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भारत में कोरोना वायरस का कहर: कोरोना से हुई कुल मौतों में 70 प्रतिशत पांच राज्यों में

भारत में कोरोना वायरस से हुई कुल मौतों में से 70 प्रतिशत मौतें आंध्र प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हुई हैं।

वहीं, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में कोरोना वायरस के 62 प्रतिशत एक्टिव मामले हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस को लेकर की गई प्रेस कांफ्रेस में इस संबंध में जानकारी दी।

स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने बताया कि राजधानी दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों और मौतों को देखते हुए दिल्ली सरकार से बात की जा रही है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार को कुछ विशेष निर्देश दिए गए हैं। अगर उनका पालन होता है तो मामले नियंत्रण में आ सकते हैं।

भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर उन्होंने कहा, ''रोज़ाना पॉजिटिव मामले बढ़ रहे हैं। इसे पूरी जनसंख्या के संदर्भ में देखना चाहिए। सरकार ने पर्याप्त परीक्षण क्षमता सुनिश्चित करके, क्लीनिकल ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के स्पष्ट दिशानिर्देश देकर और अस्पताल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाते हुए अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए एक श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण अपनाया है।''

उन्होंने कहा कि दूसरे देशों से तुलना करने पर भारत में प्रति मिलियन (जनसंख्या) कोविड के मामले बहुत कम हैं। भारत में प्रति मिलियन मौतें भी बहुत कम हैं। यहां प्रति 10 लाख पर 49 मौतें हुई हैं। वहीं, कोरोना वायरस के प्रति दस लाख जनसंख्या पर 2,792 मामले हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये भी जानकारी दी कि पूरे भारत के 70 जिलों में दूसरा सीरो सर्वे शुरू हो चुका है। इसके नतीज़े अगले दो हफ़्तों में आ जाएंगे।

साथ ही बताया कि पिछले 24 घंटों में कोरोना वायरस के 11 लाख टेस्ट किए जा चुके हैं। पूरे देश में अब तक 4.5 करोड़ से ज़्यादा टेस्ट हो चुके हैं।

कुछ राज्यों में कोरोना के मामले में कमी भी देखने को मिली है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक आंध्र प्रदेश में एक्टिव मामलों में 13.7 प्रतिशत की साप्ताहिक कमी हुई है। इसी तरह कर्नाटक में 16.1 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 6.8 प्रतिशत और तमिलनाडु में 23.9 प्रतिशत और उत्तर प्रेदश में 17.1 प्रतिशत की साप्ताहिक कमी आई है।

महाराष्ट्र में पिछले तीन हफ़्तों में कोरोना वायरस के मामलों में 7 प्रतिशत की कमी देखी गई है।

काले और अल्पसंख्यकों पर कोरोना महामारी का सबसे ज़्यादा ख़तरा है

ब्रिटेन में हुई एक स्टडी में पता चला है कि काले और अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि के लोगों पर कोरोना वायरस का ख़तरा गोरे लोगों से ज़्यादा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ये लोग प्रमुख वर्कर हो सकते हैं, जो सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करते हैं और मल्टी-जनरेशनल घरों में रहते हैं। ये स्टडी रेस इक्वालिटी थिंक टैंक रनीमेडे टेस्ट्स ने की है।

और अमरीका में की गई न्यू यॉर्क फेडरल रिज़र्व बैंक की एक अन्य स्टडी के मुताबिक़, काले लोगों के कारोबार महामारी में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं और उनके कारोबार बंद होने की कगार पर हैं।

स्टडी कहती है कि काले लोग इस स्वास्थ्य संकट की दोहरी मार झेल रहे हैं और आर्थिक चुनौतियों से भी जूझ रहे हैं, क्योंकि उन्हें बैंक से कर्ज़ भी आसानी से नहीं मिलता है।

रेड लाइट एरिया खोले गए तो कोरोना का ख़तरा कितना बढ़ जाएगा?

भारत में कोरोना संकट के दौर में सेक्सवर्करों की स्थिति पर एक शोध अध्ययन किया गया है। इसके मुताबिक अगर रेडलाइट इलाकों को खोला गया तो अगले एक साल कम से कम चार लाख सेक्स वर्कर कोरोना की चपेट में आएंगे और उनमें हजारों की मौत हो सकती है।

एक सेक्स वर्कर अगर संक्रमित हुआ तो उससे संक्रमण सैकड़ों लोगों तक पहुंच सकता है। इस अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 से होने वाली प्रत्येक पांच में तीन मौतें रेडलाइट इलाकों में हो सकती है।

इस शोध अध्ययन के लेखक अभिषेक पांडेय और सह-लेखिका डॉ. सुधाकर वी नूटी का कहना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को तब तक रेडलाइट इलाकों को बंद रखना चाहिए जब तक कि कोरोना वैक्सीन उपलब्ध ना हो जाएगा।

इस अध्ययन में कोरोना के संकट के दौर में सेक्स वर्करों को स्किल्ड वर्कर बनाने की दिशा में कदम उठाने की अपील भी की गई ताकि इन लोगों के सामने आजीविका का संकट ना रहे और कोरोना संक्रमण पर भी अंकुश रहे।

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले अभिषेक पांडेय येल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंफेक्टियस डिजीज मॉडलिंग एंड एनालिसिस से जुड़े हैं जबकि सुधाकर वी नूटी मैसाच्यूटएस जेनरल हॉस्पीटल और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मेडिसीन विभाग से संबंधित हैं।

क्या ताजमहल के दरवाज़े सैलानियों के लिए फिर से खुलेंगे?

तीन महीने के लॉकडाउन के बाद ताज महल एक बार फिर से लोगों के लिए खुलने जा रहा है। सत्रहवीं सदी की इस ऐतिहासिक इमारत के दरवाज़े सोमवार से टूरिस्ट के लिए खुल जायेंगे।

लेकिन इस बार सैलानियों के लिए गाइडलाइंस जारी किए गए हैं जिसके तहत उन्हें हमेशा मास्क पहनकर रहना होगा, दूसरे लोगों से दूरी बनाकर रखनी होगी और इसकी चमकीली संगमरमर की सतह को छूने की इजाजत उन्हें नहीं होगी।

हर दिन केवल पांच हज़ार सैलानियों को ही ताजमहल का करीब से दीदार करने की इजाजत दी जाएगी। यहां आने वाले सैलानियों को दो समूहों में बांटा जाएगा।

मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेग़म मुमताज़ की याद में ये मकबरा बनवाया था।

22 साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार हुए इस मकबरे को देखने के लिए कभी-कभी 80 हज़ार लोग रोज़ आ जाते हैं।

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने कहा है, ''सभी ऐतिहासिक इमारतों और जगहों पर सैनिटाइज़ेशन, सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे हेल्थ प्रोटोकॉल्स के पालन किए जाएंगे।''

भारत सरकार ताज महल और दूसरी ऐतिहासिक इमारतों को फिर से खोलने जा रही है। इनमें नई दिल्ली स्थित लाल किला भी शामिल है।

इस बीच भारत में कोरोना संक्रमण का हर दिन एक नया रिकॉर्ड बन रहा है और पिछला रिकॉर्ड टूट रहा है।

रविवार सुबह जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले 24 घंटे में भारत में कोरोना संक्रमण के 24,850 नए मामले दर्ज किए गए। इसके साथ ही भारत में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 673,165 पर पहुंच गई है। इनमें 244,814 सक्रिय मामले हैं जबकि 409,082 लोग संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए।

लेकिन पिछले 24 घंटों में कोरोना महामारी के कारण भारत में 613 लोगों की मौत भी हुई है। इस महामारी ने भारत में अब तक 19,628 लोगों की जान ले ली है। कोरोना संक्रमण के मामलों में भारत रूस से थोड़ा ही पीछे है।

क्या स्मार्ट होम डिवाइस के इस्तेमाल से घरेलू हिंसा बढ़ रही है?

आज तकनीक ने इंसान की ज़िंदगी को बहुत आसान बना दिया है। दुनिया भर में लागू लॉकडाउन के इस दौर में तो ये तकनीकी उपकरण और भी कारगर साबित हुए हैं।

आज दुनिया के विकसित देशों में कई लोगों के घरों में ऐसे स्मार्ट डिवाइस हैं जो हमारे इशारों पर काम करते हैं।

अलेक्सा से लेकर सिरी और गूगल होम तक, स्मार्ट लाइट बल्ब, सिक्योरिटी कैमरे और घर के तापमान नियंत्रित करने वाले थर्मोस्टेट इसकी मिसाल हैं।

इन्हें तकनीक की भाषा में इंटरनेट ऑफ़ थिंग कहते हैं (IoT)। यहां तक कि हम अपनी रसोई में जिन उपकरण का इस्तेमाल करते हैं उनमें भी कई तरह के सेंसर लगे होते हैं।

लेकिन दुनिया के विकासशील देशों और पिछड़े देशों में ऐसे स्मार्ट डिवाइस की सिर्फ कल्पना की जा सकती है। इन देशों में कुछ लोगों के पास ऐसे स्मार्ट डिवाइस हैं। असल में विकसित देशों में ऐसे स्मार्ट डिवाइस का चलन ज्यादा है।

कहा जा रहा है कि अगले दस साल में इनका इस्तेमाल और बढ़ने की संभावना है। लेकिन बहुत से लोग इन डिवाइस के बढ़ते इस्तेमाल से ख़ौफ़ज़दा हैं।

वो इन्हें जासूस कहते हैं। ऐप, या इंटरनेट से चलने वाली डिवाइस हमारे आदेशानुसार चलते हैं। हम इन्हें जो भी कमांड देते हैं वो इनमें स्टोर हो जाती हैं।

इस जानकारी का इस्तेमाल किसी भी रूप में किया जा सकता है।

एक रिसर्च तो ये भी कहती है कि स्मार्ट डिवाइस का इस्तेमाल घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा है और रिश्तों में कड़वाहट ला रहा है।

ख़ासतौर से स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल तो सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है। इससे किसी भी इंसान की निजता पूरी तरह ख़त्म हो जाती है।

स्मार्टफ़ोन के लिए कई ऐसे ऐप हैं, जिनसे किसी भी शख़्स की जासूसी उसकी जानकारी के बिना हो सकती है।

बहुत से मां-बाप अपने बच्चों पर नज़र रखने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। हमारे घरों में लगे कैमरे भी बाहर वालों के साथ-साथ घर वालों पर भी नज़र रखते हैं।

घर में कौन आया, किस कमरे में गया, कितनी देर वहां रहा सब कुछ आपको घर से दूर रहने पर भी पता चल जाता है।

यहां तक कि आप कब घर से बाहर निकले, कब घर के अंदर आए ये जानकारी भी आपके कैमरे में मौजूद रहती है जिसका इस्तेमाल किसी भी रूप में किया जा सकता है।

अगर घर में इंटरनेट से चलने वाले ताले लगे हैं, तो घर से दूर रहने पर भी किसी को घर में बंद किया जा सकता है।

स्मार्ट डिवाइस बनाने वालों ने सोचा भी नहीं होगा कि इनका इस्तेमाल एक दूसरे की ज़िंदगी को नियंत्रित करने और उस पर नज़र रखने के लिए किया जा सकता है।

लेकिन ऐसा हो रहा है। इसकी मिसाल हम एक केस में देख भी चुके हैं।

ब्रिटेन में रॉस केयर्न्स नाम के एक व्यक्ति ने घर में तापमान नियंत्रित करने वाले माइक्रोफ़ोन टेबलेट से अपनी पत्नी की जासूसी की थी, जिसके जुर्म में उसे 11 महीने की सज़ा हुई थी।

ऐसे कई और मामले भी सामने आ चुके हैं। जानकारों का कहना है कि एक-दूसरे को बुरा-भला कहना, मारपीट करना रिश्तों में कड़वाहट लाने के पुराने तरीक़े हैं।

लेकिन स्मार्ट डिवाइस के ज़रिए जिस तरह के अपराध हो रहे हैं वो ज़्यादा ख़तरनाक हैं।

एक ही घर में जब तमाम स्मार्ट डिवाइस का कंट्रोल घर के किसी एक व्यक्ति के हाथ में होता है, तो वहां रहने वाले अन्य व्यक्तियों से नियंत्रण छिन जाता है।

वो जैसे चाहे इसका इस्तेमाल कर सकता है।

डिवाइस के ज़रिए की जाने वाली निगरानी धीरे-धीरे पीछा करने की सूरत अख़्तियार कर लेती है। घर में तकरार शुरू हो जाती है।

फिर ये तकरार किस हद तक पहुंचेगी, कहना मुश्किल है।

दुनिया भर में लगभग एक तिहाई महिलाओं ने अपने साथी से किसी ना किसी रूप में शारीरिक या यौन शोषण का अनुभव किया है।

इस तरह की हरकतें बच्चों में अवसाद, गर्भपात, जन्म के समय बच्चे का कम वज़न और एचआईवी के ख़तरे को बढ़ा देती हैं।

कुछ केस में तो तांक-झांक का सिलसिला क़त्ल पर जाकर रुकता है। चोरी छुपे किसी की ताक-झांक करना उसे मानसिक रूप से परेशान करना है।

दुनिया भर में 38 फ़ीसद महिलाओं का क़त्ल उनके मौजूदा या पुराने साथी के हाथों होता है।

जानकार कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घरेलू हिंसा हमारी कल्पना से कहीं ज़्यादा होती है। ये एक वायरस की तरह है जो एक दूसरे से फैलता है।

2017 की एक स्टडी बताती है कि जो बच्चे अपने घरों में महिलाओं के साथ हिंसा देखते हैं बड़े होकर वो भी वैसा ही करते हैं।

लॉकडाउन के इस समय में भी घरेलू हिंसा के मामले बहुत ज़्यादा बढ़े हैं।

जानकारों ने ये भी चिंता ज़ाहिर की है कि अगर लॉकडाउन अगले 6 महीने के लिए बढ़ाया गया तो घरेलू हिंसा के मामलों में भयानक उछाल आएगा।

बहुत से लोग तो अभी ये भी नहीं जानते कि तकनीक से किस किस तरह से शोषण किया जा सकता है।

मिसाल के लिए जिस कमरे में आप सो रहे हैं, अचानक वहां का तापमान बढ़ा दिया जाए। इंटरनेट कनेक्टेड लॉक से आपको कमरे में बंद कर दिया जाए।

या आधी रात में आचानक डोर बेल बजा दी जाए। घर में घुसने वाले दरवाज़े का कोड आपको बताए बिना बदल दिया जाए।

ये सभी हरकतें आपको दिमाग़ी तौर पर परेशान करने वाली हैं और घरेलू हिंसा के दायरे में आती हैं। लेकिन अक्सर महिलाएं इस बारीकी को समझ नहीं पातीं।

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट का कहना है कि अपने पार्टनर के मैसेज की तांकझांक, फ़ोन की लोकेशन ट्रैक करने वाले ऐप या पार्टनर के कैमरे में घुसने की इजाज़त देने वाली डिवाइस में 35 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है।

दिलचस्प बात है कि जिसकी जासूसी की जाती है उसे पता भी नहीं होता।  और उसके फ़ोन में ऐप डाल दिया जाता है।

ये सरासर किसी की निजता के अधिकार का हनन और एक बड़ा जुर्म है।  लेकिन अफ़सोस की बात है कि ऐसे लोगों पर लगाम कसने के लिए बहुत कम हेल्पलाइन हैं।

ब्रिटेन में रिफ़्यूजी नाम की एक हेल्पलाइन है, जो ऐसे लोगों पर नज़र रखती है। लेकिन देखा गया है कि ऐसी हेल्पलाइन भी बहुत मददगार नहीं हैं।

वो सबसे पहले पीड़ित को पासवर्ड या डिवाइस बदलने का मशवरा देती हैं। और जब ऐसा होता है तो हालात और बिगड़ जाते हैं।

ऐसे जासूसी करने वाले पार्टनर से रिश्ता ख़त्म करके भी पीछा नहीं छूटता।  

दरअसल जो लोग इस तरह की जासूसी करते हैं वो एक तरह के दिमाग़ी मरीज़ होते हैं। अगर किसी शख़्स को अपने साथी पर शक है तो वो किसी भी हद तक जा सकता है।

ऐसे लोग सामने वाले की तकलीफ़ में अपनी ख़ुशी तलाशते हैं। अपने साथी से दूर होने के बाद भी वो उसे परेशान करते ही रहते हैं।

हालांकि ऐसे लोगों पर लगाम कसने के लिए क़ानून में बदलाव की बात हो रही है। ऐसी हरकत करने वालों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए कई संस्थाएं भी बन रही हैं।

तकनीक हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए है। उसका इस्तेमाल उसी तरह से करना चाहिए न कि उसे हथियार बनाकर अपने ही रिश्तों को तार-तार किया जाए।

रिश्ते भरोसे की बुनियाद पर टिके होते हैं। अगर अपने ही साथी की जासूसी करनी पड़े तो फिर भरोसा कहां है?

भरोसा नहीं तो रिश्ता कैसा? किसी भी बुरे रिश्ते में क़ैद रहने से बेहतर है उससे जल्द से जल्द आज़ाद हो जाना चाहिए।

लाइफ़ इंश्योरेंस का प्रीमियम चुकाने के लिए 30 दिनों की मोहलत

भारत में बीमा उद्योग का नियमन करने वाली सरकारी एजेंसी भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बीमाधारकों के लिए बड़ी राहत की घोषणा की है।

कोरोना संकट के समय बीमाधारकों को आईआरडीएआई ने जीवन बीमा के प्रीमियम की रकम चुकाने के लिए 30 और दिनों की मोहलत दी है। ये राहत जीवन बीमा की उन पॉलिसीज के लिए है जिनके रिनवल की तारीख मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ रही थी।

हेल्थ पॉलिसी और मोटर बीमा के मामले में तीसरी पार्टी के बीमा के प्रीमियम भुगतान के लिए आईआरडीएआई ने पहले ही अतिरिक्त समय देने की घोषणा कर रखी है। साधारण बीमा को दी गई छूट के बाद जीवन बीमा मुहैया कराने वाली कंपनियों ने आईआरडीएआई से 30 और दिनों की मोहलत दिए जाने की मांग की थी।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ का सच

बेटी बचाओ बेटी पढाओ का सच

चीन की मछलियों से भारत की मछलियों को खतरा, घड़ियालों के जीवन पर भी संकट

भारत में गंगा और यमुना नदियों पर चीन-अफ्रीका की मछलियों का कब्जा होता जा रहा है। कभी तालाबों में पालने के लिए लाई गई विदेशी मछलियों की संख्या इन नदियों में इस कदर बढ़ती जा रही है कि स्थानीय प्रजाति की मछलियों को अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

पश्चिम बंगाल के बैरकपुर स्थित सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि विदेशी प्रजाति की अधिकता से नदी की जैव विविधता खतरे में पड़ गई है। भारत की सबसे प्रमुख नदियों गंगा-यमुना में स्थानीय प्रजाति की मछलियों का जीवन संकट में पड़ गया है।

हाल के दिनों में इन नदियों के पानी में विदेशी प्रजाति की मछलियों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। दरअसल, भारत के अलग-अलग हिस्सों में ज्यादा मांस वाली मछलियों की विदेशी प्रजातियों के बीज तालाबों में डाले गए थे, लेकिन बाढ़ और बरसात की वजह से कई मछलियां नदियों के पानी में चली गईं। एक बार नदी के पानी में आने के बाद उनकी संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।

बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संरक्षण शिक्षण संस्थान में मस्त्य विशेषज्ञ इश्तियाक अहमद ने कहा कि अफ्रीकन कैट फिश जैसी मछली पहले बांग्लादेश में पाली गई थी। लेकिन, धीरे-धीरे गंगा सागर से होते हुए यह पटना, इलाहाबाद, कानपुर और हरिद्वार तक के पानी में पहुंच गई है। इलाहाबाद में यमुना के संगम के साथ ही यमुना के पानी में भी इनकी पहुंच हो गई।

विशेषज्ञों का कहना है कि मूलत: बैंकाक से आई तिलपिया मछली की रीढ़ की हड्डी काफी मजबूत होती है। इसे खाने वाले जीवों के जीवन पर भी संकट आ जाता है। माना जाता है कि चंबल नदी में स्थित घड़ियाल सेंचुरी में तिलपिया मछली खाकर कई घड़ियालों की मौत हो चुकी है।

नदी के पारिस्थितिक तंत्र में स्थानीय प्रजाति की मछलियों की महत्वपूर्व भूमिका होती है। ये नदी की सफाई का काम करती हैं। जबकि, विदेशी प्रजातियां स्थानीय मछलियों की संख्या को समाप्त कर रही हैं। इससे नदी की सेहत भी खतरे में पड़ती है।

पूर्व एडीजी इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च और सेंट्रल इनलैंड फिशरीज इंस्टिट्यूट के सलाहकार डॉ. वी आर चित्रांशी ने कहा, ''स्थानीय प्रजाति की मछलियां भारत की नदियों की सेहत का ज्यादा अच्छी तरह से ख्याल रखती रही हैं। विदेशी मछलियों की बहुतायत से इनका अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है जो चिंता का विषय है।''

अब गंजेपन की समस्या दूर हो जाएगी, सिर पर फिर से बाल उगाए जा सकते हैं

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे गंजेपन का इलाज ढूंढने के काफी करीब हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने ऐसा तरीका खोज निकाला है जिससे गंजेपन की समस्या को दूर कर फिर से सिर पर बाल उगाए जा सकते हैं।

न्यूयॉर्क स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के भीतर एक मार्ग सक्रिय कर दिया है जिसका नाम 'सोनिक हेजहॉग' है। शिशु जब गर्भ में होता है तो यह मार्ग काफी ज्यादा सक्रिय रहता है जिससे बालों के रोम तैयार होते हैं। मगर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है या त्वचा में जख्म बढ़ते हैं तो यह रास्ता अवरुद्ध हो जाता है।

आंकड़े बताते हैं कि एक चौथाई पुरुषों के बाल 25 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उड़ने लगते हैं। ब्रिटेन के राजकुमार विलियम्स के बाल तो 22 की उम्र में ही उड़ने लगे थे। ऐसा नहीं है कि यह समस्या पुरुषों में ही है।

अमेरिकन एकडेमी ऑफ डार्मेटोलॉजी के मुताबिक, 40 फीसदी महिलाओं में 40 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बाल झड़ने की समस्या देखने को मिलने लगती है। डॉक्टर मायूमी इटो के नेतृत्व वाली टीम ने जो मार्ग सक्रिय किया है, वह कोशिकाओं के बीच संचार तंत्र का भी काम करता है।

वैज्ञानिकों ने लैब में चूहों की क्षतिग्रस्त त्वचा पर यह अध्ययन किया, जिसमें मुख्य फोकस 'फाइब्रोब्लास्ट' नाम की कोशिकाओं पर था। इस कोशिका से कालाजेन नाम के प्रोटीन का स्राव होता है। यह प्रोटीन त्चचा व बालों की मजबूती और आकार को बनाए रखता है। शोधकर्ताओं ने इस वजह से भी 'फाइब्रोब्लास्ट' पर फोकस किया क्योंकि इसमें जख्म को अपने-आप ठीक करने जैसे कई जैविक गुण भी होते हैं।

'नेचर कम्युनिकेशन' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, मस्तिष्क की कोशिकाओं में आपस में संचार स्थापित करने के चार हफ्तों के भीतर ही चूहों के बाल फिर से उगने शुरू हो गए। बालों की जड़ और सरंचनाएं नौ हफ्तों के भीतर फिर से दिखाई देने लगीं। अभी तक वैज्ञानिक यही मानते थे कि क्षतिग्रस्त त्वचा की वजह से बाल फिर से नहीं उग पाते हैं। मगर अब इस सबूत ने इस क्षेत्र में नई दिशा दिखा दी है।

डॉक्टर इटो का कहना है, ''अब हमें पता है कि भ्रूण में यह मार्ग काफी सक्रिय होता है, जबकि उम्र बढ़ने के साथ यह प्रक्रिया धीमी होने लगती है। हमारा शोध बताता है कि सोनिक हेजहॉग के जरिए 'फाइब्रोब्लास्ट' को सही किया जा सकता है। इससे बाल दोबारा उगाए जा सकते हैं।''

जिंदगी में आने वाले कई बदलावों की वजह से आपके बाल गिरते हैं। घर बदलना, शोक या गर्भधारण के दौरान भी बाल कमजोर होने लगते हैं। इसके अलावा तनाव, खराब खानपान, पानी में घुले केमिकल, खाने में मौजूद कीटनाशक, गर्भ निरोधक गोलियां भी बाल गिरने के बड़े कारण होते हैं।

भारत में यौन संबंध की मांग भी घूस माना जाएगा

भारत में नए भ्रष्टाचार रोधी कानून के तहत यौन तुष्टि की मांग करना और उसे मंजूर करना रिश्वत माने जा सकते हैं। इनके लिए सात साल तक जेल की सजा हो सकती है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को बताया कि भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 में 'अनुचित लाभ' पद को शामिल किया गया है। इसका मतलब कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य किसी भी तरह की प्राप्ति है। इसमें महंगे क्लब की सदस्यता और आतिथ्य भी शामिल हैं।

इस अधिनियम में 'रिश्वत' शब्द को सिर्फ पैसे या धन तक सीमित नहीं रखा गया है। इसको राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मंजूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार ने जुलाई में अधिसूचित किया था। साल 2018 के संशोधन अधिनियम के जरिये 30 साल पुराने भ्रष्टाचार निवारण कानून में संशोधन किया गया है।

अधिकारी के अनुसार, संशोधित कानून के तहत सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां यौन तुष्टि, महंगे क्लब की सदस्यता और आतिथ्य मांगने और स्वीकार करने या करीबी मित्रों या रिश्तेदारों को रोजगार प्रदान करने पर अधिकारियों के खिलाफ अब मामला दर्ज कर सकती हैं। इसमें रिश्वत देने वालों के लिए भी अधिकतम सात साल जेल की सजा का प्रावधान है। इससे पहले, रिश्वत देने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगाने संबंधी किसी भी घरेलू कानून के दायरे में नहीं आते थे।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जी वेंकटेश राव ने कहा, अनुचित लाभ में ऐसा कोई भी फायदा हो सकता है जो गैर-आर्थिक हो। मसलन, महंगा या मुफ्त तोहफा, मुफ्त छुट्टी की व्यवस्था या एयरलाइन टिकट व ठहरने की व्यवस्था। इसमें किसी सामान और सेवाओं के लिए भुगतान भी शामिल होगा। मसलन, किसी चल या अचल संपत्ति को खरीदने के लिए डाउन पेमेंट, किसी क्लब की सदस्यता के लिए भुगतान आदि। इसमें यौन तुष्टि की मांग भी खास तौर पर शामिल है, जो सभी अपेक्षाओं में सबसे निंदनीय है।