अर्थव्यवस्था

डच पैरेंट कंपनी ने 'रूस का गूगल' कहे जाने वाले यांडेक्स की रूसी इकाई को बेचा

डच पैरेंट कंपनी ने 'रूस का गूगल' कहे जाने वाले यांडेक्स की रूसी इकाई को बेचा

मंगलवार, 6 फरवरी 2024

'रूस का गूगल' कहे जाने वाले यांडेक्स के मालिक ने कहा है कि कंपनी ने अपना रूस का ऑपरेशन बेच दिया है।

यांडेक्स की डच पैरेंट कंपनी ने कहा है कि उसने रूस के ऑपरेशन को 475 अरब रूबल में बेच दिया है। ये कीमत यांडेक्स की मार्केट कीमत से काफ़ी कम है।

इस बिक्री के साथ ही ये तय हो चुका है कि यांडेक्स के रूस के बिजनेस का मालिकाना हक अब पूरी तरह रूस के ही साथ होगा।

इस कंपनी पर आरोप थे कि इसने यूक्रेन में युद्ध की जानकारी रूस के आम लोगों से छुपायी।

रूस ने इस नए सौदे का स्वागत किया है। कंपनी ने कहा है कि यह "डील 18 महीने से अधिक की योजना और बातचीत की व्यापक अवधि के बाद हुई है।''

सूचना नीति पर रूसी संसद की समिति के उप प्रमुख एंटोन गोरेल्किन ने कहा, "यह वही है जो हम कुछ साल पहले हासिल करना चाहते थे जब यांडेक्स पर पश्चिमी आईटी कंपनियों के कब्ज़े का खतरा था।''

"यांडेक्स कंपनी से कहीं ज़्यादा है, ये रूस के समाज के लिए एक संपत्ति की तरह है।''

माना जाता है कि 5.2 अरब डॉलर का सौदा यांडेक्स की मार्केट कीमत से काफी कम है। एक अनुमान के अनुसार 2021 में इसकी कीमत 30 अरब डॉलर थी।

भारतीय अर्थव्यवस्था साल 2024 में 6.2 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ सकती है: संयुक्त राष्ट्र

भारतीय अर्थव्यवस्था साल 2024 में 6.2 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ सकती है: संयुक्त राष्ट्र

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि साल 2024 में भारत की अर्थव्यवस्था में 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।

मजबूत घरेलू मांग के साथ मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर, दोनों में अच्छी बढ़त की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था में रफ़्तार देखने को मिलेगी।

संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट, 2024 में कहा गया है कि भारत में 2024 के दौरान अर्थव्यवस्था 6.2 फीसदी की दर से बढ़ सकती है, जो 2023 के अनुमान 6.3 फीसदी से कम है।

हालांकि साल 2024 की ग्रोथ को मजबूत घरेलू मांग के साथ मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के अच्छे प्रदर्शन से सहारा मिलेगा। यूएन ने साल 2025 में भारत की जीडीपो ग्रोथ 6.6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने यूएन रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कई समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं से ज्यादा तेज गति से बढ़ेगी। पिछले कुछ सालों के दौरान इसका अच्छा प्रदर्शन बरकरार है।

भारत की जीडीपी ग्रोथ पिछले कई साल से छह फीसदी से ऊपर रही है और उम्मीद है कि 2024 और 2025 में ये रफ़्तार बनी रहेगी।

सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में हुआ समझौता ने विकासशील देशों की चिंता बढ़ाई

साल 2023 में दुबई में जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर आयोजित हुए सीओपी28 में दुनिया के 198 देश एक ऐसे ऐतिहासिक समझौते पर पहुंच गए हैं, जिसके तहत ईंधन के लिए कोयले, तेल और गैस के इस्तेमाल को धीरे-धीरे ख़त्म किया जाएगा।

लेकिन कुछ विकासशील देश इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस समझौते की बारीक़ शर्तें कमज़ोर हैं और इस समझौते को लागू करने के लिए करना क्या है? ये भी स्पष्ट नहीं है।

साल 2023 में दुबई में जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर आयोजित हुए सीओपी28 का एक ही प्रमुख मक़सद था कि दुनिया को उसी रास्ते पर वापस लाया जाए जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सके।

लेकिन, जब परिचर्चाएं ख़त्म हुईं और लोगों का ग़ुस्सा बढ़ने लगा, तो ऐसा लगा कि ये योजना खटाई में पड़ गई है। आख़िरी मौक़े तक सीओपी28 शिखर सम्मेलन बहुत हद तक इस सवाल तक सिमट कर रह गया था कि अंत में समझौता होगा या नहीं। सीओपी28 सम्मेलन के दौरान कोई समझौता होने के लिए ये बेहद ज़रूरी था कि इसमें शामिल सभी 198 देश या तो किसी बयान पर सहमत हों या फिर ख़ाली हाथ लौट जाएं।

सीओपी28 सम्मेलन में समझौते का जो शुरुआती प्रस्ताव तैयार हुआ उससे बहुत से देशों को सदमा लगा तो कई देशों का ग़ुस्सा भड़क उठा क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि समझौते में जीवाश्म ईंधन जलाने को ‘धीरे धीरे ख़त्म किए जाने’ की बात शामिल की जाएगी।

इसके बजाय सीओपी28 सम्मेलन के आख़िरी मौक़े तक जो बातचीत चलती रही, उसका नतीजा इस मुद्दे पर एक खोखले बयान के तौर पर सामने आया। इसमें कहा गया कि ‘जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में बदलाव की दिशा में आगे बढ़ना’ है।

ख़बरों के मुताबिक़ तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) में शामिल सदस्य उन देशों की टोली में शामिल थे, जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल पूरी तरह ख़त्म करने को लेकर वैश्विक समझौते का सबसे ज़्यादा विरोध कर रही थी।

इसके बजाय, संयुक्त अरब अमीरात जैसे तेल उत्पादक देश, सीओपी28 सम्मेलन के दौरान कार्बन जमा करने की तकनीकों पर अधिक ज़ोर देने की वकालत कर रहे थे।

आख़िरी लम्हों में हुए समझौते के बावजूद, बोलीविया और समोआ जैसे देशों ने चिंता जताई है कि इस समझौते में विकसित देशों के ऊपर ये ज़िम्मेदारी नहीं डाली गई है कि वो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल ख़त्म करने के मामले में दुनिया की अगुवाई करें।

इन विकासशील देशों का कहना है कि सारे देशों पर एक साथ ये क़दम उठाने का बोझ डालना नाइंसाफ़ी है क्योंकि, विकसित देश तो पहले ही तेल, गैस और कोयले के इस्तेमाल से आर्थिक तौर पर बहुत फ़ायदा उठा चुके हैं।

और, सबसे अहम बात तो ये है कि ये बदलाव लाने के लिए जो रक़म दी जानी है, उसे भी बहुत घटा दिया गया है।

समझौते में बस यही उल्लेख किया गया है कि, जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारी करने के लिए ग़रीब देशों को अधिक पूंजी की ज़रूरत है।

ऑक्सफैम इंटरनेशनल के जलवायु परिवर्तन नीति की प्रमुख नफ्कोटे डाबी ने कहा कि दुबई सम्मेलन का जो नतीजा निकला है, वो ‘बेहद नाकाफ़ी’ है।

नफ्कोटे डाबी ने कहा, ''जिन ऐतिहासिक और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने का वादा हमसे किया गया था, दुबई का जलवायु सम्मेलन उस मंज़िल तक पहुंचने से बहुत दूर रह गया।''

नफ्कोटे डाबी ने कहा, ''दुबई का जलवायु सम्मेलन दोहरी निराशा वाला रहा, क्योंकि, एक तो इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीनीकरण योग्य ऊर्जा अपनाने के लिए विकासशील देशों को पैसे देने का कोई इंतज़ाम नही किया गया।''

''दूसरे, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को सबसे ज़्यादा झेल रहे लोगों, जैसे कि, उत्तरी पूर्वी अफ्रीका की मदद करने के वादे से अमीर देश एक बार फिर मुकर गए। जबकि हाल के दिनों में इस इलाक़े के लोगों ने भयंकर बाढ़ में अपना सब कुछ गंवा दिया था। उससे पहले वो लगातार पांच साल तक ऐतिहासिक सूखे और भुखमरी के शिकार रहे थे।''

चैथम हाउस में रिसर्च फेलो रूथ टाउनेंड ने कहा कि विकासशील देशों से कहा जा रहा है कि वो ‘विकास के लिए एकदम नए रास्ते पर चलें’, तो ज़ाहिर है कि विकासशील देश ये जानना चाहते थे कि इस नए रास्ते पर चलने के लिए उनके पास पैसे कहां से आएंगे।

लेकिन, इन तमाम आशंकाओं के बावजूद, दुबई का जलवायु सम्मेलन, दुनिया भर के क़रीब एक लाख प्रतिनिधियों, वार्ताकारों, लॉबी करने वालों, शाही परिवारों के सदस्यों और वकीलों को जलवायु के मसलों पर चर्चा करने के लिए एक मंच पर इकट्ठा कर पाने में सफल रहा, ताकि वो भविष्य की योजना तैयार कर सकें और जलवायु परिवर्तन से जुड़े आविष्कारों से मिले सबक़ को सबके सामने पेश कर सकें।

दुबई के सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में हुए वाद-विवाद और परिचर्चाओं से पांच बड़े नतीजे निकले।

मसौदे में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे धीरे ख़त्म करने को लेकर क्या लिखा जाए, इसको लेकर सीओपी28 सम्मेलन में तीखी तकरार हुई।

सौ से ज़्यादा देश 2030 तक दुनिया की नवीनीकरण योग्य ऊर्जा को बढ़ाकर तीन गुना करने पर सहमत हो गए।

प्रेरणा हासिल करने के लिए ये राष्ट्र, उरुग्वे जैसे देश से सीख सकते हैं, जो अपनी ज़रूरत की 98 फ़ीसदी ऊर्जा रिन्यूएबल स्रोतों से बना रहा है।

जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिका और चीन ने नवीनीकरण योग्य ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने और कार्बन कैप्चर की परियोजनाओं में तेज़ी लाने पर मिलकर काम करने के लिए, आपस में एक समझौता किया।

दोनों देश, अपनी अगली राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में सभी ग्रीनहाउस गैसों को शामिल करने जा रहे हैं। ये योजना 2025 में आने की संभावना है।

इस बीच, 50 तेल और गैस कंपनियां मीथेन का उत्सर्जन कम करने और तेल निकालने के दौरान गैस जलाने का काम बंद करने पर राज़ी हो गईं।

मीथेन, सबसे ख़तरनाक ग्रीनहाउस गैसों में से एक है और दुनिया में मानवीय गतिविधियों से धरती का तापमान बढ़ने में उसका एक तिहाई योगदान रहता है।

हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस सम्मेलन में निजी तौर पर शामिल नहीं होने का फ़ैसला किया। लेकिन उनके जलवायु प्रतिनिधि जॉन केरी ने मीथेन गैस का उत्सर्जन कम करने का वादा किया।

साल 2023 में सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में पहली बार स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। दुनिया भर के दानदाताओं ने गर्म देशों में होने वाली उपेक्षित बीमारियों से मुक़ाबला करने के लिए 70 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया।

ये ऐसा प्रस्ताव है जिससे अफ़्रीका के तमाम देशों को फ़ायदा होगा। इस मदद का एक हिस्सा 2030 तक अफ़्रीका में होने वाली उन बीमारियों को जड़ से मिटाने में इस्तेमाल किया जाएगा, जिनकी अब तक अनदेखी होती रही है। जैसे कि लिम्फैटिक फिलारियासिस और ओंकोसरसियासिस, जिसे रिवर ब्लाइंडनेस के नाम से भी जाना जाता है।

रिवर ब्लाइंडनेस, आंखों और त्वचा में होने वाली ऐसी बीमारी है, जो परजीवी कीड़े से होती है, ये कीड़ा संक्रमित मक्खियों के बार-बार काटने से इंसानों तक पहुंच जाता है।

परजीवी - ओंकोसेरसियासिस (जिसे रिवर ब्लाइंडनेस के रूप में भी जाना जाता है) इस बीमारी को रिवर ब्लाइंडनेस कहा जाता है क्योंकि संक्रमण फैलाने वाली काली मक्खी तेजी से बहने वाली धाराओं और नदियों के पास रहती है और प्रजनन करती है। ये काली मक्खी ज्यादातर दूरदराज के ग्रामीण गांवों के पास रहती है। संक्रमण के परिणामस्वरूप दृष्टि हानि और कभी-कभी अंधापन हो सकता है।

गेट्स फाउंडेशन के मुताबिक़ ये बीमारी, सहारा क्षेत्र के देशों में अंधेपन की बीमारी की सबसे बड़ी वजह है। इस बीमारी को आइवरमेक्टिन नाम की दवा से ठीक किया जा सकता है।

साल 2023 में नाइजर अफ्रीका का पहला देश बन गया था, जिसने अपने यहां रिवर ब्लाइंडनेस की बीमारी का पूरी तरह से ख़ात्मा कर डाला है।

सेनेगल ये उपलब्धि हासिल करने वाला दूसरा देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही तंज़ानिया, इस बीमारी को जड़ से मिटा देने वाला तीसरा देश बन जाएगा।

लॉस एंड डैमेज फंड का मक़सद उन देशों को वित्तीय मदद देना है, जो जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों के सबसे ज़्यादा शिकार हो रहे हैं।

शर्म अल-शेख़ में हुए 27वें जलवायु सम्मेलन (COP27) में नेता आख़िरी मौक़े पर इस बात पर सहमत हुए थे कि ख़ास तौर से विकासशील देशों की मदद के लिए नुक़सान और भरपाई के ऐसे फंड का इंतज़ाम किया जाए, जिससे ये देश जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़, जंगल की आग और सूखे जैसी भारी तबाही वाली घटनाओं से निपट सकें।

दुबई के सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के पहले ही दिन नुक़सान और क्षतिपूर्ति के फंड के लिए 70 करोड़ डॉलर का फंड बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई।

मगर, इन वादों के बावजूद विश्लेषकों का कहना है कि विकासशील देशों को जितनी रक़म की ज़रूरत है, उसकी तुलना में ये फंड बेहद कम है।

इस समय पूर्वी अफ्रीका के ऐसे कई देश हैं, जिनको फ़ौरी तौर पर मदद की दरकार है। हाल ही में आई भयंकर और अभूतपूर्व बाढ़ की वजह से इन देशों के बड़े इलाक़े डूब गए थे। सोमालिया का कहना है कि अकेले उसको ही इस दशक में पांच अरब डॉलर की वित्तीय सहायता की ज़रूरत होगी।

दुबई के सीओपी28 सम्मेलन में पहुंचे प्रतिनिधियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वो जलवायु सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल कारोबारी बातचीत के लिए करते हैं।

एक बेहतर ख़बर के तौर पर दुबई के सीओपी28 सम्मेलन में कॉन्गो बेसिन की गहराई से वैज्ञानिक पड़ताल की रिपोर्ट तैयार करने को मंज़ूरी दी गई।  कॉन्गो बेसिन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वर्षा वन कहा जाता है।

इस रिपोर्ट को सीओपी28 शिखर सम्मेलन की वार्ताओं से अलग मंज़ूरी दी गई। ये रिपोर्ट उसी रास्ते को अख़्तियार करके तैयार की जाएगी, जैसा रास्ता 2021 में अमेज़न पर वैज्ञानिक पैनल ने अपनाया था जिसके बाद, वर्षा वनों पर वैज्ञानिक आम सहमति जताने वाली 1300 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई थी।

प्रकृति और कॉन्गो बेसिन की पारिस्थितिकी की गहराई से होने वाली इस पड़ताल में इस बात का भी पता लगाया जाएगा कि इलाक़े की जलवायु को वर्षा वन किस तरह से नियमित करते हैं और इंसानों ने इसके इकोसिस्टम पर किस तरह से असर डाला है।

सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के मेज़बान के तौर पर संयुक्त अरब अमीरात का चुनाव एक विवादित मसला था।

सीओपी28 शिखर सम्मेलन से पहले बीबीसी की एक पड़ताल में पता चला था कि मेज़बान संयुक्त अरब अमीरात ने सीओपी28 सम्मेलन का इस्तेमाल तेल और गैस के सौदे करने की योजना बनाई थी।

लीक हुए दस्तावेज़ों ने दिखाया कि संयुक्त अरब अमीरात ने 15 देशों के साथ जीवाश्म ईंधन के सौदे पर चर्चा की तैयारी कर रखी थी।

इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर, सम्मेलन के लिए ज़िम्मेदार संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने कहा कि वो ये अपेक्षा करते हैं कि सीओपी28 सम्मेलन के मेज़बान बिना किसी पूर्वाग्रह या निजी हित को बढ़ावा दिए बग़ैर ये आयोजन करेंगे।

संयुक्त अरब अमीरात की टीम ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वो सीओपी28 सम्मेलन की बैठकों में कारोबार की बात करेंगे, और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘निजी बैठकें निजी ही होती हैं'।

इन बैठकों में किन मुद्दों पर चर्चा हुई, इसकी जानकारी देने से इनकार करते हुए, संयुक्त अरब अमीरात ने कहा कि उसका ज़ोर ‘जलवायु बचाने के लिए अर्थपूर्ण क़दम उठाने’ पर था।

इसी बीच दुबई सीओपी28 जलवायु सम्मेलन के अध्यक्ष और संयुक्त अरब अमीरात की तेल कंपनी के अधिकारी सुल्तान अल-जबर, जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए नफ़रत का बायस बन गए जब शिखर सम्मेलन के पहले एक कार्यक्रम में उनकी ज़ुबान से ये निकल गया कि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना मुमकिन है।

जो एक देश नुक़सान और क्षतिपूर्ति के फंड से सबसे ज़्यादा लाभ उठाने की उम्मीद लगाए हुए था वो नाइजीरिया था, जिसको इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए 1411 प्रतिनिधियों के बैज दिए गए थे।

इतने ही लोग चीन से भी शामिल हुए। नाइजीरिया के विपक्षी दल ने दावा किया कि उनके देश के समूह में प्रतिनिधियों की ‘पत्नियां, गर्लफ्रेंड और उनके साथ रहने वाले लोग’ भी शामिल थे।

एक विशाल प्रतिनिधिमंडल भेजने के फ़ैसले की योजना को सोशल मीडिया पर ‘करदाताओं के पैसे की बर्बादी’ के तौर पर प्रचारित किया गया.

साल 2023 की बैठक में ब्राज़ील ने एक दोस्त बनाया, तो एक गंवाया भी।  ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनाशियो लुला डा सिल्वा ने एक ज़बरदस्त जज़्बाती तक़रीर की और कहा कि असमानता से निपटे बग़ैर जलवायु के संकट से निपट पाना मुमकिन नहीं है।

हालांकि, इसके साथ ही साथ ब्राज़ील ने ये ऐलान भी किया कि वो दुनिया में तेल उत्पादक देशों के सबसे बड़े संगठन ओपेक में शामिल होगा।

इसकी तुलना में कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो की इस बात के लिए तारीफ़ की गई कि वो जीवाश्म ईंधन को ख़त्म करने का समझौता करने के लिए बने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में शामिल हो रहे हैं।

गुस्तावो पेट्रो ने जब ये कहा कि टिकाऊ विकास के लिए देशों को ऐसे रास्ते पर चलना होगा जिसमें कोयले और गैस पर निर्भरता न हो, तो इस बात के लिए भी उनकी सराहना की गई।

म्यांमार ने अफीम के उत्पादन में अफ़ग़ानिस्तान को पीछे छोड़ पहले स्थान पर पहुंचा

म्यांमार ने अफीम के उत्पादन में अफ़ग़ानिस्तान को पीछे छोड़ पहले स्थान पर पहुंचा

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़, म्यांमार अफ़ीम उत्पादन के मामले में अफ़ग़ानिस्तान को पीछे छोड़कर दुनिया में पहले स्थान पर आ गया है।

साल 2023 में म्यांमार में अफ़ीम उत्पादन 36 फीसद बढ़कर 1080 टन तक बढ़ने की संभावना है। वहीं, अफ़ग़ानिस्तान में 330 टन उत्पादन होने की ख़बरें है।

साल 2022 में तालिबान की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती में 95 फीसद की कमी आई है।

इसी बीच म्यांमार में जारी गृह युद्ध की वजह से अफ़ीम की खेती लाभकारी होने की वजह से तेजी से बढ़ी है।

इस रिपोर्ट के लेखक जेरेमी डगलस ने कहा है, "साल 2021 के फरवरी महीने में हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद से आर्थिक, सुरक्षा और शासन में व्यवधान अभी भी दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों को जीवन यापन करने के लिए अफीम की ओर ले जा रहे हैं।''

दुनिया भर में हेरोइन नामक नशीला पदार्थ बनाने में अफ़ीम का मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

राहुल गांधी ने कहा, वो और उनकी पार्टी अदानी की आलोचना क्यों करती है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार, 8 सितम्बर 2023 को ब्रसेल्स में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वो और उनकी पार्टी अदानी की आलोचना क्यों करती है।

राहुल गांधी ने कहा, "हमें निजी या सरकारी सेक्टर से कोई समस्या नहीं है । हमें इस बात से दिक्कत होती है जब एक-दो लोग पूरे देश को वित्तीय तौर पर नियंत्रित करने लगते हैं।''

इसके साथ ही राहुल गांधी ने भारत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर एमएसएमई सेक्टर को निशाना बनाने का आरोप लगाया है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों यूरोप दौरे पर हैं जिसमें वह नीदरलैंड, बेल्जियम और फ्रांस जैसे कई देश पहुंच रहे हैं।

इसी सिलसिले में राहुल गांधी ने शुक्रवार, 8 सितम्बर 2023 को बेल्जियम  राजधानी ब्रसेल्स में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया।

राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस और वह स्वयं अदानी समूह और उसकी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कथित करीबी रिश्तों की आलोचना करती रही है।

राहुल गांधी ने कहा, "अदानी जी से हमारी दिक्कत ये है कि वह बंदरगाहों, हवाई अड्डों, कृषि, अनाज गोदामों, रियल इस्टेट और सीमेंट बिज़नेस को नियंत्रित करते हैं। यह भारत के लिए ठीक नहीं है।''

राहुल गांधी ने कहा, "सरकारी नीतियों ने एक व्यवस्थित ढंग से हमारे रोजगार तंत्र की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाली एमएसएमई सेक्टर को निशाना बनाया है। अदानी जी से हमारी समस्या ये है कि वह बंदरगाहों, हवाई अड्डों, कृषि, अनाज गोदामों, रियल इस्टेट और सीमेंट बिज़नेस को नियंत्रित करते हैं।''

राहुल गांधी ने कहा, ''यह भारत के लिए फायदेमंद नहीं है। एक तरफ तो बीजेपी एकाधिकारवादी मॉडल को बढ़ावा दे रही है। वहीं, दूसरी तरफ़ नौकरियां पैदा करने वाले एमएसएमई सेक्टर को तबाह कर रही है। इसकी वजह से एक रोज़गार संकट खड़ा हो रहा है।''

कांग्रेस पार्टी पिछले काफ़ी समय से अदानी समूह के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की संसद में जेपीसी बनाकर जांच करने की मांग कर रही है।

हालांकि, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इन आरोपों पर खुलकर बात नहीं की गयी है।

अमित शाह ने केंद्रीय पंजीयक-सहारा रिफंड पोर्टल लॉन्च किया

भारत के केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मंगलवार, 18 जुलाई 2023 को 'केंद्रीय पंजीयक-सहारा रिफंड पोर्टल' लॉन्च किया।

इसका लक्ष्य सहारा ग्रुप की चार कॉपरेटिव सोसाइटीज में जमा करोड़ों लोगों की राशि का रिफंड करना है।

अमित शाह ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताते हुए कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब जमाकर्ता ऐसे मामले में रिफंड हासिल करेंगे जिसमें कई एजेंसियां शामिल है और इन सभी ने मामले में जब्तियां की हैं।

अमित शाह ने जमाकर्ताओं को आश्वासन दिया कि अब उनका पैसा कोई रोक नहीं सकता है और उन्हें पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के 45 दिन के भीतर रिफंड मिलेगा।

उन्होंने कहा कि इसकी वजह से लोगों में कॉपरेटिव सोसाइटीज के प्रति असुरक्षा की भावना बनी है। अमित शाह ने कहा कि इसमें सभी स्टेक होल्डर्स को बुलाकर बातचीत की गई।

इस पर विचार करने के लिए सेबी, ईडी, आयकर विभाग, सीबीआई, लॉ अधिकारी समेत सभी स्टेक होल्डर्स को बुलाकर ये फैसला किया।

पीआईबी की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में बताया गया कि सहारा समूह की सहकारी समितियों के जमाकर्ताओं की वैध जमा धनराशि के भुगतान संबंधी शिकायतों के समाधान के लिए सहकारिता मंत्रालय के आवेदन पर, सुप्रीम कोर्ट ने 29 मार्च 2023 को एक आदेश दिया था।

इसके तहत सहारा समूह की सहकारी समितियों के वास्तविक जमाकर्ताओं के वैध देयों के भुगतान के लिए "सहारा-सेबी रिफंड खाते" से 5000 करोड़ रुपये सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (CRCS) को हस्तांतरित किए जाने का आदेश दिया।

अमित शाह ने कहा, ''इसकी शुरुआत 5000 करोड़ रुपये के साथ हुई है और जब 5000 करोड़ रुपया निवेशकों का वापस हो जाएगा तो हम फिर सुप्रीम कोर्ट के पास जाएंगे और बताएंगे कि अब इतने निवेशकर्ता बचे हैं।''

उन्होंने कहा कि एक करोड़ निवेशकों को ट्रायल बेस पर 10 हजार रुपये तक की राशि का रिफंड किया जाएगा।

क्या सऊदी अरब का तेल उत्पादन पर दिया बयान अमेरिका के लिए झटका है?

सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने कहा है कि तेल उत्पादन पर लिया गया निर्णय ओपेक प्लस देशों के बीच आम सहमति को दिखाता है और सऊदी अरब का मानना है कि साल 2023 में तेल उत्पादन न बढ़ाने की उसकी मौजूदा नीति सही है।

ये बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद अमेरिका का सऊदी अरब पर तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए दबाव रहा है।

साल 2022 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तेल उत्पादन बढ़ाने पर मोहम्मद बिन सलमान को राज़ी करने के लिए सऊदी अरब का दौरा भी किया था। हालांकि, इसका असर ज़्यादा दिन नहीं रहा और सऊदी अरब ने तेल उत्पादन नहीं बढ़ाया।

यूक्रेन युद्ध के बाद बाइडन प्रशासन ने जी-7 के देशों के साथ रूस के तेल पर प्राइस कैप भी लगाया है ताकि तेल निर्यात से होने वाली उसकी आमदनी घटाई जा सके। ओपेक प्लस देशों के उत्पादन न बढ़ाने से रूस को आमदनी ज़्यादा होगी।

तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक प्लस का नेतृत्व रूस करता है। वहीं, ओपेक देशों में सऊदी अरब का दबदबा है। सऊदी पर आरोप लगता आया है कि वो तेल उत्पादन के मामले में रूस की लाइन पर है।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने लंदन में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, "हम हमेशा कहते आए हैं कि हम एक स्थिर बाज़ार को लेकर प्रतिबद्ध हैं। हमें लगता है कि बाज़ार को साल 2023 के आख़िर तक उत्पादन में किसी बदलाव की ज़रूरत नहीं है।''

उन्होंने ये भी कहा कि "ओपेक और ओपेक प्लस देशों के बीच सभी फ़ैसले सभी सहयोगियों के साथ काफ़ी विचार-विमर्श के बाद लिए जाते हैं। ओपेक प्लस देशों की ओर से ऑन रिकॉर्ड दिए गए सभी बयान एक आम सहमति को दिखाते हैं।''

भारत में फ़ेक ऑनलाइन रिव्यूज़ पर रोकथाम के लिए सरकार ने नियम बनाए

भारत में ई-कॉमर्स कारोबार से जुड़ी अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को अब अपने प्लेटफॉर्म पर मौजूद सभी प्रोडक्ट्स और सेवाओं के पेड कंज़्यूमर रिव्यूज़ के बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।

सरकार ने फेक रिव्यूज़ पर रोकथाम और सही जानकारी के आधार उचित फ़ैसला लेने में ग्राहकों को मदद देने के लिए नए नियमों का ऐलान किया है।

इसके अलावा सरकार ने उन रिव्यूज़ के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी है जिनके लिए भुगतान किया गया है या फिर उसे ऐसे लोगों ने लिखा है जो इसी काम के लिए सप्लायर द्वारा या फिर तीसरे पक्ष द्वारा नियुक्त किया गया है।

ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) के ये नियम संबंधित पक्षों से बातचीत के बाद तैयार किए गए हैं और ये 25 नवंबर 2022 से लागू हो जाएंगे। इन नियमों का पालन फिलहाल स्वैच्छिक रखा गया है लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर फ़ेक रिव्यूज़ की परेशानी जारी रही तो सरकार इसे अनिवार्य बनाने पर विचार करेगी।

उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव रोहित कुमार सिंह ने सोमवार, 21 नवम्बर 2022 को बताया कि बीआईएस के ये नियम उन सभी संगठनों पर लागू होंगे जो ऑनलाइन कंज्यूमर रिव्यूज़ प्रकाशित करते हैं।

इनमें प्रोडक्ट और सर्विस मुहैया कराने वाले सप्लायर्स, अपने ग्राहकों से रिव्यू इकट्ठा कराने वाली कंपनी या फिर कोई तीसरी पार्टी जिसे ये जिम्मा दिया गया है, शामिल हैं।

रोहित कुमार सिंह ने बताया कि बीआईएस इसके लिए अगले 15 दिनों में सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू करेगी जिससे ग्राहक ये जान पाएंगे कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स इन नियमों का पालन कर रही है या नहीं। ई-कॉमर्स कंपनी बीआईएस के पास इसके लिए सर्टिफिकेशन का आवेदन दे सकती हैं।

अमेरिका नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को तबाह करना चाहता है: रूस

रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका और नेटो नॉर्ड स्ट्रीम एक और दो पाइपलाइन को नष्ट करने की मंशा रखते हैं।

रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ाखारोवा ने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कनाडाई विदेश मंत्री मेलानी जॉली के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जो कुछ भी कहा उससे अमेरिकी मंशा स्पष्ट हो गई है।

टेलिग्राम पर मारिया ने कहा कि ब्लिंकन बिना हिचक के कह रहे हैं कि अमेरिका और नेटो नॉर्ड स्ट्रीम एक और दो गैस पाइपलाइन को तबाह करने की मंशा रखते हैं।

मारिया ने टेलिग्राम पर लिखा है, ''ब्लिंकन ने कहा कि पाइपलाइन से यूरोप में गैस नहीं जा रही है। नॉर्ड स्ट्रीम दो को यूरोप में गैस भेजने के लिए अनुमति नहीं है। नॉर्ड स्ट्रीम एक को रूस ने एक हफ़्ते पहले ही रोक दिया था। ब्लिंकन ने कहा कि रूस ऊर्जा ज़रूरतों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।''

रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा, ''रूस ने कभी ऊर्जा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया। अभी रूस और पहले सोवियत संघ यूरोप को गैस देते रहे हैं। इसमें कभी कोई रुकावट नहीं आई। पिछले 50 सालों से इस मुद्दे पर अमेरिका झूठ बोलता रहा है।''

नॉर्ड स्ट्रीम एजी कंपनी ने कहा है कि 26 सितंबर 2022 को पाइपलाइन को ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन के पास दो धमाके हुए थे। डेनिश न्यूज़ एजेंसी ने कहा था कि बड़ी मात्रा में गैस समंदर में लीक हुई है। इसके आसपास के इलाक़ों में शिप की आवाजाही रोक दी गई है।

नॉर्ड स्ट्रीम दो क़रीब 1,200 किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन परियोजना बाल्टिक सागर से होकर पश्चिमी रूस से उत्तर-पूर्वी जर्मनी तक जाती है।

इस परियोजना के ज़रिए रूस से जर्मनी जाने वाली प्राकृतिक गैस की सप्लाई को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया। वर्तमान में रूस से जर्मनी जाने वाली गैस 'नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन' होकर जाती है, जिसे 2012 में बनाया गया था।

यदि यह परियोजना सफल हो जाएगी, तो इस पाइपलाइन से जर्मनी को हर साल 55 अरब घन मीटर गैस की सप्लाई हो सकेगी। इस परियोजना की मालिक रूस की सरकारी गैस कंपनी 'गज़प्रोम' है। लेकिन अब सब अधर में लटक गया है और जर्मनी दूसरे विकल्प की तलाश में है।

भारत में प्राकृतिक गैस की कीमत 40 फीसदी बढ़ोतरी के साथ रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची

भारत में प्राकृतिक गैस की कीमत 40 फीसदी बढ़ोतरी के साथ रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं।

प्राकृतिक गैस को ही सीएनजी और पीएनजी में बदला जाता है। गैस के दाम बढ़ने का सीधा असर ट्रांसपोर्ट और रसोई खर्च पर पड़ेगा। प्राकृतिक गैस से फर्टिलाइजर, बिजली बनाने जैसे काम भी किए जाते हैं।

भारत के तेल मंत्रालय के एक आदेश के अनुसार पुराने क्षेत्रों से उत्पादित गैस के लिए भुगतान की दर जो पहले 6.1 अमेरिकी डॉलर थी, उसे बढ़ाकर 8.57 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट कर दिया गया है।

इसके साथ ही रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनियों के लिए भी गैस की कीमतों को 9.92 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 12.6 अमेरिकी डॉलर प्रति एमएमबीटीयू कर दिया है।

अप्रैल 2019 के बाद से प्राकृतिक गैस की दरों में ये तीसरी बढ़ोतरी है।

दरों में यह तीसरी वृद्धि होगी और बेंचमार्क अंतरराष्ट्रीय कीमतों में मजबूती के कारण आई है।