बिहार चुनाव 2020 में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल गया है। इस चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। महागठबंधन अच्छी शुरुआत के बाद भी बहुमत से दूर रह गया।
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और 243 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में एक बार फिर एनडीए को सरकार बनाने का जनादेश मिला है।
बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों के बहुमत की ज़रूरत है और एनडीए ने 125 सीटें जीतकर यह अहम आंकड़ा पार कर लिया है।
एनडीए को कांटे की टक्कर देने वाला महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछा रह गया। महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुई हैं।
जेडीयू को 43 सीटें मिली हैं।
वहीं सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए पांच सीटों पर जीत दर्ज की है। बहुजन समाज पार्टी ने भी एक सीट पर जीत दर्ज की है।
जेडीयू का विरोध करते हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर मैदान में उतरी चिराग़ पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) को सिर्फ़ एक सीट ही हासिल हुई है।
एक सीट निर्दलीय के हिस्से आयी है।
महागठबंधन की अगुवाई करने वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी अपनी सीटों में इजाफ़ा किया है और वो 74 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है।
साल 2015 में आरजेडी ने 80 और बीजेपी ने 53 सीटें जीती थीं।
बीजेपी और अन्य सहयोगी दलों के बेहतर प्रदर्शन के कारण एनडीए को बहुमत मिल गया है लेकिन इन चुनावों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का प्रदर्शन बहुत अधिक उत्साहित करने वाला नहीं रहा। साल 2015 में 71 सीटें जीतने वाली जेडीयू को इस बार 43 सीटें ही हासिल हुई हैं।
वहीं साल 2015 के चुनाव में 27 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को इस चुनाव में सिर्फ़ 19 सीटें ही मिली हैं।
एनडीए में जेडीयू और बीजेपी के अलावा हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) हैं।
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और तीन वामपंथी पार्टियाँ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी लेनिनवादी (लिबरेशन) हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी केंद्र में एनडीए का हिस्सा है पर बिहार में इस पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा।
एनडीए ने मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर मौजूदा सीएम नीतीश कुमार को ही पेश किया तो महागठबंधन की ओर से 31 साल के तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे।
बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना 10 नवंबर 2020 की सुबह आठ बजे शुरू हुई जो देर रात क़रीब दो बजे तक चली।
तीन चरणों में संपन्न हुआ बिहार विधानसभा चुनाव कोविड-19 महामारी के बीच भारत का पहला चुनाव है। चुनाव आयोग के मुताबिक कोविड-19 की वजह से ही मतगणना में ज़्यादा समय लगा। सुबह आठ बजे शुरू हुई वोटों की गिनती रात ढाई बजे तक चली।
चुनाव आयोग के मुताबिक़ इस बार 57.05 फ़ीसदी लोगों ने मतदान किया जो कि 2015 से ज़्यादा है। पांच साल पहले 56.66 फ़ीसदी मतदान हुआ था।
आरजेडी और कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनावों की मतगणना में गड़बड़ी का आरोप लगाया है और ये दोनों पार्टियां इसे लेकर चुनाव आयोग के पास भी गईं। हालांकि बाद में चुनाव आयोग के सेक्रेटरी जनरल उमेश सिन्हा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि चुनाव आयोग किसी भी तरह के दवाब में आकर काम नहीं करता है।
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 - दलवार परिणाम की स्थिति
243 निर्वाचन क्षेत्रों में से 243 की ज्ञात स्थिति
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन - 5
बहुजन समाज पार्टी - 1
भारतीय जनता पार्टी - 74
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया - 2
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) - 2
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी लेनिनवादी (लिबरेशन) - 12
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) - 4
निर्दलीय - 1
इंडियन नेशनल कांग्रेस - 19
जनता दल यूनाइटेड - 43
लोक जनशक्ति पार्टी - 1
राष्ट्रीय जनता दल - 75
विकासशील इंसान पार्टी - 4
रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को चुनाव में हराने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन ने अपने पहले भाषण में कहा कि यह जीत लोगों की है।
जो बाइडन ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने पहले भाषण में कहा, ''अमेरिका की जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया है। यह जीत आपकी है। हमें 7.4 करोड़ वोट मिले हैं और इतना वोट आज तक किसी को नहीं मिला।''
बाइडन ने कहा, ''आपने मेरे ऊपर भरोसा जताया है। इसे मैं विनम्रता से स्वीकार करता हूं। मैं अमेरिका का राष्ट्रपति हूं और सबको साथ लेकर चलूंगा। मैं रेड स्टेट और ब्लू स्टेट के रूप में नहीं देखता। अमेरिका का राष्ट्रपति हूं। मैं किसी पार्टी का राष्ट्रपति नहीं हूं। हम सब साथ मिलकर काम करेंगे। मैं इस मुल्क की रीढ़ को फिर से खड़ा करूंगा।''
तोड़ने नहीं, जोड़ने का काम करूंगा: बाइडन
बाइडन ने कहा, ''आप लोगों ने जो भरोसा मुझमें दिखाया है, उसे देख मैं बहुत खुश हूं। मैं ऐसा राष्ट्रपति बनने का वादा करता हूं जो तोड़ने की बजाय जोड़ने का काम करेगा। जो लाल रंग वाले राज्य या नीले रंग वाले राज्य नहीं दिखेगा बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका दिखेगा। मैं दिल से कोशिश करूंगा कि आप सबका भरोसा जीत सकूं।''
बाइडन ने अफ्रीकी-अमरीकी वोटरों का ख़ासतौर से धन्यवाद किया जिनकी वजह से उनके प्रचार को बढ़त मिली जब वो शुरुआती मुक़ाबले में पिछड़ रहे थे।
बाइडन ने कहा कि उनका पहला काम कोरोना वायरस की महामारी को नियंत्रित करना होगा। बाइडन ने कहा, ''सोमवार को मैं एक ग्रुप की घोषणा करूंगा, जिनमें शीर्ष के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ हमारे कोविड प्लान को लेकर काम करेंगे। इस प्लान को 21 जनवरी 2020 से लागू किया जाएगा।''
बाइडन ने कहा कि अमेरिका में ऐसा अब तक कभी नहीं हुआ है कि हमने कोशिश की और वो काम नहीं हुआ।
कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनी हैं और उनका भाषण प्रमुख रूप से ऐतिहासिक तेवर का था। कमला ने अपने भाषण में कहा कि भले वो अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति हैं लेकिन आख़िरी नहीं हैं। कमला ने कहा कि उनकी जीत से देश भर की महिलाओं के बीच एक संदेश जाएगा कि असंभव कुछ भी नहीं है।
बाइडन ने ट्रंप समर्थकों को भी आश्वस्त किया
बाइडन ने ट्रंप समर्थकों को भी संबोधित किया। उन्होंने कहा, ''एक-दूसरे को एक मौक़ा देकर देखते हैं। अब वक़्त है कि हम कड़वाहट भरी बयानबाज़ी से दूर रहें। एक-दूसरे से दोबारा मिलें, एक-दूसरे को दोबारा सुनें ... अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मन मानना छोड़ें।''
''मैं उन सबके लिए भी उतनी ही मेहनत से काम करूंगा जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिया।''
बाइडन ने कहा कि उनका पहला काम कोरोना महामारी पर नियंत्रण करना होगा। बाइडन ने एक आशावादी संदेश के साथ अपने भाषण का अंत किया। आख़िर में उन्होंने कहा, ''भरोसा फैलाइए। आप सभी को प्यार, ब्लैस अमेरिका।'' इसके बाद उनके परिवार वाले स्टेज पर आए। आतिशाबाज़ी की गई।
आपने उम्मीद को चुना है: कमला हैरिस
कमला हैरिस ने कहा, ''आपने उम्मीद, मर्यादा, विज्ञान और सच को चुना है। आपने जो बाइडन को अगला राष्ट्रपति चुना है।''
कमला ने जो बाइडन को बधाई दी। कमला ने कहा कि लोकतंत्र स्टेट नहीं, एक्ट होता है। कमला हैरिस ने भाषण देते हुए अपने परिवार और भारतीय माँ को याद किया।
कमला ने अपनी माँ को याद किया। उन्होंने ब्लैक, एशियाई, व्हाइट और लातिनी महिलाओं को भी याद याद किया।
कमला हैरिस ने कहा, ''वे सब हमारे लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। वो औरतें जिन्होंने सौ साल पहले 19वें संशोधन के लिए लड़ाई की, 55 साल पहले वोटिंग के अधिकार के लिए संघर्ष किया और आज 2020 की युवा पीढ़ी जो वोट कर रही है।''
''मैं इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हो सकती हूं लेकिन मैं आख़िरी नहीं हूं।''
डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार जो बिडेन अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति चुने गए है। जो बिडेन पेंसिल्वेनिया से चुनाव जीत चुके हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार जो बिडेन को 290 एलेक्ट्रोरल कॉलेज के वोट मिले, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प को 214 एलेक्ट्रोरल कॉलेज के वोट मिले।
अमेरिकी राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति चुनाव हार चुके हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार जो बिडेन अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति चुने गए।
डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन अमरीका के अगले राष्ट्रपति होंगे। 3 नवंबर 2020 को हुए मतदान में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को हरा दिया है
अहम माने जा रहे पेंसिल्वेनिया राज्य में जो बाइडन ने बड़ी जीत हासिल कर ली है जिसके बाद व्हाइट हाउस तक पहुंचने के लिए ज़रूरी 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोट के आंकड़े को वो पार कर गए हैं।
इस चुनाव में साल 1900 के बाद सबसे अधिक वोट पड़े हैं। बाइडन अभी तक 7 करोड़ से अधिक वोट प्राप्त कर चुके हैं। किसी भी राष्ट्रपति को इससे पहले इतने वोट नहीं मिले।
तुर्की और ग्रीस ने घोषणा की है कि वे मंगलवार को ग्रीस के क्रीट द्वीप के पास एक-दूसरे के विरोध में सैन्य अभ्यास करेंगे।
दोनों देशों के बीच पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस भंडारों पर दावों को लेकर विवाद बढ़ गया है।
तुर्की ने आधिकारिक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जहाज़ इस क्षेत्र से दूर रहें।
तुर्की के अपने खोजी मिशन को आगे बढ़ाने का ऐलान करने के बाद ग्रीस ने भी सैन्य अभ्यास का ऐलान किया है।
इसी बीच जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास मंगलवार को एथेंस और अंकारा पहुंच रहे हैं जहां वो तनाव कम करने के लिए वार्ताएं करेंगे।
हीको मास पहले एथेंस में ग्रीस के प्रधानमंत्री किरयाकोस मिट्सोटाकिस से बात करेंगे और फिर अंकारा में तुर्की के विदेश मंत्री के साथ वार्ता करेंगे।
क्रीट और साइप्रस के पास विवादित जलक्षेत्र में तेल और गैस के भंडार मिलने के बाद से ही ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।
ग्रीस यूरोपियन यूनियन का भी हिस्सा है, जिसने वार्ता की अपील की है लेकिन फ्रांस ग्रीस का साथ देता दिख रहा है। फ्रांस ने हाल ही में ग्रीस के साथ सैन्य अभ्यास भी किया है।
सोमवार को तुर्की ने घोषणा की थी कि उसका शोध जहाज़ ओरुक रीस 27 अगस्त 2020 तक अपना काम चारी रखेगा। माना जा रहा है कि ग्रीस इसी से नाराज़ है। ग्रीस तुर्की के सर्वेक्षण को ग़ैर क़ानूनी मान रहा है और अब तुर्की के विरोध में युद्धाभ्यास करने जा रहा है।
ग्रीस सरकार के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा है, ''ग्रीस शांति से जवाब दे रहा है और कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर जवाब के लिए तैयार है। राष्ट्रीय विश्वास के साथ, ग्रीस अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।''
तुर्की ने भी इसी भाषा में जवाब दिया है।
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा है, ''तुर्की ओरुक रीस और उसे एस्कॉर्ट कर रहे जंगी जहाज़ों की गतिविधियों से एक क़दम भी पीछे नहीं हटेगा।''
उन्होंने कहा कि ग्रीस ने अपने आप को ऐसी मुसीबत में डाल लिया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता उसे नहीं मिल रहा है।
बीते महीने जब तुर्की ने अपने जहाज़ को भेजते समय नौसैन्य चेतावनी नेवटेक्स जारी की थी तब भी ग्रीस ने आक्रामक रवैया अपनाया था।
ग्रीस ने तुर्की से कहा था कि वह पूर्वी भूमध्य सागर में तेल की खोज में निकले अपने जहाज़ को वापस बुला ले।
ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव भड़कता रहता है, लेकिन गैस रिज़र्व और जलक्षेत्र अधिकारों को लेकर शुरू हुए इस ताज़ा विवाद के बड़े संघर्ष में बदलने का ख़तरा पैदा हो गया है।
जुलाई में जब तुर्की ने ग्रीस के द्वीप कास्टेलोरीज़ो के पास अपने सर्वे जहाज़ भेजने का ऐलान किया था तो जर्मनी ने मध्यस्थता करके संकट टाल दिया था। जर्मनी इस समय यूरोपीय यूनियन का अध्यक्ष है।
लेकिन अब ये जहाज़ और इसके साथ तुर्की की नौसेना के पाँच जंगी जहाज़ जलक्षेत्र में सर्वे कर रहे हैं और तनाव फिर से बढ़ गया है।
नेटो सदस्य ग्रीस और तुर्की के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ गई है।
इसी विवाद में ग्रीस कहता रहा है कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा और यूरोपीय यूनियन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच बातचीत होनी चाहिए।
तुर्की और ग्रीस के रिश्ते कैसे ख़राब हुए?
गैस भंडारों को लेकर तुर्की और ग्रीस के अपने-अपने दावे हैं और पूर्वी भूमध्यसागर के कई महत्वपूर्ण इलाक़ों को लेकर दोनों देशों के बीच भारी मतभेद हैं।
दोनों ही देश कई इलाक़ों पर अपने-अपने दावे इस तर्क के साथ ठोकते रहे हैं कि ये उनके महाद्वीपीय जलसीमा में आते हैं।
जुलाई में तुर्की ने नौसैनिक अलर्ट (नेवटेक्स) जारी किया था कि वह अपने शोध जहाज़ ओरुक रीस को ग्रीस के द्वीप कास्टेलोरीज़ो के पास सर्वे करने भेज रहा है।
ये द्वीप दक्षिण-पश्चिम तुर्की के तट से कुछ ही दूर स्थित है।
इस सर्वे में तुर्की साइप्रस और क्रीट के बीच के इलाक़ों में गैस की खोज कर रहा है।
उस समय तुर्की के जहाज़ ने अंतालया के बंदरगाह से अपना लंगर नहीं उठाया था लेकिन ग्रीस की सेना में कास्टेलोरीज़ो द्वीप के नज़दीक संघर्ष की चिंता पैदा हो गई थी।
बीते कई महीनों से तुर्की और ग्रीस के रिश्ते ठंडे हैं। दोनों देशों के बीच प्रवासियों के ग्रीस में घुसने को लेकर भी विवाद है। और फिर तुर्की ने इस्ताबुंल के हागिया सोफ़िया म्यूज़ियम को फिर से मस्जिद बना दिया। ये इमारत कई सदियों तक ऑर्थोडॉक्स चर्च रही है। इससे भी ग्रीस को बुरा लगा।
जर्मनी के दख़ल के बाद दोनों देश बातचीत के लिए तैयार हुए और कुछ दिनों के लिए मामला ठंडा पड़ गया।
लेकिन इसी बीच अगस्त में ग्रीस ने मिस्र के साथ समझौता कर एक जलक्षेत्र बना लिया जिससे तुर्की भड़क गया है।
बातचीत टूट गई और तुर्की के जहाज़ ओरुक रीस ने दस अगस्त को बंदरगाह छोड़ दिया। अगले ही दिन ये क्रीट और साइप्रस के बीच के पानी में पहुंच गया।
अब क्यों बढ़ा तनाव?
पूर्वी भूमध्यसागर में ऊर्जा संसाधन विकसित करने की दौड़ में तुर्की और ग्रीस एक दूसरे के ख़िलाफ़ हैं।
हाल के सालों में साइप्रस के पास के पानी में बड़े गैस भंडार मिले हैं। साइप्रस, ग्रीस, इसराइल और मिस्र की सरकारें इनके दोहन के लिए एक साथ आई हैं। समझौते के तहत दो हज़ार किलोमीटर पाइपलाइन के ज़रिए यूरोप तक गैस भेजी जाएगी।
पिछले साल तुर्की ने साइप्रस के पश्चिम में तेल और गैस की खोज शुरू की थी। साइप्रस 1974 से बँटा हुआ है। तुर्की के नियंत्रण वाले उत्तरी साइप्रस को सिर्फ़ तुर्की ने ही मान्यता दे रखी है। तुर्की हमेशा ये तर्क देता रहा है कि इस द्वीप के प्राकृतिक संसाधनों पर उसका भी हक़ है और इनका बँटवारा होना चाहिए।
और फिर नवंबर 2019 में तुर्की ने लीबिया के साथ एक समझौता करके तुर्की के दक्षिणी तट से लीबिया के उत्तर पूर्वी तट तक एक विशेष आर्थिक जलक्षेत्र का निर्माण कर लिया।
मिस्र ने कहा कि ये समझौता ग़ैरक़ानूनी है और ग्रीस ने कहा कि ये बेतुका है क्योंकि इसमें बीच में आने वाले ग्रीस के द्वीप क्रीट का संदर्भ नहीं लिया गया है।
फिर मई में तुर्की ने कहा कि वह अगले कुछ महीनों में पश्चिम की ओर अन्य इलाक़ों में तेल और गैस की खोज में खुदाई शुरू करेगा। इससे यूरोपीय यूनियन के सदस्य ग्रीस और साइप्रस में चिंताएं पैदा हो गईं।
तुर्की ने पूर्वी भूमध्यसागर में खुदाई करने के लिए टर्किश पेट्रोलियम को कई लाइसेंस जारी कर दिए हैं। इनमें ग्रीस के द्वीप क्रीट और रोड्स के आसपास खुदाई करने का लाइसेंस भी है।
जुलाई में तुर्की के उप-राष्ट्रपति फ़वात ओकताई ने कहा था, ''सभी को ये बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि इस क्षेत्र के ऊर्जा समीकरणों से तुर्की और टर्किश रिपब्लिक ऑफ़ नॉर्थ साइप्रस को अलग नहीं किया जा सकता है।''
फिर 6 अगस्त 2020 को ग्रीस और मिस्र ने अपना समझौता करके तुर्की को जवाब दिया। दोनों ने विशेष आर्थिक ज़ोन का निर्माण करते हुए कहा कि इससे लीबिया के साथ तुर्की का समझौता रद्द हो जाएगा।
अब तुर्की ने अपने सर्वे जहाज़ को भेजने के अलावा ये भी कहा है कि इस महीने के अंत तक महाद्वीपीय शेल्फ़ के पश्चिमी क्षेत्र में तेल और गैस की खोज के लिए लाइसेंस जारी कर दिए जाएंगे।
क़ानूनी विवाद क्या हैं?
एजियन सागर और पूर्वी भूमध्यसागर में ग्रीस के कई द्वीप ऐसे है जो तुर्की के तट के बिल्कुल पास हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच जलक्षेत्र को लेकर जटिल विवाद हैं और कई बार दोनों देश युद्ध के मुहाने तक आ चुके हैं।
यदि ग्रीस अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपने जलक्षेत्र को छह मील से लेकर 12 मील तक बढ़ाता है तो तुर्की का तर्क है कि इससे उसके कई समंदरी रास्ते बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन ने हाल ही में कहा था, ''तुर्की ऐसे किसी भी प्रयास को सहमति नहीं देगा जो उसे उसके तट तक सीमित कर दे।''
लेकिन विवाद सिर्फ़ जलक्षेत्रों तक ही नहीं है बल्कि विशेष आर्थिक ज़ोन (ईईज़ेड) भी एक बड़ा मुद्दा है। जैसे तुर्की और लीबिया का ईईज़ेड, मिस्र और ग्रीस का ईईज़ेड और साइप्रस और लेबनान का ईईज़ेड, मिस्र और इसराइल का ईईज़ेड।
और अब इस ताज़ा विवाद में महाद्वीपीय जलसीमा भी शामिल है जो तट से दो सौ मील दूर तक हो सकती है।
ग्रीस का तर्क है कि तुर्की का सर्वे जहाज़ उसकी महाद्वीपीय जलसीमा का उल्लंघन कर रहा है। ग्रीस का द्वीप कास्टेलोरीज़ो तुर्की के तट से सिर्फ़ दो किलोमीटर दूर है।
एक ओर जहां ग्रीस ने तुर्की से कहा है कि वह उसकी महाद्वीपीय जलसीमा को तुरंत छोड़ दे, तुर्की का कहना है कि ऐसे द्वीप जो मुख्य भूभाग से दूर हैं और तुर्की के पास हैं उनकी महाद्वीपीय जलसीमा नहीं हो सकती है।
बीते महीने तुर्की के उपराष्ट्रपति ने कहा था कि तुर्की उन नक्शों को फाड़ रहा है जो उसे मुख्य भूभाग तक सीमित करने के लिए बनाए गए हैं।
तुर्की इस बात पर भी ज़ोर देता रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र के जलक्षेत्रों को लेकर क़ानूनों के तहत ही काम कर रहा है।
इसकी प्रतिक्रिया क्या रही है?
ग्रीस के यूरोपीय सहयोगी देशों ने उसका पक्ष लिया है, हालांकि जर्मनी और यूरोपीय यूनियन बातचीत पर ज़ोर दे रहे हैं।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रो ने ग्रीस और साइप्रस को पूर्ण समर्थन देते हुए कहा है कि तुर्की इन देशों की संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है।
हाल के महीनों में फ्रांस के रिश्ते तुर्की से ख़राब हुए हैं, ख़ासकर लीबिया को लेकर।
बढ़ते हुए तनाव के बीच फ्रांस ने कहा है कि वह क्षेत्र में अस्थायी रूप से एक फ्रीजेट और दो रफ़ाल विमान तैनात कर रहा है जो ग्रीस के साथ सैन्य अभ्यास भी करेंगे।
अमरीका ने दोनों ही पक्षों से बात करने के लिए कहा है और नेटो के महासचिव येंस स्टोलटेनबर्ग ने कहा है कि स्थिति को बातचीत के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और नेटो भाइचारे का ध्यान रखते हुए सुलझाया जाए।
जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्कल तनाव कम करने की कोशिशें कर रहीं हैं और उन्होंने तुर्की और ग्रीस दोनों देशों के नेताओं से बात की है।
कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की हालत ख़राब कर दी है। इसका असर लोगों के रोज़गार पर बहुत ही बुरा पड़ा है। तेल पर निर्भर अरब देशों की अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति और कमज़ोर हुई है। ऐसे में वहां की सरकारें प्रवासी कामगारों को लेकर नियम सख़्त कर रही हैं ताकि स्थानीय लोगों को रोज़गार मिल सके।
कुवैत टाइम्स दैनिक अख़बार के अनुसार कुवैत की नेशनल असेंबली ने प्रवासी कामगारों की संख्या सीमित करने के लिए मसौदा तैयार कर लिया है। इस मसौदे में कुछ ख़ास वीज़ा की मान्यता रद्द करने का भी प्रस्ताव है। अख़बार के अनुसार कुवैत में प्रवासी कामगारों की संख्या सीमित करने वाला क़ानून छह महीने के भीतर लागू हो जाएगा।
अख़बार का कहना है कि इस क़ानून की दस अलग-अलग श्रेणियों में कोटा सिस्टम पर छूट दी जाएगी। यह छूट घरों में काम करने वालों, मेडिकल स्टाफ़, शिक्षक और जीसीसी के नागरिकों को मिलेगी। यात्रा वीज़ा को वर्क वीज़ा में तब्दील करने की सुविधा को भी कुवैत प्रतिबंधित करने जा रहा है। इसके अलावा कोई डोमेस्टिक हेल्पर प्राइवेट या ऑइल सेक्टर में काम नहीं कर सकता है।
कुवैत प्रवासियों की संख्या कम करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रहा है। पिछले हफ़्ते कुवैत ने घोषणा की थी कि बिना यूनिवर्सिटी की डिग्री के 60 साल से ऊपर की उम्र वालों को वर्क वीज़ा नहीं मिलेगा।
लार्सन एंड टर्बो में प्रतीक देसाई चीफ़ एग्जेक्युटिव हैं। वो 25 सालों से कुवैत में रह रहे हैं। लेकिन कुवैत सरकार के नए बिल से अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं।
प्रतीक देसाई ने बीबीसी से पिछले महीने कहा था, ''इस बिल के लागू होने के बाद आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है। 40 लाख की आबादी में यहां 70 फ़ीसदी प्रवासी हैं। इस बिल का लक्ष्य प्रवासियों की तादाद 30 फ़ीसदी करना है।''
इन प्रवासियों में भारतीय सबसे ज़्यादा हैं। भारत के अलावा यहां पाकिस्तान, फ़िलीपीन्स, बांग्लादेश, श्रीलंका और मिस्र के लोग हैं।
भारत सरकार भी कुवैत के इस बिल को लेकर चिंतित है। पिछले महीने भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था, ''भारतीयों की खाड़ी के देशों में अहम भूमिका रही है और इनके योगदान को वहां की सरकारें स्वीकार भी करती हैं। हमने कुवैत से इस मसले पर बात की है।''
प्रतीक देसाई का कहना है कि यह मामला केवल जॉब जाने का नहीं है बल्कि यहां से वापस आने का है। वो कहते हैं, ''जब आप लंबे समय से किसी जगह पर रहते हैं तो एक किस्म का भावनात्मक संबंध विकसित हो जाता है। इस फ़ैसले से हम आर्थिक से ज़्यादा भावनात्मक रूप से प्रभावित होंगे।''
कुवैत से भारतीय कमाई कर अपने परिजनों को भेजते हैं और यह भारत के लिए विदेशी मुद्रा का अहम स्रोत रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर के डेटा के अनुसार 2017 में कुवैत से भारतीयों ने 4.6 अरब डॉलर भारत भेजे थे। कुवैत में क़रीब तीन लाख भारतीय ड्राइवर, रसोइए और केयरटेकर का काम करते हैं।
भारत ने अमरीका से वीज़ा संबंधी उस नियम को लेकर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है जिसके चलते हज़ारों भारतीय छात्रों के सामने अमरीका छोड़ने का संकट उत्पन्न हो गया है।
अमरीकी इमिग्रेशन सेवा ने इस सप्ताह ऐलान किया है कि उन विदेशी छात्रों को देश में रहने की अनुमति नहीं होगी जिनकी यूनिवर्सिटीज अपने सभी क्लासेज को ऑनलाइन मोड में कराएगी। सिर्फ़ क्लासरूम टीचिंग और इन-पर्सन ट्यूशन लेने वाले छात्रों को अमरीका में रहने की अनुमति होगी।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ''ट्रंप प्रशासन को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि देशों के बीच संबंध बेहतर बनाने में एजुकेशनल एक्सचेंज और लोगों के आपसी संबंधों की भूमिका होती है।''
अमरीकी सरकार के इस फ़ैसले का अमरीकी अकादमिक जगत में भी विरोध हो रहा है। हार्वर्ड और मैसाच्यूट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी ने सरकार के फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी है।
चैरिटी संस्था ऑक्सफ़ैम ने चेतावनी दी है कि इस साल के अंत कर कोविड-19 से जुड़ी भुखमरी के कारण हर दिन 12 हज़ार लोगों की जान जा सकती है।
ये आँकड़ा शायद हर दिन बीमारी से मरने वालों की संख्या से ज़्यादा होगा।
ऑक्सफ़ैम का कहना है कि भुखमरी बढ़ने की कई वजहें हैं जिनमें बड़ी संख्या में बेरोज़गारी, लॉ़कडाउन के कारण खाद्यान्न उत्पादकों की परेशानी और सहायता देने में परेशानियाँ शामिल हैं।
अपनी रिपोर्ट में ऑक्सफ़ैम ने भुखमरी के जिन हॉटस्पॉट्स का ज़िक्र किया है, वे हैं- डीआर कांगो, अफ़ग़ानिस्तान, वेनेज़ुएला, पश्चिमी अफ़्रीकी साहेल, इथियोपिया, दक्षिणी सूडान, सीरिया, सूडान और हैती।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक कोरोना से पांच सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में भारत में प्रति दस लाख की जनसंख्या पर संक्रमण के सबसे कम मामले 538 हैं और मौतों की संख्या केवल 15 हैं। जबकि संक्रमण का वैश्विक औसत 1,453 है और मौतों का औसत 68.7 है।
हालांकि भारत में कोरोना का टेस्ट भी कम हुआ है। बीते सप्ताह भारत में कोरोना टेस्ट का आंकड़ा एक करोड़ के पार पहुंचा था। हालांकि गुरुवार की प्रेस कांफ्रेंस में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की सीनियर साइंटिस्ट निवेदिता गुप्ता ने बताया कि भारत में कोरोना टेस्ट के मामलों में वृद्धि हुई है और अब देश भर में रोज़ाना दो लाख 60 हज़ार टेस्ट हो रहे हैं।
निवेदिता गुप्ता के मुताबिक आने वाले दिनों में एंटीजन टेस्ट तकनीक के इस्तेमाल से और ज़्यादा टेस्ट किए जा सकेंगे।
वैसे भारत की आबादी 130 करोड़ से ज़्यादा है। यहां अब तक साढ़े सात लाख से ज़्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं जबकि मरने वाले लोगों की संख्या 21 हज़ार के पार हो चुकी है।
अमरीका की शीर्ष दो यूनिवर्सिटीज ने अमरीकी सरकार के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई का रास्ता चुना है। सरकार ने इमिग्रेशन संबंधी नया नियम बनाया है जिसके तहत दूसरे देशों के छात्रों के सामने देश छोड़ने की नौबत आ गई है।
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक नया नियम लागू किया है जिसके तहत उन छात्रों को देश में रहने की अनुमति नहीं होगी जिनके शैक्षणिक संस्थानों में क्लास रूम क्लासेज नहीं होगी। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के चलते अधिकांश यूनिवर्सिटी ऑनलाइन टीचिंग करा रहे हैं।
दुनिया के दो टॉप इंस्टीट्यूट हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और मैसाच्यूटएस इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी ने नए इमिग्रेशन क़ानून पर रोक लगाने के लिए फ़ेडरल कोर्ट से अपील की है।
हार्वर्ड के प्रेसीडेंट लॉरेंस बाकाउ ने हार्वर्ड कम्यूनिटी को भेजे ईमेल में कहा है कि हम इस मामले को मज़बूती से लड़ेंगे ताकि हमारे अंतरराष्ट्रीय छात्र और देश के दूसरे शैक्षणिक संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय छात्र, देश से निकाले जाने के डर से मुक्त होकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें।
अमरीका में कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार तेजी देखने को मिल रही है। इसको देखते हुए अमरीका के शीर्ष महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फ़ाउची ने कहा कि स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। अमरीका में कोरोना संक्रमण को लेकर ताजा अपडेट इस तरह से है -
अमरीका के कई राज्यों ने लॉकडाउन खोलने के विचार को आगे के लिए बढ़ा दिया है। इस सूची में ताज़ा नाम फ़्लोरिडा के ग्रेटर मियामी इलाक़े का जुड़ गया है। सोमवार को यहां के रेस्टोरेंट में इंडोर डाइनिंग बंद किया गया, साथ में जिम बंद करने का फ़ैसला लिया गया।
कैलिफ़ोर्निया, टैक्सास और फ़्लोरिडा अमरीका के उन दो दर्जन प्रांतों में शामिल हैं जहां पिछले कुछ दिनों में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं। कैलिफ़ोर्निया के अस्पतालों में बीते दो सप्ताह के दौरान कोरोना संक्रमितों की संख्या में 50 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।
बाक़ी के राज्यों में भी इसी तरह संक्रमण बढ़ रहा है, अधिकारियों के मुताबिक कई इलाक़ों में अस्पतालों के बेड पूरी तरह भर चुके हैं।
अमरीका के शीर्ष महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फ़ाउची ने कहा कि देश भर में गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है और इस पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है।
अमरीका की यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों ने कैंपस खोलने की योजना को भी टाल दिया है।
हार्वर्ड यूनिविर्सिटी ने कहा कि आगामी सेमेस्टर की क्लासेज ऑनलाइन होंगी और दूसरे संस्थान भी इसको फॉलो करने वाले हैं।
अमरीका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 29 लाख से ज़्यादा हो चुकी है, जबकि एक लाख 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।