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अनुच्छेद 370 पर भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चीन ने क्या कहा?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के केंद्र सरकार के क़दम को वैध ठहराए जाने के भारत के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर चीन ने प्रतिक्रिया दी है।

चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत की आंतरिक अदालत के इस फ़ैसले का लद्दाख को लेकर चीन के रुख़ पर कोई असर नहीं होगा।

चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने लद्दाख के हिस्से पर दावा जताया।

माओ निंग ने कहा, "चीन ने कभी भी तथाकथित केंद्र शासित लद्दाख को मान्यता नहीं दी है, जिसका गठन भारत ने एकतरफ़ा और अवैध ढंग से किया है. भारत की घरेलू अदालत का फ़ैसला इस तथ्य को नहीं बदलता कि चीन-भारत सीमा का पश्चिमी हिस्सा हमेशा से चीन का रहा है।''

5 अगस्त 2019 को जब भारत ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और जम्मू-कश्मीर का दो केंद्र शासित राज्यों में पुनर्गठन करने का फ़ैसला किया था, उस समय भी चीन ने आचोलना की थी। उस समय चीन ने कहा था कि ऐसा कर 'भारत ने अपने क़ानूनों का एकतरफ़ा संशोधन किया है'।

भारत ने 5 अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते हुए जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का गठन किया था।

इस फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद, सोमवार, 11 दिसंबर 2023 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने को वैध माना था।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 11 दिसंबर 2023 को फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे हटाने की शक्ति थी।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास बाक़ी राज्यों से अलग कोई संप्रभुता नहीं है।

कश्मीर पर चीन का रुख़

साल 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हो गई थी।

चीन की सेना पूर्वी लद्दाख में सैकड़ों किलोमीटर तक फैली हुई सीमा पर कई जगह उन इलाक़ों में दाख़िल हो गई थी, जिन्हें भारत अपना क्षेत्र मानता है।

इस घटना के बाद एलएसी के दोनों ओर हज़ारों सैनिक तैनात हैं और सीमा पर तनाव बना हुआ है।

चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने लद्दाख को लेकर चीन के दावे को दोहराने से एक दिन पहले कश्मीर को लेकर भी प्रतिक्रिया दी थी।

पाकिस्तान के पत्रकार ने अनुच्छेद 370 पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर माओ निंग से प्रतिक्रिया मांगी थी।

इसके जवाब में मिंग ने कहा था कि 'कश्मीर मसले पर चीन का रुख़ एकदम स्पष्ट है'।

माओ निंग ने कहा, "संबंधित पक्षों को संवाद और परामर्श के माध्यम से विवाद को सुलझाना चाहिए ताकि क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनी रहे।''

माओ निंग ने कहा, ''कश्मीर मसला शांतिपूर्ण ढंग से और यूएन चार्टर, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के तहत सही ढंग सुलझाया जाना चाहिए।''

कश्मीर और लद्दाख को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता के बयानों पर भारत की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। 

बिहार जातिगत सर्वे: 17.7 फ़ीसदी मुसलमान; हिंदू, बौद्ध और सिख कितने हैं?

भारत में बिहार की नीतीश सरकार ने आज जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए हैं। सर्वे के दौरान धर्म से जुड़े आंकड़े भी जुटाए गए इसकी भी जानकारी दी गई है।

बिहार में सबसे ज़्यादा आबादी हिंदू धर्म को मानने वालों की है. उनके बाद मुसलमान धर्म को मानने वालों की संख्या है। हालांकि, दोनों धर्मों को मानने वालों की आबादी के बीच बड़ा फ़ासला है।

बिहार में हुए जातिगत सर्वे से जानकारी हुई है कि राज्य के करीब 13 करोड़ लोगों में 2146 लोग ऐसे भी हैं, जिनका कोई धर्म नहीं है।

किस धर्म के कितने लोग हैं बिहार में?

हिंदू: 81.99 प्रतिशत

मुसलमान: 17.70 प्रतिशत

ईसाई: 0.057 प्रतिशत

सिख: 0.0113 प्रतिशत

बौद्ध: 0.085 प्रतिशत

जैन: 0.009 प्रतिशत

बिहार: नीतीश सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए, अति पिछड़े 36 फ़ीसदी और पिछड़े 27 फ़ीसदी

भारत में बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं।  जनगणना के मुताबिक़ पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.13 फ़ीसदी है। अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फ़ीसदी से अधिक है।

वहीं सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 फ़ीसदी है।

बिहार सरकार के एडिशनल सेक्रेटरी विवेक कुमार सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये जानकारी दी है।

जातिगत सर्वे के मुताबिक बिहार की आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 10 है।

विवेक कुमार सिंह ने बताया कि पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.13 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01और सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है।

उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फ़ीसदी है।

पिछड़ों में यादवों की आबादी 14 फ़ीसदी है। मुसहर जाति की आबादी 3 फ़ीसदी है। कुर्मी की आबादी 2.87 प्रतिशत है।

बिहार सरकार के एडिशनल सेक्रेटरी विवेक कुमार सिंह ने बताया कि बिहार विधानमंडल ने 18 फरवरी 2019 को बिहार में जाति आधारित जनगणना (सर्वे) कराने का प्रस्ताव पारित किया था।

उन्होंने बताया, "इसके बाद 2 जून 2022 को बिहार मंत्री परिषद ने जाति आधारित जनगणना कराने का फ़ैसला किया। ये दो चरणों में होनी थी।  पहले चरण में ये मकान के जरिए होनी थी।''

"इसके तहत 7 जनवरी 2023 से 31 जनवरी 2023 तक मकानों का नंबरीकरण किया गया और लिस्ट बनाई गई। दूसरे चरण में बिहार के सभी व्यक्तियों की जनगणना का काम 15 अप्रैल 2023 को शुरू किया गया।''

"इसमें जिला स्तर के पदाधिकारियों को अलग अलग ज़िम्मेदारियां दी गईं और युद्ध स्तर पर ये कार्य संपन्न हुआ। 5 अगस्त 2023 को सारे आंकड़े बनाकर मोबाइल ऐप के जरिए उसे जमा किया गया।''

"बिहार में कुल सर्वे परिवारों की कुल संख्या दो करोड़ 83 लाख 44 हजार 107 है और इसमें कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 10 है।''

"इसमें अस्थाई प्रवासी स्थिति में 53 लाख 72 हजार 22 लोग हैं।''

बिहार के जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार वहां किस जाति की कितनी आबादी है?

समान्य वर्ग की कुल आबादी - 15.52 फ़ीसदी

ब्राह्मणः 3.66 फ़ीसदी

भूमिहारः 2.86 फ़ीसदी

राजपूतः 3.45 फ़ीसदी

पिछड़ी आबादीः 27.13 फ़ीसदी

यादवः 14 फ़ीसदी

कुर्मीः 2.87 फ़ीसदी

अत्यंत पिछड़ी आबादीः 36.01 फ़ीसदी

अनुसूचित जाति आबादी - 19.65 फ़ीसदी

अनुसूचित-जनजाति आबादी - 1.68 फ़ीसदी

जी20 शिखर सम्मेलन में लिए गए फैसलों पर भारत के विदेश मंत्री ने क्या कहा?

नई दिल्ली में चल रहा जी20 शिखर सम्मेलन रविवार, 10 सितम्बर 2023 को पूरा हुआ। भारत की मेज़बानी में हुई इस समिट में नई दिल्ली डिक्लेयरेशन पर सभी देशों की सहमति बनाने पर भारत की तारीफ़ हो रही है।

खास कर इसमें यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर इस्तेमाल की गई भाषा पर सबको एकमत कर पाना भारत की उपलब्धि मानी जा रही है। भारत ने समिट में ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ का नारा दिया।

इस शिखर सम्मेलन के पूरा होने पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि हमने नए विचार सामने लाने, मतभेदों को पाटने का काम किया और जी20 का पूरा फ़ोकस ग्लोबल साउथ पर रखा।

उन्होंने एक्स (ट्विटर) पर लिखा- ''जी20 शिखर सम्मेलन और इसकी द्विपक्षीय बैठकें नई दिल्ली में संपन्न हुईं। नई दिल्ली डिक्लेयरेशन से पता चलता है कि हमारी अध्यक्षता विचारों को सामने रखने, वैश्विक मुद्दों को आकार देने, विभाजन को पाटने और आम सहमति बनाने में सक्षम थी। हमने ग्लोबल साउथ पर फोकस बनाए रखा। हमने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी) जैसे ऐतिहासिक पहलों की शुरुआत की।''

उन्होंने इस बैठक से सामने आए पांच महत्वपूर्ण फ़ैसलों का ज़िक्र किया।

- ग्रीन डेवलपमेंट पैक्ट

- एक्शन प्लान ऑन ससटेनेबल डेवलपमेंट

- भ्रष्टाचार विरोध पर उच्च स्तरीय सिद्धांत

- डिजिटल इंफ्रॉस्ट्रक्चर के लिए समर्थन

- बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार

जी-20: जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों में गंभीर असहमति

जलवायु परिवर्तन के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलनों के उलट जी-20 की बैठकों में इस समस्या को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर आमतौर पर विकसित और विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर असहमतियां नहीं दिखती हैं।

लेकिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में इसे लेकर तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। जी-20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने, रिन्युबल एनर्जी के लक्ष्यों को बढ़ाने और ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी जैसे लक्ष्यों को हासिल कर कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है।

जबकि जी-20 के देश दुनिया के 75 ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन में रूस, चीन, सऊदी अरब और भारत ने 2030 तक रिन्युबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ाने के विकसित देशों के लक्ष्य का विरोध किया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 6 सितंबर 2023 को शेरपा स्तर की बैठक में ये देश 2035 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 60 फीसदी घटाने के विकसित देशों के लक्ष्य से असहमत दिखे।

चीन ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि जुलाई 2023 में हुई जी-20 के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उसने जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बनने वाली सहमति में बाधा डाली थी।

चीन ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन की समस्या को खत्म करने के लिए अपनी क्षमता, जिम्मेदारियों और कर्तव्य के मुताबिक काम करने की अपील की थी।

चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का कहना है कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

जबकि विकासशील देशों का कहना है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को साथ आए बगैर ये काम मुश्किल है। जी-20 में दोनों ओर के देश अड़े हुए हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन के वार्षिक सम्मेलन सीओपी 28 में क्या होने वाला है।

न्यू स्टार्ट परमाणु संधि क्या है? रूस ने क्यों निलंबित कर दिया?

यूक्रेन के साथ युद्ध के एक साल पूरे होने से पहले रूस की जनता को संबोधित करते हुए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अमेरिका के साथ न्यू स्ट्रैटजिक आर्म रिडक्शन ट्रीटी से रूस अपनी भागीदारी निलंबित कर रहा है। इसे 'न्यू स्टार्ट परमाणु संधि' के नाम से भी जाना जाता है।

हालांकि पुतिन के इस बयान के बाद रूस के विदेश मंत्रालय ने साफ़ किया है कि संधि के मुताबिक़ युद्ध के लिए तैयार परमाणु मिसाइलों और हथियारों की संख्या पर जो पाबंदी है उसे रूस आगे भी मानता रहेगा।

रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ये फ़ैसला इसलिए किया गया है ताकि "हमारी न्यूक्लियर साइटों के बारे में पता लगाने की क्षमता और इसकी स्थिरता को एक हद तक बचाया जा सके।''

इस संधि से रूस की भागीदारी निलंबित करने की दुनिया भर में चर्चा है। कहा जा रहा है कि दो परमाणु महाशक्तियों के बीच ये आखिरी परमाणु समझौता है और अगर ये ख़त्म हो गया तो दोनों देशों का एक दूसरे पर 'आर्म कंट्रोल ख़त्म' हो जाएगा।

न्यू स्टार्ट परमाणु संधि क्या है?

साल 2010 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा और रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

न्यू स्टार्ट परमाणु संधि के तहत अमेरिका और रूस में कितनी मिसाइल बिल्कुल तैयार स्थिति में होंगी उनकी संख्या तय की गई है। रूस और अमेरिका के पास पूरी दुनिया के 90 फ़ीसदी परमाणु हथियार हैं।

इस समझौते के अनुसार रूस और अमेरिका अधिकतम 1550 परमाणु मिसाइल, 700 लंबी रेंज की मिसाइल और बमर्स बिल्कुल तैयार स्थिति में रख सकते हैं।

दोनों ही देश एक दूसरे की न्यूक्लियर साइट पर एक साल में 18 दौरे कर सकते हैं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि कहीं कोई देश समझौते का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है।

साल 2011 में ये संधि शुरू हुई और साल 2021 में इसे पांच साल के लिए और बढ़ा दिया गया। यानी मौजूदा संधि 2026 तक के लिए वैध है।

मार्च 2020 में कोविड महामारी के कारण दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर साइट के दौरे रोक दिए गए। नवंबर 2022 में न्यूक्लियर साइट के दौरे को दोबारा शुरू करने के लिए अमेरिका और रूस के बीच मिस्र में मुलाकात होनी थी, लेकिन रूस ने इस मुलाकात को टाल दिया। अब दोनों देशों की ओर से इस मुलाकात के लिए नई तारीख तय नहीं हुई है।

न्यू स्टार्ट परमाणु संधि से रूस के अलग होने से क्या असर होगा?

हालांकि रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह ट्रीटी के उस नियम का पालन करेगा जिसमें दोनों देशों के बिल्कुल तैयार हालत में मिसाइलों की संख्या निर्धारित की गई है। लेकिन रूस के इस ट्रीटी को निलंबित कर देने से संभवतः ये होगा कि अमेरिका के लिए ये पता लगाना मुश्किल हो जाएगा कि रूस इस समझौते का पालन कर रहा है या नहीं।

रूस पहले ही दोनों देशों के बीच तय न्यूक्लियर साइट के दौरे रद्द कर चुका है। जानकार मानते हैं कि ये बड़ा ख़तरा होगा अगर पुतिन आगे बढ़ कर दोनों देशों के बीच तैयार मिसाइल हथियारों के डेटा की जानकारियो का लेन-देन भी रोक दें।

सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन-प्रोलिफेरेशन के वरिष्ठ नीति निदेशक जॉन एरॉथ ने वाशिंगटन पोस्ट को दिए इंटरव्यू में कहा कि यह कदम "पूरी तरह प्रतीकात्मक" है।

जॉन एरॉथ का मानना है कि पुतिन का ये ऐलान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पर दबाव बनाने का तरीका है, जो रूस के खिलाफ़ यूक्रेन के साथ खड़े हैं। जॉन एरॉथ ने कहा, "बाइडन युद्ध के ख़ात्मे की बात कर रहे हैं और रूस उन्हें दिखाना चाह रहा है कि आखिर क्या-क्या हो सकता है।''

ब्रिटिश अख़बार गार्डियन से बात करते हुए संयुक्त राष्ट्र में इंस्टीट्यूट फॉर डिसार्मनेंट रिसर्च के सेंटर ऑफ़ आर्म्स कंट्रोल एंड स्ट्रैटजिक विपन कार्यक्रम के वरिष्ठ शोधकर्ता एंड्री बाक्लिट्सकी कहते हैं, "संधि का निलंबन एक बड़ी बात थी, समझौते का निलंबन खुद को इससे बाहर कर लेने जैसा नहीं है। लेकिन वास्तव में, आने वाले वक़्त में ये हो भी सकता है।''

एंड्री बाक्लिट्सकी ने कहा, ''हो सकता है कि रूस इस संधि में 2026 तक बना रहे लेकिन ये तय है कि वह अमेरिका को लेकर कठोर रवैया अख़्तियार करेगा। इस संधि के नियमों के तहत तय की गई ज़िम्मेदारी भी बदल सकता है।''

चीन और रूस के ख़तरे को देखते हुए जापान सैन्य विस्तार करेगा

जापान ने कहा है कि चीन और रूस के ख़तरे को देखते हुए वो क्रूज़ मिसाइल और हाई-वेलोसिटी बैलिस्टिक मिसाइल बड़े स्तर पर बनाएगा। ये जापान के सैन्य विस्तार का हिस्सा होगा।

इसकी जानकारी जापान के रक्षा मंत्रालय के वार्षिक बजट में दी गई है। इसके तहत अन्य सैन्य हथियार भी विकसित किए जाएँगे। इनमें हाइपरसोनिक हथियारों का विकास भी शामिल है।

ये फ़ैसला जापान की अब तक की सैन्य निर्माण की नीति से बिल्कुल अलग है। जापान ने दशकों से अपनी सैन्य क्षमताओं और हथियारों के विकास को सीमित किया हुआ है।

अपने बजट में रक्षा मंत्रालय ने इस बात पर ख़ास ध्यान दिलाया है कि चीन एकतरफ़ा ताक़त के इस्तेमाल की धमकियाँ दे रहा है। इसमें उत्तर कोरिया को भी एक ख़तरा बताया गया है।

हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने ताइवान के नज़दीक चीन के जारी सैन्य अभ्यास की निंदा की थी और इसे 'बड़ी समस्या' बताया था। प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने चीन के आक्रामक रवैए को जापान की क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए भी बड़ा ख़तरा माना है।

जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र में गिरी चीन की पाँच मिसाइलों के बाद ये भी चिंता जताई जा रही है कि अगर ताइवान के साथ कुछ हुआ तो जापान भी उससे प्रभावित होगा।

जापान में सुरक्षा एक विभाजनकारी मुद्दा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध में हारने के बाद, अमेरिका के कहने पर जापान ने शांतिवादी संविधान अपनाया और बदले में अमेरिका ने जापान की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठाई।

जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 के तहत, वह कभी भी किसी देश के साथ अपने विवाद को सुलझाने के लिए सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।

क्या पाकिस्तान दशकों की सबसे भीषण बाढ़ से निपट सकता है?

पाकिस्तान में इस साल की मानसूनी बारिश ने ज्यादातर लोगों की यादों में सबसे विनाशकारी बाढ़ ला दी है।

कुछ प्रांतों में जून के बाद से औसत बारिश से पांच गुना अधिक बारिश हुई है।

जलवायु परिवर्तन मंत्री ने इसे 'महाकाव्य अनुपात की जलवायु-प्रेरित मानवीय आपदा' कहा है।

1,100 से अधिक लोग मारे गए हैं, और सैकड़ों हजारों बेघर हैं।

क्या पाकिस्तान परिणामी मानवीय संकट का सामना कर सकता है?

प्रस्तुतकर्ता: रॉब मैथेसन

मेहमान:

डावर बट - पर्यावरण नीति विश्लेषक

सारा हयात - जलवायु परिवर्तन नीति में विशेषज्ञता वाली वकील

पीटर ओफ़ॉफ़ - पाकिस्तान में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसाइटीज़ के प्रमुख

क्या लीबिया एक और गृहयुद्ध के कगार पर है?

दो साल की सापेक्षिक शांति के बाद लीबिया की राजधानी में लड़ाई फिर से शुरू हो गई है।

मध्य त्रिपोली में प्रतिद्वंद्वी मिलिशिया के बीच सड़क पर लड़ाई में दर्जनों लोग मारे गए हैं।

सशस्त्र समूहों को त्रिपोली में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करने वालों और पूर्वी शहर टोब्रुक में स्थित एक प्रतिद्वंद्वी संसद का समर्थन करने वालों के बीच विभाजित किया गया है।

क्या अराजकता से बाहर निकलने का कोई रास्ता है?

प्रस्तुतकर्ता: एड्रियन फ़िनिघान

मेहमान:

सालाह अलबकौश - लीबिया की राज्य उच्च परिषद के पूर्व सलाहकार

जेसन पैक - अध्यक्ष, लीबिया-विश्लेषण एलएलसी

मंसूर एल किखिया - राजनीति के प्रोफेसर, सैन एंटोनियो में टेक्सास विश्वविद्यालय

ईरान ने इसराइल को अरब देशों से दोस्ती पर कड़ी चेतावनी दी

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कुछ अरब देशों और इसराइल के बीच संबंधों के समान्य होने की आलोचना की है और साथ ही इसे लेकर इसराइल को कड़ी चेतावनी दी है।

इब्राहिम रईसी ने ईरान के नेशनल आर्मी डे पर तेहरान में एक सैन्य परेड के दौरान अरब और इसराइल देशों के संबंधों का ज़िक्र किया।

उन्होंने वहाँ इसराइल को चेतावनी देते हुए कहा, ''इसराइल अगर कुछ देशों के साथ संबंध सामान्य करना चाहता है तो उसे मालूम है कि उसकी छोटी-से-छोटी हरकत हमसे छिपी नहीं है।''

''अगर वे कोई ग़लती करते हैं, तो हम सीधे यहूदी शासन के दिल पर चोट करेंगे और हमारी सेना की शक्ति उन्हें शांति से बैठने नहीं देगी।''

ईरानी मीडिया के अनुसार कोरोना महामारी की वजह से दो साल के अंतराल के बाद सैन्य परेड हुई जो ईरान के वरिष्ठ नेताओं और सैन्य अधिकारियों की मौजूदगी में परेड आयोजित की गई।

इसमें सेना के नए हथियारों और उपकरणों का भी प्रदर्शन किया गया। इस दौरान इब्राहिम रईसी ने ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की भी जमकर तारीफ़ की।

ईरान और इसराइल की दुश्मनी जगजाहिर

ईरान इसराइल को मान्यता नहीं देता है। जबकि इसराइल भी कई बार कह चुका है कि वो परमाणु शक्ति संपन्न ईरान को बर्दाश्त नहीं करेगा।  ईरान और पश्चिमी देशों के बीच हुआ परमाणु समझौता डोनाल्ड ट्रंप ने ख़त्म कर दिया था। लेकिन जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से नए सिरे से परमाणु समझौते को लागू करने की क़वायद चल रही थी।

मार्च 2022 में ही ये बातचीत भी रद्द हो गई क्योंकि ईरान चाह रहा था कि अमेरिका अपने विदेशी आतंकी संगठन की लिस्ट से रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प को हटा दे लेकिन ये मुद्दा सुलझ नहीं सका और बातचीत भी बंद पड़ गई।

ईरान कई बार ये आरोप लगा चुका है कि इसराइल ने उसके परमाणु ठिकानों पर हमला किया है और ईरान के न्यूक्लियर वैज्ञानिकों की हत्या कराई है। इसराइल इन आरोपों को न तो नकारता है और न ही इसकी पुष्टि करता है।

साथ ही इसराइल और ईरान के बीच समुद्र में अघोषित टकराव भी सामने आता रहता है, जिसमें जहाजों पर रहस्यमय हमले होते हैं।

इसराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को लेकर अपनी चिंताएं जताता रहा है। इसराइल को शक है कि ईरान परमाणु हथियारों का निर्माण कर रहा है, जिससे ईरान इनकार करता रहा है।

इसराइल और खाड़ी देशों की क़रीबी पर ईरान की नज़र

हाल के कुछ सालों में खाड़ी के कई देश इसराइल के क़रीब आए हैं। अभी मार्च 2022 में ही इसराइल में चार अरब देशों का बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें शामिल होने के लिए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी पहुंचे।

इस सम्मेलन में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और मिस्र के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। ये पहली बार था जब इसराइल ने इतने सारे अरब देशों के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक आयोजित की है।

ऐसी बैठक और क़रीबी को मध्य-पूर्व में ईरान के ख़िलाफ़ एक नए क्षेत्रीय गठजोड़ के तौर पर भी देखा जा रहा है। ये भी कहा जा रहा है कि मुलाक़ात ने ये भी साफ़ कर दिया है कि अब अरब देश फ़लस्तीन विवाद के मुद्दे का हल निकाले बिना ही इसराइल के साथ संबंध बढ़ाने के लिए तैयार हैं।

इसराइली मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक, बैठक के आख़िर में इसराइली विदेश मंत्री याएर लैपिड ने बताया कि सम्मेलन में शामिल होने वाले सभी देशों के बीच ड्रोन और मिसाइल हमलों, समुद्री हमलों से सुरक्षा के लिए एक ''क्षेत्रीय व्यवस्था'' बनाए जाने को लेकर चर्चा हुई। याएर लैपिड का इशारा ईरान या उसके सहयोगी देशों की ओर था।

दरअसल, ये सभी देश ईरान की गतिविधियों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।

सऊदी अरब, बहरीन और यूएई, ईरान और उसके इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) को लेकर भी हमेशा संदेह में रहे हैं। बीबीसी के सुरक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर ने अपनी रिपोर्ट में इसके एक कारण का ज़िक्र करते हुए लिखा है, ''वो ईरान को लेकर सतर्क रहते हैं क्योंकि ईरान ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन करते हुए मध्य पूर्व में ताक़तवर छद्म मिलिशिया गुटों का नेटवर्क तैयार किया है।''

ऐसे में ईरान, इसराइल के साथ अपने दुश्मनी के संबंधों को खुलकर जाहिर कर ही रहा है साथ ही इसराइल पर निशाना साध अरब देशों को अपने रुख के बारे में संकेत भी दे रहा है।

हालांकि, नेशनल आर्मी डे पर इब्राहिम रईसी ने कहा, "हमारी रणनीति हमला करने की नहीं बल्कि बचाव की है।''

उन्होंने आगे कहा, ''ईरान की सेना ने ख़ुद को और मजबूत बनाने के लिए प्रतिबंधों के मौके का अच्छा इस्तेमाल किया है और हमारा सैन्य उद्योग सबसे अच्छे आकार में है।''