गिलगित-बल्तिस्तान: पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर भारत ने क्यों नाराजगी दिखाई?
भारत ने गिलगित-बल्तिस्तान में चुनाव कराए जाने को मंज़ूरी देने के पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
ब्रिटेन से आज़ादी से पहले गिलगित-बाल्तिस्तान जम्मू-कश्मीर रियासत का अंग हुआ करता था। लेकिन 1947 के बाद से इस पर पाकिस्तान का नियंत्रण है।
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का हवाला देते हुए वहाँ जनमत संग्रह कराए जाने की मांग करता रहा है।
दूसरी ओर भारत का कहना है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और भारत में उसका विलय क़ानूनी है। इस नाते गिलगित-बल्तिस्तान भी उसके हैं।
इसलिए जब 30 अप्रैल को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने वहाँ चुनाव कराने को मंज़ूरी दी, तो भारत नाराज़ हो गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है।
विदेश मंत्रालय का कहना है कि पाकिस्तान को चुनाव कराने की बजाए गिलगित-बल्तिस्तान को तुरंत ख़ाली करना चाहिए। मंत्रालय ने जारी किए गए अपने बयान में कहा है कि वहाँ चुनाव कराने का पाकिस्तान को कोई अधिकार नहीं है।
भारत का कहना है कि पाकिस्तान ने ग़ैर क़ानूनी रूप से इन क्षेत्रों को अपने क़ब्ज़े में रखा हुआ है।
भारत की प्रतिक्रिया पर पाकिस्तान ने क्या कहा है?
गिलगित-बल्तिस्तान पर भारत की प्रतिक्रिया को पाकिस्तान ने ख़ारिज कर दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में ये जानकारी दी गई है।
प्रेस रिलीज़ के मुताबिक़ एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को बुलाकर पाकिस्तान ने कहा है कि भारत की प्रतिक्रिया आधारहीन और भ्रामक है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का कहना है कि जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानने का भारत के दावे का कोई क़ानूनी आधार नहीं है और पूरा का पूरा जम्मू-कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और ऐसा अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी मानता है।
पाकिस्तान ने प्रेस रिलीज़ में अपना पक्ष दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर विवाद का फ़ैसला संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए, जिसमें कश्मीरी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया गया है। इसका फ़ैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह से ही हो सकता है।
पाकिस्तान ने कहा है कि पिछले साल अगस्त में भारत की ओर से जम्मू-कश्मीर की डेमोग्राफ़ी के साथ जो छेड़छाड़ की गई है, वो जिनेवा संधि का उल्लंघन है। भारत ने पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर को स्वायत्ता देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया था।
साथ ही जम्मू और कश्मीर और लद्दाख़ को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया था।
पाकिस्तान का कहना है कि भारत गिलगित-बल्तिस्तान का मुद्दा उठाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इससे नहीं भटका सकता कि उसकी सेना कश्मीरी लोगों को कैसे प्रताड़ित करती है।
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट का फैसला
30 अप्रैल को अपने आदेश में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वहाँ चुनाव कराए जाने चाहिए और इस बीच वहाँ एक अंतरिम सरकार का गठन करना चाहिए।
और यही एक फ़ैसला है, जो गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर पहली बार हुआ है। आम तौर भी पाकिस्तान में नए चुनाव से पहले एक अंतरिम सरकार का गठन होता है, जो चुनाव की निगरानी करती है।
पाकिस्तान में बीबीसी उर्दू सेवा के न्यूज़ एडिटर ज़ीशान हैदर के मुताबिक़ अभी तक गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र के लिए ऐसा नहीं होता था। ऐसा पहली बार हुआ है कि वहाँ एक अंतरिम सरकार की अगुआई में सितंबर में चुनाव होंगे।
गिलगित-बल्तिस्तान में पहले भी कई बार चुनाव हुए हैं और कई मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लेकिन इस बार का चुनाव अंतरिम सरकार की निगरानी में होगा।
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ग़ुलज़ार अहमद की अगुआई वाली सात सदस्यीय खंडपीठ ने 2018 के गिलगित-बल्तिस्तान सरकार के आदेश को संशोधित करते हुए चुनाव कराने की बात कही है।
2018 में पाकिस्तान ने कई महत्वपूर्ण अधिकार गिलगित-बल्तिस्तान असेंबली को दे दिए थे, हालांकि उसमें भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अहम रोल होता था।
पहले गिलगित-बल्तिस्तान पर फ़ैसला करने के लिए एक कमेटी होती थी, जिसके प्रमुख पाकिस्तान के पीएम होते थे। लेकिन 2009 के इस आदेश को 2018 में संशोधित कर दिया गया था।
गिलगित-बल्तिस्तान की मौजूदा सरकार का कार्यकाल जून में ख़त्म हो रहा है। इसके 30 दिनों के अंदर वहाँ आम चुनाव होने चाहिए।
गिलगित-बल्तिस्तान की स्थिति क्या है?
गिलगित-बल्तिस्तान पर डोगरा वंश का नियंत्रण था। जब कश्मीर के हिन्दू महाराजा हरी सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय पर सहमति जताई, तो यहाँ के बहुसंख्यक मुसलमानों ने विद्रोह कर दिया।
मुसलमानों ने गिलगित-बल्तिस्तान के डोगरा गवर्नर को भगा दिया गया और फिर पाकिस्तान के सैनिकों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया।
1947 से ही जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान अलग-अलग दावे करते रहे हैं।
चीन के शिनजियांग प्रांत और अफ़ग़ानिस्तान से भी इस इलाक़े की सीमा लगती है। इस कारण गिलगित-बल्तिस्तान का सामरिक महत्व भी है।
चीन की चर्चित इकॉनॉमिक कॉरिडोर योजना भी गिलगित-बल्तिस्तान से होकर गुज़रती है। पाकिस्तान को चीन से जोड़ने वाला काराकोरम हाईवे भी इसी इलाक़े में है।
भारत ने पाकिस्तान-चीन इकॉनॉमिक कॉरिडोर को लेकर पहले ही अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज करा चुका है।
1970 में पाकिस्तान ने इसे अलग प्रशासनिक इकाई का दर्जा दिया था। वर्ष 2009 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने इसे सीमित स्वायत्ता दी। यहाँ मुख्यमंत्री तो होता है, लेकिन असली शक्ति गवर्नर के हाथों में ही रहती है।
एक समय गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान के आधिकारिक प्रांत के रूप में शामिल करने की मांग उठी थी, लेकिन उस समय पाकिस्तान ने ये कहते हुए इसे ठुकरा दिया कि इससे पूरा जम्मू-कश्मीर मामले को लेकर चल रहे विवाद में उसकी मांग पर असर पड़ेगा।
पाकिस्तान पूरे जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत वहाँ जनमत संग्रह कराने की बात करता है। हालांकि भारत इसे ख़ारिज करता रहा है।
73 हज़ार किलोमीटर में फैले गिलगित-बल्तिस्तान की आबादी क़रीब 20 लाख है।