सोशल

सोशल मीडिया, ओटीटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म के नियमन के लिए क़ानून बनेगा

भारत में केंद्र की मोदी सरकार अगले तीन महीने में सोशल मीडिया और डिजीटल कंटेन्ट को नियमित करने के लिए एक नया क़ानून लाएगी। भारत के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और भारत के संचार मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया भारत में बिजनस कर रहे हैं, उन्होंने अच्छा बिज़नस किया है और भारतीय लोगों को मज़बूत किया है।  लेकिन इसके साथ ही पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया के गैर-ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल की शिकायतें आ रही हैं।''

मोदी सरकार के मुताबिक़ पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर हिंसा को बढ़ावा देने, अश्लील सामग्री शेयर करने, दूसरे देश के पोस्ट का इस्तेमाल करने जैसी कई शिकायतें सामने आई हैं, जिससे निपटने के लिए सरकार नई गाइडलाइंस लेकर आई है और तीन महीने में इसे लेकर एक क़ानून बनाया जाएगा।

गाइडलाइंस क्या हैं?

गाइडलाइंस के बारे में बताते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया को 2 श्रेणियों में बांटा गया है, एक इंटरमीडयरी और दूसरा सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडरी। हम जल्दी इसके लिए यूज़र संख्या का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।''

''यूज़र्स की गरिमा को लेकर अगर कोई शिकायत की जाती है, ख़ासकर महिलाओं की गरिमा को लेकर तो शिकायत करने के 24 घंटे के अंदर उस कंटेन्ट को हटाना होगा।''

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया के क़ानून को तीन महीने में लागू किया जाएगा।

इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण व्यवस्था बनानी होगी और शिकायतों का निपटारा करने वाले ऑफ़िसर का नाम भी सार्वजनिक करना होगा। ये अधिकारी 24 घंटे में शिकायत का पंजीकरण करेगा और 15 दिनों में उसका निपटारा करेगा।

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया को चीफ़ कंप्लाएंस ऑफिसर, नोडल कंटेन्ट पर्सन और एक रेज़ीडेट ग्रीवांस ऑफ़िसर नियुक्त करना होगा और ये सब भारत में ही होंगे। इसके अलावा शिकायतों के निपटारे से जुड़ी रिपोर्ट भी उन्हें हर महीने जारी करनी होगी।

अकाउंड वेरिफ़िकेशन होगा ज़रूरी

मोदी सरकार ने कहा, इसके अलावा ये सुनिश्चित करने के लिए कि सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट न बनाए जाए, कंपनियों से अपेक्षा होगी कि वो वेरिफिकेशन प्रक्रिया को अनिवार्य बनाएं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई पोस्ट किसने किया है, कोर्ट के आदेश या सरकार के पूछने पर ये जानकारी कंपनी को देनी होगी।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''किसी कोर्ट या सरकार के पूछने पर उन्हें बताना पड़ेगा कि कोई पोस्ट किसने शुरू किया। अगर भारत के बाहर से हुआ तो भारत में किसने शुरू किया। यह भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ संबंध, बलात्कार आदि के संबंध में होना चाहिए।''

हालांकि सोशल मीडिया कंपनियां अक्सर ये दलील देती आई हैं कि इस तरह की जानकारियां देने के लिए उन्हें एंड टू एंड एन्क्रिपशन को तोड़ना पड़ेगा और यूज़र का डेटा सेव करना पड़ेगा जो उनकी निजता का हनन होगा। एंड टू एंड एन्क्रिपशन का मतलब है कि दो लोगों के बीच हो रही बातचीत को कोई तीसरा (कंपनी भी) सुन या पढ़ नहीं सकता।

ये जानकारियां कंपनी कैसे मुहैय्या करा सकती है, इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''हम एन्क्रिपशन तोड़ने के लिए नहीं कह रहे, हम बस ये पूछ रहे हैं कि इसे शुरू किसने किया।''

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कुछ गाइडलाइंस का हवाला देते हुए कहा कि अश्लील सामग्री, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार से जुड़े वीडियो को फैलने से रोकने के लिए ये क़दम बेहद ज़रूरी हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के बाहर से भी सोशल मीडिया पोस्ट्स करने की कई ख़बरें सामने आई हैं।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन सभी नियमों का मकसद लोगों के हाथ में अधिक शक्ति देना है। इस पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, ''अगर कोई सिग्निफिकेंट पोस्ट हटाई जाती है, तो कंपनी को इसकी वजह देनी होगी।''

उन्होंने कहा कि इन सभी चीज़ों को लेकर प्लैटफ़ॉर्म्स से कहेंगे कि एक मैकेनिज़म बनाया जाए।

रविशंकर प्रसाद अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूज़र्स का डेटा भी दिया। उनके मुताबिक़ भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इस्टाग्राम के 21 करोड़, ट्विटर के 1.75 करोड़ यूज़र्स हैं।

ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी नियम

मोदी सरकार ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को रेगुलेट करने के लिए भी कानून लेकर आएगी।

भारत के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ''ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तीन स्तर का तंत्र होगा। OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया को अपने बारे में जानकारी देनी होगी, और उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।''

जावड़ेकर के मुताबिक़ सरकार ने पहले ओटीटी कंपनियों से मुलाकात की थी और एक सेल्फ़ रेगुलेशन बनाने के लिए कहा था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए।

नए नियम के आने पर ओटीटी और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म को अपनी डिटेल बतानी पड़ेंगी जैसे कि वो कहां से काम करते हैं। इसके अलावा शिकायतों के निवारण के लिए एक पोर्टल बनाना होगा।  

जावड़ेकर ने कहा कि टीवी और प्रिंट की तरह डिजिटल के लिए भी एक नियामक संस्था बनाई जाएगी, जिसका अध्यक्ष कोई रिटायर्ट जज या प्रख्यात व्यक्ति हो सकता है।

उन्होंने कहा, ''जैसे ग़लती करने पर टीवी पर माफ़ी मांगी जाती है, वैसा ही डिजीटल के लिए भी करना होगा।''

इसके अलावा कंटेंट पर उम्र के मुताबिक़ क्लासिफ़िकेशन करना होगा और पेरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी।

उन्होंने कहा कि जहां तुरंत एक्शन की ज़रूरत हो, ऐसे मामलों के लिए सरकारी स्तर पर एक निगरानी तंत्र बनाया जाएगा।

भारत में कोरोना वायरस का कहर: कोरोना से हुई कुल मौतों में 70 प्रतिशत पांच राज्यों में

भारत में कोरोना वायरस से हुई कुल मौतों में से 70 प्रतिशत मौतें आंध्र प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हुई हैं।

वहीं, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में कोरोना वायरस के 62 प्रतिशत एक्टिव मामले हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस को लेकर की गई प्रेस कांफ्रेस में इस संबंध में जानकारी दी।

स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने बताया कि राजधानी दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों और मौतों को देखते हुए दिल्ली सरकार से बात की जा रही है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार को कुछ विशेष निर्देश दिए गए हैं। अगर उनका पालन होता है तो मामले नियंत्रण में आ सकते हैं।

भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर उन्होंने कहा, ''रोज़ाना पॉजिटिव मामले बढ़ रहे हैं। इसे पूरी जनसंख्या के संदर्भ में देखना चाहिए। सरकार ने पर्याप्त परीक्षण क्षमता सुनिश्चित करके, क्लीनिकल ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के स्पष्ट दिशानिर्देश देकर और अस्पताल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाते हुए अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए एक श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण अपनाया है।''

उन्होंने कहा कि दूसरे देशों से तुलना करने पर भारत में प्रति मिलियन (जनसंख्या) कोविड के मामले बहुत कम हैं। भारत में प्रति मिलियन मौतें भी बहुत कम हैं। यहां प्रति 10 लाख पर 49 मौतें हुई हैं। वहीं, कोरोना वायरस के प्रति दस लाख जनसंख्या पर 2,792 मामले हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये भी जानकारी दी कि पूरे भारत के 70 जिलों में दूसरा सीरो सर्वे शुरू हो चुका है। इसके नतीज़े अगले दो हफ़्तों में आ जाएंगे।

साथ ही बताया कि पिछले 24 घंटों में कोरोना वायरस के 11 लाख टेस्ट किए जा चुके हैं। पूरे देश में अब तक 4.5 करोड़ से ज़्यादा टेस्ट हो चुके हैं।

कुछ राज्यों में कोरोना के मामले में कमी भी देखने को मिली है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक आंध्र प्रदेश में एक्टिव मामलों में 13.7 प्रतिशत की साप्ताहिक कमी हुई है। इसी तरह कर्नाटक में 16.1 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 6.8 प्रतिशत और तमिलनाडु में 23.9 प्रतिशत और उत्तर प्रेदश में 17.1 प्रतिशत की साप्ताहिक कमी आई है।

महाराष्ट्र में पिछले तीन हफ़्तों में कोरोना वायरस के मामलों में 7 प्रतिशत की कमी देखी गई है।

फेसबुक द्वारा सोशल मीडिया का दुरूपयोग: क्या भारत में संसदीय समिति फेसबुक पर कार्रवाई करेगी?

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक पर बनी 30 सदस्यों वाली संसदीय समिति ने बुधवार को सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर लग रहे आरोपों की सुनवाई की।

इस समिति के समक्ष विभाग से जुड़े अधिकारी मौजूद थे। साथ ही भारत में फेसबुक के प्रबंध निदेशक अजीत मोहन ने भी अपनी बात रखी।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार फेसबुक की तरफ़ से दलील रखी गयी कि उसने हमेशा अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेकर पारदर्शिता रखी है।

फेसबुक का ये भी कहना था कि उसने बिना किसी राजनीतिक दबाव के लोगों को अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने का माध्यम भी दिया है।

ये विवाद तब शुरू हुआ जब एक अमरीकी समाचार पत्र वॉलस्ट्रीट जर्नल ने भारत में फेसबुक के बारे में आरोप लगाए कि वो सत्तारूढ़ दल यानी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में ज़्यादा काम करता है।

समाचार पत्र में ये भी आरोप लगाया गया कि फेसबुक पर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काने वाली पोस्ट पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। ये भी आरोप लगाये गए कि उन कथित भड़काऊ पोस्ट को फेसबुक ने तब हटाया जब अख़बार ने उनके बारे में जानकारी दी।

इन आरोपों पर बीबीसी को फेसबुक ने ईमेल के ज़रिये अपना जवाब दिया, ''किसी भी तरह की हिंसा या नफ़रत फैलाने वाली सामग्री फेसबुक पर प्रतिबंधित है। ये मायने नहीं रखता कि पोस्ट लिखने वाले का राजनीतिक रुझान किस तरफ़ है।''

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता और सोशल मीडिया पर नज़र रखने वाले एक समूह के प्रतिनिधि को भी अपनी मदद के लिए कार्यवाही में शामिल किया।

संसद के सूत्रों का कहना है कि संसदीय समिति की बैठक बंद कमरे में ज़रूर हुई मगर पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की गयी है।

समिति की सुनवाई काफ़ी लंबी चली। इस दौरान बंद कमरे में क्या कुछ हुआ इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने फ़िलहाल चुप्पी साध रखी है।

समिति में संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं जिसमें ज़्यादा संख्या सत्ता पक्ष के सदस्यों की है।

लेकिन समिति की बैठक से पहले ही कांग्रेस ने फेसबुक के सीईओ मार्क ज़करबर्ग को दो-दो चिठ्ठियां लिखीं जिसमें फेसबुक के लिए भारत में काम करने वाले दो प्रतिनिधियों के आचरण और उनके द्वारा की गई पोस्ट का हवाला दिया गया।

चिठ्ठी के बाद समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने फेसबुक को नोटिस भेजा तो भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने थरूर को समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की।

दुबे का लिखित आरोप है कि शशि थरूर सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म के ज़रिये खुद के और अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

मगर लोकसभा के अध्यक्ष ने चिठ्ठी का कोई जवाब नहीं दिया।

समिति की बैठक से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय विधि एवं न्याय, संचार एंव इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मार्क ज़करबर्ग को चिठ्ठी लिखकर आरोप लगाया कि उनका सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वालों की पोस्ट को सेंसर कर रहा है।

रविशंकर प्रसाद का ये भी आरोप था कि अमरीकी अख़बार में जो लिखा गया है दरअसल वो उल्टी छवि पेश कर रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि 'भारत की राजनीतिक व्यवस्था में अफ़वाहें फैला कर दख़लंदाज़ी करना निंदनीय है'।

भारत में फेसबुक के लगभग 30 करोड़ यूज़र्स हैं और रविशंकर प्रसाद का ये भी आरोप है कि 2019 में हुए आम चुनावों में फेसबुक ने भारतीय जनता पार्टी को लोगों तक ठीक से अपनी बात पहुँचाने नहीं दी।

राजनीतिक दलों के बीच चल रहे इस वाकयुद्ध की वजह से फेसबुक लगातार चर्चा में बना हुआ है लेकिन संसदीय समिति में क्या कुछ हुआ, इसकी किसी को जानकारी नहीं है।

राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कुल मिलाकर 24 संसदीय समितियां हैं जो विभिन्न विभागों या मुद्दों को लेकर बनायी गयी हैं। इनमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद शामिल रहते हैं लेकिन ज़्यादातर समितियों के अध्यक्ष लोकसभा के सदस्य हैं।

संसद किस तरह चलेगी इसके लिए पहले से ही स्पष्ट रूपरेखा निर्धारित है। विधायी कार्यों के नियम भी स्पष्ट हैं जिन पर कोई बहस नहीं की जा सकती है क्योंकि वो पहले से ही निर्धारित संसदीय परंपरा का हिस्सा हैं।

हरिवंश नारायण कहते हैं, ''संसदीय समिति की बैठक पूरी तरह से गोपनीय होती है जिसके बारे में समिति के सदस्यों को बाहर बोलने की अनुमति नहीं है। न सिर्फ़ सदस्य बल्कि जिनको समिति नोटिस भेजकर बुलाती है वो भी बाहर कुछ नहीं कह सकते। अगर वो ऐसा करते हैं तो ये विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है।''

सांसद मनोज कुमार झा कहते हैं कि जब तक समिति की रिपोर्ट को संसद के पटल पर नहीं रखा जाता, तब तक उसे सार्वजनिक भी नहीं किया जा सकता है। वो कहते हैं कि संसदीय समिति के सदस्यों और उनके सामने पेश होने वाले लोग शपथ से भी बंधे हुए हैं।

इसलिए लगभग तीन घंटों तक चली इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक की संसदीय समिति की बैठक की कार्यवाही का लेखा-जोखा आम लोगों की जानकारी के लिए तब तक उपलब्ध नहीं है जब तक कि संसद इसका अनुमोदन नहीं कर देती। यही विधायी कार्यप्रणाली है।

भारत-चीन तनाव: चीन में बने पबजी समेत 118 और मोबाइल ऐप्स को भारत ने बैन किया

भारत सरकार ने चीन में विकसित 118 मोबाइल ऐप्स को बैन कर दिया है जिनमें गेमिंग ऐप पबजी भी शामिल है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इन ऐप्स को इसलिए बैन किया गया है, क्योंकि वे भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश की रक्षा और लोक व्यवस्था के विरूद्ध गतिविधियों में लिप्त थे।

मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, ''इस क़दम से भारत के करोड़ों मोबाइल और इंटरनेट यूज़र्स के हितों की रक्षा होगी। ये फ़ैसला भारत के साइबर स्पेस की सुरक्षा और संप्रभुता को सुनिश्चित करने के इरादे से लिया गया है।''

बयान के अनुसार भारत सरकार को इन ऐप्स के बारे में विभिन्न स्रोतों से शिकायतें मिल रही थीं, जिनमें ऐसी रिपोर्टें भी थीं कि एंड्रॉयड और आइओएस पर उपलब्ध कुछ मोबाइल ऐप्स से यूज़र्स के डेटा अनाधिकृत तौर पर चोरी कर भारत से बाहर स्थित सर्वर में भेजे जा रहे थे।

चीन के 118 ऐप्स को बैन करने का फ़ैसला ऐसे समय लिया गया है जब भारत और चीन के बीच एक बार फिर से लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी पर दोनों देशों के बीच तनाव की ख़बरें आ रही हैं।

भारत सरकार ने इससे पहले जून में भी चीन से जुड़े 59 ऐप्स को बैन किया था। इनमें टिकटॉक भी शामिल था।

पिछली बार 59 चीनी ऐप्स को बैन करने का फ़ैसला गलवान घाटी में 15 जुलाई को भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के कुछ दिनों बाद लिया गया था।

दिल्ली सांप्रदायिक दंगा: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए

मानवाधिकारों पर काम करने वाला अंतरराष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में इस साल फ़रवरी में हुए दंगों पर अपनी स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस पर दंगे ना रोकने, उनमें शामिल होने, फ़ोन पर मदद मांगने पर मना करने, पीड़ित लोगों को अस्पताल तक पहुंचने से रोकने, ख़ास तौर पर मुसलमान समुदाय के साथ मारपीट करने जैसे संगीन आरोप लगाए गए हैं।

दंगों के बाद के छह महीनों में दंगा पीड़ितों और शांतिप्रिय आंदोलनकारियों को डराने-धमकाने, जेल में मारपीट और उन्हीं के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए जाने का हवाला देते हुए रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि दिल्ली पुलिस पर मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप के एक भी मामले में अब तक एफ़आईआर दर्ज नहीं हुई है। दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के तहत काम करती है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार के मुताबिक, ''सत्ता की तरफ़ से मिल रहे इस संरक्षण से तो यही संदेश जाता है कि क़ानून लागू करने वाले अधिकारी बिना जवाबदेही के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं। यानी वो ख़ुद ही अपना क़ानून चला सकते हैं।''

रिपोर्ट जारी करने से पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली पुलिस का पक्ष जानने के लिए उनसे संपर्क किया पर एक सप्ताह तक कोई जवाब नहीं मिला।  

मार्च में दिल्ली पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार ने बीबीसी हिंदी संवाददाता सलमान रावी से एक साक्षात्कार में दंगों के दौरान पुलिस के मूक दर्शक बने रहने के आरोप से इनकार किया था और कहा था कि, ''पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ अगर कोई आरोप सामने आए तो उनकी जांच की जाएगी''।

इससे पहले दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने भी दिल्ली दंगों पर एक फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट जुलाई में जारी की थी।

इसमें भी कई पीड़ितों ने पुलिस के एफ़आईआर दर्ज ना करने, समझौता करने के लिए धमकाने और उन्हीं पर हिंसा का आरोप लगाकर दूसरे मामलों में अभियुक्त बनाने की शिकायत की थी।

साथ ही दिल्ली पुलिस पर दंगे को मुसलमान समुदाय को निशाना बनाने की साज़िश की जगह ग़लत तरीक़े से दो समुदाय के बीच का झगड़ा बनाकर पेश करने का आरोप लगाया गया था। दिल्ली पुलिस ने आयोग के किसी सवाल का भी जवाब नहीं दिया था।

दंगों से पहले दिल्ली पुलिस की भूमिका

एमनेस्टी इंटरनेशनल की यह रिपोर्ट 50 दंगा पीड़ित, चश्मदीद, वकील, डॉक्टर, मानवाधिकार आंदोलनकारी, रिटायर हो चुके पुलिस अफ़सर से बातचीत और लोगों के बनाए गए वीडियो के अध्ययन पर आधारित है।

इसमें सबसे पहले 15 दिसंबर 2019 के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में दिल्ली पुलिस के नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों से मारपीट और यौन उत्पीड़न के आरोपों का ज़िक्र है।

इस वारदात की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाए जाने की जनहित याचिकाओं का दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने विरोध किया है।

इसके बाद पाँच जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रॉड्स के साथ तोड़फोड़ और क़रीब दो दर्जन छात्रों और अध्यापकों के साथ मारपीट का ब्यौरा है।

इस मामले में जेएनयू के छात्रों और अध्यापकों की तरफ़ से 40 से ज़्यादा शिकायतें दर्ज किए जाने के बाद भी दिल्ली पुलिस ने एक भी एफ़आईआर दर्ज नहीं की है।

हालांकि जेएनयू छात्र संघ की आइशी घोष समेत मारपीट में चोटिल हुए कुछ सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर तभी दर्ज कर ली गई थी। रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले जनवरी के महीने में हुई कई चुनावी रैलियों में बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषणों की जानकारी भी देती है।

26 फ़रवरी 2020 को दिल्ली हाई कोर्ट दिल्ली पुलिस को एक 'कॉन्शियस डिसिज़न' (सोचा समझा फ़ैसला) के तहत बीजेपी सांसदों और नेताओं, कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश देती है। इनमें से एक के भी ख़िलाफ़ अब तक कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई है।

जुलाई में बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य को दिए एक साक्षात्कार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने माना था कि भड़काऊ भाषण ग़लत थे, हम उन सभी तरह के बयानों के ख़िलाफ़ हैं जो उकसाने वाले हैं, देश को बदनाम करने वाले हैं और सेक्युलर कैरेक्टर को डैमेज करने वाले हैं। हम इन सबके ख़िलाफ़ हैं। जो किया, ग़लत किया। मैं उसकी मुख़ालफ़त कर रहा हूँ। इस तरह के ज़हरीले बयानों को हमने किसी तरह जस्टीफ़ाई नहीं किया है और न करना चाहिए।

दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की भूमिका

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में कई दंगा पीड़ितों ने अपने बयानों में ये दावा किया है कि जब उन्होंने दिल्ली पुलिस के आपात 100 नंबर पर फ़ोन किया तो या तो किसी ने उठाया नहीं या फिर पलटकर कहा, ''आज़ादी चाहिए थी ना, अब ले लो आज़ादी।''

'हम क्या चाहते? आज़ादी' का नारा सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में इस्तेमाल हुआ था और आंदोलनकारियों के मुताबिक़ यहां भेदभाव और अत्याचार से आज़ादी की बात की जा रही थी।

रिपोर्ट में पुलिस के पाँच नौजवानों को जूतों से मारने के वीडियो और उनमें से एक की मां से बातचीत शामिल है जो दावा करती हैं कि उनके बेटे को 36 घंटे जेल में रखा गया, जहां से छुड़ाए जाने के बाद उसकी मौत हो गई।

मां के मुताबिक़ उन्हें बेटे की हिरासत का कोई दस्तावेज़ नहीं दिया गया और ना ही क़ानून के मुताबिक़ बेटे को हिरासत में लिए जाने के 24 घंटों के अंदर मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।

रिपोर्ट में दंगों के दौरान पुलिस के मूकदर्शक बने रहने और कुछ मामलों में पत्थरबाज़ी में शामिल होने और पीड़ितों को अस्पतालों तक पहुंचने से रोकने के मामलों का भी ब्यौरा है।

दंगों में मारे जाने वाले 53 लोगों में से ज़्यादातर मुसलमान हैं और हिंदू समुदाय के मुक़ाबले उनके घर-दुकानों और सामान को ज़्यादा नुक़सान हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ जब उन्होंने एक स्कूल के हिंदू केयरटेकर से बात की तो उन्होंने पुलिस को बार-बार फ़ोन करने पर भी मदद ना मिलने की बात तो की पर साथ ही पुलिस के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाते हुए कहा कि उनके मदद के लिए ना आ पाने की वजह रास्ता रोक खड़े दंगाई थे।

दंगों को हिंदू-विरोधी बताने वाली, गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी गई, 'सेंटर फॉर जस्टिस' (सीएफ़जे) नाम के एक ट्रस्ट की रिपोर्ट 'डेली रायट्स: कॉन्सपिरेसी अनरैवल्ड' में भी दिल्ली पुलिस को लेकर यही उदारवादी रवैया दिखाई देता है।

दंगों के बाद पुलिस की भूमिका

दंगों पर पहले आईं रिपोर्ट्‌स से अलग, एमनेस्टी इंटरनेशनल की तहक़ीक़ात दंगों के बाद हुई पुलिस की जांच पर भी नज़र डालती है और उस पर दंगों के बाद मुसलमानों को ज़्यादा तादाद में गिरफ़्तार करने और उन पर कार्रवाई करने का आरोप लगाती है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ालिद सैफ़ी की फ़रवरी में प्रदर्शन के लिए हुई गिरफ़्तारी का उल्लेख देकर ये दावा किया गया है कि पुलिस हिरासत में उनके साथ जो सलूक हुआ उस वजह से वो मार्च में अपनी पेशी के लिए व्हीलचेयर पर आए।

सैफ़ी छह महीने से जेल में हैं। उन्हें यूएपीए क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया है।

रिपोर्ट में कई दंगा-पीड़ितों के बयान हैं जिनमें वो पुलिस के हाथों प्रताड़ना और जबरन झूठे बयान दिलवाने, दबाव बनाने, कोरे कागज़ पर हस्ताक्षर करवाने के आरोप हैं।

एक ग़ैर-सरकारी संगठन, 'ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क' के व़कील का बयान भी है जो अपने क्लाइंट से बातचीत करने से रोके जाने, पुलिस के बुरे बर्ताव और लाठीचार्ज का आरोप लगाता है।

आठ जुलाई के दिल्ली पुलिस के एक ऑर्डर, जिसमें लिखा था कि दिल्ली दंगों से जुड़ी गिरफ़्तारियों में ''ख़ास ख़याल रखने की ज़रूरत है'' कि इससे ''हिंदू भावनाएं आहत'' ना हों, पर दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस को लताड़ा था।

कोर्ट ने ऑर्डर तो रद्द नहीं किया था पर ताक़ीद की थी कि, ''जांच एजंसियों को ये ध्यान रखना होगा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दी गई हिदायतों से ऐसा कोई भेदभाव ना हो जो क़ानून के तहत ग़लत है''।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पिछले छह महीने के इस ब्यौरे के साथ ये मांग की है कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई की जांच और जवाबदेही तय हो और पुलिस विभाग को सांप्रदायिक तनाव और हिंसा के व़क्त काम करने के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए।

इस रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों पर दिल्ली पुलिस की प्रतिक्रिया का इंतज़ार है। पुलिस की ओर से बयान मिलने पर रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी।

ट्रंप सरकार के फ़ैसले को हार्वर्ड और एमआईटी ने दी कोर्ट में चुनौती

अमरीका की शीर्ष दो यूनिवर्सिटीज ने अमरीकी सरकार के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई का रास्ता चुना है। सरकार ने इमिग्रेशन संबंधी नया नियम बनाया है जिसके तहत दूसरे देशों के छात्रों के सामने देश छोड़ने की नौबत आ गई है।

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक नया नियम लागू किया है जिसके तहत उन छात्रों को देश में रहने की अनुमति नहीं होगी जिनके शैक्षणिक संस्थानों में क्लास रूम क्लासेज नहीं होगी। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के चलते अधिकांश यूनिवर्सिटी ऑनलाइन टीचिंग करा रहे हैं।

दुनिया के दो टॉप इंस्टीट्यूट हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और मैसाच्यूटएस इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी ने नए इमिग्रेशन क़ानून पर रोक लगाने के लिए फ़ेडरल कोर्ट से अपील की है।

हार्वर्ड के प्रेसीडेंट लॉरेंस बाकाउ ने हार्वर्ड कम्यूनिटी को भेजे ईमेल में कहा है कि हम इस मामले को मज़बूती से लड़ेंगे ताकि हमारे अंतरराष्ट्रीय छात्र और देश के दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय छात्र, देश से निकाले जाने के डर से मुक्त होकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें।

सीबीएसई ने नौवीं से 12वीं कक्षा तक के सिलेबस कम किए

भारत में कोरोना संक्रमण को देखते हुए सीबीएसई ने छात्रों को राहत देते हुए नौवीं से 12वीं कक्षा तक के सिलेबस कम करने का एलान किया है।

सीबीएसई की ओर से जारी प्रेस बयान में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से उपजी स्थितियों को देखते हुए यह फ़ैसला लिया गया है क्योंकि स्कूलों के बंद होने से क्लास रूम क्लासेज नहीं हो पा रही हैं।

इसके चलते बोर्ड ने 2020-21 के सत्र में नौवीं से 12वीं तक के सिलेबस को 30 फीसदी कम करने का फ़ैसला लिया है।

सिलेबस में से जो हिस्से कम किए जाएंगे उनसे इंटर्नल एस्सेमेंट और बोर्ड परीक्षा में सवाल नहीं पूछे जाएंगे।

क्या 'स्टॉप हेट फ़ॉर प्रॉफ़िट' मुहिम फ़ेसबुक को ख़त्म कर देगी?

क्या बहिष्कार फ़ेसबुक को नुक़सान पहुंचा सकता है? इसका जवाब 'हां' है।

18वीं शताब्दी में हुए 'उन्मूलनवादी आंदोलन' (एबोलिशनिस्ट मूवमेंट) ने ब्रिटेन के लोगों को ग़ुलामों की बनाई हुई वस्तुओं को ख़रीदने से रोका।

इस आंदोलन का बड़ा असर हुआ। लगभग तीन लाख लोगों ने चीनी ख़रीदनी बंद कर दी, जिससे ग़ुलामी प्रथा को ख़त्म किए जाने का दबाव बढ़ा।

'स्टॉप हेट फ़ॉर प्रॉफ़िट' वो ताज़ा अभियान है जिसमें 'बहिष्कार' को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस मुहिम का दावा है कि फ़ेसबुक अपने प्लेटफ़ॉर्म पर नफ़रत से भरी और नस्लवादी सामग्री (कॉन्टेंट) हटाने की पर्याप्त कोशिश नहीं करता।

'स्टॉप हेट फ़ॉर प्रॉफ़िट' मुहिम ने कई बड़ी कंपनियों को फ़ेसबुक और कुछ अन्य सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स से अपने विज्ञापन हटाने के लिए राज़ी कर लिया है।

फ़ेसबुक से अपने विज्ञापन हटाने वालों में कोका-कोला, यूनीलीवर और स्टारबक्स के बाद अब फ़ोर्ड, एडिडास और एचपी जैसी नामी कंपनियां भी शामिल हो गई हैं।

समाचार वेबसाइट 'एक्सियस' के अनुसार माइक्रोसॉफ़्ट ने भी फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर मई में ही विज्ञापन देना बंद कर दिया था। माइक्रोसॉफ़्ट ने अज्ञात 'अनुचित सामग्री' की वजह से फ़ेसबुक पर विज्ञापन देने बंद किए हैं।

इस बीच रेडिट और ट्विच जैसे अन्य ऑनलाइन प्लंटफ़ॉर्म्स ने भी अपने-अपने स्तर पर नफ़रत-विरोधी क़दम उठाए हैं और फ़ेसबुक पर दबाव बढ़ा दिया है।

तो क्या इस तरह के बहिष्कार से फ़ेसबुक को भारी नुक़सान हो सकता है?

इस सवाल का छोटा सा जवाब है - हां। क्योंकि फ़ेसबुक के रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से ही आता है।

अवीवा इन्वेस्टर्स के डेविड कमिंग ने बीबीसी से कहा कि फ़ेसबुक से लोगों का भरोसा उठ गया है और यूज़र्स को फ़ेसबुक के रवैये में नैतिक मूल्यों की कमी नज़र आई है। डेविम कमिंग का मानना है कि ये धारणाएं फ़ेसबुक के कारोबार को बुरी तरह नुक़सान पहुंचा सकती हैं।

शुक्रवार को फ़ेसबुक के शेयर की कीमतों में आठ फ़ीसदी गिरावट दर्ज की गई थी। नतीजन, कंपनी के सीईओ मार्क ज़करबर्ग को कम से कम साढ़े पांच खरब रुपयों का नुक़सान हुआ।

लेकिन क्या ये नुक़सान और बड़ा हो सकता है? क्या इससे आने वाले दिनों में फ़ेसबुक के अस्तित्व को ख़तरा पैदा हो सकता है? इन सवालों के स्पष्ट जवाब मिलने अभी बाकी हैं।

पहली बात तो ये है कि फ़ेसबुक बहिष्कार का सामना करने वाली पहली सोशल मीडिया कंपनी नहीं है।

साल 2017 में कई बड़े ब्रैंड्स ने ऐलान किया कि वो यूट्यूब पर विज्ञापन नहीं देंगे। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि एक ख़ास ब्रैंड का विज्ञापन किसी नस्लभेदी और होमोफ़ोबिक (समलैंगिकता के प्रति नफ़रत भरा) वीडियो के बाद दिखाया गया था।

इस ब्रैंड के बहिष्कार को अब लगभग पूरी तरह भुला दिया गया है। यूट्यूब ने अपनी विज्ञापन नीतियों में बदलाव किया और अब यूट्यूब की पेरेंट कंपनी गूगल भी इस सम्बन्ध में ठीक काम कर रही है।

हो सकता है कि इस बहिष्कार का फ़ेसबुक को बहुत ज़्यादा नुक़सान न हो। इसके कुछ और कारण भी हैं।

पहली बात तो ये कि कई कंपनियों ने सिर्फ़ जुलाई महीने के लिए फ़ेसबुक का बहिष्कार करने की बात कही है। दूसरी बात ये कि फ़ेसबुक के रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा छोटे और मध्यम कंपनियों के विज्ञापन से भी आता है।

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले 100 ब्रैंड्स से फ़ेसबुक को तकरीबन तीन खरब रुपये की कमाई हुई थी और यह विज्ञापन से होने वाली कुल कमाई का महज़ छह फ़ीसदी था।

एडवर्टाइज़िंग एजेंसी डिजिटल ह्विस्की के प्रमुख मैट मॉरिसन ने बीबीसी को बताया कि बहुत-सी छोटी कंपनियों के लिए 'विज्ञापन न देना संभव नहीं है।'

मॉरिसन कहते हैं, "जो कंपनियां टीवी पर विज्ञापन के लिए भारी-भरकम राशि नहीं चुका सकतीं, उनके लिए फ़ेसबुक एक ज़रूरी माध्यम है। कारोबार तभी सफल हो सकता है जब कंपनियां अपने संभावित ग्राहकों तक पहुंच पाएं। इसलिए वो विज्ञापन देना जारी रखेंगी।''

इसके अलावा, फ़ेसबुक का ढांचा ऐसा है कि ये मार्क ज़करबर्ग को किसी भी तरह के बदलाव करने की ताक़त देता है। अगर वो कोई नीति बदलना चाहते हैं तो बदल सकते हैं। इसके लिए सिर्फ़ उनके विचारों को बदला जाना ज़रूरी है। अगर ज़करबर्ग कार्रवाई न करना चाहें तो नहीं करेंगे।

हालांकि पिछले कुछ दिनों में मार्क ज़करबर्ग ने बदलाव के संकेत दिए हैं। फ़ेसबुक ने शुक्रवार को ऐलान किया कि वो नफ़रत भरे कमेंट्स को टैग करना शुरू करेगा।

दूसरी तरफ़, बाकी कंपनियां ख़ुद से अपने स्तर पर कार्रवाई कर रही हैं।

सोमवार को सोशल न्यूज़ वेबसाइट रेडिट ने ऐलान किया कि वो 'द डोनाल्ड ट्रंप फ़ोरम' नाम के एक समूह पर प्रतिबंध लगा रहा है। इस समूह के सदस्यों पर नफ़रत और धमकी भरे कमेंट करने का आरोप है। ये समूह सीधे तौर पर राष्ट्रपति ट्रंप से नहीं जुड़ा था लेकिन इसके सदस्य उनके समर्थन वाले मीम्स शेयर करते थे।

इसके अलावा ऐमेज़न के स्वामित्व वाले वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म ट्विच ने भी 'ट्रंप कैंपेन' द्वारा चलाए जाने वाले एक अकाउंट पर अस्थायी रूप से पाबंदी लगा दी है। ट्विच ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप की रैलियों के दो वीडियो में कही गई बातें नफ़रत को बढ़ावा देने वाली थीं।

इसमें से एक वीडियो साल 2015 (ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने से पहले) का था। इस वीडियो में ट्रंप ने कहा था कि मेक्सिको बलात्कारियों को अमरीका में भेज रहा है।

ट्विच ने अपने बयान में कहा, "अगर किसी राजनीतिक टिप्पणी या ख़बर में भी नफ़रत भरी भावना है तो हम उसे अपवाद नहीं मानते। हम उसे रोकते हैं।''

ये साल सभी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए चुनौती भरा होने वाला है और फ़ेसबुक भी इन चुनौतियों के दायरे से बाहर नहीं है। हालांकि कंपनियां हमेशा अपनी बैलेंस शीट को ध्यान में रखकर फ़ैसले लेती हैं। इसलिए अगर ये बहिष्कार लंबा खिंचता है और ज़्यादा कंपनियां इसमें शामिल हो जाती हैं तो ये साल फ़ेसबुक के लिए काफ़ी कुछ बदल देगा।

व्हाट्सऐप पर 'बार-बार' फॉर्वर्ड करना होगा मुश्किल

कोरोना वायरस से जुड़ी अफ़वाहों को रोकने के लिए मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप ने 'बार-बार' संदेश फॉर्वर्ड करने को लेकर पाबंदियां लगा दी हैं।

व्हाट्सऐप के अनुसार जो मैसेज 'बार-बार फॉर्वर्ड' किए जा रहे हैं उन्हें अब यूज़र एक बार में एक ही चैट को फ़ॉर्वर्ड कर सकेंगे।

ये बदलाव आज से लागू हो गए हैं।

जिन मैसेज को पहले पांच बार फॉर्वर्ड किया जा चुका है उन मैसेज को व्हाट्सऐप 'फ्रीक्वेंट फॉर्वर्ड' यानी 'बार-बार फॉर्वर्ड' किए जा रहे मैसेज की सूची में रखेगा।

इस तरह के मैसेज को व्हाट्सऐप पर दो एरो के साथ दिखाया जाएगा जिसका मतलब होगा कि ये मूल मैसेज नहीं हैं।

इन मैसेज को व्हाट्सऐप निजी मैसेज नहीं मानेगा। ये पहली बार नहीं है जब व्हाट्सऐप ने फॉर्वड किए जाने वाले मैसेज पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए हैं।

साल 2018 में व्हाट्सऐप ने फॉर्वर्ड मैसेज पर सीमित रोक लगाते हुए ये सुविधा एक साथ केवल पांच लोगों के मैसेज भेज सकने तक सीमित कर दिया था।

उस वक्त भारत में व्हाट्सऐप पर कई तरह की ग़लत जानकारियां साझा की जा रही थीं और इन्हीं को आधार मान कई जगहों पर लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी।

छह महीने बाद जनवरी 2019 में ये सीमित रोक दुनिया भर में लागू कर दी गई थी।

इसरो का चंद्रयान-2 से संपर्क टूटा

47 दिनों की यात्रा के बाद चंद्रयान-2 का चन्द्रमा की सतह से महज दो किलोमीटर दूर इसरो से संपर्क टूट गया।

चन्द्रयान-2 का लैंडर विक्रम आख़िरी दो किलोमीटर में ख़ामोश हो गया।  इसी लैंडर के ज़रिए चन्द्रयान-2 को चन्द्रमा की सतह तक पहुंचना था।

इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा कि शुरुआत में सब कुछ सामान्य था लेकिन चन्द्रमा की सतह से आख़िरी के 2.1 किलोमीटर पहले संपर्क टूट गया।

इसरो प्रमुख ने कहा कि इससे जुड़े डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है।  अब तक अमरीका, रूस और चीन ही चन्द्रमा पर अपने अंतरिक्षयान की सॉफ़्ट लैन्डिंग करवा पाए हैं और भारत ये उपलब्धि हासिल करने से दो क़दम पीछे रह गया।  

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए शुक्रवार की रात बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्र में थे।

संपर्क टूटने के बाद मोदी ने वैज्ञानिकों ढाढस बंधवाया और कहा कि किसी भी बड़े मिशन में उतार-चढ़ाव लगा रहता है। इससे पहले सिवन ने कहा था कि आख़िर के 15 मिनट सबसे अहम हैं और इस 15 मिनट में संपर्क टूटा।

भारत में इसकी सफलता को लेकर काफ़ी उत्साह का माहौल था और लोगों की नज़रें देर रात भी इसरो के मिशन पर थी।

जब इसरो से संपर्क टूटने की बात सामने आई तो लोगों को निराशा हुई लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों का सबने हौसला बढ़ाया। दूसरी तरफ़ पड़ोसी देश पाकिस्तान से इस पर तंज और व्यंग्य भरी प्रतिक्रिया आई।

पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीक मंत्री फ़वाद हुसैन चौधरी ने चंद्रयान-2 से संपर्क टूटने पर पीएम मोदी की प्रतिक्रिया के वीडियो को रीट्वीट करते कहा, ''मोदी जी सैटेलाइट कम्युनिकेशन पर भाषण दे रहे हैं। दरअसल, ये नेता नहीं बल्कि एक अंतरिक्षयात्री हैं। लोकसभा को मोदी से एक ग़रीब मुल्क के 900 करोड़ रुपए बर्बाद करने के लिए सवाल पूछने चाहिए।''

अपने दूसरे ट्वीट में फ़वाद चौधरी ने लिखा है, ''मैं हैरान हूं कि भारतीय ट्रोल्स मुझे गालियां दे रहे हैं, मानो उनके मून मिशन को मैंने नाकाम किया हो। भाई हमने कहा था कि 900 करोड़ लगाओ इन नालायक़ों पर? अब सब्र करो और सोने की कोशिश करो।

पाकिस्तान के एक ट्विटर यज़र ने लिखा कि आपने पीएम मोदी को कंट्रोल रूम से जाते हुए देखा? इस पर फ़वाद चौधरी ने लिखा, ''उफ़ मैं अहम पल को नहीं देख सका।''  

अभय कश्यप नाम के एक भारतीय ने फ़वाद चौधरी से नाराज़गी जताई तो इस पर उन्होंने प्रतिक्रिया में कहा, ''सो जा भाई, मून के बदले मुंबई में उतर गया खिलौना। जो काम आता नहीं पंगा नहीं लेते ना।

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ़ ग़फ़ूर ने ट्वीट कर कहा है, ''बहुत बढ़िया इसरो। किसकी ग़लती है? पहला- बेगुनाह कश्मीरियों जिन्हें क़ैद कर रखा गया है? दूसरा- मुस्लिम और अल्पसंख्यक की? तीसरा- भारत के भीतर हिन्दुत्व विरोधी आवाज़? चौथा- आईएसआई? आपको हिन्दुत्व कहीं नहीं ले जाएगा।''

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर भारत के इस मिशन का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। कई लोग तो इसे विंग कमांडर अभिनंदन से जोड़ रहे हैं।