एनआरसी का असर अन्य राज्यों पर भी पड़ना तय है

एनआरसी में कुल 3,29,91,384 आवेदकों में से अंतिम मसौदे में शामिल किए जाने के लिए 2,89,83,677 लोगों को योग्य पाया गया है। इस दस्तावेज में 40.07 लाख आवेदकों को जगह नहीं मिली है। यह 'ऐतिहासिक दस्तावेज' असम का निवासी होने का प्रमाण पत्र होगा।

बता दें कि 1951 के बाद से भारत में पहली बार अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए इस तरह का कोई लिस्ट जारी किया गया है। माना जा रहा है कि इस लिस्ट के जारी होने के बाद बांगलादेश से हो रहे अवैध प्रवास को रोकने में मदद मिलेगी। इस लिस्ट में 25 मार्च 1971 से पहले से रह रहे लोगों को ही असम का नागरिक माना गया है।

लेकिन एनआरसी पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष ने इस पर कई गंभीर सवाल उठाये हैं और 40 लाख लोगों को इस लिस्ट से निकाले जाने पर इसकी कड़ी आलोचना की है। इन 40 लाख लोगों में सबसे बड़ी संख्या बंगाल के निवासियों की है। दूसरे नंबर पर बिहार, तीसरे पर चंडीगढ़, चौथे पर मणिपुर और पांचवें पर मेघालय के उन निवासियों की है जो चाय बागान में काम करने के दौरान असम में बस गए थे। और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए है जिसे सुनकर ताज्जुब होता है। असम के एनआरसी लिस्ट में बाप का नाम है तो बेटा का नहीं, पति का नाम है तो पत्नी का। इसे आप क्या कहेंगे? गंभीर भ्रष्टाचार या गंभीर अनियमितता या गहरी साजिश!

भारत एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। भारत राज्यों का संघ है। भारत में संघवाद है। जिस तरह से असम के एनआरसी लिस्ट से दूसरे राज्यों के निवासियों को निकाला गया है। यह भारतीय संघवाद पर हमला है और निश्चित तौर पर इसके गंभीर परिणाम होंगे। इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़ना तय है।