ने साल 2012 में ग्रामीण इलाकों की 98 सीट में से 44, वहीं कांग्रेस ने 49 सीट जीती थीं। अर्ध शहरी इलाकों की 45 सीटों पर बीजेपी को 36 तो कांग्रेस को 8 सीट पर जीत मिली थी। वहीं शहरी इलाकों की 39 सीटों में बीजेपी को 35 और कांग्रेस को सिर्फ 4 सीट पर विजय मिली थी। इसको अगर जोड़ दें तो बीजेपी के हाथ 115 और कांग्रेस को 61 सीटें मिली थीं। गुजरात में 182 विधानसभा सीटों पर चुनाव होता है।
वहीं योगेंद्र के पहले परिदृश्य (एबीपी-सीएसडीएस में वोट शेयर बीजेपी और कांग्रेस का 43 प्रतिशत) के मुताबिक, इस बार 98 ग्रामीण सीटों में से बीजेपी को 28 और कांग्रेस को 66 सीट मिलेंगी। वहीं अर्ध-शहरी इलाकों की 45 सीट में बीजेपी को योगेंद्र यादव ने 26 और कांग्रेस को 19 सीटें दी हैं। शहरी इलाकों की 39 सीटों में से बीजेपी को 29 और कांग्रेस को 10 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। यानी बीजेपी को इस बार 83 और कांग्रेस को 95 सीटें मिलेंगी।
दूसरे परिदृश्य के मुताबिक, (अगर 2 प्रतिशत बीजेपी के खिलाफ स्विंग होता है) ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को 20 , कांग्रेस को 74 , अर्ध-शहरी इलाकों में बीजेपी को 18 और कांग्रेस को 27, शहरी इलाकों में बीजेपी को 27 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इसे जोड़ें तो बीजेपी को 65 और कांग्रेस को 113 सीटें मिलेंगी।
गौरतलब है कि गुजरात विधानसभा चुनावों के दूसरे चरण के लिए गुरुवार 14 दिसंबर को मतदान किया जाएगा। वोटिंग सुबह 8 बजे से शाम 5 पांच बजे तक चलेगी। इस चरण में 93 सीटों पर मतदान किया जाएगा।
चुनाव आयोग की ओर से दूसरे चरण के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। वोटिंग के लिए 25,558 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। इस चरण में कुल 851 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 782 पुरुष और 69 महिला उम्मीदवार शामिल हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक , दूसरे चरण में कुल 2 करोड़ 22 लाख 96,867 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या एक करोड़ 15 लाख 47,435 और महिला मतदाताओं की संख्या एक करोड़ सात लाख 48,977 है।
9 दिसंबर को पहले चरण की 89 सीटों पर बंपर वोटिंग हुई थी, जिसमें 66.75 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। उम्मीद है कि इस चरण में भी लोग जमकर मतदान करेंगे।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट www.narendramodi.in पर 12 दिसंबर को एक स्टोरी की हेडलाइन थी: सीप्लेन से सफर करने वाले पीएम मोदी भारत के पहले पैसेंजर हैं।
मंगलवार को दूसरे चरण के मतदान से पहले चुनावी कैंपेन के तहत पीएम मोदी ने अहमदाबाद की साबरमती नदी में मेहसाणा के धरोई बांध तक सीप्लेन से सफर किया।
हालांकि बाद में इस हेडलाइन को बदल दिया गया।
भारत में पहली सीप्लेन यात्रा का दावा बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी किया गया था। इसी को अन्य बीजेपी नेताओं ने भी अपने-अपने अकाउंट से ट्वीट किया। विभिन्न टीवी चैनलों ने भी इसी बात को अपनी हेडिंग में शामिल किया।
कहा गया कि सीप्लेन यात्रा भारत में यातायात की सूरत ही बदल देगी।
लेकिन क्या वाकई यह पहली सीप्लेन सर्विस थी?
जवाब है नहीं।
अॉल्ट न्यूज के मुताबिक, भारत में पहली कमर्शियल सीप्लेन सर्विस साल 2010 में शुरू की गई थी। उस वर्ष दिसंबर में अंडमान एंड निकोबार द्वीप समूह प्रशासन और सार्वजनिक क्षेत्र की हेलिकॉप्टर कंपनी पवन हंस ने संयुक्त रूप से जल हंस नाम से एक सर्विस शुरू की थी।
भारत के तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल ने हाल ही में ट्वीट कर इसकी पुष्टि की है। जल हंस सेवा अब बंद कर दी गई है।
भारत में सीप्लेन सर्विस शुरू करने की एक पहल जून 2013 में केरल सरकार ने की थी। लेकिन स्थानीय मत्स्य समुदाय द्वारा विरोध जताए जाने से यह प्रोजेक्ट फेल हो गया। इसे लेकर तत्कालीन केरल के चीफ मिनिस्टर ओमन चांडी ने ट्वीट भी किया था।
सीप्लेन सर्विस को भारत में लाने की पहल सिर्फ सरकार ने ही नहीं की। कई प्राइवेट कंपनियों ने 2011-12 में इसे लॉन्च करने का एेलान किया। सीबर्ड सीप्लेन प्राइवेट लिमिटेड को 2011 में इसमें शामिल किया गया था। इस कंपनी ने केरल और लक्षद्वीप के लिए सर्विस मुहैया कराने का एेलान किया था।
यह भी बात सामने आई कि सीप्लेन से यात्रा के दौरान कई सुरक्षा मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह एयरक्राफ्ट सिंगल इंजन विमान था, मतलब साफ है कि अगर इंजन गलती से फेल हो जाता तो बड़ी गड़बड़ हो सकती थी।
सूत्रों का कहना है कि सुरक्षा मानकों के मुद्दे को पीएम मोदी के सामने उठाया भी गया था, लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया और जान जोखिम में डालकर यात्रा की।
बृजगोपाल हरकिशन लोया को जून 2014 में सीबीआइ की विशेष अदालत में उनके पूर्ववर्ती जज जेटी उत्पट के तबादले के बाद नियुक्त किया गया था। अमित शाह ने अदालत में पेश होने से छूट मांगी थी जिस पर उत्पट ने उन्हें फटकार लगाई थी। इसके बाद ही उनका तबादला हुआ। आउटलुक में फरवरी 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार: ”इस एक साल के दौरान जब उत्पट सीबीआइ की विशेष अदालत की सुनवाई देखते रहे और बाद में भी, कोर्ट रिकॉर्ड के मुताबिक अमित शाह एक बार भी अदालत नहीं पहुंचे थे। यहां तक कि बरी किए जाने के आखिरी दिन भी वे अदालत नहीं आए और शाह के वकील ने उन्हें इस मामले में रियायत दिए जाने का मौखिक प्रतिवेदन दिया जिसका आधार यह बताया कि वे ”मधुमेहग्रस्त हैं और चल-फिर नहीं सकते” या कि ”वे दिल्ली में व्यस्त हैं।”
आउटलुक की रिपोर्ट कहती है, ”6 जून, 2014 को उत्पट ने शाह के वकील के सामने नाराज़गी ज़ाहिर कर दी। उस दिन तो उन्होंने शाह को हाजिरी से रियायत दे दी और 20 जून की अगली सुनवाई में हाजिर होने का आदेश दिया लेकिन वे फिर नहीं आए। मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक उत्पट ने शाह के वकील से कहा, ‘आप हर बार बिना कारण बताए रियायत देने की बात कह रहे हैं।”’ रिपोर्ट कहती है कि उत्पट ने ”सुनवाई की अगली तारीख 26 जून मुकर्रर की लेकिन 25 जून को उनका तबादला पुणे कर दिया गया।” यह सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2012 में आए उस आदेश का उल्लंघन था जिसमें कहा गया था कि सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई ”एक ही अफ़सर द्वारा शुरू से अंत तक की जाए।”
लोया ने शुरू में अदालत में हाजिर न होने संबंधी शाह की दरख्वास्त पर नरमी बरती। आउटलुक लिखता है, ”उत्पल के उत्तराधिकारी लोया रिआयती थे जो हर तारीख पर शाह की हाजिरी से छूट दे देते थे।” लेकिन हो सकता है कि ऊपर से दिखने वाली यह नम्रता प्रक्रिया का मामला रही हो। आउटलुक की स्टोरी कहती है, ”ध्यान देने वाली बात है कि उनकी एक पिछली नोटिंग कहती है कि शाह को ‘आरोप तय होने तक’ निजी रूप से हाजिर होने से छूट जाती है।’ साफ़ है कि लोया भले उनके प्रति दयालु दिख रहे हों, लेकिन शाह को आरोपों से मुक्त करने की बात उनके दिमाग में नहीं रही होगी।” मुकदमे में शिकायतकर्ता रहे सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन के वकील मिहिर देसाई के मुताबिक लोया 10,000 पन्ने से ज्यादा लंबी पूरी चार्जशीट को देखना चाहते थे और साक्ष्यों व गवाहों की जांच को लेकर भी काफी संजीदा थे। देसाई कहते हें, ”यह मुकदमा संवेदनशील और अहम था जो एक जज के बतौर श्री लोया की प्रतिष्ठा को तय करता।” देसाई ने कहा, ”लेकिन दबाव तो लगातार बनाया जा रहा था।”
लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी मुंबई में उनके परिवार के साथ रहकर पढ़ाई करती थी। उसने मुझे बताया कि वे देख रही थीं कि उनके अंकल पर किस हद तक दबाव था। उन्होंने बताया, ”वे जब कोट्र से घर आते तो कहते थे, ‘बहुत टेंशन है।’ तनाव काफी था। यह मुकदमा बहुत बड़ा था। इसस कैसे निपटें। हर कोई इसमें शामिल है।” नूपुर के मुताबिक यह ”राजनीतिक मूल्यों” का प्रश्न था।
देसाई ने मुझे बताया, ”कोर्टरूम में हमेशा ही जबरदस्त तनाव कायम रहता था। हम लोग जब सीबीआइ के पास साक्ष्य के बतौर जमा कॉल विवरण का अंग्रेजी अनुवाद मांगते थे, तब डिफेंस के वकील लगातार अमित शाह को सारे आरोपों से बरी करने का आग्रह करते रहते थे।” उन्हेांने बताया कि टेप की भाषा गुजराती थी जो न तो लोया को और न ही शिकायतर्ता को समझ में आती थी।
देसाई ने बताया कि डिफेंस के वकील लगातार अंग्रेजी में टेप मुहैया कराए जाने की मांग को दरकिनार करते रहते थे और इस बात का दबाव डालते थे कि शाह को बरी करने संबंधी याचिका पर सुनवाई हो। देसाई के मुताबिक उनके जूनियर वकील अकसर कोर्टरूम के भीतर कुछ अनजान और संदिग्ध से दिखने वाले लोगों की बात करते थे, जो धमकाने के लहजे में शिकायतकर्ता के वकील को घूरते थे और फुसफुसाते रहते थे।
देसाई याद करते हुए बताते हैं कि 31 अक्टूबर को एक सुनवाई के दौरान लोया ने पूछा कि शाह क्यों नहीं आए। उनके वकीलों ने जवाब दिया कि खुद लोया ने उन्हें आने से छूट दे रखी है। लोया की टिप्पणी थी कि शाह जब राज्य में न हों, तब यह छूट लागू होगी। उन्होंने कहा कि उस दिन शाह मुंबई में ही थे। वे महाराष्ट्र में बीजेपी की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने आए थे और अदालत से महज 1.5 किलोमीटर दूर थे। उन्होंने शाह के वकील को निर्देश दिया कि अगली बार जब वे राज्य में हों तो उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए और सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर मुकर्रर कर दी।
अनुराधा बियाणी ने मुझे बताया कि लोया ने उन्हें कहा था कि मोहित शाह- जो जून 2010 से सितंबर 2015 के बीच बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे- उन्होंने लोया को शाह के हक में फैसले के लिए 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी। उनके मुताबिक मोहित शाह ”देर रात उन्हें फोन कर के साधारण कपड़ों में मिलने के लिए कहते और उनके ऊपर जल्द से जल्द फैसला देने का दबाव बनाते थे और यह सुनिश्चित करने को कहते कि फैसला सकारात्मक हो। मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने खुद रिश्वत देने की पेशकश की थी।”
उन्होने बताया कि मोहित शाह ने उनके भाई से कहा था कि यदि ”फैसला 30 दिसंबर से पहले आ गया, तो उस पर बिलकुल भी ध्यान नहीं जाएगा क्योंकि उसी के आसपास एक और धमकादेार स्टोरी आने वाली है जो लोगों का ध्यान इससे बंटा देगी।”
लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे ने उनहें रिश्वत की पेशकश वाली बात बताई थी। हरकिशन ने कहा, ”हां, उन्हें पैसे की पेशकश की गई थी। क्या आपको मुंबई में मकान चाहिए, कितनी ज़मीन चाहिए, वह हमें ये सब बताता था। बाकायदे एक ऑफर था।” उन्होंने बताया कि उनके बेटे ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। हरकिशन ने बताया, ”उसने मुझे बताया था कि या मैं तबादला ले लूंगा या इस्तीफ़ा दे दूंगा। मैं गांव जाकर खेती करूंगा।”
इस परिवार के दावों की जांच के लिए मैंने मोहित शाह और अमित शाह से संपर्क किया। इस कहानी के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया है। जब भी वे जवाब देते हैं, स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा।
लोया की मौत के बाद एमबी गोसावी को सोहराबुद्दीन केस में जज बनाया गया। गोसावी ने 15 दिसंबर 2014 को सुनवाई शुरू की। मिहिर देसाई बताते हैं, ”उन्होंने तीन दिन तक अमित शाह को बरी करने संबंधी डिफेंस के वकीलों की दलीलें सुनीं जबकि सीबीआइ की दलीलों को केवल 15 मिनट सुना गया। उन्होंने 17 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली और आदेश सुरक्षित रख लिया।”
लोया की मौत के करीब एक माह बाद 30 दिसंबर 2014 को गोसावी ने डिफेंस की इस दलील को पुष्ट किया कि सीबीआइ की आरोपी को फंसाने के पीछे राजनीतिक मंशा है। इसके साथ ही उन्होंने अमित शाह को बरी कर दिया।
ठीक उसी दिन पूरे देश के टीवी परदे पर टेस्ट क्रिकेट से एमएस धोनी के संन्यास की खबर छायी हुई थी। जैसा कि बियाणी ने याद करते हुए बताया, ”नीचे बस एक टिकर चल रहा था- अमित शाह निर्दोष साबित, अमित शाह निर्दोष साबित।”
लोया की मौत के करीब ढाई महीने बाद मोहित शाह शोक संतप्त परिवार के पास मिलने आए। मुझे लोया के परिवार के पास से उनके बेटे अनुज का लिखा एक पत्र मिला जो उसने उसी दिन अपने परिवार के नाम लिखा था जिस दिन मुख्य न्यायाधीश आए थे। उस पर तारीख पड़ी है 18 फरवरी 2015 यानी लोया की मौत के 80 दिन बाद। अनुज ने लिखा था, ”मुझे डर है कि ये नेता मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं और मेरे पास इनसे लड़ने की ताकत नहीं है।” उसने मोहित शाह के संदर्भ में लिखा था, ”मैंने पिता की मौत की जांच के लिए उनसे एक जांच आयोग गठित करने को कहा था। मुझे डर है कि उनके खिलाफ हमें कुछ भी करने से रोकने के लिए वे हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हमारी जिंदगी खतरे में है।”
अनुज ने ख़त में दो बार लिखा था कि ”अगर मुझे और मेरे परिवार को कुछ भी होता है तो उसके लिए इस साजिश में लिप्त चीफ जस्टिस मोहित शाह और अन्य लोग जिम्मेदार होंगे।”
मैं लोया के पिता से नवंबर 2016 में मिला। वे बोले, ”मैं 85 का हो चुका हूं और मुझे अब मौत का डर नहीं है। मैं इंसाफ़ भी चाहता हूं लेकिन मुझे अपनी बच्चियों और उनके बच्चों की जान की बेहद फि़क्र है।” बोलते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए। वे रह-रह कर उस पैतृक घर की दीवार पर टंगी लोया की तस्वीर की ओर देख रहे थे जिस पर अब माला थी।
(निरंजन टाकले की 21 नवंबर 2017 को लिखी यह रिपोर्ताज अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां से साभार प्रकाशित है - संपादक)
30 नवंबर 2014 की रात 11 बजे लोया ने अपनी पत्नी शर्मिला को अपने मोबाइल से नागपुर से फोन किया। करीब 40 मिनट हुई बातचीत में वे दिन भर की अपनी व्यस्तताएं उनहें बताते रहे। लोया अपने एक सहकर्मी जज सपना जोशी की बेटी की शादी में हिस्सा लेने नागपुर गए थे। उन्होंने शुरुआत में नहीं जाने का आग्रह किया था, लेकिन उनके दो सहकर्मी जजों ने साथ चलने का दबाव बनाया। लोया ने पत्नी को बताया कि शादी से होकर वे आचुके हैं और बाद में वे रिसेप्शन में गए। उन्होंने बेटे अनुज का हालचाल भी पूछा। उन्होंने पत्नी को बताया कि वे साथी जजों के संग रवि भवन में रुके हुए थे। यह नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित एक सरकारी वीआइपी गेस्टहाउस है।
लोया ने कथित रूप से यह आखिरी कॉल की थी और यही उनका अपने परिवार के साथ हुआ आखिरी कथित संवाद भी था। उनके परिवार को उनके निधन की खबर अगली सुबह मिली।
उनके पिता हरकिशन लोया से जब मैं पहली बार लातूर शहर के करीब स्थित उनके पैतृक गांव गाटेगांव में नवंबर 2016 में मिला, तब उन्होंने बताया था कि 1 दिसंबर 2014 को तड़के ”मुंबई में उसकी पत्नी, लातूर में मेरे पास और धुले, जलगांव व औरंगाबाद में मेरी बेटियों के पास कॉल आया।” इन्हें बताया गया कि ”बृज रात में गुज़र गए, उनका पंचनामा हो चुका है और उनका पार्थिव शरीर लातूर जिले के गाटेगांव स्थित हमारे पैतृक निवास पर भेजा जा चुका है।” उन्हेांने बताया, ”मुझे लगा कि कोई भूचाल आ गया हो और मेरी जिंदगी बिखर गई।”
परिवार को बताया गया था कि लोया की मौत कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) से हुई थी। हरकिशन ने बताया, ”हमें बताया गया था कि उन्हें सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उनहें नागपुर के एक निजी अस्पताल दांडे हास्पिटल में ऑटोरिक्शा से ले जाया गया, जहां उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई।” लोया की बहन बियाणी दांडे हास्पिटल को ”एक रहस्यमय जगह” बताती हैं और कहती हैं कि उन्हें ”बाद में पता चला कि वहां ईसीजी यूनिट काम नहीं कर रही थी।।” बाद में हरकिशन ने बताया, लोया को ”मेडिट्रिना हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया”- शहर का एक और निजी अस्पताल- ”जहां उन्हें पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया।”
अपनी मौत के वक्त लोया केवल एक ही मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे, जो सोहराबुद्दीन हत्याकांड था। उस वक्त पूरे देश की निगाह इस मुकदमे पर लगी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आदेश दिया था कि इस मामले की सुनवाई को गुजरात से हटाकर महाराष्अ्र में ले जाया जाए। उसका कहना था कि उसे ”भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए ज़रूरी है कि उसे राज्य से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसकी सुनवाई शुरू से लेकर अंत तक ही एक ही जज करेगा, लेकिन इस आदेश का उल्लंघन करते हुए पहले सुनवाई कर रहे जज जेटी उत्पट को 2014 के मध्य में सीबीआइ की विशेष अदालत से हटा कर उनकी जगह लोया को ला दिया गया।
उत्पअ ने 6 जून 2014 को अमित शाह को अदालत में पेश न होने को लेकर फटकार लगाई थी। अगली तारीख 20 जून को भी अमित शाह नहीं पेश हुए। उत्पट ने इसके बाद 26 जून की तारीख मुकर्रर की। सुनवाई से एक दिन पहले 25 जून को उनका तबादला हो गया। इसके बाद आए लोया ने 31 अक्टूबर 2014 को सवाल उठाया कि आखिर शाह मुंबई में होते हुए भी उस तारीख पर क्यों नहीं कोर्ट आए। उन्होंने अगली सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर तय की थी।
लोया की 1 दिसंबर को हुई मौत की खबर अगले दिन कुछ ही अखबारों में छपी और इसे मीडिया में उतनी तवज्जो नहीं मिल सकी। दि इंडियन एक्सप्रेस ने लोया की ”मौत दिल का दौरा पड़ने से” हुई बताते हुए लिखा, ”उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि लोया की मेडिकल हिस्ट्री दुरुस्त थी।” मीडिया का ध्यान कुछ वक्त के लिए 3 दिसंबर को इस ओर गया जब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद के बाहर इस मामले में जांच की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया जहां शीतसत्र चल रहा था। अगले ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सीबीआइ को एक पत्र लिखकर लोया की मौत पर आश्चर्य व्यक्त किया।
सांसदों के प्रदर्शन या रुबाबुद्दीन के ख़त का कोई नतीजा नहीं निकला। लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियों को लेकर कोई फॉलो-अप ख़बर मीडिया में नहीं चली।
लोया के परिजनों से कई बार हुए संवाद के आधार पर मैंने इस बात को सिलसिलेवार ढंग से दर्ज किया कि सोहराबुद्दीन के केस की सुनवाई करते वक्त उन्हें किन हालात से गुज़रना पड़ा और उनकी मौत के बाद क्या हुआ। बियाणी ने मुझे अपनी डायरी की प्रति भी दी जिसमें उनके भाई की मौत से पहले और बाद के दिनों का विवरण दर्ज है। इन डायरियों में उन्होंने इस घटना के कई ऐसे आयामों को दर्ज किया है जो उन्हें परेशान करते थे। मैं लोया की पत्नी और बेटे के पास भी गया, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्हें अपनी जान का डर है।
धुले निवासी बियाणी ने मुझे बताया कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके पास एक कॉल आई। दूसरी तरफ़ कोई बार्डे नाम का व्यक्ति था जो खुद को जज कह रहा था। उसने उन्हें लातूर से कोई 30 किलामीटर दूर स्थित गाटेगांव निकलने को कहा जहां लोया का पार्थिव शरीर भेजा गया था। इसी व्यक्ति ने बियाणी और परिवार के अन्य सदस्यों को सूचना दी थी कि लाश का पंचनामा हो चुका है और मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना है।
लोया के पिता आम तौर से गाटेगांव में रहते हैं लेकिन उस वक्त वे लातूर में अपनी एक बेटी के घर पर थे। उनके पास भी फोन आया था कि उनके बेटे की लाश गाटेगांव भेजी जा रही है। बियाणी ने मुझे बताया था, ”ईश्वर बहेटी नाम के आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने पिता को बताया था कि वह लाश के गाटेगांव पहुंचने की व्यवस्था कर रहा है। कोई नहीं जानता कि उसे क्यों, कब और कैसे बृज लोया की मौत की खबर मिली।”
लोया की एक और बहन सरिता मांधाने औरंगाबाद में ट्यूशन सेंटर चलाती हैं और उस वक्त वे लातूर में थीं। उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास सुबह करीब 5 बजे बार्डे का फोन आया था यह बताने के लिए कि लोया नहीं रहे। उन्होंने बताया, ”उसने कहा कि बृज नागपुर में गुज़र गए हैं और हमें उसने नागपुर आने को कहा।” वे तुरंत लातूर के हॉस्पिटल अपने भतीजे को लेने निकल गईं जहां वह भर्ती था, लेकिन ”हम जैसे ही अस्पताल से निकल रहे थे, ईश्वर बहेटी नाम का व्यक्ति वहां आ पहुंचा। मैं अब भी नहीं जानती कि उसे कैसे पता था कि हम सारदा हॉस्पिटल में थे।” मांधाने के अनुसार बहेटी ने उन्हें बताया कि वे रात से ही नागपुर के लोगों से संपर्क में हैं और इस बात पर ज़ोर दिया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि लाश को एम्बुलेंस से गाटेगांव लाया जा रहा है।” उन्होंने कहा, ”वह हमें अपने घर ले गया यह कहते हुए कि वह सब कुछ देख लेगा।” (इस कहानी के छपने के वक्त तक बहेटी को भेजे मेरे सवालों का जवाब नहीं आया था)।
बियाणी के गाटेगांव पहुंचने तक रात हो चुकी थी- बाकी बहनें पहले ही पैतृक घर पहुंच चुकी थीं। बियाणी की डायरी में दर्ज है कि उनके वहां पहुंचने के बाद लाश रात 11.30 के आसपास वहां लाई गई। चौंकाने वाली बात यह थी कि नागपुर से लाई गई लाश के साथ लोया का कोई भी सहकर्मी मौजूद नहीं था। केवल एम्बुलेंस का ड्राइवर था। बियाणी कहती हैं, ”यह चौंकाने वाली बात थी। जिन दो जजों ने उनसे आग्रह किया था कि वे शादी में नागपुर चलें, वे साथ नहीं थे। परिवार को मौत और पंचनामे की खबर देने वाले मिस्टर बार्डे भी साथ नहीं थे। यह सवाल मुझे परेशान करता है: आखिर इस लाश के साथ कोई क्यों नहीं था?” उनकी डायरी में लिखा है, ”वे सीबीआइ कोर्ट के जज थे। उनके पास सुरक्षाकर्मी होने चाहिए थे और कायदे से उन्हें लाया जाना चाहिए था।”
लोया की पत्नी शर्मिला और उनकी बेटी अपूर्वा व बेटा अनुज मुंबई से गाटेगांव एकाध जजों के साथ आए। उनमें से एक ”लगातार अनुज और दूसरों से कह रहा था कि किसी से कुछ नहीं बोलना है।” बियाणी ने मुझे बताया, ”अनुज दुखी था और डरा हुआ भी था, लेकिन उसने अपना हौसला बनाए रखा और अपनी मां के साथ बना रहा।”
बियाणी बताती हैं कि लाश देखते ही उन्हें दाल में कुछ काला जान पड़ा। उन्होंने मुझे बताया, ”शर्ट के पीछे उनकी गरदन पर खून के धब्बे थे।” उन्होंने यह भी बताया कि उनका ”चश्मा गले से नीचे था।” मांधाने ने मुझे बताया कि लोया का चश्मा ”उनकी देह के नीचे फंसा हुआ था।”
उस वक्त बियाणी की डायरी में दर्ज एक टिप्पणी कहती है, ”उनके कॉलर पर खून था। उनकी बेल्ट उलटी दिशा में मोड़ी हुई थी। पैंट की क्लिप टूटी हुई थी। मेरे अंकल को भी महसूस हुआ था कि कुछ संदिग्ध है।” हरकिशन ने मुझे बताया, ”उसके कपड़ों पर खून के दाग थे।” मांधाने ने बताया कि उन्होंने भी ”गरदन पर खून” देखा था। उन्होंने बताया कि ”उनके सिर पर चोट थी और खून था… पीछे की तरफ” और ”उनकी शर्ट पर खून के धब्बे थे।” हरकिशन ने बताया, ”उसकी शर्ट पर बाएं कंधे से लेकर कमर तक खून था।”
नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी उनकी पंचनामा रिपोर्ट हालांकि ”कपड़ों की हालत- पानी से भीगा, खून से सना या क़ै अथवा फीकल मैटर से गंदा” के अंतर्गत हस्तलिखित एंट्री दर्ज करती है- ”सूखा”।
बियाणी को लाश की स्थिति संदिग्ध लगी क्योंकि एक डॉक्टर होने के नाते ”मैं जानती हूं कि पीएम के दौरन खून नहीं निकलता क्योंकि हृदय और फेफड़े काम नहीं कर रहे होते हैं।” उन्होंने कहा कि दोबारा पंचनामे की मांग भी उन्होंने की थी, लेकिन वहां इकट्ठा लोया के दोस्तों और सहकर्मियों ने ”हमें हतोत्साहित किया, यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है।”
हरकिशन बताते हैं कि परिवार तनाव में था और डरा हुआ था लेकिन लोया की अंत्येष्टि करने का उस पर दबाव बनाया गया।
कानूनी जानकार कहते हैं कि यदि लोया की मौत संदिग्ध थी- यह तथ्य कि पंचनामे का आदेश दिया गया, खुद इसकी पुष्टि करता है- तो एक पंचनामा रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए थी और एक मेडिको-लीगल केस दायर किया जाना चाहिए था। पुणे के एक वरिष्ठ वकील असीम सरोदे कहते हैं, ”कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक अपेक्षा की जाती है कि पुलिस विभाग मृतक के तमाम निजी सामान को ज़ब्त कर के सील कर देगा, पंचनामे में उनकी सूची बनाएगा और जस का तस परिवार को सौंप देगा।” बियाणी कहती हैं कि परिवार को पंचनामे की प्रति तक नहीं दी गई।
लोया का मोबाइल फोन परिवार को लौटा दिया गया लेकिन बियाणी कहती हैं कि बहेटी ने उसे लौटाया, पुलिस ने नहीं। वे बताती हैं, ”हमें तीसरे या चौथे दिन उनका मोबाइल मिला। मैंने तुरंत उसकी मांग की थी। उसमें उनकी कॉल और बाकी चीज़ों का विवरण होता। हमें सब पता चल गया होता अगर वह मिल जाता। और एसएमएस भी। इस खबर के एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था, ”सर, इन लोगों से बचकर रहिए।’ वह एसएमएस फोन में था। बाकी सब कुछ डिलीट कर दिया गया था।”
बियाणी के पास लोया की मौत वाली रात और अगली सुबह को लेकर तमाम सवाल हैं। उनमें एक सवाल यह था कि लोया को ऑटोरिक्शा में क्यों और कैसे अस्पताल ले जाया गया जबकि रवि भवन से सबसे करीबी ऑटो स्टैंड दो किलोमीटर दूर है। बियाणी कहती हैं, ”रवि भवन के पास कोई ऑटो स्टैंड नहीं है और लोगों को तो दिन के वक्त भी रवि भवन के पास ऑटो रिक्शा नहीं मिलता। उनके साथ के लोगों ने आधी रात में ऑटोरिक्शा का इंतज़ाम कैसे किया होगा?”
बाकी सवालों के जवाब भी नदारद हैं। लोया को अस्पताल ले जाते वक्त परिवार को सूचना क्यों नहीं दी गई? उनकी मौत होते ही ख़बर क्यों नहीं की गई? पंचनामे की मंजूरी परिवार से क्यों नहीं ली गई या फिर प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही क्यों नहीं सूचित कर दिया गया कि पंचनामा होना है? पोस्ट-मॉर्टम की सिफारिश किसने की और क्यों? आखिर लोया की मौत के बारे ऐसा क्या संदिग्ध था कि पंचनामे का सुझाव दिया गया? दांडे अस्पताल में उन्हें कौन सी दवा दी गई? क्या उस वक्त रवि भवन में एक भी गाड़ी नहीं थी लोया को अस्पताल ले जाने के लिए, जबकि वहां नियमित रूप से मंत्री, आइएएस, आइपीएस, जज सहित तमाम वीआइपी ठहरते हें? महाराष्ट्र असेंबली का शीत सत्र नागपुर में 7 दिसंबर से शुरू होना था और सैकड़ों अधिकारी पहले से ही इसकी तैयारियों के लिए वहां जुट जाते हैं। रवि भवन में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ठहरे बाकी वीआइपी कौन थे?” वकील सरोदे कहते हैं, ”ये सारे सवाल बेहद जायज़ हैं। दांडे अस्पताल में लोया को दी गई चिकित्सा की सूचना परिवार को क्यों नहीं दी गई? क्या इन सवालों के जवाब से किसी के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है?”
बियाणी कहती हैं, ”ऐसे सवाल अब भी परिवार, मित्रों और परिजनों को परेशान करते हैं।”
वे कहती हैं कि उनका संदेह और पुख्ता हुआ जब लोया को नागपुर जाने के लिए आग्रह करने वाले जज परिवार से मिलने उनकी मौत के ”डेढ़ महीने बाद” तक नहीं आए। इतने दिनों बाद जाकर परिवार को लोया के आखिरी क्षणों का विवरण जानने को मिल सका। बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने परिवार को बताया कि लोया को सीने में दर्द रात साढ़े बारह बजे हुआ था, फिर वे उनहें दांडे अस्पताल एक ऑटोरिक्शा में ले गए, और वहां ”वे खुद ही सीढ़ी चढ़कर ऊपर गए और उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई। उन्हें मेडिट्रिना अस्पताल ले जाया गया जहां पहुंचते ही उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।”
इसके बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं। बियाणी ने बताया, ”हमने दांडे अस्पताल में दी गई चिकित्सा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वहां के डॉक्टरों और स्टाफ ने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया।”
मैंने लोया की पोस्ट-मॉर्टम निकलवाई जो नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में की गई थी। यह रिपोर्ट अपने आप में कई सवालों को जन्म देती है।
रिपोर्ट के हर पन्ने पर सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर, सदर थाना, नागपुर के दस्तखत हैं, साथ ही एक और व्यक्ति के दस्तखत हैं जिसने नाम के साथ लिखा है ”मैयाताजा चलतभाऊ” यानी मृतक का चचेरा भाई। ज़ाहिर है, पंचनामे के बाद इसी व्यक्ति ने लाश अपने कब्ज़े में ली होगी। लोया के पिता कहते हैं, ”मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नागपुर में नहीं है। किसने इस रिपोर्ट पर साइन किया, यह सवाल भी अनुत्तरित है।”
इसके अलावा, रिपोर्ट कहती है कि लाश को मेडिटिना अस्पताल से नागपुर मेडिकल कॉलेज सीताबर्दी पुलिस थाने के द्वारा भेजा गया और उसे लेकर थाने का पंकज नामक एक सिपाही आया था, जिसकी बैज संख्या 6238 है। रिपोर्ट के मुताबिक लाश 1 दिसंबर 2014 को दिन में 10.50 पर लाई गई, पोस्ट-मॉर्टम 10.55 पर शुरू हुआ और 11.55 पर खत्म हुआ।
रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस के अनुसार लोया को ”1/12/14 की सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ और 6.15 बजे मौत हुई।” इसमें कहा गया है कि ”पहले उन्हें दांडे अस्पताल ले जाया गया और फिर मेडिट्रिना अस्पताल लाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया।”
रिपोर्अ में मौत का वक्त सबह 6.15 बजे बेमेल जान पड़ता है क्योंकि लोया के परिजनों के मुताबिक उन्हें सुबह 5 बजे से ही फोन आने लग गए थे। मेरी जांच के दौरान नागपुर मेडिकल कॉलेज और सीताबर्दी थाने के दो सूत्रों ने बताया कि उन्हें लोया की मौत की सूचना आधी रात को ही मिल चुकी थी और उन्होंने खुद रात में लाश देखी थी। उनके मुताबिक पोस्ट-मॉर्टम आधी रात के तुरंत बाद ही कर दिया गया था। परिवार के लोगों को आए फोन के अलावा सूत्रों के दिए विवरण पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि लोया की मौत का समय सुबह 6.15 बजे था।
मेडिकल कॉलेज के सूत्र- जो पोस्ट-मॉर्टम जांच का गवाह है- ने मुझे यह भी बताया कि वह जानता था कि ऊपर से आदेश आया था कि ”इस तरह से लाश में चीरा लगाओ कि पीएम हुआ जान पड़े और फिर उसे सिल दो।”
रिपोर्ट मौत की संभावित वजह ”कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी” को बताती है। मुंबई के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्ट हसमुख रावत के मुताबिक ”आम तौर से बुढ़ापे, परिवार की हिस्ट्री, धूमंपान, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह आदि के कारण कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी होती है।” बियाणी कहती हैं कि उनके भाई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था। वे कहती हैं, ”बृज 48 के थे। हमारे माता-पिता 85 और 80 साल के हैं और वे स्वस्थ हैं। उन्हें दिल की बीमारी की कोई शिकायत नहीं है। वे केवल चाय पीते थे, बरसों से दिन में दो घंटे टेबल टेनिस खेलते आए थे, उन्हें न मधुमेह था न रक्तचाप।”
बियाणी ने मुझे बताया कि उन्हें अपने भाई की मौत की आधिकारिक मेडिकल वजह विश्वास करने योग्य नहीं लगती। वे कहती हैं, ”मैं खुद एक डॉक्टर हूं और एसिडिटी हो या खांसी, छोटी सी शिकायत के लिए भी बृज मुझसे ही सलाह लेते थे। उन्हें दिल के रोग की कोई शिकायत नहीं थी और हमारे परिवार में भी इसकी कोई हिस्ट्री नहीं है।”
(निरंजन टाकले की 21 नवंबर 2017 को लिखी यह रिपोर्ताज अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां से साभार प्रकाशित है - संपादक)
भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड बी) ने अपनी रेटिंग जारी की है। शुक्रवार को आई इस रेटिंग में भारत के ग्रेड में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है। यह बीबीबी ही है। जबकि, आउटलुक स्थिर बताया गया है।
यह जानकारी कई टीवी रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से दी गई है। हालांकि, अभी आधिकारिक बयान आना बाकी है।
स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने मोदी सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर उठाए गए कदमों की सराहना तो की, लेकिन रेटिंग अपग्रेड नहीं की।
बता दें कि बीबीबी ग्रेड इन्वेस्टमेंट संबंधित सबसे निचली श्रेणी है।
इससे पहले हाल ही में मूडीज ने भारत की रेटिंग एक पायदान बढ़ाकर बीएए2 कर दी थी। रेटिंग में यह सुधार 13 साल बाद हुआ था। आर्थिक एवं संस्थागत सुधारों से घरेलू अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावनाएं बेहतर होने के कारण एजेंसी ने यह सुधार किया था। इससे पहले साल 2004 में भारत की रेटिंग सुधारकर बीएए3 की गई थी। बीएए3 रेटिंग निवेश श्रेणी का सबसे निचला दर्जा है। 2015 में उसने रेटिंग परिदृश्य को सकारात्मक से स्थिर किया था।
दरअसल, यह रेटिंग किसी भी देश के निवेश माहौल का सूचक होता है। यह निवेशकों को किसी देश में निवेश से संबंधित जोखिमों की जानकारी देता है। इन जोखिमों में राजनीतिक जोखिम भी शामिल होता है।
लंबे समय से भारत को रेटिंग एजेंसियां निवेश की सबसे निचली श्रेणी बीएए3 में रखती आई हैं। मूडीज ने अब इसे एक पायदान ऊपर किया था। रेटिंग में यह सुधार ऐसे समय में किया गया, जब कुछ ही दिनों पहले विश्व बैंक की कारोबार सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिजनस) रिपोर्ट में भारत का स्थान 30 पायदान ऊपर कर 100 कर दिया गया था।
लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड बी) ने अपनी रेटिंग जारी की है। शुक्रवार को आई इस रेटिंग में भारत के ग्रेड में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है। यह बीबीबी ही है। जबकि, आउटलुक स्थिर बताया गया है।









