मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाई
सोमवार, 22 जुलाई 2024
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के मुज़फ़्फ़रनगर एसएसपी के आदेश पर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली पीठ ने ये आदेश दिया है।
इसके साथ ही पीठ ने कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक करने को लेकर भारत के राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया है।
इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 26 जुलाई 2024 को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो निर्देशों को अमल में लाने पर रोक लगा रही है, दूसरे शब्दों में कहें तो खाना बेचने वालों को ये बताना ज़रूरी है कि वो किस तरह का खाना दे रहे हैं लेकिन उन पर मालिक या स्टाफ़ का नाम सार्वजनिक करने के लिए ज़ोर नहीं डाला जा सकता है।
हाथरस सत्संग हादसे में एसडीएम, सीओ समेत छह अफ़सर निलंबित
मंगलवार, 9 जुलाई 2024
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस मामले में एसडीएम, सीओ (क्षेत्राधिकारी) समेत छह अफ़सरों को निलंबित कर दिया है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि हाथरस सत्संग हादसे की जांच के लिए बनी एसआईटी की रिपोर्ट के बाद ये कार्रवाई की गई है।
रिपोर्ट में हादसे के लिए किसी साज़िश से इनकार नहीं किया गया है।
इसमें ये भी कहा कि आयोजकों की लापरवाही से हादसा हुआ। आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों को बुलाया गया लेकिन उनके लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए।
रिपोर्ट के मुताबिक़, स्थानीय पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने आयोजन को गंभीरता से नहीं लिया।
उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बारे में ठीक से जानकारी नहीं दी।
हाथरस हादसे की गहन जांच के लिए न्यायिक आयोग भी अपनी कार्यवाही शुरू कर चुका है।
दो जुलाई 2024 को हाथरस के सिकन्द्राराऊ इलाके में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी जांच के लिए एसआईटी बनाई थी।
'चंद्रशेखर के मृत्यु से एक राजनीतिक युग का अंत हुआ'
सोमवार, 8 जुलाई 2024
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के 17 वें पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता शिवहर की जनता दल यूनाइटेड की सांसद लवली आनंद ने किया।
श्रद्धांजलि कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए लवली आनंद ने चंद्रशेखर को याद करते हुए कहा कि चंद्रशेखर के न रहने से समाजवाद का पौधा सूखता जा रहा है। हमें चंद्रशेखर के वास्तविक उद्देश्यों और उनके समाजवाद को आज की युवा पीढ़ी में एक विचार के रूप में प्रसारित करना चाहिए जिससे चंद्रशेखर के विचार को अमर रखा जा सके।
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के बस्ती के पूर्व सांसद और बहुजन समाज पार्टी के नेता लालमणि प्रसाद ने चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके द्वारा स्वच्छ और निःस्वार्थ राजनीति पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, जनता दल यूनाइटेड के नेता और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए चंद्रशेखर के साथ अपने बिताए हुए दिन को याद किया। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर की स्वच्छ राजनीति की परिकल्पना आज के समय में हास्यापद होगा। चंद्रशेखर भारतीय राजनीति के वो पहलू हैं जिन्होंने कभी कोई दल नहीं छोड़ा बल्कि दलों ने उन्हें छोड़ा है। अपने कार्यकाल में उन्होंने देश को अग्रणी बनाने लिए अहम फैसले लिये।
हरिवंश ने चंद्रशेखर के साथ राजनीति के अनेकों पहलू सीखने का जिक्र करते हुए कहा कि चंद्रशेखर साहस के जीवंत उदाहरण थे। उन्होंने अपने मान्यताओं और उसूलों के साथ कोई समझौता नहीं किया।
बिहार के पूर्व मंत्री अखलाक अहमद ने चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि देश को आजादी गांधी ने दिलाई मगर समाजवाद को धरातल पर जीवंत चंद्रशेखर ने रखा। अखलाक अहमद ने चंद्रशेखर के द्वारा लिखी गई जेल डायरी के कुछ हिस्से का जिक्र करते हुए कहा कि चंद्रशेखर ने इंदिरा सरकार के सामने झुकने से नकार दिया और कहा कि सत्य के लिए लड़ते रहो, मगर सत्ता के आगे मत झुको।
राजस्थान के पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने चंद्रशेखर की तस्वीर को फूल माला से श्रद्धांजलि अर्पित किया। चंद्रशेखर को याद करते हुए राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि अपनी उसूलों के प्रति अडिग रहे। उनका स्वभाव युवाओं में समाजवाद की विचारधारा को गढ़ने का था। उन्होंने अपनी मित्रता में सच्चे साथी के तौर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता भैरव सिंह शेखावत की गिरती हुई सरकार को गिरने से बचाया।
नारद राय ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए चंद्रशेखर के बारे में बताया कि चंद्रशेखर ने अपनी उसूलों से कभी समझौता नहीं किया। क्या खोया? क्या पाया? इससे उनका कोई लेना-देना नहीं था।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राम बहादुर राय ने चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि चंद्रशेखर अमर है। वह अमर इसलिए है कि उन्होंने देश को ऐसी विचारधारा दी है जो कि उनको हमेशा अमर रखेगा।
राम बहादुर राय ने चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने की घटना को एक दुर्घटना बताते हुए कहा कि चंद्रशेखर कभी भी प्रधानमंत्री बनने के लिए राजनीति नहीं करते थे। चंद्रशेखर को हम इसलिए याद करते हैं क्योंकि उन्होंने अपने उसूलों के साथ कोई भी समझौता नहीं किया।
आनंद मोहन ने चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि पुष्प अर्पित करते हुए कहा कि चंद्रशेखर के मृत्यु से एक राजनीतिक युग का अंत हुआ। चंद्रशेखर समाजवाद के सबसे बड़े पुरोधा थे।
भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए गैंग रेप और हत्या मामले में सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को आरोपपत्र दायर कर दिया है।
19 साल की दलित लड़की के साथ हुए अपराध के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों संदीप, लवकुश, रवि और रामू पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं भी लगाई हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अभियुक्तों के वकील ने बताया कि हाथरस की स्थानीय अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है।
सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जाँच कर रही थी और सीबीआई के अधिकारियों ने पूरे मामले में अभियुक्त संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जाँच की।
चारों अभियुक्त फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि चारों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फ़ॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था।
इसके अलावा सीबीआई की जाँच टीम ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से भी बात की थी। ये वही अस्पताल है जहाँ मृतका का इलाज हुआ था।
हाथरस गैंग रेप मामला न सिर्फ़ अपराधियों की बर्बरता की वजह से चर्चा में आया था बल्कि इसमें उत्तर प्रदेश की पुलिस पर मृतका के परिजनों की अनुमति के बिना और उनकी ग़ैरहाज़िरी में लड़की का अंतिम संस्कार करने पर भी विवाद हुआ था।
इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की भी ख़ूब आलोचना हुई थी।
बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत से कहा था कि इलाके में न्याय-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के डर से आनन-फानन में लड़की का अंतिम संस्कार करा दिया गया।
19 साल की लड़की दलित परिवार से थी जबकि चारों अभियुक्त ऊंची जाति से सम्बन्ध रखते हैं।
इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश में व्याप्त जाति-व्यवस्था की उलझनें भी सामने आई थीं जब कुछ गाँवों में अभियुक्तों के पक्ष में महापंचायत बुलाई गई।
इतना ही नहीं, लड़की के गैंग रेप होने को लेकर भी सवाल उठाए गए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ वक़्त के लिए पीड़िता के गाँव में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी।
इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़िता के परिजनों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही थी जिसे लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था क्योंकि आम तौर पर नार्को टेस्ट अभियुक्त पक्ष का होता है।
उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर लचर रवैये के आरोपों के बाद आख़िकार एक विशेष जाँच समिति (एसआईटी) का गठन किया गया था। हालाँकि जाँच का ज़िम्मा बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।
एक अहम फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2020 को दिए आदेश में कहा है कि अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका मज़हब कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार का स्वाभाविक तत्व है।
आदेश को आए 15 दिन हो गए हैं लेकिन इसकी प्रति इसी हफ़्ते उपलब्ध हुई है जिसके बाद इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने यह अहम फ़ैसला सुनाया है।
प्रियांशी उर्फ़ समरीन और अन्य, बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य में दिए गए आदेश और इसके बाद आए नूर जहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में दिए गए आदेशों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ''इनमें से किसी भी आदेश में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने की आज़ादी के अधिकार को नहीं देखा गया है।"
कोर्ट ने आदेश दिया, ''नूर जहां और प्रियांशी के मामलों में दिए गए फ़ैसलों को हम अच्छा क़ानून नहीं मानते हैं।''
आइए नज़र डालते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या अहम बातें कहीं हैं ...
- कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ''हम प्रियंका खरवार और सलामत को हिंदू और मुस्लिम के तौर पर नहीं देखते हैं। इसके बजाय हम इन्हें दो वयस्क लोगों के रूप में देखते हैं जो अपनी इच्छा और चुनाव से शांतिपूर्वक और ख़ुशी से एक साथ रह रहे हैं।''
- "अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, जीवन और निजी आज़ादी के अधिकार में निहित है। निजी संबंधों में दख़ल दो लोगों के चुनाव करने की आज़ादी में गंभीर अतिक्रमण होगा।''
- कोर्ट ने कहा है, "वयस्क हो चुके शख़्स का अपनी पसंद के शख़्स के साथ रहने का फ़ैसला किसी व्यक्ति के अधिकार से जुड़ा है और जब इस अधिकार का उल्लंघन होता है तो यह उस शख़्स के जीवन जीने और निजी आज़ादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है क्योंकि इसमें चुनाव की आज़ादी, साथी चुनने और सम्मान के साथ जीने के संविधान के आर्टिकल-21 के सिद्धांत शामिल हैं।''
- कोर्ट ने अपने फ़ैसले में शफ़ीन जहां बनाम अशोकन केएम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार एक वयस्क हो चुके व्यक्ति की आज़ादी का सम्मान किया है।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया। इसके अलावा कोर्ट ने नंद कुमार बनाम केरल सरकार में आए फ़ैसले का भी हवाला दिया और कहा कि इन फ़ैसलों में साफ़ है कि वयस्क हो चुके शख़्स के पास अपना चुनाव करने की आज़ादी है।
- कोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर के एस पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भी ज़िक्र किया और कहा कि साथी चुनने के अधिकार का जाति, पंथ या मज़हब से कोई लेना-देना नहीं है और यह आर्टिकल-21 के अभिन्न हिस्से जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता में निहित है।
- नूरजहां और ऐसे ही दूसरे मामलों में आए फ़ैसलों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि वयस्क हो चुके शख़्स की मर्ज़ी को अनदेखा करना न केवल चुनाव की आज़ादी के विपरीत होगा बल्कि यह विविधता में एकता के सिद्धांत के लिए भी ख़तरा होगा।
- प्रियांशी और नूरजहां मामलों में आए फ़ैसलों पर कोर्ट ने कहा कि इनमें से किसी भी फ़ैसले में दो परिपक्व लोगों के अपना साथी चुनने या उन्हें किसके साथ रहना है। इसका चुनाव करने की आज़ादी के जीवन और आज़ादी से जुड़े मसले को ध्यान में नहीं रखा गया है। कोर्ट ने आगे कहा है कि नूर जहां और प्रियांशी मामलों में आए फ़ैसले क़ानून के लिहाज़ से अच्छे नहीं हैं।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने अपने इसी आदेश में टिप्पणी की है, "हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर क़ानून दो समलैंगिक लोगों को शांतिपूर्वक एक साथ रहने की इजाज़त देता है तो न तो किसी शख़्स न ही किसी परिवार या यहां तक कि राज्य को भी दो वयस्क लोगों को अपनी इच्छा से एक साथ रहने पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।''
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला और पृष्ठभूमि
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, ''इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया जजमेंट में जो एफ़आईआर ख़ारिज की गई है वह इस बात पर आधारित है कि क्या दो वयस्क लोग आर्टिकल-21 के तहत एक साथ रह सकते हैं या नहीं?"
त्रिपाठी कहते हैं कि ''जहां तक शादी की बात है तो शादी का धर्म से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध इच्छा से है। और इच्छा का संबंध आर्टिकल-21 की लिबर्टी से है। ऐसे में पहले के फ़ैसलों के मुक़ाबले इस फ़ैसले में ज़्यादा स्पष्टता है।''
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला बहुत अच्छा है और इसमें निजता की स्वतंत्रता और इच्छा की स्वतंत्रता को आधार बनाया गया है।
इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि सलामत अंसारी और तीन अन्य की तरफ़ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल की गई थी। सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया ने दो अन्य लोगों के साथ हाईकोर्ट में उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर को ख़ारिज करने की माँग की थी।
इस मामले में प्रियंका धर्म परिवर्तन कर आलिया बन गई थीं और और उन्होंने सलामत अंसारी से निकाह कर लिया था। इसके विरोध में प्रियंका के पिता ने एफ़आईआर दर्ज करा दी थी। इस एफ़आईआर में 363, 366, 352 समेत पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 भी लगाई गई थीं। इसमें सलामत, उनके भाई और उनकी मां को आरोपी बनाया गया था।
कोर्ट ने प्रियंका उर्फ़ आलिया की जन्मतिथि देखी और पाया गया कि वो वयस्क हैं। आनंद कहते हैं कि ऐसे में पॉक्सो के सारे एक्ट ख़ारिज हो गए। साथ ही ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली धाराओं को कोर्ट ने माना कि इन्हें फँसाने के लिए लगाया गया है।
सलामत अंसारी की ओर से हाईकोर्ट में तर्क दिया गया था कि सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया वयस्क हैं और शादी करने के लिए योग्य हैं। इस पक्ष ने कहा कि प्रियंका के अपनी हिंदू पहचान को छोड़ने और इस्लाम अपनाने के बाद इन दोनों ने 19.8.2019 को मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह कर लिया था।
दोनों लोग बीते एक साल से बतौर पति-पत्नी साथ रह रहे हैं। दोनों ने कहा कि प्रियंका के पिता ने ग़लत मक़सद से उनके विवाह को ख़त्म करने के लिए यह एफ़आईआर दर्ज कराई है और चूंकि इन दोनों ने कोई अपराध नहीं किया है, ऐसे में यह एफ़आईआर ख़ारिज की जानी चाहिए।
दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया कि शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन निषिद्ध है और इस तरह से हुई शादी की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में कोर्ट को इन लोगों को किसी तरह की राहत नहीं देनी चाहिए।
आनंद कहते हैं कि सरकार ने पिछले दो फ़ैसलों के आधार पर सलामत को राहत न देने की माँग की थी। आनंद कहते हैं, ''कोर्ट ने कहा कि जब इन दो वयस्क लोगों ने साथ रहने का तय कर लिया तो हमें आर्टिकल-21 का आदर करना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने इस एफ़आईआर को ख़ारिज कर दिया।''
नूरजहां और प्रियांशी के मामले
सितंबर 2020 में प्रियांशी के मामले में सिंगल बेंच ने 2014 में नूरजहां बेगम उर्फ़ अंजली मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का ज़िक्र किया था जिसमें कहा गया था कि महज़ शादी के मक़सद से किया गया धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है।
नूरजहां बेगम मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादीशुदा जोड़े के तौर पर सुरक्षा की दरकार के लिए दायर की गई याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था। इस मामले में भी लड़की ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया था और इसके बाद निकाह कर लिया था।
इसी तरह के चार अन्य मामले भी कोर्ट के सामने आए थे।
इन मामलों में महिलाएं अपने कथित धर्म परिवर्तन को प्रमाणित नहीं कर पाई थीं क्योंकि वे इस्लाम की समझ को साबित करने में नाकाम रही थीं। ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया था कि ये कथित शादी अवैध हैं क्योंकि इसे एक ऐसे धर्म परिवर्तन के बाद किया गया था जिसे क़ानून के मुताबिक़ जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है।
आनंद कहते हैं, ''लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने इस फ़ैसले में कहा है कि जब एक बार यह साबित हो गया था कि शादी करने वाले दोनों लोग वयस्क हैं तो कोर्ट को इनके मज़हब पर जाना ही नहीं चाहिए था।''
हालिया फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में ऐसे ही पिछले मामलों में आए फ़ैसलों का ज़िक्र किया है।
योगी सरकार का जबरन धर्मांतरण रोकने का अध्यादेश
हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने के बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 24 नवंबर 2020 को 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' को मंज़ूरी दे दी है।
इस क़ानून के अनुसार 'जबरन धर्मांतरण' उत्तर प्रदेश में दंडनीय होगा। इसमें एक साल से 10 साल तक जेल हो सकती है और 15 हज़ार से 50 हज़ार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
योगी सरकार के इस अध्यादेश के अनुसार 'अवैध धर्मांतरण' अगर किसी नाबालिग़ या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिलाओं के साथ होता है तो तीन से 10 साल की क़ैद और 25 हज़ार रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता विनोद मिश्रा कहते हैं, "सरकार ने इस क़ानून के ज़रिए जबरन धर्मांतरण या दूसरी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश की है। सरकार कथित 'लव जिहाद' पर लगाम लगाना चाहती है।"
क्या टकराव पैदा होगा?
क्या उत्तर प्रदेश सरकार के लाए गए 'अवैध धर्मांतरण' रोकने के क़ानून और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के बीच आने वाले दिनों में टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है?
इस मसले पर हाईकोर्ट में एडवोकेट अरविंद कुमार त्रिपाठी कहते हैं, "अभी ये कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि सरकार ने जो अध्यादेश पास किया है जो अभी न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं बना है। जब तक इस पर केस फ़ाइल नहीं होता तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि ये दोनों फ़ैसले एक-दूसरे से टकरा सकते हैं या नहीं।"
त्रिपाठी कहते हैं, "दिलचस्प बात यह है कि जिस कथित लव जिहाद को लेकर माहौल बनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इस अध्यादेश को पेश किया है वह ज्यूडिशियल रिव्यू में टिक नहीं पाएगा. लेकिन, जब इसे चैलेंज किया जाएगा तब स्थिति साफ़ होगी।"
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि योगी सरकार का लाया गया क़ानून दरअसल ज़बरदस्ती होने वाले धर्मांतरण पर है और इसे 'लव जिहाद' का क़ानून कहना सही नहीं होगा।
वह कहते हैं, "उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश ज़बरदस्ती होने वाले धर्म-परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। अब अगर कभी इस क़ानून का दुरुपयोग होता है तो इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फ़ैसला एक दीवार बनकर काम करेगा।"
वह कहते हैं कि इस तरह के मामलों में एक पक्ष कहेगा कि यह जबरन धर्मांतरण है जबकि दूसरा पक्ष इसे सहमति से बताएगा। ऐसे में योगी सरकार के क़ानून के ग़लत इस्तेमाल पर हाईकोर्ट का फ़ैसला ढाल का काम करेगा।
आने वाले वक़्त में यह साफ़ हो सकेगा कि योगी सरकार के लाए गए अध्यादेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला कैसे प्रभावित करेगा?
डिस्क्लेमर: भारत के ''मौजूदा क़ानून में 'लव जिहाद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी की ओर से 'लव जिहाद' का कोई मामला सूचित नहीं किया गया है।''
रिपोर्ट की शुरुआत में इस तरह के डिस्क्लेमर का ख़ास संदर्भ है। कई राजनीतिक नेता इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन ऊपर लिखा वाक्य भारत के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी की तरफ़ से चार फ़रवरी 2020 को लोकसभा में दिए गए एक तारांकित प्रश्न के जवाब का अंश है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अंतर-धार्मिक विवाह के ख़िलाफ़ एक अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है। भारतीय जनता पार्टी की चार और राज्य सरकारें इसी तरह के अध्यादेश लाने की बात कर चुकी हैं।
भारत में इस मुद्दे पर ज़ोरों से बहस छिड़ी हुई है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस कथित जबरन अंतर-धार्मिक शादी (जिसे बीजेपी लव जिहाद कहती है) के अध्यादेश के विरोध को अपने पन्नों पर जगह दी है।
सिंगापुर के स्ट्रैट टाइम्स अख़बार ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया है कि ''लव जिहाद'' लाने की बात करने वाले पाँच राज्य वो हैं जहाँ बीजेपी की सरकारें हैं। अख़बार के अनुसार उत्तर प्रदेश में लाए गए अध्यादेश और दूसरे चार राज्यों में इस पर प्रस्ताव से ''लव जिहाद'' के मुद्दे को हवा मिलेगी।
अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में योगी आदित्यनाथ के बयानों को काफ़ी जगह दी है। 24 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश में इस पर एक अध्यादेश को मंज़ूरी मिली है।
अख़बार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के 31 अक्टूबर 2020 वाले एक बयान को प्रमुखता से छापा है। अख़बार ने लिखा है, ''योगी आदित्यनाथ, एक हिन्दू पुरोहित जो भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, 31 अक्टूबर 2020 को एक चुनावी सभा में कहते हैं कि सरकार 'लव जिहाद' को रोकने के लिए एक फ़ैसला ले रही है। हम उन लोगों को वार्निंग देते हैं जो अपनी शिनाख़्त को छिपाते हैं और हमारी बहनों की बेइज़्ज़ती करते हैं। अगर आप बाज़ नहीं आए तो आपका अंतिम संस्कार जल्द होगा।''
'यूएस न्यूज़' नाम की अमेरिका की एक मीडिया आउटलेट ने लखनऊ डेटलाइन से ताज़ा अध्यादेश पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''भारतीय राज्य ने विवाह के लिए 'जबरन' धर्म परिवर्तन को अपराध ठहराया।''
आलोचकों के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है, ''आलोचक कहते हैं कि योगी की कैबिनेट ने जिस ग़ैर-क़ानूनी धर्म परिवर्तन वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दी है उसका उद्देश्य भारत के 17 करोड़ मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग करना है।''
अख़बार ने इस रिपोर्ट में तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां के एक बयान को भी जगह दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि ''लव जिहाद'' नाम की कोई चीज़ है ही नहीं और ये बीजेपी की केवल एक सियासी चाल है।
अल-जज़ीरा ने अपनी वेबसाइट पर इसे जगह दी है और पश्चिमी देशों के कई अख़बारों की वेबसाइट ने भी इस ख़बर को छापा है।
अधिकतर मीडिया आउटलेट भारत में इससे जुड़े मुद्दों को भी साझा कर रहे हैं। अल-जज़ीरा ने अक्टूबर 2020 में हुई उस घटना का हवाला दिया है जिसमें तनिष्क जेवेलरी स्टोर को वो विज्ञापन हटाना पड़ा था जिसमें एक हिन्दू बहू को उसके मुस्लिम पति के साथ दिखाया गया था।
फ़र्स्टपोस्ट वेबसाइट ने नेटफ्लिक्स में दिखाई जा रही मीरा नायर की फ़िल्म 'ऐ सूटेबल बॉय' में एक मंदिर के अंदर एक चुंबन दृश्य पर हुए विवाद को ''लव जिहाद'' के अध्यादेश से जोड़ते हुए भारत में बढ़ते असहिष्णुता पर रिपोर्टिंग की है।
इस किसिंग सीन में एक मुस्लिम युवा एक मंदिर के अंदर अपनी हिन्दू गर्लफ़्रेंड को चूमते हुए दिखाई देता है जिसके ख़िलाफ़ कुछ हिन्दू संस्थाओं ने पुलिस से शिकायत दर्ज की है। मध्य प्रदेश में नेटफ्लिक्स के कुछ अधिकारियों के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की जा चुकी है।
लव जिहाद क्या है?
हिन्दू राइट विंग संस्थाएं 'लव जिहाद' ऐसे प्रेम विवाह को कहती हैं जिसमें एक मुस्लिम मर्द एक हिन्दू औरत से शादी करके उसे इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर करता है। अगर उल्टा हो यानी एक मुस्लिम औरत एक हिन्दू मर्द से शादी करे तो इस पर कुछ हिन्दू संस्थाएं ख़ामोश हैं तो कुछ संस्थाएं ऐसी शादियों का बढ़चढ़ कर समर्थन करती हैं।
भारत सरकार और निजी सामाजिक संस्थाओं के पास इन शादियों के आंकड़ें नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक़ ऐसी शादियाँ तीन प्रतिशत से भी कम हैं।
सरकारी एजेंसियों की कई रिपोर्टों में हिन्दू औरत और मुस्लिम मर्द के बीच विवाह में 'जिहाद' के इल्ज़ाम ग़लत पाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद बीजेपी की पाँच राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए क़ानून का सहारा ले रही हैं।
इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल कहाँ और कब हुआ? ये कहना मुश्किल है लेकिन 2009 के आसपास कर्नाटक और केरल में इस शब्द के इस्तेमाल की मिसाल मिलती हैं जहाँ के कुछ हिंदू और ईसाई संस्थानों को मुस्लिम मर्दों द्वारा हिन्दू या ईसाई महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए धोखा देकर शादी करने की साज़िश का उल्लेख किया गया है।
भारत में अंतर-धार्मिक शादियाँ स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत होती हैं जिसके लिए अदालत में शादी रजिस्टर करानी पड़ती है और इससे पहले अदालत एक महीने का नोटिस जारी करती है ताकि किसी को इस विवाह से आपत्ति हो तो अदालत को बता सकते हैं।
''लव जिहाद'' शब्द के प्रचलन से पहले सालों से दक्षिणपंथी हिन्दू संस्थाएं अदालत में ऐसी शादियों का विरोध करते आए थे जिसमें जोड़े को धमिकयां भी दी जाती थीं लेकिन ये इतना सार्वजनिक तरीक़े से नहीं किया जाता था।
"लव जिहाद" के ख़िलाफ़ मुहिम के अंतर्गत हिन्दू-मुस्लिम शादियों का खुल कर विरोध होना शुरू हो गया, ख़ास तौर से उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार संस्थाओं और मीडिया ने इसे एक नागरिक के मौलिक अधिकारों पर प्रहार बताया है।
भारत में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि देश के नागरिकों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हो।
इंग्लिश डेली न्यूज़ पेपर हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन पर आपत्ति जताने वाले पिछले दो फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं थे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और विवेक अग्रवाल की दो जजों की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रहने वाले सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये कहा।
प्रियंका ने अपना धर्म परिवर्तन किया था और उनके पिता ने पुलिस में इस बाबत शिकायत की थी। पुलिस की कार्रवाई को निरस्त करने के लिए पति-पत्नी दोनों ने अदालत की शरण ली।
हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि यह फ़ैसला अदालत ने 11 नवंबर 2020 को ही दे दिया था लेकिन इसे सार्वजनिक 23 नवंबर 2020 को किया गया है।
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार अब जबकि उत्तर प्रदेश सरकार शादी के लिए धर्म परिवर्तन से जुड़ा एक क़ानून बनाने की योजना पर काम कर रही थी तो हाई कोर्ट का यह फ़ैसला उसके लिए समस्या पैदा कर सकता है।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 जुलाई की रात 10 बजे से लेकर 13 जुलाई की सुबह पांच बजे तक लॉकडाउन लागू करने का एलान किया है।
राज्य सरकार के मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश के मुताबिक कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के चलते यह क़दम उठाया गया है।
इस दौरान सभी तरह के शहरी, ग्रामीण हाट, बाज़ार, गल्ला, मंडी और व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रहेंगे।
उत्तर प्रदेश के अंदर रोडवेज की बसों की आवाजाही नहीं होगी, हालांकि रेलवे सेवा पूर्व की भांति जारी रहेगी।
उत्तर प्रदेश में बीते 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 1248 मामले सामने आए हैं। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक अभी कोरोना के 10,373 मरीज़ों का इलाज चल रहा है जबकि 21,127 मरीज़ ठीक हो चुके हैं।
कोरोना से उत्तर प्रदेश में अब तक 862 लोगों की मौत हो चुकी है।
मध्य प्रदेश में अब हर रविवार को लॉकडाउन लागू रहेगा
मध्यप्रदेश सरकार ने अब हर रविवार को प्रदेश में लॉकडाउन का फ़ैसला लिया है। यह फ़ैसला प्रदेश में तेज़ी से बढ़ रहे संक्रमण की वजह से लिया गया है।
वहीं सरकार ने भोपाल के साथ ही सभी ज़िलों के कलेक्टरों को एडवाइज़री जारी की है ताकि ज़रुरत पड़ने पर वह सीमाएं सील कर सकते है।
बुधवार को प्रदेश में एक दिन में 409 नये केस आए हैं। बीते तीन दिन में प्रदेश में 1106 संक्रमित मरीज़ पाये गए हैं। इंदौर में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा 5000 के पार हो गया है।
वहीं भोपाल में 44 नए मरीज़ मिले हैं। यह एक हफ्ते में पहला मौका है जब संक्रमितों की संख्या 50 से नीचे गई है।
लाइव: राजीव शुक्ला द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उत्तर प्रदेश शिक्षक भर्ती घोटाला और भारत में तालाबंदी पर ए आई सी सी प्रेस वार्ता
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को रात आठ बजे देश को संबोधित करते हुए उसी मध्यरात्रि से अगले 21 दिन तक के लिए पूरे देश में 'टोटल लॉकडाउन' का ऐलान किया था लेकिन भारत की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बुधवार की शाम को जो अफ़रा-तफ़री दिखी उसने लॉकडाउन के उद्देश्य को ही ख़तरे में डाल दिया है।
बहरहाल, सामान ख़रीदने की जो होड़ पीएम की घोषणा के बाद दिखी थी, कुछ वैसा ही मंज़र फिर 8 अप्रैल की शाम उत्तर प्रदेश में दिखा। दोपहर से ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि उत्तर प्रदेश के कोरोना प्रभावित ज़िलों को सील कर दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश के लगभग हर ज़िले में दोपहर से ही लोगों में राशन, सब्ज़ियाँ, दूध और दवाइयाँ ख़रीदने की होड़ मच गई क्योंकि सोशल मीडिया और कुछ न्यूज़ चैनलों पर ऐसी ख़बरें चल रहीं थी कि प्रदेश सरकार कई ज़िलों को पूरी तरह सील करने जा रही है।
सील किए जाने का मतलब क्या है और वे ज़िले कौन से होंगे इसको लेकिन स्पष्ट जानकारी की कमी दोपहर बाद तक थी जबकि लोगों में घबराहट फैलनी शुरू हो गई थी।
दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को राज्य के कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित 15 ज़िलों में 104 हॉट स्पॉट यानी सबसे संवेदनशील इलाक़ों को पूरी तरह से सील करने का फ़ैसला किया। लेकिन फ़ैसले की घोषणा करने के तरीक़े से शुरुआती कुछ घंटों तक लोगों में इस बात का भ्रम बना रहा कि उनके इलाक़े का क्या होगा।
लखनऊ से इस बात की जानकारी शाम सवा चार बजे राज्य के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने दी। उनके साथ राज्य के पुलिस महानिदेशक हितेश अवस्थी और प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अमित मोहन प्रसाद भी उपस्थित थे।
लेकिन इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस के पहले ही, कुछ समाचार माध्यमों में राज्य के मुख्य सचिव आर के तिवारी के हवाले से ये ख़बर चली कि 15 ज़िलों को पूरी तरह से सील किया जाएगा। इस ख़बर के फ़ौरन बाद नोएडा, ग़ाज़ियाबाद और लखनऊ समेत तमाम जगहों पर अफ़रा-तफ़री मच गई।
लोग दोपहर तीन बजे से ही राशन की दुकानों के बाहर जमा होने लगे। कुछ जगहों पर तो पुलिस को बल प्रयोग भी करना पड़ा। मुख्य सचिव आर के तिवारी ने कुछ टीवी चैनल वालों को इस बारे में बाइट दी और कहा, "लॉकडाउन तो पूरे देश में और उत्तर प्रदेश में ही लागू है लेकिन 15 ज़िले जहां लोड काफ़ी ज़्यादा है, इसलिए यहां जो भी प्रभावित क्षेत्र हैं, उन सभी जगहों को सील करने के निर्देश दिए गए हैं।''
मुख्य सचिव ने हॉट स्पॉट शब्द का प्रयोग नहीं किया, लेकिन उनकी बातों से ये साफ़ था कि वो पंद्रह ज़िलों के क्षेत्र विशेष को ही पूरी तरह से सील या लॉकडाउन करने की बात कर रहे हैं लेकिन टीवी चैनलों पर काफ़ी देर तक यही ख़बर प्रसारित होती रही कि पंद्रह ज़िले पूरी तरह से सील कर दिए जाएंगे।
मुख्य सचिव ने यह स्पष्ट किया था कि इन जगहों पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सरकार सुनिश्चित करेगी। दरअसल, कोरोना संक्रमण से संबंधित जो भी ताज़ा जानकारी होती है या फिर सरकार के फ़ैसले होते हैं, उनकी जानकारी शाम चार बजे प्रेस ब्रीफ़िंग के ज़रिए दी जाती है जिसे अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी देते हैं।
बुधवार को जब मुख्य सचिव के बयान से भ्रम और अफ़रा-तफ़री की स्थिति उत्पन्न हुई, उसके बाद पत्रकारों ने अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी से इस बारे में जानना चाहा। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि 15 ज़िलों के केवल हॉट स्पॉट्स यानी विशेष तौर पर चिह्नित इलाक़ों को ही सील किया जाएगा।
अवनीश अवस्थी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भी इन आशंकाओं और अफ़वाहों की चर्चा की लेकिन तब तक अफ़रा-तफ़री मच चुकी थी। बताया जा रहा है कि इसके पीछे सरकार में उच्च स्तर पर बैठे अधिकारियों के बीच निश्चित तौर पर संवादहीनता या फिर तालमेल की कमी है।
सवाल इस बात पर भी उठ रहे हैं कि जब शाम चार बजे प्रेस ब्रीफ़िंग होनी ही थी तो मुख्य सचिव को मीडिया में आने की क्या ज़रूरत थी? सवाल ये भी उठता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के इस नए क़िस्म के 'हाट्स्पॉट सीलिंग' की घोषणा के तरीक़े और कुछ समाचार माध्यमों में इसकी 'ब्रेकिंग न्यूज़' चलने से पहले सरकार ने नहीं सोचा कि इसके क्या परिणाम होंगे?