अयोध्या में साधु और संत आपस में क्यों लड़ रहे हैं?
भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद में फ़ैसला देते हुए विवादित जगह रामलला को सौंप दी और मंदिर बनाने के लिए सरकार से तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट के गठन को कहा है, लेकिन अब साधु और संतों के विभिन्न संगठनों में इस ट्रस्ट में शामिल होने को लेकर विवाद शुरू हो गया है।
ये विवाद इस स्तर तक पहुंच गया है कि साधु अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ अपशब्द बोल रहे हैं, बल्कि दो समूहों के बीच तो हिंसक संघर्ष तक की नौबत आ गई।
राम जन्मभूमि न्यास के महंत नृत्यगोपालदास पर कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी के बाद उनके समर्थकों ने तपस्वी छावनी के संत परमहंसदास पर हमला बोल दिया और भारी संख्या में पुलिस बल पहुँचने के बाद ही परमहंसदास को वहाँ से सुरक्षित निकाला जा सका।
वहीं परमहंसदास को तपस्वी छावनी ने ये कहते हुए निष्कासित कर दिया गया है कि उनका आचरण अशोभनीय था और जब वो अपने आचरण में परिवर्तन लाएंगे तभी छावनी में उनकी दोबारा वापसी हो पाएगी।
लेकिन इस विवाद में सिर्फ़ यही दो पक्ष नहीं हैं बल्कि मंदिर निर्माण के मक़सद से पहले से चल रहे तीन अलग-अलग ट्रस्ट के अलावा अयोध्या में रहने वाले दूसरे रसूख़दार संत भी शामिल हैं।
दरअसल अयोध्या विवाद अदालत में होने के बावजूद रामलला विराजमान का भव्य मंदिर बनाने के लिए पिछले कई साल से तीन ट्रस्ट सक्रिय थे।
इनमें सबसे पुराना ट्रस्ट श्रीरामजन्मभूमि न्यास है जो साल 1985 में विश्व हिंदू परिषद की देख-रेख में बना था और यही ट्रस्ट कारसेवकपुरम में पिछले कई सालों से मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने का काम कर रहा है।
दूसरा ट्रस्ट रामालय ट्रस्ट है जो बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद साल 1995 में बना था और इसके गठन के पीछे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की भी भूमिका बताई जाती है।
जबकि तीसरा ट्रस्ट जानकीघाट बड़ा स्थान के महंत जन्मेजय शरण के नेतृत्व में बना श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास है।
ये तीनों ही ट्रस्ट अब यह कह रहे हैं कि जब पहले से ही मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट मौजूद है तो सरकार को किसी अन्य ट्रस्ट के गठन की क्या ज़रूरत है? ये सभी ट्रस्ट अपने नेतृत्व में मंदिर निर्माण ट्रस्ट बनाने के लिए दबाव बना रहे हैं।
वीएचपी के नेतृत्व वाले श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिरामदास छावनी के संत महंत नृत्यगोपाल दास हैं।
राम मंदिर आंदोलन के दौरान मंदिर निर्माण के लिए जो चंदा इकट्ठा किया गया, करोड़ों रुपये की वह धनराशि भी इसी ट्रस्ट के पास है।
चूंकि वीएचपी ने ही मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए आंदोलन का नेतृत्व किया था इसलिए फ़ैसले के बाद वीएचपी के नेता और उससे जुड़े धर्माचार्य इसी ट्रस्ट के माध्यम से मंदिर बनाने का दावा कर रहे हैं और इसके लिए अभियान चला रहे हैं।
जबकि रामालय ट्रस्ट का गठन साल 1995 में द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती समेत 25 धर्माचार्यों की मौजूदगी में अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए किया गया था। इसके गठन में श्रृंगेरीपीठ के धर्माचार्य स्वामी भारती भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद रामालय ट्रस्ट के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर बनाने का क़ानूनी अधिकार उन्हीं के पास होने का दावा ठोंक दिया। इसके लिए पिछले हफ़्ते दिल्ली में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी की थी।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, "अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद रामालय ट्रस्ट मंदिर निर्माण के ही निमित्त बना है। मंदिर निर्माण धर्माचार्यों के ही माध्यम से होना चाहिए। इसके लिए हमें किसी सरकारी मदद और हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है। सरकार के इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप करने पर हम कोर्ट भी जा सकते हैं।''
रामालय ट्रस्ट का दावा ठीक वैसा ही है जैसा कि श्रीरामजन्मभूमि न्यास का। दोनों का कहना है कि उन्हें मंदिर निर्माण की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए और नया ट्रस्ट बनाने की ज़रूरत नहीं है।
रामालय ट्रस्ट का तर्क है कि उनका गठन बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुआ है और उससे पहले बने ट्रस्ट अवैध हैं जबकि वीएचपी और श्रीरामजन्मभूमि न्यास का कहना है कि मंदिर निर्माण के लिए अदालती लड़ाई उन्होंने लड़ी है, इसलिए मंदिर बनाने का भी अधिकार उन्हीं को है।
जबकि इस विवाद में मुख्य पक्षकार रहे निर्मोही अखाड़े का कहना है कि नया ट्रस्ट जो भी बने, उसमें उसकी अहम भूमिका हो। निर्मोही अखाड़े की भूमिका की बात सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में भी की है।
वहीं श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास के अध्यक्ष जन्मेजय शरण कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने के लिए अधिकृत किया है, इसलिए यह अधिकार केंद्र सरकार को ही है कि वह कोई नया ट्रस्ट बनाए जो मंदिर निर्माण करे। यदि यह काम अकेले विश्व हिन्दू परिषद को दिया जाता है तो हम इसका विरोध करेंगे। सभी को निजी हितों को छोड़कर केवल मंदिर निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। सरकार को चाहिए कि सभी न्यासों से प्रतिनिधियों को शामिल करके एक नया ट्रस्ट बनाए और इसकी निगरानी सरकार करे।''
इन सबके अतिरिक्त, रामलला विराजमान के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं कि ट्रस्ट का गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ही हो, न कि किसी पुराने ट्रस्ट को ये ज़िम्मा दिया जाए।
उनके मुताबिक, "सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है। इसी आदेश के तहत नया ट्रस्ट बने। पहले से जो ट्रस्ट राम मंदिर के निर्माण के नाम पर बने हैं, उन्हें भी अपनी संपत्तियां और इसके लिए इकट्ठा किए गए चंदे इसी सरकारी ट्रस्ट को सौंप देना चाहिए। सरकार को चाहिए कि जो लोग ऐसा न करें, उनसे ज़बरन लिया जाए।''
सत्येंद्र दास किसी का नाम तो नहीं लेते लेकिन निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास सीधे तौर पर कहते हैं कि विश्व हिन्दू परिषद को मंदिर निर्माण के नाम पर इकट्ठा किए गए ईंट, शिलाएं और यहां तक कि नकदी भी सरकार को सौंप देनी चाहिए।
लेकिन विश्व हिन्दू परिषद इसे इतनी आसानी से सौंप देगा, ऐसा लगता नहीं है।
वीएचपी प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं कि केंद्र सरकार उनके काम की उपेक्षा नहीं कर सकती है।
शरद शर्मा कहते हैं, ''हम वर्षों से मंदिर निर्माण में लगे हुए हैं, हमारे संगठन ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया है। देश-विदेश के सभी हिन्दुओं का हमें समर्थन और सहयोग मिला है। मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि प्रधानमंत्री मोदी हमसे सलाह लेंगे।''
मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट को लेकर चल रहे इस विवाद में दो महंतों के बीच हुई एक बातचीत के वायरल ऑडियो क्लिप ने आग में घी का काम कर दिया।
अयोध्या में संत समुदायों के बीच प्रसारित हो रहे एक ऑडियो क्लिप में राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे वीएचपी नेता और बीजेपी के पूर्व सांसद रामविलास वेदांती कह रहे हैं कि वह मंदिर ट्रस्ट का प्रमुख बनना चाहते हैं।
हालांकि हम इस ऑडियो क्लिप की पुष्टि नहीं करते हैं लेकिन इस क्लिप ने अयोध्या के संतों में काफ़ी हलचल पैदा कर दी है।
यह ऑडियो क्लिप कथित रूप से रामविलास वेदांती और तपस्वी छावनी के प्रमुख महंत परमहंसदास के बीच बातचीत का है।
इसी ऑडियो क्लिप में महंत परमहंसदास कथित रूप से राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्यगोपाल दास के लिए अशोभनीय शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और इसी से नाराज़ होकर नृत्यगोपालदास के समर्थक साधुओं ने उनके घर पर हमला बोल दिया था।
नृत्यगोपाल दास ने ट्रस्ट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी शामिल करने की मांग कर चुके हैं और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि भी उनकी मांग का समर्थन कर चुके हैं जबकि इस ऑडियो क्लिप में रामविलास वेदांती और परमहंसदास ने योगी आदित्यनाथ को इसमें शामिल करने का विरोध किया है क्योंकि वो रामानंद संप्रदाय से नहीं आकर नाथ संप्रदाय से आते हैं।
हालांकि रामविलास वेदांती इस बातचीत से साफ़ इनकार करते हैं जबकि परमहंसदास इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन महंत नृत्यगोपालदास के ऊपर परमहंसदास कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं।
अयोध्या में वर्षों से मंदिर आंदोलन को क़रीब से देखने वाले स्थानीय पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी कहते हैं, ''सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच के विवाद को भले ही ख़त्म करने की कोशिश की है लेकिन अब अयोध्या में साधु और संतों के बीच विवाद और टकराव बढ़ेंगे। इस बात की आशंका पहले से ही थी कि ट्रस्ट का हिस्सा बनने के लिए हिंदूवादी संगठनों के बीच आपसी टकराव होगा लेकिन अब जिस तरीक़े से स्टिंग ऑपरेशन और एक-दूसरे पर ज़ुबानी हमले हो रहे हैं उससे इस विवाद के बढ़ने की ही आशंका है। अभी तो और भी कई संत हैं जो इस फ़ैसले का लंबे समय से इंतज़ार कर रहे थे, अब वो भी मांग करेंगे कि उन्हें भी ट्रस्ट में शामिल किया जाए।''