सऊदी अरब पर हमला से भारत को झटका क्यों लगा?
दुनिया के सबसे बड़े तेल संयंत्र पर ड्रोन हमले से तेल की क़ीमतों में उछाल आ गया है। बीते कुछ दशकों में ये सबसे तेज़ उछाल है और इसने मध्य-पूर्व में एक नए संघर्ष का ख़तरा पैदा कर दिया है।
लेकिन इसका असर कई हज़ार किलोमीटर दूर तक महसूस किया जा रहा है।
शनिवार 14 सितंबर को कई ड्रोन के ज़रिए सऊदी अरब के बक़ीक़ तेल संयंत्र और ख़ुरैस तेल क्षेत्र में हमला किया गया। इस हमले से सऊदी अरब के कुल उत्पादन और दुनिया की 5 प्रतिशत तेल आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा।
यमन के हूती विद्रोहियों ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है।
भारत क़रीब 83 प्रतिशत तेल आयात करता है। भारत विश्व में तेल के सबसे बड़े आयातकों में से एक है।
भारत में ज़्यादातर कच्चा तेल और कुकिंग गैस इराक़ और सऊदी अरब से आता है।
अपने तेल का 10 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा वो ईरान से आयात करता था।
हालांकि, साल की शुरुआत में अमरीका ने परमाणु समझौते से अलग होने के बाद भारत पर दबाव बनाया कि वो ईरान से तेल ख़रीदना बंद कर दे।
भारत अमरीका जैसे दूसरे देशों से भी आयात करता है, लेकिन ज़्यादा दामों पर।
बीजेपी प्रवक्ता और ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने कहा, "भारत की दो बड़ी चिंताएं हैं। पहला, हम मानते हैं कि सऊदी अरब एक बहुत ही विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता है। भारत, सऊदी अरब को दुनिया में सुरक्षित सप्लायर के तौर पर देखता है।''
लेकिन जिस तरह ये हमले किए गए, ऐसा लगने लगा है कि सऊदी के संयंत्र अब पहले की तरह सुरक्षित नहीं रहे हैं। इसने भारत जैसे दूसरे बड़े आयातकों को चिंतित कर दिया है।
"दूसरा ये कि भारत की अर्थव्यवस्था और यहां के लोग क़ीमतों को लेकर बहुत संवेदनशील रहते हैं इसलिए आज क़ीमत को लेकर चिंता ज़्यादा है।''
इसके अलावा, तेल के वैश्विक बाज़ार में ड्रोन हमले के बाद तेल की क़ीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। कुवैत पर इराक के हमले वाले वक़्त के बाद से पहली बार क़ीमते इस क़दर बढ़ी हैं। पिछले 28 साल में कच्चे तेल की क़ीमतों में ऐसी उथल-पुथल नहीं हुई थी।
सऊदी अरब ने अब तक पूरी तरह से इस हमले का जवाब नहीं दिया है। इसलिए हम नहीं जानते कि सऊदियों के दिमाग़ में क्या चल रहा है? क्या वो सैन्य तरीक़े से जवाब देंगे? अगर हां, तो इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा, जिससे इराक़ और ईरान समेत खाड़ी के पूरे क्षेत्र से आपूर्ति बाधित होगी।
तो बहुत से अनकहे सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने अभी बाकी हैं।
भारत की 2/3 मांग इस क्षेत्र से पूरी होती है और किसी भी तरह का तनाव भारत पर एक नकारात्मक असर डालेगा।
अगर आप सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और उनकी आयातित तेल पर निर्भरता को देखें। कोई भी आयात पर निर्भरता के मामले में भारत जैसी कमज़ोर स्थिति में नहीं है और ये सारी उथल-पुथल निश्चित तौर पर भारत पर असर डालेगी।
ये अब इस पर निर्भर करेगा कि उत्पादन कब तक बाधित रहता है। सऊदी अरब का कहना है कि संयंत्रों को ठीक करने में उसे कुछ दिन लगेंगे। लेकिन अगर और ज़्यादा वक़्त लगता है तो इससे तेल की क़ीमतों पर और असर पड़ेगा और हो सकता है इससे भारत में आयात की क़ीमत और बढ़ जाए।
भारत सरकार पहले ही अर्थव्यवस्था के मामले में बुरे दौर से गुज़र रही है और अगर क़ीमतें बढ़ती हैं तो भारत की मुश्किलें भी बढ़ेंगी।
अगर वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की क़ीमतें और बढ़ती हैं तो पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें भी बढ़ेंगी। ईंधन की क़ीमतें बढ़ेंगी तो इससे मैन्युफेक्चरिंग और एविएशन समेत कई उद्योगों पर असर पड़ेगा, इससे महंगाई और बढ़ जाएगी।
कच्चे तेल के बाय-प्रोडक्ट, प्लास्टिक और टायर जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होते हैं, ये चीज़ें भी और महंगी हो जाएंगी।
तेल की बढ़ती क़ीमतों का असर मुद्रा पर भी पड़ता है। अगर कच्चे तेल का डॉलर प्राइज़ बढ़ेगा तो भारत को उतने ही तेल के लिए और डॉलर ख़रीदने होंगे। इससे डॉलर के मुक़ाबले रुपए की क़ीमत गिरेगी।
भारत के शेयर बाज़ार में और कमज़ोरी पहले ही देखी जा चुकी है। बढ़ती तेल क़ीमतों से अर्थव्यवस्था को और नुक़सान होने के डर से उसमें लगातार दूसरी बार गिरावट आई।
केयर रेटिंग लिमिटेड के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबनविस कहते हैं, "सरकार अभी ज़्यादा कुछ नहीं कर पाएगी। वो हमारे पास मौजूद भंडार से आपूर्ति कर सकती है, जिससे क़रीब एक महीने के लिए मदद मिल सकती है। अगर संकट बना रहता है तो वो करों में कटौती कर सकती है, लेकिन इससे राजस्व पर और फिर राजकोषीय घाटे पर असर पड़ेगा। लेकिन जब तक क़ीमत 70 डॉलर प्रति बैरल से कम रहती है, तब तक इस झटके को सहा जा सकता है।''