सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को तगड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने पुणे स्थित समूह की संपत्ति आम्बी वैली की नीलामी के आदेश दिए हैं।
सहारा समूह अपने निवेशकर्ताओं को जमा रकम लौटा पाने में नाकाम रहा जिसके बाद अदालत ने यह फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सहारा समूह के सुब्रत रॉय को इस मामले में 28 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में खुद मौजूद रहने के निर्देश दिए हैं।
शीर्ष अदालत ने 21 मार्च को हुई सुनवाई में सहारा समूह को आगाह किया था कि अगर वह 17 अप्रैल तक बकाया 5,092.6 करोड़ रुपए नहीं जमा कराता, तो पुणे में उसकी आम्बी वैली की 39,000 करोड़ रुपए मूल्य की प्रमुख संपत्ति की नीलामी की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले धन की वसूली के लिए सहारा समूह की इस प्रमुख संपत्ति की कुर्की का आदेश दिया था।
शीर्ष अदालत ने 21 मार्च की सुनवाई में सहारा समूह से दो सप्ताह में उन संपत्तियों की सूची देने को कहा था जिन पर किसी तरह की देनदारी नहीं है और जिन्हें सार्वजनिक नीलामी के लिए रखा जा सकता है ताकि निवेशकों को लौटाए जाने वाले मूल धन के शेष 14,000 करोड़ रुपए की राशि जुटाई जा सके।
निवेशकों से जुटायी गयी मूल राशि 24,000 करोड़ रुपए है जिसे लौटाया जाना है। यह पैसा सेबी-सहारा खाते में जमा कराया जाना है।
न्यायालय ने पिछले साल 28 नवंबर को सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय को जेल से बाहर रहने के लिए 6 फरवरी तक सेबी-सहारा रिफंड खाते में 600 करोड़ रुपए जमा कराने को कहा था।
न्यायालय ने चेतावनी दी थी कि यदि वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें वापस जेल भेज दिया जाएगा।
संसद ने देश में ऐतिहासिक कर सुधार व्यवस्था जीएसटी को लागू करने का मार्ग प्रशस्त करते हुए आज वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े चार विधेयकों को मंजूरी दे दी।
साथ ही सरकार ने आश्वस्त किया कि नयी कर प्रणाली में उपभोक्ताओं और राज्यों के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा जाएगा तथा कृषि पर कर नहीं लगाया जाएगा।
राज्यसभा ने आज केंद्रीय माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 'जीएसटी विधेयक', एकीकृत माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 आई जीएसटी विधेयक', संघ राज्य क्षेत्र माल एवं सेवाकर विधेयक 2017 और माल एवं सेवाकर 'राज्यों को प्रतिकर' विधेयक 2017 को सम्मिलित चर्चा के बाद लोकसभा को ध्वनिमत से लौटा दिया। इन विधेयकों पर लाये गये विपक्ष के संशोधनों को उच्च सदन ने खारिज कर दिया।
धन विधेयक होने के कारण इन चारों विधेयकों पर राज्यसभा में केवल चर्चा करने का अधिकार था। लोकसभा 29 मार्च को इन विधेयकों को मंजूरी दे चुकी है।
वस्तु एवं सेवा कर संबंधी विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विपक्ष की इन आशंकाओं को निर्मूल बताया कि इन विधेयकों के जरिये कराधान के मामले में संसद के अधिकारों के साथ समझौता किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह है कि इसी संसद ने संविधान में संशोधन कर जीएसटी परिषद को करों की दर की सिफारिश करने का अधिकार दिया है।
जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद पहली संघीय निर्णय करने वाली संस्था है। संविधान संशोधन के आधार पर जीएसटी परिषद को मॉडल कानून बनाने का अधिकार दिया गया। जहां तक कानून बनाने की बात है तो यह संघीय ढांचे के आधार पर होगा, वहीं संसद और राज्य विधानसभाओं की सर्वोच्चता बनी रहेगी। हालांकि इन सिफारिशों पर ध्यान रखना होगा क्योंकि अलग-अलग राज्य अगर-अलग दर तय करेंगे तो अराजक स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। यह इसकी सौहार्दपूर्ण व्याख्या है और इसका कोई दूसरा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन कर यह सुनिश्चित किया गया है कि यह देश का एकमात्र ऐसा कर होगा जिसे राज्य एवं केंद्र एक साथ एकत्र करेंगे। एक समान कर बनाने की बजाए कई कर दर होने के बारे में आपत्तियों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कई खाद्य उत्पाद हैं जिनपर अभी शून्य कर लगता है और जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद भी कोई कर नहीं लगेगा। कई चीजें ऐसी होती हैं जिन पर एक समान दर से कर नहीं लगाया जा सकता। जैसे तंबाकू, शराब आदि की दरें ऊँची होती हैं जबकि कपड़ों पर सामान्य दर होती है।
जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद में चर्चा के दौरान यह तय हुआ कि आरंभ में कई कर लगाना ज्यादा सरल होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद ने विचार-विमर्श के बाद जीएसटी व्यवस्था में 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें तय की है। लक्जरी कारों, बोतल बंद पेयों, तंबाकू उत्पाद जैसी अहितकर वस्तुओं एवं कोयला जैसी पर्यावरण से जुड़ी सामग्री पर इसके ऊपर अतिरिक्त उपकर भी लगाने की बात कही है।
उन्होंने कहा कि 28 प्रतिशत से अधिक लगने वाला उपकर (सेस) मुआवजा कोष में जायेगा और जिन राज्यों को नुकसान हो रहा है, उन्हें इसमें से राशि दी जायेगी। ऐसा भी सुझाव आया कि इसे कर के रूप में लगाया जाए। लेकिन कर के रूप में लगाने से उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता। बहरहाल, उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर नहीं लगाया जायेगा।
जेटली ने कहा कि मुआवजा उन राज्यों को दिया जायेगा जिन्हें जीएसटी प्रणाली लागू होने से नुकसान हो रहा हो। यह आरंभ के पांच वर्षो के लिए होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के दौरान इसलिए जीएसटी पर आमसहमति नहीं बन सकी क्योंकि नुकसान वाले राज्यों को मुआवजे के लिए कोई पेशकश नहीं की गई थी। जीएसटी में मुआवजे का प्रावधान 'डील करने में सहायक' हुआ और राज्य साथ आए।
जीएसटी में रीयल इस्टेट क्षेत्र को शामिल नहीं किये जाने पर कई सदस्यों की आपत्ति पर स्पष्टीकरण देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें राज्यों को काफी राजस्व मिलता है। इसमें रजिस्ट्री तथा अन्य शुल्कों से राज्यों की आय होती है इसलिए राज्यों की राय के आधार पर इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीएसटी परिषद में कोई भी फैसला लेने में केंद्र का वोट केवल एक तिहाई है जबकि दो तिहाई वोट राज्यों को है। इसलिए कोई भी फैसला करते समय केंद्र अपनी राय थोपने के पक्ष में नहीं है।
वस्तु एवं सेवा कर को संवैधानिक मंजूरी प्राप्त पहला संघीय अनुबंध करार देते हुए जेटली ने कहा कि उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर का भार नहीं डालते हुए जीएसटी के माध्यम से देश में 'एक राष्ट्र, एक कर' की प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद कर ढांचे को सर्वसम्मति से तय कर रही है और इस बारे में अब तक 12 बैठकें हो चुकी हैं। यह विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझी संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है और यह ऐसी पहली पहल है।
जीएसटी के लागू होने पर केंद्रीय स्तर पर लगने वाले उत्पाद शुल्क, सेवाकर और राज्यों में लगने वाले मूल्य वर्धित कर (वैट) सहित कई अन्य कर इसमें समाहित हो जायेंगे। जेटली ने विधेयकों को स्पष्ट करते हुए कहा कि केंद्रीय जीएसटी संबंधी विधेयक के माध्यम से उत्पाद, सेवा कर और अतिरिक्त सीमा शुल्क समाप्त हो जाने की स्थिति में केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा। समन्वित जीएसटी या आईजीएसटी के जरिये वस्तु और सेवाओं की राज्यों में आवाजाही पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा।
कर छूट के संबंध में मुनाफे कमाने से रोकने के उपबंध के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि अगर 4.5 प्रतिशत कर छूट दी जाती है तब इसका अर्थ यह नहीं कि उसे निजी मुनाफा माना जाए बल्कि इसका लाभ उपभोक्ताओं को भी दिया जाए। इस उपबंध का आशय यही है।
वित्त मंत्री ने कहा कि रियल इस्टेट की तरह ही स्थिति शराब और पेट्रोलियम उत्पादों के संबंध में भी थी। राज्यों के साथ चर्चा के बाद पेट्रोलियम पदार्थो को इसके दायरे में लाया गया है, लेकिन इसे अभी शून्य दर के तहत रखा गया है। इस पर जीएसटी परिषद विचार करेगी। शराब अभी भी इसके दायरे से बाहर है।
वित्त मंत्री ने कहा कि पहले एक व्यक्ति को व्यवसाय के लिए कई मूल्यांकन एजेंसियों के पास जाना पड़ता था। आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य वैट, मनोरंजन कर, प्रवेश शुल्क, लक्जरी टैक्स एवं कई अन्य कर से गुजरना पड़ता था।
वित्त मंत्री ने कहा कि वस्तुओं और सेवाओं का देश में सुगम प्रवाह नहीं था। ऐसे में जीएसटी प्रणाली को आगे बढ़ाया गया। एक ऐसा कर जहां एक मूल्यांकन अधिकारी हो। अधिकतर स्व मूल्यांकन हों और आॅडिट मामलों को छोड़कर केवल सीमित मूल्यांकन हो।
जेटली ने कहा कि कर के ऊपर कर लगता है जिससे मु्रदास्फीति की प्रवृत्ति बढ़ती है। इसलिए सारे देश को एक बाजार बनाने का विचार आया। यह बात आई कि सरल व्यवस्था देश के अंदर लाई जाए। कृषि को जीएसटी के दायरे में लाने को निर्मूल बताते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि एवं कृषक को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 23 के तहत कृषक एवं कृषि को छूट मिली हुई है। इसलिए इस छूट की व्याख्या के लिए परिभाषा में इसे रखा गया है। इस बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जेटली ने कहा कि कृषि उत्पाद जब शून्य दर वाले हैं तब इस बारे में कोई भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए।
इस बारे में कांग्रेस की आपत्तियों को खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि 29 राज्य, दो केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र ने इस पर विचार किया जिसमें कांग्रेस शासित प्रदेश के आठ वित्त मंत्री शामिल थे। ''तब क्या इन सभी ने मिलकर एक खास वर्ग के खिलाफ साजिश की?'' जीएसटी लागू होने के बाद वस्तु एवं जिंस की कीमतों में वृद्धि की आशंकाओं को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कर की दर वर्तमान स्तर पर रखी जाएगी ताकि इसका मुद्रास्फीति संबंधी प्रभाव नहीं पड़े।
जेटली ने कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा जीएसटी के बारे में अपना एक विधान लाएगी। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के वित्त मंत्री ने जीएसटी परिषद की सभी बैठकों में भाग लिया है।
उच्च सदन ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन का जो संशोधन खारिज किया उसमें कहा गया था कि जीएसटी परिषद के सभी फैसलों की संसद से मंजूरी दिलवायी जानी चाहिए।
भारत में पेट्रोल व डीजल के दाम शुक्रवार मध्यरात्रि से कम हो गए हैं। पेट्रोल 3.77 रुपये प्रति लीटर व डीजल 2.91 रुपये प्रति लीटर सस्ता किया गया है।
सार्वजनिक तेल कंपनियों ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में इस कटौती की घोषणा की है। इस समय दिल्ली में पेट्रोल का दाम 71.14 रुपये प्रति लीटर व डीजल का दाम 59.02 रुपये प्रति लीटर है।
इंडियन आयल कारपोरेशन का कहना है कि पेट्रोल के दाम में 3.77 रुपये प्रति लीटर कटौती की गई है। इसमें राज्य लेवी शामिल नहीं है। यानी स्थानीय लेवी को शामिल करने पर कटौती अधिक होगी।
इसी तरह डीजल के दाम में 2.91 रुपये प्रति लीटर कटौती की गई है। इस कटौती में राज्य लेवी शामिल नहीं है। इससे पहले इनके दाम में 16 जनवरी को संशोधन किया गया था।
मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस जियो ने शुक्रवार को कहा कि अब तक 7.2 करोड़ ग्राहकों ने उसकी प्राइम सदस्यता ली है। इसके साथ ही कंपनी ने इस पेशकश की अवधि 15 अप्रैल तक बढाने की घोषणा की है।
कंपनी ने कहा है कि अप्रत्याशित मांग को देखते हुए उसने जियो प्राइम पेशकश की अवधि बढाई है। ग्राहक अब 15 अप्रैल तक प्राइम के सदस्य बन सकते हैं।
इसके साथ ही कंपनी ने 15 अप्रैल तक 303 रुपये या अधिक राशि का रिचार्ज करवाने वालों को तीन महीने तक कंपलीमेंटरी पेशकश की घोषणा की है। कंपनी का प्राइम सदस्य बनने की अवधि आज समाप्त होनी थी।
कंपनी के बयान में कहा गया है कि उसके जो ग्राहक 31 मार्च तक जियो प्राइम की सदस्यता नहीं ले पाये वे 15 अप्रैल तक 99 रुपये का भुगतान कर इसके सदस्य बन सकते हैं और 303 रुपये या अन्य मूल्य का प्लान खरीद सकते हैं।
इसके साथ ही कंपनी ने जियो प्राइम सदस्यों को जियो समर सरप्राइज देने की घोषणा की है। कंपनी के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने ग्राहकों को पत्र में कहा है कि 15 अप्रैल से पहले 303 रुपये या अधिक राशि का रिचार्ज करवाने वाले प्राइम ग्राहकों के लिए पहले तीन महीने सेवाएं कंपलीमेंटरी आधार पर दी जाएंगी। उनके लिए शुल्क योजना जुलाई में, कंपलीमेंटर सेवा समाप्त होने के बाद ही लागू होगी।
उल्लेखनीय है कि कंपनी ने अपनी सेवाओं की औपचारिक शुरूआत पिछले साल सितंबर में शुरू की है।
एक अप्रैल से कार, बाइक और हेल्थ का इंश्योरेंस प्रीमियम महंगा हो जाएगा। इंश्योरेंस रेग्युलेट्री एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (इरडा) ने इसके लिए मंजूरी दे दी है।
इससे पहले इरडा ने थर्ड पार्टी इन्श्योरेंस का प्रीमियम रेट बढ़ाने को हरी झंडी दे दी थी। इस फैसले के बाद बीमा प्रीमियम की राशि में मौजूदा दरों में पांच फीसदी की बढ़ोत्तरी या कटौती की जा सकती है।
इरडा का कहना है कि बीमा एजेंटों का कमीशन बढ़ जाएगा और इसके साथ ही उनको रिवार्ड भी मिलेगा। इसके अलावा जो एजेंट्स अच्छा काम करके दें, उनको कंपनी की तरफ से अलग से प्रोत्साहन राशि मिलेगी।
इरडा का कहना है कि बीमा कंपनियों को यह भी सर्टिफिकेट देना होगा कि जो पॉलिसी पहले बिक चुकी है, उनमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया जाएगा। इतना ही नहीं, सर्टिफिकेट में यह भी बताना होगा कि प्रीमियम रेट में इस तरह का कोई बदलाव नहीं होगा जिससे पॉलिसी लेने वाले को नुकसान हो।
इरडा ने कंपनियों से कहा है कि वो इस हिसाब से भी प्रीमियम का रेट अपने हिसाब से तय कर सकेंगे।
रिजर्व बैंक ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि आखिर भारतीयों को 31 मार्च 2017 तक नोट बदलने की अनुमति क्यों नहीं दी गयी। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के दौरान लोगों को 31 मार्च तक नोट बदलने की अनुमति देने का आश्वासन दिया था।
केंद्रीय बैंक ने इस विषय पर सूचना के अधिकार कानून के तहत पूछे गये सवाल का जवाब देने से इनकार करते हुए कहा कि पारदर्शिता कानून के तहत सवाल सूचना की परिभाषा में नहीं आता।
प्रधानमंत्री ने आठ नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करते हुए देशवासियों को आश्वस्त किया था कि वे 1,000 और 500 रुपये के नोट 31 मार्च तक बदल सकते हैं। बाद में यह फैसला किया गया है कि केवल प्रवासी भारतीयों के नोट 31 मार्च तक बदले जाएंगे।
नोट जमा करने की समयसीमा के बारे में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।
अपने जवाब में रिजर्व बैंक ने नोट बदलने की सुविधा 31 मार्च तक केवल प्रवासी भारतीय तक सीमित करने के फैसले से संबंधित फाइल नोटिंग के बारे में कुछ भी बताने से मना कर दिया। उसने कहा कि यह देश के आर्थिक हित के खिलाफ होगा।
आवेदन में 31 मार्च तक भारतीयों के लिये पुराने नोट बदलने की अनुमति नहीं देने के कारण के बारे में जानकारी मांगी गयी थी। प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया था कि लोगों को 31 मार्च तक पुराना नोट बैंकों में जमा करने की अनुमति होगी।
केंद्रीय जन सूचना अधिकारी सुमन रे ने कहा कि जो सूचना मांगी गयी है, वह आरटीआई कानून की धारा 2 (एफ) के तहत नहीं आता।
पूर्व सूचना अधिकारी शैलेष गांधी ने कहा कि आरटीआई कानून की धारा 8 (2) के तहत अगर जानकारी व्यापक रूप से जनहित में है तो उसके खुलासे से छूट होने पर भी उसे सार्वजनिक करने की अनुमति है।
उच्चतम न्यायालय ने आज सहारा समूह को आगाह किया कि यदि उसने वायदे के मुताबिक 17 अप्रैल तक 5,092.6 करोड़ रुपए जमा नहीं कराए, तो उसकी पुणे में अंबे वैली की 39,000 करोड़ रुपए मूल्य की प्रमुख संपत्ति की नीलामी की जाएगी।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने न्यूयार्क के प्लाजा होटल में सहारा की हिस्सेदारी 55 करोड़ डालर में लेने की इच्छा जताने वाली अंतरराष्ट्रीय रीयल एस्टेट कंपनी को निर्देश दिया है कि वह अपनी सही मंशा को दिखाने के लिए शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के बजाय सेबी-सहारा रिफंड खाते में 750 करोड़ रुपए जमा कराए।
न्यायालय की इस पीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति ए के सीकरी भी शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, ''यदि वायदे के मताबिक तय समयसीमा में यह पैसा जमा नहीं कराया गया, तो हम सहारा की अंबे वैली परियोजना की नीलामी करेंगे।'' उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले धन की वसूली के लिए सहारा समूह की इस प्रमुख संपत्ति की कुर्की का आदेश दिया था।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही सहारा समूह से दो सप्ताह में उन संपत्तियों की सूची देने को कहा है जिन पर किसी तरह की देनदारी नहीं है और जिन्हें सार्वजनिक नीलामी के लिए रखा जा सकता है ताकि निवेशकों को लौटाए जाने वाले मूल धन के शेष 14,000 करोड़ रुपए की राशि जुटाई जा सके। निवेशकों से जुटायी गयी मूल राशि 24,000 करोड़ रुपए है जिसे लौटाया जाना है। यह पैसा सेबी-सहारा खाते में जमा कराया जाना है। न्यायालय ने पिछले साल 28 नवंबर को सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय को जेल से बाहर रहने के लिए 6 फरवरी तक सेबी-सहारा रिफंड खाते में 600 करोड़ रुपए जमा कराने को कहा था। न्यायालय ने चेतावनी दी थी कि यदि वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें वापस जेल भेज दिया जाएगा।
राय को 6 मई, 2016 को अपनी मां की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए चार सप्ताह का पैरोल दिया गया था। उसके बाद से अदालत ने उनका पैरोल बढ़ाया है। राय को 4 मार्च, 2014 को जेल भेजा गया था। निवेशकों से अवैध तरीके से जुटाए गए 24,000 करोड़ रुपये के धन को उन्हें वापस करने के न्यायालय के 31 अगस्त 2012 के आदेश का सहारा समूह की दो कंपनियों सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कारपोरेशन (एसआईआरईसीएल) तथा सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कार्प लि. (एसएचआईसीएल) द्वारा अनुपालन नहीं किए जाने पर राय के साथ कंपनी के दो अन्य निदेशकों रवि शंकर दुबे और अशोक राय चौधरी को भी गिरफ्तार किया गया था।
भारतीय स्टेट बैंक में एक अप्रैल को पांच सहयोगी बैंकों का विलय हो जाएगा। इसके बाद एसबीआई ने इन बैंकों की करीब आधी शाखाओं को बंद करने का फैसला किया है जिसमें तीन बैंकों का मुख्यालय भी शामिल है। बैंक शाखाओं की बंद करने की प्रक्रिया 24 अप्रैल से शुरू होगी।
एसबीआई के प्रबंध निदेशक दिनेश कुमार खारा ने बताया, ''पांच सहयोगी बैंकों के मुख्यालयों में से हम केवल दो को जारी रखेंगे। तीन सहयोगी बैंकों की शाखाओं के साथ 27 जोनल कार्यालय, 81 क्षेत्रीय कार्यालय और 11 नेटवर्क कार्यालयों को बंद कर दिया जाएगा।''
खारा ने कहा, ''हम सहयोगी बैंकों की शाखाओं को 24 अप्रैल तक बनाए रखेंगे और उसके बाद इनको बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी जिनमें नियंत्रण कार्यालय, मुख्यालय, क्षेत्रीय कार्यालय, जोनल कार्यालय और नेटवर्क कार्यालय शामिल हैं। दूसरी ओर बैंक की शाखाओं को इसलिए बंद किया जा रहा है ताकि एक ही क्षेत्र में शाखाओं का दोहराव न हो।
प्रबंधक निदेशक ने कहा, ''हम नियंत्रण संरचना में किसी प्रकार के दोहराव को हटाना चाहते हैं। इस दौरान बैंक बंद होने से लगभग 1,107 कर्मचारी प्रभावित होंगे, उनको फिर से नई पोस्टिंग दी जाएगी।''
जिन पांच सहयोगी बैंकों का एसबीआई में विलय हो रहा है, उनमें एसबीबीजे (स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर), एसबीएम (स्टेट बैंक ऑफ मैसूर), एसबीटी (स्टेट बैंक ऑफ ट्रावनकोर), एसबीपी (स्टेट बैंक ऑफ पटियाला) और एसबीएच (स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद) शामिल हैं।
एसबीआई देश का सबसे बड़ा बैंक है, जिसकी परिसंपत्तियां 30.72 लाख करोड़ रुपये की है और वैश्विक रैकिंग में यह 64वें नंबर पर है (दिसंबर 2015 के आंकड़ों पर आधारित, दिसंबर 2016 के आंकड़े अभी तक आए नहीं हैं।)
इस विलय के बाद एसबीआई की परिसंपत्तियां बढ़कर 40 लाख करोड़ रुपये हो जाएंगी। इसके साथ ही यह दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल हो जाएगा। वहीं एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष का कहना है कि विलय के बाद बैंक दुनिया में 45 नंबर पर आ जाएगा।
गौरतलब है कि सरकार ने एसबीआई व इसके पांच सहयोगी बैंकों की विलय योजना को 15 फरवरी को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। एसबीआई में उसके अनुषंगी बैंकों को मिलाने के प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया। बैठक के बाद इन बैंकों के बोर्डों के पास ये प्रस्ताव भेजे गए थे जिन्होंने उसे मंजूरी दे दी थी।
यूपी में सरकार बनाने में कामयाब होने के बाद बीजेपी का पूरा जोर जनता से किए गए वादों को निभाने पर होगा। पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि अगर वह सत्ता में आती है तो सभी अवैध बूचड़खानों को बंद किया जाएगा।
हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ओर से कहा गया था कि 12 मार्च से (वोटों की गिनती के अगले दिन) राज्य के सभी बूचड़खाने बंद होंगे। शाह का यह बयान पहले चरण के चुनाव के बाद आया था।
रविवार को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बीजेपी के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने शाह के वादे को याद दिलाया। शर्मा ने योगी आदित्यनाथ की ओर से अपने सभी मंत्रियों को ऐसे बयानों से बचने के लिए कहा है जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हो।
यूपी में स्लाटर हाउस (बूचड़खाने) पर पाबंदी लगाई जाती है तो इसका असर इकोनॉमी और रोजगार दोनों पर पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से यूपी को हजारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी ने साल 2014-15 में 7,515.14 लाख किलो भैस के मीट, 1171.65 लाख किलो बकरे का मीट, 230.99 लाख किलो भेड़ का मांस और 1410.32 लाख किलो सुअर के मांस का उत्पादन किया था।
वर्तमान में भारत में सरकार द्वारा स्वीकृत 72 बूचड़खाने कम मांस प्रोसेसिंग प्लांट हैं, जिनमें से अकेले 38 उत्तर प्रदेश में हैं। साल 2011 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा जारी लिस्ट के मुताबिक, देशभर में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त करीब 30 बूचड़खाने थे, जिसमें से आधे यूपी में थे। साल 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 53 हो गई। इसके बाद वाले साल में 11 बूचड़खाने की संख्या और बढ़ गई। इस तरह कुल बूचड़खानों की संख्या 62 हो गई। वर्तमान में यूपी में 38 स्लाटर हाउस है, जिनमें से 7 अलीगढ़ और 5 गाजियाबाद में है।
साल 2016 में भारत ने पूरे विश्व में 13,14,158.05 मीट्रिक टन भैस के मांस का निर्यात किया था, जिसकी कीमत 26,681.56 करोड़ रुपए थी। ज्यादातर निर्यात मुस्लिम देशों जैसे मलेशिया, मिस्त्र, सऊदी अरब और इराक में किया गया। उत्तर प्रदेश में स्लाटर हाउस को 15 साल से बड़े भैसे या बैल या फिर अस्वस्थ्य नस्ल को काटने की इजाजत है।
हालांकि सरकार की ओर से अभी तक यह साफ नहीं किया गया है कि वह भैस के मांस का कारोबार करने वालों को टारगेट करेगी या फिर अन्य मीट के अन्य उत्पादों में कारोबार करने वालों को भी टारगेट करेगी।
APEDA की साल 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी देश में सबसे ज्यादा मीट का उत्पादन करने वाला राज्य (19.1 पर्सेंट) है। इसके बाद आंध्र प्रदेश (15.2 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (10.9 प्रतिशत) का नंबर आता है। साल 2008 से 2013 के दौरान यूपी मीट उत्पादन में सबसे आगे रहा है।
2007 में किए गए 18 वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक यूपी गोजातीय जनसंख्या के मामले में भी सभी राज्यों से आगे है। 2012 में आए 19वें पशुधन जनगणना में भी यह बढ़त बरकरार रही। राज्य में इसकी संख्या 29 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2,38,12,000 से बढ़कर 3,06,25,000 हो गई है। वहीं, आंध्र प्रदेश में 20 प्रतिशत गिरावट के साथ जनसंख्या 1,32,71,000 से घटकर 1,06,22,000 हो गई है।
निर्यात पर प्रतिबंध से राजस्व के मामले में कम से कम 11,350 करोड़ (2015-16) की कमी हो सकती है। बीजेपी की सरकार अगर अपने पूरे कार्यकाल यानी की 5 साल के लिए बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाती है तो उस हिसाब से 56 हजार करोड़ से ज्यादा (5 साल के लिए लागू रहा बैन तो) का नुकसान होगा। साल 2015-16 में यूपी ने 5,65,958.20 मीट्रिक टन भैस के मीट का निर्यात किया था। संसाधनों या गोजातीय जनसंख्या के साथ देश में कोई अन्य ऐसा राज्य नहीं है, जो यूपी की जगह को भर सके।
अमेरिका में रहने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री टी एन श्रीनिवासन ने नोटबंदी के कदम के प्रभावी होने पर गंभीर संदेह जताते हुए कहा है कि इससे कालेधन की समस्या से लड़ने में मदद नहीं मिलेगी।
येल यूनिवर्सिटी से जुड़े श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार से निपटने के लिए 'बहुत सोची समझी' नीति अपनाए जाने की जरूरत है।
एक समय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को पढ़ाने वाले श्रीनिवासन ने पीटीआई/भाषा से कहा, ''भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई सोची समझी भ्रष्टाचार निरोधक नीति न तो थी और न है। भारत में कार्यान्वित नोटबंदी जैसी नीति से भ्रष्टाचार से निपटे जाने और पारदर्शिता बढाया जाने की संभावना नहीं है।''
उन्होंने कहा, ''हालांकि नोटबंदी की कोई पूर्व घोषणा नहीं की गई. लेकिन सरकार के कार्यान्वयन में तैयारी का अभाव व सोच की कमी दिखी।''
श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार ने 500 व 1000 रुपयों के नोटों को चलन से बाहर तो कर दिया, लेकिन इसका कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं बताया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 500, 1,000 रुपए के नोटों को अमान्य कर दिया था। इससे चलन में रही 86 प्रतिशत मुद्रा बाहर हो गई। तब कहा गया था कि इससे देश में भ्रष्टाचार कम होगा। नकली नोटों, आतंकवाद पर भी नकेल लगाने की बात कही गई थी।
हालांकि, अबतक बड़े पैमाने पर ऐसा देखने को नहीं मिला है। पाकिस्तान से कश्मीर में घुसने वाले कई आतंकियों के पास से 2000 रुपए के नए नोट मिले थे।