ईरान ने क्यों कहा, 'भारत अपनी रीढ़ और मज़बूत करे'?

ईरान के विदेश मंत्री जावेद ज़ारिफ़ ने कहा है कि अगर संपूर्णता में चीज़ों को देखें तो इस्लामिक गणतांत्रिक सभ्यता ईरान और भारत के संबंध टूट नहीं सकते।

हालांकि जावेद ज़ारिफ़ ने कहा कि भारत को अपनी रीढ़ और मज़बूत करनी चाहिए ताकि हमारे ऊपर प्रतिबंधों को लेकर अमरीका के दबाव के सामने झुकने से इनकार कर सके।

ज़ारिफ़ ने भारत और ईरान के बीच सूफ़ी परंपरा के रिश्तों का भी ज़िक्र किया। ईरानी विदेश मंत्री तेहरान में पत्रकारों से बातचीत में ये बातें कह रहे थे। उन्होंने कहा कि अमरीकी प्रतिबंधों से पहले उन्हें उम्मीद थी कि भारत ईरान का सबसे बड़ा तेल ख़रीदार देश बनेगा। उन्होंने कहा कि अमरीकी दबाव के सामने भारत को और प्रतिरोध दिखाना चाहिए।

ज़ारिफ़ ने कहा, ''ईरान इस बात को समझता है कि भारत हम पर प्रतिबन्ध नहीं चाहता है लेकिन इसी तरह वो अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को भी नाराज़ नहीं करना चाहता है। लोग चाहते कुछ और हैं और करना कुछ और पड़ रहा है। यह एक वैश्विक रणनीतिक ग़लती है और इसे दुनिया भर के देश कर रहे हैं। आप ग़लत चीज़ों को जिस हद तक स्वीकार करेंगे और इसका अंत नहीं होगा और इसी ओर बढ़ने पर मजबूर होते रहेंगे।  भारत पहले से ही अमरीका के दबाव में ईरान से तेल नहीं ख़रीद रहा है।''

जावेद ज़ारिफ़ ने ये बातें भारतीय महिला पत्रकारों के एक दल से कही।

पिछले साल ट्रंप ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से बाहर निकल गए थे। ट्रंप का कहना था कि ईरान परमाणु समझौते की आड़ में अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहा है। इसी समझौते के तहत ईरान से 2015 में अमरीकी प्रतिबंध हटा था लेकिन ट्रंप ने फिर से इन प्रतिबंधों को लागू कर दिया था। अमरीकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से ठहर गई है। भारत ने भी इन्हीं प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल ख़रीदना बंद कर दिया।

जावेद ज़ारिफ़ ने कहा, "अगर आप हमसे तेल नहीं ख़रीदेंगे तो ईरान आपका चावल नहीं ख़रीदेगा।''

ईरान ने भारत को ये सुविधा दे रखी दी थी कि तेल का भुगतान अपनी मुद्रा रुपया में करे। यह भारत के लिए फ़ायदेमंद था क्योंकि इससे रुपये की मज़बूती भी बनी रहती थी और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव भी नहीं बढ़ता था। ज़ारिफ़ ने चाबहार पोर्ट के निर्माण में धीमी गति के लिए भी भारत से निराशा ज़ाहिर की।

ज़ारिफ़ ने कहा, "चाबहार भारत और ईरान के लिए काफ़ी अहम है।  चाबहार से क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित होगी। अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता आएगी और इसका मतलब है कि आतंकवाद पर नकेल कसा जा सकता है।''

ज़ारिफ़ ने कहा कि अमरीकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की 80 मिलियन आबादी भुगत रही है। 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान लगातार अमरीकी प्रतिबंध झेल रहा है। इस क्रांति से ईरान में पश्चिम समर्थित शासक शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन का अंत हो गया था।