भारत की तुलना बर्बाद हो रहे अर्जेंटीना से क्यों की जा रही है?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने जब एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए भारत सरकार को देने का फ़ैसला किया तो विपक्षी कांग्रेस ने चेताते हुए कहा कि भारत को अर्जेंटीना से सबक़ लेना चाहिए।
दरअसल, अर्जेंटीना की सरकार ने अपने सेंट्रल बैंक को फंड देने के लिए मजबूर किया था।
ये साल 2010 की बात है। अर्जेंटीना की सरकार ने सेंट्रल बैंक के तत्कालीन चीफ़ को बाहर कर बैंक के रिज़र्व फंड का इस्तेमाल अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए किया था।
अब भारत सरकार के रिज़र्व बैंक से फ़ंड लेने की तुलना अर्जेंटीना के अपने सेंट्रल बैंक से फंड लेने से की जा रही है।
अर्जेंटीना लातिन अमरीका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन आज अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था बेहद ख़राब दौर में है।
विश्लेषक मानते हैं कि अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने की शुरुआत तब ही हो गई थी जब सेंट्रल बैंक से ज़बर्दस्ती पैसा लिया गया था।
भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने 2018 में दिए अपने भाषण में अर्जेंटीना के उस प्रकरण का ज़िक्र किया था।
विरल आचार्य ने जब अर्जेंटीना का ज़िक्र किया तब भी ये कयास लगाए गए थे कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक पर दबाव बना रही है।
जनवरी 2010 में अर्जेंटीना की सेंट्रल बैंक के प्रमुख मार्टिन रेड्राडो ने नाटकीय अंदाज़ में इस्तीफ़ा दे दिया था। इससे कुछ दिन पहले ही सरकार ने उन्हें पद से हटाने की कोशिश भी की थी।
इस्तीफ़ा देते हुए उन्होंने कहा था, "सेंट्रल बैंक में मेरा समय समाप्त हो गया है इसलिए मैंने इस पद को हमेशा के लिए छोड़ने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपना काम पूरा करने पर संतोष है।''
उन्होंने कहा, "हम इस स्थिति में सरकार की संस्थानों में लगातार दख़ल की वजह से पहुंचे हैं। मूल रूप से मैं दो सिद्धांतों का बचाव कर रहा हूं - सेंट्रल बैंक की निर्णय लेने में स्वतंत्रता और रिज़र्व फंड का इस्तेमाल सिर्फ़ वित्तीय और मौद्रिक स्थिरता के लिए ही किया जाना चाहिए।''
राष्ट्रपति क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ की तत्कालीन सरकार ने दिसंबर 2009 में एक आदेश पारित किया था जिसके तहत सरकार को सेंट्रल बैंक के 6.6 अरब डॉलर मिल जाते। सरकार का दावा था कि सेंट्रल बैंक के पास 18 अरब डॉलर का अतिरिक्त फंड है।
रोड्राडो ने ये फंड सरकार को ट्रांसफर करने से इनकार किया था। इसका ख़ामियाजा उन्हें अपना पद गंवाकर चुकाना पड़ा।
अर्जेंटीना की सरकार ने जनवरी 2010 में भी उन पर दुर्व्यवहार और कर्तव्यों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की कोशिश की थी लेकिन ये प्रयास नाकाम रहा क्योंकि ये असंवैधानिक था।
रेड्राडो के पद से हटने के बाद सरकार ने उनके डिप्टी मिगेल एंजेल पेसके को प्रमुख बना दिया था। उन्होंने वही किया जो सरकार चाहती थी।
रेड्राडो के पद छोड़ने के बाद अर्जेंटीना की सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता भी सवालों के घेरे में आ गई थी।
न्यूयॉर्क के एक जज थॉमस ग्रीसा ने न्यू यॉर्क के फ़ेडरल रिज़र्व बैंक में रखे अर्जेंटीना के सेंट्रल बैंक के 1.7 अरब डॉलर को फ़्रीज करने का आदेश ये तर्क देते हुए पारित कर दिया था कि अर्जेंटीना का सेंट्रल बैंक स्वायत्त एजेंसी नहीं रह गया है और देश की सरकार के इशारे पर काम कर रहा है।
गोल्डमैन सैक्स बैंक में अर्जेंटीना के विश्लेषक अल्बर्टो रामोस ने फ़रवरी 2010 में कहा था, "सेंट्रल बैंक के रिज़र्व फंड से सरकारी ख़र्चों की पूर्ति करना सकारात्मक क़दम नहीं है। अतिरिक्त रिज़र्व के कांसेप्ट पर निश्चित तौर पर बहस हो सकती है।''
इन्हीं का उल्लेख करते हुए विरल आचार्य ने कहा था कि एक अच्छी तरह से काम कर रही अर्थव्यवस्था के लिए एक स्वतंत्र सेंट्रल बैंक ज़रूरी है। यानी ऐसा सेंट्रल बैंक जो सरकार के दबाव से मुक्त हो।
विरल आचार्य ने कहा था कि सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता को कम करने के ख़तरनाक नतीजे हो सकते हैं। उन्होंने कहा था कि ये सेल्फ़ गोल साबित हो सकता है क्योंकि ये उन पूंजी बाज़ारों में विश्वास का संकट पैदा कर सकता है जिनका इस्तेमाल सरकारें अपने खर्चे पूरा करने के लिए कर रही हों।
उन्होंने कहा था, "जो सरकारें सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करेंगी उन्हें आज नहीं तो कल वित्तीय बाज़ारों का क्रोध झेलना होगा। उस दिन को कोसना होगा जिस दिन उन्होंने इस अहम नियामक संस्था की स्वतंत्रता से खिलवाड़ किया।''
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने दिसंबर 2018 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि वो निजी कारणों से इस्तीफ़ा दे रहे हैं लेकिन माना गया था कि उन पर सरकार के इशारों पर चलने का दबाव था।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक टिप्पणी में कहा था, "सरकार को समझना चाहिए कि उर्जित पटेल ने इस्तीफ़ा क्यों दिया।''
उर्जित पटेल के बाद शक्तिकांत दास को आरबीआई का गवर्नर बनाया गया। आरबीआई गवर्नर का पद संभालने से पहले वो 2015 से 2017 तक आर्थिक मामलों के सचिव भी रह चुके थे।
आईएएस शक्तिकांत दास नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले से सहमत थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता के मुताबिक, "जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ़ हो गया था कि सरकार जो चाहेगी उसे आरबीआई को करना होगा।''
अब शक्तिकांत दास ने विमल जालान समिति की सिफ़ारिश पर सरकार को रिज़र्व बैंक का वो पैसा दे दिया है जिसे सरकार हासिल करना चाहती थी।
भारत और अर्जेंटीना के घटनाक्रम में फ़र्क ये है कि अर्जेंटीना की सरकार ने आदेश पारित कर सेंट्रल बैंक से पैसा लिया जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफ़ारिश पर सरकार को पैसा दिया।
रेड्राडो ने अपना इस्तीफ़ा देते वक़्त सरकार को आड़े हाथों लिया था लेकिन उर्जित पटेल निजी कारण बताकर किनारे हो गए। लेकिन दोनों के ही बाद पद संभालने वाले प्रमुखों ने वही किया जो सरकार चाहती थी।
2003 से 2007 तक राष्ट्रपति रहे नेस्टर कीर्चनर के शासनकाल में अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था कुछ स्थिर हुई। 2007 में अर्जेंटीना ने आईएमएफ़ से लिया पूरा क़र्ज़ चुका दिया था।
लेकिन कीर्चनर के बाद उनकी पत्नी क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ राष्ट्रपति बनीं। क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ के काल में अर्थव्यवस्था फिर अस्थिर हो गई। क्रिस्टीना ने ही आदेश पारित कर देश की सेंट्रल बैंक का पैसा ले लिया था।
क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ के बाद अक्तूबर 2015 में अर्जेंटीना के लोगों ने मॉरीसियो मैकरी को नया राष्ट्रपति चुना था। उम्मीद थी कि वो इस दक्षिण अमरीकी देश की अर्थव्यवस्था को एक स्थिर रास्ते पर ले आएंगे।
उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करके ग़रीबी को पूरी तरह ख़त्म करने का वादा किया था। लेकिन 2018 आते-आते हालात ये हो गए कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से क़र्ज मांगना पड़ा।
अर्जेंटीना की मुद्रा दिन प्रतिदिन गिरती रही और महंगाई बढ़ती गई। रोज़मर्रा का जीवनयापन महंगा होता गया। 2015 में एक डॉलर के बदले 10 पेसो मिलते थे अब एक डॉलर के बदले 60 पेसो मिलते हैं।
तमाम कोशिशों के बावजूद मैकरी सरकार महंगाई कम नहीं कर सकी है। ख़र्च कम करने और क़र्ज़ कम लेने के जिन आर्थिक सुधारों का वादा किया गया था वो लागू नहीं हो सके।
बढ़ती महंगाई और सर्वजनिक ख़र्च में कटौती की वजह से आमदनी क़ीमतों की तुलना में नहीं बढ़ी जिसकी वजह से अधिकतर लोग ग़रीब हो गए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ देश की एक तिहाई आबादी अब ग़रीबी में रह रही है।
अब अर्जेंटीना लगातार जटिल हो रहे आर्थिक संकट में फंस गया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने देश के दीवालिया होने का अंदेशा ज़ाहिर कर दिया है।
भारतीय रुपया डॉलर के मुक़ाबले लगातार टूट रहा है। बेरोज़गारी दर बीते 45 सालों में सर्वोच्च स्तर पर है। जीडीपी की दर सात सालों में सबसे कम होकर सिर्फ़ पांच प्रतिशत रह गई है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत स्पष्ट नज़र आ रहे हैं।
बावजूद इसके मोदी सरकार कह रही है देश में सब ठीक है। अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा छूने की ओर अग्रसर है। ये अलग बात है कि सरकार के सहयोगी ही इन दावों पर सवाल उठा रहे हैं।
हाल ही में किए एक ट्वीट में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है, "अगर नई आर्थिक नीति नहीं आ रही है तो 5 ट्रिलियन को गुडबॉय कहने के लिए तैयार रहें। सिर्फ़ बहादुरी या सिर्फ़ ज्ञान अर्थव्यवस्था को बर्बाद होने से नहीं रोक सकते। अर्थव्यवस्था को दोनों की ज़रूरत होती है। आज हमारे पास दोनों में से कोई नहीं है।''