विज्ञान और टेक्नोलॉजी

एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

एचआईवी को लेकर वैज्ञानिकों का दावा, संक्रमित जीन कोशिका से निकाला जा सकता है

बुधवार, 20 मार्च 2024

वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सफलतापूर्वक कोशिका से एचआईवी को निकाल कर अलग किया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, उन्होंने नोबेल प्राइज़ जीतने वाली क्रिस्पर जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल कर संक्रमित कोशिका से एचआईवी को काटकर अलग किया है।

उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल कर मॉलिक्यूलर स्तर पर कैंची की तरह डीएनए से काट कर संक्रमित हिस्सों को अलग किया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एमस्टरडैम की टीम का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस तरीक़े से शरीर से एचआईवी संक्रमण को निकाला जा सकता है।

हालांकि इसी सप्ताह एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में इससे संबंधित शोध के बारे में और जानकारी देते हुए टीम ने कहा कि मौजूदा शोध इस ''कॉन्सेप्ट'' को साबित करता है कि इस तरह से कोशिका के डीएनए से संक्रमित हिस्सा निकाला जा सकता है लेकिन इस तरीके से जल्द एचआईवी का इलाज हो सकेगा ऐसा नहीं है।

एचआईवी को लेकर अब तक जो दवाएं मौजूद हैं वो इसे फैलने से रोककर इसका इलाज करती हैं, लेकिन वो इसे पूरी तरह से शरीर से ख़त्म नहीं कर सकतीं।

वैज्ञानिकों ने धरती पर सबसे बड़े रेगिस्तान से जुड़ा रहस्य सुलझाया

वैज्ञानिकों ने धरती पर सबसे बड़े रेगिस्तान से जुड़ा रहस्य सुलझाया

सोमवार, 4 मार्च 2024

पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े और पेचीदा रेगिस्तानों की उम्र पहली बार सामने आई है।

स्टार ड्यून्स या पिरामिड ड्यून्स का नाम इनके अनोखे आकार और सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर रखा गया।

इस तरह के रेगिस्तान अफ़्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका के साथ ही मंगल ग्रह पर पाए जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ आज से पहले कभी ये पता नहीं लगा पाए थे कि आख़िर ये रेगिस्तान कब बने।

अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मोरक्को में लाला लालिया नाम का रेगिस्तान 13 हज़ार वर्ष पहले बना था।

स्टार ड्यून्स दिशा बदलने वाली विपरीत हवाओं से बनते हैं।

इस शोध को प्रकाशित करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ़ एबेरिस्तविद के प्रोफ़ेसर जॉफ़ डलर ने कहा कि इन रेगिस्तानों की उम्र का पता लगाने से वैज्ञानिकों को उन हवाओं को समझने में मदद होगी और उस दौर के जलवायु के बारे में पता चलेगा।

लाला लालिया दक्षिण-पूर्व मोरक्को में स्थित है। यहां रेत के टीले 100 मीटर ऊंचे और 700 मीटर चौड़े हैं। ये रेगिस्तान बनने के बाद करीब 8000 सालों तक नहीं बढ़ा और फिर पिछले कुछ हज़ार सालों में ये तेज़ी से बढ़ता चला गया।

वैज्ञानिकों ने जिस विधि का इस्तेमाल किया गया उसमें ये पता लगाया गया है कि आख़िरी बार रेत के कण दिन की रोशनी के संपर्क में कब आए थे।

रेत के नमूने अंधेरे में लिए गए और फिर लैब में मंद रोशनी में पुराने फोटोग्राफ़ी वर्कशॉप की तरह इसका अध्ययन किया गया।

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

वैज्ञानिकों ने कैंसर के बेहतर इलाज के लिए अध्ययन में क्या पाया?

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

इंग्लैंड में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पता लगाया है कि किसी मरीज के पूर्ण जेनेटिक मेकअप से कैंसर के बेहतर इलाज में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं।

ये अध्ययन नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इसमें 13 हजार से ज़्यादा मरीजों की जानकारियों का विश्लेषण किया गया है।

इसमें ट्यूमर के विकास के पीछे म्यूटेशन का विश्लेषण और डीएनए का अध्ययन ये देखने के लिए किया गया है कि मरीज कहीं इस तरह के जीन के साथ पैदा तो नहीं हुआ जिसकी वजह से इस बीमारी का ख़तरा बढ़ गया।

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मस्तिष्क ट्यूमर, 50 फ़ीसदी आंत और फेफड़े के कैंसर में जेनेटिक बदलाव होते हैं जिससे मरीज के इलाज जैसे कि सर्जरी और खास तरह के इलाज पर असर पड़ता है।

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार

क्वांटम डॉट्स विकसित करने के लिए तीन वैज्ञानिकों को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है।

ये तीनों वैज्ञानिक अमेरिका में रहते हैं।

नोबेल पुरस्कार विजेताओं में मोंगी जी बावेंडी, लुईस ई ब्रूस और एलेक्सी आई एकिमोव है जो 8.24 लाख पाउंड का पुरस्कार साझा करेंगे।

क्वांटम डॉट्स क्या है?

अधिकांश लोगों ने शायद अपने टीवी सेट पर छोटे क्रिस्टल को देखा होगा जिनके छोटे-छोटे बिंदु मिलकर रंग बनाते हैं।

असल में ये क्वांटम डॉट्स अति सूक्ष्म होते हैं और एक मिलीमीटर में इनकी संख्या दसियों लाख हो सकती है।

रूसी भौतिकशास्त्री एलेक्सेई आई एकिमोव को 1980 के दशक में क्वांटम डॉट्स की खोज का श्रेय दिया जाता है और बाद में एक अमेरिकी केमिस्ट लुईस ई ब्रूस ने पता लगाया कि द्रव में क्रिस्टल को पैदा किया जा सकता है।

इसके बाद पेरिस मूल के मोंगी जी बावेंडी ने क्वांटम डॉट्स कणों को और नियंत्रित तरीके से बनाने की विधि खोजी।

इन क्वांटम डॉट्स का इस्तेमाल कैंसर की दवाओं के बेहतर प्रयोग और सर्जरी के लिए मेडिकल इमेजिंग और सोलर पैनल्स में भी होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दी: एसआईआई

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया की दूसरी मलेरिया वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है।

डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन के प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल के डेटा के आधार पर ये मंज़ूरी दी है। परीक्षणों में ये टीका चार देशों में काफ़ी असरदार पाया गया।

समाचार एजेंसी पीटीआई की ख़बर के अनुसार एसआईआई ने एक बयान में कहा है कि यह बच्चों को मलेरिया से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी पाने वाला दुनिया का दूसरा टीका बन गया है।

इस आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया वैक्सीन को एसआईआई ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया है।

एसआईआई ने कहा है कि उसने हर साल टीके की 10 करोड़ खुराक के उत्पादन की व्यवस्था कर ली है और अगले दो सालों में ये उत्पादन दोगुना हो जाएगा।

फिलहाल ये वैक्सीन घाना, नाइजीरिया और बुर्किना फासो में इस्तेमाल की जा रही है। लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंज़ूरी के बाद इसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जा सके।

तीन वैज्ञानिकों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला

साल 2023 के भौतिकी का नोबेल प्राइज़ प्रकाश के 'सबसे छोटे क्षणों' को कैप्चर करने के लिए 'प्रयोग' करने वाले वैज्ञानिकों को मिला है। पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिक हैं - पियर अगस्तिनी, फ़ेरेंक क्राउज़ और एन ल'हुलिए।

इन वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के ज़रिए दिखाया कि कैसे प्रकाश की बेहद सूक्ष्म तरंगे संरचित की जा सकती हैं और इनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा परिवर्तन की तीव्र प्रक्रिया को मापने के लिए किया जा सकता है।

प्रोफ़ेसर पियर अगस्तिनी अमेरिकी ओहायो यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर फ़ेरेंक क्राउज़ जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में क्वांटम ऑपटिक्स पढ़ाते हैं। प्रोफ़ेसर एन ल'हुलिए स्वीडन की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं।

एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों को मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार

मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिकों की उस जोड़ी को देने का ऐलान किया गया है जिसने एमआरएनए कोविड वैक्सीन की तकनीक ईजाद की।

ये दो वैज्ञानिक डॉ. कैटालिन कारिको और डॉ. ड्रियू वाइसमैन हैं।

इस तकनीक के प्रयोग कोविड महामारी से पहले किए गए थे लेकिन बाद में इसे दुनिया भर के लाखों लोगों को दिया गया।

कैंसर समेत अन्य रोगों को लेकर इसी एमआरएनए तकनीक पर आगे और शोध किए जा रहे हैं।

एमआरएनए यानी मैसेंजर रायबोन्यूक्लिक एसिड शरीर को प्रोटीन बनाने का तरीक़ा बताती है।

स्वीडन के वैज्ञानिक स्वांते पाबो को साल 2022 का मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार मिला

स्वीडन के वैज्ञानिक स्वांते पाबो ने साल 2022 का मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार हासिल किया है।

नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था ने सोमवार, 3 अक्टूबर 2022 को एक ट्वीट कर बताया कि वैज्ञानिक स्वांते पाबो को ये पुरस्कार ''विलुप्त होमिनिन के जीनोम और मानव विकास'' से जुड़ी उनकी ख़ोज के लिए दिया गया है।

इस नोबेल पुरस्कार की घोषणा के साथ ही एक सप्ताह तक घोषित होने वाले पुरस्कारों की शुरुआत हो गई।

वैज्ञानिक दुनिया की यह यकीनन सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इसे स्वीडन की करोलिंस्का संस्थान की नोबेल असेंबली द्वारा दिया जाता है। पुरस्कार के तहत मिलने वाली रकम क़रीब 10 मिलियन स्वीडिश क्राउन जितनी है ($900,437)।

नोबेल पुरस्कार क्यों दिया जाता है?

डायनामाइट के आविष्कारक और स्वीडेन के एक धनी व्यवसायी अल्फ्रेड नोबेल ने इस पुरस्कार की स्थापना की थी। 1896 में अपनी मृत्यु से एक वर्ष पहले उन्होंने अपनी वसीयत में इसकी व्यवस्था की। जिसके बाद साल 1901 से हर साल विज्ञान, साहित्य और शांति जैसे क्षेत्रों में उपलब्धियों के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है। बाद में अर्थशास्त्र को भी इसमें शामिल किया गया।

भारत ने ड्रोन को तबाह करने वाले मिसाइल का परीक्षण पूरा किया

भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय सेना ने सतह से हवा में मार करने वाली क्विक रिएक्शन मिसाइल (QRSAM) के सभी 6 परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया।

DRDO ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किए गए एक ट्वीट में बताया कि ओडिशा के चांदीपुर स्थित इंटिग्रेटेड टेस्ट रेंज (ITR) से गुरुवार, 8 सितम्बर 2022 को किया गया ताज़ा परीक्षण भारतीय सेना के मूल्यांकन अभ्यास का एक हिस्सा है।

मिसाइल ने इस दौरान अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना साधा। इस मिसाइल को ड्रोन जैसे पायलट रहित यानों को मार गिराने के लिए बनाया गया है।

यह सिस्टम कई चीजों पर नज़र रखने और लक्ष्य को साधने में सक्षम है। इसे विकसित करने में DRDO की कई प्रयोगशालाओं का योगदान रहा है।

QRSAM में इस्तेमाल सभी उपकरणों जैसे बैटरी मल्‍टीफंक्‍शन रडार, बैटरी सर्विलांस रडार, बैटरी कमांड पोस्‍ट व्‍हीकल और मोबाइल लाॅन्चर को भारत में ही तैयार किया गया है।

यह सिस्‍टम इतना सक्षम है कि यह मूव करते हुए टारगेट को डिटेक्‍ट और ट्रैक कर सकता है।

वियतनाम में मिला कोरोना वायरस वैरिएंट हवा के ज़रिए तेज़ी से फैलता है

वियतनाम में कोरोना वायरस का एक ऐसा वैरिएंट पाया गया है जो भारत और ब्रिटेन में पहले पाए गए वैरिएंट्स का मिलाजुला रूप है। अधिकारियों का कहना है कि यह हवा के ज़रिए तेज़ी से फैलता है।

वियतनाम के स्वास्थ्य मंत्री गुयेन थान्ह लॉन्ग ने शनिवार, 29 मई 2021 को कहा कि कोरोना का ये नया वैरिएंट बहुत ही ख़तरनाक है।

वायरस हमेशा अपना रूप बदलता है, यानी म्यूटेट करता है। ज़्यादातर वैरिएंट्स बहुत प्रभावी नहीं होते हैं लेकिन कुछ वायरस म्युटेशन के बाद ज़्यादा संक्रामक हो जाते हैं।

जनवरी 2020 में सीओवीआईडी-19 के वायरस की पहचान के बाद से अब तक इसके कई म्यूटेशन्स सामने आ चुके हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार वियतनाम के स्वास्थ्य मंत्री ने सरकार की एक बैठक में कहा, ''वियतनाम में कोरोना वायरस का एक नया वैरिएंट मिला है, जो ब्रिटेन और भारत में सबसे पहले मिले वायरस वैरिएंट का मिलाजुला रूप है।''

उन्होंने कहा, ''नया वैरिएंट पहले वाले की तुलना में ज़्यादा संक्रामक है। यह हवा में तेज़ी से फैलता है। नए मरीज़ों की जाँच के बाद यह वैरिएंट सामने आया है। इस वायरस का जेनेटिक कोड जल्द उपलब्ध होगा।''

भारत में अक्टूबर 2020 में कोरोना वायरस एक वैरिएंट मिला था। इस वैरिएंट को B.1.617 कहा जा रहा है। इसे यूके में मिले कोरोना वैरिएंट B.1.1.7 से ज़्यादा ख़तरनाक बताया जा रहा है।

रिसर्च के अनुसार फ़ाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की दो डोज भारत में मिले वायरस वैरिएंट के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा प्रभावी हैं। लेकिन इन वैक्सीन की एक डोज़ इसके ख़िलाफ़ अधिक प्रभावी नहीं है।

अभी तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस के किसी म्यूटेशन के कारण बड़ी आबादी में गंभीर बीमारी फैली हो।

कोरोना वायरस के मूल वर्जन को ही ज़्यादा उम्र वालों और पहले से बीमार लोगों के लिए अधिक ख़तरनाक बताया गया है। लेकिन बिना वैक्सीन के वायरस ज़्यादा संक्रामक हो रहा है और इसके कारण ज़्यादा मौतें हो रही हैं।

वियतनाम में हाल के हफ़्तों में कोरोना के नए मामले तेज़ी से बढ़े हैं।  वियतनाम में महामारी शुरू होने के बाद से अब तक 6,700 से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन इनमें से आधा से ज़्यादा मामले अप्रैल 2021 के बाद दर्ज किए गए हैं। कोरोना से अब तक यहां 47 लोगों की मौत हुई है।