विज्ञान और टेक्नोलॉजी

कोरोना वायरस: कोरोना वैक्सीन बनाने के दावे का सच क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना वायरस की वैक्सीन को तैयार करने के लिए दुनिया भर में 170 से ज़्यादा जगहों पर कोशिश चल रही है।

इन 170 जगहों में 138 कोशिशें अभी प्री क्लिनिकल दौर में हैं। लेकिन कईयों का क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है। 25 वैक्सीन का ट्रायल बहुत छोटे दायरे वाले फेज वन में चल रहा है। जबकि थोड़े बड़े दायरे में 15 वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है।

लेकिन दुनिया की नज़रें उन कोशिशों पर टिकी हैं जहां फेज तीन का ट्रायल चल रहा है। यह मौजूदा समय में सात जगहों पर चल रहा है।

इन सबके बीच शनिवार को भारतीय मीडिया में 73 दिनों के भीतर कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होने की ख़बर सुर्खियों में आ गई।

भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के दावे के मुताबिक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में तैयार हो रही वैक्सीन को भारत में मुहैया कराने वाली सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से यह दावा किया गया, हालांकि रविवार को सीरम इंस्टीट्यूट ने इसको लेकर स्पष्टीकरण जारी करते हुए 73 दिनों की बात को मिसलिडिंग बताया।

सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से बताया गया है कि इस वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल किया जा रहा है और अभी केवल इसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए उत्पादन की मंजूरी मिली है। वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शुमार सीरम इंस्टीट्यूट ने यह भी कहा है कि जब वैक्सीन के ट्रायल पूरी तरह संपन्न हो जाएगा, वैक्सीन को मानकों से मंजूरी मिलेगी तब उसकी उपलब्धता की जानकारी दी जाएगी।

इससे पहले 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में तीन कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की बात कही है। सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा भारत में दो वैक्सीन पर काम चल रहा है।

भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है। दूसरा वैक्सीन प्रोजेक्ट ज़ाइडस कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड का है। कोवैक्सीन के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में सरकारी एजेंसी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी शामिल हैं।

इसके ह्यूमन ट्रायल के लिए भारत में 12 संस्थाओं को चुना गया है, जिनमें रोहतक की पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, हैदराबाद की निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ शामिल हैं।

आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने पिछले दिनों इन 12 संस्थाओं के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर्स से कोवैक्सीन ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल की रफ़्तार में तेज़ी लाने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि ये शीर्ष प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है, जिस पर सरकार के शीर्ष स्तर से निगरानी रखी जा रही है।

लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स इस पर सवाल उठा रहे हैं कि वैक्सीन तैयार करने के लिए जितने समय की ज़रूरत होती है और जिन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, क्या उनका पालन किया गया है?

वैसे मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर जल्दी से वैक्सीन मिला भी तो भी इस साल के अंत तक ही मिल पाएगा। भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी साल के अंत तक कोरोना वैक्सीन मिलने की उम्मीद जताई है।

बहरहाल, कोरोना वैक्सीन को लेकर अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी का एलान 11 अगस्त, 2020 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है जो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर है।

पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है। इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंजूरी दे दी है। लेकिन यह वैक्सीन अभी तक वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मानकों पर स्वीकृत नहीं हुआ है।

गेमलया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को भी यह टीका लगा है। इस वैक्सीन को गेमलया इंस्टीट्यूट के साथ रूसी रक्षा मंत्रालय ने विकसित किया है। माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी। रूसी मीडिया के मुताबिक़ 2021 में जनवरी महीने से पहले दूसरे देशों के लिए ये उपलब्ध हो सकेगी।

न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के अनुसार, रूस में सितंबर से इस वैक्सीन स्पुतनिक फाइव का अद्यौगिक उत्पादन शुरू किया जाएगा। इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया भर के 20 देशों से इस वैक्सीन के एक अरब से ज़्यादा डोज के लिए अनुरोध रूस को मिल चुका है। रूस हर साल 50 करोड़ डोज बनाने की तैयारियों में जुटा है।

हालाँकि रूस ने जिस तेज़ी से कोरोना वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक जगत में इसको लेकर चिंताएँ भी जताई जा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अब खुल कर इस बारे में कह रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि उसके पास अभी तक रूस के ज़रिए विकसित किए जा रहे कोरोना वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि वो इसका मूल्यांकन करें।

पिछले हफ़्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूस से आग्रह किया था कि वो कोरोना के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय गाइड लाइन का पालन करे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत जिन सात वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हैं, उनमें रूस की वैक्सीन का ज़िक्र नहीं है। विश्व के दूसरे देश इसलिए भी रूस की वैक्सीन को लेकर थोड़े आशंकित हैं।

दरअसल जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज़ का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था।

रूस में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ़्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। इस वज़ह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है।

रूस ने कोरोना के अपने टीके को लेकर उठी अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को ख़ारिज करते हुए इसे बिल्कुल बेबुनियाद बताया है। जानकारों ने रूस के इतनी तेज़ी से टीका बना लेने के दावे पर संदेह जताया। जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन और अमरीका में वैज्ञानिकों ने इसे लेकर सतर्क रहने के लिए कहा।

इसके बाद रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने रूसी समाचार एजेंसी इंटरफ़ैक्स से कहा, ''ऐसा लगता है जैसे हमारे विदेशी साथियों को रूसी दवा के प्रतियोगिता में आगे रहने के फ़ायदे का अंदाज़ा हो गया है और वो ऐसी बातें कर रहे हैं जो कि बिल्कुल ही बेबुनियाद हैं।''

अमरीका में देश के सबसे बड़े वायरस वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने भी रूसी दावे पर शक जताया है। डॉक्टर फ़ाउची ने नेशनल जियोग्राफ़िक से कहा, ''मैं उम्मीद करता हूँ कि रूसी लोगों ने निश्चित तौर पर परखा है कि ये टीका सुरक्षित और असरकारी है। मुझे पूरा संदेह है कि उन्होंने ये किया है।''

रूस की इस वैक्सीन से इतर इस समय कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया भर में वैक्सीन विकसित की लगभग 23 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। लेकिन इनमें से कुछ ही ट्रायल के तीसरे और अंतिम चरण में पहुँच पाई हैं और अभी तक किसी भी वैक्सीन के पूरी तरह से सफल होने का इंतज़ार ही किया जा रहा है। इनमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, मॉडर्ना फार्मास्युटिकल्स, चीनी दवा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक के वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स अहम हैं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन प्रोजेक्ट ChAdOx1 में स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका भी शामिल है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड वैक्सीन के ट्रायल का काम दुनिया के अलग-अलग देशों में चल रहा है।

मई के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन ने ऑक्सफोर्ड के प्रोजेक्ट को सबसे एडवांस कोविड वैक्सीन कहा था। इंग्लैंड में अप्रैल के दौरान इस वैक्सीन प्रोजेक्ट के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल का काम एक साथ पूरा किया गया।

18 से 55 साल के एक हज़ार से ज़्यादा वॉलिंटियर्स पर किए गए ट्रायल में वैक्सीन की सुरक्षा और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का जायजा लिया गया था। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ये वैक्सीन प्रोजेक्ट अब ट्रायल और डेवलपमेंट के तीसरे और अंतिम चरण में है।

ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के ट्रायल के इस चरण में क़रीब 50 हज़ार वॉलिंटियर्स के शामिल होने की संभावना है। दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, ब्रिटेन और ब्राज़ील जैसे देश ट्रायल के अंतिम चरण में भाग ले रहे हैं।

भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने भी ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के भारत में इंसानों पर परीक्षण की तैयारी में है।

अगर अंतिम चरण के नतीजे भी सकारात्मक रहे, तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम साल के आख़िर तक ब्रिटेन की नियामक संस्था मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) के पास रजिस्ट्रेशन के लिए साल के आख़िर तक आवेदन करेगी।

बीते 15 जुलाई से अमरीका में टेस्ट की जा रही कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्युन को वैसा ही फ़ायदा पहुंचा है जैसा कि वैज्ञानिकों को उम्मीद थी। हालांकि अभी इस वैक्सीन का अहम ट्रायल होना बाक़ी है।

चीन की प्राइवेट फार्मा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक जिस कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, वो ट्रायल के तीसरे और आख़िरी चरण में पहुँच चुकी है। सरकारी मंजूरी से पहले किसी वैक्सीन को इंसानों पर परीक्षण में खरा उतरना होता है।

मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड के बाद ट्रायल के अंतिम चरण में पहुँचने वाला ये दुनिया का तीसरा वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है। CoronaVac नाम की इस वैक्सीन का फ़िलहाल ब्राज़ील में नौ हज़ार वॉलिंटियर्स पर ट्रायल चल रहा है।

चीन में तीन अन्य जगहों पर भी कोरोना वैक्सीन को लेकर चल रहा ट्रायल तीसरे दौर में पहुंच गया है। इसमें एक ट्रायल वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोलॉजिकल प्रॉडक्टस में सिनोफ़ार्म कंपनी के साथ संयुक्त तौर पर चल रहा है।

सीनोफॉर्म कंपनी की ओर से एक कोशिश बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोलाजिकल प्राडक्टस में भी हो रही है। बीजिंग के ही एक अन्य इंस्टीट्यूट बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोटैक्नालॉजी में कैनसिनो बायोलॉजिकल इंक भी कोरोना वैक्सीन बनाने की कोशिशों में जुटा है। यहां दो चरण का ट्रायल पूरा हो चुका है और तीसरे चरण का ट्रायल शुरू होने वाला है।

वैक्सीन बनाने को लेकर अब तक कितनी प्रगति हुई है?

जिन सात जगहों पर तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है उसमें प्राइवेट कंपनियों की ओर से की जा रही कोशिश भी है। अमरीकी फार्मा कंपनी 'फ़ाइज़र' और जर्मन कंपनी 'बॉयोएनटेक' मिलकर एक कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट BNT162b2 पर काम कर रही हैं। दोनों कंपनियों ने एक साझा बयान जारी कर बताया है कि वैक्सीन प्रोजेक्ट इंसानों पर परीक्षण के आख़िरी चरण में पहुँच गई है। अगर ये परीक्षण सफल रहे, तो अक्तूबर के आख़िर तक वे सरकारी मंज़ूरी के लिए आवेदन दे सकेंगे। कंपनी की योजना साल 2020 के आख़िर तक वैक्सीन की 10 करोड़ और साल 2021 के आख़िर तक 1.3 अरब खुराक की आपूर्ति सुनिश्चित करने की है।

इसके अलावा शीर्ष दवा कंपनियां सनफई और जीएसके ने भी वैक्सीन विकसित करने के लिए आपस में तालमेल किया है। ऑस्ट्रेलिया में भी दो संभावित वैक्सीन का नेवलों पर प्रयोग शुरू हुआ है। माना जा रहा है कि इसका इंसानों पर ट्रायल अगले साल तक शुरू हो पाएगा।

जापानी की मेडिकल स्टार्टअप एंजेस ने कहा है कि उसने कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुरू कर दिया है। जापान में इस तरह का यह पहला परीक्षण है। कंपनी ने कहा है कि ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में अगले साल 31 जुलाई तक ट्रायल जारी रहेंगे।

लेकिन कोई यह नहीं जानता है कि इनमें से कोई सी कोशिश कारगर होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख भी कई बार वैक्सीन बनाए जाने को लेकर नाउम्मीदी भी ज़ाहिर कर चुके हैं।

क्या 20 सेकंड में कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है?

बीते छह महीनों से कुछ चीज़ों को लेकर लोगों की आदतें बदल चुकी हैं। कोरोना वायरस महामारी ने लोगों को मास्क, सेल्फ़-आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग के महत्व के बारे में बताया लेकिन अभी भी बहुत महत्वपूर्ण चीज़ को कम करके आंका जा रहा है और वो है हाथ धोना।

फ़रवरी में जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस महामारी फैली तो स्वास्थ्य एजेंसियों ने लोगों को सलाह दी कि वो नए वायरस से ख़ुद को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

एक सुझाव को लगातार हर दिन विशेषज्ञों ने सबके लिए महत्वपूर्ण बताया और वो था गर्म पानी से कम से कम 20 सेकंड तक हाथ धोना।

बॉस्टन, मैसाच्युसेट्स के नॉर्थ-ईस्टर्न विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान और रासायनिक जीव विज्ञान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर थॉमस गिलबर्ट कहते हैं कि कोरोना वायरस को सिर्फ़ एक सस्ते साबुन और गर्म पानी से भी हटाया जा सकता है।

वो कहते हैं, ''इस वायरस के चारों ओर आनुवंशिक कण की झिल्ली है जिसे लिपिड मेंबरेन कहा जाता है क्योंकि यह तैलीय और चिकनी संरचना है। इस तरह की संरचना को साबुन और पानी से प्रभावहीन किया जा सकता है।''

वायरस के इस बाहरी 'खोल' को मिटाते ही वायरस की आनुवंशिक सामग्री टूट जाती है। इसके कारण आरएनए भी नष्ट हो जाता है जो मानवीय शरीर में सेल के ज़रिए इस वायरस की कई कॉपियां बनाता है।

गिलबर्ट कहते हैं कि साबुन से हाथों को ख़ूब रगड़ना चाहिए और हर कोने तक ले जाना चाहिए जिससे वक़्त मिलता है और लिपिड मेंबरेन और साबुन के बीच संपर्क होता है।

वो कहते हैं कि इससे साबुन को उस वायरस को मिटाने में मदद मिलती है। गिलबर्ट गर्म पानी पर कहते हैं कि यह वायरस से लड़ने में तेज़ी लाता है।

ब्रिटेन के केंट विश्वविद्यालय में मॉलिक्यूलर साइंस के प्रोफ़ेसर मार्टिन मिशलिस कहते हैं कि सिर्फ़ पानी से वायरस को प्रभावहीन नहीं किया जा सकता है।

वो कहते हैं, ''जब आप खाना पका रहे हों और आपके हाथ में ज़ैतून का तेल हो तो उसे पानी से हटा पाना बहुत मुश्किल है। आपको साबुन की ज़रूरत होती है। इसी तरह से कोरोना वायरस के मामले में साबुन की ज़रूरत होती है।''

कोरोना वायरस में म्युटेशन क्या जानलेवा साबित होगा?

संक्रामक रोगों के एक प्रमुख विशेषज्ञ का कहना है कि यूरोप, उत्तरी अमरीका और एशिया के कुछ हिस्सों में कोरोना वायरस में जो म्यूटेशन (वायरस के जीन में बदलाव) देखा जा रहा है, वो अधिक संक्रामक हो सकते हैं, लेकिन वो कम जानलेवा मालूम पड़ते हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के वरिष्ठ चिकित्सक और इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष पॉल टैम्बिया ने कहा, ''सुबूत बताते हैं कि दुनिया के कुछ इलाक़ों में कोरोना के D614G म्यूटेशन (वायरस के जीन में बदलाव) के फैलाव के बाद वहां मौत की दर में कमी देखी गई, इससे पता चलता है कि वो कम घातक हैं।''

डॉक्टर टैम्बिया ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि वायरस का ज़्यादा संक्रामक लेकिन कम घातक होना अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि ज़्यादातर वायरस जैसे-जैसे म्यूटेट करते हैं यानी कि उनके जीन में बदलाव आता है, वैसे-वैसे वो कम घातक होते जाते हैं।

उनका कहना था, ''ये वायरस के हित में होता है कि वो अधिक से अधिक लोगों को संक्रमित करे लेकिन उन्हें मारे नहीं क्योंकि वायरस भोजन और आसरे के लिए लोगों पर ही निर्भर करता है।''

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वैज्ञानिकों ने फ़रवरी में ही इस बात की खोज कर ली थी कि कोरोना वायरस में म्यूटेशन हो रहा है और वो यूरोप और अमरीका में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी कहना था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि वायरस में बदलाव के बाद वो और घातक हो गया है।

रविवार को मलेशिया के स्वास्थ्य विभाग के डीजी नूर हिशाम अब्दुल्लाह ने हाल के दो हॉट-स्पॉट में कोरोना वायरस के D614G म्यूटेशन पाए जाने के बाद लोगों से और अधिक सतर्क रहने का आग्रह किया।

सिंगापुर के विज्ञान, टेक्नोलॉजी और शोध संस्थान के सेबास्टियन मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि कोरोना वायरस का ये रूप सिंगापुर में पाया गया है लेकिन वायरस की रोकथाम के लिए उठाए गए क़दमों के कारण वो बड़े पैमाने पर फैलने में नाकाम रहा है।

मलेशिया के नूर हिशाम ने कहा कि कोरोना का D614G वर्जन जो वहां पाया गया था वो 10 गुना ज़्यादा संक्रामक था और अभी जो वैक्सीन विकसित की जा रही है। हो सकता है वो कोरोना वायरस के इस वर्जन (D614G) के लिए उतनी प्रभावी ना हो।

लेकिन टैम्बिया और मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि म्यूटेशन के कारण कोरोना वायरस में इतना बदलाव नहीं होगा कि उसकी जो वैक्सीन बनाई जा रही है उसका असर कम हो जाएगा।

मॉरर-स्ट्रोह ने कहा, ''वायरस में बदलाव तक़रीबन एक जैसे हैं और उन्होंने वो जगह नहीं बदली है जो कि आम तौर पर हमारा इम्युन सिस्टम पहचानता है, इसलिए कोरोना की जो वैक्सीन विकसित की जा रही है, उसमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।''

रूस की कोरोना वैक्सीन पर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने सतर्क किया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंगलवार को रूस की वैक्सीन को लेकर संदेह जताया है। रूस अक्टूबर महीने से कोरोना वायरस की वैक्सीन का उत्पादन शुरू करने जा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि वैक्सीन उत्पादन के लिए कई गाइडलाइन्स बनाई गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर से यूएन प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पूछा गया कि अगर किसी वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल किए बगैर ही उसके उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी कर दिया जाता है तो क्या संगठन इसे ख़तरनाक मानेगा?

रूस के स्वास्थ्य मंत्री ने शनिवार को कहा था कि उनका देश अक्टूबर महीने से कोविड-19 के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर वैक्सीन कैंपेन शुरू करने की तैयारी कर रहा है।

रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिख़ाइल मुराश्को ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि वैक्सीन की कोई फीस नहीं ली जाएगी और सबसे पहले इसे डॉक्टर्स और अध्यापकों को दिया जाएगा।

रूसी स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि उत्पादन के साथ-साथ वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल भी जारी रहेगा और इसे बेहतर बनाने की कोशिश की जाएगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा, ''जब भी ऐसी ख़बरें आएं या ऐसे क़दम उठाए जाएं तो हमें सावधान रहना होगा। ऐसी ख़बरों के तथ्यों की जांच सतर्कता के साथ की जानी चाहिए।''

क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा, ''कई बार ऐसा होता है कि कुछ शोधकर्ता दावा करते हैं कि उन्होंने कोई खोज कर ली है जो कि वाक़ई बहुत अच्छी ख़बर होती है। लेकिन कुछ खोजने या वैक्सीन के असरदार होने के संकेत मिलने और क्लीनिकल ट्रायल के सभी चरणों से गुजरने में बहुत बड़ा फ़र्क़ होता है। हमने आधिकारिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं देखा है। अगर आधिकारिक तौर पर कुछ होता तो यूरोप के हमारे दफ़्तर के सहयोगी ज़रूर इस पर ध्यान देते।''

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता ने कहा, ''एक सुरक्षित वैक्सीन बनाने को लेकर कई नियम बनाए गए हैं और इसे लेकर गाइडलाइन्स भी हैं। इनका पालन किया जाना ज़रूरी है ताकि हम जान सकें कि वैक्सीन या कोई भी इलाज किस पर असरदार है और किस बीमारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद कर सकती है।''

उन्होंने कहा, ''गाइडलाइन का पालन करने से हमें ये भी पता चलता है कि क्या किसी इलाज या वैक्सीन के साइड इफेक्ट हैं या फिर कहीं इससे फायदे के बजाय नुकसान तो ज्यादा नहीं हो रहा है।''

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर क्लीनिकल ट्रायल से गुजर रहीं 25 वैक्सीन को सूचीबद्ध किया है जबकि 139 वैक्सीन अभी प्री-क्लीनिकल स्टेज में हैं।

कोरोना वायरस: डब्ल्यूएचओ ने कहा, हो सकता है दवाई कभी ना मिले

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख डॉ टेड्रोस एडोनोम गेब्रिएसस ने कहा कि उम्मीद है कि कोविड-19 की वैक्सीन मिल जाए, लेकिन अभी इसकी कोई अचूक दवाई नहीं है और संभव है कि शायद कभी ना हो।

टेड्रोस इससे पहले भी कई बार कह चुके हैं कि शायद कोरोना कभी ख़त्म ही ना हो और इसी के साथ जीना पड़े। इससे पहले टेड्रोस ने कहा था कि कोरोना दूसरे वायरस से बिल्कुल अलग है क्योंकि वह ख़ुद को बदलता रहता है। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा था कि मौसम बदलने से कोरोना पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कोरोना मौसमी नहीं है।

डॉ टेड्रोस ने कहा कि दुनिया भर के लोग कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ का अच्छे से धोना और मास्क पहनने को नियम की तरह ले रहे हैं और इसे आगे भी जारी रखने की ज़रूरत है।

दुनिया भर में अब तक एक करोड़, 81 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। मरने वालों की तादाद भी छह लाख, 89 हज़ार पहुंच गई है।

डॉ टेड्रोस ने कहा, ''कई वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में हैं और हम सबको उम्मीद है कि कोई एक वैक्सीन लोगों को संक्रमण से बचाने में कारगर साबित होगी। हालांकि अभी इसकी कोई अचूक दवाई नहीं है और संभव है कि शायद यह कभी नहीं मिले। ऐसे में हम कोरोना को टेस्ट, आइसोलेशन और मास्क के ज़रिए रोकने का काम जारी रखें।''

डॉ टेड्रोस ने ये भी कहा कि जो माताएं कोरोना संदिग्ध हैं या कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है उन्हें स्तनपान कराना नहीं रोकना चाहिए।

डॉक्टर टेड्रोस ने इससे पहले जून महीने में भी कहा था, ''हम ये जानते हैं कि बड़ों के मुक़ाबले बच्चों में कोविड-19 का जोखिम कम होता है, लेकिन दूसरी ऐसी कई बीमारियां हैं जिससे बच्चों को अधिक ख़तरा हो सकता है और स्तनपान से ऐसी बीमारियों को रोका जा सकता है। मौजूदा प्रमाण के आधार पर संगठन ये सलाह देता है कि वायरस संक्रमण के जोखिम से स्तनपान के फ़ायदे अधिक हैं।''

उन्होंने कहा था, ''जिन माँओं के कोरोना संक्रमित होने का शक है या फिर जिनके संक्रमित होने की पुष्टि हो गई है उन्हें बच्चे को दूध पिलाने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। अगर मां की तबीयत वाक़ई में बहुत ख़राब नहीं है तो नवजात को मां से दूर नहीं किया जाना चाहिए।''

अक्तूबर में नागरिकों को कोरोना का टीका देने की योजना बना रहा है रूस

रूसी स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने कहा है कि सरकार अक्तूबर के महीने में नागरिकों को कोरोना की वैक्सीन देने की योजना बना रही है और इसके लिए विस्तृत टीकाकरण अभियान चलाने की तैयारी की जा रही है।

रूसी मीडिया के अनुसार मिख़ाइल मुराश्को ने कहा कि सबसे पहले डॉक्टरों और शिक्षकों को कोरोना की वैक्सीन दी जाएगी।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अनाम सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि रूस की संभावित कोरोना वैक्सीन को इस महीने नियामकों की मंज़ूरी मिल जाएगी।

हालांकि तेज़ी से कोरोना वैक्सीन बनाने की रूस की कोशिश को लेकर कई विशेषज्ञ चिंता भी जताते हैं।

शुक्रवार को अमरीका के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथोनी फाउची ने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि रूस और चीन लोगों को कोरोना वैक्सीन देने से पहले वाकई में ''इससे जुड़े सभी टेस्ट कर रहे है।''

डॉक्टर फाउची ने कहा कि इस साल के आख़िर तक अमरीका के पास ''सुरक्षित और कारगर'' कोरोना वैक्सीन होगी।

उन्होंने कहा, ''मैं नहीं मानता कि कोरोना वैक्सीन के मामले में आधुनिक वैक्सीन के लिए हमें किसी दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ेगा।''

कई देशों में चल रहा है वैक्सीन बनाने का काम

फिलहाल दुनिया भर में कई देशों में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है और क़रीब 20 वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल भी शुरू हो चुका है।

इंटरफैक्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार रूसी स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि मॉस्को में मौजूद गामालेया इंस्टीट्यूट ने कोरोना वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल का काम पूरा कर लिया है और अब वो इसे रजिस्टर कराने के लिए पेपरवर्क में व्यस्त है।

स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार, ''हम अक्तूबर में टीकाकरण अभियान की योजना बना रहे हैं।''

बीते महीने रूसी वैज्ञानिकों ने कहा था कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने एड्रेनोवायरस बेस्ड कोरोना वैक्सीन का शुरूआती ट्रायल पूरा कर लिया है और इसके नतीजे सकारात्मक रहे हैं।

बीते महीने ही ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने रूस के एक हैकिंग समूह पर कोरोना वैक्सीन के काम में जुटी संस्थाओं पर साइबर हमले का और जानकारी चुराने का आरोप लगाया था।

ब्रितानी नेशनल लाइबर सिक्योरिटी सेन्टर ने कहा था कि उसे 95 फीसदी यकीन है कि साइबर हमले के लिए APT29 नाम का एक समूह ज़िम्मेदार है जो रूसी ख़ुफ़िया ऐजेंसी से जुड़ा है। सेंटर के अनुसार इस समूह को ड्यूक्स ऑर कोज़ी बीयर के नाम से भी जाना जाता है।

हालांकि इन आरोपों से रूस ने सिरे से खारिज कर दिया था। ब्रिटेन में रूसी राजदूत आंद्रे केलिन ने कहा था कि ''इन दावों में कोई हकीकत नहीं है।''

इधर ब्रिटेन में एस्ट्राज़ेनिका नाम की कंपनी ऑक्सफ़र्ड यूनिर्सिटी की बनाई कोरोना वैक्सीन को लेकर काम कर रही है। अब तक हुए ट्रायल में इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं और पता चला है कि वैक्सीन इम्यून रिस्पॉन्स शुरू करने में सक्षम है।

वैक्सीन पाने के लिए अमरीका और ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों के इन्क्लूसिव वैक्सीन अलायंस ने एस्ट्राज़ेनिका के साथ पहले की करार कर लिया है।

दशकों से चमगादड़ के शरीर में मौजूद था कोरोना वायरस

ऐसी संभावना है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों के शरीर में दशकों से मौजूद रहा हो, लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका हो।

हाल में हुए एक शोध से पता चला है कि कोविड-19 बीमारी के लिए ज़िम्मेदार कोरोना वायरस, करीबी ज्ञात वायरस से 40 और 70 साल पहले चमगादड़ में पाया गया था। वैज्ञानिक मानते है कि हो सकता है कि यही वायरस अब इंसानों तक पहुंच गया हो।

उन्होंने ये ही कहा है कि इसके साथ ही इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रही ये कॉन्सिपीरेसी थ्योरी भी शक के घेरे में आ गई है कि इस वायरस को लैब में तैयार किया गया था या फिर वहीं से फैलना शुरू हुआ था।

नेचर माइक्रोबायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुए एक शोध पर काम करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्लासगो के प्रोफ़ेसर डेविड रॉबर्टसन कहते हैं कि महामारी के लिए ज़िम्मेदार Sars-CoV2 वायरस आनुवंशिक तौर पर चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरस के नज़दीक है लेकिन दोनों में कई दशकों के वक्त का फर्क है।

वो कहते हैं, ''इसका मतलब है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला वायरस कुछ वक्त से मौजूद था। लेकिन हमें अब तक नहीं पता कि ये कब और कैसे इंसानों में आया? अगर हम ये मानते हैं कि ये चमगादड़ों में पाया जाने वाला आम वायरस है तो इस मामले में हमें और पैनी नज़र की ज़रूरत है, हमें इसकी और निगरानी करनी होगी।''

प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं कि भविष्य में और महामारी न फैले इसके लिए हमें न केवल इंसानों में होने वाले संक्रमण का सर्विलांस करना होगा बल्कि जंगली चमगादड़ों का भी सेम्पलिंग करना होगा। वो कहते हैं अगर ये वायरस दशकों से मौजूद थे तो उन्हें अपने पैर फैलाने के लिए यानी संक्रमित करने के लिए दूसरे जानवर भी मिले होंगे।

इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 बीमारी पैदा करने वाले Sars-CoV2 वायरस के जेनेटिक कोड का मिलान इसी से मिलते-जुलते चमगादड़ों में पाए जाने वाले RaTG13 से किया था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि इन दोनों के पूर्वज एक ही हैं लेकिन इवोल्यूशन की प्रक्रिया में दशकों पहले दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए थे।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के प्रोफ़ेसर मार्क पेजल इस शोध का हिस्सा नहीं हैं। वो कहते हैं कि इस शोध का इशारा इस तरफ है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों में 40 से 70 साल पहले से ही मौजूद था लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका था।

वो कहते हैं, ''इस शोध से पता चलता है कि जानवरों से इंसानों को होने वाले संक्रमण का दायरा कितना बड़ा है। हो सकता है कि इंसानों में बीमारी पैदा करने वाले कई वायरस जानवर के शरीर में मौजूद हों लेकिन हमें उनका पता ही न हो।''

हो सकता है कि ये वायरस एक जानवर से दूसरे जानवरों में फैलते रहे हों और इनसे जंगली जनवरों के व्यवसाय से जुड़े लोग संक्रमित हुए हों।

इससे पहले हुए शोध में पता चला था कि Sars-CoV2 की उत्पत्ति में पैन्गोलिन की बड़ी भूमिका हो सकती है लेकिन ताज़ा शोध के अनुसार ऐसा नहीं है।

हो सकता है कि पैन्गोलिन को भी ये वायरस जंगली जनवरों के व्यवसाय के दौरान दूसरे जानवरों के संपर्क में आने से मिला हो।

अमरीकी कंपनी मॉडर्ना को बंदरों पर टीके के प्रयोग में कामयाबी मिली

अमरीकी बायोटेक कंपनी मॉडर्ना ने कहा है कि कोरोना वायरस के उनके एक टीके के बंदरों पर प्रयोग के दौरान मिले नतीजे अच्छे रहे हैं।

मॉडर्ना ने कहा कि ये टीका फेफड़ों और नाक के संक्रमण से बचाता है और फेफड़ों की बीमारी को रोकता है।

सोमवार को, इस कंपनी ने इंसानों पर भी टेस्ट शुरू किया जिसमें 30 हज़ार स्वयंसेवक शामिल हो रहे हैं।

कंपनी को अमरीका सरकार ने एक विशेष कार्यक्रम के तहत एक अरब डॉलर का फ़ंड दिया है।

ऑपरेशन वॉर्प स्पीड नाम के इस कार्यक्रम के तहत कोरोना वायरस का टीका बनाने के लिए किए जा रहे कई प्रयासों को पैसे दिए जा रहे हैं।

क्या अंतरिक्ष में हथियारों का परीक्षण स्पेस वॉर का पूर्व अभ्यास है?

अमरीका और ब्रिटेन ने रूस पर अंतरिक्ष में एक हथियार जैसे प्रोजेक्टाइल को टेस्ट करने का आरोप लगाया है। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने इसे 'इन ऑर्बिट एंटी सैटेलाइट वेपन' बताते हुए चिंताजनक बताया है।

इससे पहसे रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि रूस अंतरिक्ष में उपकरण की जांच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। अब रूस ने अमरीका और ब्रिटेन पर सच को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह कोई हथियार नहीं है।

अमरीका पहले भी अंतरिक्ष में रूस के सैटेलाइट की गतिविधियों को लेकर सवाल उठा चुका है। हालांकि यह पहली बार है जब ब्रिटेन ने ऐसे आरोप लगाए हैं।

अमरीका के असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ़ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉन प्रॉलिफरेशन, क्रिस्टोफ़र फ़ोर्ड ने कहा, ''इस तरह के एक्शन अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा है और अंतरिक्ष में कचरा पैदा होने की संभावना को बढ़ाते हैं, जो कि सैटेलाइट और स्पेस सिस्टम के लिए, जिस पर दुनिया निर्भर है, बड़ा ख़तरा है।''

अमरीका के स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे. रेमंड ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि रूस ने स्पेस में एंटी सैटेलाइट वेपन का टेस्ट किया है।

उन्होंने आगे कहा, ''स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है। और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है।''

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, ''इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है।''

दुनिया के सिर्फ़ चार देश - रूस, अमरीका, चीन और भारत ने अब तक एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीक क्षमता का प्रदर्शन किया है।

भारत ने पिछले ही साल अपने एक सैटेलाइट को मारकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था।

पिछले साल भारत ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट (एलइओ) सैटेलाइट को मार गिराया। यह एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था और तीन मिनट के भीतर इसे हासिल किया गया था।

इसे 'शक्ति मिशन' का नाम दिया गया और जिसका संचालन डीआरडीओ ने किया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस उपलब्धि से भारत को प्रतिरोधक क्षमता मिल गई है। अगर भारत का सैटेलाइट कोई नष्ट करता है तो भारत भी ऐसा करने में सक्षम है।

भारत ने तुलनात्मक रूप से कम ऊंचाई पर उपग्रह को निशाने पर लिया था। यह ऊंचाई 300 किलोमीटर थी जबकि 2007 में चीन ने 800 किलोमीटर से ज़्यादा की ऊंचाई पर अपना एक सैटेलाइट नष्ट किया था। 300 किलोमीटर की ऊंचाई इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) से नीचे है।

हालांकि नासा प्रमुख का कहना था कि नष्ट किए गए भारतीय उपग्रह के कचरे के 24 टुकड़े आईएसएस के ऊपर चले गए हैं।

जिम ब्राइडेन्स्टाइन ने कहा, ''इससे ख़तरनाक कचरा पैदा हुआ है और ये आईएसएस के भी ऊपर चला गया है। इस तरह की गतिविधि भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रतिकूल साबित होगी।''

विज्ञान मामलों के जानकार पल्लव बागला बताते हैं, ''देश सैटेलाइट पर निर्भर होने लगे हैं, देशों की इकोनॉमी कहीं न कहीं सैटेलाइट से जुड़ने लगी है। अगर कोई एक देश किसी दूसरे देश को नुक़सान पहुंचाना चाहता है तो सैटेलाइट को नुक़सान पहुंचा कर वह यह काम कर सकता है, इसकी चर्चा काफ़ी समय से होती आई है।''

बागला आगे बताते हैं, ''जब इतने सैटेलाइट हों और अर्थव्यवस्था उन पर निर्भर होने लगे, तो आपके पास क्या तरीक़ा है? या तो आप कुछ ऐसा बनाएं कि आपका सैटेलाइट कोई नष्ट नहीं कर सके, नहीं तो दूसरे को ये बता दें कि अगर आप हमारी सैटेलाइट पर हमला करेंगे, तो हम भी आपके सैटेलाइट पर हमला कर सकते हैं।''

रूस के उठाए मौजूदा क़दम पर बागला कहते हैं, ''अमरीका आगे बढ़ रहा है, उनके पास एक पूरा स्पेस कमांड है, वायुसेना, थलसेना और नौसेना के अलावा वह स्पेस में भी फ़ौज की तैयारी कर रहा है। लाज़मी है कि रूस भी कुछ न कुछ तो करेगा।''

बागला मानते हैं कि ये देशों के बीच की स्पर्धा है जो पहले से होती रही है और आगे भी जारी रहेगी।

जिन देशों के पास सैटेलाइट गिराने की क्षमता है उनमें से किसी ने भी अभी तक दुश्मन देश के सैटेलाइट पर हमला नहीं किया है। इनका इस्तेमाल अभी तक बस ताक़त के प्रदर्शन के लिए किया गया है।

लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इनका इस्तेमाल भविष्य में नहीं किया जाएगा।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा के मुताबिक़ कोई भी ऐसी टेक्नोलॉजी जो इस्तेमाल की जा सकती है, वो शांति और युद्ध दोनों में ही काम आएगी।

उनके मुताबिक़, ''अंतरिक्ष की भूमिका अहम होने जा रही है। वैसी ही जैसे हवाई जहाज़ के बनने के बाद उनकी भूमिका पहले और दूसरे विश्व युद्ध में थी।''

रज़ा आगे बताते हैं, ''अब जो युद्ध होंगे, उनमें स्पेस की भूमिका सिर्फ़ इसलिए बड़ी होगी क्योंकि इसकी मदद से दूसरे देश को अपाहिज किया जा सकता है।''

सैटेलाइट टेस्ट कोई हथियार नहीं था: रूस

रूस ने कहा है कि उसने अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट टेस्ट किया था, वो कोई हथियार नहीं था।

रूस के रक्षा मंत्रालय ने अमरीका और ब्रिटेन के आरोपों को ख़ारिज करते हुए उन पर तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया।

रूस के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, ''15 जुलाई को जो टेस्ट किए गए थे उसने किसी दूसरे अंतरिक्षयाण के लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं किया है। और इसने किसी भी अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं किया है।''

रूस ने कहा कि वो रूस के अंतरिक्ष उपकरणों की देख रेख और उनकी जाँच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है।

इससे पहले ब्रिटेन और अमरीका ने कहा था कि वो रूस की इन गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं।

ब्रिटेन और अमरीका ने आरोप लगाया था कि रूस ने अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट से हथियार जैसी कोई चीज़ लॉन्च की है।

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख ने एक बयान जारी कर कहा, ''रूस ने हथियार जैसी कोई चीज़ को लॉन्च कर जिस तरह से अपने एक सैटेलाइट को टेस्ट किया है उसको लेकर हम लोग चिंतित हैं।''

बयान में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा है।

रूस के इस सैटेलाइट के बारे में अमरीका ने पहले भी चिंता जताई थी।

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, ''इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है।''

उन्होंने कहा, ''हम लोग रूस से आग्रह करते हैं कि वो आगे इस तरह के टेस्ट से परहेज़ करें। हम लोग रूस से ये भी आग्रह करते हैं कि अतंरिक्ष में ज़िम्मेदार रवैये को बढ़ावा देने के लिए वो ब्रिटेन और दूसरे सहयोगियों के साथ रचनात्मक तरीक़े से काम करता रहे।''

बीबीसी के रक्षा संवाददाता जोनाथन बेल के अनुसार ब्रिटेन ने पहली बार रूस पर अंतरिक्ष में सैटेलाइट टेस्ट करने का आरोप लगाया है और ये ठीक उसके कुछ दिनों के बाद हुआ है जब ब्रिटेन में इंटेलिजेन्स और सुरक्षा कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ब्रिटेन की सरकार रूस से ख़तरे को भाँपने में बुरी तरह नाकाम रही थी।

स्पेस वॉर की आशंका?

इस घटना के बाद अंतरिक्ष में हथियारों की नई तरह की दौड़ शुरू होने की चिंता को जन्म दे सकती है और कई दूसरे देश भी उन तकनीक की जाँच कर रहे हैं जिसका अतंरिक्ष में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

अमरीका ने कहा है कि रूस का ये वही सैटेलाइट सिस्टम है जिसके बारे में उसने साल 2018 में भी चिंता ज़ाहिर की थी और इस साल भी सवाल उठाया था जब अमरीका ने रूस पर आरोप लगाया था कि उसका एक सैटेलाइट अमरीका के एक सैटेलाइट के क़रीब जा रहा था।

इस ताज़ा घटनाक्रम के बारे में अमरीकी स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे रेमंड ने कहा है कि इस बात के सुबूत हैं कि रूस ने अंतरिक्ष में स्थित एक सैटेलाइट विरोधी हथियार का टेस्ट किया है।

जनरल रेमंड ने कहा कि रूस ने सैटेलाइट के ज़रिए ऑर्बिट में एक नई चीज़ को लॉन्च किया है।

उनका कहना था, ''स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है। और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है।''