विज्ञान और टेक्नोलॉजी

डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ ने एमपॉक्स की कोविड से तुलना पर क्या कहा?

डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ ने एमपॉक्स की कोविड से तुलना पर क्या कहा?

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइेजशन (डब्ल्यूएचओ) के एक प्रमुख विशेषज्ञ ने कहा है कि एमपॉक्स 'नया कोविड' नहीं है क्योंकि इसे नियंत्रित करने के तरीके के बारे में पता है।

डब्ल्यूएचओ के यूरोप डायरेक्टर डॉक्टर हेन्स क्लुगे ने पत्रकारों से कहा कि एमपॉक्स वायरस के नए वैरिएंट को लेकर चिंताएं हैं और इस बारे में ग्लोबल अलर्ट जारी कर दिया गया है। लेकिन मिलजुल कर एमपॉक्स को नियंत्रित किया जा सकता है।

डॉक्टर हेन्स क्लुगे ने कहा कि सबसे जरूरी चीज तो ये है कि इसके टीके सबसे जरूरतमंद इलाकों तक पहुंचे ताकि घबराहट और उपेक्षा के एक और चक्र को तोड़ा जा सके।

पिछले सप्ताह स्वीडन में मंकीपॉक्स का न्यू वैरिएंट क्लैड आईबी मिला था। इसे अफ्रीका में इसके बढ़ते प्रकोप से जोड़ कर देखा जा रहा है।

मध्य और पूर्वी अफ़्रीका में संक्रामक मंकी पॉक्स (एमपॉक्स) के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

इसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रॉस एडोनम गेब्रीयेसुस ने कहा था, "एमपॉक्स के एक नए वैरिएंट का उभरना और इसका तेज़ी से फैलना काफी चिंताजनक है।''

इससे पहले अफ़्रीका सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया था।

अफ़्रीका सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने कहा था कि मंकी पॉक्स पिछली बार से ज़्यादा चिंताजनक है। ऐसा इसलिए क्योंकि नया वैरिएंट ज़्यादा घातक है।

एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स और नासा के बीच 84.3 करोड़ डॉलर का सौदा

एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स और नासा के बीच 84.3 करोड़ डॉलर का सौदा

गुरुवार, 27 जून, 2024

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के बीच 84.3 करोड़ डॉलर का समझौता हुआ है।

इस समझौते के अनुसार 2030 में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) की मियाद पूरी होने के बाद उसे वापस धरती पर लाने में स्पेसएक्स की अहम भूमिका होगी।

समझौते के तहत लगभग 430 टन के आईएसएस को धरती पर वापस लाने के लिए स्पेसएक्स डीऑर्बिट व्हीकल नाम का अंतरिक्षयान बनाएगा।

साल 2030 में आईएसएस की मियाद पूरी हो जाएगी। इसे बनाने के लिए 1980 के दशक में अंतरिक्ष में इसके हिस्सों को एक-एक कर भेजा गया था।

नासा का कहना है कि अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद आईएसएस अंतरिक्ष में तैरकर स्पेस कचरे का हिस्सा बन जाएगा, और ये वापस धरती पर गिर सकता है। अगर इसके गिरने को नियंत्रित न किया गया तो इससे आबादी के लिए जोखिम पैदा हो सकता है।

1998 से पांच स्पेस एजेंसियां- अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा, कनाडाई स्पेस एजेंसी सीएसए, यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईएसए, जापान की स्पेस एजेंसी जाक्शा और रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के रखरखाव और ज़रूरतों का काम करती रही हैं।

नासा का कहना है कि आईएसएस को सुरक्षित तरीके से डीऑर्बिट करना और वापस लाना पाचों एजेंसियों की ज़िम्मेदारी है।

ये स्टेशन धरती से 400 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में मौजूद है और हर 90 मिनट पर धरती का एक चक्कर लगाता है।

चीन ने चांद के पृथ्वी से दिखाई नहीं देने वाले हिस्से पर अंतरिक्ष यान उतारा

चीन ने चांद के पृथ्वी से दिखाई नहीं देने वाले हिस्से पर अंतरिक्ष यान उतारा

रविवार, 2 जून 2024

चीन का कहना है कि उसका चालक रहित अंतरिक्ष यान चांद के उस हिस्से पर उतरा है जो पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है।

ये चांद का वो इलाक़ा है जहां अभी तक कोई नहीं गया है और किसी ने अभी तक यहां जाने की कोशिश भी नहीं की थी।

चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (सीएनएसए) ने एक बयान में बताया है- चांग-ई-6 विमान बीजिंग के समयानुसार सुबह 06:23 बजे चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास एटकेन बेसिन में उतरने में कामयाब रहा।

चीन ने ये अभियान 3 मई 2024 को रवाना किया था। इस अभियान का मक़सद चांद के इस हिस्से से चट्टान और मिट्टी इकट्ठा करके धरती पर लाना है।

ये अभियान चांद की सबसे प्राचीन चट्टानों को इकट्ठा कर सकता है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विशाल क्रेटर है, जहां ये यान उतरा है।

इस अभियान के सामने कई मुश्किलें भी थीं। चांद के पार पहुंचने पर यान के साथ संपर्क करना मुश्किल हो जाता है।

एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

बुधवार, 20 मार्च 2024

वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सफलतापूर्वक कोशिका से एचआईवी को निकाल कर अलग किया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, उन्होंने नोबेल प्राइज़ जीतने वाली क्रिस्पर जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर संक्रमित कोशिका से एचआईवी को काटकर अलग किया है।

उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल कर मॉलिक्यूलर स्तर पर कैंची की तरह डीएनए से काट कर संक्रमित हिस्सों को अलग किया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एमस्टरडैम की टीम का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस तरीक़े से शरीर से एचआईवी संक्रमण को निकाला जा सकता है।

हालांकि इसी सप्ताह एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में इससे संबंधित शोध के बारे में और जानकारी देते हुए टीम ने कहा कि मौजूदा शोध इस ''कॉन्सेप्ट'' को साबित करता है कि इस तरह से कोशिका के डीएनए से संक्रमित हिस्सा निकाला जा सकता है लेकिन इस तरीके से जल्द एचआईवी का इलाज हो सकेगा ऐसा नहीं है।

एचआईवी को लेकर अब तक जो दवाएं मौजूद हैं वो इसे फैलने से रोककर इसका इलाज करती हैं, लेकिन वो इसे पूरी तरह से शरीर से ख़त्म नहीं कर सकतीं।

वैज्ञानिकों ने धरती पर सबसे बड़े रेगिस्तान से जुड़ा रहस्य सुलझाया

वैज्ञानिकों ने धरती पर सबसे बड़े रेगिस्तान से जुड़ा रहस्य सुलझाया

सोमवार, 4 मार्च 2024

पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े और पेचीदा रेगिस्तानों की उम्र पहली बार सामने आई है।

स्टार ड्यून्स या पिरामिड ड्यून्स का नाम इनके अनोखे आकार और सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर रखा गया।

इस तरह के रेगिस्तान अफ़्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका के साथ ही मंगल ग्रह पर पाए जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ आज से पहले कभी ये पता नहीं लगा पाए थे कि आख़िर ये रेगिस्तान कब बने।

अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मोरक्को में लाला लालिया नाम का रेगिस्तान 13 हज़ार वर्ष पहले बना था।

स्टार ड्यून्स दिशा बदलने वाली विपरीत हवाओं से बनते हैं।

इस शोध को प्रकाशित करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ़ एबेरिस्तविद के प्रोफ़ेसर जॉफ़ डलर ने कहा कि इन रेगिस्तानों की उम्र का पता लगाने से वैज्ञानिकों को उन हवाओं को समझने में मदद होगी और उस दौर के जलवायु के बारे में पता चलेगा।

लाला लालिया दक्षिण-पूर्व मोरक्को में स्थित है। यहां रेत के टीले 100 मीटर ऊंचे और 700 मीटर चौड़े हैं। ये रेगिस्तान बनने के बाद करीब 8000 सालों तक नहीं बढ़ा और फिर पिछले कुछ हज़ार सालों में ये तेज़ी से बढ़ता चला गया।

वैज्ञानिकों ने जिस विधि का इस्तेमाल किया गया उसमें ये पता लगाया गया है कि आख़िरी बार रेत के कण दिन की रोशनी के संपर्क में कब आए थे।

रेत के नमूने अंधेरे में लिए गए और फिर लैब में मंद रोशनी में पुराने फोटोग्राफ़ी वर्कशॉप की तरह इसका अध्ययन किया गया।

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

इंग्लैंड में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पता लगाया है कि किसी मरीज के पूर्ण जेनेटिक मेकअप से कैंसर के बेहतर इलाज में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं।

ये अध्ययन नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इसमें 13 हजार से ज़्यादा मरीजों की जानकारियों का विश्लेषण किया गया है।

इसमें ट्यूमर के विकास के पीछे म्यूटेशन का विश्लेषण और डीएनए का अध्ययन ये देखने के लिए किया गया है कि मरीज कहीं इस तरह के जीन के साथ पैदा तो नहीं हुआ जिसकी वजह से इस बीमारी का ख़तरा बढ़ गया।

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मस्तिष्क ट्यूमर, 50 फ़ीसदी आंत और फेफड़े के कैंसर में जेनेटिक बदलाव होते हैं जिससे मरीज के इलाज जैसे कि सर्जरी और खास तरह के इलाज पर असर पड़ता है।

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है।

ये तीनों वैज्ञानिक अमेरिका में रहते हैं।

नोबेल पुरस्कार विजेताओं में मोंगी जी बावेंडी, लुईस ई ब्रूस और एलेक्सी आई एकिमोव है जो 8.24 लाख पाउंड का पुरस्कार साझा करेंगे।

क्वांटम डॉट्स क्या है?

अधिकांश लोगों ने शायद अपने टीवी सेट पर छोटे क्रिस्टल को देखा होगा जिनके छोटे-छोटे बिंदु मिलकर रंग बनाते हैं।

असल में ये क्वांटम डॉट्स अति सूक्ष्म होते हैं और एक मिलीमीटर में इनकी संख्या दसियों लाख हो सकती है।

रूसी भौतिकशास्त्री एलेक्सेई आई एकिमोव को 1980 के दशक में क्वांटम डॉट्स की खोज का श्रेय दिया जाता है और बाद में एक अमेरिकी केमिस्ट लुईस ई ब्रूस ने पता लगाया कि द्रव में क्रिस्टल को पैदा किया जा सकता है।

इसके बाद पेरिस मूल के मोंगी जी बावेंडी ने क्वांटम डॉट्स कणों को और नियंत्रित तरीके से बनाने की विधि खोजी।

इन क्वांटम डॉट्स का इस्तेमाल कैंसर की दवाओं के बेहतर प्रयोग और सर्जरी के लिए मेडिकल इमेजिंग और सोलर पैनल्स में भी होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दी: एसआईआई

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है।

डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन के प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल के डेटा के आधार पर ये मंज़ूरी दी है। परीक्षणों में ये टीका चार देशों में काफ़ी असरदार पाया गया।

समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के अनुसार एसआईआई ने एक बयान में कहा है कि यह बच्चों को मलेरिया से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी पाने वाला दुनिया का दूसरा टीका बन गया है।

इस आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन को एसआईआई ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया है।

एसआईआई ने कहा है कि उसने हर साल टीके की 10 करोड़ खुराक के उत्पादन की व्यवस्था कर ली है और अगले दो सालों में ये उत्पादन दोगुना हो जाएगा।

फिलहाल ये वैक्सीन घाना, नाइजीरिया और बुर्किना फासो में इस्तेमाल की जा रही है। लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी के बाद इसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जा सके।

तीन वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला

साल 2023 के भौतिकी का नोबेल प्राइज़ प्रकाश के 'सबसे छोटे क्षणों' को कैप्चर करने के लिए 'प्रयोग' करने वाले वैज्ञानिकों को मिला है। पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक हैं - पियर अगस्तिनी, फ़ेरेंक क्राउज़ और एन ल'हुलिए।

इन वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के ज़रिए दिखाया कि कैसे प्रकाश की बेहद सूक्ष्म तरंगे संरचित की जा सकती हैं और इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा परिवर्तन की तीव्र प्रक्रिया को मापने के लिए किया जा सकता है।

प्रोफ़ेसर पियर अगस्तिनी अमेरिकी ओहायो यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर फ़ेरेंक क्राउज़ जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में क्वांटम ऑपटिक्स पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर एन ल'हुलिए स्वीडन की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं।

एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों को मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार

मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिकों की उस जोड़ी को देने का ऐलान किया गया है जिसने एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद की।

ये दो वैज्ञानिक डॉ. कैटालिन कारिको और डॉ. ड्रियू वाइसमैन हैं।

इस तकनीक के प्रयोग कोविड महामारी से पहले किए गए थे लेकिन बाद में इसे दुनिया भर के लाखों लोगों को दिया गया।

कैंसर समेत अन्य रोगों को लेकर इसी एमआरएनए तकनीक पर आगे और शोध किए जा रहे हैं।

एमआरएनए यानी मैसेंजर रायबोन्यूक्लिक एसिड शरीर को प्रोटीन बनाने का तरीक़ा बताती है।