अर्थव्यवस्था

योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही यूपी को 56 हजार करोड़ रुपए की चपत

यूपी में सरकार बनाने में कामयाब होने के बाद बीजेपी का पूरा जोर जनता से किए गए वादों को निभाने पर होगा। पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि अगर वह सत्ता में आती है तो सभी अवैध बूचड़खानों को बंद किया जाएगा।

हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ओर से कहा गया था कि 12 मार्च से (वोटों की गिनती के अगले दिन) राज्य के सभी बूचड़खाने बंद होंगे। शाह का यह बयान पहले चरण के चुनाव के बाद आया था।

रविवार को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बीजेपी के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने शाह के वादे को याद दिलाया। शर्मा ने योगी आदित्यनाथ की ओर से अपने सभी मंत्रियों को ऐसे बयानों से बचने के लिए कहा है जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हो।

यूपी में स्लाटर हाउस (बूचड़खाने) पर पाबंदी लगाई जाती है तो इसका असर इकोनॉमी और रोजगार दोनों पर पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से यूपी को हजारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हो सकता है।

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी ने साल 2014-15 में 7,515.14 लाख किलो भैस के मीट, 1171.65 लाख किलो बकरे का मीट, 230.99 लाख किलो भेड़ का मांस और 1410.32 लाख किलो सुअर के मांस का उत्पादन किया था।

वर्तमान में भारत में सरकार द्वारा स्वीकृत 72 बूचड़खाने कम मांस प्रोसेसिंग प्लांट हैं, जिनमें से अकेले 38 उत्तर प्रदेश में हैं। साल 2011 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा जारी लिस्ट के मुताबिक, देशभर में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त करीब 30 बूचड़खाने थे, जिसमें से आधे यूपी में थे। साल 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 53 हो गई। इसके बाद वाले साल में 11 बूचड़खाने की संख्या और बढ़ गई। इस तरह कुल बूचड़खानों की संख्या 62 हो गई। वर्तमान में यूपी में 38 स्लाटर हाउस है, जिनमें से 7 अलीगढ़ और 5 गाजियाबाद में है।

साल 2016 में भारत ने पूरे विश्व में 13,14,158.05 मीट्रिक टन भैस के मांस का निर्यात किया था, जिसकी कीमत 26,681.56 करोड़ रुपए थी। ज्यादातर निर्यात मुस्लिम देशों जैसे मलेशिया, मिस्त्र, सऊदी अरब और इराक में किया गया। उत्तर प्रदेश में स्लाटर हाउस को 15 साल से बड़े भैसे या बैल या फिर अस्वस्थ्य नस्ल को काटने की इजाजत है।

हालांकि सरकार की ओर से अभी तक यह साफ नहीं किया गया है कि वह भैस के मांस का कारोबार करने वालों को टारगेट करेगी या फिर अन्य मीट के अन्य उत्पादों में कारोबार करने वालों को भी टारगेट करेगी।

APEDA की साल 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी देश में सबसे ज्यादा मीट का उत्पादन करने वाला राज्य (19.1 पर्सेंट) है। इसके बाद आंध्र प्रदेश (15.2 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (10.9 प्रतिशत) का नंबर आता है। साल 2008 से 2013 के दौरान यूपी मीट उत्पादन में सबसे आगे रहा है।

2007 में किए गए 18 वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक यूपी गोजातीय जनसंख्या के मामले में भी सभी राज्यों से आगे है। 2012 में आए 19वें पशुधन जनगणना में भी यह बढ़त बरकरार रही। राज्य में इसकी संख्या 29 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2,38,12,000 से बढ़कर 3,06,25,000 हो गई है। वहीं, आंध्र प्रदेश में 20 प्रतिशत गिरावट के साथ जनसंख्या 1,32,71,000 से घटकर 1,06,22,000 हो गई है।

निर्यात पर प्रतिबंध से राजस्व के मामले में कम से कम 11,350 करोड़ (2015-16) की कमी हो सकती है। बीजेपी की सरकार अगर अपने पूरे कार्यकाल यानी की 5 साल के लिए बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाती है तो उस हिसाब से 56 हजार करोड़ से ज्यादा (5 साल के लिए लागू रहा बैन तो) का नुकसान होगा। साल 2015-16 में यूपी ने 5,65,958.20 मीट्रिक टन भैस के मीट का निर्यात किया था। संसाधनों या गोजातीय जनसंख्या के साथ देश में कोई अन्य ऐसा राज्य नहीं है, जो यूपी की जगह को भर सके।

उर्जित पटेल के टीचर ने नोटबंदी पर उठाए सवाल

अमेरिका में रहने वाले प्रमुख अर्थशास्त्री टी एन श्रीनिवासन ने नोटबंदी के कदम के प्रभावी होने पर गंभीर संदेह जताते हुए कहा है कि इससे कालेधन की समस्या से लड़ने में मदद नहीं मिलेगी।

येल यूनिवर्सिटी से जुड़े श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार से निपटने के लिए 'बहुत सोची समझी' नीति अपनाए जाने की जरूरत है।

एक समय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को पढ़ाने वाले श्रीनिवासन ने पीटीआई/भाषा से कहा, ''भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई सोची समझी भ्रष्टाचार निरोधक नीति न तो थी और न है। भारत में कार्यान्वित नोटबंदी जैसी नीति से भ्रष्टाचार से निपटे जाने और पारदर्शिता बढाया जाने की संभावना नहीं है।''

उन्होंने कहा, ''हालांकि नोटबंदी की कोई पूर्व घोषणा नहीं की गई. लेकिन सरकार के कार्यान्वयन में तैयारी का अभाव व सोच की कमी दिखी।''

श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार ने 500 व 1000 रुपयों के नोटों को चलन से बाहर तो कर दिया, लेकिन इसका कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं बताया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 500, 1,000 रुपए के नोटों को अमान्य कर दिया था। इससे चलन में रही 86 प्रतिशत मुद्रा बाहर हो गई। तब कहा गया था कि इससे देश में भ्रष्टाचार कम होगा। नकली नोटों, आतंकवाद पर भी नकेल लगाने की बात कही गई थी।

हालांकि, अबतक बड़े पैमाने पर ऐसा देखने को नहीं मिला है। पाकिस्तान से कश्मीर में घुसने वाले कई आतंकियों के पास से 2000 रुपए के नए नोट मिले थे।

आज से बैंक खातों से पैसे निकालने की लिमिट खत्म

आज से सेविंग अकाउंट से मनचाहा कैश निकाल सकेंगे। आज से सेविंग अकाउंट्स से कैश निकासी की सीमा को खत्म हो गई है।

इसके अलावा आज से ही नोटबंदी के बाद विभिन्न खातों से निकासी पर लगाई गई सभी प्रकार की सीमाएं समाप्त हो जाएंगी। अब तक सेविंग अकाउंट्स से हर सप्ताह अधिकतम 50 हजार रुपये ही निकाले जा सकते थे।

नोटबंदी के बाद आरबीआई ने पर्याप्त मात्रा में नए नोट बैंकों तथा एटीएम में पहुंचने से पहले नकद निकासी की सीमा तय कर दी थी। जैसे-जैसे नए नोटों की आपूर्ति और अर्थव्यवस्था में उनका प्रचलन बढ़ता जा रहा है, आरबीआई नकद निकासी पर लगी सीमाओं में ढील देता जा रहा है, जबकि 13 मार्च से इन्हें पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।

हालांकि इसके बावजूद बैंकों को अपनी ओर से एटीएम से पैसे निकालने की सीमा तय करने का अधिकार दिया गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को रात आठ बजे 500 और 1000 के पुराने नोटों को चलन बंद कर दिया था। आरबीआइ ने बैंक शाखाओं और एटीएम से नकदी की निकासी पर कई तरह की शर्तें लगा दी थीं।

हालांकि, नकदी की स्थिति सुधरने के साथ समय-समय पर इनमें से ज्यादातर को हटाया जाता रहा।

12 मार्च तक सेविंग खातों से नकद निकासी की सीमा 24 हजार रुपए थी जो भी रकम एटीएम निकाली जाती वह भी सेविंग खाते से निकासी में गिना जाता है।

आज से बचत खाते से नकद निकासी की सीमा को भी खत्म कर दिया गया। चालू खातों, ओवरड्राफ्ट और कैश क्रेडिट खातों से निकासी की सीमा 30 जनवरी को ही समाप्त हो गई थी।

मोदी के मेक इन इंडिया प्‍लान को झटका, नौकरियां जाने का खतरा बढ़ा

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की चाहे चाहे जितनी भी बातें कर ले और निवेशकों का आकर्षित करने के प्लान बना ले लेकिन उसका असर होता नहीं दिख रहा है। सात साल में पहली बार भारत में निर्मित माल की बिक्री में 3.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इस स्थिति से निर्माण क्षेत्र में छंटनी की आशंका बढ़ गई है, लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और बैंकों के डिफॉल्टर्स की सूची लंबी हो सकती है। जानकारों का कहना है कि नोटबंदी से पहले जारी वैश्विक मंदी और कमजोर मांग की वजह से भारत में निर्मित वस्तुओं की मांग कम हुई है। यह गिरावट लेदर, टेक्सटाइल और स्टील सेक्टर में ज्यादा देखने को मिला है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक साल 2009-10 में निर्माण क्षेत्र में विकास दर 12.9 फीसदी था जो 2015-16 में घटकर 3.7 फीसदी रह गया है।

वैश्विक गिरावट की वजह से सितंबर 2016 में छमाही औद्योगिक समीक्षा के बाद इंजीनियरिंग सेक्टर की बड़ी कंपनी लार्सन एंड टुब्रो ने करीब 14000 कर्मचारियों की छंटनी की थी। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और नोकिया जैसी बड़ी कंपनियों में भी साल 2016 में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की खबर है। इन कंपनियों ने भी छंटनी के लिए कमजोर मांग को ही जिम्मेदार ठहराया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान की लॉन्चिंग से ठीक एक सप्ताह बाद ही नवंबर 2014 में नोकिया ने चेन्नई में अपने दफ्तर को बंद करते हुए करीब 6600 लोगों को रातों रात बेरोजगार बना दिया था।

अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की मदद करनी चाहिए जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 15-16 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं और करीब 12 फीसदी कर्मचारियों को रोजगार मुहैया कराते हैं। हालांकि, साल 2015-16 में सर्विस सेक्टर में 4.9 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है। यह पिछले वित्त वर्ष में 3.7 फीसदी था।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्र की छोटी कंपनियां जिनकी सालाना बिक्री 100 करोड़ से कम है, वो सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इन कंपनियों की बिक्री में पिछले सात सालों में कुछ खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इन कंपनियों की बिक्री में साल 2009-10 में 8.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी जो साल 2015-16 में बढ़कर 19.2 फीसदी तक पहुंच गई है।

बेनामी संपत्ति पर आयकर विभाग सख्त: 230 केस दर्ज

भारत में नए बेनामी लेन-देन अधिनियम के तहत आयकर विभाग ने 230 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं। आयकर विभाग ने बुधवार को बताया कि नए बेनामी लेन-देन अधिनियम के तहत 55 करोड़ रुपए कीमत की संपत्ति कुर्क भी की गई है।

आयकर विभाग ने 140 मामलों में संपत्ति के अटैचमेंट को लेकर शोकॉज नोटिस भी जारी किए हैं। इनमें से 124 मामलों में बेनामी संपत्ति को अटैच किया जा चुका है जिसकी कीमत करीब 55 करोड़ रुपये है।

बेनामी संपत्ति वह है जिसकी कीमत किसी और ने चुकाई हो, किन्तु नाम किसी दूसरे व्यक्ति का हो। यह संपत्त‍ि पत्नी, बच्चों या किसी रिश्तेदार के नाम पर खरीदी गई होती है जिसके नाम पर ऐसी संपत्त‍ि खरीदी गई होती है, उसे 'बेनामदार' कहा जाता है। बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्त‍ि या वित्तीय दस्तावेजों के तौर पर हो सकती है।

कुछ लोग अपने काले धन को ऐसी संपत्ति में निवेश करते हैं जो उनके खुद के नाम पर ना होकर किसी और के नाम होती है। ऐसे लोग संपत्ति अपने नौकर, पत्नी-बच्चों, मित्रों या परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से खरीदते लेते हैं। अगर किसी ने अपने बच्चों या पत्नी के नाम संपत्ति खरीदी है, लेकिन उसे अपने आयकर रिटर्न में नहीं दिखाया तो उसे बेनामी संपत्ति माना जायेगा।

इस नए कानून के अन्तर्गत बेनामी लेन-देन करने वाले को 3 से 7 साल की जेल और उस प्रॉपर्टी की बाजार कीमत पर 25 प्रतिशत जुर्माने का प्रावधान है। अगर कोई बेनामी संपत्ति की गलत सूचना देता है तो उस पर प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का 10 प्रतिशत तक जुर्माना और 6 महीने से 5 साल तक की जेल का प्रावधान रखा गया है।

इनके अलावा अगर कोई ये सिद्ध नहीं कर पाया की ये सम्पत्ति उसकी है तो सरकार द्वारा वह सम्पत्ति जब्त भी की जा सकती है।

ऑनलाइन शॉपिंग में डिस्काउंट के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा

भारत में तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार में छूट (डिस्काउंट) के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। उत्पाद पर दिखाई जाने वाली छूट के फर्जी होने के दावे सामने आए हैं।

एक सर्वेक्षण में 41 फीसदी खरीदार इसके भुक्तभोगी बताए गए हैं। सरकार ने भी इससे जुड़े आंकड़े तलब किए हैं। 'लोकल सर्कल' नाम की संस्था द्वारा यह सर्वेक्षण 200 जिलों में 10 हजार लोगों के बीच किया गया है।

सर्वेक्षण के मुताबिक, ऑनलाइन बाजार में उत्पादों के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) को बढ़ाकर भारी छूट मुहैया कराई जाती है। 34 फीसदी लोग इस मामले में समझ ही नहीं पाए कि उनके साथ कोई धोखाधड़ी हुई है। जबकि 25 फीसदी खरीदार इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में होने वाली गड़बड़ी से अनभिज्ञ थे।

हालांकि ई-कॉमर्स कंपनियों का कहना है कि वह सिर्फ माध्यम हैं। जिन विक्रेताओं द्वारा ऐसा किए जाने की सूचना या शिकायत मिलती है, उन्हें तत्काल प्रभाव से काली सूची में डाल दिया जाता है।

आंकड़ें पर एक नजर
- भारतीय ई-कॉमर्स बाजार 2021 तक 76 अरब डॉलर पहुंच जाएगा
- 60 करोड़ डॉलर से 12.3 अरब डॉलर हो गया भारत का ई-कॉमर्स बाजार दो साल में
(नील्सन के एक अध्ययन के मुताबिक)

‘लोकल सर्कल’ संस्था का कहना है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को और जिम्मेदार बनना होगा। ई-कॉमर्स को एकजुट होकर धांधली करने वाले विक्रेताओं को प्रतिबंधित करना चाहिए।

नोएडा पुलिस ने वेब वर्क ट्रेड लिंक कंपनी को सील किया

पुलिस और साइबर सेल ने ऑनलाइन धोखाधड़ी के आरोप में बुधवार को सेक्टर-2 स्थित वेब वर्क कंपनी को सील कर दिया है। साइबर सेल ने कंपनी से कई सीपीयू तथा दस्तावेज भी अपने कब्जे में लिए हैं।

कंपनी के सेक्टर-18 स्थित दो बैंकों के चार खातों को भी फ्रिज कर दिया गया है। एक बैंक खाते में 20 करोड़ की धनराशि भी फ्रिज हुई है। पुलिस ने सभी बैंकों को पत्र लिखकर कंपनी या इसके निदेशकों के बैंक खाते होने पर पुलिस को सूचित करने का निर्देश दिया है।

सेक्टर-20 थाना पुलिस तथा साइबर सेल की टीम सेक्टर-2 स्थित वेब वर्क ट्रेड लिंक कंपनी पहुंची। इसी परिसर में एडबुक मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड का कार्यालय भी है। जांच टीम ने कंपनी से कई सीपीयू तथा महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने कब्जे में लिए हैं।

दस्तावेजों की जांच की जा रही है। दूसरी ओर, एफआईआर दर्ज कराने वाले अमित किशोर जैन के पुलिस में बुधवार को बयान दर्ज हो गए।

पुलिस का कहना है कि वेबवर्क कंपनी निदेशक अनुराग गर्ग तथा संदेश वर्मा फरार हैं। दोनों की तलाश की जा रही है।

एसटीएफ को एब्लेज तथा वेबवर्क जैसे बिजनेस मॉडल पर काम कर रहीं 15 कंपनियों की शिकायत ई-मेल पर मिली है।

वेब वर्क कहें या एबीसी मतलब एड्सबुक्स डॉट कॉम ने सोशल ट्रेडिंग से की ठगी

भारत में दिल्ली से सटे नोएड में ऑनलाइन सोशल ट्रेडिंग के नाम पर लोगों को चूना लगाने का एक और मामला सामने आया है।

वेब वर्क ट्रेड लिंक प्राइवेट लिमिटेड नाम की इस कंपनी पर भी एब्लेज की तरह लोगों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप लगा है।

फिलहाल वेब वर्क ट्रेड लिंक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने 20 अप्रैल तक काम बंद कर दिया है जिसके बाद इस कंपनी की पुलिस में शिकायत हुई है।

कंपनी के निवेशकों ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने एब्लेज की तरह ही उनके साथ धोखाधड़ी की है। कंपनी के निदेशक संदेश वर्मा तथा अनुराग गर्ग ने अखबारों में विज्ञापन देकर जानकारी दी है कि कंपनी सितंबर 2016 से काम कर रही है। बैंकिंग प्रणाली में बदलाव के चलते कंपनी 20 अप्रैल तक काम नहीं कर पाएगी।

सूत्रों का कहना है कि आयकर एवं ईडी शीघ्र ही इस कंपनी की जांच शुरू कर सकते हैं।

वेब वर्क ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बॉलीवुड एक्टर्स शाहरुख़ खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी से विज्ञापन कराए हैं।

वेब वर्क कहें या फिर एबीसी ये दोनों एक ही शख्स की कपंनी हैं जिनका संचालन नोएडा के सेक्टर 2 में डी-57 से किया जा रहा है।

सोशल मीडिया और नेट पर इनकी पहचान ADDSBOOKS.COM के नाम से की जा सकती है। इस कंपनी के जाल में फंस चुके लोग अब इनके दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करने को मजबूर हैं।

सहारा समूह की पुणे में स्थित 39,000 करोड़ रुपये की एंबी वैली के कुर्की के आदेश

सुब्रत रॉय और सहारा ग्रुप को सहारा-सेबी विवाद में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की पुणे में स्थित 39,000 करोड़ रुपये की एंबी वैली के कुर्की के आदेश दिए है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 20 फरवरी को करेगा। कोर्ट ने कहा कि रकम की वसूली तक टाउनशिप सुप्रीम कोर्ट के पास रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा से ऐसी संपत्तियों की सूची देने को कहा जिन पर कोई देनदारी नहीं है जिससे इनकी नीलामी कर शेष 14,000 करोड़ रुपये की मूल राशि वसूली जा सके।

सहारा ने सुप्रीम कोर्ट के आखिरी आदेशानुसार 600 करोड़ रुपये जमा कराए। इसके बाद कोर्ट ने सुब्रत रॉय की पेरोल भी दो हफ्ते बढ़ा दी है। इस मामले की सुनवाई अब 20 फरवरी को होगी।

पिछली सुनवाईं के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत राय को 6 फरवरी तक 600 करोड़ रुपया जमा करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर पैसे जमा नहीं हुए तो सहारा प्रमुख को जेल जाना होगा।

दरअसल, पिछली सुनवाईं के दौरान सहारा ग्रुप की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई थी कि नोटबंदी की वजह से वह ऐसा करने में समर्थ नहीं हो पाएंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 28 नवंबर को जब आदेश दिए गए थे तब भी हालात ऐसे ही थे।

मार्च 2014 से जेल में बंद सुब्रत राय इस समय पैरोल पर बाहर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मां के अंतिम संस्कार के लिए 6 मई, 2016 को सुब्रत रॉय का पैरोल मंजूर किया था।

उसके बाद 28 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत रॉय को जेल से बाहर रहने के लिए 6 फरवरी, 2017 तक 600 करोड़ रुपये जमा कराने का निर्देश दिया था।

टाटा संस के निदेशक मंडल से साइरस मिस्त्री को हटाया गया

भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूहों में से एक टाटा संस ने अपने अपदस्थ अध्यक्ष साइरस मिस्त्री को सोमवार को टाटा संस के निदेशक मंडल से भी हटा दिया गया।

पिछले साल अक्टूबर में साइरस मिस्त्री को समूह के अध्यक्ष पद से हटाने के बाद समूह की कुछ कंपनियों के निदेशक मंडल से हटा दिया गया था, जबकि दिसंबर में बाकी कंपनियों के निदेशक के पद से मजबूरन उन्होंने खुद इस्तीफा दे दिया था।

टाटा संस ने सोमवार को मुंबई में शेयरधारकों की विशेष आम सभा के बाद जारी एक बयान में कहा, टाटा संस लिमिटेड के शेयरधारकों ने पर्याप्त बहुमत से साइरस पी. मिस्त्री को टाटा संस लिमिटेड के निदेशक पद से हटाने का प्रस्ताव पारित कर दिया।

मिस्त्री को 24 अक्टूबर 2016 को पद से हटाकर उनके पूर्ववर्ती तथा समूह के मानद अध्यक्ष रतन टाटा को अस्थायी तौर पर कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसके बाद मिस्त्री और टाटा समूह के बीच लंबी कॉपोर्रेट जंग छिड़ गयी थी । दोनों समूहों ने मीडिया में एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाये और आखिर में दिसंबर में मिस्त्री ने समूह की सभी कंपनियों के निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया। हटाये जाने से पहले वह चार साल तक टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर रहे।

टाटा समूह की ही टाटा कंस्लटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक एन. चंद्रशेखरन को नया कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। वह 21 फरवरी से कार्यभार संभालेंगे।

दिसंबर में समूह की सभी कंपनियों से इस्तीफा देने के बाद मिस्त्री ने कानूनी लड़ाई का रास्ता अपनाया है, लेकिन अब तक उन्हें कुछ विशेष सफलता नहीं मिली है। राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण (एनसीएलटी) तथा राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय प्राधिकरण से मिस्त्री को निराशा हाथ लगी है। हालांकि अभी एनसीएलटी का अंतिम फैसला नहीं आया है।

टाटा संस में दो-तिहाई हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट की तथा 18.4 प्रतिशत मिस्त्री की पारिवारिक कंपनियों की है। शेष हिस्सेदारी टाटा समूह की कंपनियों की है।