बायोलॉजी & मेडिकल साइंस लर्निंग

दशकों से चमगादड़ के शरीर में मौजूद था कोरोना वायरस

ऐसी संभावना है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों के शरीर में दशकों से मौजूद रहा हो, लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका हो।

हाल में हुए एक शोध से पता चला है कि कोविड-19 बीमारी के लिए ज़िम्मेदार कोरोना वायरस, करीबी ज्ञात वायरस से 40 और 70 साल पहले चमगादड़ में पाया गया था। वैज्ञानिक मानते है कि हो सकता है कि यही वायरस अब इंसानों तक पहुंच गया हो।

उन्होंने ये ही कहा है कि इसके साथ ही इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रही ये कॉन्सिपीरेसी थ्योरी भी शक के घेरे में आ गई है कि इस वायरस को लैब में तैयार किया गया था या फिर वहीं से फैलना शुरू हुआ था।

नेचर माइक्रोबायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुए एक शोध पर काम करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्लासगो के प्रोफ़ेसर डेविड रॉबर्टसन कहते हैं कि महामारी के लिए ज़िम्मेदार Sars-CoV2 वायरस आनुवंशिक तौर पर चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरस के नज़दीक है लेकिन दोनों में कई दशकों के वक्त का फर्क है।

वो कहते हैं, ''इसका मतलब है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला वायरस कुछ वक्त से मौजूद था। लेकिन हमें अब तक नहीं पता कि ये कब और कैसे इंसानों में आया? अगर हम ये मानते हैं कि ये चमगादड़ों में पाया जाने वाला आम वायरस है तो इस मामले में हमें और पैनी नज़र की ज़रूरत है, हमें इसकी और निगरानी करनी होगी।''

प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं कि भविष्य में और महामारी न फैले इसके लिए हमें न केवल इंसानों में होने वाले संक्रमण का सर्विलांस करना होगा बल्कि जंगली चमगादड़ों का भी सेम्पलिंग करना होगा। वो कहते हैं अगर ये वायरस दशकों से मौजूद थे तो उन्हें अपने पैर फैलाने के लिए यानी संक्रमित करने के लिए दूसरे जानवर भी मिले होंगे।

इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 बीमारी पैदा करने वाले Sars-CoV2 वायरस के जेनेटिक कोड का मिलान इसी से मिलते-जुलते चमगादड़ों में पाए जाने वाले RaTG13 से किया था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि इन दोनों के पूर्वज एक ही हैं लेकिन इवोल्यूशन की प्रक्रिया में दशकों पहले दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए थे।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के प्रोफ़ेसर मार्क पेजल इस शोध का हिस्सा नहीं हैं। वो कहते हैं कि इस शोध का इशारा इस तरफ है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों में 40 से 70 साल पहले से ही मौजूद था लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका था।

वो कहते हैं, ''इस शोध से पता चलता है कि जानवरों से इंसानों को होने वाले संक्रमण का दायरा कितना बड़ा है। हो सकता है कि इंसानों में बीमारी पैदा करने वाले कई वायरस जानवर के शरीर में मौजूद हों लेकिन हमें उनका पता ही न हो।''

हो सकता है कि ये वायरस एक जानवर से दूसरे जानवरों में फैलते रहे हों और इनसे जंगली जनवरों के व्यवसाय से जुड़े लोग संक्रमित हुए हों।

इससे पहले हुए शोध में पता चला था कि Sars-CoV2 की उत्पत्ति में पैन्गोलिन की बड़ी भूमिका हो सकती है लेकिन ताज़ा शोध के अनुसार ऐसा नहीं है।

हो सकता है कि पैन्गोलिन को भी ये वायरस जंगली जनवरों के व्यवसाय के दौरान दूसरे जानवरों के संपर्क में आने से मिला हो।

अमरीकी कंपनी मॉडर्ना को बंदरों पर टीके के प्रयोग में कामयाबी मिली

अमरीकी बायोटेक कंपनी मॉडर्ना ने कहा है कि कोरोना वायरस के उनके एक टीके के बंदरों पर प्रयोग के दौरान मिले नतीजे अच्छे रहे हैं।

मॉडर्ना ने कहा कि ये टीका फेफड़ों और नाक के संक्रमण से बचाता है और फेफड़ों की बीमारी को रोकता है।

सोमवार को, इस कंपनी ने इंसानों पर भी टेस्ट शुरू किया जिसमें 30 हज़ार स्वयंसेवक शामिल हो रहे हैं।

कंपनी को अमरीका सरकार ने एक विशेष कार्यक्रम के तहत एक अरब डॉलर का फ़ंड दिया है।

ऑपरेशन वॉर्प स्पीड नाम के इस कार्यक्रम के तहत कोरोना वायरस का टीका बनाने के लिए किए जा रहे कई प्रयासों को पैसे दिए जा रहे हैं।

बांग्लादेश ने चीन की कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल की अनुमति दी

बांग्लादेश ने अपने नागरिकों पर चीन की सिनोवैक बायोटेक वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल की मंज़ूरी दे दी है। बांग्लादेश दक्षिण एशिया का सबसे ज़्यादा जन घनत्व वाला देश है और यहां कोरोना का संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है।

सिनोवैक चीन से बाहर के लोगों का खोज रहा था ताकि उन पर ट्रायल करके देखा जा सके। बांग्लादेश में सिनोवैक के तीसरे चरण के ट्रायल की पुष्टि कोविड 19 पर बनी एक कमिटी के सदस्य ने भी की है। द इंटरनेशनल सेंटर फोर डिज़ीज रिसर्च बांग्लादेश ने कहा है कि अगले महीने से इसका ट्रायल शुरू होगा।

बांग्लादेश मेडिकल रिसर्च काउंसिल के निदेशक महमूद जहान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, ''हमने रिसर्च प्रोटोकॉल की समीक्षा के बाद चीन को सैद्धांतिक रूप से अनुमति दे दी है। 4,200 लोग ट्रायल में शामिल होने के लिए आवेदन करेंगे और इनमें से आधे को वैक्सीन दी जाएगी। यह ट्रायल ढाका में सात कोविड 19 अस्पतालों में किया जाएगा।''

बांग्लादेश में कोरोना के अभी 204,525 मामले हैं और तीन हज़ार के क़रीब लोगों की मौत हुई है।

सिनोवैक ब्राज़ील में भी इस हफ़्ते तीसरे चरण का ट्रायल करने जा रहा है।

कोरोना वैक्सीन को लेकर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को मिली बड़ी कामयाबी

कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को बड़ी कामयाबी मिली है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने जिस वैक्सीन को तैयार किया है वह इंसानों पर सुरक्षित साबित हुई है और उससे इम्यून सिस्टम बेहतर होने के संकेत मिले हैं।

इस वैक्सीन का इस्तेमाल 1,077 लोगों पर किया गया। इन लोगों पर हुए प्रयोग में यह बात सामने आयी है कि वैक्सीन के इंजेक्शन से इन लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज़ का निर्माण हुआ है जो कोरोना वायरस से संघर्ष करती हैं।

इस प्रयोग को काफ़ी उम्मीदों से देखा जा रहा है लेकिन अभी इसके दूसरे सुरक्षात्मक उपाय और बड़े समूह पर ट्रायल जारी है।

हालांकि ब्रिटिश सरकार इस वैक्सीन के 10 करोड़ डोज़ का ऑर्डर दे चुकी है।

क्या कोरोना वायरस में आ रहा म्यूटेशन इसे ज्यादा ख़तरनाक बना रहा है?

वायरस में आ रहा म्यूटेशन क्या इसे और ख़तरनाक बना रहा है? दुनियाभर में जिस कोरोना वायरस ने इस वक्त तबाही मचा रखी है, लेकिन ये वो कोरानावायरस नहीं है जो पहली बार चीन से निकला था।

आधिकारिक तौर पर Sars-CoV-2 के नाम से जाना जाने वाला ये वायरस, जिससे दुनियाभर के लोग संक्रमित हो रहे हैं, म्यूटेट हो रहा है।

म्यूटेट होने का मतलब है वायरस के जेनेटिक मटेरियल में बदलाव होना। वैज्ञानिकों ने इस वायरस में हज़ारों म्यूटेशन देखे हैं। हालांकि सिर्फ एक म्यूटेशन ऐसा है जिससे इस वायरस के व्यवहार के बदलाव के संकेत मिले हैं।

तो क्या ये म्यूटेशन वायरस को और ज़्यादा ख़तरनाक और जानलेवा बना सकता है? क्या जिन वैक्सीन से हम उम्मीद लगाए बैठे हैं, उनकी सफलता को भी इससे ख़तरा है?

वैज्ञानिकों ने D614G नाम का म्यूटेशन देखा है जो वायरस की 'स्पाइक' में मौजूद होता है और जिसकी मदद से वायरस हमारी कोशिकाओं में घुस जाता हैं।

चीन के शहर वुहान में फैलने के बाद ये अनुमान है कि वायरस के इस म्यूटेशन को इटली में पाया गया था। यही म्यूटेशन अब दुनिया के 97 प्रतिशत सैंपल में पाया जा रहा है।

क्या मॉनसून और सर्दी में कोरोना से और तबाह होगा भारत?

आईआईटी भुवनेश्वर और एम्स के रिसर्चरों की संयुक्त स्टडी में पता चला है कि मॉनसून और सर्दी के मौसम में भारत में कोरोना का संक्रमण और तेज़ी से बढ़ेगा।

इस स्टडी में कहा गया है कि बारिश के कारण ताापमान में गिरावट और सर्दी में मौसम का ठंडा होना कोविड 19 के फैलने के लिए अनुकूल होगा। इस स्टडी को आईआईटी भुवनेश्वर में स्कूल ऑफ अर्थ, ओसियन एंड क्लाइमेट साइंस के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर वी विनोज के नेतृत्व में किया गया है।

इस स्टडी की रिपोर्ट का टाइटल है- ''कोविड-19 स्प्रेड इन इंडिया एंड इट्स डिपेंडेंस ऑन टेंपरेचर एंड रिलोटिव ह्यूमिडिटी'। इस स्टडी में 28 राज्यों में कोरोना संक्रमण के फैलने के पैटर्न को भी देखा गया है। विनोज ने कहा है कि तापमान बढ़ने से संक्रमण की रफ़्तार धीमी पड़ती है।

यह स्टडी अभी प्रकाशित नहीं हुई है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार इस स्टडी की रिपोर्ट से पता चलता है कि तापमान और संबंधित उमस का संक्रमण बढ़ने से संबंध है।

विनोज ने पीटीआई से कहा, "एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है तो संक्रमण के 0.99 फ़ीसदी मामले कम होने में मदद मिलेगी।"

भारत के ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना संक्रमण का फैलना कम्युनिटी ट्रांसमिशन के संकेत हैं: आईएमए

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने शनिवार को कहा है कि भारत में कोरोना वायरस महामारी की स्थिति बेहद ख़राब है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा है कि अब भारत के ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना संक्रमण का फैलना कम्युनिटी ट्रांसमिशन के संकेत हैं।

आईएमए हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. वी के मोंगा ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है। अब रोज़ 30,000 से ज़्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं।

मोंगा ने कहा, ''देश के लिए ये बेहद ख़राब स्थिति है। इससे जुड़े कई पहलू हैं लेकिन अब ये ग्रामीण इलाक़ों में फैल रहा है। ये एक बेहद ख़राब संकेत हैं।''

मोंगा ने चेतावनी दी कि कस्बों और गाँवों में कोरोना वायरस की रोकथाम करना सरकार के लिए और भी ज़्यादा मुश्किल होगा।

उन्होंने कहा, ''दिल्ली में तो हम कोरोना की रोकथाम करने में सक्षम हैं लेकिन महाराष्ट्र, केरल, गोवा और मध्य प्रदेश के सुदूर हिस्सों में क्या होगा? राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के साथ मिलकर स्वास्थ्य संकट को गहराने से रोकना चाहिए।''

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत में कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन को लगातार ख़ारिज किया है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने शुक्रवार को कहा कि तिरुवनंतपुरम के कुछ हिस्सों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हो चुकी है।

शनिवार को तिरुवनंतपुरम को तीन कंटेनमेंट ज़ोन में बाँटा गया और 10 दिनों के लिए लॉकडाउन कर दिया गया है।

मोंगा ने कहा है कि हर्ड इम्युनिटी और वैक्सीन ही इस बीमारी की रोकथाम का एकमात्र रास्ता है।

उन्होंने कहा, "वैक्सीन के लिए कई ट्रायल और इंसानी ट्रायल होंगे, उसके बाद उसके प्रभावी होने और साइड इफेक्ट को लेकर भी स्टडी की जाएगी।"

ये भी देखना होगा कि इससे विकसित हुई इम्युनिटी कितने दिन बनी रहेगी क्योंकि तमाम मरीज़ों में तीन महीनों से ज्यादा इम्युनिटी देखने को नहीं मिल रही है।

भारत में अभी दो वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) की एथिक्स कमिटी ने शनिवार को पहली देसी वैक्सीन कोवैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल की अनुमति दे दी है।

एम्स सोमवार से वैक्सीन के ट्रायल के लिए वॉलंटियर्स की भर्ती शुरू करेगा। भारत की दूसरी वैक्सीन जाइडस कैडिला की ZyCoV भी इसी सप्ताह ह्यूमन ट्रायल के शुरुआती फेज़ में पहुंची है। इस वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल भारत के कई शहरों में कराया जाएगा।

भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की संख्या रविवार को 10,77,618 पहुंच गई है। अब तक देश में कोरोना से 26,000 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 6.7 लाख लोग रिकवर हो चुके हैं।

मच्छरों से SARS-CoV-2 वायरस का संक्रमण इंसानों में नहीं फैलता है: रिपोर्ट

मच्छरों से SARS-CoV-2 वायरस का संक्रमण इंसानों में नहीं फैलता है। इस विषय पर हुई पहली स्टडी में ये बात सामने आई है। साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में यह स्टडी प्रकाशित हुई है।

इस स्टडी में पाया गया कि वायरस मच्छरों की तीन मुख्य प्रजातियों में अपनी संख्या नहीं बढ़ा पाता। इसलिए अगर कोई मच्छर किसी कोरोना संक्रमित को काट भी ले तो इंसानों में वो संक्रमण नहीं फैला सकता।

इस स्टडी के लेखक ने कहा है, "सबसे मुश्किल स्थिति में भी सार्स CoV-2 मच्छरों के ज़रिए नहीं फैलता है। ऐसा तब भी संभव नहीं है जब किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद वही मच्छर किसी और को काटे।''

इस स्टडी की पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने भी इस स्टडी का हवाला देते हुए कहा है कि मच्छर कोविड 19 के संक्रमण का वाहक नहीं बन सकता। हालांकि इसके बाद भी यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना वायरस और जानवर के बीच क्या संबंध हैं?

कोरोना वायरस चीन में वुहान के फिश मार्केट से फैलना शुरू हुआ था। यह माँस और मछली का बाज़ार है और कई तरह के जानवरों का मांस मिलता था। कुछ रिपोर्ट में ये बात भी कही गई है कि कुत्ते और बिल्ली भी कोरोना के वाहक हैं लेकिन इसके भी बहुत पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं।

कोरोना वायरस की भारतीय वैक्सीनों का ह्यूमन ट्रॉयल जल्द: आईसीएमआर

इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने मीडिया से बताया है कि कोरोना को लेकर भारत में दो वैक्सीन पर काम चल रहा है। उनके मुताबिक इन वैक्सीनों को चूहे और खरगोशों पर किया गया प्रयोग सफल रहा है। इसके बाद भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ने इन वैक्सीनों के ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी दे दी है।

भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड और जायडस कैडिला भारत में कोरोना की वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है।

''अब इन दोनों वैक्सीनों के ह्यूमन ट्रायल की तैयारी चल रही है। वैक्सीन बनाने के लिए दोनों दावेदार अपने क्लीनिकल ट्रायल की जगह तैयार कर चुके हैं। दोनों जगहों पर एक-एक हज़ार लोगों पर वैक्सीन का प्रयोग किया जाएगा।''

बलराम भार्गव ने इस दौरान दूसरे देशों में चल रही वैक्सीन की तैयारियों के बारे में बात की।

उन्होंने कहा, ''रूस ने अपने वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया को तेज़ी दी है और उनका प्रयोग शुरुआती चरणों में कामयाब रहा है। चीन में भी तेज़ गति से काम चल रहा है। अमरीका में दो वैक्सीन पर तेज रफ़्तार से काम चल रहा है। जबकि ब्रिटेन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में बन रही वैक्सीन की प्रक्रिया को तेज़ करने की कोशिश कर रहा है।''

कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद कितने समय तक रहती है इम्यूनिटी?

कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के बाद भी दोबारा उसकी चपेट में आने की आशंका बनी रहती है।

एक नये अध्ययन में भी यह पता चला है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद शरीर में वायरस को लेकर इम्यूनिटी बेहद कम समय के लिए ही रह पाती है।

किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक कोरोना वायरस को लेकर शरीर कैसे एंटीबॉडी बनाता है, यह एंटीबॉडी कितने सप्ताह और महीने तक रहता है, पर अध्ययन कर रहे हैं।

इस अध्ययन में शामिल सभी 96 लोगों में एंटीबॉडी पाया गया जो कोरोना वायरस को रोकने में सक्षम था। लेकिन तीन महीने के दौरान एंटीबॉडी का स्तर कम होने लगा।

हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एंटीबॉडी का स्तर कम होने से उसी वायरस के चपेट में आने की आशंका बनी रहती है। हालांकि कॉमन फ़्लू वैगरह में भी इम्यूनिटी कम समय तक रह पाती है। ऐसे में उसी वायरस की चपेट में आने की आशंका बनी रहती है।

इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि कई बार शरीर में मौजूद एंटीबॉडी को मापा नहीं जा सकता, इसका मतलब यह नहीं है कि शरीर में इम्यूनिटी नहीं है। क्योंकि केवल एंटीबॉडी ही शरीर को सुरक्षित नहीं रखता। शरीर बाहरी वायरसों से ल़ड़ने के लिए टी कोशिकाएं भी बनाता है।

इस पूरे मामले में अभी विस्तार से अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है, ख़ासकर उन मामलों में जहां लोग दूसरी और तीसरी बार संक्रमित हो रहे हैं। क्या वे बीमार पड़ रहे हैं या उनका शरीर आसानी से वायरस से संघर्ष कर लेता है? कोई वैक्सीन कितना कारगर होगी और इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए बूस्टर देने की ज़रूरत कब होगी, ये सब समझने के लिए विस्तृत अध्ययन अहम साबित हो सकते हैं।