दक्षिणी भारतीय राज्य केरल को पिछले हफ्तों में निपाह वायरस से संक्रमित कम से कम 17 लोगों की मौत के बाद "सर्वकालिक चेतावनी" पर रखा गया है।
केरल के स्वास्थ्य मंत्री के के शैलाजा ने सोमवार को कहा कि राज्य संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए "सर्वकालिक चेतावनी" पर है जो आगे बढ़ने से इंसानों के बीच तीव्र श्वसन समस्याओं या घातक मस्तिष्क की सूजन का कारण बनता है।
वह कहती हैं, "अधिकारियों ने यह पुष्टि करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं कि निपाह के कारण अधिक जिंदगी गुम नहीं हुई है।"
स्वास्थ्य और सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि वायरल प्रकोप के परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्य में अपने घरों में 2,37 9 लोगों की संगरोध हुई है।
केरल के मलाबार क्षेत्र में 2,000 से अधिक लोग चिकित्सा अवलोकन के अधीन हैं, अनिश्चित है कि वे इस बीमारी से संक्रमित हैं या नहीं।
जिन लोगों को संक्रमित व्यक्तियों के साथ कोई संपर्क था, उन्हें सूची में शामिल किया गया है।
स्वास्थ्य सेवाओं के राज्य के निदेशक आर एल सरिथा ने सोमवार को कहा कि 1 जून से कोई नया मामला दर्ज नहीं हुआ है।
सरिथा ने कहा, "निवारक उपायों को अधिक दक्षता के साथ लागू किया गया है। घबराने की कोई जरूरत नहीं है।"
माना जाता है कि निपाह वायरस जानवरों से मनुष्यों तक फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, फल चमगादड़ रोग के प्राकृतिक मेजबान हैं।
भारत के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ विरोलॉजी (विषाणु विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान) के विशेषज्ञों ने कहा कि वे भी स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।
खतरे की घंटी बज उठी
बीमारी के फैलने और इसके प्रसार के जोखिम ने राज्य के मलाबार क्षेत्र के चार सबसे प्रभावित जिलों में लोगों के बीच खतरे की घंटी बजाई है।
कोझिकोड जिले के कोइलांडी तालुक अस्पताल में सर्जन डॉ अजाज अली ने कहा कि चूंकि बीमारी की खबर फ़ैल गई है, इसलिए कई मरीजों ने अस्पताल आने से बचना शुरू कर दिया है।
"यहां हर दिन 1,200 से ज्यादा लोग आ रहे थे, और अब यह 200 से नीचे हो गया है। निपाह जोखिम के कारण सभी भीड़ से डरते हैं।''
निपाह से संक्रमित मरीजों के लिए अलगाव वार्ड कोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में स्थापित किया गया है।
इस बीमारी ने राज्य अधिकारियों को स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने और मालाबार में परीक्षा स्थगित करने के लिए मजबूर कर दिया है।
जिला अधिकारियों ने भी लोगों से सावधानी पूर्वक उपाय के रूप में भीड़ वाले क्षेत्रों से दूर रहने के लिए कहा है। कुछ क्षेत्रों में जिला अदालतों ने अस्थायी रूप से संचालन को निलंबित कर दिया है।
व्यवसाय प्रभावित
बीमारी के फैलने से लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है क्योंकि कारोबार बंद हो गया है। पिछले कुछ हफ्तों में उपज, मांस और मछली बेचने वाले रेस्तरां और दुकानों में बिक्री गिर गई है।
कोझिकोड जिले के एक बस कंडक्टर राजीव ने कहा, "बस स्टैंड खाली हैं। लोग यात्रा से परहेज कर रहे हैं। वे घर पर रहते हैं और यात्रा करते समय सुरक्षात्मक मास्क का उपयोग करते हैं।"
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कतर ने केरल से ताजा और जमे हुए सब्जियों और फलों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रकोप नियंत्रित होने तक प्रतिबंध जारी रहेगा।
बहरीन और कतर ने अपने नागरिकों और निवासियों से आग्रह किया कि महामारी नियंत्रण में आने तक केरल यात्रा करने से बचें।
केरल के अनुमानित 1.6 मिलियन प्रवासियों ने संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन में भारतीय समुदाय का बहुमत बनाया है।
स्रोत का पता लगाना
भारत में स्वास्थ्य प्राधिकरणों ने कहा कि उनके पास यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है कि केरल में निपाह वायरस फल चमगादड़ द्वारा प्रसारित किया गया था। जैसा पहले माना गया था।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज के अधिकारियों ने कहा कि ड्रॉपपिंग, सीरम और चमगादड़ के रक्त से एकत्र किए गए नमूने जाँच में निपाह वायरस के लिए नकारात्मक पाए गए हैं।
आखिरी निपाह प्रकोप 2001 और 2007 में भारत के पश्चिम बंगाल में रिपोर्ट किया गया था जिसमें 70 लोगों की मौत हुई थी। 1 99 8 से निपाह ने बांग्लादेश, मलेशिया, भारत और सिंगापुर में 260 से अधिक लोगों की हत्या कर दी है।
घातक वायरस का नाम मलेशिया में कम्पांग सुंगई निपाह गांव से मिला, जहां इसकी पहली सूचना मिली थी।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने कहा कि निपाह को फैलाने से रोकने के लिए टीका की अनुपस्थिति के बावजूद, हेपेटाइटिस सी संक्रमण के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा में रोगियों में बुखार और उल्टी को रोकने की क्षमता है।
स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक ने कहा कि केरल में दो पुष्टि किए गए मामले, जो अब इलाज में हैं, में भी हेपेटाइटिस सी संक्रमण के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा निपाह के नियंत्रण के लिए कारगर साबित हो रहा है।
इस बीच, भारत की राष्ट्रीय रोग नियंत्रण एजेंसी ने कहा कि देश के अन्य हिस्सों में निपाह का कोई भी मामला नहीं मिला है।
भारत के मध्यप्रदेश में फर्जी वोटर लिस्ट तैयार हो रही है। इसी को लेकर कांग्रेस नेताओं ने सुबह चुनाव आयोग से शिकायत की थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने टीम बनाकर इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
कांग्रेस नेता कमलनाथ ने 4 लाख फ़र्ज़ी मतदाताओं की शिकायत राज्य निर्वाचन आयोग से पहले की थी, लेकिन कोई संतोषजनक कार्रवाई न होने के बाद अब दिल्ली में इसकी शिकायत की गई है।
कमलनाथ के साथ फर्जी वोटर लिस्ट की शिकायत लेकर दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सत्यव्रत चतुर्वेदी चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे।
इन नेताओं ने चुनाव आयोग को वो लिस्ट भी सौंपी जिसमें एक नाम पर कई वोटर है। इसके अलावा एक वोटर की आईडी पर कई फोटो के साथ वोट बने हुए है। यहीं नहीं, मरे हुए लोगों का नाम अभी भी वोटर लिस्ट में है।
हिंदी विश्वविद्यालय में छुट्टी लेना अनुसूचित जनजाति के छात्र को महँगा पड़ा, पीएचडी रद्द हुई। हिंदी विश्वविद्यालय ने आनन-फानन में जाँच कमेटी गठित की। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एल कारूण्यकारा पर पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) संस्था के नाम पर धन उगाही का आरोप लगा।
महाराष्ट्र के वर्धा में महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के दलित एवं जनजाति अध्ययन केन्द्र के अनुसूचित जनजाति के पीएचडी शोधार्थी भगत नारायण महतो जो मूल रूप से बिहार के पश्चिमी चम्पारण की थारू जनजाति से ताल्लुक रखते है। उनका प्रवेश दिसम्बर 2017 में इस केंद्र में पीएचडी शोधार्थी के रूप हुआ था और वह इसी केंद्र से एम फिल के टॉपर भी रहें हैं, उनकी पीएचडी अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित एवं पंजीयन पूर्व सेमिनार प्रस्तुत न करने का आरोप लगाते हुए केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा की अनुशंसा पर निरस्त कर दिया गया है।
जबकि शोधार्थी भगत नारायण महतो ने आरोप को निराधार बताते हुए अपने पक्ष को तथ्य सहित सभी सम्बंधित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए कहा है कि प्रवेश की तिथि एवं जब भी उसका अवकाश स्वीकृत या अस्वीकृत हुआ उसने केंद्र निदेशक से अनुमति ली थी तथा उनका यह भी कहना था कि उसे पूर्व सेमीनार प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में विभाग के द्वारा उसे कोई जानकारी नहीं दी गई थी जिसे किसी भी रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति मानने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत छात्र पर लापरवाह एवं पढ़ने में कमजोर छात्र के श्रेणी में रख रहे हैं। उसके पी एच डी प्रवेश निरस्त को सही बताने में लगे हुए हैं। परन्तु कुलपति गिरिश्वर मिश्र को यह ज्ञात नहीं है कि उनके ही विश्वविद्यालय के अपने विभाग में एम फिल प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला भगत नारायण महतो एक होनहार छात्र है।
पीड़ित छात्र भगत नारायण ने कहा, ''उसके केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा जो इस पीएचडी प्रवेश निरस्त के मुख्य कर्ताधर्ता है। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाकर मेरा प्रवेश निरस्त कर दिया और विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना किसी जाँच पड़ताल किये ही निरस्त के आदेश को स्वीकृत कर लिया तथा मुझे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया।''
शोधार्थी भगत नारायण महतो के पिता की मृत्यु के उपरांत घर की जिम्मेदारी उस के ऊपर ही थी जिस कारण छात्र अपनी पढाई के साथ परिवार का भी ख्याल रख रहा है। समस्त घटनाक्रम प्रवेश के उपरांत आरम्भ होती है जिसमें छात्र को किन्ही कारणवश अलग-अलग तिथि में अपने घर पश्चिमी चम्पारण (बिहार) जाना पड़ जाता है। घर जाने से पूर्व विश्वविद्यालय की सभी संवैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन करता है जिसमें घर जाने से पहले अवकाश के लिए आवेदन देना आदि शामिल है। जिस अवकाश को आधार बनाकर छात्र का प्रवेश निरस्त किया गया है, उस अवकाश लिए भी छात्र ने 20 अप्रैल 2018 को आवेदन दिया था जिसे उसके केन्द्र निदेशक के कार्यालय द्वारा 25 अप्रैल 2018 को ई-मेल के माध्यम से अस्वीकृत करने की सूचना दी गई। छात्र के अपने गृह स्थान बिहार के पश्चिमी चम्पारण पहुँच जाने एवं इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण विलम्ब से अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई। जब छात्र को अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई तो तत्पश्चात वर्धा (महाराष्ट्र) आने के लिए ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिलना, आर्थिक तंगी और पारिवारिक समस्या के कारण विश्वविद्यालय पहुँचने में विलम्ब हुआ जिसके बाद छात्र ने कुलपति से इसके लिए क्षमा माँगी।
पीएचडी प्रवेश निरस्त का दूसरा कारण पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति को आधार बताया गया है। छात्र के अनुसार, इससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सूचना विश्वविद्यालय की वेबसाइट, ई-मेल के माध्यम एवं अन्य किसी भी प्रकार के संचार माध्यम से छात्र को सूचना नहीं दी गई। विश्वविद्यालय पहुँचने के तुरंत बाद छात्र के द्वारा पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति के विषय में केंद्र सहायक से पता करने पर मालूम हुआ कि 2017 बैच के पीएचडी शोधार्थी का पंजीयन पूर्व सेमीनार हुआ ही नहीं है।
इस विषय को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र पीड़ित शोधार्थी भगत नारायण महतो को लेकर दिनांक 25 मई 2018 को कुलपति से मिले तथा समस्त घटनाक्रम से उन्हें अवगत कराया एवं इससे सम्बंधित अपना पक्ष रखते हुए आवेदन पत्र दिया और आवश्यक कार्यवाही करने का आग्रह किया।
केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा के सम्बन्ध में अवैध वसूली जो कि पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) के नाम पर प्रत्येक एम फिल के छात्र से 500 रूपए प्रति माह, पीएचडी छात्र से 1000 रूपये प्रति माह एवं नेशनल फेलोशिप, आर जी एन एफ एवं जे आर एफ पाने वाले छात्र से 3000 रूपये प्रति माह की अवैध वसूली के बारे में भी अवगत कराया। जिसके बारे में विभाग में पढने वाले छात्रों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर खुलासा किया। इन सभी बातों को बेमन से कुलपति ने सुना और कहा कि हम इस विषय पर 28 मई 2018 को जवाब देंगे।
इसी क्रम में फिर से छात्र राजेश सारथी, राजू कुमार, राम सुन्दर शर्मा और अनुपम राय पीड़ित शोधार्थी के साथ कुलपति से मिलने गये तथा कार्यवाही के बारे में जानना चाहा तो कुलपति उल्टे ही छात्र को लापरवाह एवं प्रोफेसर एल कारुण्यकारा की पीएचडी प्रवेश निरस्त निर्णय को सही बताने में लगे।
अंतत: छात्रों ने पूरे पीएचडी निरस्त की प्रक्रिया के असंवैधानिक पहलू से कुलपति को अवगत कराया तथा कहा कि किसी भी छात्र की पीएचडी निरस्त करने का अधिकार बीओएस (बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़) के क्षेत्र में नहीं आता है। उसे सिर्फ छात्र के विषय से सम्बंधित एवं उसे शोध निदेशक उपलब्ध कराने का अधिकार है। छात्र को पीएचडी में रखना या न रखना विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद् के अधिकार क्षेत्र में आता है।
आश्चर्य की बात ये भी है कि विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के किसी भी सदस्य के साथ पीएचडी निरस्त से सम्बंधित किसी प्रकार का बैठक नहीं किया गया जिसमें छात्र के पक्ष को जाना जा सके। छात्र के केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा ने सभी नियमों को ताक पर रखते हुए गलत तरीके छात्र के पीएचडी प्रवेश को निरस्त किया तथा छात्र को अकादमिक परिषद के सामने अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
28 मई 2018 को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस सन्दर्भ में प्रोफेसर मनोज कुमार की अध्यक्षता में प्रोफेसर हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रोफेसर प्रीति सागर एवं डॉ सुरजीत कुमार सिंह की चार सदस्यीय जाँच समिति का गठन किया गया है तथा एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया, लेकिन जानकार सूत्रों की माने तो प्रोफेसर मनोज कुमार और प्रोफेसर प्रीति सागर आधिकारिक रूप से छुट्टी पर हैं तो ऐसी जाँच समिति क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
इस घटना के सन्दर्भ में जब हमने प्रोफेसर एल कारूण्यकारा का पक्ष जानना चाहा तो उनके द्वारा फोन रिसीव नहीं किया गया एवं कार्यकारी कुलसचिव कादर नवाज़ खान का फोन स्विच ऑफ़ मिला।
उपचुनावों के दौरान ईवीएम और वीवीपैट मशीनों में आयी खराबी को लेकर निर्वाचन आयोग पर तीखा हमला करते हुए शिवसेना ने आज कहा कि सत्ताधारियों ने चुनाव आयोग, चुनाव और लोकतंत्र को अपनी रखैल बना रखा है। गठबंधन सहयोगी भाजपा के खिलाफ तीखे हमले करते हुए शिवसेना ने सत्तारूढ़ पार्टी को तानाशाही प्रवृत्तिवाला बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने फायदे के लिए ईवीएम खराब किये हैं।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय के जरिए चेतावनी दी है कि जिस चुनावी प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठ गया है, वह प्रक्रिया लोकतंत्र के लिए घातक है। लेख में लिखा है, ''हिंदुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, ऐसा डंका पीटने का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। ईवीएम ने हमारे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी हैं। वर्तमान तानाशाही, भीड़तंत्र की प्रवृत्ति वाले सत्ताधारियों ने लोकतंत्र को खुद की रखैल बना रखा है।''
उसने आरोप लगाया, ''भाजपा वालों ने ईवीएम को भ्रष्ट कर खुद के लिए इस्तेमाल की गयी मशीनरी बना लिया है। इसलिए चुनाव और चुनाव आयोग का मतलब पीला हाउस के जंग लगी कोठियों की तवायफ बन गया है।''
महाराष्ट्र के भंडारा - गोंदिया और पालघर लोकसभा उपचुनाव के दौरान ईवीएम और वीवीपैट मशीनों में आयी तकनीकी खराबी की शिकायतों का हवाला देते हुए शिवसेना ने कहा, लेकिन इसे क्या कहें? ईवीएम की मनमानी पर या मेहरबानी पर हमारी चुनावी मशीनरी सांस ले रही है।
लोकतंत्र में एक-एक वोट का मोल है। लेकिन हजारों मतदाता घंटों लाइन में खड़े होने के बाद बोर होकर मतदान केन्द्र से वापस लौट जाते हैं। सामना ने लिखा है, ''वर्तमान चुनाव आयोग और उनकी मशीनरी सत्ताधारियों की चाटुकार बन गई है। इसलिए वे चुनाव में किये जाने वाले शराब के वितरण, पैसे के वितरण, सत्ताधारियों की तानाशाही, धमकी भरे भाषणों के खिलाफ शिकायत लेने को तैयार नहीं हैं।''
पार्टी ने गर्मी के कारण ईवीएम में खराबी आने की बात को लेकर चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं पर भी चुटकी ली।
उसने लिखा है, ''हिंदुस्तान का मौसम और तापमान बदलता रहता है, लेकिन तापमान बढ़ने से प्रधानमंत्री का हवाई जहाज बंद होने का उदाहरण नहीं मिलता। तापमान के कारण भाजपा की मशीनरी का तेजी से दौड़ता हुआ सोशल मीडिया का कंप्यूटर बंद नहीं पड़ता, सिर्फ ईवीएम कैसे बंद हो जाती है?''
संपादकीय में लिखा है, ''इतने वर्षों से ईवीएम भेल कंपनी या केन्द्रीय चुनाव आयोग से मंगाई जाती थी। इस बार चुनाव के लिए ये मशीनें सूरत की एक निजी कंपनी द्वारा मंगाई गई।'' ईवीएम में कथित सेटिंग को भाजपा की जीत का कारण बताते हुए सामना ने लिखा है, ''भारतीय जनता पार्टी और उसके कामकाज के प्रति जनता में रोष है। इसके बावजूद वे जीत रहे हैं। इसके पीछे ईवीएम की सेटिंग है।''
शिवसेना का कहना है, ''फिलहाल हमारा चुनाव आयोग सेव - गाठिया तथा ढोकला खाकर सुस्त पड़ गया है। उसे घोटाले नहीं दिखाई देते। उसे शिकायतें नहीं सुनाई पड़तीं।'' प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए सामना ने लिखा है, ''रूस के पुतिन तथा चीन के झी जिनपिंग ने उम्र भर सत्ता में रहने की व्यवस्था लोकतांत्रिक तरीके से कर ली है। हिंदुस्तान में वैसी ही तैयारी शुरू हो गई है, पर वह संभव नहीं है।''
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सत्ता पर काबिज होने की जंग लगभग खत्म हो चुकी है। केंद्र में बीजेपी की मोदी सरकार होने की वजह से राज्यपाल ने कर्नाटक में बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता दिया है। कर्नाटक भाजपा ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि येदियुरप्पा कल गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। 15 दिन के अंदर भाजपा को राज्य सरकार के लिए बहुमत साबित करना होगा। इसी को कहते है 'जिसकी लाठी उसकी भैंस'।
कर्नाटक में यह कहावत पूरी तरह से चरितार्थ हुई। चूँकि राज्यपाल केंद्र का एजेंट होता है। ऐसे में उसे केंद्र की मोदी सरकार के निर्देश का पालन करना ही था। सबसे बड़ी बात ये है कि कर्नाटक के राज्यपाल आरएसएस के सदस्य है। राज्यपाल ने बहुमत प्राप्त गठबंधन (117 विधायक) को सरकार बनाने का न्यौता नहीं देकर लोकतंत्र की हत्या की है और संविधान की मर्यादा को भंग किया है।
कर्नाटक में बहुमत के लिए 112 विधायकों की जरूरत है, जबकि बीजेपी के पास सिर्फ 104 विधायक ही है। ऐसे में राज्यपाल द्वारा बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता देना विधायकों की खरीद - फरोख्त को बढ़ावा देगा। क्या राज्यपाल बताएँगे कि बीजेपी विधायकों की खरीद - फरोख्त के बिना कैसे अपनी सरकार का विधान सभा में बहुमत साबित करेंगे। राज्यपाल ने संविधान द्वारा मिले अधिकारों का दुरुपयोग किया है। भारत में ये सामान्य बात है कि नौकरशाह से लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे राजनेता संविधान द्वारा प्रदत अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं।
इससे पहले कर्नाटक में भाजपा के विधायक सुरेश कुमार ने भी ट्वीट कर जानकारी दी थी कि येदियुरप्पा कल यानि गुरुवार को कर्नाटक के सी एम पद की शपथ लेंगे। बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया था।
भाजपा विधायक सुरेश कुमार ने ट्वीट किया था कि कल सुबह 9.30 बजे येदियुरप्पा लेंगे सी एम पद की शपथ। उन्होंने आम लोगों को भी इस मौके पर मौजूद रहने को कहा था। उन्होंने ट्वीट में लिखा था कि सरकार बनाने को लेकर भाजपा अब आश्वस्त है।
टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक, खबरें यह भी आई थी कि भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण भी मिल चुका है। भाजपा को 21 मई तक बहुमत साबित करने का वक्त मिला है।
राज्यपाल का भाजपा को सरकार बनाने के लिए भेजा गया पत्र सामने आते ही कांग्रेस ने भाजपा पर संविधान की मर्यादा भंग करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने पहले ही कहा है कि राज्यपाल वजुभाई वाला कांग्रेस-जदएस गठबंधन को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करने को संवैधानिक रूप से बाध्य हैं और अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो यह राज्य में खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देना होगा। उसने यह भी कहा कि अगर राज्यपाल इस गठबंधन को न्योता नहीं देते हैं तो फिर राष्ट्रपति या न्यायालय के पास जाने का विकल्प खुला हुआ है।
बता दें कि राज्यपाल द्वारा बी एस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का मौका देने से जुड़ी अटकलों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला और विवेक तन्खा ने कहा कि राज्यपाल के फैसले की आधिकारिक घोषणा के बाद पार्टी इन दो विकल्पों को लेकर निर्णय करेगी। उन्होंने मीडिया से बातचीत में यह भी कहा कि अगर राजपाल चाहें तो उनके समक्ष 117 विधयकों की पेशी कराई जा सकती है। सिब्बल ने गोवा के मामले में उच्चतम न्यायालय की एक टिप्पणी का हवाला दिया और कहा कि कर्नाटक के राज्यपाल बहुमत वाले गठबंधन को सरकार बनाने का न्यौता देने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
आमतौर पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भारत के सबसे शांत प्रधानमंत्रियों में से एक माना जाता है। लेकिन इस बार उन्होंने कर्नाटक के धुआंधार चुनाव प्रचार के बीच कुछ ऐसा कह दिया है, जिसकी चर्चाएं चुनावी शोर से ऊपर उठकर हो रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ये बेहद दुखद है कि भारत का प्रधानमंत्री इतना नीचे गिर जाए और प्रधानमंत्री पद की गरिमा के योग्य शब्दों का चुनाव भी न कर पाए।'
ये बातें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार (7 मई) को कहीं। ये बातें ऐसे समय में कही गई हैं, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए लगातार चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं।
भारत के पूर्व पी एम मनमोहन सिंह का बयान उस वाकये के बाद आया है, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता और कर्नाटक के सी एम पी सी सिद्धारमैया ने पी एम मोदी को चुनावी रैलियों में कहे अपशब्दों पर कानूनी मानहानि का नोटिस भिजवाया है। नोटिस में ये धमकी दी गई है कि अगर पी एम मोदी, भाजपा, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, येदियुरप्पा और भाजपा नेता लिखित माफी नहीं मांगते हैं तो वह 100 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा ठोंक देंगे।
चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने कहा कि पूर्व पी एम मनमोहन सिंह 12 मई के बाद कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में प्रचार करने उतरेंगे। पूर्व पी एम मनमोहन सिंह ने कहा, ''कोई भी प्रधानमंत्री अपने विरोधियों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता। जो मोदी दिन-रात करते हैं। ये देश के लिए अच्छा नहीं है।'' ये टिप्पणी पूर्व पी एम मनमोहन सिंह ने उस सवाल का जवाब देते हुए की है, जिसमें उनसे प्रचार के तरीके के बारे में सवाल किया गया था।
पूर्व पी एम सिंह ने कहा, ''मुझे दुख है कि जिस तरह की बातें राज्य की जनता को सहनी पड़ी हैं। ये कर्नाटक के लिए अच्छा नहीं है। ये देश के लिए भी अच्छी बता नहीं है। कोई भी प्रधानमंत्री चुनाव के वक्त ऐसी बातें नहीं कहता है, जिस अंदाज में मोदी जी कहने की कोशिश करते हैं। मुझे उम्मीद है कि वह अब सबक लेंगे और समाज के विकेंद्रीकरण की कोशिश बंद कर देंगे। जो वह दिन-रात कर रहे हैं।''
पी एम मोदी अक्सर देश की खराब आर्थिक स्थिति के लिए कांग्रेस की सरकारों को जिम्मेदार ठहराते आए हैं। पूर्व पी एम सिंह ने उनके इस रवैये की भी आलोचना की। उन्होंने कहा, ''जब भी प्रधानमंत्री मोदी से बीते चार सालों से खराब आर्थिक स्थितियों पर सवाल किया जाता है, प्रधानमंत्री मोदी जी हर चीज के लिए कांग्रेस के 70 सालों के शासनकाल पर सवाल खड़ा कर देते हैं।''
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2018 में कर्नाटक चुनावों के दौरान कई विवादास्पद बयान दिए हैं। लेकिन उनमें से पांच बयान सबसे ज्यादा विवादित रहे हैं।
(1) मैं उन सभी से कहना चाहता हूँ जिन्हें राष्ट्रवाद अच्छा नहीं लगता है। आप मत सीखिए, अगर आपको दूसरों से, अपने राजनीतिक पुरखों से, यहां तक कि महात्मा गांधी की कांग्रेस से भी सीखना अच्छा नहीं लगता है। लेकिन कम से कम मेरे बगलकोट के रहने वाले मुधोल कुत्तों से ही सीख लीजिए। बगलकोट के मुधोल कुत्ते इस वक्त सेना की बटालियन में शामिल होकर देश की सेवा कर रहे हैं।
(2) (राहुल गांधी को बहस की चुनौती देते हुए) केवल 15 मिनट, हाथ में कागज लिए बिना, क्या आप अपनी सरकार की उपलब्धियों के बारे में बात कर सकते हैं। आप किसी भी भाषा में बात कर सकते हैं, जिसमें आप चाहें। अंग्रेजी, हिंदी या फिर अपनी मातृ भाषा (इटालियन) में।
(3) सीधा रुपैया सरकार (कर्नाटक के सी एम सिद्धारमैया के नाम की पैरोडी करते हुए)।
(4) बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया। आपके मुख्यमंत्री ने इस कहावत को बदल दिया है। बाप भी बड़ा, भैया भी बड़ा और उससे भी ऊपर रुपैया, सीधा-सीधा रुपैया।
(5) कर्नाटक में उनके मंत्री और नेताओं ने टैंक बनवा रखा है। जो पैसा वो जनता से लूटते हैं, उसे घर ले जाते हैं और टैंक में रखते हैं। ये टैंक दिल्ली से पाइपलाइन से जुड़ा हुआ है। ये पैसा सीधे दिल्ली को जाता है।
भारत में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने पहली बार रोजगार को लेकर आंकड़े जारी किए हैं। इसके तहत फरवरी 2018 में जनवरी 2018 के मुकाबले नए नौकरियों के मौकों में 22 फीसद तक की कमी दर्ज की गई है।
जारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी में रोजगार के 6.04 लाख नए मामले सृजित हुए थे। फरवरी में यह 4.72 लाख ही रहा। दिसंबर के बाद इसमें वृद्धि दर्ज की गई थी। नवंबर के मुकाबले दिसंबर में भी नए रोजगार के मौकों में भी कमी दर्ज की गई थी। ई पी एफ ओ के आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में रोजगार के नए अवसरों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई थी। अक्टूबर 2017 में 3.93 लाख नए कामगारों को नौकरी मिली थी। नवंबर में यह आंकड़ा 6.47 लाख तक पहुंच गया था। इससे पहले सितंबर में 4.35 लाख लोगों को नए सिरे से मौका मिला था।
ई पी एफ ओ ने उम्र के हिसाब से भी आंकड़े जारी किए हैं, ताकि विभिन्न आयुवर्ग के बारे में सटीक जानकारी मिल सके। आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2017 को छोड़ कर पिछले छह महीनों में हर बार 22 से 25 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं ने सबसे ज्यादा नौकरियां हासिल कीं।
बता दें कि रोजगार के कम होते मौकों को लेकर विपक्ष नरेंद्र मोदी की सरकार पर हमलावर रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बेरोजगारी को प्रमुख चुनावी मुद्दा भी बना दिया है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों के दौरान भी कांग्रेस ने युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने का वादा किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान हर साल एक करोड़ नौकरियों के नए मौके सृजित करने की बात कही थी, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने इस वादे पर अमल नहीं किया। रोजगार के नए अवसर सृजित होने के बजाय उसमें और कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद खासकर टेक्सटाइल और रियल एस्टेट क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी।
पूर्व वित्त सचिव सी एम वासुदेव ने बताया था कि आर्थिक संकेतक और राजकोषीय स्थिति मजबूत जरूर है, लेकिन संगठित विनिर्माण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार रहित वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ''आर्थिक सुधार की दिशा में मोदी सरकार ने कई कदम उठाये हैं। इनमें से जी एस टी, प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी में अधिक पारदर्शिता, सब्सिडी वितरण में सुधार, आधार कार्ड का विस्तार, बुनियादी ढांचा क्षेत्र मसलन सड़क, राजमार्ग, रेलवे, बंदरगाह, ऊर्जा क्षेत्र में निवेश, प्रयत्क्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन और कारोबारी माहौल को बेहतर बनाना प्रमुख है।'' मोदी सरकार ने रोजगार बढ़ाने के लिए स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी पहल भी की है। इसके अलावा मुद्रा योजना के तहत लोन देने की सुविधा भी लाई गई है।
भारत के लगभग सभी राज्यों के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 12वीं कक्षा के नतीजे जारी करने वाले हैं। इसी के साथ स्नातक कोर्स में दाखिला लेने के लिए विद्यार्थियों की भीड़ कॉलेजों और यूनीवर्सिटी की तरफ रुख करने लगेगी। ऐसे में यूनीवर्सिटी ग्रांट कमिशन ने एक महत्वपूर्ण सूचना जारी की है।
यू जी सी ने 24 स्वयंभू और फर्जी यूनीवर्सिटी की लिस्ट जारी की है। ये सभी यूनीवर्सिटी पूरे भारत भर में फैली हुई हैं। जिनमें से आठ तो सिर्फ दिल्ली में ही हैं। यू जी सी ने ये लिस्ट बीते सालों में इन फर्जी विश्वविद्यालयों के द्वारा सैकड़ों छात्रों को ठगने की शिकायतों को देखते हुए जारी की है। ताकि विद्यार्थी ऐसी किसी भी फर्जी यूनीवर्सिटी के झांसे में आने से बच सकें।
यू जी सी ने अपनी सूचना में लिखा है कि विद्यार्थियों और जनता को सूचित करते हुए ये बताया जाता है कि वर्तमान में 24 स्वयंभू और गुमनाम संस्थान देश (भारत) के विभिन्न हिस्सों में यू जी सी एक्ट का उल्लंघन करते हुए संचालित हो रहे हैं। इन सभी यूनीवर्सिटी को फर्जी घोषित किया जाता है और इन्हें कोई भी डिग्री जारी करने का अधिकार नहीं दिया गया है।
बता दें कि बीते कई सालों में फर्जी विश्वविद्यालयों के द्वारा ठगी और धोखाधड़ी के कई मामले सामने आए हैं। कई मामलों में तो कॉलेज संचालकों को भी धोखा दिया गया था। इन फर्जी विश्वविद्यालयों पर अब तक सैकड़ों विद्यार्थियों की जिन्दगी तबाह करने का आरोप लग चुका है।
दिल्ली में 8 फर्जी विश्वविद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। इनमें, कॉमर्शियल यूनीवर्सिटी, यूनाइटेड नेशन्स यूनीवर्सिटी, वोकेशनल यूनीवर्सिटी, ए डी आर-सेन्ट्रिक जूरीडीशियल यूनीवर्सिटी, इण्डियन इंस्टीट्यूशन आॅफ साइंस एंड इंजीनियरिंग, विश्वकर्मा ओपन यूनीवर्सिटी फॉर सेल्फ इंप्लायमेंट, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय और वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय शामिल हैं।
अन्य वो शहर और राज्य जहां ये फर्जी विश्वविद्यालय सक्रिय हैं, उनमें पुड्डूचेरी, अलीगढ़, बिहार, राउरकेला, ओडिशा, कानपुर, प्रतापगढ़, मथुरा, नागपुर, केरल, कर्नाटक, और इलाहाबाद के दो फर्जी विश्वविद्यालय शामिल हैं।
बता दें कि पिछली साल भी, यू जी सी ने फर्जी यूनीवर्सिटी की लिस्ट जारी की थी। जिनमें मैथिली यूनीवर्सिटी/विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार; वाराण्सेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, (उत्तर प्रदेश), कॉमर्शियल यूनीवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज (नई दिल्ली), यूनाइटेड नेशन्स यूनीवर्सिटी, नई दिल्ली और वोकेशनल यूनीवर्सिटी, दिल्ली के नाम शामिल हैं।
एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ए डी आर) की रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सबसे ज्यादा सत्ताधारी बीजेपी के सांसद और विधायक शामिल हैं। दूसरे दलों की तुलना में बीजेपी ने ऐसे लोगों को ज्यादा टिकट भी दिए। बसपा अध्यक्ष मायावती और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के आरोपियों को काफी संख्या में टिकट बांटे।
ए डी आर ने कुल 4896 सांसदों और विधायकों में से 4845 लोगों के चुनाव लड़ने के दौरान जमा हलफनामे की जांच की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। संस्था ने कुल 776 सांसदों में से 768 और 4120 विधायकों में से 4077 के हलफनामों का परीक्षण किया। इसमें भारत के सभी राज्यों के सांसद-विधायक शामिल रहे।
रिपोर्ट के मुताबिक करीब 33 प्रतिशत यानी 1580 सांसद-विधायकों ने अपने खिलाफ केस दर्ज होने की बात कही, जिसमें से 48 ने महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामले चलने की बात स्वीकार की।
बीजेपी के सबसे ज्यादा 12 सांसद-विधायकों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले में मुकदमा चल रहा है, दूसरे नंबर पर शिवसेना के सात और फिर तृणमूल कांग्रेस के छह सांसद-विधायक हैं। इसमें कुल 45 सांसद और तीन विधायक हैं। महिलाओं के खिलाफ जुर्म में सबसे ज्यादा 12 सांसद-विधायक महाराष्ट्र के हैं तो दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल के 11 और आंध्र प्रदेश के पांच सांसद-विधायक हैं। वहीं ओडिशा और आंध्र प्रदेश में पांच-पांच सांसद-विधायक हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, 327 ऐसे लोगों को टिकट दिए गए, जिनके खिलाफ महिलाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई चल रही थी। पिछले पांच वर्षों के बीच भाजपा ने 45 ऐसे लोगों को टिकट दिए। वहीं बसपा ने ऐसे 35 और तृणमूल कांग्रेस ने 24 दागियों को चुनाव मैदान में उतारा। चौंकाने वाली बात है कि दुष्कर्म में फंसे 26 नेताओं को भी विभिन्न पार्टियों ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में टिकट दिए।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल के शासनकाल में आला दर्जे के नेताओं के घृणित और विभाजनकारी बयानों में करीब 500 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। न्यूज चैनल एन डी टी वी ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि सांसद, मंत्री, विधायकों के साथ मुख्यमंत्री पद पर बैठे नेता भी इस दौरान नफरत भरे बयान देने से नहीं चूके।
रिपोर्ट में नेताओं के घृणित बयानों की तुलना के लिए यू पी ए-2 के साल 2009 से 2014 तक और एन डी ए के साल 2014 से अबतक के कार्यकाल की तुलना की गई है। रिपोर्ट में निर्वाचित प्रतिनिधियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें सांसद, विधायकों, मुख्यमंत्रियों के अलावा उन नेताओं के बयानों को भी शामिल किया गया है जो या तो पार्टी के प्रमुख हैं या जो राज्यों के राज्यपाल हैं। पब्लिक रिकॉर्ड्स और इंटरनेट के जरिए इकट्ठा कर बनाई गई इस रिपोर्ट में करीब 1300 आर्टिकल और अन्य सूत्रों से मिली सामग्रियों को शामिल किया गया है।
अध्ययन में अप्रैल के अंत तक आला नेताओं के करीब एक हजार ट्वीट्स को भी शामिल किया गया है। इसमें यह भी जानने की कोशिश की है कि किन मामले में नफरत भरे बयान देने वाले नेताओं के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए हैं।
डेटा के मुताबिक, मई, 2014 से अबतक 44 राजनेताओं द्वारा 124 बार नफरत भरे बयान दिए गए। यू पी ए-2 में इस तरह 21 मामले सामने आए। इस तरह पिछली सरकार के मुकाबले मोदी सरकार में 490 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 44 नेताओं द्वारा दिए नफरत भरे बयानों में 77 फीसदी यानी 34 भाजपा से ताल्लुक रखते हैं, जबकि 23 फीसदी यानी 10 नेता कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से ताल्लुक रखते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, यू पी ए-2 के शासनकाल में जिन 21 नेताओं ने नफरत भरे बयान दिए, उनमें कांग्रेस के कुल तीन यानी 14 फीसदी नेता शामिल थे। इस दौरान भाजपा से संबंध रखने वाले सात नेताओं ने नफरत भरे बयान दिए। इसके अलावा जिन 11 नेताओं ने भड़काऊ बयान दिए, वो समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन और शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार में जिन 44 नेताओं ने नफरत भरे बयान दिए, उनमें सिर्फ पांच मामले में नेताओं को फटकाई लगाई गई या चेतावनी दी गई या इन नेताओं ने सार्वजिनक रूप से माफी मांगी। इसके अलावा अन्य मामलों में कोई जानकारी नहीं मिली। चौंकाने वाली बात यह है कि नफरत भरे बयान देने वाले 44 नेताओं में महज 11 के खिलाफ केस दर्ज किया गया। ये जानकारी एन डी टी वी ने अपने निजी सूत्रों से दी है।