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इंडोनेशिया: जावा की एक रिफ़ाइनरी में भयंकर आग

इंडोनेशिया के सबसे बड़े तेल रिफ़ाइनरियों में से एक बालोनगन रिफ़ाइनरी में सोमवार, 29 मार्च 2021 को भयानक आग लग गई। आग पर क़ाबू पाने के लिए राहत और बचाव दल को कड़ी मशक्क़त करनी पड़ रही है। पश्चिमी जावा प्रांत में मौजूद यह रिफ़ाइनरी सरकारी तेल कंपनी पर्टेमिना की है।

स्थानीय समय के अनुसार यह आग आधी रात बाद 12:45 के आसपास भड़की। अभी आग लगने के कारणों का कोई पता नहीं चल सका है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस अग्निकांड में कम से कम पाँच लोग घायल हुए हैं। एहतियात बरतते हुए क़रीब 950 लोगों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर भेज दिया गया है। हालांकि कुछ लोग लापता बताए जा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर डाले गए टीवी के फुटेज और वीडियो में सोमवार, 29 मार्च 2021 की सुबह भी आग की लपटों और धुएं के गुबार को रिफ़ाइनरी के उपर उठता हुआ देखा गया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक स्थानीय मीडिया संगठन मेट्रो टीवी के हवाले से एक व्यक्ति का ज़िक्र किया है। इस शख़्स ने बताया, ''हमने सबसे पहले नाक फाड़ने जैसी तेल की तेज़ गंध महसूस की। इसके बाद हमें आग की लपटों की आवाज़ सुनाई पड़ी।''

क्षेत्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के अनुसार, पाँच लोगों को गंभीर रूप से घायल होने और 15 को हल्के जले होने के बाद इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया है।

विनाशकारी हादसा

बीबीसी न्यूज़ इंडोनेशिया के संवाददाता जेरोमी वीरावन ने बताया, ''बालोनगन रिफ़ाइनरी इंडोनेशिया की सबसे बड़ी रिफ़ाइनरियों में से एक है। इसका महत्व इसलिए है कि यह ग्रेटर जकार्ता क्षेत्र को ईंधन और पेट्रोकेमिकल की आपूर्ति करती है।''

उनके अनुसार, प्लास्टिक और केमिकल कारोबार के साथ कारख़ानों पर इस अग्निकांड का कितना असर होगा, यह सवाल उठ रहा है। हालांकि रिफ़ाइनरी की मालिक कंपनी पर्टेमिना ने लोगों से कहा है कि तेल की सप्लाई व्यवस्था अप्रभावित है और यह पहले की तरह जारी है।

उधर कई लोग पूछ रहे हैं कि आख़िर ऐसी विनाशकारी घटना एक सरकारी रिफ़ाइनरी में कैसे घट सकती है?

राजनेता और प्रतिनिधि सभा के ऊर्जा मामलों के आयोग के एक सदस्य कुर्तुबी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि 1994 से चल रही बालोनगन रिफ़ाइनरी पर्टेमिना की दूसरी रिफ़ाइनरियों की तुलना में अपेक्षाकृत नयी है। उन्होंने माँग की है कि देश की सभी तेल रिफ़ाइनरियों की आवासीय इलाक़ों से दूरी का पता लगाया जाए।

जेरोमी वीरावन के अनुसार, सोशल मीडिया पर इस घटना की गहन जाँच की माँग हो रही है। एक शख़्स ने पूछा है, ''क्या रिफ़ाइनरी में कोई छेड़छाड़ हुई थी या सही में यह एक दुर्घटना थी?'' दूसरे लोग पूछ रहे हैं कि रिफ़ाइनरी में क्या मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन हुआ था या नहीं। वहीं किसी ने लिखा, ''इस मामले में जिस शख़्स की भी भूमिका हो, उसे अदालत ले जाना चाहिए।''

बीबीसी संवाददाता ने बताया है कि कोरोना के दौर में सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए रिफ़ाइनरी के पास रह रहे लोगों को उनके घरों से निकालकर एहतियाती तौर पर अलग-अलग शिविरों में भेज दिया गया है।

वीरावन ने पर्टेमिना के हवाले से बताया है कि आग के कारणों का पता नहीं चला है लेकिन यह घटना भारी बारिश और बिजली गिरने के दौरान घटी है।

तेल सप्लाई पर कोई असर नहीं

सोमवार, 29 मार्च 2021 को एक संवाददाता सम्मेलन में कंपनी ने बताया कि इस आग ने रिफ़ाइनरी की प्रोसेसिंग क्षमताओं को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया है, लिहाज़ा अगले पाँच दिनों में परिचालन सामान्य हो सकता है।

पर्टेमिना के सीईओ निकी विद्यावती के हवाले से रॉयटर्स ने बताया है कि आग रिफ़ाइनरी टैंकों पर लगी है। इससे प्रोसेसिंग प्लांट को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा है। कंपनी ने बताया कि वह अपनी यह रिफ़ाइनरी बंद कर रही है और यह आग आगे न फैले इसके लिए तेल के प्रवाह को नियंत्रित किया जा रहा है।

बालोनगन रिफ़ाइनरी इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से 225 किलोमीटर पूर्व में है। 340 हेक्टेयर में स्थित इस रिफ़ाइनरी की प्रोसेसिंग क्षमता 1,25,000 बैरल प्रतिदिन की है। 

स्वेज़ नहर: फंसे जहाज़ को किनारे से हटाया गया

अधिकारियों के मुताबिक़, स्वेज़ नहर में फंसे कंटेनर जहाज़ को किनारे से हटा दिया गया है। यह जहाज़ 23 मार्च 2021 से स्वेज़ नहर में फंसा हुआ था।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण के मुताबिक़, 400 मीटर लंबे 'एवर गिवेन' जहाज़ की दिशा को 80% तक ठीक कर लिया गया है।

उसके मुताबिक़, नाव को हटाने के काम को सोमवार से फिर शुरू किया जाएगा।

'एवर गिवेन' ने दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों में से एक को बाधित कर दिया, जिसकी वजह से बाक़ी के जहाज़ को वापस लौटना पड़ा और लंबा ट्रैफिक लग गया।

फंसे जहाज़ को निकालने में मिली इस कामयाबी के बाद उम्मीद जगी है कि कुछ घंटों में नहर पर लगा जाम खुल सकता है। इस जलमार्ग से हर रोज़ क़रीब 9.6 अरब डॉलर का सामान निकलता है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, जहाज़ को निकालने के लिए टगबोट्स का इस्तेमाल किया गया है।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण के मुताबिक़, जहाज़ का पिछला भाग, जो पहले तट से चार मीटर की दूरी पर था, अब 102 मीटर हो गया है। प्राधिकरण ने बताया कि अब जहाज़ को पूरी तरह तैरने लायक स्थिति में करने के लिए कोशिशें शुरू हो गई हैं।

अधिकारियों के मुताबिक़, लहरें उठने के बाद स्थानीय समयानुसार 11:30 पर जहाज़ को हटाने का काम शुरू किया जाएगा।

जहाज़ को जब हटा दिया जाएगा तो वहां इंतज़ार कर रहे 367 जहाज़ों को रास्ता मिल जाएगा। स्वेज़ नहर प्राधिकरण (एससीए) के चेयरमैन ओसामा रबी ने मिस्र के एक्स्ट्रा न्यूज़ को रविवार, 28 मार्च 2021 को बताया कि इनमें कई मालवाहक जहाज़, तेल के टैंकर और एएनजी या एलपीजी गैस ले जा रहे जहाज़ हैं।  

400 मीटर लंबा एवर गिवेन जहाज़ मंगलवार, 23 मार्च 2021 को तेज़ हवाओं के बीच स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंस गया था। इसकी वजह से यूरोप और एशिया के बीच के इस सबसे छोटे जहाज़ मार्ग पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई थी।

जहाज़ को निकालने में कई दिनों तक नाकाम होने के बाद, रविवार, 28 मार्च 2021 को नहर प्रशासन ने वज़न कम करने के लिए जहाज़ से क़रीब 20,000 कंटेनरों को हटाने की तैयारी शुरू की थी।

स्वेज़ नहर में फंसे कंटेनर जहाज़ को निकाला गया: रिपोर्ट

ऐसी ख़बरें मिल रही हैं कि स्वेज़ नहर में फंसे मालवाहक जहाज़ को निकाल लिया गया है।

सोमवार, 29 मार्च 2021 को सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एवर गिवेन जहाज़ के पिछले हिस्से के घूम जाने की वजह से नहर का रास्ता खुला है।

वहीं समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि इंचकैप शिपिंग सर्विसेज़ के मुताबिक़, क़रीब एक हफ़्ते से स्वेज़ नहर में फंसा यह विशाल जहाज़ अब फिर से तैरने लगा है और उसे चलने लायक स्थिति में बनाने का काम जारी है।

वैश्विक समुद्री सेवाएं देने वाले इंचकैप ने ट्विटर पर बताया, स्थानीय समयानुसार सुबह 4.30 पर जहाज़ फिर से तैरने लगा और अब उसे पूरी तरह संचालन में लाने का काम जारी है।

जहाज़ को ट्रैक करने वाली सर्विस वेसलफ़ाइंडर ने अपनी वेबसाइट पर जहाज़ के स्टेटस को बदल दिया है और अब लिखा है कि जहाज़ रास्ते में है।

400 मीटर लंबा एवर गिवेन जहाज़ मंगलवार, 23 मार्च 2021 को तेज़ हवाओं के बीच स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंस गया था। इसकी वजह से यूरोप और एशिया के बीच के इस सबसे छोटे जहाज़ मार्ग पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई थी।

कम से कम 369 जहाज़ नहर का रास्ता खुलने का इंतज़ार कर रहे थे। स्वेज़ नहर प्राधिकरण (एससीए) के चेयरमैन ओसामा रबी ने मिस्र के एक्स्ट्रा न्यूज़ को रविवार, 28 मार्च 2021 को बताया कि इनमें कई मालवाहक जहाज़, तेल के टैंकर और एएनजी या एलपीजी गैस ले जा रहे जहाज़ थे।

स्वेज़ में ट्रांसिट सेवाएं देने वाली मिस्र की लेथ एजेंसीज़ ने ट्वीट किया कि जहाज़ आंशिक रूप से फिर तैरने लगा है, स्वेज़ नहर प्राधिकरण से आधिकारिक पुष्टि पेंडिंग है।

वहीं रॉयटर्स के मुताबिक़, जहाज़ के दोबारा तैरना शुरू करने की ख़बर आने के बाद कच्चे तेल के दाम में कमी आई है।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण ने इससे पहले अपने एक बयान में कहा था कि जहाज़ को खींचकर बाहर निकालने का काम फिर से शुरू किया गया है।  रविवार, 28 मार्च 2021 को निकालने की कोशिशों में लगी टीमों ने अपना काम तेज़ कर दिया था।

टगबोट और ड्रेजर के ज़रिए की गई लंबी कोशिशों के बाद जहाज़ को निकालने में एक बड़ी कामयाबी मिल सकी है।

जहाज़ को निकालने में कई दिनों तक नाकाम होने के बाद, रविवार, 28 मार्च 2021 को नहर प्रशासन ने वज़न कम करने के लिए जहाज़ से क़रीब 20,000 कंटेनरों को हटाने की तैयारी शुरू की थी।

इससे पहले विशेषज्ञों ने बीबीसी से कहा था कि ऐसे अभियानों में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसे एक क्रेन जिसे 60 मीटर (200 फीट) तक ऊपर पहुंचना होगा, जिसमें हफ़्तों लग सकते हैं।

स्वेज़ नहर के बंद होने से दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

विश्व व्यापार की रीढ़ के रूप में मशहूर स्वेज़ नहर दुनिया की मुख्य समुद्री क्रॉसिंग में से एक है। इससे दुनिया के कुल क़ारोबार का 12 फ़ीसदी माल गुज़रता है।

ऐसे में चीन से नीदरलैंड जा रहे मालवाहक जहाज़ के मंगलवार, 23 मार्च 2021 की सुबह फंस जाने के बाद अब तक उसके न निकलने से दुनिया के क़ारोबार पर गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

इस मालवाहक जहाज़ ने बाकी जहाजों के रास्ते को रोक दिया है।

डेनमार्क की कंसल्टेंसी फ़र्म सी-इंटेलिजेंस में प्रॉडक्ट्स और आपरेशंस के उपाध्यक्ष नील्स मैडसेन का अंदाज़ा है कि अगर यह जहाज़ और 48 घंटे तक फंसा रहा तो पहले से गंभीर दशा धीरे-धीरे ख़राब होती जाएगी।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उन्होंने बताया कि यदि ऐसा तीन से पांच दिनों तक हो गया तो विश्व व्यापार पर इसका बहुत बुरा असर पड़ना शुरू हो जाएगा। माल की आवाजाही के रूक जाने से महंगाई के बढ़ने की आशंका सबसे आम है।

स्वेज़ नहर इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

1) पूरब और पश्चिम को एकजुट करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी

स्वेज़ नहर मिस्र में स्थित 193 किलोमीटर लंबी नहर है जो कि भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। यह एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री लिंक है। यह जलमार्ग मिस्र में स्वेज़ इस्थमस (जलडमरूमध्य) को पार करती है। इस नहर में तीन प्राकृतिक झीलें शामिल हैं।

1869 से सक्रिय इस नहर का महत्व इसलिए है कि दुनिया के पूर्वी और पश्चिमी भाग को आने-जाने वाले जहाज़ इसके पहले अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर मौज़ूद केप ऑफ गुड होप होकर जाते थे। लेकिन इस जलमार्ग के बन जाने के बाद पश्चिमी एशिया के इस हिस्से से होकर यूरोप और एशिया को जहाज़ जाने लगे।

विश्व समुद्री परिवहन परिषद के अनुसार इस नहर के बनने के बाद एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले जहाज़ को नौ हजार किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़ती है। यह कुल दूरी का 43 फ़ीसदी हिस्सा है।

2) 9.5 बिलियन का दैनिक मूल्य

कंसल्टेंसी फर्म लॉयड्स लिस्ट के अनुसार, बुधवार, 24 मार्च 2021 को 40 मालवाहक जहाज़ और 24 टैंकर नहर पार करने के इंतज़ार में फंसे थे।

इन जहाज़ों पर अनाज, सीमेंट जैसे ड्राई प्रॉडक्ट लदे हैं। वहीं टैंकरों में पेट्रोलियम उत्पाद भरे हैं।

समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के अनुसार पशुधन और पानी के टैंकर ले जाने वाले आठ जहाज भी फंसे हुए हैं।

स्वेज़ नहर की स्थिति और इसके महत्व को देखते हुए इसे पृथ्वी के कुछ 'चोक पॉइंट' में से एक कहा जाता है। इसलिए अमेरिकी एनर्जी एजेंसी स्वेज़ नहर को वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और हर तरह के माल की आपूर्ति के लिए ज़रूरी मानता है।

एक अनुमान के अनुसार स्वेज़ नहर से क़रीब 19 हजार जहाज़ों से हर साल 120 करोड़ टन माल की ढुलाई होती है। लॉयड्स लिस्ट का मानना है कि इस नहर से हर दिन 9.5 अरब डॉलर मूल्य के मालवाहक जहाज़ गुजरते हैं। इनमें से लगभग पांच अरब डॉलर के जहाज़ पश्चिम को और 4.5 अरब डॉलर के जहाज़ पूरब को जाते हैं।

3) सप्लाई चेन के लिए काफ़ी अहम

जानकारों का कहना है कि यह चैनल दुनिया में माल की सप्लाई के लिए काफ़ी ज़रूरी है। इसलिए इसके अवरुद्ध होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

सी इंटेलिजेंस के विश्लेषक लार्स जेन्सेन कहते हैं कि पहली समस्या पोर्ट कंजेशन में हो सकती है।

उन्होंने कहा, ''यदि हम यह मानकर चलें कि सभी जहाज़ भरे हुए हैं। तो 55 हजार टीईयू (कंटनेर की क्षमता मापने वाली इकाई) के लिहाज से दो दिन के अंदर कुल 110 हजार टीईयू माल जो एशिया से यूरोप जा रहा होगा, फंस जाएगा। और जाम खत्म होते ही ये सारे जहाज़ यूरोपीय बंदरगाहों पर एक साथ पहुंचेगे जिससे वहां का लोड भी पीक पर पहुंच जाएगा।''

जेन्सेन का अनुमान है कि एक हफ़्ते के भीतर हमें यूरोपीय बंदरगाहों पर भारी दबाव देखना पड़ेगा। उनकी राय में इस समस्या के चलते दुकानों में बिकने वाला हर माल की आपूर्ति और उसकी क़ीमत के प्रभावित होने की आशंका है।

4) महंगाई बढ़ने का ख़तरा

अमेरिका में नॉर्थ कैरोलिना के कैंपबेल यूनिवर्सिटी में समुद्री मामलों के जानकार और इतिहास के प्रोफेसर सल्वाटोर मर्कोग्लियानो का मानना है कि इस समस्या के विश्व व्यापार पर गंभीर असर हो सकते हैं।

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, ''नहर के बंद होने से मालवाहक जहाज़ और तेल टैंकर यूरोप में भोजन, ईंधन और तैयार माल नहीं पहुंचा पा रहे हैं। इस चलते यूरोप से सुदूर पूर्व तक भी कोई माल नहीं भेजा जा रहा है।''

बीबीसी के आर्थिक संवाददाता थियो लेगट्ट ने कहा, "स्वेज़ नहर पेट्रोलियम और तरल प्राकृतिक गैस की ढुलाई के लिए काफी अहम है, क्योंकि मध्य पूर्व से ईंधन को यूरोप तक लाया जाता है।''

लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार पिछले साल इस नहर से 5,163 टैंकर गुज़रे थे। इससे हर दिन क़रीब बीस लाख बैरल तेल की ढुलाई हुई थी।

अमेरिका की ईआईए के अनुसार, स्वेज़ नहर और सुमेड पाइपलाइन (भूमध्यसागर के अलेक्जेंड्रिया से स्वेज़ खाड़ी तक) के ज़रिए समुद्र से होने वाले कुल तेल क़ारोबार के नौ फ़ीसदी और तरल प्राकृतिक गैस के आठ फ़ीसदी की ढुलाई होती है।

नहर के इसी महत्व और मौज़ूदा समस्या को देखते हुए बुधवार, 24 मार्च 2021 को तेल के दाम छह फ़ीसदी से ज़्यादा बढ़ गए। हालांकि गुरुवार, 25 मार्च 2021 को इसमें गिरावट आई।

आईएनजी बैंक का मानना है कि यदि यह रूकावट लंबे समय तक रही तो ज़्यादा संभावना है कि खरीदारों को कहीं और से तेल की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए नक़दी बाज़ार की ओर रुख़ करना होगा।

कंटेनरों को यह भी तय करना होगा कि क्या उसे खाली करने के लिए इंतज़ार करना है या 'केप ऑफ गुड होप' होकर जाना है। आईएनजी बैंक के अनुसार दोनों विकल्पों में से किसी को भी चुनने पर माल ढुलाई में देरी होगी।

जानकारों की राय में मौज़ूदा समस्या का असल प्रभाव समय के साथ ही सामने आ पाएगा।

रिस्ताद कैबिनेट के ब्योनार टोनहुगेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, ''इस समस्या का असर शायद कमजोर और कुछ समय के लिए होगा। लेकिन यदि यह रूकावट ज़्यादा समय तक चली तो इससे महंगाई बढ़ेगी ही। यह असर लंबे समय तक बना रहेगा।''

अन्य सामानों पर असर

लंदन की क्लाइड एंड को के समुद्री मामलों के वकील इयान वुड्स ने एनबीसी को बताया, ''अन्य जहाजों पर लाखों डॉलर के सामान हैं। यदि नहर को जल्दी सामान्य नहीं किया गया तो जहाज़ दूसरे रास्तों से जाएंगे। इसका अर्थ है ज़्यादा समय और अधिक लागत। और यह आख़िरकार उपभोक्ताओं से ही वसूला जाएगा।''

बीबीसी के एक विशेषज्ञ लेगेट ने कहा कि यह एक बुरा सपना है।

उन्होंने कहा, ''इससे पता चला है कि एवर गिवेन जैसे नई पीढ़ी के बड़े जहाज़ों के नहर की संकरी सीमा से गुजरने पर क्या ग़लत हो सकता है।''

हालांकि, नहर के कुछ हिस्सों को 2015 में आधुनिकीकरण की योजना के तहत चौड़ा किया गया था। फिर भी इसमें नेविगेट करना बहुत मुश्किल है। यही नहीं भविष्य में ऐसी और भी गंभीर दुर्घटनाएं होने की आशंका है।

सोशल मीडिया, ओटीटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म के नियमन के लिए क़ानून बनेगा

भारत में केंद्र की मोदी सरकार अगले तीन महीने में सोशल मीडिया और डिजीटल कंटेन्ट को नियमित करने के लिए एक नया क़ानून लाएगी। भारत के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और भारत के संचार मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया भारत में बिजनस कर रहे हैं, उन्होंने अच्छा बिज़नस किया है और भारतीय लोगों को मज़बूत किया है।  लेकिन इसके साथ ही पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया के गैर-ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल की शिकायतें आ रही हैं।''

मोदी सरकार के मुताबिक़ पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर हिंसा को बढ़ावा देने, अश्लील सामग्री शेयर करने, दूसरे देश के पोस्ट का इस्तेमाल करने जैसी कई शिकायतें सामने आई हैं, जिससे निपटने के लिए सरकार नई गाइडलाइंस लेकर आई है और तीन महीने में इसे लेकर एक क़ानून बनाया जाएगा।

गाइडलाइंस क्या हैं?

गाइडलाइंस के बारे में बताते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया को 2 श्रेणियों में बांटा गया है, एक इंटरमीडयरी और दूसरा सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडरी। हम जल्दी इसके लिए यूज़र संख्या का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।''

''यूज़र्स की गरिमा को लेकर अगर कोई शिकायत की जाती है, ख़ासकर महिलाओं की गरिमा को लेकर तो शिकायत करने के 24 घंटे के अंदर उस कंटेन्ट को हटाना होगा।''

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया के क़ानून को तीन महीने में लागू किया जाएगा।

इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण व्यवस्था बनानी होगी और शिकायतों का निपटारा करने वाले ऑफ़िसर का नाम भी सार्वजनिक करना होगा। ये अधिकारी 24 घंटे में शिकायत का पंजीकरण करेगा और 15 दिनों में उसका निपटारा करेगा।

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया को चीफ़ कंप्लाएंस ऑफिसर, नोडल कंटेन्ट पर्सन और एक रेज़ीडेट ग्रीवांस ऑफ़िसर नियुक्त करना होगा और ये सब भारत में ही होंगे। इसके अलावा शिकायतों के निपटारे से जुड़ी रिपोर्ट भी उन्हें हर महीने जारी करनी होगी।

अकाउंड वेरिफ़िकेशन होगा ज़रूरी

मोदी सरकार ने कहा, इसके अलावा ये सुनिश्चित करने के लिए कि सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट न बनाए जाए, कंपनियों से अपेक्षा होगी कि वो वेरिफिकेशन प्रक्रिया को अनिवार्य बनाएं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई पोस्ट किसने किया है, कोर्ट के आदेश या सरकार के पूछने पर ये जानकारी कंपनी को देनी होगी।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''किसी कोर्ट या सरकार के पूछने पर उन्हें बताना पड़ेगा कि कोई पोस्ट किसने शुरू किया। अगर भारत के बाहर से हुआ तो भारत में किसने शुरू किया। यह भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ संबंध, बलात्कार आदि के संबंध में होना चाहिए।''

हालांकि सोशल मीडिया कंपनियां अक्सर ये दलील देती आई हैं कि इस तरह की जानकारियां देने के लिए उन्हें एंड टू एंड एन्क्रिपशन को तोड़ना पड़ेगा और यूज़र का डेटा सेव करना पड़ेगा जो उनकी निजता का हनन होगा। एंड टू एंड एन्क्रिपशन का मतलब है कि दो लोगों के बीच हो रही बातचीत को कोई तीसरा (कंपनी भी) सुन या पढ़ नहीं सकता।

ये जानकारियां कंपनी कैसे मुहैय्या करा सकती है, इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''हम एन्क्रिपशन तोड़ने के लिए नहीं कह रहे, हम बस ये पूछ रहे हैं कि इसे शुरू किसने किया।''

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कुछ गाइडलाइंस का हवाला देते हुए कहा कि अश्लील सामग्री, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार से जुड़े वीडियो को फैलने से रोकने के लिए ये क़दम बेहद ज़रूरी हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के बाहर से भी सोशल मीडिया पोस्ट्स करने की कई ख़बरें सामने आई हैं।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन सभी नियमों का मकसद लोगों के हाथ में अधिक शक्ति देना है। इस पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, ''अगर कोई सिग्निफिकेंट पोस्ट हटाई जाती है, तो कंपनी को इसकी वजह देनी होगी।''

उन्होंने कहा कि इन सभी चीज़ों को लेकर प्लैटफ़ॉर्म्स से कहेंगे कि एक मैकेनिज़म बनाया जाए।

रविशंकर प्रसाद अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूज़र्स का डेटा भी दिया। उनके मुताबिक़ भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इस्टाग्राम के 21 करोड़, ट्विटर के 1.75 करोड़ यूज़र्स हैं।

ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी नियम

मोदी सरकार ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को रेगुलेट करने के लिए भी कानून लेकर आएगी।

भारत के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ''ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तीन स्तर का तंत्र होगा। OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया को अपने बारे में जानकारी देनी होगी, और उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।''

जावड़ेकर के मुताबिक़ सरकार ने पहले ओटीटी कंपनियों से मुलाकात की थी और एक सेल्फ़ रेगुलेशन बनाने के लिए कहा था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए।

नए नियम के आने पर ओटीटी और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म को अपनी डिटेल बतानी पड़ेंगी जैसे कि वो कहां से काम करते हैं। इसके अलावा शिकायतों के निवारण के लिए एक पोर्टल बनाना होगा।  

जावड़ेकर ने कहा कि टीवी और प्रिंट की तरह डिजिटल के लिए भी एक नियामक संस्था बनाई जाएगी, जिसका अध्यक्ष कोई रिटायर्ट जज या प्रख्यात व्यक्ति हो सकता है।

उन्होंने कहा, ''जैसे ग़लती करने पर टीवी पर माफ़ी मांगी जाती है, वैसा ही डिजीटल के लिए भी करना होगा।''

इसके अलावा कंटेंट पर उम्र के मुताबिक़ क्लासिफ़िकेशन करना होगा और पेरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी।

उन्होंने कहा कि जहां तुरंत एक्शन की ज़रूरत हो, ऐसे मामलों के लिए सरकारी स्तर पर एक निगरानी तंत्र बनाया जाएगा।

हाथरस गैंग रेप: सीबीआई ने दलित लड़की के गैंग रेप और हत्या की बात मानी, चार्जशीट दायर

भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए गैंग रेप और हत्या मामले में सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को आरोपपत्र दायर कर दिया है।

19 साल की दलित लड़की के साथ हुए अपराध के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों संदीप, लवकुश, रवि और रामू पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं भी लगाई हैं।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अभियुक्तों के वकील ने बताया कि हाथरस की स्थानीय अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है।

सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जाँच कर रही थी और सीबीआई के अधिकारियों ने पूरे मामले में अभियुक्त संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जाँच की।

चारों अभियुक्त फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि चारों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फ़ॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था।

इसके अलावा सीबीआई की जाँच टीम ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से भी बात की थी। ये वही अस्पताल है जहाँ मृतका का इलाज हुआ था।

हाथरस गैंग रेप मामला न सिर्फ़ अपराधियों की बर्बरता की वजह से चर्चा में आया था बल्कि इसमें उत्तर प्रदेश की पुलिस पर मृतका के परिजनों की अनुमति के बिना और उनकी ग़ैरहाज़िरी में लड़की का अंतिम संस्कार करने पर भी विवाद हुआ था।

इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की भी ख़ूब आलोचना हुई थी।

बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत से कहा था कि इलाके में न्याय-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के डर से आनन-फानन में लड़की का अंतिम संस्कार करा दिया गया।

19 साल की लड़की दलित परिवार से थी जबकि चारों अभियुक्त ऊंची जाति से सम्बन्ध रखते हैं।

इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश में व्याप्त जाति-व्यवस्था की उलझनें भी सामने आई थीं जब कुछ गाँवों में अभियुक्तों के पक्ष में महापंचायत बुलाई गई।

इतना ही नहीं, लड़की के गैंग रेप होने को लेकर भी सवाल उठाए गए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ वक़्त के लिए पीड़िता के गाँव में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी।

इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़िता के परिजनों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही थी जिसे लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था क्योंकि आम तौर पर नार्को टेस्ट अभियुक्त पक्ष का होता है।

उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर लचर रवैये के आरोपों के बाद आख़िकार एक विशेष जाँच समिति (एसआईटी) का गठन किया गया था। हालाँकि जाँच का ज़िम्मा बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।

तुर्की-इसराइल सम्बन्ध: क्या तुर्की और इसराइल फिर एक दूसरे के क़रीब आ रहे हैं?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल पर कड़ी टिप्पणी करने वाले और फ़लस्तीनियों के अधिकारों की बात करने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिचैप तैय्यप अर्दोआन की सरकार ने दो साल से लगभग समाप्त इसराइल के साथ राजनयिक संबंधों को अचानक बहाल करने की घोषणा की है।

तुर्की ने 15 दिसंबर 2020 को इसराइल के लिए अपना राजदूत नियुक्त किया है। 2018 में ग़ज़ा में फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ इसराइल की हिंसक कार्रवाइयों के विरोध में तुर्की ने अपना राजदूत तेल अवीव से वापस बुला लिया था।

ये प्रदर्शन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम भेजने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हो रहे थे।

तुर्की के नेता अर्दोआन इसराइल को 'दहशतगर्द और बच्चों का क़ातिल' कह चुके हैं, लेकिन अब वो अपने राजदूत को इसराइल भेज रहे हैं। इस फ़ैसले के अर्थ को समझने के लिए हालिया घटनाक्रमों और इसराइल-तुर्की के लंबे ऐतिहासिक संबंधों को समझना ज़रूरी है।

तुर्की की ओर से अपने राजदूत को तैनात करने का फ़ैसला 15 दिसंबर 2020 को आया है जब 14 दिसंबर 2020 को अमेरिका ने तुर्की पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं।

रूस से एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम ख़रीदने के बाद अमेरिका ने 2020 की शुरुआत में तुर्की को अपने एफ़-35 लड़ाकू विमान बेचने और तुर्की के एविएटर ट्रेनिंग प्रोग्राम समेत कई योजनाओं पर रोक लगा दी थी।

अमेरिकी दबाव के बावजूद तुर्की ने रूसी मिसाइल सिस्टम की ख़रीदारी से पीछे हटने से मना कर दिया था। अब जाते-जाते ट्रंप प्रशासन ने तुर्की पर नई पाबंदियां लागू कर दी हैं।

ग़ौरतलब है कि तुर्की अमेरिका और यूरोप के रक्षा गठबंधन नेटो का एक अहम सदस्य भी है।

मध्य पूर्व में नई गुटबाज़ियां और 'जियो स्ट्रेटेजिक' बदलाव ऐसे समय में हो रहे हैं जब पूरी दुनिया ऐतिहासिक रूप से कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है।

दुनियाभर के देशों की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ रही हैं और अरब देशों के लिए बड़ी मुश्किल का समय है क्योंकि पूरी दुनिया की तेल पर निर्भरता कम हुई है जिसके कारण उनका आर्थिक बोझ ज़्यादा बढ़ गया है।

अरब देश आर्थिक स्थिरता के कारण अपनी पारंपरिक नीतियों की समीक्षा करते हुए अपनी नई आर्थिक संभावनाओं को खोज रहे हैं।

वहीं अमेरिका में भी राजनीतिक बदलाव आ रहा है और नए राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन 20 जनवरी 2021 से पदभार संभालने जा रहा है।

तुर्की और इसराइल के संबंधों में उतार-चढ़ाव

तुर्की और इसराइल के बीच संबंधों में हमेशा फ़लस्तीन एक तरह केंद्र बिंदु बना रहा है। पहले भी तीन बार तुर्की इसराइल के साथ अपने राजनयिक संबंध निचले स्तर पर लाने या उन्हें ख़त्म करने की कोशिशें कर चुका है और हर बार इसके केंद्र में फ़लस्तीन ही रहा है।

सबसे पहले 1956 में जब स्वेज़ नहर के मुद्दे पर इसराइल ब्रिटेन और फ़्रांस के समर्थन के बाद सिनाई रेगिस्तान में हमलावर हुआ तो तुर्की ने उस पर विरोध जताते हुए अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया था।

इसके बाद 1958 में उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गोरियान और तुर्की के प्रमुख अदनान मेंदरेस के बीच एक ख़ुफ़िया मुलाक़ात हुई और दोनों देशों के बीच रक्षा और ख़ुफ़िया सहयोग स्थापित करने पर सहमति हुई।

1980 में इसराइल ने पूर्वी येरुशलम पर क़ब्ज़ा किया तो तुर्की ने दोबारा उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया। इस दौरान दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध ठंडे रहे लेकिन 90 के दशक में ओस्लो शांति समझौते के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बहाल हो गए।

इस दौरान दोनों मुल्कों के संबंध जिसे 'ज़बरदस्ती की शादी' भी कहा जाता था वह बिना किसी उलझन के चलते रहे और इस दौरान पारस्परिक व्यापार और रक्षा क्षेत्र में सहयोग के कई समझौते भी हुए।

जनवरी 2000 में इसराइल ने तुर्की से पानी ख़रीदने का एक समझौता किया लेकिन यह समझौता ज़्यादा दिन नहीं चल सका। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते हुए जिनमें तुर्की को ड्रोन और निगरानी के उपकरण देना भी शामिल था।

रक्षा क्षेत्र में संबंधों के बनने की बड़ी वजह थी - तुर्की की रक्षा ज़रूरतें और इसराइल को अपना सामान बेचने के लिए ख़रीदार ढूंढना।

तुर्की में नवंबर 2002 में जब रिचैप तैय्यप अर्दोआन की दक्षिणपंथी जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता में आई तो दोनों देशों के बीच संबंधों में नया मोड़ आना शुरू हुआ। 2005 में अर्दोआन ने इसराइल का दौरा भी किया और उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्त को तुर्की के दौरे की दावत दी।

दिसंबर 2008 में हालात ने एक और करवट ली और इसराइली प्रधानमंत्री शिमॉन पेरेज़ के अंकारा दौरे के तीन दिन बाद ही इसराइल ने ग़ज़ा में 'ऑपरेशन कास्ट लेड' के नाम से चढ़ाई शुरू कर दी।

हमास से हमदर्दी रखने वाले अर्दोआन को इसराइल की इस कार्रवाई से ज़बर्दस्त धक्का लगा और उसको 'स्पष्ट रूप से धोखा' क़रार दिया।

2010 में इसराइली फ़ौज की ग़ज़ा में घेराबंदी के दौरान मावी मरमरा की घटना हुई। तुर्की के एक मानवाधिकार संगठन की ओर से मावी मरमरा जहाज़ मानवीय सहायता लेकर जा रहा था जिस पर इसराइली फ़ौज ने धावा बोल दिया। इस घटना में 10 तुर्क नागरिक मारे गए थे।

इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच संबंध ख़त्म हो गए।

अमेरिकी कोशिश

अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने दो मित्र देशों के बीच में तनाव को कम करने और राजनयिक संबंधों को बहाल कराने के लिए कोशिशें जारी रखीं।

इसके लिए अर्दोआन ने तीन शर्तें सामने रखीं जिनमें मावी मरमरा पर हमले के लिए माफ़ी मांगने, मारे गए लोगों को मुआवज़ा देने और ग़ज़ा की घेराबंदी समाप्त करने जैसी शर्तें शामिल थीं।

इसराइल के लिए सबसे बड़ी शर्त माफ़ी मांगना था और इसराइल भी तुर्की को हमास के कुछ नेताओं को देश से बाहर करने की मांग कर रहा था।

अमेरिकी कोशिशों के तहत ही 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अर्दोआन और इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच फ़ोन पर बातचीत कराई। टेलिफ़ोन पर हुई बातचीत के दौरान नेतन्याहू माफ़ी मांगने और मारे गए लोगों के लिए मुआवज़ा देने को तैयार हो गए।

इसके बावजूद इस क्षेत्र में लगातार होने वाली घटनाओं के कारण दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य होने में देरी होती रही और आख़िरकार सन 2016 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध बहाल हो सके।

क्या फेसबुक ने डर से बजरंग दल को ख़तरनाक संगठन मानने से इनकार किया?

भारत से प्रकाशित होने वाली अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के मुताबिक़ फेसबुक इंडिया ने बजरंग दल को ख़तरनाक संगठन मानने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि इससे उसके कर्मचारियों पर हमला हो सकता था और उसका कारोबार प्रभावित हो सकता था।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने ख़बर अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के हवाले से लिखी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बजरंग दल को ख़तरनाक संगठन में शामिल करने की मांग जून 2020 में दिल्ली के बाहर एक चर्च पर हमले के बाद से उठी थी।

बजरंग दल के सदस्यों ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। हमला करने वालों का दावा था कि वो चर्च हिंदू मंदिर की जगह बनाया गया है।

अख़बार के मुताबिक रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि फेसबुक ने सनातन संस्था और श्री राम सेना पर प्रतिबंध के ख़तरे का भी ज़िक्र किया है।

फेसबुक की सेफ्टी टीम 2020 की शुरुआत में इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि बजरंग दल पूरे भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा का समर्थन करता है और एक ख़तरनाक संगठन माना जा सकता है। हालांकि, फेसबुक इंडिया ने इस सलाह को खारिज कर दिया था।

अख़बार के मुताबिक वॉल स्ट्रीट जनरल ने फेसबुक प्रवक्ता एंडी स्टोन के हवाले से लिखा था कि बजरंग दल की वजह से उनके कर्मचारियों और कारोबार को मुश्किल हो सकती है और इसको लेकर चर्चा हुई थी। यह स्टैंडर्ड प्रक्रिया का हिस्सा था।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक न्यूज़ चैनल की वीडियो क्लिप शेयर की है जिसमें वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट दिखाई जा रही है। राहुल गांधी ने लिखा है, ''बीजेपी-आरएसएस के भारत में फेसबुक को नियंत्रित करने की एक और पुष्टि।''

वहीं, फेसबुक ने किसी राजनीतिक पार्टी के प्रति पक्षपात से इनकार किया है। फेसबुक के प्रवक्ता ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा है, ''हम अपनी ख़तरनाक संगठनों और व्यक्तियों की नीति बिना किसी राजनीतिक पक्ष या पार्टी से जुड़ाव के लागू करते हैं।''

विश्व हिंदू परिषद ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा है कि संगठन वॉल स्ट्रीट जर्नल के ख़िलाफ़ उसे बदनाम करने के लिए क़ानूनी कार्यवाही करेगा। बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद आरएसएस परिवार का हिस्सा है।

अमेरिका-तुर्की सम्बन्ध: अमेरिका ने तुर्की पर पाबंदी लगाई, तुर्की ने बदला लेने की धमकी दी

अमेरिका ने रूस में बने मिसाइल डिफेंस सिस्टम की तैनाती को लेकर नैटो के अपने सहयोगी देश तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिया है। तुर्की ने 2019 में ही रूस से ये मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली हासिल की थी।

अमेरिका का कहना है कि रूस का ज़मीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम एस-400 किसी भी तरह से नैटो के तकनीकी मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है। एस-400 यूरो-अटलांटिक गठबंधन के लिए ख़तरा है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 14 दिसंबर 2020 को इन प्रतिबंधों की घोषणा की जिससे तुर्की की हथियार खरीद पर असर पड़ेगा।

अमेरिकी पाबंदियों की घोषणा के फौरन बाद रूस और तुर्की ने इन प्रतिबंधों की आलोचना की है।

रूस में बने मिसाइल सिस्टम की खरीद के मुद्दे पर अमेरिका तुर्की को पहले ही एफ़-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से बाहर कर चुका है।

अमेरिका को किस बात पर आपत्ति है?

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने एक बयान जारी कर कहा, ''अमेरिका ने शीर्ष स्तर पर तुर्की को कई मौकों पर ये स्पष्ट किया है कि एस-400 सिस्टम की खरीद से अमेरिकी मिलिट्री टेक्नॉलॉजी और सेना ख़तरे में पड़ जाएंगे। इससे रूस के रक्षा उद्योग को बड़ी मात्रा में पैसा मिलेगा और तुर्की के सशस्त्र बलों और उसके रक्षा उद्योग में रूस की पहुंच बढ़ेगी।''

माइक पॉम्पियो ने आगे कहा, ''इसके बावजूद तुर्की ने एस-400 सिस्टम की खरीद और टेस्टिंग को लेकर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया जबकि इसके विकल्प मौजूद थे। इससे तुर्की की रक्षा ज़रूरतें भी पूरी होतीं।''

उन्होंने कहा, ''मैं तुर्की से अपील करता हूं कि वो एस-400 के मुद्दे को अमेरिका से तालमेल बिठाकर फौरन सुलझाए। तुर्की अमेरिका के लिए एक अहम क्षेत्रीय सुरक्षा साझेदार है। तुर्की जितनी जल्दी हो सके एस-400 सिस्टम की अड़चन को हटाकर दशकों पुराने हमारे रक्षा सहयोग को जारी रखे।''

तुर्की पर अमेरिकी पाबंदी की जद में रक्षा उद्योग निदेशालय के इस्माइल डेमिर और तीन अन्य कर्मचारी आए हैं। इस पाबंदी के तहत अमेरिका से जारी निर्यात लाइंसेस पर प्रतिबंध लगाया गया है, साथ ही अमेरिकी ज्यूरिक्डिक्शन में आने वाली तुर्की की परिसंपत्तियों को भी फ्रीज़ कर दिया गया है।

तुर्की का क्या कहना है?

दूसरी तरफ़, तुर्की के विदेश मंत्रालय ने ''अमेरिका से उसके पक्षपातपूर्ण फ़ैसले पर फिर से विचार करने की अपील'' की है।

तुर्की ने ये भी कहा है कि वो गठबंधन की भावना के अनुरूप कूटनीतिक बातचीत के रास्ते इस मसले का हल खोजने के लिए तैयार है।

तुर्की विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में ये भी कहा गया है कि ''अमेरिकी पाबंदी से हमारे संबंधों पर नकारात्मक असर'' पड़ेगा और वक़्त आने पर तुर्की इसका बदला लेगा।

तुर्की का कहना है कि अमेरिका ने उसे पैट्रियट मिसाइल बेचने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उसने रूस से एस-400 सिस्टम खरीदा।

तुर्की के अधिकारियों का ये भी कहना है कि नैटो के दूसरे सहयोगी देश ग्रीस के पास अपना एस-300 सिस्टम है, हालांकि ये उसने रूस से सीधे नहीं खरीदा है।

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी पाबंदी की आलोचना करते हुए कहा है कि ये अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति घंमड से भरे व्यवहार को दिखलाता है।

सर्गेई लावरोव ने कहा कि अमेरिका इस तरह की एकतरफा और अवैध तरीके से दमन करने वाली कार्रवाई करता रहा है।

तुर्की कितना महत्वपूण है?

तीस देशों के सैनिक गठबंधन नैटो में तुर्की के पास दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

वो अमेरिका का महत्वपूर्ण साझीदार है और सीरिया, इराक़ और ईरान से सीमा लगने के कारण उसकी रणनीतिक अहमियत है।

सीरिया के संघर्ष में भी तुर्की का अहम रोल रहा है। उसने सीरिया के कुछ विद्रोही गुटों को सैनिक और हथियारों की मदद मुहैया कराई है।

हालांकि नैटो और यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों के साथ तुर्की के रिश्ते हाल के दिनों में बिगड़े हैं। इन देशों का आरोप है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन साल 2016 के नाकाम तख़्तापलट के बाद लगातार मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं।

एस-400 किस तरह से काम करता है?

लंबी दूरी तक सर्विलांस करने में सक्षम रडार चीज़ों पर नज़र रखता है और इसकी सूचना कमांड व्हीकल को भेज देता है जहां संभावित लक्ष्य का आकलन किया जाता है।

लक्ष्य की पहचान के बाद कमांड व्हीकल मिसाइल लॉन्च का आदेश देता है।

इससे जुड़ा डेटा लॉन्च व्हीकल के पास भेजा जाता है और वहां से ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल दागी जाती है।

रडार मिसाइल को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करता है।

रूस-ईरान सम्बन्ध: परमाणु वैज्ञानिक की हत्या अशांति फैलाने के लिए हुई - रूस

ईरान के सरकारी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव ने कहा है कि रूस ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के मामले में ईरान के साथ खड़ा है।

उन्होंने कहा कि रूस इस बात को लेकर सहमत है कि उनकी हत्या क्षेत्र में अशांति पैदा करने के मकसद से की गई है।

सर्गेई लैवरोव ने ईरान और रूस को 'दुनिया के न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ''दो अहम देश'' बताया है।

ईरान के सरकारी टीवी नेटवर्क वन (आईआरटीवी 1) ने लैवरोव की रूसी भाषा में कही बात को फारसी भाषा में अनुवाद कर कहा है कि उन्होंने कहा, ''हम वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या की निंदा करते हैं। हम इसे एक उकसाने वाली आतंकवादी हरकत और क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश के तौर पर देखते हैं। ये विदेशी सरकारों की दखल का भी मुद्दा है।''

उन्होंने 3 जनवरी 2020 को हुई लेफ्टिनेंट जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का भी जिक्र किया और कहा कि ''ये किसी भी देश के लिए अस्वीकार्य है।''

कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या इराक़ में अमेरिकी ड्रोन हमले में हुई थी। अमरीका ने उन्हें और उनकी क़ुद्स फ़ोर्स को सैकड़ों अमरीकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार क़रार देते हुए आतंकवादी घोषित कर रखा था।

इंटरव्यू में एक जगह पर वो ईरान और रूस के बीच सहयोग की बात पर ज़ोर देते हैं। वो कहते हैं, ''ईरान के साथ हमारा आपसी सहयोग जिस स्तर पर है वैसा किसी भी देश के साथ नहीं है। कोरोना महामारी के वक्त भी हमारा आपसी व्यापार बढ़ा है, कम नहीं हुआ है।''

उन्होंने यह भी बताया कि ईरान के साथ 2019 में 20 फ़ीसद व्यापार बढ़ा तो महामारी के दौरान इसमें और आठ फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हुई है।

उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि ईरान और यूरेशिया के बीच 2019 में हुए व्यापार समझौतों ने ईरान को बड़े बाज़ार के लिए अवसर मुहैया कराए।

सर्गेई लैवरोव ने 2015 में परमाणु समझौते से हटने के लिए अमेरिका की आलोचना की, साथ ही मुक्त व्यापार में डॉलर को हटाने की अहमियत पर भी ज़ोर दिया है।

ईरान की बैंकिंग सेक्टर पर पाबंदियाँ लगी हुई हैं और इसकी वजह से वो विदेशों के साथ व्यापार में डॉलर का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।

ईरान की राजधानी तेहरान से सटे शहर अबसार्ड में बंदूकधारियों ने घात लगाकर हमला कर देश के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या कर दी गई थी। ईरान के नेताओं ने इस हत्या के लिए इसराइल को दोषी ठहराया है और कहा कि इसका बदला लिया जाएगा।