ऐसी ख़बरें मिल रही हैं कि स्वेज़ नहर में फंसे मालवाहक जहाज़ को निकाल लिया गया है।
सोमवार, 29 मार्च 2021 को सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एवर गिवेन जहाज़ के पिछले हिस्से के घूम जाने की वजह से नहर का रास्ता खुला है।
वहीं समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि इंचकैप शिपिंग सर्विसेज़ के मुताबिक़, क़रीब एक हफ़्ते से स्वेज़ नहर में फंसा यह विशाल जहाज़ अब फिर से तैरने लगा है और उसे चलने लायक स्थिति में बनाने का काम जारी है।
वैश्विक समुद्री सेवाएं देने वाले इंचकैप ने ट्विटर पर बताया, स्थानीय समयानुसार सुबह 4.30 पर जहाज़ फिर से तैरने लगा और अब उसे पूरी तरह संचालन में लाने का काम जारी है।
जहाज़ को ट्रैक करने वाली सर्विस वेसलफ़ाइंडर ने अपनी वेबसाइट पर जहाज़ के स्टेटस को बदल दिया है और अब लिखा है कि जहाज़ रास्ते में है।
400 मीटर लंबा एवर गिवेन जहाज़ मंगलवार, 23 मार्च 2021 को तेज़ हवाओं के बीच स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंस गया था। इसकी वजह से यूरोप और एशिया के बीच के इस सबसे छोटे जहाज़ मार्ग पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई थी।
कम से कम 369 जहाज़ नहर का रास्ता खुलने का इंतज़ार कर रहे थे। स्वेज़ नहर प्राधिकरण (एससीए) के चेयरमैन ओसामा रबी ने मिस्र के एक्स्ट्रा न्यूज़ को रविवार, 28 मार्च 2021 को बताया कि इनमें कई मालवाहक जहाज़, तेल के टैंकर और एएनजी या एलपीजी गैस ले जा रहे जहाज़ थे।
स्वेज़ में ट्रांसिट सेवाएं देने वाली मिस्र की लेथ एजेंसीज़ ने ट्वीट किया कि जहाज़ आंशिक रूप से फिर तैरने लगा है, स्वेज़ नहर प्राधिकरण से आधिकारिक पुष्टि पेंडिंग है।
वहीं रॉयटर्स के मुताबिक़, जहाज़ के दोबारा तैरना शुरू करने की ख़बर आने के बाद कच्चे तेल के दाम में कमी आई है।
स्वेज़ नहर प्राधिकरण ने इससे पहले अपने एक बयान में कहा था कि जहाज़ को खींचकर बाहर निकालने का काम फिर से शुरू किया गया है। रविवार, 28 मार्च 2021 को निकालने की कोशिशों में लगी टीमों ने अपना काम तेज़ कर दिया था।
टगबोट और ड्रेजर के ज़रिए की गई लंबी कोशिशों के बाद जहाज़ को निकालने में एक बड़ी कामयाबी मिल सकी है।
जहाज़ को निकालने में कई दिनों तक नाकाम होने के बाद, रविवार, 28 मार्च 2021 को नहर प्रशासन ने वज़न कम करने के लिए जहाज़ से क़रीब 20,000 कंटेनरों को हटाने की तैयारी शुरू की थी।
इससे पहले विशेषज्ञों ने बीबीसी से कहा था कि ऐसे अभियानों में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसे एक क्रेन जिसे 60 मीटर (200 फीट) तक ऊपर पहुंचना होगा, जिसमें हफ़्तों लग सकते हैं।
विश्व व्यापार की रीढ़ के रूप में मशहूर स्वेज़ नहर दुनिया की मुख्य समुद्री क्रॉसिंग में से एक है। इससे दुनिया के कुल क़ारोबार का 12 फ़ीसदी माल गुज़रता है।
ऐसे में चीन से नीदरलैंड जा रहे मालवाहक जहाज़ के मंगलवार, 23 मार्च 2021 की सुबह फंस जाने के बाद अब तक उसके न निकलने से दुनिया के क़ारोबार पर गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
इस मालवाहक जहाज़ ने बाकी जहाजों के रास्ते को रोक दिया है।
डेनमार्क की कंसल्टेंसी फ़र्म सी-इंटेलिजेंस में प्रॉडक्ट्स और आपरेशंस के उपाध्यक्ष नील्स मैडसेन का अंदाज़ा है कि अगर यह जहाज़ और 48 घंटे तक फंसा रहा तो पहले से गंभीर दशा धीरे-धीरे ख़राब होती जाएगी।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उन्होंने बताया कि यदि ऐसा तीन से पांच दिनों तक हो गया तो विश्व व्यापार पर इसका बहुत बुरा असर पड़ना शुरू हो जाएगा। माल की आवाजाही के रूक जाने से महंगाई के बढ़ने की आशंका सबसे आम है।
स्वेज़ नहर इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
1) पूरब और पश्चिम को एकजुट करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी
स्वेज़ नहर मिस्र में स्थित 193 किलोमीटर लंबी नहर है जो कि भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। यह एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री लिंक है। यह जलमार्ग मिस्र में स्वेज़ इस्थमस (जलडमरूमध्य) को पार करती है। इस नहर में तीन प्राकृतिक झीलें शामिल हैं।
1869 से सक्रिय इस नहर का महत्व इसलिए है कि दुनिया के पूर्वी और पश्चिमी भाग को आने-जाने वाले जहाज़ इसके पहले अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर मौज़ूद केप ऑफ गुड होप होकर जाते थे। लेकिन इस जलमार्ग के बन जाने के बाद पश्चिमी एशिया के इस हिस्से से होकर यूरोप और एशिया को जहाज़ जाने लगे।
विश्व समुद्री परिवहन परिषद के अनुसार इस नहर के बनने के बाद एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले जहाज़ को नौ हजार किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़ती है। यह कुल दूरी का 43 फ़ीसदी हिस्सा है।
2) 9.5 बिलियन का दैनिक मूल्य
कंसल्टेंसी फर्म लॉयड्स लिस्ट के अनुसार, बुधवार, 24 मार्च 2021 को 40 मालवाहक जहाज़ और 24 टैंकर नहर पार करने के इंतज़ार में फंसे थे।
इन जहाज़ों पर अनाज, सीमेंट जैसे ड्राई प्रॉडक्ट लदे हैं। वहीं टैंकरों में पेट्रोलियम उत्पाद भरे हैं।
समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के अनुसार पशुधन और पानी के टैंकर ले जाने वाले आठ जहाज भी फंसे हुए हैं।
स्वेज़ नहर की स्थिति और इसके महत्व को देखते हुए इसे पृथ्वी के कुछ 'चोक पॉइंट' में से एक कहा जाता है। इसलिए अमेरिकी एनर्जी एजेंसी स्वेज़ नहर को वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और हर तरह के माल की आपूर्ति के लिए ज़रूरी मानता है।
एक अनुमान के अनुसार स्वेज़ नहर से क़रीब 19 हजार जहाज़ों से हर साल 120 करोड़ टन माल की ढुलाई होती है। लॉयड्स लिस्ट का मानना है कि इस नहर से हर दिन 9.5 अरब डॉलर मूल्य के मालवाहक जहाज़ गुजरते हैं। इनमें से लगभग पांच अरब डॉलर के जहाज़ पश्चिम को और 4.5 अरब डॉलर के जहाज़ पूरब को जाते हैं।
3) सप्लाई चेन के लिए काफ़ी अहम
जानकारों का कहना है कि यह चैनल दुनिया में माल की सप्लाई के लिए काफ़ी ज़रूरी है। इसलिए इसके अवरुद्ध होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
सी इंटेलिजेंस के विश्लेषक लार्स जेन्सेन कहते हैं कि पहली समस्या पोर्ट कंजेशन में हो सकती है।
उन्होंने कहा, ''यदि हम यह मानकर चलें कि सभी जहाज़ भरे हुए हैं। तो 55 हजार टीईयू (कंटनेर की क्षमता मापने वाली इकाई) के लिहाज से दो दिन के अंदर कुल 110 हजार टीईयू माल जो एशिया से यूरोप जा रहा होगा, फंस जाएगा। और जाम खत्म होते ही ये सारे जहाज़ यूरोपीय बंदरगाहों पर एक साथ पहुंचेगे जिससे वहां का लोड भी पीक पर पहुंच जाएगा।''
जेन्सेन का अनुमान है कि एक हफ़्ते के भीतर हमें यूरोपीय बंदरगाहों पर भारी दबाव देखना पड़ेगा। उनकी राय में इस समस्या के चलते दुकानों में बिकने वाला हर माल की आपूर्ति और उसकी क़ीमत के प्रभावित होने की आशंका है।
4) महंगाई बढ़ने का ख़तरा
अमेरिका में नॉर्थ कैरोलिना के कैंपबेल यूनिवर्सिटी में समुद्री मामलों के जानकार और इतिहास के प्रोफेसर सल्वाटोर मर्कोग्लियानो का मानना है कि इस समस्या के विश्व व्यापार पर गंभीर असर हो सकते हैं।
बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, ''नहर के बंद होने से मालवाहक जहाज़ और तेल टैंकर यूरोप में भोजन, ईंधन और तैयार माल नहीं पहुंचा पा रहे हैं। इस चलते यूरोप से सुदूर पूर्व तक भी कोई माल नहीं भेजा जा रहा है।''
बीबीसी के आर्थिक संवाददाता थियो लेगट्ट ने कहा, "स्वेज़ नहर पेट्रोलियम और तरल प्राकृतिक गैस की ढुलाई के लिए काफी अहम है, क्योंकि मध्य पूर्व से ईंधन को यूरोप तक लाया जाता है।''
लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार पिछले साल इस नहर से 5,163 टैंकर गुज़रे थे। इससे हर दिन क़रीब बीस लाख बैरल तेल की ढुलाई हुई थी।
अमेरिका की ईआईए के अनुसार, स्वेज़ नहर और सुमेड पाइपलाइन (भूमध्यसागर के अलेक्जेंड्रिया से स्वेज़ खाड़ी तक) के ज़रिए समुद्र से होने वाले कुल तेल क़ारोबार के नौ फ़ीसदी और तरल प्राकृतिक गैस के आठ फ़ीसदी की ढुलाई होती है।
नहर के इसी महत्व और मौज़ूदा समस्या को देखते हुए बुधवार, 24 मार्च 2021 को तेल के दाम छह फ़ीसदी से ज़्यादा बढ़ गए। हालांकि गुरुवार, 25 मार्च 2021 को इसमें गिरावट आई।
आईएनजी बैंक का मानना है कि यदि यह रूकावट लंबे समय तक रही तो ज़्यादा संभावना है कि खरीदारों को कहीं और से तेल की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए नक़दी बाज़ार की ओर रुख़ करना होगा।
कंटेनरों को यह भी तय करना होगा कि क्या उसे खाली करने के लिए इंतज़ार करना है या 'केप ऑफ गुड होप' होकर जाना है। आईएनजी बैंक के अनुसार दोनों विकल्पों में से किसी को भी चुनने पर माल ढुलाई में देरी होगी।
जानकारों की राय में मौज़ूदा समस्या का असल प्रभाव समय के साथ ही सामने आ पाएगा।
रिस्ताद कैबिनेट के ब्योनार टोनहुगेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, ''इस समस्या का असर शायद कमजोर और कुछ समय के लिए होगा। लेकिन यदि यह रूकावट ज़्यादा समय तक चली तो इससे महंगाई बढ़ेगी ही। यह असर लंबे समय तक बना रहेगा।''
अन्य सामानों पर असर
लंदन की क्लाइड एंड को के समुद्री मामलों के वकील इयान वुड्स ने एनबीसी को बताया, ''अन्य जहाजों पर लाखों डॉलर के सामान हैं। यदि नहर को जल्दी सामान्य नहीं किया गया तो जहाज़ दूसरे रास्तों से जाएंगे। इसका अर्थ है ज़्यादा समय और अधिक लागत। और यह आख़िरकार उपभोक्ताओं से ही वसूला जाएगा।''
बीबीसी के एक विशेषज्ञ लेगेट ने कहा कि यह एक बुरा सपना है।
उन्होंने कहा, ''इससे पता चला है कि एवर गिवेन जैसे नई पीढ़ी के बड़े जहाज़ों के नहर की संकरी सीमा से गुजरने पर क्या ग़लत हो सकता है।''
हालांकि, नहर के कुछ हिस्सों को 2015 में आधुनिकीकरण की योजना के तहत चौड़ा किया गया था। फिर भी इसमें नेविगेट करना बहुत मुश्किल है। यही नहीं भविष्य में ऐसी और भी गंभीर दुर्घटनाएं होने की आशंका है।
भारत में केंद्र की मोदी सरकार अगले तीन महीने में सोशल मीडिया और डिजीटल कंटेन्ट को नियमित करने के लिए एक नया क़ानून लाएगी। भारत के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और भारत के संचार मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की।
रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया भारत में बिजनस कर रहे हैं, उन्होंने अच्छा बिज़नस किया है और भारतीय लोगों को मज़बूत किया है। लेकिन इसके साथ ही पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया के गैर-ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल की शिकायतें आ रही हैं।''
मोदी सरकार के मुताबिक़ पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर हिंसा को बढ़ावा देने, अश्लील सामग्री शेयर करने, दूसरे देश के पोस्ट का इस्तेमाल करने जैसी कई शिकायतें सामने आई हैं, जिससे निपटने के लिए सरकार नई गाइडलाइंस लेकर आई है और तीन महीने में इसे लेकर एक क़ानून बनाया जाएगा।
गाइडलाइंस क्या हैं?
गाइडलाइंस के बारे में बताते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया को 2 श्रेणियों में बांटा गया है, एक इंटरमीडयरी और दूसरा सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडरी। हम जल्दी इसके लिए यूज़र संख्या का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।''
''यूज़र्स की गरिमा को लेकर अगर कोई शिकायत की जाती है, ख़ासकर महिलाओं की गरिमा को लेकर तो शिकायत करने के 24 घंटे के अंदर उस कंटेन्ट को हटाना होगा।''
उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया के क़ानून को तीन महीने में लागू किया जाएगा।
इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण व्यवस्था बनानी होगी और शिकायतों का निपटारा करने वाले ऑफ़िसर का नाम भी सार्वजनिक करना होगा। ये अधिकारी 24 घंटे में शिकायत का पंजीकरण करेगा और 15 दिनों में उसका निपटारा करेगा।
उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया को चीफ़ कंप्लाएंस ऑफिसर, नोडल कंटेन्ट पर्सन और एक रेज़ीडेट ग्रीवांस ऑफ़िसर नियुक्त करना होगा और ये सब भारत में ही होंगे। इसके अलावा शिकायतों के निपटारे से जुड़ी रिपोर्ट भी उन्हें हर महीने जारी करनी होगी।
अकाउंड वेरिफ़िकेशन होगा ज़रूरी
मोदी सरकार ने कहा, इसके अलावा ये सुनिश्चित करने के लिए कि सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट न बनाए जाए, कंपनियों से अपेक्षा होगी कि वो वेरिफिकेशन प्रक्रिया को अनिवार्य बनाएं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई पोस्ट किसने किया है, कोर्ट के आदेश या सरकार के पूछने पर ये जानकारी कंपनी को देनी होगी।
रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''किसी कोर्ट या सरकार के पूछने पर उन्हें बताना पड़ेगा कि कोई पोस्ट किसने शुरू किया। अगर भारत के बाहर से हुआ तो भारत में किसने शुरू किया। यह भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ संबंध, बलात्कार आदि के संबंध में होना चाहिए।''
हालांकि सोशल मीडिया कंपनियां अक्सर ये दलील देती आई हैं कि इस तरह की जानकारियां देने के लिए उन्हें एंड टू एंड एन्क्रिपशन को तोड़ना पड़ेगा और यूज़र का डेटा सेव करना पड़ेगा जो उनकी निजता का हनन होगा। एंड टू एंड एन्क्रिपशन का मतलब है कि दो लोगों के बीच हो रही बातचीत को कोई तीसरा (कंपनी भी) सुन या पढ़ नहीं सकता।
ये जानकारियां कंपनी कैसे मुहैय्या करा सकती है, इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''हम एन्क्रिपशन तोड़ने के लिए नहीं कह रहे, हम बस ये पूछ रहे हैं कि इसे शुरू किसने किया।''
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कुछ गाइडलाइंस का हवाला देते हुए कहा कि अश्लील सामग्री, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार से जुड़े वीडियो को फैलने से रोकने के लिए ये क़दम बेहद ज़रूरी हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के बाहर से भी सोशल मीडिया पोस्ट्स करने की कई ख़बरें सामने आई हैं।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन सभी नियमों का मकसद लोगों के हाथ में अधिक शक्ति देना है। इस पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, ''अगर कोई सिग्निफिकेंट पोस्ट हटाई जाती है, तो कंपनी को इसकी वजह देनी होगी।''
उन्होंने कहा कि इन सभी चीज़ों को लेकर प्लैटफ़ॉर्म्स से कहेंगे कि एक मैकेनिज़म बनाया जाए।
रविशंकर प्रसाद अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूज़र्स का डेटा भी दिया। उनके मुताबिक़ भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इस्टाग्राम के 21 करोड़, ट्विटर के 1.75 करोड़ यूज़र्स हैं।
ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी नियम
मोदी सरकार ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को रेगुलेट करने के लिए भी कानून लेकर आएगी।
भारत के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ''ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तीन स्तर का तंत्र होगा। OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया को अपने बारे में जानकारी देनी होगी, और उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।''
जावड़ेकर के मुताबिक़ सरकार ने पहले ओटीटी कंपनियों से मुलाकात की थी और एक सेल्फ़ रेगुलेशन बनाने के लिए कहा था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए।
नए नियम के आने पर ओटीटी और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म को अपनी डिटेल बतानी पड़ेंगी जैसे कि वो कहां से काम करते हैं। इसके अलावा शिकायतों के निवारण के लिए एक पोर्टल बनाना होगा।
जावड़ेकर ने कहा कि टीवी और प्रिंट की तरह डिजिटल के लिए भी एक नियामक संस्था बनाई जाएगी, जिसका अध्यक्ष कोई रिटायर्ट जज या प्रख्यात व्यक्ति हो सकता है।
उन्होंने कहा, ''जैसे ग़लती करने पर टीवी पर माफ़ी मांगी जाती है, वैसा ही डिजीटल के लिए भी करना होगा।''
इसके अलावा कंटेंट पर उम्र के मुताबिक़ क्लासिफ़िकेशन करना होगा और पेरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी।
उन्होंने कहा कि जहां तुरंत एक्शन की ज़रूरत हो, ऐसे मामलों के लिए सरकारी स्तर पर एक निगरानी तंत्र बनाया जाएगा।
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में जिस तरह की घटनाएं पिछले दिनों देखने को मिली हैं उससे काफी लोग सकते में हैं। लेकिन अति दक्षिणपंथी समूह और षड्यंत्रकारियों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखने वाले लोगों को ऐसे संकट का अंदाज़ा पहले से था।
अमरीकी राष्ट्रपति पद के लिए जिस दिन वोट डाले गए, उसी रात डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम के स्टेज पर आकर जीत की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था, ''हम लोग ये चुनाव जीतने की तैयारी कर रहे हैं। साफ़ साफ़ कहूं तो हम यह चुनाव जीत चुके हैं।''
उनका यह संबोधन उनके अपने ही ट्वीट के एक घंटे बाद हुआ था। उन्होंने एक घंटे पहले ही ट्वीट किया था, ''वे लोग चुनाव नतीजे चुराने की कोशिश कर रहे हैं।''
हालांकि उन्होंने चुनाव जीता नहीं था। कोई जीत नहीं हुई थी जिसे कोई चुराने की कोशिश करता। लेकिन उनके अति उत्साही समर्थकों के लिए तथ्य कोई अहमियत नहीं रखते थे और आज भी नहीं रखते हैं।
65 दिनों के बाद 06 जनवरी 2021 को दंगाइयों के समूह ने अमरीका की कैपिटल बिल्डिंग को तहस नहस कर दिया। इन दंगाइयों में कई तरह के लोग शामिल थे, अतिवादी दक्षिण पंथी, ऑनलाइन ट्रोल्स करने वाले और डोनाल्ड ट्रंप समर्थक क्यूएनॉन लोगों का समूह जो मानता है कि दुनिया को पीडोफाइल लोगों का समूह चला रहा है और ट्रंप सबको सबक सिखाएंगे। इन लोगों में चुनाव में धांधली का आरोप लगाने वाले ट्रंप समर्थकों का समूह 'स्टॉप द स्टील' के सदस्य भी शामिल थे।
वाशिंगटन के कैपिटल हाउस में हुए दंगे के करीब 48 घंटों के बाद आठ जनवरी 2021 को ट्विटर ने ट्रंप समर्थक कुछ प्रभावशाली एकाउंट को बंद करना शुरू किया, ये वैसे एकाउंट थे जो लगातार षड्यंत्रों को बढ़ावा दे रहे थे और चुनावी नतीजों को पलटने के लिए सीधी कार्रवाई करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे। इतना ही नहीं ट्विटर ने इसके बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एकाउंट पर भी पाबंदी लगा दी। 88 मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर वाले ट्रंप के एकाउंट पर पाबंदी लगाने के पीछे की वजह यह बताई गई है कि उनके ट्वीट से और ज़्यादा हिंसा भड़कने का ख़तरा है।
वाशिंगटन में हुई हिंसा से दुनिया सदमे है और लग रहा था कि अमेरिका में पुलिस और अधिकारी कहीं मौजूद नहीं हैं। लेकिन जो लोग इस घटना की कड़ियों को ऑनलाइन और अमरीकी शहरों की गलियों में जुड़ते हुए देख रहे थे उनके लिए यह अचरज की बात नहीं है।
चुनावी नतीजों को प्रभावित किया जा सकता है, ये बात वोट डाले जाने के महीनों पहले से डोनाल्ड ट्रंप अपने भाषणों और ट्वीट के ज़रिए कह रहे थे। चुनाव के दिन भी जब अमेरिकों ने मतदान करना शुरू किया था, तभी से अफ़वाहों का दौर शुरू हो गया था।
रिपब्लिकन पार्टी के पोलिंग एजेंट को फिलाडेल्फिया पोलिंग स्टेशन में प्रवेश की इजाज़त नहीं मिली। इस पोलिंग एजेंट के प्रवेश पर रोक वाला वीडियो वायरल हो गया। ऐसा नियमों को समझने में हुई ग़लती की वजह से हुआ था। बाद में इस शख़्स को पोलिंग स्टेशन में प्रवेश की इजाज़त मिल गई थी।
लेकिन यह उन शुरुआती वीडियो में शामिल था जो कई दिनों तक वायरल होते रहे। इसके साथ दूसरे वीडियो, तस्वीरों, ग्राफिक्स के ज़रिए एक नए हैशटैग '#स्टॉप द स्टील' के साथ आवाज़ बुलंद की जाने लगी कि मतदान में धांधली को रोकना है। इस हैशटैग का संदेश स्पष्ट था कि ट्रंप भारी मतों से जीत हासिल कर चुके हैं लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान में बैठी ताक़तें उनसे जीत को चुरा रही हैं।
चार नवंबर, 2020 को दिन के शुरुआती घंटों में जब मतों की गिनती का काम जारी था और टीवी नेटवर्कों पर जो बाइडन की जीत की घोषणा होने में तीन दिन बाक़ी थे, तब राष्ट्रपति ट्रंप ने जीत का दावा करते हुए आरोप लगाया था कि अमरीकी जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। हालांकि अपने दावे के पक्ष में उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया था। हालांकि अमेरिका में पहले के चुनावों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वहां मतगणना में किसी तरह की गड़बड़ी एकदम असंभव बात है।
चार नवंबर, 2020 को दोपहर आते आते 'स्टॉप द स्टील' नाम से एक फेसबुक समूह बन चुका था जो फ़ेसबुक के इतिहास में सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाला समूह साबित हुआ। पाँच नवंबर, 2020 की सुबह तक इस समूह से तीन लाख से ज़्यादा लोग जुड़ चुके थे।
अधिकांश पोस्ट में बिना किसी सबूत के आरोप लगाए गए थे कि बड़े पैमाने पर मतगणना में धांधली की जा रही है, यह भी कहा गया कि हज़ारों ऐसे लोगों के मत डाले गए हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। यह आरोप भी लगाया गया कि वोट गिनने वाली मशीन को इस तरह से तैयार किया गया है कि वह ट्रंप के मतों को बाइडन के मतों में गिन रही है।
लेकिन कुछ पोस्ट वास्तव में कहीं ज़्यादा चिंतित करने वाले थे, इन पोस्टों में सिविल वॉर और क्रांति को ज़रूरी बताया जा रहा था। पाँच नवंबर, 2020 की दोपहर तक फ़ेसबक ने 'स्टॉप द स्टील' पेज को हटाया लेकिन तब तक इस पेज पर पांच लाख से ज़्यादा कमेंट, लाइक्स और रिएक्शन आ चुके थे। इस पेज को हटाए जाने तक दर्जनों ऐसे समूह तैयार हो चुके थे।
ट्रंप के मतों को चुराए जाने की बात ऑनलाइन पर फैलती जा रही थी। जल्दी ही, मतों की सुरक्षा के नाम पर 'स्टॉप द स्टील' के नाम से समर्पित वेबसाइट लाँच की गई। शनिवार यानी सात नवंबर 2020 को, प्रमुख समाचार नेटवर्कों ने जो बाइडन को चुनाव का विजेता घोषित कर दिया। डेमोक्रेट्स के गढ़ में लोग जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकले। लेकिन ट्रंप के अति उत्साही समर्थकों की आनलाइन प्रतिक्रियाएं नाराजगी भरी और नतीजे को चुनौती देने वाली थी।
इन लोगों ने शनिवार यानी सात नवंबर 2020 को वाशिंगटन डीसी में मिलियन मेक अमेरिका ग्रेट अगेन मार्च के नाम से रैली प्रस्तावित की। ट्रंप ने इसको लेकर भी ट्वीट किया कि वे प्रदर्शन के ज़रिए रोकने की कोशिश कर सकते हैं। इससे पहले वाशिंगटन में ट्रंप समर्थक रैलियों में बहुत ज़्यादा लोग नहीं जुटे थे लेकिन शनिवार (सात नवंबर 2020) की सुबह फ्रीडम प्लाज़ा में हज़ारों लोग एकत्रित हुए थे।
एक अतिवादी शोधकर्ता ने इस रैली की भीड़ को ट्रंप समर्थकों के विद्रोह की शुरुआत कहा। जब ट्रंप की गाड़ियों का काफिला शहर से गुजरा तो समर्थकों में उनकी एक झलक पाने के लिए होड़ मच गई। समर्थकों के सामने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' की टोपी पहने ट्रंप नज़र आए।
इस रैली में अति दक्षिणपंथी समूह, प्रवासियों का विरोध करने वाले और पुरुषों के समूह प्राउड ब्यॉज़ के सदस्य शामिल थे जो गलियों में हिंसा कर रहे थे और बाद में अमरीकी कैपटिल बिल्डिंग में घुसकर हिंसा की। इसमें सेना, दक्षिणपंथी मीडिया और षड्यंत्र के सिद्धांतों की वकालत करने वाले तमाम लोग शामिल हुए थे।
रात आते आते ट्रंप समर्थकों और उनके विरोधियों में हिंसक झड़प की ख़बरें आने लगी थीं, इसमें एक घटना तो व्हाइट हाउस से पांच ब्लॉक की दूरी पर घटित हुआ। हालांकि इन हिंसाओं में पुलिस भी लिप्त थी, लेकिन इससे आने वाले दिनों का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।
अब तक राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी कानूनी टीम ने अपनी उम्मीदें को दर्जनों कानूनी मामलों पर टिका चुकी थीं हालांकि कई अदालतों ने चुनाव में धांधली के आरोपों को खारिज कर दिया था, लेकिन ट्रंप के समर्थकों की ऑनलाइन दुनिया ट्रंप के नजदीकी दो वकीलों सिडनी पॉवेल और एल लिन वुड की उम्मीदों से जुड़ी चुकी थी।
सिडनी पॉवेल और लिन वुड ने भरोसा दिलाया था कि वे चुनाव में धांधली के मामले को इतने विस्तृत ढंग से तैयार करेंगे कि मामला सामने आते ही बाइडन के चुनावी जीत की घोषणाओं की हवा निकल जाएगी।
पॉवेल एक कंजरवेटिव एक्टिविस्ट हैं और पूर्व सरकारी वकील रह चुकी हैं। पॉवेल ने फॉक्स न्यूज़ से कहा कि क्रैकन को रिलीज करने की कोशिश हो रही है। क्रैकन का जिक्र स्कैंडेवियन लोककथाओं में आता है जो विशालकाय समुद्री राक्षस है जो अपने दुश्मनों को खाने के लिए बाहर निकलता है।
उनके इस बयान के बाद क्रैकन को लेकर इंटरनेट पर तमाम तरह के मीम्स नजर आने लगे, इन सबके जरिए चुनावी में धांधली की बातों को बिना किसी सबूत के दोहराया जा रहा था। ट्रंप समर्थकों और क्यूएनऑन कांस्पिरेसी थ्योरी के समर्थकों के बीच पॉवेल और वुड किसी हीरो की तरह उभर कर सामने आए।
क्यूएनऑन कांस्पिरेसी थ्योरी में यक़ीन करने वालों का मानना है कि ट्रंप और उनकी गुप्त सेना डेमोक्रेटिक पार्टी, मीडिया, बिजेनस हाउसेज और हॉलीवुड में मौजूद पीडोफाइल लोगों के ख़िलाफ़ लड़ रही है। दोनों वकील राष्ट्रपति और उनके षडयंत्रकारी समर्थकों के बीच एक तरह से सेतु बन गए थे। इनमें से अधिकांश समर्थक छह जनवरी 2021 को कैपिटल बिल्डिंग में हुई हिंसा में शामिल थे।
पॉवेल और वुड ट्रम्प समर्थकों के आक्रोश को ऑनलाइन भुनाने में कामयाब रहे लेकिन क़ानूनी तौर पर दोनों कुछ ख़ास नहीं कर पाए। इन दोनों ने नवंबर 2020 के आख़िर तक 200 पन्नों का आरोप पत्र जरूर तैयार किया लेकिन उनमें अधिकांश बातें कांस्पीरेसी थ्योरी पर आधारित थे और इससे वे आरोप अपने आप खारिज हो गए थे जिन्हें दर्जनों बार अदालत में खारिज किया जा चुका था। इतना ही नहीं इस दस्तावेज़ में कानून की ग़लतियों के साथ साथ स्पेलिंग की ग़लतियां और टाइपिंग की ग़लतियां भी देखने को मिलीं।
लेकिन ऑनलाइन की दुनिया में इसकी चर्चा जारी रही। कैपिटल बिल्डिंग में हुई हिंसा से पहले 'क्रैकन' और 'रिलीज द क्रैकन' का इस्तेमाल केवल ट्विटर पर ही दस लाख से ज़्यादा बार किया जा चुका था।
जब अदालत ने ट्रंप के कानूनी अपील को खारिज कर दिया तब अतिवादी दक्षिणपंथियों ने चुनाव कर्मियों और अधिकारियों को निशाना बनाना शुरू किया। जॉर्जिया के एक चुनावकर्मी को जान से मारने की धमकी दी जाने लगे। इस प्रांत के रिपब्लिकन अधिकारी, जिसमें गवर्नर ब्रायन कैंप, प्रांत-मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) ब्रैड राफेनस्पर्जर और प्रांत के चुनावी व्यवस्था के प्रभारी गैबरियल स्टर्लिंग को ऑनलाइन गद्दार कहा जाने लगा।
स्टर्लिंग ने एक दिसंबर 2020 को भावनात्मक और भविष्य की आशंका को लेकर एक चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा, ''किसी को चोट लगने वाली है, किसी को गोली लगने वाली है, किसी की मौत होने वाली है और यह सही नहीं है।''
दिसंबर 2020 के शुरुआती दिनों में मिशिगन के प्रांत-मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) जैकलीन बेंसन डेट्रायट स्थित अपने घर में चार साल के बेटे के साथ क्रिसमस ट्री को संवार रही थीं तभी उन्हें बाहर हंगामा सुनाई दिया। करीब 30 प्रदर्शनकारी उनके घर के बाहर बैनर पोस्टर के साथ मेगाफोन पर 'स्टॉप द स्टील' चिल्ला रहे थे। एक प्रदर्शनकारी ने चिल्ला कर कहा, ''बेंसन तुम खलनायिका हो।'' एक दूसरे ने कहा, ''तुम लोकतंत्र के लिए ख़तरा हो।'' एक प्रदर्शनकारी इस मौके पर फेसबुक लाइव कर रहा था और कह रहा था कि उसका समूह यहां से नहीं हटने वाला है।
यह उदाहरण बताता है कि प्रदर्शनकारी वोटिंग की प्रक्रिया से जुड़े लोगों के साथ किस तरह से पेश आ रहे थे। जॉर्जिया में ट्रंप समर्थक लगातार राफेनस्पर्जर के घर बाहर हॉर्न के साथ गाड़ियां चलाते रहे। उनकी पत्नी को यौन हिंसा की धमकियां मिलीं।
आरिज़ोना में प्रदर्शनकारी डेमोक्रेट प्रांत मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) कैटी होब्स के घर के बाहर जमा हो गए। ये प्रदर्शनकारी लगातार यही कह रहे थे, ''हमलोग तुम पर नजर रख रहे हैं।''
11 दिसंबर 2020 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने टैक्सास प्रांत के चुनाव नतीजों को खारिज करने की कोशिश को निरस्त कर दिया।
जैसे जैसे ट्रंप के सामने कानूनी और राजनीतिक दरवाजे बंद हो रहे थे वैसे वैसे ट्रंप समर्थक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हिंसक हो रहे थे। 12 दिसंबर 2020 को वाशिंगटन डीसी में 'स्टॉप द स्टील' की दूसरी रैली का आयोजन किया गया। एक बार फिर इस रैली में हज़ारों समर्थक जुटे। इसमें अतिवादी दक्षिणपंथी लोगों से लेकर मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और सैन्य आंदोलनों में शामिल रहे लोग भी शामिल हुए।
ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन ने इन प्रदर्शनकारियों की तुलना बाइबिल के सैनिकों और पुजारियों से की जिन्होंने जेरिको की दीवार को गिराया था। इस रैली में चुनावी नतीजे को बदलवाने के लिए 'जेरिको मार्च' के आयोजन का आह्वान किया गया। रिपब्लिकन पार्टी को मॉडरेट बताने वाली अतिवादी दक्षिणपंथी आंदोलन ग्रोय पर्स के नेता निक फ्यूनेट्स ने इन प्रदर्शनकारियों से कहा, ''हमलोग रिपब्लिकन पार्टी को नष्ट करने जा रहे हैं।''
इस रैली के दौरान भी हिंसा भड़क गई थी।
इसके दो दिन बाद (14 दिसंबर 2020 को) इलेक्ट्रोल कॉलेज ने बाइडन की जीत पर मुहर लगा दी। अमरीकी राष्ट्रपति के लिए कार्यभार संभालने के लिए जरूरी अहम पड़ावों में यह भी शामिल है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप समर्थकों को यह नजर आने लगा था कि सभी वैधानिक रास्ते बंद हो चुके हैं, ऐसे में उन लोगों को लगने लगा था कि ट्रंप को बचाने के लिए सीधी कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है। चुनाव के बाद फ्लिन, पॉवेल और वुड के अलावा ट्रंप समर्थकों के बीच ऑनलाइन एक और व्यक्ति तेजी से जगह बनाने में कामयाब हुआ।
अमरीकी कारोबारी और इमेजबोर्ड 8 चैन और 8 कुन के प्रमोटर जिम वाटकिंस के बेटे रॉन वाटकिंस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप के समर्थक के तौर पर सामने आए। 17 दिसंबर 2020 को वायरल हुए ट्वीट्स में रॉन वाटकिंस ने डोनाल्ड ट्रंप को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें रोमन साम्राट जूलियस सीजर का रास्ता अपनाना चाहिए और लोकतंत्र की बहाली के लिए सेना की वफादारी का इस्तेमाल करना चाहिए।
रॉन वाटकिंस ने अपने आधा मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर्स को क्रास द रोबिकन को ट्वीटर ट्रेंड बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। जूलियस सीजर ने 49 ईसापूर्व रोबीकन नदी को पार करके ही युद्ध की शुरुआत की थी। इस हैशटैग का मुख्यधारा के लोगों ने भी इस्तेमाल किया। इसमें अरिज़ोना में रिपब्लिकन पार्टी की नेता कैली वार्ड भी शामिल थीं। एक अन्य ट्वीट में रॉन वाटकिंस ने ट्रंप को सुझाव दिया कि उन्हें राजद्रोह के क़ानून का इस्तेमाल करना चाहिए जिसके तहत राष्ट्रपति के बाद सेना और दूसरे पुलिस बलों पर अधिकार हो जाता है।
18 दिसंबर 2020 को ट्रंप ने पॉवेल, फ्लिन और दूसरे लोगों के साथ व्हाइट हाउस में रणनीतिक बैठक की। न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक इस बैठक के दौरान फ्लिन ने ट्रंप को मार्शल लॉ लागू करके सेना के अधीन फिर से चुनाव कराने का सुझाव दिया था। इस बैठक के बाद ऑनलाइन दुनिया में दक्षिणपंथी समूहों के बीच एक बार फिर से युद्ध और क्रांति को लेकर बातचीत शुरू हो गई। कई लोग छह जनवरी 2021 को अमेरिकी कांग्रेस के ज्वाइंट सेशन को देखने आए थे, जो एक तरह से औपचारिकता भर होती है। लेकिन ट्रंप समर्थकों को उपराष्ट्रपति माइक पेंस से भी उम्मीद थी।
उपराष्ट्रपति माइक पेंस छह जनवरी 2021 के आयोजन की अध्यक्षता करने वाले थे, ट्रंप समर्थकों को उम्मीद थी कि माइक पेंस इलेक्ट्रोल कॉलेज वोट्स की उपेक्षा करेंगे। इन लोगों की आपसी चर्चा में कहा जा रहा था कि उसके बाद किसी तरह के विद्रोह से निपटने के लिए राष्ट्रपति सेना की तैनाती करेंगे और चुनावी धांधली करने वालों के बड़े पैमानी पर गिरफ्तारी का आदेश देंगे और उन सबको सेना की ग्वांतेनामो बे की जेल में भेजा जाएगा। लेकिन यह सब ऑनलाइन की दुनिया में ट्रंप समर्थकों के बीच हो रहा था, ज़मीन की सच्चाई पर इन सबका होना असंभव दिख रहा था। लेकिन ट्रंप समर्थकों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया और देश भर से आपसी सहयोग और एक साथ सफर करके हज़ारों लोग छह जनवरी 2021 को वाशिंगटन पहुंच गए।
ट्रंप के झंडे लगाए गाड़ियों का लंबा काफिला शहर में पहुंचने लगा था। लुइसविले, केंटुकी, अटलांटा, जॉर्जिया और सक्रेंटन जैसे शहरों से गाड़ियों का काफिला निकलने की तस्वीरें भी सोशल प्लेटफॉर्म्स पर दिखने लगी थीं। एक शख़्स ने करीब दो दर्जन समर्थकों के साथ तस्वीर पोस्ट करते हुए ट्वीट किया, ''हमलोग रास्ते में हैं।'' नार्थ कैरोलिना के आइकिया पार्किंग में एक व्यक्ति ने अपने ट्रक की तस्वीर के साथ लिखा, ''झंडा थोड़ा जीर्णशीर्ण है लेकिन हम इसे लड़ाई का झंड़ा कह रहे हैं।''
लेकिन यह स्पष्ट था कि पेंस और रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे अहम नेता क़ानून के मुताबिक ही काम करेंगे और बाइडन की जीत को कांग्रेस से अनुमोदित होने देंगे। ऐसे में इन लोगों के ख़िलाफ़ भी जहर उगला जाने लगा। वुड ने उनके लिए ट्वीट किया, ''पेंस राष्ट्रद्रोह के मुक़दमे का सामना करेंगे और जेल में होंगे। उन्हें फायरिंग दस्ते द्वारा फांसी दी जाएगी।'' ट्रंप समर्थकों के बीच ऑनलाइन चर्चाओं में आक्रोश बढ़ने लगा था। लोग बंदूकें, युद्ध और हिंसा की बात करने लगे थे।
ट्रंप समर्थकों के बीच लोकप्रिय गैब औऱ पार्लर जैसी सोशल प्लेटफॉर्म्स के अलावा दूसरों जगह पर भी ऐसी बातें मौजूद थीं। पहले प्राउड ब्यॉज के समूह में सदस्य पुलिस बल के खिलाफ और बाद में वे अधिकारियों के ख़िलाफ़ लिखने लगे थे क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था कि अधिकारियों का समर्थन अब नहीं मिल रहा है।
वेबसाइट 'द डोनाल्ड' जो ट्रंप समर्थकों के बीच लोकप्रिय है। इस वेबसाइट पर ट्रंप समर्थक पुलिस बैरिकैड तोड़ने, बंदूकें और दूसरे हथियार रखने, बंदूक को लेकर वाशिंगटन के सख्त कानून के उल्लंघन को लेकर खुले तौर पर चर्चा कर रहे थे। इस वेबसाइट पर कैपिटल बिल्डिंग में हंगामा करने और कांग्रेस के 'देशद्रोही' सदस्यों को गिरफ्तार किए जाने तक की बकवास बातें हो रही थीं।
छह जनवरी 2021, यानी बुधवार को ट्रंप ने व्हाइट हाउस के दक्षिण में स्थित इलिप्स पार्क में हज़ारों की भीड़ को एक घंटे से ज़्यादा समय तक संबोधित किया था। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा कि शांतिपूर्ण और देशभक्ति से आप बात कहेंगे तो वह सुनी जाएगी। लेकिन अंत आते आते उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ''हमें पूरे दमखम से लड़ना होगा, अगर हम पूरे दमखम से नहीं लड़े तो आप अपना देश खो देंगे। इसलिए हमलोग जा रहे हैं। हमलोग पेन्सेल्विनया एवेन्यू जा रहे हैं और हमलोग कैपिटल बिल्डिंग जा रहे हैं।''
कुछ विश्लेषकों के मुताबिक उन दिन हिंसा की आशंका एकदम स्पष्ट थी। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे माइकल चेरटॉफ़ उस दिन हुई हिंसा के लिए कैपिटल पुलिस को जिम्मेदार ठहराते हैं। कथित तौर पर कैपिटल पुलिस ने नेशनल गार्ड की मदद की पेशकश को भी ठुकरा दिया था।
माइकल इसे कैपिटल पुलिस की सबसे बड़ी नाकामी बताते हुए कहते हैं, ''मैं जहां तक सोच पा रहा हूं, इससे बड़ी नाकामी और क्या होगी। इस दौरान हिंसा होने की आशंका का पता पहले से लग रहा था। स्पष्टता से कहूं तो यह स्वभाविक भी था। अगर आप समाचार पत्र पढ़ते हैं, जागरूक हैं तो आपको अंदाजा होगा कि इस रैली में चुनाव में धांधली की बात पर भरोसा करने वाले लोग थे, कुछ इसमें चरमपंथी थे, कुछ हिंसक थे। लोगों ने खुले तौर पर बंदूकें लाने की अपील की हुई थीं।''
इन सबके बाद भी, वर्जीनिया के 68 साल के रिपब्लिकन समर्थक जेम्स क्लार्क जैसे अमेरिकी छह जनवरी 2021 की घटना पर चकित हैं। उन्होंने बीबीसी को बताया, ''यह काफी दुखद था। ऐसा कुछ होगा मैंने नहीं सोचा था।''
लेकिन ऐसी हिंसा की आशंका कई सप्ताह से बनी हुई थी। चरमपंथी और षड्यंत्रकारी समूहों को भरोसा था कि चुनावी नतीजे की चोरी हुई है। ऑनलाइन दुनिया में ये लोग लगातार साथ में हथियार रखने और हिंसा की बात कर रहे थे। हो सकता है कि पुलिस अधिकारियों ने इन लोगों की पोस्ट को गंभीरता से नहीं लिया हो या फिर उन्हें जांच के लिए उपयुक्त नहीं पाया हो। लेकिन अब जवाबदेय अधिकारियों को चुभते हुए सवालों का सामना करना होगा।
जो बाइडन 20 जनवरी 2021 को अमरीकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। माइक चेरटॉफ़ उम्मीद कर रहे हैं कि सुरक्षा बल 06 जनवरी 2021 की तुलना में कहीं ज़्यादा मुस्तैदी से तैनात होगा। हालांकि अभी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा और बाधा पहुंचाने की बात कही जा रही है। इन सबके बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि इन लोगों ने कांस्पीरेसी थ्योरी को लाखों लोगों तक क्यों पहुंचने दिया?
छह जनवरी 2021 की हिंसा के बाद 08 जनवरी 2021 को ट्विटर ने ट्रंप के पूर्व सलाहकार फ्लिन, क्रैकन थ्योरी देने वाले वकील पॉवेल एवं वुड और वाटकिंस के खाते डिलिट किए हैं। इसके बाद ट्रंप का एकाउंट भी बंद किया गया है।
कैपिटल बिल्डिंग में हिंसा करने वाले लोगों की गिरफ़्तारी जारी है। हालांकि अभी भी ज़्यादातर दंगाई अपनी सामानान्तर दुनिया में मौजूद हैं जहां वे अपनी सुविधा के मुताबिक तथ्य गढ़ रहे हैं। छह जनवरी 2021 को हुई हिंसा के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने वीडियो बयान जारी किया जिसमें उन्होंने पहली बार यह स्वीकार किया है कि नया प्रशासन 20 जनवरी 2021 को अपना कार्यभार संभालेगा।
ट्रंप समर्थक इस वीडियो को देखने के बाद भी नए तरह के स्पष्टीकरण दे रहे हैं। वे खुद को दिलासा दे रहे हैं कि ट्रंप को आसानी से हार नहीं माननी चाहिए, उन्हें संघर्ष करना चाहिए। इतना ही नहीं ट्रंप समर्थकों की एक थ्योरी यह भी चल रही है कि यह वीडियो ट्रंप का है ही नहीं, यह कंप्यूटर जेनरेटेड फेक वीडियो है। ट्रंप समर्थक ये आशंका भी जता रहे हैं कि ट्रंप को बंधक तो नहीं बना लिया गया है। हालांकि ट्रंप के ढेरों प्रशंसकों को अभी भी भरोसा है कि ट्रंप राष्ट्रपति बने रहेंगे।
इनमें से किसी भी बात के सबूत मौजूद नहीं हैं लेकिन इससे एक बात ज़रूर साबित होती है। डोनाल्ड ट्रंप का चाहे जो हो, अमेरिकी कैपिटल बिल्डिंग में हिंसा करने वाले लोग आने वाले दिनों में जल्दी शांत नहीं होने वाले हैं, यह तय है।
भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए गैंग रेप और हत्या मामले में सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को आरोपपत्र दायर कर दिया है।
19 साल की दलित लड़की के साथ हुए अपराध के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों संदीप, लवकुश, रवि और रामू पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं भी लगाई हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अभियुक्तों के वकील ने बताया कि हाथरस की स्थानीय अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है।
सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जाँच कर रही थी और सीबीआई के अधिकारियों ने पूरे मामले में अभियुक्त संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जाँच की।
चारों अभियुक्त फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि चारों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फ़ॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था।
इसके अलावा सीबीआई की जाँच टीम ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से भी बात की थी। ये वही अस्पताल है जहाँ मृतका का इलाज हुआ था।
हाथरस गैंग रेप मामला न सिर्फ़ अपराधियों की बर्बरता की वजह से चर्चा में आया था बल्कि इसमें उत्तर प्रदेश की पुलिस पर मृतका के परिजनों की अनुमति के बिना और उनकी ग़ैरहाज़िरी में लड़की का अंतिम संस्कार करने पर भी विवाद हुआ था।
इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की भी ख़ूब आलोचना हुई थी।
बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत से कहा था कि इलाके में न्याय-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के डर से आनन-फानन में लड़की का अंतिम संस्कार करा दिया गया।
19 साल की लड़की दलित परिवार से थी जबकि चारों अभियुक्त ऊंची जाति से सम्बन्ध रखते हैं।
इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश में व्याप्त जाति-व्यवस्था की उलझनें भी सामने आई थीं जब कुछ गाँवों में अभियुक्तों के पक्ष में महापंचायत बुलाई गई।
इतना ही नहीं, लड़की के गैंग रेप होने को लेकर भी सवाल उठाए गए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ वक़्त के लिए पीड़िता के गाँव में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी।
इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़िता के परिजनों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही थी जिसे लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था क्योंकि आम तौर पर नार्को टेस्ट अभियुक्त पक्ष का होता है।
उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर लचर रवैये के आरोपों के बाद आख़िकार एक विशेष जाँच समिति (एसआईटी) का गठन किया गया था। हालाँकि जाँच का ज़िम्मा बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल पर कड़ी टिप्पणी करने वाले और फ़लस्तीनियों के अधिकारों की बात करने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिचैप तैय्यप अर्दोआन की सरकार ने दो साल से लगभग समाप्त इसराइल के साथ राजनयिक संबंधों को अचानक बहाल करने की घोषणा की है।
तुर्की ने 15 दिसंबर 2020 को इसराइल के लिए अपना राजदूत नियुक्त किया है। 2018 में ग़ज़ा में फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ इसराइल की हिंसक कार्रवाइयों के विरोध में तुर्की ने अपना राजदूत तेल अवीव से वापस बुला लिया था।
ये प्रदर्शन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम भेजने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हो रहे थे।
तुर्की के नेता अर्दोआन इसराइल को 'दहशतगर्द और बच्चों का क़ातिल' कह चुके हैं, लेकिन अब वो अपने राजदूत को इसराइल भेज रहे हैं। इस फ़ैसले के अर्थ को समझने के लिए हालिया घटनाक्रमों और इसराइल-तुर्की के लंबे ऐतिहासिक संबंधों को समझना ज़रूरी है।
तुर्की की ओर से अपने राजदूत को तैनात करने का फ़ैसला 15 दिसंबर 2020 को आया है जब 14 दिसंबर 2020 को अमेरिका ने तुर्की पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं।
रूस से एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम ख़रीदने के बाद अमेरिका ने 2020 की शुरुआत में तुर्की को अपने एफ़-35 लड़ाकू विमान बेचने और तुर्की के एविएटर ट्रेनिंग प्रोग्राम समेत कई योजनाओं पर रोक लगा दी थी।
अमेरिकी दबाव के बावजूद तुर्की ने रूसी मिसाइल सिस्टम की ख़रीदारी से पीछे हटने से मना कर दिया था। अब जाते-जाते ट्रंप प्रशासन ने तुर्की पर नई पाबंदियां लागू कर दी हैं।
ग़ौरतलब है कि तुर्की अमेरिका और यूरोप के रक्षा गठबंधन नेटो का एक अहम सदस्य भी है।
मध्य पूर्व में नई गुटबाज़ियां और 'जियो स्ट्रेटेजिक' बदलाव ऐसे समय में हो रहे हैं जब पूरी दुनिया ऐतिहासिक रूप से कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है।
दुनियाभर के देशों की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ रही हैं और अरब देशों के लिए बड़ी मुश्किल का समय है क्योंकि पूरी दुनिया की तेल पर निर्भरता कम हुई है जिसके कारण उनका आर्थिक बोझ ज़्यादा बढ़ गया है।
अरब देश आर्थिक स्थिरता के कारण अपनी पारंपरिक नीतियों की समीक्षा करते हुए अपनी नई आर्थिक संभावनाओं को खोज रहे हैं।
वहीं अमेरिका में भी राजनीतिक बदलाव आ रहा है और नए राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन 20 जनवरी 2021 से पदभार संभालने जा रहा है।
तुर्की और इसराइल के संबंधों में उतार-चढ़ाव
तुर्की और इसराइल के बीच संबंधों में हमेशा फ़लस्तीन एक तरह केंद्र बिंदु बना रहा है। पहले भी तीन बार तुर्की इसराइल के साथ अपने राजनयिक संबंध निचले स्तर पर लाने या उन्हें ख़त्म करने की कोशिशें कर चुका है और हर बार इसके केंद्र में फ़लस्तीन ही रहा है।
सबसे पहले 1956 में जब स्वेज़ नहर के मुद्दे पर इसराइल ब्रिटेन और फ़्रांस के समर्थन के बाद सिनाई रेगिस्तान में हमलावर हुआ तो तुर्की ने उस पर विरोध जताते हुए अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया था।
इसके बाद 1958 में उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गोरियान और तुर्की के प्रमुख अदनान मेंदरेस के बीच एक ख़ुफ़िया मुलाक़ात हुई और दोनों देशों के बीच रक्षा और ख़ुफ़िया सहयोग स्थापित करने पर सहमति हुई।
1980 में इसराइल ने पूर्वी येरुशलम पर क़ब्ज़ा किया तो तुर्की ने दोबारा उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया। इस दौरान दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध ठंडे रहे लेकिन 90 के दशक में ओस्लो शांति समझौते के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बहाल हो गए।
इस दौरान दोनों मुल्कों के संबंध जिसे 'ज़बरदस्ती की शादी' भी कहा जाता था वह बिना किसी उलझन के चलते रहे और इस दौरान पारस्परिक व्यापार और रक्षा क्षेत्र में सहयोग के कई समझौते भी हुए।
जनवरी 2000 में इसराइल ने तुर्की से पानी ख़रीदने का एक समझौता किया लेकिन यह समझौता ज़्यादा दिन नहीं चल सका। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते हुए जिनमें तुर्की को ड्रोन और निगरानी के उपकरण देना भी शामिल था।
रक्षा क्षेत्र में संबंधों के बनने की बड़ी वजह थी - तुर्की की रक्षा ज़रूरतें और इसराइल को अपना सामान बेचने के लिए ख़रीदार ढूंढना।
तुर्की में नवंबर 2002 में जब रिचैप तैय्यप अर्दोआन की दक्षिणपंथी जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता में आई तो दोनों देशों के बीच संबंधों में नया मोड़ आना शुरू हुआ। 2005 में अर्दोआन ने इसराइल का दौरा भी किया और उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्त को तुर्की के दौरे की दावत दी।
दिसंबर 2008 में हालात ने एक और करवट ली और इसराइली प्रधानमंत्री शिमॉन पेरेज़ के अंकारा दौरे के तीन दिन बाद ही इसराइल ने ग़ज़ा में 'ऑपरेशन कास्ट लेड' के नाम से चढ़ाई शुरू कर दी।
हमास से हमदर्दी रखने वाले अर्दोआन को इसराइल की इस कार्रवाई से ज़बर्दस्त धक्का लगा और उसको 'स्पष्ट रूप से धोखा' क़रार दिया।
2010 में इसराइली फ़ौज की ग़ज़ा में घेराबंदी के दौरान मावी मरमरा की घटना हुई। तुर्की के एक मानवाधिकार संगठन की ओर से मावी मरमरा जहाज़ मानवीय सहायता लेकर जा रहा था जिस पर इसराइली फ़ौज ने धावा बोल दिया। इस घटना में 10 तुर्क नागरिक मारे गए थे।
इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच संबंध ख़त्म हो गए।
अमेरिकी कोशिश
अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने दो मित्र देशों के बीच में तनाव को कम करने और राजनयिक संबंधों को बहाल कराने के लिए कोशिशें जारी रखीं।
इसके लिए अर्दोआन ने तीन शर्तें सामने रखीं जिनमें मावी मरमरा पर हमले के लिए माफ़ी मांगने, मारे गए लोगों को मुआवज़ा देने और ग़ज़ा की घेराबंदी समाप्त करने जैसी शर्तें शामिल थीं।
इसराइल के लिए सबसे बड़ी शर्त माफ़ी मांगना था और इसराइल भी तुर्की को हमास के कुछ नेताओं को देश से बाहर करने की मांग कर रहा था।
अमेरिकी कोशिशों के तहत ही 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अर्दोआन और इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच फ़ोन पर बातचीत कराई। टेलिफ़ोन पर हुई बातचीत के दौरान नेतन्याहू माफ़ी मांगने और मारे गए लोगों के लिए मुआवज़ा देने को तैयार हो गए।
इसके बावजूद इस क्षेत्र में लगातार होने वाली घटनाओं के कारण दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य होने में देरी होती रही और आख़िरकार सन 2016 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध बहाल हो सके।
अमेरिका ने रूस में बने मिसाइल डिफेंस सिस्टम की तैनाती को लेकर नैटो के अपने सहयोगी देश तुर्की पर प्रतिबंध लगा दिया है। तुर्की ने 2019 में ही रूस से ये मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली हासिल की थी।
अमेरिका का कहना है कि रूस का ज़मीन से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम एस-400 किसी भी तरह से नैटो के तकनीकी मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है। एस-400 यूरो-अटलांटिक गठबंधन के लिए ख़तरा है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 14 दिसंबर 2020 को इन प्रतिबंधों की घोषणा की जिससे तुर्की की हथियार खरीद पर असर पड़ेगा।
अमेरिकी पाबंदियों की घोषणा के फौरन बाद रूस और तुर्की ने इन प्रतिबंधों की आलोचना की है।
रूस में बने मिसाइल सिस्टम की खरीद के मुद्दे पर अमेरिका तुर्की को पहले ही एफ़-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से बाहर कर चुका है।
अमेरिका को किस बात पर आपत्ति है?
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने एक बयान जारी कर कहा, ''अमेरिका ने शीर्ष स्तर पर तुर्की को कई मौकों पर ये स्पष्ट किया है कि एस-400 सिस्टम की खरीद से अमेरिकी मिलिट्री टेक्नॉलॉजी और सेना ख़तरे में पड़ जाएंगे। इससे रूस के रक्षा उद्योग को बड़ी मात्रा में पैसा मिलेगा और तुर्की के सशस्त्र बलों और उसके रक्षा उद्योग में रूस की पहुंच बढ़ेगी।''
माइक पॉम्पियो ने आगे कहा, ''इसके बावजूद तुर्की ने एस-400 सिस्टम की खरीद और टेस्टिंग को लेकर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया जबकि इसके विकल्प मौजूद थे। इससे तुर्की की रक्षा ज़रूरतें भी पूरी होतीं।''
उन्होंने कहा, ''मैं तुर्की से अपील करता हूं कि वो एस-400 के मुद्दे को अमेरिका से तालमेल बिठाकर फौरन सुलझाए। तुर्की अमेरिका के लिए एक अहम क्षेत्रीय सुरक्षा साझेदार है। तुर्की जितनी जल्दी हो सके एस-400 सिस्टम की अड़चन को हटाकर दशकों पुराने हमारे रक्षा सहयोग को जारी रखे।''
तुर्की पर अमेरिकी पाबंदी की जद में रक्षा उद्योग निदेशालय के इस्माइल डेमिर और तीन अन्य कर्मचारी आए हैं। इस पाबंदी के तहत अमेरिका से जारी निर्यात लाइंसेस पर प्रतिबंध लगाया गया है, साथ ही अमेरिकी ज्यूरिक्डिक्शन में आने वाली तुर्की की परिसंपत्तियों को भी फ्रीज़ कर दिया गया है।
तुर्की का क्या कहना है?
दूसरी तरफ़, तुर्की के विदेश मंत्रालय ने ''अमेरिका से उसके पक्षपातपूर्ण फ़ैसले पर फिर से विचार करने की अपील'' की है।
तुर्की ने ये भी कहा है कि वो गठबंधन की भावना के अनुरूप कूटनीतिक बातचीत के रास्ते इस मसले का हल खोजने के लिए तैयार है।
तुर्की विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में ये भी कहा गया है कि ''अमेरिकी पाबंदी से हमारे संबंधों पर नकारात्मक असर'' पड़ेगा और वक़्त आने पर तुर्की इसका बदला लेगा।
तुर्की का कहना है कि अमेरिका ने उसे पैट्रियट मिसाइल बेचने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उसने रूस से एस-400 सिस्टम खरीदा।
तुर्की के अधिकारियों का ये भी कहना है कि नैटो के दूसरे सहयोगी देश ग्रीस के पास अपना एस-300 सिस्टम है, हालांकि ये उसने रूस से सीधे नहीं खरीदा है।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी पाबंदी की आलोचना करते हुए कहा है कि ये अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के प्रति घंमड से भरे व्यवहार को दिखलाता है।
सर्गेई लावरोव ने कहा कि अमेरिका इस तरह की एकतरफा और अवैध तरीके से दमन करने वाली कार्रवाई करता रहा है।
तुर्की कितना महत्वपूण है?
तीस देशों के सैनिक गठबंधन नैटो में तुर्की के पास दूसरी सबसे बड़ी सेना है।
वो अमेरिका का महत्वपूर्ण साझीदार है और सीरिया, इराक़ और ईरान से सीमा लगने के कारण उसकी रणनीतिक अहमियत है।
सीरिया के संघर्ष में भी तुर्की का अहम रोल रहा है। उसने सीरिया के कुछ विद्रोही गुटों को सैनिक और हथियारों की मदद मुहैया कराई है।
हालांकि नैटो और यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों के साथ तुर्की के रिश्ते हाल के दिनों में बिगड़े हैं। इन देशों का आरोप है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन साल 2016 के नाकाम तख़्तापलट के बाद लगातार मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं।
एस-400 किस तरह से काम करता है?
लंबी दूरी तक सर्विलांस करने में सक्षम रडार चीज़ों पर नज़र रखता है और इसकी सूचना कमांड व्हीकल को भेज देता है जहां संभावित लक्ष्य का आकलन किया जाता है।
लक्ष्य की पहचान के बाद कमांड व्हीकल मिसाइल लॉन्च का आदेश देता है।
इससे जुड़ा डेटा लॉन्च व्हीकल के पास भेजा जाता है और वहां से ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल दागी जाती है।
रडार मिसाइल को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करता है।
ईरान के सरकारी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव ने कहा है कि रूस ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के मामले में ईरान के साथ खड़ा है।
उन्होंने कहा कि रूस इस बात को लेकर सहमत है कि उनकी हत्या क्षेत्र में अशांति पैदा करने के मकसद से की गई है।
सर्गेई लैवरोव ने ईरान और रूस को 'दुनिया के न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ''दो अहम देश'' बताया है।
ईरान के सरकारी टीवी नेटवर्क वन (आईआरटीवी 1) ने लैवरोव की रूसी भाषा में कही बात को फारसी भाषा में अनुवाद कर कहा है कि उन्होंने कहा, ''हम वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या की निंदा करते हैं। हम इसे एक उकसाने वाली आतंकवादी हरकत और क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश के तौर पर देखते हैं। ये विदेशी सरकारों की दखल का भी मुद्दा है।''
उन्होंने 3 जनवरी 2020 को हुई लेफ्टिनेंट जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का भी जिक्र किया और कहा कि ''ये किसी भी देश के लिए अस्वीकार्य है।''
कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या इराक़ में अमेरिकी ड्रोन हमले में हुई थी। अमरीका ने उन्हें और उनकी क़ुद्स फ़ोर्स को सैकड़ों अमरीकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार क़रार देते हुए आतंकवादी घोषित कर रखा था।
इंटरव्यू में एक जगह पर वो ईरान और रूस के बीच सहयोग की बात पर ज़ोर देते हैं। वो कहते हैं, ''ईरान के साथ हमारा आपसी सहयोग जिस स्तर पर है वैसा किसी भी देश के साथ नहीं है। कोरोना महामारी के वक्त भी हमारा आपसी व्यापार बढ़ा है, कम नहीं हुआ है।''
उन्होंने यह भी बताया कि ईरान के साथ 2019 में 20 फ़ीसद व्यापार बढ़ा तो महामारी के दौरान इसमें और आठ फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हुई है।
उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि ईरान और यूरेशिया के बीच 2019 में हुए व्यापार समझौतों ने ईरान को बड़े बाज़ार के लिए अवसर मुहैया कराए।
सर्गेई लैवरोव ने 2015 में परमाणु समझौते से हटने के लिए अमेरिका की आलोचना की, साथ ही मुक्त व्यापार में डॉलर को हटाने की अहमियत पर भी ज़ोर दिया है।
ईरान की बैंकिंग सेक्टर पर पाबंदियाँ लगी हुई हैं और इसकी वजह से वो विदेशों के साथ व्यापार में डॉलर का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
ईरान की राजधानी तेहरान से सटे शहर अबसार्ड में बंदूकधारियों ने घात लगाकर हमला कर देश के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या कर दी गई थी। ईरान के नेताओं ने इस हत्या के लिए इसराइल को दोषी ठहराया है और कहा कि इसका बदला लिया जाएगा।
मालदीव और चीन के बीच क़र्ज़ भुगतान को लेकर सार्वजनिक रूप से कहासुनी हुई है। मालदीव में चीन के क़र्ज़ को लेकर हमेशा से चिंता जतायी जाती रही है लेकिन पिछले हफ़्ते यह कलह सार्वजनिक मंच पर आ गई।
यह कहासुनी मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद और मालदीव में चीन के राजदूत चांग लिचोंग की बीच ट्विटर पर हुई।
नशीद ने 11 दिसंबर 2020 को ट्वीट किया था कि अगले दो हफ़्तों में मालदीव को क़र्ज़ की बड़ी रक़म चीनी बैंकों को भुगतान करनी है।
उनके इस ट्वीट में किए गए दावे को चीनी राजदूत ने ख़ारिज कर दिया। चीनी राजदूत ने कहा कि मालदीव को क़र्ज़ का भुगतान करना है लेकिन रक़म उतनी बड़ी नहीं है, जैसा कि नाशीद दावा कर रहे हैं।
मोहम्मद नशीद मालदीव के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं। उन्हें भारत समर्थक भी कहा जाता है।
नशीद ने अपने ट्वीट में कहा था, ''अगले 14 दिनों में मालदीव को 1.5 करोड़ डॉलर किसी भी तरह से चीनी बैंक को भुगतान करना है। चीनी बैंकों ने इन क़र्ज़ों में हमें किसी भी तरह की कोई छूट नहीं दी है। ये भुगतान सरकार की कुल आय के 50 फ़ीसदी के बराबर हैं। कोरोना महामारी संकट के बीच मालदीव किसी तरह से उबरने की कोशिश कर रहा है।''
दो घंटे के भीतर ही चीनी राजदूत ने ट्विटर पर ही नशीद के दावों को ख़ारिज कर दिया। चांग लिचोंग ने नशीद के ट्वीट के जवाब में कहा, ''बैंकों से जो मुझे जानकारी मिली है उसके हिसाब से अगले 14 दिनों में 1.5 करोड़ डॉलर का कोई क़र्ज़ भुगतान नहीं करना है। आप अकाउंट बुक चेक कीजिए और इसे बजट के लिए बचाकर रखिए। चीयर्स।''
12 दिसंबर 2020 को चीनी राजदूत ने ट्वीट कर कहा, ''मैंने कुछ होमवर्क किया है। 2020 में 17 लाख 19 हज़ार 535 डॉलर के क़र्ज़ के भुगतान की बात सही है। हुलहुमाले हाउसिंग प्रोजेक्ट फ़ेज 2 में 1530 हाउसिंग यूनिट के लिए लिया गया 23 लाख 75 हज़ार डॉलर का क़र्ज़ किसी तीसरे देश के बैंक से है, ना कि चाइना डेवलपमेंट बैंक का है। स्टेलको प्रोजेक्ट में क़र्ज़ का भुगतान जनवरी 2021 के दूसरे हफ़्ते में करना है।'' चीनी राजदूत ने इस ट्वीट के साथ कुछ दस्तावेज़ भी पोस्ट किए थे।
चीनी राजदूत के इस ट्वीट के जवाब में एक ट्विटर यूज़र ने मालदीव के वित्त मंत्रालय के 31 दिसंबर, 2018 के बयान का हवाला देते हुए लिखा, ''वार्षिक रिपोर्ट 2018 के अनुसार मालदीव के हाउसिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने हुलहुमाले फ़ेज़ 3 में 1530 हाउसिंग यूनिट बनाने के लिए चाइना डेवलपमेंट बैंक से 4.2 करोड़ डॉलर के क़र्ज़ लिए थे। अगर इस क़र्ज़ के भुगतान की बारी आएगी तो आपका यह स्क्रीनशॉट दिखा देने से हो जाएगा ना?''
इस पर चीनी राजदूत का कोई जवाब नहीं आया। ऐसे में मोहम्मद नशीद ने इसे मौक़े के तौर पर लिया और स्थिति को संभालने की कोशिश की।
नशीद ने अपने अगले ट्वीट में चीनी राजदूत से कहा, ''आपको बहुत शुक्रिया। चीन से हमारा संबंध मायने रखता है। हम और 11 घंटे का इंतज़ार क्यों करें? क़र्ज़ की इस समस्या को लेकर कुछ रास्ता निकालें। मालदीव को क़र्ज़ भुगतान के लिए और दो साल का वक़्त चाहिए, नहीं तो हम इन क़र्ज़ों को कभी चुका ही नहीं पाएंगे।''
नशीद को जवाब देते हुए चीनी राजदूत ने लिखा, ''आदरणीय स्पीकर मैं आपके इस समर्थन की सराहना करता हूं। हम पारंपरिक रूप से दोस्त रहे हैं और यह हमारे लिए अहम है। इन मुद्दों को लेकर बातचीत पहले से ही हो रही है। मुझे भरोसा है कि दोनों देशों में पारस्परिक फ़ायदे के हिसाब से कोई ठोस व्यवस्था हो जाएगी ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिले।''
मालदीव और चीन इससे पहले भी ट्वीटर पर आपस में भिड़ चुके हैं।
मालदीव में वर्तमान चीनी राजदूत अपनी हाज़िर जवाबी के लिए जाने जाते हैं। इसी का नतीजा है कि मालदीव में उनके चाहने वाले भी ख़ूब हैं।
ख़ास कर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के समर्थक चीनी राजदूत का खुलकर समर्थन करते हैं। 2013 में सत्ता में आने के बाद यामीन ने भारत के बदले चीन से क़रीबी बढ़ाई थी। कई योजनाओं के कॉन्ट्रैक्ट में राष्ट्रपति यामीन ने भारत के बदले चीन को चुना था।
यामीन के समर्थकों को लगता है कि मालदीव में वर्तमान सरकार से लड़ने में चीन के राजदूत उनके लिए किसी सहायक से कम नहीं हैं। मालदीव की वर्तमान सरकार को भारत समर्थक कहा जाता है।
नवंबर 2020 में नशीद ने कहा था कि अगर मालदीव के लोग अपनी दादी के गहने भी बेच दें तब भी चीन का क़र्ज़ नहीं चुकाया जा सकता। इसके जवाब में चीनी राजदूत ने कहा था, ''दादियों के गहने अनमोल है लेकिन उनकी एक क़ीमत है। मैं मालदीव के साथ दोस्ती को प्राथमिकता दूंगा जिसकी कोई क़ीमत नहीं है।''
नवंबर 2020 में ही इसी तरह का एक और वाकया हुआ था। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की बेटी दुन्या मउमून ने 10 नवंबर 2020 को इंडिया टुडे में छपे एक लेख को लेकर पूछा था। इस लेख में माले एयरपोर्ट में चीनी निवेश को लेकर कई बातें कही गई थीं।
उसी दिन चीनी राजदूत ने पूर्व राष्ट्रपति गयूम की बेटी से कहा, ''इसे किसी कल्पना के तौर पर पढ़ें। अगर सही जानकारी चाहिए तो मालदीव एयरपोर्ट से लीजिए।'' गयूम को भी चीन समर्थित राष्ट्रपति माना जाता था।
मोहम्मद नशीद ने सितंबर 2020 में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मालदीव ने चीन से 3.1 अरब डॉलर का क़र्ज़ लिया है। नशीद ने कहा था कि इसमें चीन की सरकार और वहां के निजी सेक्टर दोनों के लोन शामिल हैं।
जब 2018 में नाशीद की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आई तो भारतीय अधिकारियों ने अनुमान लगाया था कि क़र्ज़ डेढ़ अरब डॉलर का है।
नशीद की पार्टी की सरकार जब से बनी है तब से वो भारत से आर्थिक मदद ले रही है। भारत ने मालदीव को 1.4 अरब डॉलर की वित्तीय मदद देने की घोषणा की है।
मालदीव की राजनीति के केंद्र चीन और भारत
मालदीव में चीन और भारत को लेकर वहां की राजनीति में चर्चा गर्म रहती है। सितंबर 2020 में मालदीव में सोशल मीडिया पर इंडिया आउट का कैंपेन चलाया जा रहा था।
तब मोहम्मद नाशीद ने कहा कि इंडिया आउट कैंपेन आईएसआईएस सेल का है। नाशीद ने कहा था कि इस कैंपेन के तहत मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग की जा रही है। मालदीव में इंडिया आउट कैंपेन को वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी हवा दे रही थी। मालदीव की मुख्य विपक्षी पार्टी का कहना है कि भारतीय सैनिकों की मौजूदगी संप्रभुता और स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है।
मालदीव में विपक्षी पार्टी की भारत-विरोधी बातों के जवाब में वहां के विदेश मंत्री अब्दुल्ला ने कहा था कि जो लोग मज़बूत होते द्विपक्षीय रिश्तों को ''पचा नहीं पा रहे हैं'', वो इस तरह की आलोचना का सहारा ले रहे हैं।
भारत समर्थित एक स्ट्रीट लाइटिंग योजना के उद्घाटन के मौक़े पर विदेश मंत्री ने कहा था, ''ये दोनों देशों के बीच का संबंध है। ये दिलों से दिलों को जोड़ने वाला रिश्ता है। हम इसका आभार प्रकट करते हैं।''
अगस्त 2020 में भारत ने 50 करोड़ डॉलर के पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें 10 करोड़ डॉलर का अनुदान भी शामिल है। इससे पहले भारत ने 2018 में मालदीव के लिए 80 करोड़ डॉलर की घोषणा की थी।
सऊदी अरब के प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने 06 दिसंबर 2020 को हुई बहरीन सिक्यॉरिटी समिट में इसराइल की कड़ी आलोचना की है।
इसराइल के विदेश मंत्री गाबी अशकेनाज़ी इसमें ऑनलाइन शामिल हुए। इस घटनाक्रम से अरब देशों और इसराइल के बीच आगे किसी बातचीत की राह में चुनौतियां सामने आई हैं।
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक़, मनामा डायलॉग में प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल की कड़ी टिप्पणियों की वजह से इसराइल को हैरानी हुई है क्योंकि इसराइल के विदेश मंत्री को ऐसा होने की उम्मीद नहीं थी।
ख़ासतौर पर तब जबकि संबंधों को सामान्य बनाने वाले समझौतों के बाद बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों ने इसराइलियों का गर्मजोशी से स्वागत किया था।
इसराइल और फ़लस्तीनियों में दशकों से विवाद और संघर्ष रहा है। फ़लस्तीनियों का विचार है कि ये समझौते उनके साथ धोखा है और इस तरह हैं जैसे उनके अरब साथियों ने पीठ में छुरा घोंप दिया हो।
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने अपनी बात शुरू करते हुए 'इसराइल की शांति-प्रेमी और उच्च नैतिक मूल्य वाले देश' की धारणा को 'पश्चिमी औपनिवेशिक ताक़त' के तहत कहीं ज़्यादा स्याह फ़लस्तीनी हकीक़त बताया।
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने कहा कि ''इसराइल ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए फ़लस्तीनियों को क़ैद में रखा जहां बुज़ुर्ग, आदमी-औरतें बिना किसी इंसाफ़ के एक तरह से सड़ रहे हैं। वो घरों को गिरा रहे हैं और चाहे जिसकी हत्या कर रहे हैं।''
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने ''इसराइल के परमाणु हथियारों के अघोषित ज़ख़ीरे और इसराइली सरकार की सऊदी अरब को कमज़ोर करने की कोशिशों'' की भी भर्त्सना की।
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने सऊदी अरब का आधिकारिक रुख़ दोहराया कि समस्या का समाधान 'अरब पीस इनिशिएटिव' को लागू करने में निहित है।
साल 2002 में सऊदी अरब प्रायोजित 'अरब पीस इनिशिएटिव' समझौते में इसराइल के अरब देशों के साथ हर तरह के रिश्तों के बदले साल 1967 में इसराइली क़ब्ज़े वाले इलाक़े को फ़लस्तीनी देश का दर्जा देने की मांग की गई थी।
उन्होंने कहा, ''आप खुले ज़ख़्म को दर्द निवारक दवाओं से ठीक नहीं कर सकते हैं।''
प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल के बात के फ़ौरन बाद इसराइली विदेश मंत्री गाबी अशकेनाज़ी ने कहा, ''सऊदी प्रतिनिधियों की टिप्पणियों पर मैं अपना खेद प्रकट करना चाहता हूं। मुझे नहीं लगता कि उनकी बातों में वो मर्म और बदलाव नज़र आते हैं जो मिडिल ईस्ट में हो रहे हैं।''
इसराइली विदेश मंत्री गाबी अशकेनाज़ी ने इसराइली रुख़ दोहराते हुए कहा कि ''शांति समझौता ना होने के लिए फ़लस्तीनी ज़िम्मेदार हैं। फ़लस्तीनियों को लेकर हमारे पास विकल्प है कि हम इसका समाधान करें या ना करें या यूं ही आरोप-प्रत्यारोप करते रहें।''
बहरीन सिक्योरिटी समिट को देख-सुन रहे संयुक्त राष्ट्र में पूर्व राजदूत और नेतन्याहू के क़रीबी डोर गोल्ड ने प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल की टिप्पणियों पर कहा कि अतीत में भी कई झूठे आरोप लगाए गए हैं।
इस पर प्रिंस तुर्की अल-फ़ैसल ने उन्हें भी आड़े हाथों लिया।
सऊदी बनाम इसराइल
सऊदी अरब ऐतिहासिक रूप से इसराइल और इसके फ़लस्तीनी लोगों के साथ होने वाले बर्ताव का आलोचक रहा है और अरब मीडिया इसराइल को एक 'यहूदी देश' के तौर पर खारिज करते रहे हैं।
सऊदी अरब के दूर-दराज और देहाती इलाकों में लोग न सिर्फ इसराइल को बल्कि सभी यहूदी लोगों को अपने दुश्मन के तौर पर देखते आए हैं।
हालांकि, यहूदियों को लेकर कई तरह की भ्रामक थिअरीज़ अब नहीं दिखाई देतीं। इसकी एक वजह यह भी है कि सऊदी लोग काफी वक्त इंटरनेट पर बिताते हैं और इस वजह से दुनिया में चल रही चीजों के बारे में काफी जागरूक हैं।
इसके बावजूद सऊदी आबादी के एक तबके में बाहरी लोगों को लेकर एक शक अभी भी कायम है। सऊदी अरब और खाड़ी देशों के फलस्तीन के साथ रिश्तों का एक विचित्र इतिहास रहा है।
खाड़ी देश आमतौर पर फलस्तीनी मुद्दे के समर्थक रहे हैं। दशकों से वे राजनीतिक और वित्तीय रूप से फलस्तीन की मदद कर रहे हैं। लेकिन, जब फलस्तीनी नेता यासिर अराफात ने 1990 में इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के कुवैत पर हमले और कब्जे का समर्थन किया तो उन्हें यह एक बड़ा धोखा जान पड़ा।
अमरीका की अगुवाई में ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म के बाद और 1991 में स्वतंत्र होने पर कुवैत ने अपने यहां मौजूद फलस्तीनियों की पूरी आबादी को बाहर निकाल दिया और उनकी जगह मिस्र के हजारों लोग बसा दिए गए।
इस इलाके के पुराने शासकों को अराफात के धोखे को भुलाने में लंबा वक्त लगा है।









