भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी।
पाकिस्तान ने भारत के इस क़दम की सख़्त आलोचना की है। पाकिस्तान ने कहा है कि मस्जिद की जगह मंदिर का निर्माण, भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक दाग़ है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है, ''वो ज़मीन जिस पर बाबरी मस्जिद 500 बरसों तक खड़ी रही हो, वहां राम मंदिर का निर्माण निंदनीय है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट का मंदिर बनाने के लिए इजाज़त देने का फ़ैसला, न सिर्फ़ मौजूदा भारत में बढ़ते बहुसंख्यकवाद को दर्शाया है, बल्कि ये भी दिखाता है कि कैसे धर्म न्याय के ऊपर हावी हो रहा है। आज के भारत में अल्पसंख्यक, ख़ासकर मुसलमानों के धर्मस्थलों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। ऐतिहासिक मस्जिद की ज़मीन पर बना मंदिर तथाकथित भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक दाग़ की तरह होगा।''
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सूचना मंत्री फ़ैय्याज़ उल हसन चौहान ने कहा, ''पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर खोलने जैसा क़दम उठा रहा है, जबकि भारत हर वो क़दम उठा रहा है जो मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो और इसी वजह से पूरी दुनिया में उसकी जगहंसाई हो रही है। भारतीय प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी के फ़ैसले से उनके चेहरे से धर्मनिरपेक्ष देश होने का नक़ाब उतर चुका है जिसकी पूरी दुनिया अब निंदा कर रही है।''
पाकिस्तान में धर्म स्थलों की सुरक्षा बढ़ाई गई
छह दिसंबर, 1992 को भारत में बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के बाद पाकिस्तान में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई थी और कई मंदिरों को नुक़सान पहुंचाया गया था।
पाँच अगस्त, 2020 को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद पाकिस्तान में किसी तरह की प्रतिक्रिया की आशंका के मद्देनज़र वहां मंदिरों और अल्पसंख्यक समाज के धर्मस्थलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
पाकिस्तान में मंदिरों और गुरुद्वारों की निगरानी करने वाली संस्था वक़्फ़ प्रोपर्टी बोर्ड ने पिछले महीने ही पाकिस्तान की केंद्र सरकार को ख़त लिखकर धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम का आग्रह किया था।
वक़्फ़ प्रोपर्टी बोर्ड के चेयरमैन आमिर अहमद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उन्हें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए आधारशिला रखे जाने की गंभीरता का अंदाज़ा है और इसीलिए वो संबंधित अधिकारी और विभागों से लगातार संपर्क में हैं कि ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके।
उन्होंने कहा कि उनकी संस्था के पास अपनी कोई फ़ोर्स नहीं होती और ये प्रांत सरकारों की ही ज़िम्मेदारी होती है कि वो अपने-अपने क्षेत्रों में आने वाले धर्म स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
आमिर अहमद ने कहा कि उन्होंने सभी प्रांतों को भी इस बारे में सतर्क रहने के लिए कहा है।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फ़ॉर पीस स्टडीज़ के निदेशक आमिर राना हालांकि इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते कि भारत में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का पाकिस्तान में कोई असर होगा।
उनका कहना था, ''पाकिस्तान में धार्मिक संगठन और राजनीतिक दल सांकेतिक विरोध तो ज़रूर करेंगे लेकिन क़ानून-व्यवस्था का कोई मसला खड़ा हो, इसकी आशंका कम है। दोनों तरफ़ बसने वाले लोगों ने बाबरी मस्जिद के मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को मान लिया है और अब आगे बढ़ना चाहते हैं।''
पंजाब प्रांत के सूचना मंत्री फ़ैय्याज़ उल हसन चौहान ने कहा कि पाकिस्तान की जनता बहुत समझदार है और वो इस अवसर पर अपने अल्पसंख्यक भाई-बहनों की इबादतगाहों को नुक़सान पहुंचाने का सोच भी नहीं सकते और न ही सरकार ऐसे किसी असामाजिक तत्व को इस तरह की किसी कार्रवाई की इजाज़त देगी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया और फिर मंदिर की आधारशिला रखी।
भारत में यह एक विवादित मुद्दा रहा है। इसलिए मंदिर के निर्माण की शुरुआत होने और ख़ासकर ख़ुद प्रधानमंत्री के उस कार्यक्रम में शामिल होकर मंदिर की आधारशिला रखने के कारण विदेशों में भी इस पर ख़ूब चर्चा हो रही है।
भारत के पड़ोसी देशों की मीडिया इस पूरे घटनाक्रम को कैसे देखती है? इस पर एक नज़र डालते हैं।
बांग्लादेश
बांग्लादेश से दो भाषाओं में प्रकाशित होने वाली वेबसाइट bdnews24.com ने ख़बर को 'स्पॉटलाइट' में जगह दी है और कहा है कि मंदिर वहीं बन रहा है जहां तीन दशक पहले एक मस्जिद को ढहा दिया गया था, जिसके बाद मुल्क भर में सांप्रदायिक दंगे होने लगे थे।
पहले पन्ने पर जगह दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि ''मोदी और उनके राष्ट्रवादी राजनीतिक दल ने इसके साथ ही अपने बहुत पुराने वायदे को पूरा किया है, साथ ही ये उनकी सरकार के दूसरे वायदे को पूरा किये जाने की भी पहली वर्षगांठ है - भारत के इकलौते मुस्लिम-बहुल सूबे के विशेष दर्जे को ख़त्म किए जाने की।''
साइट पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गई कहानियों में बाबरी मस्जिद के एक पैरोकार इक़बाल अंसारी और अयोध्या वासी मोहम्मद शरीफ़ को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिलने की कहानी शामिल है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1992 में हुए दंगे के चश्मदीद दोनों मुसलमान कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं जो उनकी तरफ़ से 'सुलह का संकेत' है।
बांग्लादेश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अख़बारों में से एक 'डेली स्टार' ने ख़बर को अपने 'वर्ल्ड' पेज में जगह देते हुए पिछले साल आए भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए कहा है, ''हालांकि बीजेपी के लिए ये एक शानदार जीत थी, लेकिन आलोचकों के मुताबिक़, ये धर्मनिरपेक्ष भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलने के लिए उठाया गया एक और क़दम था, जो मोदी के एजेंडे का हिस्सा है।''
'ढाका ट्रिब्यून' में अयोध्या पर एक अलग तरह की रिपोर्ट छपी है जिसका शीर्षक है - बुधवार को एक हिंदू देवता को टाइम्स स्क्वायर में क्यों दिखाया जाएगा?
ख़बर में सबसे पहले ये बताया गया है कि मुद्दा इतना विवादास्पद क्यों है?
कहा गया है कि कई लोग इस पूरे मामले को 'हिंदू फ़ासीवाद' का हिस्सा बता रहे हैं और विरोध के मद्देनज़र कई स्पॉन्सर कंपनियां पीछे हट गई हैं हालांकि डिज़्नी और क्लियर चैनल आउटडोर कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
अंतरराष्ट्रीय पेज में दूसरी ख़बर में कहा गया है कि हालांकि उनके एक मंत्री को कोविड-19 हो गया है, मगर प्रधानमंत्री कार्यक्रम में शामिल होने अयोध्या जा रहे हैं।
एक दूसरे अंग्रेज़ी अख़बार 'द ऑबज़र्वर' ने भी इसे अपने अंतरराष्ट्रीय ख़बरों में जगह दी है।
नेपाल
नेपाल के अख़बार 'द हिमालयन' ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अयोध्या में दिए गए भाषण के उस हिस्से को हेडलाइन बनाया है जिसमें कहा गया था - 'सदियों का इंतज़ार ख़त्म हुआ'।
ख़बर में कहा गया है कि अयोध्या के बहुत सारे मुसलमानों ने मंदिर निर्माण का स्वागत किया है, इस उम्मीद में कि इसके बाद हिंदू-मुसलमानों के बीच उपजी कटुता समाप्त हो जाएगी और इसके बाद शहर में आर्थिक प्रगति के काम हो सकेंगे।
मगर अख़बार ने कहा है कि एक प्रभावशाली मुस्लिम संगठन ने मंदिर निर्माण का विरोध किया है जिसे उसने नाइंसाफ़ी, और दबानेवाला, शर्मनाक और बहुसंख्यकों को लुभानेवाला क़रार दिया है।
समाचार पत्र ने इसके लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयान का हवाला दिया है।
कई जगहों से प्रकाशित होनेवाले नेपाली भाषा के अख़बार 'कान्तिपुर' ने कहा है कि राममंदिर जो भारतीय राजनीति में दशकों से एक बड़ा मुद्दा रहा है, वहां निर्माण का काम बुधवार से शुरु हो गया।
कान्तिपुर में कहा गया है कि हालांकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर निर्माण को राजनीतिक मुद्दे के तौर पर पिछले तीन दशकों से उठाती रही है फिर भी बीजेपी और हिंदूवादी संगठन नींव का पत्थर रखे जाने के कार्यक्रम को वैचारिक और राजनीतिक जीत क़रार दे रहे हैं।
प्रतिष्ठित वेबसाइट 'हिमाल' का कहना है कि अयोध्या में कार्यक्रम हो गया है लेकिन नेपाल को सतर्क रहने की ज़रूरत है ताकि कोई सांप्रदायिक दंगा ना हो, न ही भारत की तरह यहां राजनीति और धर्म का घालमेल किया जाना चाहिए।
अपने लेख में जाने-माने पत्रकार कनकमणि दीक्षित ने कहा है कि जब मज़हब और राजनीति साथ-साथ मिलाये जाते हैं तो इससे समाज में बिखराव पैदा होता है।
पाकिस्तान
पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार 'द डॉन' ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिष्ठित भारतीय मुसलमानों का नाम लिए बिना उनके हवाले से कहा है कि समुदाय ने इस नई सच्चाई के सामने घुटने टेक दिए है लेकिन उसे डर है कि इसके राष्ट्रवादी विचारों से ताल्लुक़ रखने वाले हिंदू उत्तर प्रदेश की दूसरी मस्जिदों को निशाना बनायेंगे।
दूसरे अंग्रेज़ी अख़बार 'द डेली टाइम्स' ने हेडलाइन में कहा है कि पाकिस्तान ने ढहाई गई बाबरी मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाये जाने की निंदा की है।
कहा गया है कि भारत में बहुसंख्यकवाद के मामले के बढ़ने के साथ-साथ मुसलमान अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और उनके अधिकारों पर लगातार हमला हो रहा है।
राम न्याय हैं, राम कभी अन्याय में प्रकट नहीं हो सकते: राहुल गाँधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि भगवान राम प्रेम, करूणा और न्याय हैं। बुधवार की सुबह उन्होंने ट्वीट कर कहा कि राम कभी अन्याय में प्रकट नहीं हो सकते।
राहुल गाँधी ने ट्वीट किया - मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सर्वोत्तम मानवीय गुणों का स्वरूप हैं। वे हमारे मन की गहराइयों में बसी मानवता की मूल भावना हैं।
राम प्रेम हैं
वे कभी घृणा में प्रकट नहीं हो सकते
राम करुणा हैं
वे कभी क्रूरता में प्रकट नहीं हो सकते
राम न्याय हैं
वे कभी अन्याय में प्रकट नहीं हो सकते।
लोकतंत्र के चेहरे पर धब्बा: पाकिस्तान
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर राम मंदिर भूमिपूजन की निंदा की है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ''ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद जिस ज़मीन पर लगभग 500 वर्षों तक खड़ी रही, पाकिस्तान वहां 'राम मंदिर' निर्माण के शुरुआत की कड़ी निंदा करता है। मंदिर बनाने के लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने न सिर्फ़ मौजूदा भारत में बढ़ते बहुसंख्यकवाद को दर्शाया है, बल्कि न्याय के ऊपर धर्म के प्रभुत्व को भी दिखाया है। आज के भारत में अल्पसंख्यक, ख़ासकर मुसलमानों के धर्मस्थलों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। ऐतिहासिक मस्जिद की ज़मीन पर बना मंदिर तथाकथित भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक धब्बे की तरह होगा।''
पीएम ने अपनी ही शपथ तोड़ी: ओवैसी
हैदराबाद से लोकसभा सांसद और एआईएमआईएम के प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने कहा है कि राम मंदिर की आधारशिला रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपनी ही शपथ का उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा, ''आज लोकतंत्र की हार और हिंदुत्व की जीत का दिन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वो आज भावुक हैं। प्रधानमंत्री जी, आज मैं भी भावुक हूं क्योंकि मैं नागरिकों की बराबरी और सबके साथ जीने में यक़ीन करता हूं। मैं भावुक हूं क्योंकि 450 वर्षों तक वहां एक मस्जिद थी।''
बुधवार सुबह भी औवैसी ने ट्वीट कर कहा था, ''बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी इंशाअल्लाह!'' उन्होंने अपने ट्वीट में #BabriZindaHai का भी इस्तेमाल किया।
मुसलमानों की एक संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक दिन पहले ही प्रेस रिलीज़ जारी कर कहा था कि बाबरी मस्जिद हमेशा एक मस्जिद रहेगी।
इस बयान को ट्वीट करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखा, ''हागिया सोफ़िया हमारे लिए बड़ा उदाहरण है। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक तरीक़े से ज़मीन पर अधिकार करना और बहुसंख्यक के तुष्टिकरण वाले फ़ैसले से इसका दर्जा बदला नहीं जा सकता। दिल तोड़ने की ज़रूरत नहीं। स्थितियाँ हमेशा के लिए एक जैसी नहीं रहती हैं।''
सीपीएम ने उठाए सवाल
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भूमिपूजन कार्यक्रम में शामिल होने पर सवाल उठाए।
पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया, ''राज्य को धर्म से अलग रखने की संविधान की मूलभूत भावना का सम्मान करो। भारत का संविधान इस बात में दृढ़ है कि धर्म और राजनीति का मिश्रण नहीं होना चाहिए। तब भारत के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्यों एक मंदिर के भूमिपूजन समारोह से राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रहे हैं?''
लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लीमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि बाबरी मस्जिद थी और रहेगी। पिछले साल नवंबर में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बुधवार को अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजा का कार्यक्रम हो रहा है।
इस कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल हो रहे हैं। एक ओर जहाँ कई नेता और सांसद भूमि पूजा का स्वागत कर रहे हैं, वहीं कई हलकों से विरोध की आवाज़ें भी आ रही हैं।
बुधवार सुबह ओवैसी ने ट्वीट कर कहा- बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी इंशाअल्लाह। उन्होंने अपने ट्वीट में #BabriZindaHai का भी इस्तेमाल किया।
वहीं एक दिन पहले ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस रिलीज़ जारी कर कहा कि बाबरी मस्जिद हमेशा एक मस्जिद रहेगी। इस बयान को ट्वीट करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखा है- हागिया सोफ़िया हमारे लिए बड़ा उदाहरण है। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक तरीक़े से ज़मीन पर अधिकार करना और बहुसंख्यक के तुष्टिकरण वाले फ़ैसले से इसका दर्जा बदला नहीं जा सकता। दिल तोड़ने की ज़रूरत नहीं। स्थितियाँ हमेशा के लिए एक जैसी नहीं रहती हैं।
हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से बाबरी मस्जिद की तुलना हागिया सोफ़िया से करने को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचना भी हो रही है। लोग बोर्ड के बयान को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी बता रहे हैं।
कुछ दिन पहले ही तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इस्तांबुल में ऐतिहासिक हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने का ऐलान किया था।
हागिया सोफ़िया का लगभग 1,500 साल पहले एक ईसाई चर्च के रूप में निर्माण हुआ था और 1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य ने विजय के बाद इसे एक मस्जिद में बदल दिया था।
हागिया सोफ़िया को 1934 में आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के बाद, मस्जिद से म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया था।
भारत के सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
अयोध्या मामले में आए फ़ैसले के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाख़िल की थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए पाँच एकड़ ज़मीन देने का निर्देश दिया था।
हालाँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि वो अयोध्या में मस्जिद के लिए अलग ज़मीन स्वीकार नहीं करेगा।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। इसके बाद देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी और क़रीब 2000 लोग मारे गए थे। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों का दावा था कि बाबरी मस्जिद राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी और यहीं राम का जन्म हुआ था।
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय खंडपीठ ने रामलला को ज़मीन देने का फ़ैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से राम मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करने का निर्देश दिया था। साथ ही मस्जिद के लिए अयोध्या में कहीं और पाँच एकड़ ज़मीन देने का आदेश भी दिया था।
इस बीच सीपीआई-एमएल ने पाँच अगस्त को विरोध दिवस मनाने की बात कही है। पार्टी ने एक बयान जारी करके कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक धार्मिक समारोह का इस्तेमाल राजनीतिक मंच के रूप में कर रहे हैं। पार्टी का कहना है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने की जगह पर ऐसा करना एक अपराध है।
लेबनान की राजधानी बेरुत में एक बड़ा धमाका हुआ है।
लेबनान के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि अभी कम से कम 70 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और क़रीब 4000 लोग ज़ख़्मी हुए हैं। लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दिआब ने बुधवार को राष्ट्रीय शोक दिवस की घोषणा की है।
अधिकारियों का कहना है कि एक गोदाम में भारी विस्फोटक सामग्री स्टोर थी और वहीं धमाका हुआ है।
लेबनान के राष्ट्रपति माइकल इयोन ने ट्वीट कर कहा है कि यह बिल्कुल अस्वीकार्य है कि 2,750 टन विस्फोटक नाइट्रेट असुरक्षित तरीक़े से स्टोर कर रखा गया था। धमाका कैसे हुआ? इसकी जाँच अभी जारी है।
मौक़े पर मौजूद बीबीसी के पत्रकार का कहना है कि शव बिखरे हुए हैं और भारी नुक़सान हुआ है। लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दिआब ने इसे भयावह बताया है और कहा है कि जो भी दोषी होंगे उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा।
जिस विस्फोटक नाइट्रेट के स्टोर की बात कही जा रही है वो 2014 से ही स्टोर था। समाचार एजेंसी एएफ़पी से एक चश्मदीद ने कहा कि आसपास की सभी इमारतें ध्वस्त हो गई हैं। चारों तरफ़ शीशे और मलबे बिखरे पड़े हैं। धमाके की आवाज़ पूर्वी भूमध्यसागर में 240 किलोमीटर दूर साइप्रस तक सुनाई पड़ी।
यह धमाका 2005 में लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री रफ़ीक हरीरी की हत्या की जाँच और अदालती सुनवाई का फ़ैसला आने के ठीक पहले हुआ है।
धमाका शहर के तटीय इलाक़े में हुआ है। ऑनलाइन पोस्ट किए गए वीडियो में धमाके के दृश्य काफ़ी भयावह हैं। आग की लपटों के साथ धुएं के गुबार उठ रहे हैं।
यह धमाका तब हुआ है जब लेबनान आर्थिक संकट में बुरी तरह से घिरा हुआ है। लेबनान के स्वास्थ्य मंत्री हमाद हसन ने कहा है कि धमाके में कई लोग ज़ख़्मी हुए हैं और भारी नुक़सान हुआ है।
कहा जा रहा है कि अस्पतालों में बड़ी संख्या में हताहतों को पहुँचाया गया है।
अभी तक धमाके की वजह पता नहीं चल पाई है। कुछ रिपोर्ट में इसे हादसे के तौर पर भी देखा जा रहा है। लेबनान की राष्ट्रीय समाचार एजेंसी की रिपोर्ट में तटीय इलाक़े पर स्थित एक विस्फोटक केंद्र में आग लगने की बात कही गई है।
स्थानीय मीडिया में दिखाया जा रहा है कि लोग मलबे के नीचे दबे हुए हैं। एक चश्मदीद ने कहा कि पहला धमाका बहरा कर देने वाला था।
लेबनान का इसराइल के साथ भी सरहद पर तनाव चल रहा है। इसराइल ने पिछले हफ़्ते कहा था कि उसने अपने इलाक़े में हिजबुल्लाह की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम कर दिया।
हालांकि बीबीसी से इसराइल के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि बेरुत धमाके से इसराइल का कोई संबंध नहीं है।
लेबनान में पिछले कुछ समय से सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेबनान 1975-1990 के गृह युद्ध के बाद से सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है और लोग सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं।
लेबनान स्थित भारतीय दूतावास ने इस भयावह विस्फोट की जानकारी देते हुए हेल्पलाइन जारी की है।
भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया, ''सेंट्रल बेरुत में इस शाम दो बड़े धमाके हुए हैं। सभी को संयम बनाए रखने की सलाह दी जाती है। अगर भारतीय समुदाय के किसी भी व्यक्ति को मदद की ज़रूरत है तो हमारी हेल्पलाइन पर संपर्क कर सकते हैं।''
हादी नसरुल्लाह नाम के एक चश्मदीद ने बीबीसी से कहा-
मैंने आग की लपटें देखीं लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि धमाका होने जा रहा है। मैं भीतर चला गया। अचानक मुझे सुनाई पड़ना बंद हो गया क्योंकि मैं घटनास्थल के बहुत क़रीब था। कुछ सेकंड तक मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दिया। मुझे लगने लगा था कि कुछ गड़बड़ है।
तभी अचानक गाड़ियों, दुकानों और इमारतों पर शीशे टूटकर गिरने लगे। पूरे बेरुत में अलग-अलग इलाक़ों से लोग एक दूसरे को फ़ोन कर रहे थे। हर किसी ने धमाके की आवाज़ सुनी। हम बिल्कुल अवाक थे क्योंकि पहले कोई धमाका होता था तो कोई एक इलाक़ा ही प्रभावित होता था लेकिन यह ऐसा धमाका था जिसे बेरूत के बाहर भी महसूस किया गया।
बीबीसी अरब मामलों के विश्लेषक सेबेस्टियन अशर क्या कहते हैं?
धमाके के बाद जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं उनमें न केवल धुएं के गुब्बार हैं बल्कि कई किलोमीटर तक तबाही के मंज़र भी हैं। इस धमाके ने पहले से ही आर्थिक संकट से परेशान लेबनान को सदमे में डाल दिया है। लेबनान की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है और सड़कों पर सरकार के ख़िलाफ़ लोग विरोध कर रहे हैं।
धमाके के ठीक पहले सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच ऊर्जा मंत्रालय के बाहर हाथापाई हुई थी। लोग नेताओं की जवाबदेही तय करने की मांग कर रहे हैं। यहां तक कि भुखमरी की चेतावनी दी जा रही है और सांप्रदायिक टकराव बढ़ने की भी आशंका जताई जा रही है। इस धमाके ने कइयों को रफ़ीक हरीरी की मौत की भी याद दिला दी। लेबनान के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार यह कोई महज़ हादसा हो, न कि पूर्वनियोजित साज़िश।
हरीरी मामला क्या है?
कार बम के ज़रिए 2005 में लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री रफ़ीक हरीरी की हत्या कर दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र का एक ट्राइब्यूनल इस हत्या के मामले में शुक्रवार को फ़ैसला सुनाने वाला है। इसमें सभी चार संदिग्ध ईरान समर्थित हिज़बुल्लाह समूह के हैं।
हालांकि ये इस हमले में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं। हरीरी के आवास के बाहर एक दूसरे धमाके की भी बात कही जा रही है।
चारों संदिग्ध शिया मुसलमान हैं और इनके ख़िलाफ़ अदालती सुनवाई नीदरलैंड्स में हुई है। हरीरी को जब कार बम के ज़रिए मारा गया था तो इसमें 21 अन्य लोगों की भी जान गई थी।
14 फ़रवरी 2005 को रफ़ीक हरीरी जब एक गाड़ी से जा रहे थे तभी उन्हें निशाना बनाकर एक बड़ा धमाका किया गया था। इस धमाके में उनकी मौत हो गई थी।
हरीरी लेबनान के प्रमुख सुन्नी नेता थे। हत्या से पहले वह विपक्ष के साथ आ गए थे। हरीरी ने लेबनान से सीरिया की सेना हटाने की मांग का भी समर्थन किया था, जो लेबनान में 1976 में हुए गृह युद्ध के बाद से ही मौजूद थी।
हरीरी की हत्या के बाद सीरिया समर्थक सरकार के ख़िलाफ़ हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर प्रदर्शन करने उतरे थे। हरीरी की हत्या के लिए लेबनान ने ताक़तवर पड़ोसी को ज़िम्मेदार ठहराया गया था। हमले के दो सप्ताह के भीतर ही सरकार को इस्तीफ़ा देना पड़ा और कुछ वक़्त बाद सीरिया को भी अपनी फ़ौज वापस बुलानी पड़ी।
सारे सबूत इकठ्ठा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र और लेबनान ने विस्फोट की जांच के लिए 2007 में द हेग में एक ट्राइब्यूनल का गठन किया। इस ट्राइब्यूनल ने ईरान समर्थित हिजबुल्लाह के चार संदिग्धों पर आतंकवाद, हत्या और हत्या की कोशिश के आरोप तय किए।
हमले से जुड़े एक पाँचवें शख़्स और हिजबुल्लाह के सैन्य कमांडर मुस्तफ़ा अमीन की 2016 में सीरिया में हत्या कर दी गई थी।
हिजबुल्लाह के समर्थकों ने इस ट्रायल को ख़ारिज कर दिया है। उनका कहना है कि ट्राइब्यूनल राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं है।
पाकिस्तानी कैबिनेट ने पाकिस्तान के नए राजनीतिक नक़्शे को मंज़ूरी दे दी है जिसमें जम्मू कश्मीर-लद्दाख-जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मंगलवार को ख़ुद इसकी जानकारी देते हुए कहा कि कैबिनेट के फ़ैसले का तमाम विपक्षी पार्टियों और कश्मीरी (पाकिस्तान के कश्मीर) नेतृत्व ने स्वागत किया है।
इमरान ख़ान का कहना था कि 'पाकिस्तान का नया राजनीतिक नक़्शा पाकिस्तान की जनता की उमंगों का प्रतिनिधित्व करता है। पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों की सैंद्धांतिक विचारधारा का समर्थन करता है।'
इस मौक़े पर इमरान ख़ान ने आगे कहा, ''भारत ने पिछले साल पाँच अगस्त को कश्मीर में जो ग़ैर-क़ानूनी क़दम उठाया था, ये राजनीतिक नक़्शा उसको नकारता है।''
इमरान ख़ान ने कहा कि अब से पाकिस्तान के स्कूल, कॉलेज और सभी दफ़्तरों में पाकिस्तान का वही आधिकारिक नक़्शा होगा जिसे मंगलवार को पाकिस्तानी कैबिनेट ने मंज़ूर किया है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने पाकिस्तान के इस नए राजनीतिक नक़्शे को ख़ारिज करते हुए कहा कि न तो इसकी क़ोई क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कोई विश्वसनीयता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, ''हमने पाकिस्तान के तथाकथित ''राजनीतिक नक़्शे'' को देखा है जिसे प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जारी किया है। यह भारतीय राज्य गुजरात और हमारे केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र में आधारहीन दावेदारी है, जो कि राजनीतिक मूर्खता में उठाया गया एक क़दम है। इन हास्यास्पद दावों की न तो क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता। सच्चाई तो ये है कि पाकिस्तान की ये नई कोशिश केवल सीमा पार आतंकवाद द्वारा समर्थित क्षेत्र-विस्तार की पाकिस्तान के जुनून की हक़ीक़त की पुष्टि करता है।''
इस मौक़े पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमदू क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान के प्रशासनिक नक़्शे तो पहले (1949, 1976) भी आते रहे हैं लेकिन पहली बार एक ऐसा राजनीतिक नक़्शा आया है जो बंद कमरों में पाकिस्तानी कहा करते थे, उसे अब इस नक़्शे के ज़रिए पूरी दुनिया को बता रहे हैं कि पाकिस्तान कहां खड़ा है?
सर क्रीक और सियाचिन पर भी दावा
शाह महमूद कु़रैशी ने कहा कि पिछले साल अगस्त में भारत ने एक नक़्शा जारी किया जिसमें पाकिस्तान के कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान को भारत का हिस्सा दिखाया गया था। कुरैशी ने कहा कि भारत का ये क़दम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की क़रारदादों के बिल्कुल ख़िलाफ़ है।
क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान का ये मानना है कि ये पूरा इलाक़ा विवादित है जिसका हल तलाश किया जा रहा है।
क़ुरैशी ने कहा, ''इसका हल कश्मीरी और पाकिस्तानी लोगों की उमंगों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के मुताबिक़ निकलेगा, जिसका वादा भारत कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में एक जनमत संग्रह होगा जो फ़ैसला करेगा कि कश्मीर का भविष्य क्या होगा?''
पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि इस नक़्शे के ज़रिए पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर और सर क्रीक पर भी भारत के दावों को ख़ारिज कर दिया है।
क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान का ये नया राजनीतिक नक़्शा भारत को और कश्मीर को स्पष्ट संदेश देता है कि पाकिस्तानी क़ौम कल भी कश्मीरियों के साथ थी और आज भी साथ है।
धारा 370 ख़त्म किए जाने के एक साल बाद
भारत ने पिछले साल (2019) पाँच अगस्त को भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत भारतीय कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया था।
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर राज्य को भी ख़त्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील कर दिया था।
भारत के इस फ़ैसले के एक बरस पूरे होने पर पाकिस्तान ने भारतीय कश्मीर के लोगों से अपना समर्थन जताने के लिए कई विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया है।
पाकिस्तान का नया नक़्शा जारी करना भी उसी का एक हिस्सा है।
मंगलवार को नए नक़्शे को पेश करते हुए इमरान ख़ान ने कहा कि कश्मीर का सिर्फ़ एक ही हल है, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को मानना।
इमरान ख़ान ने कहा, ''संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव कश्मीर के लोगों को ये हक़ देता है कि वो एक वोट के ज़रिए फ़ैसला करें कि वो पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं या हिुंदस्तान के साथ रहना चाहते हैं। ये हक़ उन्हें अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने दिया था जो उन्हें आज तक नहीं मिला।''
इमरान ख़ान ने कहा कि वो सैन्य समाधान में विश्वास नहीं रखते हैं और कश्मीर की समस्या का केवल राजनीतिक हल ही संभव है। उन्होंने कहा कि ये नक़्शा पहला क़दम है और कश्मीरियों के लिए उनका राजनीतिक संघर्ष जारी रहेगा।
क्या पाकिस्तान का संविधान इसकी मंज़ूरी देता है?
पाकिस्तानी विदेश विभाग के एक अधिकारी हसन अब्बास ने इस नए नक़्शे को समझाते हुए लिखा, ''इमरान ख़ान के ज़रिए जारी किया गया पाकिस्तान का नया राजनीतिक नक़्शा पाकिस्तान के कश्मीर (पाकिस्तान जिसे आज़ाद कश्मीर कहता है), गिलगित-बल्तिस्तान, जुनागढ़, सर क्रीक और NJ9842 के बाद के क्षेत्र (सियाचिन) को पाकिस्तान का हिस्सा मानता है जबकि भारत के हिस्से वाला जम्मू-कश्मीर विवादित क्षेत्र है और जिसका हल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के मुताबिक़ निकाला जाना है।''
पाँच अगस्त यानी बुधवार को पूरे पाकिस्तान में भारतीय कश्मीर के लोगों से समर्थन जताने के लिए मार्च निकाला जाएगा जिसकी अगुवाई राष्ट्रपति आरिफ़ अलवी करेंगे. पाकिस्तान में कल एक मिनट का मौन भी रखा जाएगा।
इमरान ख़ान पाकिस्तान के कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद में मार्च में शामिल होंगे और उसके बाद वहां के सदन को संबोधित करेंगे।
नई शिक्षा नीति के तहत भारत ने अब विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए हैं। दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय अब भारत में अपने कैम्पस खोल सकेंगे।
हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक़ ये नहीं कहा जा सकता कि ये बदलाव ज़मीन पर जल्द उतर पाएगा या नहीं, लेकिन कइयों को ये ज़रूर लगता है कि भारत में शीर्ष 200 विदेशी विश्ववविद्यालय खुलने से यहां की उच्च शिक्षा का स्तर भी बढ़ जाएगा। कई लोगों का ये भी मानना है कि इससे प्रतिभा पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी।
विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में लाने पर बीजेपी के मोदी सरकार का मौजूदा रुख बीजेपी के पुराने उस स्टैंड से बिल्कुल उलट है, जो वो यूपीए-2 सरकार द्वारा विदेशी शिक्षण संस्थानों पर लाए गए रेगुलेशन ऑफ एंट्री एंड ऑपरेशन बिल 2010 पर रखती थी।
भारत के वामपंथी नेताओं समेत पीएम मोदी की सत्ताधारी पार्टी भी पूर्ववर्ती सरकारों के विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अनुमति देने के प्रयासों का विरोध करती रही है।
लेकिन कई सरकारी अधिकारी ये कदम उठाने पर ज़ोर देते रहे, क्योंकि हर साल साढ़े सात लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र अरबों डॉलर खर्च करके विदेशों में पढ़ते हैं।
बुधवार को उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने पत्रकारों को बताया कि सरकार विश्व के सर्वोच्च रैंक वाले विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने का अवसर देगी।
हालांकि इस फ़ैसले के आलोचकों का ये भी कहना है कि सर्वोच्च श्रेणी के विश्वविद्यालय भारत में अपने परिसर क्यों खोलना चाहेंगे? जब भारत सरकार ने अपनी नई शिक्षा नीति के तहत फीस की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी है। यानी अब विश्वविद्यालय मुँहमांगी रकम नहीं बटोर सकेंगे। साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों को फ़ीस चार्ज करने के मामले में और पारदर्शिता लानी होगी।
कोरोना संकट के बीच अमरीकी डॉलर में बुधवार को जबर्दस्त गिरावट देखी गई। कहा जा रहा है कि अमरीकी डॉलर पिछले दो सालों के अपने सबसे निचले स्तर पर है।
इसके साथ ही अमरीका के सेंट्रल बैंकिंग सिस्टम 'फेडरल रिज़र्व' पर गिरावट को रोकने के लिए ब्याज दरों में कमी जैसे ज़रूरी क़दम उठाए जाने का दबाव बढ़ गया है।
हालांकि बाज़ार को उम्मीद है कि सरकार फ़िलहाल शांत रहेगी लेकिन अमरीका में कोरोना संक्रमण के मामले और तनाव का माहौल जिस तरह से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि 'फेडरल रिज़र्व' कोई बड़ा दूरगामी क़दम उठा सकता है।
जापान के सबसे बड़े बैंकों में से एक एमयूएफ़जी बैंक के हेड ऑफ़ रिसर्च डेरेक हालपेन्नी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, ''इन बातों का मतलब हुआ कि हमें आर्थिक विकास की ज़्यादा निराशाजनक हालात की उम्मीद करनी चाहिए। हमें कुछ हद तक अमरीकी डॉलर पर भी ध्यान देना चाहिए।''
दूसरी मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर में इस बुधवार को 0.4 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जून, 2018 के बाद से ये अमरीकी डॉलर का सबसे निचला स्तर है।
'फेडरल रिज़र्व' की आख़िरी मीटिंग के बाद से अमरीकी डॉलर तीन फ़ीसदी कमज़ोर हुआ है। अमरीकी उपभोक्ताओं का भरोसा जुलाई में उम्मीद से ज़्यादा कमज़ोर हुआ है।
इससे संकेत मिलता है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण लोग खर्च कम कर रहे हैं।
नोमुरा सिक्योरिटी के मार्केट एक्सपर्ट युजिरो गोटो कहते हैं, ''संक्रमण की दूसरी लहर की चिंताओं को देखते हुए बाज़ार को लगता है कि फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में कमी का फ़ैसला करेगा।''
रूस ने कहा है कि उसने अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट टेस्ट किया था, वो कोई हथियार नहीं था।
रूस के रक्षा मंत्रालय ने अमरीका और ब्रिटेन के आरोपों को ख़ारिज करते हुए उन पर तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया।
रूस के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, ''15 जुलाई को जो टेस्ट किए गए थे उसने किसी दूसरे अंतरिक्षयाण के लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं किया है। और इसने किसी भी अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं किया है।''
रूस ने कहा कि वो रूस के अंतरिक्ष उपकरणों की देख रेख और उनकी जाँच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है।
इससे पहले ब्रिटेन और अमरीका ने कहा था कि वो रूस की इन गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं।
ब्रिटेन और अमरीका ने आरोप लगाया था कि रूस ने अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट से हथियार जैसी कोई चीज़ लॉन्च की है।
ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख ने एक बयान जारी कर कहा, ''रूस ने हथियार जैसी कोई चीज़ को लॉन्च कर जिस तरह से अपने एक सैटेलाइट को टेस्ट किया है उसको लेकर हम लोग चिंतित हैं।''
बयान में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा है।
रूस के इस सैटेलाइट के बारे में अमरीका ने पहले भी चिंता जताई थी।
ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, ''इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है।''
उन्होंने कहा, ''हम लोग रूस से आग्रह करते हैं कि वो आगे इस तरह के टेस्ट से परहेज़ करें। हम लोग रूस से ये भी आग्रह करते हैं कि अतंरिक्ष में ज़िम्मेदार रवैये को बढ़ावा देने के लिए वो ब्रिटेन और दूसरे सहयोगियों के साथ रचनात्मक तरीक़े से काम करता रहे।''
बीबीसी के रक्षा संवाददाता जोनाथन बेल के अनुसार ब्रिटेन ने पहली बार रूस पर अंतरिक्ष में सैटेलाइट टेस्ट करने का आरोप लगाया है और ये ठीक उसके कुछ दिनों के बाद हुआ है जब ब्रिटेन में इंटेलिजेन्स और सुरक्षा कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ब्रिटेन की सरकार रूस से ख़तरे को भाँपने में बुरी तरह नाकाम रही थी।
स्पेस वॉर की आशंका?
इस घटना के बाद अंतरिक्ष में हथियारों की नई तरह की दौड़ शुरू होने की चिंता को जन्म दे सकती है और कई दूसरे देश भी उन तकनीक की जाँच कर रहे हैं जिसका अतंरिक्ष में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
अमरीका ने कहा है कि रूस का ये वही सैटेलाइट सिस्टम है जिसके बारे में उसने साल 2018 में भी चिंता ज़ाहिर की थी और इस साल भी सवाल उठाया था जब अमरीका ने रूस पर आरोप लगाया था कि उसका एक सैटेलाइट अमरीका के एक सैटेलाइट के क़रीब जा रहा था।
इस ताज़ा घटनाक्रम के बारे में अमरीकी स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे रेमंड ने कहा है कि इस बात के सुबूत हैं कि रूस ने अंतरिक्ष में स्थित एक सैटेलाइट विरोधी हथियार का टेस्ट किया है।
जनरल रेमंड ने कहा कि रूस ने सैटेलाइट के ज़रिए ऑर्बिट में एक नई चीज़ को लॉन्च किया है।
उनका कहना था, ''स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है। और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है।''
भारत में कितने नेपाली प्रवासी लोग काम कर रहे हैं और कितने भारतीय प्रवासी इस वक़्त नेपाल में काम कर रहे हैं?
इन दोनों सवालों का सटीक जवाब देना आसान नहीं है। क्योंकि भारत और नेपाल सदियों पुराने रिश्ते में बंधे हैं और ख़ासकर 1950 के शांति और मैत्री संधि के कारण दोनों देशों में बिना किसी रोक-टोक के लोगों का आना-जाना होता रहा है।
लोगों के आने-जाने का कोई भी आँकड़ा मौजूद नहीं है और इसीलिए ऊपर पूछे गए दोनों सवालों का सही जवाब न भारत के पास है और न ही नेपाल के पास।
ऐसी परिस्थिति में नेपाल की सरकार के लिए तब मुश्किल खड़ी हो गई, जब 10 जुलाई को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए उससे पूछा कि भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों को वो तमाम सुविधाएँ और सुरक्षा क्यों नहीं दी जाए, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलती हैं।
अदालत ने नेपाल की सरकार को 15 दिनों के अंदर नोटिस का जवाब देने को कहा है।
नेपाल की सरकार ने अपने नागरिकों को दुनिया के 170 देशों में रहने और काम करने की इजाज़त दे रखी है। हाल के वर्षों में नेपाल ने कई देशों से श्रम समझौतों पर दस्तख़त किए हैं।
नेपाल ने विदेशी रोज़गार फंड भी बनाया है, जिसके तहत विदेशों में काम कर रहे नेपाली नागरिकों के ज़ख़्मी होने या उनकी मौत होने पर उनके परिजनों को मुआवज़ा दिया जाता है।
नेपाली सरकार अपने कामगारों को विदेशी रोज़गार परमिट भी जारी करती है जिसके ज़रिए कोई कामगार 15 लाख नेपाली रुपए तक का बीमा करवा सकता है।
लेकिन ये सारे क़ानून और सुविधाएँ नेपाल के उन श्रमिकों पर लागू नहीं होती हैं, जो भारत में आकर काम करते हैं या जो भारतीय नागरिक नेपाल में काम करते हैं।
दोनों ही देशों में ऐसे कामगारों की सही जानकारी नहीं है। इससे इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि ज़रूरत पड़ने पर इन प्रवासी कामगारों को सुरक्षित प्रवासन या पर्याप्त वित्तीय मुआवज़ा नहीं मिल सकेगा।
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में से एक निर्मल कुमार उप्रेती कहते हैं कि भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों के हितों की नेपाली सरकार के ज़रिए की जा रही अनदेखी नेपाल के विदेशी रोज़गार क़ानून का खुला उल्लंघन है।
उप्रेती के अनुसार ये नेपाली प्रवासी कामगारों की सुरक्षा के अधिकार का भी उल्लंघन है।
बीबीसी के मुताबिक उन्होंने कहा, ''नेपाली प्रवासी मज़दूरों के लिए भारत भी अन्य देशों की तरह एक विदेशी मुल्क है। लेकिन विदेशी मज़दूर होने का कोई भी दस्तावेज़ी सूबत नहीं होने के कारण ये नेपाली नागरिक किसी भी तरह के मुआवज़े या सुविधा से वंचित रहते हैं, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलता है।''
नेपाल के अधिकारियों के अनुसार क़रीब 50 लाख नेपाली लोग विदेशों में काम करते हैं और नेपाल में रह रहे अपने परिवार के ख़र्च के लिए विदेशों से पैसे भेजते हैं।
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान विदेशों में रह रहे नेपाली नागरिकों ने केवल आधिकारिक स्रोतों के ज़रिए आठ अरब 80 लाख अमरीकी डॉलर नेपाल भेजे थे।
ये बता पाना मुश्किल है कि इसी दौरान हुंडी और हवाला जैसे अनाधिकारिक चैनलों से कितने पैसे नेपाल आए थे।
विश्व बैंक के 2018 में किए गए एक आकलन के अनुसार भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों ने एक साल में एक अरब 30 लाख अमरीकी डॉलर से ज़्यादा रक़म नेपाल भेजी थी, जबकि नेपाल में काम कर रहे भारतीय कामगारों ने उसी दौरान क़रीब एक अरब 50 लाख अमरीकी डॉलर भारत भेजा था। इस तरह से देखा जाए तो नेपाल भारत में आने वाले कैश फ़्लो (रेमिटेन्स) का एक बड़ा ज़रिया है।
अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कितने नेपाली भारत में और कितने भारतीय नेपाल में काम कर रहे हैं।
इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ माइग्रेशन (आईओएम) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार क़रीब 30 से 40 लाख नेपाली कामगार भारत में रहते और काम करते हैं। हालांकि भारतीय अधिकारियों का अनुमान है कि ये संख्या इससे कहीं ज़्यादा है।
आईओएम के अनुसार नेपाल में काम कर रहे भारतीयों की संख्या क़रीब 5-7 लाख है।
नेपाल के राष्ट्रीय योजना आयोग के पूर्व सदस्य और विदेशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों पर गहन अध्ययन करने वाले डॉक्टर गणेश गुरुंग कहते हैं, ''सीमा खुली हुई है और मज़दूरों को आवागमन की पूरी आज़ादी है, इसलिए सही संख्या बता पाना बहुत मुश्किल है। भारत-नेपाल सीमा पार करने वाले बहुत सारे कामगार सिर्फ़ विशेष मौसम में एक-दूसरे के यहाँ आते-जाते हैं। मिसाल के तौर पर तराई-मधेस क्षेत्र में रहने वाले नेपाली मज़दूर फसल के समय पंजाब और हरियाणा जाते हैं और बिहार और उत्तर प्रदेश के कई मज़दूर इसी दौरान नेपाल आते हैं। नेपाल के कई मज़दूर ख़ास मौसम में भारत मज़दूरी करने के लिए जाते हैं।''
भारत-नेपाल सीमा पर आवागमन की आज़ादी के जहां कई फ़ायदें हैं वहीं इसके कुछ हानिकारक पहलू भी हैं।
इस तरह के असुरक्षित और ग़ैर-पंजीकृत कामगारों की दयनीय स्थिति से अवगत लोग कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र में काम करने के कारण उन्हें हमेशा इस बात का ख़तरा रहता है कि वो कभी भी ज़ख़्मी हो सकते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा सकता है और उनका शोषण हो सकता है, लेकिन इनसे बचने का उनके पास कोई रास्ता नहीं है।
भारत में रहने और काम करने वाले नेपालियों की मदद करने वाली एक संस्था नेपाली जनसंपर्क समिति एंड मैत्री इंडिया के चेयरमैन बालकृष्ण पांडेय कहते हैं कि नेपाली कामगारों की सुरक्षा के उपायों के बारे में सोचना एक ऐसा मुद्दा है जिसकी दशकों से अनदेखी की गई है।
बालकृष्ण पांडेय 17 साल की उम्र में नेपाल से भारत चले गए थे। ''वो कहते हैं, 1990 से मैं ये मुद्दा उठा रहा हूं कि नेपाल से भारत आकर काम करने वाले ग़रीब मज़दूरों को किसी तरह के पंजीकरण और सुरक्षा दिए जाने की ज़रूरत है। कई प्रधानमंत्री आए-गए। नेपाल के कई नेता जब भारत आए तो यहाँ प्रवासी मज़दूरों के साथ ठहरे, लेकिन जब वो सत्ता में आए तो प्रवासी नेपालियों को भूल गए।''
पांडेय के अनुसार कोरोना महामारी फैलने के बाद से क़रीब छह लाख नेपाली प्रवासी कामगार भारत से नेपाल चले गए हैं। इनमें मणिपुर में फँसी कुछ नेपाली महिलाएँ भी शामिल हैं जिन्हें भारत से खाड़ी देश तस्करी करके ले जाया जा रहा था, लेकिन उन्हें एक ग़ैर-सरकारी संगठन की मदद से बचा लिया गया।
भारत-नेपाल की 1880 किलोमीटर सीमा के रास्ते सदियों से नेपाल के कामगार भारत आते रहे हैं। नेपाली अधिकारी कहते हैं कि उन्हें नेपाली कामगारों की परेशानियों की जानकारी है, उन्हें ये भी पता है कि नेपाली महिलाओं और बच्चों की तस्करी होती है।
नेपाल के श्रम और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सुमन घिमिरे कहते हैं कि वो और उनके सहयोगी नेपाली प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा के बारे में हमेशा विचार-विमर्श करते रहते हैं।
वो कहते हैं, ''कोरोना महामारी के बाद नेपाल के स्थानीय निकायों ने नेपाल से भारत आने वाले सभी लोगों का पंजीकरण शुरू कर दिया है। भारत में काम करने वाले नेपाली प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा में यह पहला क़दम है। हमें और करने की ज़रूरत है और हम इसको लेकर गंभीर हैं।''
नेपाल के प्रवासियों की स्थिति में सुधार करने के लिए उठाए जा रहे क़दमों का स्वागत करते हुए नेपाल योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉक्टर गणेश गुरुंग कहते हैं, ''भारत-नेपाल की सीमा पार कर नौकरी करने या मौसमी काम करने के लिए जाने वाले अत्यंत ग़रीब लोग हैं। उन्हें हमेशा ख़तरा रहता है, हर हालत में उनकी हिफ़ाज़त की जानी चाहिए।''
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर करने के कई प्रयास हुए जिनमें मज़दूरों का आना-जाना भी शामिल है।
1950 की शांति संधि की समीक्षा के लिए 2016 में बनी कमेटी इमीनेंट पर्सन्स ग्रुप (ईपीजी) ने सीमा पर लोगों के आवागमन के बारे में कई सुझाव दिए थे। कई बैठकों के बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मुकम्मल कर ली है लेकिन दोनों में से किसी भी सरकार ने अभी तक कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ईपीजी रिपोर्ट एक आवश्यक आधार हो सकती है जिसके सहारे दोनों देशों के प्रवासी कामगारों के नियमों में सुधार और उनकी सुरक्षा के लिए उपाय सुझाए जा सकते हैं।
साल 2009-10 के दौरान डॉक्टर गणेश गुरुंग जब योजना आयोग के सदस्य थे तब उन्होंने भारत जा रहे मज़दूरों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रस्ताव रखे थे लेकिन उनके अनुसार, "मेरे प्रस्तावों ने योजना आयोग में हंगामा खड़ा कर दिया था। तीन वर्षीय योजना में इसे किसी तरह शामिल तो कर लिया गया लेकिन ज़मीन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।''
10 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए वो कहते हैं, ''सुधार शुरू करने का ये सबसे बेहतर समय है।''
दिल्ली स्थित नेपाली पत्रकार सुरेश राज कहते हैं कि दोनों देशों को अपने-अपने प्रवासी कामगारों की सुरक्षा के लिए तत्काल क़दम उठाने चाहिए, उनका पंजीकरण करना चाहिए और उन्हें कोई प्रमाण पत्र जारी करना चाहिए।
सुरेश राज कहते हैं, "कौन सीमा पार कर रहा है एक बार अधिकारी जब इसका पंजीकरण शुरू कर देंगे तो उसके बाद दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास के अधिकारियों के लिए भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना थोड़ा आसान हो जाएगा।"
लेकिन नेपाली दूतावास के एक अधिकारी कहते हैं कि दोनों देशों को बहुत संभलकर काम करना होगा।
वो कहते हैं, ''अगर हम अपने कामगारों को विदेशी रोज़गार परमिट जारी करना शुरू करते हैं, जो सदियों से बिना किसी रोक-टोक के सीमा पार करते रहे हैं तो इससे भारत-नेपाल के रिश्तों पर असर पड़ेगा। हमें बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है। लेकिन मज़दूरों के प्रवासन को नियमित और नियंत्रित किया जाना अत्यंत ज़रूरी है।''
भारत-नेपाल के बीच ऐसे श्रम-संबंधों को देखते हुए ये कहना मुश्किल है कि नेपाल की सरकार सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का कुछ ही दिनों में कैसे और क्या जवाब देगी?