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एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

बुधवार, 20 मार्च 2024

वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सफलतापूर्वक कोशिका से एचआईवी को निकाल कर अलग किया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, उन्होंने नोबेल प्राइज़ जीतने वाली क्रिस्पर जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर संक्रमित कोशिका से एचआईवी को काटकर अलग किया है।

उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल कर मॉलिक्यूलर स्तर पर कैंची की तरह डीएनए से काट कर संक्रमित हिस्सों को अलग किया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एमस्टरडैम की टीम का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस तरीक़े से शरीर से एचआईवी संक्रमण को निकाला जा सकता है।

हालांकि इसी सप्ताह एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में इससे संबंधित शोध के बारे में और जानकारी देते हुए टीम ने कहा कि मौजूदा शोध इस ''कॉन्सेप्ट'' को साबित करता है कि इस तरह से कोशिका के डीएनए से संक्रमित हिस्सा निकाला जा सकता है लेकिन इस तरीके से जल्द एचआईवी का इलाज हो सकेगा ऐसा नहीं है।

एचआईवी को लेकर अब तक जो दवाएं मौजूद हैं वो इसे फैलने से रोककर इसका इलाज करती हैं, लेकिन वो इसे पूरी तरह से शरीर से ख़त्म नहीं कर सकतीं।

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

इंग्लैंड में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पता लगाया है कि किसी मरीज के पूर्ण जेनेटिक मेकअप से कैंसर के बेहतर इलाज में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं।

ये अध्ययन नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इसमें 13 हजार से ज़्यादा मरीजों की जानकारियों का विश्लेषण किया गया है।

इसमें ट्यूमर के विकास के पीछे म्यूटेशन का विश्लेषण और डीएनए का अध्ययन ये देखने के लिए किया गया है कि मरीज कहीं इस तरह के जीन के साथ पैदा तो नहीं हुआ जिसकी वजह से इस बीमारी का ख़तरा बढ़ गया।

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मस्तिष्क ट्यूमर, 50 फ़ीसदी आंत और फेफड़े के कैंसर में जेनेटिक बदलाव होते हैं जिससे मरीज के इलाज जैसे कि सर्जरी और खास तरह के इलाज पर असर पड़ता है।

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है।

ये तीनों वैज्ञानिक अमेरिका में रहते हैं।

नोबेल पुरस्कार विजेताओं में मोंगी जी बावेंडी, लुईस ई ब्रूस और एलेक्सी आई एकिमोव है जो 8.24 लाख पाउंड का पुरस्कार साझा करेंगे।

क्वांटम डॉट्स क्या है?

अधिकांश लोगों ने शायद अपने टीवी सेट पर छोटे क्रिस्टल को देखा होगा जिनके छोटे-छोटे बिंदु मिलकर रंग बनाते हैं।

असल में ये क्वांटम डॉट्स अति सूक्ष्म होते हैं और एक मिलीमीटर में इनकी संख्या दसियों लाख हो सकती है।

रूसी भौतिकशास्त्री एलेक्सेई आई एकिमोव को 1980 के दशक में क्वांटम डॉट्स की खोज का श्रेय दिया जाता है और बाद में एक अमेरिकी केमिस्ट लुईस ई ब्रूस ने पता लगाया कि द्रव में क्रिस्टल को पैदा किया जा सकता है।

इसके बाद पेरिस मूल के मोंगी जी बावेंडी ने क्वांटम डॉट्स कणों को और नियंत्रित तरीके से बनाने की विधि खोजी।

इन क्वांटम डॉट्स का इस्तेमाल कैंसर की दवाओं के बेहतर प्रयोग और सर्जरी के लिए मेडिकल इमेजिंग और सोलर पैनल्स में भी होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दी: एसआईआई

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है।

डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन के प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल के डेटा के आधार पर ये मंज़ूरी दी है। परीक्षणों में ये टीका चार देशों में काफ़ी असरदार पाया गया।

समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के अनुसार एसआईआई ने एक बयान में कहा है कि यह बच्चों को मलेरिया से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी पाने वाला दुनिया का दूसरा टीका बन गया है।

इस आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन को एसआईआई ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया है।

एसआईआई ने कहा है कि उसने हर साल टीके की 10 करोड़ खुराक के उत्पादन की व्यवस्था कर ली है और अगले दो सालों में ये उत्पादन दोगुना हो जाएगा।

फिलहाल ये वैक्सीन घाना, नाइजीरिया और बुर्किना फासो में इस्तेमाल की जा रही है। लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी के बाद इसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जा सके।

तीन वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला

साल 2023 के भौतिकी का नोबेल प्राइज़ प्रकाश के 'सबसे छोटे क्षणों' को कैप्चर करने के लिए 'प्रयोग' करने वाले वैज्ञानिकों को मिला है। पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक हैं - पियर अगस्तिनी, फ़ेरेंक क्राउज़ और एन ल'हुलिए।

इन वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के ज़रिए दिखाया कि कैसे प्रकाश की बेहद सूक्ष्म तरंगे संरचित की जा सकती हैं और इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा परिवर्तन की तीव्र प्रक्रिया को मापने के लिए किया जा सकता है।

प्रोफ़ेसर पियर अगस्तिनी अमेरिकी ओहायो यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर फ़ेरेंक क्राउज़ जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में क्वांटम ऑपटिक्स पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर एन ल'हुलिए स्वीडन की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं।

एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों को मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार

मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिकों की उस जोड़ी को देने का ऐलान किया गया है जिसने एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद की।

ये दो वैज्ञानिक डॉ. कैटालिन कारिको और डॉ. ड्रियू वाइसमैन हैं।

इस तकनीक के प्रयोग कोविड महामारी से पहले किए गए थे लेकिन बाद में इसे दुनिया भर के लाखों लोगों को दिया गया।

कैंसर समेत अन्य रोगों को लेकर इसी एमआरएनए तकनीक पर आगे और शोध किए जा रहे हैं।

एमआरएनए यानी मैसेंजर रायबोन्यूक्लिक एसिड शरीर को प्रोटीन बनाने का तरीक़ा बताती है।

वियतनाम में मिला कोरोना वायरस वैरिएंट हवा के ज़रिए तेज़ी से फैलता है

वियतनाम में कोरोना वायरस का एक ऐसा वैरिएंट पाया गया है जो भारत और ब्रिटेन में पहले पाए गए वैरिएंट्स का मिलाजुला रूप है। अधिकारियों का कहना है कि यह हवा के ज़रिए तेज़ी से फैलता है।

वियतनाम के स्वास्थ्य मंत्री गुयेन थान्ह लॉन्ग ने शनिवार, 29 मई 2021 को कहा कि कोरोना का ये नया वैरिएंट बहुत ही ख़तरनाक है।

वायरस हमेशा अपना रूप बदलता है, यानी म्यूटेट करता है। ज़्यादातर वैरिएंट्स बहुत प्रभावी नहीं होते हैं लेकिन कुछ वायरस म्युटेशन के बाद ज़्यादा संक्रामक हो जाते हैं।

जनवरी 2020 में सीओवीआईडी-19 के वायरस की पहचान के बाद से अब तक इसके कई म्यूटेशन्स सामने आ चुके हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार वियतनाम के स्वास्थ्य मंत्री ने सरकार की एक बैठक में कहा, ''वियतनाम में कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट मिला है, जो ब्रिटेन और भारत में सबसे पहले मिले वायरस वैरिएंट का मिलाजुला रूप है।''

उन्होंने कहा, ''नया वैरिएंट पहले वाले की तुलना में ज़्यादा संक्रामक है। यह हवा में तेज़ी से फैलता है। नए मरीज़ों की जाँच के बाद यह वैरिएंट सामने आया है। इस वायरस का जेनेटिक कोड जल्द उपलब्ध होगा।''

भारत में अक्टूबर 2020 में कोरोना वायरस एक वैरिएंट मिला था। इस वैरिएंट को B.1.617 कहा जा रहा है। इसे यूके में मिले कोरोना वैरिएंट B.1.1.7 से ज़्यादा ख़तरनाक बताया जा रहा है।

रिसर्च के अनुसार फ़ाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की दो डोज भारत में मिले वायरस वैरिएंट के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा प्रभावी हैं। लेकिन इन वैक्सीन की एक डोज़ इसके ख़िलाफ़ अधिक प्रभावी नहीं है।

अभी तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस के किसी म्यूटेशन के कारण बड़ी आबादी में गंभीर बीमारी फैली हो।

कोरोना वायरस के मूल वर्जन को ही ज़्यादा उम्र वालों और पहले से बीमार लोगों के लिए अधिक ख़तरनाक बताया गया है। लेकिन बिना वैक्सीन के वायरस ज़्यादा संक्रामक हो रहा है और इसके कारण ज़्यादा मौतें हो रही हैं।

वियतनाम में हाल के हफ़्तों में कोरोना के नए मामले तेज़ी से बढ़े हैं।  वियतनाम में महामारी शुरू होने के बाद से अब तक 6,700 से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन इनमें से आधा से ज़्यादा मामले अप्रैल 2021 के बाद दर्ज किए गए हैं। कोरोना से अब तक यहां 47 लोगों की मौत हुई है।

पर्सिवियरेंस रोवर मंगल ग्रह पर उतरा: मंगल पर जीवन की खोज करेगा

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अंतरिक्षयान पर्सिवियरेंस मंगल ग्रह की सतह पर उतर चुका है।

मंगल तक पहुंचने के लिए सात महीने पहले धरती से गए इस अंतरिक्षयान ने तक़रीबन आधा अरब किलोमीटर की दूरी तय की है। 'पर्सिवियरेंस रोवर' मंगल ग्रह पर एक गहरे क्रेटर यानी गड्ढ़े में उतरा है जो कि मंगल ग्रह की भूमध्य रेखा जेज़ेरो के नज़दीक है।

मंगल ग्रह की सतह पर उतरने के बाद रोवर ने एक तस्वीर ट्वीट की है। ये रोवर एक पुरानी सूख चुकी झील की ज़मीन की जांच करने के साथ-साथ अरबों साल पहले मंगल पर माइक्रो-ऑर्गानिज़्म्स की किसी भी गतिविधि यानी जीवन के होने के चिन्हों की जांच करेगा और उन्हें पृथ्वी पर भेजेगा।

ये अंतरिक्षयान जैस ही मंगल ग्रह की ज़मीन पर उतरा, वैसे ही नासा के कंट्रोल सेंटर में बैठे वैज्ञानिकों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। 1970 के बाद नासा का यह पहला मिशन है जो मंगल ग्रह पर जीवन के निशान तलाशने के लिए गया है।

मिशन के डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर मैट वालेस ने कहा, ''अंतरिक्षयान की अच्छी ख़बर ये है कि मुझे लगता है कि ये बिल्कुल सही हालत में है।''

छह पहियों वाला ये रोवर आगामी 25 महीनों में मंगल के पत्थरों और चट्टानों की खुदाई करेगा ताकि उन सबूतों को तलाशा जा सके जो इस बात की ओर इशारा करते हों कि यहां कभी जीवन संभव था।

ऐसा माना जाता है कि अरबों साल पहले जेज़ेरो के पास एक विशाल झील हुआ करती थी। और जहां पानी होता है, वहां इस बात की संभावना रहती है कि वहां कभी जीवन भी रहा होगा।

नासा में अंतरिक्षयान नियंत्रित करने वालों को संकेत मिले थे कि 'पर्सिवियरेंस रोवर' शाम 8:55 (जीएमटी) पर सुरक्षित मंगल ग्रह पर उतर चुका है।

सामान्य दिन होते तो खुशी के मौक़े पर वो संभवत: गले मिलते और हाथ मिलाते। लेकिन कोरोना वायरस प्रोटोकॉल की वजह से यहां सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है। हालांकि, मिशन के सदस्यों ने एक दूसरे से मुट्ठियां लड़ाकर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया।

इसके बाद रोवर के इंजीनियरिंग कैमरों की ओर से ली गई मंगल की दो लो-रिज़ॉल्युशन तस्वीरें स्क्रीन पर सामने आईं। तस्वीरों से पता चलता है कि कैमरे के लेंस के आगे काफ़ी धूल जमी थी लेकिन रोवर के सामने और पीछे समतल ज़मीन दिखाई दी।

लैंडिंग के बाद किए गए विश्लेषण में सामने आया है कि रोवर जेज़ेरो में डेल्टा क्षेत्र के दक्षिणपूर्वी हिस्से की ओर दो किलोमीटर का सफर तय कर चुका है।

लैंडिंग टीम का नेतृत्व करने वाले एलन चैन कहते हैं, ''हमारा रोवर समतल क्षेत्र में है। अब तक वाहन 1.2 डिग्री पर झुका है। हमें रोवर को उतारने के लिए जगह मिल गई और हमने आसानी से अपना रोवर ग्राउंड पर उतार दिया। इस उल्लेखनीय काम के लिए मैं अपनी टीम पर बहुत गर्व करता हूं।''

नासा के अंतरिम प्रशासक स्टीव जर्केज़्क ने भी इस सफलता के लिए वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी है।

उन्होंने कहा है, ''टीम ने बेहतरीन काम किया है। कितनी शानदार टीम है ये जिसने सीओवीआईडी-19 की चुनौतियों के बीच रोवर को मंगल ग्रह पर उतारने की मुश्किलों पर पार पाते हुए ये काम कर दिखाया।''

नासा की जेट प्रोपल्शन लैब के निदेशक माइक वाटकिंस ने कहा है, ''हमारे लिए ये शुरुआती दिन बेहद ख़ास हैं क्योंकि हमने इस रोवर के रूप में पृथ्वी के एक प्रतिनिधि को मंगल ग्रह पर ऐसी जगह पर उतारा है, जहां पहले कोई कभी नहीं गया।''

मंगल ग्रह पर उतरना कभी आसान नहीं रहा। लेकिन नासा इस मामले में विशेषज्ञ की तरह बन चुकी है। हालांकि, पर्सिवियरेंस टीम ने गुरुवार, 18 फरवरी 2021 को अपने काम को लेकर बेहद संभल कर बात की।

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की ओर से मंगल ग्रह पर उतारा गया ये दूसरा एक टन वज़न का रोवर है।

मंगल ग्रह पर हेलिकॉप्टर उड़ेगा?

इससे पहले क्युरियोसिटी रोवर को साल 2012 में मंगल ग्रह के एक दूसरे क्रेटर पर उतारा गया था।

नियंत्रक आने वाले दिनों में एक नये रोवर पर काम करेंगे और देखने की कोशिश करेंगे कि कहीं ज़मीन पर उतरने की प्रक्रिया में रोवर का कोई पुर्जा क्षतिग्रस्त तो नहीं हो गया है।

तस्वीरें लेने के लिए पर्सिवियरेंस का मास्ट और इसका मुख्य कैमरा सिस्टम ऊपर की तरफ उठा हुआ होना चाहिए। साथ ही रोवर को एक ख़ास सॉफ़्टवेयर के ज़रिए मंगल तक पहुंचाया गया है, इस सॉफ़्टवेयर को भी अब बदला जाना होगा ताकि रोवर को मंगल की सतह पर चलाने का प्रोग्राम चालू किया जा सके।

इसके साथ ही पर्सिवियरेंस से उम्मीद है कि वह अगले हफ़्ते में मंगल ग्रह के सतह की कई तस्वीरें लेगा ताकि वैज्ञानिक आसपास के इलाक़े को बेहतर समझ सकें।

इस रोवर का एक उद्देश्य मंगल पर कम वज़न वाले एक हेलिकॉप्टर को उड़ाना भी है। पर्सिवियरेंस अपने साथ एक छोटे से हेलिकॉप्टर को लेकर गया है। रोवर इस हेलिकॉप्टर को उड़ाने का प्रयास करेगा जो कि किसी अन्य ग्रह पर इस तरह की पहली उड़ान होगी।

मंगल ग्रह के लिहाज़ से ये राइट ब्रदर्स मूमेंट जैसा लम्हा हो सकता है, ठीक वैसा जब पृथ्वी पर राइट बंधुओं ने पहली बार उड़ान भरी थी और उड़ने की संभावना के सपने को साकार किया था।

इसके बाद ही रोबोट इस मिशन के मुख्य काम करने की शुरुआत करेगा और जेज़ेरो में उस ओर जाएगा जहां डेल्टा क्षेत्र है।

डेल्टा क्षेत्र नदियों द्वारा बनाए जाते हैं जब वे समुद्र में गिरते हुए अपने साथ लाये सेडिमेंट्स को किनारे पर छोड़ देती हैं। वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि जेज़ेरो के डेल्टा इन सेडिमेंट्स से बने हैं, जो कि किसी भी क्षेत्र में कभी जीवन होने के बड़े संकेत हो सकते हैं।

पर्सिवियरेंस डेल्टा का सैंपल लेगा और क्रेटर के किनारे की ओर बढ़ेगा।

सैटेलाइट्स के ज़रिए की गई छानबीन में पता चला है कि इस जगह पर कार्बोनेट रॉक्स हैं जो कि पृथ्वी पर जैविक प्रक्रियाओं को समाहित रखने में काफ़ी अच्छे माने जाते हैं।

पर्सिवियरेंस रोवर में वे सभी उपकरण हैं जो कि इन सभी संरचनाओं का गहनता के साथ माइक्रोस्कोपिक स्तर तक अध्ययन कर सकते हैं।

जेज़ेरो क्रेटर ख़ास क्यों है?

मंगल ग्रह पर मौजूद पैंतालीस किलोमीटर चौड़े क्रेटर का नाम बोस्निया - हरज़ेगोविना के एक कस्बे के नाम पर रखा गया है। स्लोविक भाषा में जेज़ेरो शब्द का अर्थ झील होता हैं जो कि इस नाम में विशेष रुचि होने की वजह बताने के लिए काफ़ी है।

जेज़ेरो में कई तरह की चट्टानें होती हैं जिनमें चिकनी मिट्टी और कार्बोनेट चट्टानें होते हैं। इनमें ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स को सहेजने की क्षमता होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल के जेज़ेरो में उन्हें वो मॉलिक्यूल मिल सकते हैं जो वहां जीवन के संकेतों के बारे में बता सकते हैं।

इसमें वो सेडिमेंट्स अहम हैं जिन्हें 'बाथटब रिंग' कहा जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये मंगल ग्रह की पुरानी झील का तटीय क्षेत्र रहा होगा। इस जगह पर पर्सिवियरेंस को वो सेडिमेंट्स मिल सकते हैं जिन्हें पृथ्वी पर स्ट्रोमेटोलाइटिस कहते हैं।

अमेरिकी प्रांत इंडियाना के वेस्ट लफ़ायेट इलाक़े में स्थित परड्यू यूनिवर्सिटी से जुड़ीं साइंस टीम की सदस्य डॉ. ब्रायनी हॉर्गन कहती हैं, ''कुछ झीलों में आपको माइक्रोबियल मैट्स मिलती हैं और कार्बोनेट्स आपस में इंटरेक्ट करते हैं जिससे बड़ी संरचनाएं जन्म लेती हैं। और ये परत दर परत ढेर (माउल्ड) पैदा होते हैं। अगर हमें जेज़ेरो में ऐसी कोई संरचना मिलती है तो हम सीधे उसी ओर जाएंगे। क्योंकि ये मार्स की एस्ट्रोबायलॉजी के रहस्यों की खान साबित हो सकते हैं।''

पर्सिवियरेंस जिन दिलचस्प चट्टानों को खोजेगा, उनके कुछ हिस्सों को ज़मीन पर बायीं ओर रखीं पतली ट्यूब्स में रखेगा।

नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने एक योजना बनाई है जिसके तहत इन सिलेंडरों को वापस पृथ्वी पर लाया जाएगा। इस परियोजना में काफ़ी धन खर्च होगा।

ये एक काफ़ी जटिल प्रयास होगा जिसमें एक अन्य रोवर, एक मार्स रोवर, और एक विशालकाय सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि जेज़ेरो की चट्टानों को पृथ्वी तक लाया जा सके।

वैज्ञानिक मानते हैं कि मार्स को समझने के लिए इन सैंपल्स को वापस लाना तार्किक कदम है। अगर पर्सिवियरेंस को कोई ऐसी चीज़ मिलती है जो कि एक बायो-सिग्नेचर जैसी होती है, तब भी उस सबूत की जाँच की जाएगी।

ऐसे में उन चट्टानों को वापस लाकर पृथ्वी पर अत्याधुनिक ढंग से जांच की जाएगी जिससे मंगल ग्रह पर कभी जीवन होने या नहीं होने से जुड़े सभी कयासों पर विराम लग सके।

वैक्सीन राष्ट्रवाद: भारत में दो कोरोना वैक्सीन को मिली मंज़ूरी पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

भारत में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ने 03 जनवरी 2021 को सीओवीआईडी- 19 के इलाज के लिए दो वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दे दी।

ये दो वैक्सीन हैं- कोविशील्ड और कोवैक्सीन। कोविशील्ड जहां असल में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका का भारतीय संस्करण है वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है जिसे स्वदेशी वैक्सीन भी कहा जा रहा है।

कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया कंपनी बना रही है। वहीं, कोवैक्सीन को भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर बना रही है।

ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड को आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी ब्रिटेन में मिलने के बाद ऐसी पूरी संभावना थी कि कोविशील्ड को भारत में मंज़ूरी मिल जाएगी और आख़िर में यह अनुमति मिल गई।

लेकिन इसके साथ ही और इतनी जल्दी कोवैक्सीन को भी भारत में अनुमति मिल जाएगी इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।

कोवैक्सीन को इतनी जल्दी अनुमति दिए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी समेत कुछ स्वास्थ्यकर्मियों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

03 जनवरी 2021 को कोविशील्ड और कोवैक्सीन को अनुमति दिए जाने के बाद कई लोगों ने सवाल उठाए कि दोनों वैक्सीन के तीसरे ट्रायल के आँकड़े जारी किए बिना अनुमति कैसे दे दी गई?

तीसरे चरण के ट्रायल में बड़ी संख्या में लोगों पर उस दवा को टेस्ट किया जाता है और फिर उससे आए परिणामों के आधार पर पता लगाया जाता है कि वो दवा कितने प्रतिशत लोगों पर असर कर रही है।

पूरी दुनिया में जिन तीन वैक्सीन फ़ाइज़र बायोएनटेक, ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजे़नेका और मोडेर्ना की चर्चा है, उनके फ़ेस-3 ट्रायल के आँकड़े अलग-अलग हैं। ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को 70 फ़ीसदी तक कारगर बताया गया है।

भारत में कोवैक्सीन के अलावा कोविशील्ड कितने लोगों पर कारगर है इस पर भी सवाल उठे हैं लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन होने के कारण इसको उस शक की नज़र से नहीं दे खा जा रहा है जितना कोवैक्सीन को देखा जा रहा है।

कोविशील्ड के भारत में 1,600 वॉलंटियर्स पर हुए फ़ेस-3 के ट्रायल के आँकड़ों को भी जारी नहीं किया गया है। वहीं, कोवैक्सीन के फ़ेस एक और दो के ट्रायल में 800 वॉलंटियर्स पर इसका ट्रायल हुआ था जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में 22,500 लोगों पर इसको आज़माने की बात कही गई है। लेकिन इनके आँकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।

कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने के बाद कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए कहा कि कोवैक्सीन का अभी तक तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ है, बिना सोच-समझे अनुमति दी गई है जो कि ख़तरनाक हो सकती है।

उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को टैग करते हुए लिखा, ''डॉक्टर हर्षवर्धन कृपया इस बात को साफ़ कीजिए। सभी परीक्षण होने तक इसके इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए। तब तक भारत एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन के साथ शुरुआत कर सकता है।''

कांग्रेस नेता का यह ट्वीट करना ही था कि भारत में वैक्सीन पर सवाल उठने शुरू हो गए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी कोवैक्सीन और लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं जताईं।

मुंबई में संक्रामक रोगों के शोधकर्ता डॉक्टर स्वप्निल पारिख कहते हैं कि डॉक्टर इस समय मुश्किल स्थिति में हैं।

उन्होंने कहा, ''मैं समझता हूं कि यह समय नियामक बाधाओं को दूर कर प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करने का है।''

डॉक्टर पारिख ने कहा, ''सरकार और नियामकों को डेटा को लेकर पारदर्शी होने की ज़िम्मेदारी है, जिसकी उन्होंने वैक्सीन को अनुमति देने से पहले समीक्षा की, क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो ये लोगों के भरोसे को प्रभावित करेगा।''

विपक्ष और कई स्वास्थ्यकर्मियों के सवालों के बाद भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन सामने आए और उन्होंने लगातार कई ट्वीट करते हुए कोवैक्सीन के असरदार होने पर तर्क दिए।

सबसे पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा, ''शशि थरूर, अखिलेश यादव और जयराम रमेश सीओवीआईडी-19 वैक्सीन को अनुमति देने के लिए विज्ञान समर्थित प्रोटोकॉल का पालन किया गया है।''

इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कोवैक्सीन के समर्थन में कई तर्क देते हुए कई ट्वीट किए हालांकि उन्होंने तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़ों का ज़िक्र इन ट्वीट में नहीं किया।

उन्होंने लिखा कि पूरी दुनिया में वैक्सीन को जिन एनकोडिंग स्पाइक प्रोटीन के आधार पर अनुमति दी जा रही है जिसका असर 90 फ़ीसदी तक है वहीं कोवैक्सीन में निष्क्रिय वायरस के आधार पर स्पाइक प्रोटीन के अलावा अन्य एंटीजेनिक एपिसोड होते हैं तो यह सुरक्षित होते हुए उतनी ही असरदार है जितना बाक़ियों ने बताया।

इसके साथ ही हर्षवर्धन ने बताया कि कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पर भी असरदार है।

हर्षवर्धन ने ट्वीट करके यह भी बताया कि कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी (ईयूए) शर्तिया आधार पर दी गई है।

उन्होंने ट्वीट में लिखा, ''क्लीनिकल ट्रायल मोड में कोवैक्सीन के लिए ईयूए सशर्त दिया गया है। कोवैक्सीन को मिली ईयूए कोविशील्ड से बिलकुल अलग है क्योंकि यह क्लीनिकल ट्रायल मोड में इस्तेमाल होगी। कोवैक्सीन लेने वाले सभी लोगों को ट्रैक किया जाएगा उनकी मॉनिटरिंग होगी अगर वे ट्रायल में हैं।''

कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटैक के चेयरमैन कृष्ण इल्ला ने बयान जारी किया है, ''हमारा लक्ष्य उन आबादी तक वैश्विक पहुंच प्रदान करना है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।''

उन्होंने बयान में कहा, ''कोवैक्सीन ने अद्भुत सुरक्षा आँकड़े दिए हैं जिसमें कई वायरल प्रोटीन ने मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दी है।''

हालांकि, कंपनी और डीसीजीआई ने भी कोई ऐसे आंकड़े नहीं दिए हैं जो बता पाएं कि वैक्सीन कितनी असरदार और सुरक्षित है लेकिन समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक सूत्र ने बताया कि इस वैक्सीन की दो ख़ुराक का असर 60 फ़ीसदी से अधिक है।

दिल्ली एम्स के प्रमुख डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा है कि वो आपातकालीन स्थिति में कोवैक्सीन को एक बैकअप के रूप में देखते हैं और फ़िलहाल कोविशील्ड मुख्य वैक्सीन के रूप में इस्तेमाल होगी।

दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के बयान को न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने ट्वीट किया, ''आपातकालीन स्थिति में जब मामलों में अचानक वृद्धि होती है और हमें टीकाकरण करने की आवश्यकता होती है, तो भारत बायोटेक वैक्सीन का उपयोग किया जाएगा। इसका उपयोग एक बैकअप के रूप में भी किया जा सकता है, जब हम यह सुनिश्चित नहीं करते हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट का वैक्सीन कितना प्रभावी हो रहा है।''

गुलेरिया के इस बयान पर पत्रकार तवलीन सिंह ने रीट्वीट करते हुए लिखा है, ''इसका क्या मतलब है? अगर टीकाकरण को बैकअप की ज़रूरत है तो फिर वैक्सीन का क्या मतलब है।''

उन्होंने कहा कि तब तक कोवैक्सीन की और दवाएं तैयार होंगी और वो फ़ेज-3 के मज़बूत डेटा इस्तेमाल करेंगे जो बताएगा कि यह कितनी सुरक्षित और असरदार है लेकिन शुरुआती कुछ सप्ताह के लिए कोविशील्ड इस्तेमाल की जाएगी जिसकी पाँच करोड़ ख़ुराक मौजूद है।

कोवैक्सीन भारत की वैक्सीन है। जबकि कोविशील्ड भी भारत में बन रही है लेकिन वो मूल रूप से ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन है।

दोनों वैक्सीन को अनुमति मिलने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट में लिखा कि जिन दो वैक्सीन के इमर्जेंसी इस्तेमाल को मंज़ूरी दी गई है, वे दोनों मेड इन इंडिया हैं, यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने के लिए हमारे वैज्ञानिक समुदाय की इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

पत्रकार शेखर गुप्ता ने भी वैक्सीन राष्ट्रवाद को लेकर कहा है, ''जब चीन और रूस ने लाखों लोगों को तीसरे चरण के ट्रायल का डेटा सार्वजनिक किए बिना वैक्सीन लगाई और अब भारत ने भी तीसरे चरण के ट्रायल की समीक्षा किए बिना इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यह खतरनाक कदम है। एक ग़लती से वैक्सीन के भरोसे को भारी नुक़सान हो सकता है।''

अब इन दोनों वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी मिलने के बाद इसे सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और फ़्रंटलाइन कर्मचारियों को दिया जाएगा।

भारत का लक्ष्य जुलाई 2021 तक 30 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका लगाने का है।

बृहस्पति और शनि की चार सौ साल बाद मुलाकात हुई

सौर मंडल के दो ग्रह बृहस्पति और शनि चार सौ साल बाद 21 दिसंबर 2020 को इतने करीब आए कि दोनों के बीच की दूरी महज 0.1 डिग्री रह गई।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इन्हें नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है और दूरबीन या टेलीस्कोप से भी।

ये खगोलीय घटना 17 जुलाई 1623 के बाद हो रही है।

इसके बाद ये नजारा 15 मार्च 2080 को दिखाई देगा। इसके अलावा 21 दिसंबर 2020 साल का सबसे छोटा दिन है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का कहना है कि हमारे सौरमंडल में दो बड़े ग्रहों का नजदीक आना दुर्लभ नहीं है।

यूँ तो बृहस्पति ग्रह अपने पड़ोसी शनि ग्रह के पास से हर 20 साल पर गुजरता है, लेकिन इसका इतने नजदीक आना ख़ास है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि दोनों ग्रहों के बीच उनके नज़रिए से सिर्फ 0.1 डिग्री की दूरी रह जाएगी, हालाँकि तब भी ये दूरी करोड़ों किलोमीटर की होगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनॉमी में डॉक्टर क्रोफॉर्ड ने बीबीसी को बताया, ''मौसम बहुत अच्छा नहीं लग रहा है इसलिए ये एक क़ीमती मौका है।''

अगर मौसम की स्थिति अनुकूल रहती है तो ये आसानी से सूर्यास्त के बाद दुनिया भर में देखा जा सकता है।

कहाँ और कब दिखेगा?

इस घटना का सबसे बेहतरीन नज़ारा 21 दिसंबर 2020 की रात को ब्रिटेन के उत्तरी हिस्से में देखने को मिलेगा क्योंकि वहां आसमान साफ होगा।

ये नज़ारा दक्षिणी इलाक़ों में उतना साफ नहीं दिखाई देगा क्योंकि आसमान में ज़्यादातर बादल छाए रहेंगे।

ग्रहों के खगोलविद डॉक्टर जेम्स ओडोनोह्यू ने ट्वीट करके बताया कि कहां पर और कितने बजे आसमान में बृहस्पति और शनि सबसे नज़दीक होंगे।

ग्रहों के खगोलविद डॉक्टर जेम्स ओडोनोह्यू ने ट्वीट किया कि जिस समय बृहस्पति और शनि 21 दिसंबर 2020 और 22 दिसंबर 2020 को आसमान में सबसे करीब होंगे।

लॉस एंजेलिस: 09:43
न्यू यॉर्क: 12:43
रियो डी जनेरियो: 14:43
लंदन / यूटीसी: 17:43
पेरिस / सीईटी: 18:43
इस्तांबुल: 20:43
दुबई: 21:43
नई दिल्ली: 23:13
टोक्यो: 02:43 (22 दिसंबर 2020)
सिडनी: 04:43 (22 दिसंबर 2020)

क्या ये बेथलेहम का तारा है?

कुछ खगोलशास्त्रियों और धर्मशास्त्रियों का ऐसा ही मानना है।

वर्जिनिया में फेरम कॉलेज में धर्म के प्रोफेसर एरिक एम वैंडेन ईकल ने एक लेख में कहा है कि ये घटना जिस समय हो रही है उसके कारण बहुत से अनुमान लगाए जा सकते हैं कि ''क्या ये वही खगोलीय घटना हो सकती है जैसा कि बाइबल में है, जो घटना ज्ञानी व्यक्तियों को जोसफ, मेरी और नवजात शिशु जीसस के पास लेकर गई थी।''

यह कहा जाता है कि ईसा मसीह के जन्म के समय आसमान में एक तारा निकला जिसने लोगों को ईसा मसीह के जन्म की सूचना दी और वहां पहुंचने का रास्ता दिखाया। इसे देखकर पूरब से तीन बुद्धिमान राजा भी उनको भेंट देने, उनका सम्मान करने बेथलेहम पहुंचे।

इसे बेथलेहम का तारा या क्रिसमस तारा भी कहा जाता है। इसे एक दैवीय घटना की तरह बताया जाता है।

डॉक्टर क्रोफॉर्ड कहते हैं, ''दो हज़ार साल पहले लोग इस बारे में बहुत कुछ जानते थे कि रात में आकाश में क्या हो रहा है, तो यह असंभव नहीं है कि बेथलेहम का तारा इस तरह दो ग्रहों के पास आने की घटना जैसा हो।''

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हुए ग्रहों का एक-दूसरे के नज़दीक आना दुर्लभ घटना नहीं है लेकिन ये घटना कुछ खास है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनचेस्टर में एस्ट्रोफिजिसिस्ट प्रोफेसर टिम ओब्रायन कहते हैं, ''ग्रहों को एक-दूसरे के नज़दीक देखना बहुत अच्छा लगता है, ऐसा अक्सर होता है लेकिन ग्रहों का इस घटना के जितना नज़दीक आना बेहद अद्भुत है।''

सौरमंडल में मौजूद दो बड़े ग्रह और कुछ रात में दिखने वाले चमकीले पिंड भी पिछले 800 सालों में इतने नज़दीक नहीं आए हैं।

प्रोफेसर ओब्रायन कहते हैं, ''ये ग्रह दक्षिण-पश्चिम इलाक़े में स्थापित हो रहे होंगे इसलिए आपको आसमान में अंधेरा होते ही वहां से निकलना होगा।''

''हममें से कोई भी अगले 400 सालों तक धरती पर नहीं रहने वाला है इसलिए मौसम पर नज़र बनाए रखें और मौका मिले तो बाहर आकर इस नज़ारे को देखें।''