'बंगाल में बीजेपी जीती तो शेख़ हसीना के लिए चुनौतियाँ बढ़ेंगी'
'ढाका ट्रिब्यून' में नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के सीनियर फ़ेलो पार्थ एस घोष का नज़रिया लेख छपा है। इस लेख में कहा गया है कि अगर बीजेपी पश्चिम बंगाल में जीत जाती है तो शेख़ हसीना के लिए राजनीतिक चुनौतियां कई गुना बढ़ जाएंगी।
इस लेख में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी का 'हिंदुत्व' और शेख़ हसीना की 'धर्मनिरपेक्षता' मौलिक रूप से एक-दूसरे से उलट हैं।
लेख के मुताबिक़, 27 मार्च 2021 से शुरू हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी हिंदू-मुस्लिम विभाजन की बात कर रहे हैं, जो पश्चिम बंगाल की राजनीति में पहले कभी नहीं देखा गया।
इसमें लिखा है, ''मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से हिंदुत्व ने बंगाल की राजनीति में एंट्री ले ली। हाल में बीजेपी ने बंगाल की राजनीति में मज़बूत मौजूदगी दर्ज कराई और 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से 18 अपने नाम कर ली।''
इस लेख में कहा गया है कि भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश को पश्चिम बंगाल के आठों चरणों की वोटिंग और फिर दो मई 2021 के नतीजों को लेकर सोचना पड़ेगा।
पार्था एस घोष लेख में याद करते हैं कि विभाजन के बाद जब भारत के अन्य हिस्से हिंदू-मुसलमान दंगों से जूझ रहे थे तब बंगाल शांति का प्रतीक बना हुआ था।
वो लिखते हैं, ''शेख़ हसीना और नरेंद्र मोदी के लिए साफ़ तौर पर अवसर एक से हैं, लेकिन गहराई में जाकर देखें तो गंभीर विरोधाभास उभरते हैं। बांग्लादेश भारत से ख़ुश है क्योंकि उसे आर्थिक फायदा हो रहा है। भारत के साथ उसके निर्यात में 300% बढ़ोतरी दर्ज की गई है। भारत भी ख़ुश है क्योंकि बांग्लादेश उत्तरपूर्व स्थित उग्रवादियों को अपनी ज़मीन इस्तेमाल करने देने से रोक रहा है लेकिन संगम के इन बिंदुओं से परे एक विशाल और ख़तरनाक समुद्र है।''
''अगर बीजेपी पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल कर लेती है तो हसीना के लिए राजनीतिक चुनौतियां कई गुना बढ़ जाएंगी। हसीना-मोदी के संयुक्त बयान की अच्छी-अच्छी बातों का बहुत कम महत्व रह जाएगा।''
''रिश्ते बिगड़ सकते हैं क्योंकि ना तो नरेंद्र मोदी और ना ही अमित शाह दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय मानसिकता को समझते हैं। उनके लिए विदेश नीति एक तरह से घरेलू राजनीति ही है। हम सभी जानते हैं कि वो घरेलू राजनीति कैसी है।''