क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?
क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?
शनिवार, 27 जनवरी 2024
दक्षिण अफ़्रीका की ओर से इसराइल पर जनसंहार के आरोप में किए गए मुक़दमे पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को तुरंत कुछ क़दम उठाने का आदेश दिया है।
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल से कहा है कि वह ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों को हो रहे किसी भी तरह के नुक़सान को तुरंत रोके।
यह आदेश दक्षिण अफ़्रीका या फ़लस्तीनियों के लिए पूरी जीत नहीं माना जा सकता, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को युद्धविराम करने या सैन्य अभियान रोकने का आदेश नहीं दिया है।
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इस बात को स्वीकार किया कि ग़ज़ा में हालात 'विनाशकारी' हैं और ये 'और भयंकर रूप से बिगड़ सकते हैं'।
जनसंहार के जिन आरोपों पर यह मुक़दमा चल रहा है, उन पर अंतिम फ़ैसला सुनाए जाने की प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं।
इस वजह से, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को कुछ क़दम उठाने को कहा है। इनमें से ज़्यादातर क़दम दक्षिण अफ़्रीका की ओर से रखी गई नौ मांगों के अनुरूप हैं।
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के 17 जजों की बेंच ने बहुमत से आदेश दिया कि इसराइल को फ़लस्तीनियों को मौत और गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइली राष्ट्रपति और इसराइली रक्षा मंत्री की बातों का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि इसराइल को जनसंहार के लिए सार्वजनिक तौर पर "उकसावा देने से रोकने" और "ऐसा करने वालों" को सज़ा देने के लिए और प्रयास करने चाहिए।
साथ ही, इसराइल को ग़ज़ा में मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए त्वरित और प्रभावी क़दम उठाने के लिए भी कहा गया है।
भले ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने युद्धविराम के लिए नहीं कहा, मगर उसने इसराइल के सामने जो मांगें रखी हैं, अगर उन पर अमल किया जाता है तो ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान की प्रकृति में बड़े बदलाव आएंगे।
इसराइल खुद पर लगे जनसंहार के आरोपों को यह करते हुए खारिज करता है कि आम फ़लस्तीनियों को जो नुक़सान पहुंच रहा है, उसके लिए फ़लस्तीनी चरमपंथी समूह हमास ज़िम्मेदार है।
इसराइल कहता है कि हमास ग़ज़ा के घनी आबादी वाले कस्बों और शरणार्थी शिविरों के नीचे (सुरंगों से) से काम करता है, जिस वजह से इसराइल के लिए आम लोगों की मौत को रोक पाना लगभग असंभव है।
इसराइल का ये भी कहना है कि लोगों को ख़तरे से बचाने और उन्हें आगाह करने के लिए बहुत कुछ किया गया है। इसराइल के लगभग सभी यहूदी नागरिकों का मानना है कि इसराइली सेना दुनिया की सबसे नैतिक सेना है। जो सही नहीं है। इसराइली सेना को दुनिया की सबसे नैतिक सेना कहना गलत होगा।
सात अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक, इसराइल के हमले के कारण 23 लाख आबादी वाले ग़ज़ा की 85 फ़ीसदी आबादी विस्थापित हो चुकी है।
जंग से बचकर भाग रहे लोगों को पहले ही क्षमता से ज़्यादा भरे गए शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है। ऊपर से वहां स्वास्थ्य सुविधाओं और ज़रूरी चीज़ों की भी गंभीर किल्लत पैदा हो गई है।
क्या इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा?
सबसे बड़ा सवाल कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा? इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि 'हमास के ख़ात्मे तक सैन्य कार्रवाई जारी रहेगी'।
जैसे ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की अमेरिकी अध्यक्ष और 17 जजों के बेंच का नेतृत्व कर रही जज जोन डॉनोह्यू ने बोलना शुरू किया, यह स्पष्ट हो गया कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का ध्यान ग़ज़ा के लोगों के कष्टों पर है और इसराइल इस केस को ख़त्म करने की कोशिश में नाकाम रहा है।
जज जोन डॉनोह्यू ने संक्षेप में बताया कि ग़ज़ा में रह रहे फ़लस्तीनी क्या अनुभव कर रहे हैं। जज जोन डॉनोह्यू ने वहां के बच्चों की पीड़ा बयां की और कहा कि ये 'दिल तोड़ने वाली' है।
हालांकि जनसंहार के आरोप को लेकर ये इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का अंतिम फ़ैसला नहीं है। हो सकता है इस बारे में फ़ैसला आने में कई साल का वक्त लग जाएं।
लेकिन जिन क़दमों को उठाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने कहा है, वे ऐसे हैं जिनसे ग़ज़ा के फ़लस्तीनियों को कुछ सुरक्षा मिल सकती है।
अब इसराइल को तय करना है कि इस पर उसे क्या करना है? इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले बाध्यकारी तो होते हैं, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे उन्हें लागू करवाया जा सके।
ऐसे में, हो सकता है कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दे।
राजयनिक स्तर पर पहले से ही दो महीने के युद्धविराम के लिए कोशिशें चल रही हैं और आने वाले समय में ग़ज़ा में मदद पहुंचाने के काम में भी तेज़ी आ सकती है।
ऐसे में इसराइल कह सकता है कि वह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की मांगों के आधार पर पहले से ही क़दम उठा रहा है।
अगर स्थिति सुधरी, जिसकी फ़िलहाल आसार नहीं दिख रहे, तो भी इसराइल पर जनसंहार का आरोप बना रहेगा, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने पाया है कि यह मामला अहम है जिस पर सुनवाई होनी चाहिए।
इसराइल एक ऐसा देश है, जिसका जन्म जनसंहार के सबसे ख़राब उदाहरणों में से एक के कारण हुआ था।
जब तक इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस दक्षिण अफ़्रीका की ओर से दायर मुक़दमे में अंतिम फ़ैसला नहीं सुना देता, तब तक इसराइल को जनसंहार के आरोप के साये में ही रहना होगा।