अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बुधवार को दो नए आणविक संपादन उपकरण का निर्माण किया है। इससे म्यूटेशनों को ठीक करने में मदद मिलेगी। म्यूटेशन बहुत से बीमारियों का कारण बनता है, जिनमें से कुछ का कोई उपचार नहीं है।
हॉवर्ड विश्वविद्यालय के डेविड लियू और ब्रॉड इंस्टीट्यूट ऑफ एम आई टी और हार्वर्ड जीन में गलतियों को ठीक करने का एक अत्यंत ही सटीक तरीका प्रदान करता है, जो डीओक्सीरिबो न्यूक्लिक एसिड या डीएनए के बने होते हैं।
ब्रॉड इंस्टीट्यूट के आण्विक जीवविज्ञानी फेंग झांग द्वारा एक दूसरी खोज, जो राइबोन्यूक्लिक एसिड या आरएनए को संपादित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। ये डीएनए को बदले बिना प्रोटीन बनाने के लिए आनुवंशिक निर्देश करता है।
भारत के डॉक्टर या प्राइमरी केयर कंसल्टेंट, मरीजों को सिर्फ दो मिनट का वक्त देते हैं। इसका खुलासा एक रिसर्च से हुआ है। मेडिकल कंसल्टेशन पर हुए सबसे बड़े इंटरनेशनल शोध में यह बात सामने आई है।
पड़ोसी देशों बंग्लादेश और पाकिस्तान में स्थिति और भी बदतर है, यहां कंसल्टिंग टाइम औसतन 48 सेकंड से 1.3 मिनट ही है।
यह शोध गुरुवार को मेडिकल जर्नल बी एम जे ओपन में प्रकाशित हुआ है। इसके विपरीत स्वीडन, अमेरिका और नॉर्वे जैसे देशों में कंसल्टेशन का औसत समय 20 मिनट होता है।
यह शोध यूनाइटेड किंगडम के कई अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने किया था।
जर्नल में कहा गया है, ''यह चिंता की बात है कि 18 ऐसे देश, जहां की दुनिया की 50 फीसदी आबादी रहती है। यहां का औसत कंसल्टेशन टाइम 5 या इससे कम मिनट है।
स्टडी के मुताबिक, मरीज ज्यादा वक्त फार्मेसी में या ऐंटीबायॉटिक दवाएं खाकर बिता रहे हैं और उनके डॉक्टरों से रिश्ते उतने अच्छे नहीं है।
कंसल्टेशन का वक्त कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा बड़ी समस्या है। भारत के परिपेक्ष्य में लोकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये अस्पतालों में भीड़ और प्राइमरी केयर फिजिशन की कमी को दर्शाता है। प्राइमरी केयर डॉक्टर कंसल्टेंट्स से अलग होते हैं जो कि मेडिसिन की खास ब्रांच में ट्रेनिंग पाए होते हैं।
भारत में कंसल्टेशन को दो मिनट का वक्त मिलने वाली बात से किसी को भी हैरानी नहीं हुई। हेल्थ कंमेंटेटर रवि दुग्गल का कहना है, ''यह बात सभी को पता है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम वक्त दे पाते हैं।''
डॉ दुग्गल के मुताबिक, ''कोई नई बात नहीं है कि डॉक्टर मरीजों के लक्षणों में भ्रमित हो जाएं।''
वहीं प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में भी भीड़ का यही हाल है। यहां डॉक्टर सिर्फ लक्षण पूछते हैं और बहुत कम ही शारीरिक परीक्षण कर पाते हैं।
वेस्टर्न और इंडियन कंसल्टेशन में बीमारियों में फर्क होता है। महाराष्ट्र के डॉक्टर सुहास बताते हैं, ''स्वीडन में मरीज को वायरल फीवर के बजाय साइकोसोशल समस्या होती है। वही भारत में अगर डॉक्टर को हवा में मौजूद किसी खास तरह के वायरस के बारे में जानकारी है तो वह कई लोगों का आसानी से इलाज कर सकता है।'' बी एम जे ओपन स्टडी में कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब हालत को देखा गया।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासन ने मंगलवार को वाहन पार्किंग शुल्क चार गुना बढ़ा दिया। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण निवारण और नियंत्रण प्राधिकरण (ई पी सी ए) की एक बैठक में लिया गया, ताकि लोग निजी वाहनों का कम इस्तेमाल करें।
दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति अधिक बदतर हो गई है और मंगलवार को यह खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में साल की सबसे खराब हवा की गुणवत्ता और धुंध की स्थिति देखी गई, जो दिवाली के बाद से अधिक खराब है। दिल्ली के आसमान में धुंध की पीली चादर छाई हुई है।
उल्लेखनीय है कि 21 सक्रिय प्रदूषण निगरानी केंद्रों में से 18 में वायु गुणवत्ता गंभीर दर्ज किए गए। इसके साथ ही प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।
बीती शाम से वायु की गुणवत्ता और दृश्यता में तेजी से गिरावट आ रही है तथा नमी और प्रदूषकों के मेल के कारण शहर में घनी धुंध छा गई है। यह अत्यंत गंभीर से बेहतर स्थिति है, लेकिन वैश्विक मानकों के मुताबिक, यह भी खतरनाक है।
अगर स्थिति और खराब होती है और कम से कम 48 घंटों तक बनी रहती है तो जी आर ए पी के तहत आने वाला कार्यबल स्कूलों को बंद कर सकता है और सम-विषम (आॅड-ईवन) योजना को फिर शुरू कर सकता है।
इस सिलसिले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरंविद केजरीवाल ने शहर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर मंगलवार को उप मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया से स्कूलों को कुछ दिन तक बंद रखने पर विचार करने को कहा। इसके बाद सिसोदिया ने शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण विभागों के अधिकारियों की बैठक बुलाई है।
सिसोदिया ने पर्यावरण विभाग को मंगलवार शाम तक शहर के प्रदूषण स्तर पर एक रिपोर्ट देने का निर्देश भी दिया है। उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद स्कूलों को बंद करने और हफ्ते के अलग-अलग दिनों में सम-विषम नंबर के हिसाब से गाड़ियां चलाने की योजना के विषयों पर अंतिम निर्णय लेगी।
भारत के दिल्ली में मंगलवार को वायु प्रदूषण बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच गया। प्रदूषण परमीसिबल स्टैंडर्ड (सहन करने लायक स्तर) से कई गुना अधिक होने के कारण पूरी दिल्ली धुंध की मोटी चादर में लिपट गई।
बीती शाम से वायु की गुणवत्ता और दृश्यता में तेजी से गिरावट आ रही है तथा नमी और प्रदूषकों के मेल के कारण शहर में घनी धुंध छा गई है।
मंगलवार सुबह दस बजे तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हवा की गुणवत्ता को बेहद गंभीर स्थिति में बताया जिसका मतलब यह है कि प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
वर्तमान हालात के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (ई पी सी) द्वारा ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जी आर ए पी) के तहत तय उपाय इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं जिसमें पार्किंग शुल्क को चार गुना बढ़ाया जाना शामिल है।
अगर स्थिति और खराब होती है और कम से कम 48 घंटों तक बनी रहती है तो जी आर ए पी के तहत आने वाला कार्यबल स्कूलों को बंद कर सकता है और सम-विषम (आॅड-ईवन) योजना को फिर शुरू कर सकता है।
पिछली बार हवा की गुणवत्ता दीपावली के एक दिन बाद 20 अक्टूबर को बेहद गंभीर स्थिति में पहुंची थी। तब से प्रदूषण के स्तर पर लगातार निगरानी रखी जा रही है और हवा की गुणवत्ता काफी खराब स्तर पर बनी हुई है। यह अत्यंत गंभीर से बेहतर स्थिति है, लेकिन वैश्विक मानकों के मुताबिक यह भी खतरनाक है।
वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने का मतलब है कि लंबे समय तक इसके संपर्क में आने पर लोगों को सॉंस संबंधी परेशानी हो सकती है, जबकि बेहद गंभीर स्तर पर होने का मतलब है कि यह सेहतमंद लोगों पर भी असर डाल सकती है और सॉंस तथा दिल के मरीजों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
सी पी सी बी के एयर लैब प्रमुख दीपांकर साहा ने बताया कि हवा बिलकुल भी नहीं चल रही जिस वजह से यह हालात बने हैं। वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आई एम ए) ने दिल्ली में हवा के खराब गुणवत्ता को देखते हुए इसे पब्लिक हेल्थ के लिए बेहद हानिकारक बताया है। आई एम ए के प्रेसिडेंट डॉ. के के अग्रवाल ने स्कूल बंद करने और लोगों को घर से बाहर ना जाने की अपील की है।
मौसम में मौजूद नमी ने जमीन पर स्थित स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषकों को वहीं पर रोक दिया है। मौसम का हाल बताने वाली निजी एजेंसी स्कायमेट का कहना है कि पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जा रही है और वहां से हवा दोपहर के वक्त शहर में प्रवेश कर रही है। सी पी सी बी ने पड़ोसी शहर नोएडा और गाजियाबाद में भी हवा की गुणवत्ता बेहद गंभीर बताई है।
भारत में 2015 में वायु, जल और दूसरे तरह के प्रदूषणों की वजह से दुनिया में सबसे ज्यादा मौत हुईं।
प्रदूषण की वजह से भारत में 2015 में 25 लाख लोगों की जान गई।
लैंसेट जर्नल में शुक्रवार को प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात कही गई है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इनमें से अधिकतर मौतें प्रदूषण की वजह से होने वाली दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और सांस की गंभीर बीमारी सी ओ पी डी जैसी गैर संचारी बीमारियों की वजह से हुईं।
अध्ययन के मुताबिक, वायु प्रदूषण इसका सबसे बड़ा कारक है जिसकी वजह से 2015 में दुनिया में 65 लाख लोगों की मौत हुई, जबकि जल प्रदूषण (18 लाख मौत) और कार्यस्थल से जुड़ा प्रदूषण (8 लाख मौत) अगले बड़े जोखिम हैं।
शोधकर्ताओं में दिल्ली के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) दिल्ली और अमेरिका के इकाह्न स्कूल आॅफ मेडिसिन के विशेषज्ञ शामिल थे।
शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रदूषण से जुड़ी 92 फीसद मौत निम्न से मध्यम आय वर्ग में हुईं। भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, मेडागास्कर और केन्या जैसे औद्योगीकरण से तेजी से जुड़े देशों में प्रदूषण की वजह से होने वाली हर चार में से एक मौत होती है।
अध्ययन में कहा गया, ''साल 2015 में भारत में प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा 25 लाख मौत हुईं, जबकि चीन में मरने वालों का आंकड़ा 18 लाख था।''
प्रदूषण की वजह से दुनिया भर में प्रतिवर्ष करीब 90 लाख लोगों की मौत होती है जो कुल मौतों का छठा हिस्सा है।
भारत में आईटी और बीपीओ सेक्टर में काम करने वाले सात लाख लोगों की नौकरी खतरे में है। यह खतरा ऑटोमेटिक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण बढ़ता दिखाई दे रहा है।
अमेरिका की एक रिसर्च फर्म HSF रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में 2022 तक 7 लाख लोगों की नौकरी जाने की बात कही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडियम और हाई स्किल नौकरियों में इस अवधि के दौरान बढ़ोत्तरी होगी।
हालांकि यह भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के लिए बुरी खबर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑटोमेटिक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण घरेलू आईटी और बीपीओ सेक्टर में लो स्किल्ड वर्कर्स की संख्या 24 लाख (2016 में) से घटकर 2022 में 17 लाख रह जाएगी।
हालांकि भारत में मीडियम स्किल्ड लोगों के लिए नौकरियां 9 लाख से बढ़कर 10 लाख हो सकती हैं। इसके अलावा 2016 में 3,20,000 हाई स्किल्ड लोगों के लिए नौकरियां थीं जो 2022 तक 5,10,000 तक पहुचं जाएंगी।
भारत में यह ट्रैंड वैश्विक परिदृश्य को दर्शाता है क्योंकि विश्व स्तर पर लो स्किल्ड आईटी / बीपीओ नौकरियों में 31 फीसदी की गिरावट आने की उम्मीद है, जबकि मीडियम स्किल्ड नौकरियों में 13 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है और हाई स्किल्ड नौकरियों में 57 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है।
भारत के आईटी और बीपीओ सेक्टर में अगर नौकरियों में होने वाली कुल हानि देखी जाए तो वह 4,50,000 तक हो सकती है। 2016 में इस सेक्टर में 36.5 लाख लोग काम करते थे जिनकी संख्या 2022 में घटकर 32 लाख पर पहुंच सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस ऑटोमेटिक की वजह से पूरी दुनिया के आईटी / बीपीओ सेक्टर में नौकरियों में 7.5 फीसदी की गिरावट आएगी।
सबसे ज्यादा भारत, अमेरिका और ब्रिटेन में इसका असर होगा।
रिपोर्ट में कहा है कि आईटी कंपनियां रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (RPA) और आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस (AI) को तेजी से अपना रही हैं। इसके चलते लो-स्किल्ड जॉब्स की संख्या में यह कमी देखने को मिल रही है।
रिपोर्ट में कहा है कि कंपनियां अभी अपने सर्विस कॉन्ट्रैक्ट पर रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन से पड़ने वाले असर का पता लगा रही हैं। कंपनियां अभी इस बदलाव के लिए खुद को तैयार करने पर ध्यान दे रही हैं।
उनका मानना है कि 5 साल तक तो वे स्थिति को संभाल सकती हैं, उसके बाद स्टाफ पर पड़ने वाला असर ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा।
भारत की केंद्र सरकार ने स्मार्टफोन बनाने वाली चाइनीज कंपनियों ओप्पो, वीवो, शियोमी और जियोनी समेत 21 कंपनियों को नोटिस जारी किया है। सरकार को डर है कि कहीं मोबाइल कंपनियां लोगों का डेटा चुराकर किसी तीसरे देश को न बेच रही हों।
सरकार ने कंपनियों को नोटिस जारी कर पूछा है कि फोन में डेटा की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कंपनियों को 28 अगस्त तक इसके बारे में अपनी रिपोर्ट देनी है। नोटिस पाने वाली कंपनियों में एप्पल, सैमसंग और माइक्रोमेक्स जैसी कंपनियां भी हैं। अगर मोबाइल कंपनियों की तरफ से कोई अनियमितता पाई जाती है, तो कंपनियों को जुर्माना देना होगा।
डेटा सुरक्षा और लीक को लेकर चीन से इलेक्ट्रोनिक्स और आईटी प्रॉड्क्टस के बड़े पैमाने पर होने वाले इंपोर्ट की समीक्षा शुरू कर दी है। सरकार ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब डोकलाम को लेकर भारत और चीन का विवाद चल रहा है।
ऐसी खबरें आ रही हैं कि मोबाइल हैंडसेट से डेटा चोरी करके तीसरे देश को भेजा जा रहा है। भारत में ज्यादातर चीन की मोबाइल फोन कंपनियां हैंडसेट बेंचती हैं और इन ब्रांड के सर्वर तीसरे देश में होते हैं। ऐसे में अगर डेटा चोरी होता है तो ये यूजर्स के लिए बड़ा नुकसानदायक साबित होगा।
भारत में हर साल 20-22 करोड़ मोबाइल बिकते हैं, जिसकी कीमत करीब 90000 करोड़ रुपये होती है। देश की बड़ी आबादी इन दिनों चीनी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती है। हाल ही में बढ़ते साइबर हमले और हैकिंग ने दुनिया के सामने साइबर क्राइम को एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। ऐसे में सरकार ने देशभर के यूजर्स की सुरक्षा को लेकर यह कदम उठाया है।
बता दें कि शियोमी के दूसरे ब्रांड रेडमी और वीवो ने इंडियन स्मार्टफोन मार्केट में अच्छी पकड़ बना रखी है। यह कंपनियां हर महीने लाखों स्मार्टफोन सेल कर रही हैं। भारत में स्मार्टफोन की सेल के आकड़ों पर नजर डालें तो शियोमी रेडमी दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर सैमसंग है। रेडमी अपनी सेल मे इजाफा करने के लिए नए ऑफलाइन स्टोर खोल रहा है। वहीं वीवो की सेल में गिरावट दर्ज की गई है।
विज्ञान ने बहुत प्रगति कर ली है, लेकिन अभी भी इस ब्रह्मांड में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जिसकी गुत्थी अनसुलझी हैं। वह आज भी वैज्ञानिक के लिए रहस्य बने हुए हैं। कुछ इसी तरह की एक रहस्यमयी घटना 11-12 अगस्त की आधी रात होने जा रही है।
खगोलविदों के मुताबिक, उस रात आसमान से धरती पर उल्का पिंडों की बारिश जैसी खगोलीय घटना होगी। हालांकि, ऐसी घटना हर साल जुलाई से अगस्त के बीच होती है, लेकिन इस बार उल्का पिंड ज्यादा मात्रा में गिरेंगे, इसलिए कहा जा रहा है कि 11-12 अगस्त की रात आसमान में अंधेरा नहीं बल्कि उजाला होगा।
ऐस्ट्रोनोमी-फिजिक्स डॉट कॉम की एक वायरल स्टोरी के मुताबिक, इस साल होने वाली उल्का पिंडों की बारिश इतिहास के उल्का पिंडों की बारिश से सबसे ज्यादा चमकीली और रोशनी वाली होगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसकी पुष्टि की है।
नासा डॉट गॉव की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल गिरने वाले उल्का पिंड की मात्रा पहले के मुकाबले ज्यादा होगी। नासा के मुताबिक, इस साल 11-12 अगस्त की मध्यरात्रि में प्रति घंटे 200 उल्का पिंड गिर सकते हैं। नासा के मुताबिक, उत्तरी गोलार्द्ध में इसे अच्छे तरीके से देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि खगोल विज्ञान में आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर तेजी से पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) कहते हैं।
साधारण बोलचाल की भाषा में इसे 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं।
अक्सर हर रात में अनगिनत संख्या में उल्काएं आसमान में देखी जा सकती हैं, लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या कम होती है।
खगोलीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत होते हैं।
इनकी स्टडी से हमें यह पता चलता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस प्रकार ये पिंड खगोल विज्ञान और भू-विज्ञान के बीच संबंध स्थापित करते हैं।
Curofy जो भारत के वेरिफ़िएड डॉक्टर्स का सब से बड़ा समूह हैं इसमें सिर्फ वेरिफिएड डॉक्टर्स हैं। Curofy ने डॉक्टर वेद श्रीवास्तव को Top Neurosurgeon of July 2017 का अवार्ड दिया।
आईबीटीएन मीडिया नेटवर्क ग्रुप की हमेशा से यही कोशिश रही है कि हम आपको ऐसे शख्सियत से रूबरू करवाये जो युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके और जिससे युवा प्रेरणा लेकर अपने ज़िन्दगी में कामयाबी हासिल कर सके। इस कड़ी में डॉक्टर वेद श्रीवास्तव को Top Neurosurgeon of July 2017 का अवार्ड मिलना बहुत बड़ी खबर और बड़ी उपलब्धि है।
Curofy जो भारत के वेरिफ़िएड डॉक्टर्स का सब से बड़ा समूह हैं इसमें सिर्फ वेरिफिएड डॉक्टर्स हैं। Curofy ने डॉक्टर वेद श्रीवास्तव को Top Neurosurgeon of July 2017 का अवार्ड दिया। यह एक बहुत बड़ी खबर और बड़ी उपलब्धि है।
आईबीटीएन मीडिया नेटवर्क ग्रुप परिवार डॉक्टर वेद श्रीवास्तव को Top Neurosurgeon of July 2017 का अवार्ड मिलने के लिए बधाई देता है और ईश्वर से कामना करता है कि डॉक्टर वेद को जिन्दगी में इसी तरह कामयाबी मिलती रहे।
आइये मिलिए डॉक्टर वेद श्रीवास्तव से और जानिए उनके बारे में, जिससे आप युवा भी उनके जैसा इंसान बन सके, फिर एक अच्छा डॉक्टर।
एक डॉक्टर का एक अच्छा इंसान होना बेहद जरूरी है। एक अच्छा इंसान ही एक अच्छा डॉक्टर हो सकता है। वेद श्रीवास्तव एक बेहद अच्छे इंसान हैं, परिणामस्वरूप वे एक बेहद अच्छे डॉक्टर भी हैं।
डॉक्टर वेद श्रीवास्तव ने ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली से ही 'मास्टर इन न्यूरोसर्जरी' कर रहे हैं और यही जेआर के रूप में काम कर रहे हैं।
गौरतलब है कि डॉक्टर वेद श्रीवास्तव का जन्म वाराणसी में हुआ। डॉक्टर वेद श्रीवास्तव बचपन से ही पढ़ने में काफी कुशाग्र थे, परिणामस्वरूप वे प्रथम प्रयास में ही ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली में एमबीबीएस में एडमिशन लेने में कामयाब रहे।
ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली में एमबीबीएस में एडमिशन होना आसान नहीं होता। लाखों छात्रों में से कुछ छात्र ही एआईआईएमएस, नई दिल्ली में एडिमिशन लेने में कामयाब होते हैं। प्रथम प्रयास में ही डॉक्टर वेद श्रीवास्तव का एआईआईएमएस, नई दिल्ली में एडमिशन होना उनके टैलेंट को दिखाता है।
बचपन से ही उनका रूझान समाज सेवा की ओर रहा है। वह स्कूल के ज़माने से ही समाज सेवा करते रहे हैं। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली में एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने समाज सेवा में सक्रिय रूप से भाग लिया और मेडिकल कैंप में सक्रिय रूप से अपना योगदान दिया।
वह एक अच्छे इंसान के साथ-साथ एक अच्छे डॉक्टर भी हैं। उनके दिल में हमेशा गरीबों के प्रति हमदर्दी रही है। इसी का परिणाम है कि वह गरीबों के लिए लगने वाले मेडिकल कैंप में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं और गरीबों के इलाज के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
भारत में मेक इन इंडिया अभियान को जोरदार धक्का लगा है। भारत में निर्मित जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल आकाश एक तिहाई बुनियादी परीक्षणों में फेल रही है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मिसाइलों की कमी के कारण देश युद्ध के दौरान एक जोखिम के दौर से गुजर सकता है। सीएजी की रिपोर्ट संसद को सौंपी जा चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मिसाइल लक्ष्य से कम दूरी पर ही गिर गया। इसके अलावा उसमें आवश्यकता से कम वेलोसिटी थी और मिसाइल की कई महत्वपूर्ण इकाइयां खराब चल रही थीं।
वायु सेना के अधिकारियों ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। आकाश मिसाइल का निर्माण बेंगलुरु स्थित सरकारी एजेंसी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स ने किया है, जिस पर करीब 3 हजार 6 सौ करोड़ रुपये की लागत आई थी।
सीएजी के रिपोर्ट में कहा गया है कि आकाश के निर्माताओं को 3600 करोड़ रुपये अदा किए गए, लेकिन छह चिन्हित स्थानों में से एक पर भी मिसाइल को इन्स्टॉल नहीं किया जा सका। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कॉन्ट्रैक्ट किए सात साल हो चुके हैं।
आकाश और इसके नए संस्करण आकाश एमके -2 मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली का विकास 18 से 30 किलोमीटर की दूरी में दुश्मनों के ठिकानों पर निशाना साधने के लिए किया गया है। इससे पहले आकाश मिसाइल का बड़े पैमाने पर परीक्षण करने के बाद पहली बार दिसंबर 2008 में भारतीय वायु सेना को सौंपा गया था। इसे एक स्वदेशी प्रणाली के रूप में देखा गया था और इससे उत्साहित होकर साल 2010 में छह अतिरिक्त स्क्वाड्रन बनाने का ऑर्डर दिया गया था।
इन छह अतिरिक्त स्क्वाड्रन में मिसाइल लॉन्चर, राडार, संबंधित वाहन और सौ आकाश मिसाइल को पूर्वी कमान के छह वायु सेना स्टेशन पर तैनात किया जाना था। सरकार ने इसके लिए संग्रह केंद्र, वर्कशॉप और रैम्प स्ट्रक्चर जैसी जरूरी मूलभूत सुविधाओं के विकास की अनुमति भी दी है।
सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन सबका विकास भी करीब 100 करोड़ की लगत से भारत इलेक्ट्रॉनिक्स को ही करना था, लेकिन 2016 के अक्टूबर तक इसे पूरा नहीं किया जा सका था।