भारतीय रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की तिमाही रिपोर्ट में आम लोगों पर नोटबंदी के व्यापक असर की तस्वीर सामने आई है। 'हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स एंड लायबलिटीज' नाम से जारी रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के पुराने नोटों को वापस लेने के फैसले का स्पष्ट प्रभाव दिखा है।
आर बी आई की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर, 2016 में ग्रॉस फायनेंशियल एसेट्स (सकल वित्तीय संपत्तियां) का कुल मूल्य 141 ट्रिलियन रुपये था। दिसंबर, 2016 तक इसमें चार ट्रिलियन रुपये की कमी आई और यह आंकड़ा 137 ट्रिलियन तक पहुंच गया।
बता दें कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी। हाउसहोल्ड फायनेंशियल एसेट्स आउटस्टैंडिंग अमाउंट में भी छह फीसद की कमी दर्ज की गई। वर्ष 2017 की अंतिम तिमाही में भी यह आंकड़ा सितंबर, 2016 के मुकाबले काफी कम है।
हालांकि, नोटबंदी के बाद भारतीय लोगों में बचत के बजाय निवेश की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है। आर बी आई की रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय लोग आमतौर पर बचत करने वाले और अर्थव्यवस्था में वित्तीय संसाधन की आपूर्तिकर्ता के तौर पर जाने जाते हैं। हालांकि, वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में नेट फायनेंशियल एसेट्स में नकारात्मक बदलाव दिखा है जो नोटबंदी के प्रभाव को दर्शाता है।''
बता दें कि फायनेंशियल एसेट्स के तहत बैंक डिपोजिट, बांड्स, इंश्योरेंस एसेट्स और स्टॉक्स आदि आते हैं। अन्य एसेट्स की तुलना में फायनेंशियल एसेट्स ज्यादा लिक्विड होते हैं।
नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड के फायनेंशियल एसेट्स के स्वरूप में भी उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। सितंबर, 2017 में जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में करेंसी होल्डिंग्स में भी गिरावट दर्ज की गई है। नोटबंदी से पहले यह जहां 10.6 फीसद था, वहीं बड़े नोटों को वापस लेने की घोषणा के बाद यह आंकड़ा 8.7 फीसद तक पहुंच गया। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे पहले के मुकाबले कम हो गए।
हालांकि, नोटबंदी के बाद हाउसहोल्ड में बैंक में पैसे रखने के बजाय निवेश करने की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई। नोटबंदी के पहले 10.6 फीसद (जी डी पी की तुलना में) हाउसहोल्ड ने म्यूचुअल फंड में निवेश किया था। सितंबर, 2017 में यह आंकड़ा 12.5 फीसद तक पहुंच गया। करेंसी होल्डिंग में गिरावट का असर म्यूचुअल फंड में निवेश के तौर पर सामने आया। लोग करेंसी होल्डिंग का इस्तेमाल फायनेंशियल मार्केट में करने लगे।
इसके अलावा लोगों के डिस्पोजेबल इन्कम (खर्च योग्य आय) में भी कमी दर्ज की गई। इसका सीधा असर बाजार पर देखने को मिला। दूसरी तरफ, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, घरेलू बचत में तकरीबन चार फीसद की गिरावट आई है।
भारत में बैंकिंग स्कैम के बाद अब टैक्स रिफंड घोटाला सामने आया है। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पी एस यू) के कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेज और खर्च को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर सरकार को 10 अरब रुपये से भी ज्यादा का चूना लगाया है। इस मामले की जांच में आयकर विभाग जुटा है। इस घोटाले को रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न के जरिये अंजाम दिया गया है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति दोबारा वित्तीय ब्यौरा दाखिल कर टैक्स रिफंड के लिए क्लेम कर सकता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले मुंबई में तकरीबन 17,000 रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स दाखिल किए गए। बेंगलुरु में भी ऐसे एक हजार से ज्यादा रिटर्न्स फाइल किए गए थे। आयकर विभाग फिलहाल इस मामले की छानबीन में जुटा है, लेकिन सूत्रों ने घोटाले की रकम 1,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा होने की बात कही है। जानकारी के मुताबिक, रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स में होम लोन को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है। आयकर विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि आयकर दाताओं के मूल रिटर्न के निस्तारण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बीच में उन्होंने दस्तावेज के साथ रिवाइज्ड रिटर्न दाखिल कर दिए।
आयकर विभाग पिछले तीन वर्षों से रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स पर निगाह रख रहा था। आयकर विभाग के एक अन्य अधिकारी ने बताया, ''पिछले तीन वर्षों में रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स दाखिल करने वालों की तादाद में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही थी। डाटा माइनिंग सिस्टम से इसका पता लगाया गया था। इस दौरान हम लोगों ने इस बात का भी पता लगाया कि लोग कैसे फर्जी दस्तावेज के सहारे रिफंड क्लेम कर रहे हैं।''
बता दें कि करदाता दो वित्त वर्ष के लिए रिवाइज टैक्स रिटर्न्स दाखिल कर सकते हैं। मसलन, वित्त वर्ष 2015-16 और वित्त वर्ष 2016-17 के लिए 31 मार्च, 2018 तक रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स दाखिल किए जा सकते हैं।
एक अन्य अधिकारी ने फर्जी तरीके से टैक्स रिफंड के लिए क्लेम करने के तौर-तरीकों को बताया। उन्होंने कहा कि रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न्स दाखिल करने वाले कुछ करदाता ऐसे थे, जिन्होंने मूल टैक्स रिटर्न में 'इन्कम फ्रॉम हाउस प्रोपर्टी' में किसी तरह का आय नहीं दिखाया था, लेकिन रिवाइज्ड रिटर्न में नुकसान होने का दावा किया गया था। हाउस प्रोपर्टी से लाभ नहीं होने की स्थिति में संबंधित करदाता टैक्स रिफंड का दावा कर सकता है। बता दें कि आई टी कानून की धारा 24 के तहत होम लोन पर कर छूट का प्रावधान है।
आई टी डिपार्टमेंट ने सीबीआई को भी इसकी जानकारी दे दी है। जांच एजेंसी इस बात का पता लगा सकेगी कि जांच में दायरे में चल रहे लोगों के पास आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा संपत्ति तो नहीं है। इसके अलावा इस पूरे घालमेल में आयकर विभाग के अधिकारियों और चार्टर्ड अकाउंटेंट का भी पता लगाया जाएगा। बता दें कि आई टी डिपार्टमेंट 10 फरवरी तक 1.42 ट्रिलियन रुपये का रिफंड कर चुकी थी।
पीएनबी घोटाले के मुख्य आरोपी नीरव मोदी भारत से फरार है। इस मुद्दे पर मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में हंगामा मचा हुआ है। कुछ लोग पीएनबी घोटाले को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। अब इस घोटाले में भारत सरकार के पूर्व सीएजी और बैंक बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन विनोद राय पर भी हमला बोला जा रहा है और उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाये जा रहे हैं।
यह वही विनोद राय हैं, जो पीएम मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सीएजी थे और उन्होंने टू जी स्पेक्ट्रम का फर्जी घोटाला उजागर करने का दावा किया था जिसका फायदा उठाकर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन बैठे। सच्चाई यह है कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ ही नहीं था, यह बात कोर्ट में साबित हो चुका है।
अब देखिए, भारत के केंद्र में बीजेपी की सरकार है और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं। विनोद राय पिछले दो सालों से बैंक बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन हैं। उनके नाक के नीचे नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक में 11,500 करोड़ रुपये का घोटाला किया। इतना बड़ा घोटाला हो गया, लेकिन विनोद राय को मालूम नहीं हुआ। वाक़ई ये तो कमाल हो गया। जब टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला नहीं हुआ तो विनोद राय ने उसे घोटाला साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया क्योंकि तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। आज जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है तो हकीकत में हुए पंजाब नेशनल बैंक घोटाला पर अब तक विनोद राय ने चुप्पी साध रखी है। सवाल उठता है कि क्या अब विनोद राय को पंजाब नेशनल बैंक का घोटाला नज़र नहीं आ रहा है? क्या यह मान लेना चाहिए कि विनोद राय की वफ़ादारी बीजेपी के साथ है?
हिंदी और मराठी फिल्मों की एक्ट्रेस और टीवी स्टार रेणुका शहाणे ने पीएनबी घोटाले पर विनोद राय पर बड़ा हमला बोलते हुए कुछ सवाल पूछे हैं। रेणुका ने पूछा है कि आप तो होने वाले घोटाले को भी सूंघ लेते थे, फिर इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया? रेणुका शहाणे ने ट्वीट कर विनोद राय पर निशाना साधा है।
दरअसल पत्रकार शोभा डे ने पीएनबी घोटाले पर एक ट्वीट किया। डे ने लिखा, जब पीएनबी में इस तरह से घोटाले हो रहे थे, तब उस वक्त के आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन क्या कर रहे थे? शोभा डे को पंजाब नेशनल घोटाला पर देश के प्रधान सेवक और चौकीदार (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी से यह सवाल पूछना चाहिए था। लेकिन शोभा डे में इतनी हिम्मत नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से घोटाला पर सवाल पूछ सके। शोभा डे भी विनोद राय के रास्ते पर चल रही है। जिस तरह से विनोद राय ईमानदार अधिकारी होने का ढोंग करते रहे हैं, उसी तरह से शोभा डे भी ईमानदार पत्रकार होने का ढोंग करती रही है, लेकिन अब विनोद राय और शोभा डे जैसे लोगों की असलियत सामने आ चुकी है और ऐसे लोगों की विश्वसनीयता ख़त्म हो चुकी है। अब लोग ऐसे लोगों पर यकीन करना छोड़ चुके हैं।
शोभा डे के ट्वीट का रेणुका शहाणे ने कड़ा जवाब दिया है। रेणुका शहाणे ने लिखा, पूर्व सीएजी (विनोद राय) के बारे में क्या कहा जाए जो पिछले दो सालों से बैंक बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन हैं। ये तो होने वाले संभावित नुकसान को भी सूंघ लिया करते थे। अपने नाक के नीचे होने वाले हकीकत के नुकसान को कैसे भूल गए? क्या वाकई में कोई बैंक बोर्ड ब्यूरो है।
बता दें कि भारत के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पीएनबी ने बीते 14 फरवरी को स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी थी कि मुंबई के ब्राडी हाउस शाखा में करीब 11, 500 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। इसके बाद नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चौकसी के गीतांजलि ग्रुप के साथ कुछ और डायमंड और ज्वैलरी कारोबारियों पर शक जताया गया था।
बिहार में बटेश्वर स्थान गंगा पंप नहर योजना की लागत 8 करोड़ रुपए थी, इसे बनाने में 390 करोड़ रुपए खर्च हो चुके है, फिर भी नहर में पानी नहीं है, ट्रायल करने पर मालूम हुआ कि नहर में अभी भी कई जगहों पर रिसाव हो रहे हैं, नहर का प्रोजेक्ट अभी भी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हड़बड़ाहट देखिये, नहर का अधूरा प्रोजेक्ट का ही वह उद्घाटन करेंगे। 15 फरवरी (गुरुवार) को नीतीश कुमार कहलगांव आ रहे हैं। यहां वो बटेश्वर स्थान गंगा पंप नहर योजना का उद्घाटन करेंगे।
बता दें कि 20 सितंबर 2017 को बटेश्वर स्थान गंगा पंप नहर का उद्घाटन होना था, लेकिन एक दिन पहले ही 19 सितंबर की शाम को नहर की दीवार टूट गई थी और उद्घाटन टल गया था। इस योजना पर 389.36 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। नहर पर 1977 से ही काम चल रहा है। उस वक्त इसकी लागत 8 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इस नहर से बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव इलाके और झारखंड के गोड्डा जिले में सिंचाई होगी।
नहर की लंबाई करीब 100 किलोमीटर है। फिलहाल बिहार में 11 किलोमीटर नहर बनी है। झारखंड में अभी तक नहर नहीं बनी है। इसके बावजूद उद्घाटन पंप हाउस का बटन दबा कर करा लिया जाएगा, लेकिन उदघाट्न के वक्त नहर में पानी नहीं छोड़ा जाएगा।
जल संसाधन विभाग और जिला प्रशासन कोई जोखिम नहीं उठाना चाह रहा है। पिछले चार दिन से पंप का बटन दबा कर नहर में पानी छोड़ने का ट्रायल भी किया जा रहा है, लेकिन नहर में कई जगहों पर रिसाव हो रहे हैं। जिन जगहों पर रिसाव की शिकायतें सामने आई है। वहां जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव अरुण कुमार सिंह ने हेलीकॉप्टर से पहुंचकर हालात का जायजा लिया। प्रधान सचिव से हरी झंडी मिलने के बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश से पंप का बटन दबवा कर उद्घाटन कराने का फैसला किया गया।
अधूरे बटेश्वर स्थान गंगा पंप नहर का उद्घाटन यह दिखाता है कि बिहार में विकास कार्यों का स्तर क्या है? क्या बिहार का इसी तरह से विकास होगा !
भारत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इन दिनों बेरोजगारी के मुद्दे पर चौतरफा घिरी हुई है। विपक्ष जहां पीएम नरेंद्र मोदी पर झूठ बोलने और रोजगार देने के वादे पर लोगों से छल करने का आरोप लगा रही है, वहीं भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के लेबर ब्यूरो ने भी वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वे में मोदी सरकार को झटके देने वाले खुलासे किए हैं।
सर्वे के मुताबिक, पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी है। लेबर ब्यूरो ने 1 लाख 56 हजार 563 हाउसहोल्ड का सर्वे किया है, जिसमें पता चला है कि बेरोजगारी की दर पिछले पांच सालों के सर्वोच्च पांच फीसदी पर पहुंच गई है।
इस सर्वे में 15 साल से ऊपर के युवाओं को शामिल किया गया था। सर्वे के मुताबिक, 2011-2012 में बेरोजगारी की दर 3.8 फीसदी थी जो बढ़कर 2012-2013 में 4.7 फीसदी और 2013-14 में 4.9 फीसदी हो गई थी। मोदी सरकार के सत्ता में आने का वर्ष यानी 2014-2015 में मंत्रालय ने सर्वे नहीं किया। उसके अगले साल 2015-2016 में यह दर और बढ़ गई। इस साल यह दर बढ़कर 5 फीसदी हो गई। यानी केंद्र में सरकार बदलने से भारत में बेरोजगारों के हालात नहीं सुधरे। बता दें कि नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में प्रति वर्ष एक करोड़ लोगों को नौकरी देने का वादा किया था।
मोदी सरकार के लिए आगे की राह भी आसान नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2019 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 1 करोड़ 89 लाख हो जाएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में भारत में कुल कर्मचारियों की संख्या 53.5 करोड़ होगी, मगर उनमें से 39.8 करोड़ लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिलेगी। मौजूदा साल में भी बेरोजगारी की हालत में सुधार के संकेत नहीं हैं। यानी आने वाले दिनों में भारत में रोजगार की स्थिति और बदतर हो सकती है।
पिछले साल विश्व बैंक की ओर से जारी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग में उछाल मिलने पर मोदी सरकार ने सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों पर इसे खूब भुनाया था, अब अमेरिकी थिंक टैंक ने इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट ने विश्व बैंक की वह रिपोर्ट खारिज कर दी है, जिसमें ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत को जर्बदस्त उछाल मिली थी। संस्था ने विश्व बैंक की रिपोर्ट को भ्रामक करार देते हुए सर्वे के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट ने कहा है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट ने गलत प्रचार किया।
अमेरिकी थिंक टैंक ने विश्व बैंक की रिपोर्ट की क्रास चेकिंग करते हुए अपनी वेबसाइट पर ब्लॉग के जरिए इसके बारे में जानकारी प्रकाशित की है। विश्व बैंक की रिपोर्ट पर पहले भी घमासान मच चुका है, जब इसके मुख्य अर्थशास्त्री पॉल रोमर ने राजनीतिक स्तर से रैंकिंग में छेड़छाड़ की बात कहते हुए जनवरी में इस्तीफा दे दिया था। हालांकि विश्व बैंक ने बचाव में यह कहा था कि पिछले चार साल की रैंकिंग की फिर से जांच होगी। विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग रैंकिंग पर सवाल उठाने वाली यह संस्था वैश्विक स्तर पर गरीबी और असमानता से जुड़े मुद्दों पर व्यापक अध्ययन के लिए जानी जाती है।
सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट ने कहा है कि 2014 के बाद विश्व बैंक ने रैंकिंग तय करने के पैरामीटर चेंज कर दिए। नए पैरामीटर के हिसाब से भले ही भारत की रैंकिंग अच्छी दिखती है, मगर हकीकत इससे उलट है। संस्था ने आरोप लगाया कि विश्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर भ्रामक हेडिंग लगाकर संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसने ईज ऑफ डूूइंग में भारत की नकली उछाल का प्रचार किया।
जब रिपोर्ट पर विवाद हुआ तो वर्ल्ड बैंक की ओर से सफाई देने की कोशिश भले हुई, मगर उन सब पर वो हैडलाइन भारी पड़ी। सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट ने विश्व बैंक की मेथेडोलॉजी ( प्रणाली ) में परिवर्तन से भारत की रैंकिंग में हुए फर्क के बाबत कहा, ''भारत ने पुरानी पद्धति से 2014 में 81.25 और नई पद्धति से 65 अंक अर्जित किया। इस नाते हमने हर वर्ष 1.25 (= 81.25 / 65) के हिसाब से गुणा करके रैंकिंग निकाली। कंसिस्टेंट मेथेडोलॉजी एंड फिक्स्ड सैंपल ऑफ कंट्रीज के तरीके से जब जांच हुई तो पता चला कि भारत की रैंकिंग में 2017 से 2018 के मुकाबले सिर्फ सात अंक का उछाल आया है। यानी भारत 141 से 134 पर पहुंचा है। जबकि विश्व बैंक ने आधिकारिक रूप से भारत की रैंकिंग 130 से 100 पर पहुंचनी दिखाई है।''
पिछले साल अक्टूबर 2017 में विश्व बैंक ने भारत को 100 रैंकिंग दी थी। सालाना रिपोर्ट ''डूइंग बिजनेस 2018: रिफार्मिंग टू क्रिएट जॉब्स'' में विश्व बैंक ने कहा था कि भारत की रैंकिंग 2003 से अपनाये गये 37 सुधारों में से करीब आधे का पिछले चार साल में किये गये क्रियान्वयन को प्रतिबिंबित करता है। कारोबार सुगमता के 10 संकेतकों में से आठ में सुधारों को क्रियान्वित किया गया। इसको लेकर भारत को पहली बार शीर्ष 100 देशों में जगह मिली। जबकि 2017 में भारत को 190 देशों की सूची में 130 वें स्थान पर रखा था। 100 वीं रैंक मिलने के बाद मोदी सरकार ने इसको लेकर काफी प्रचार भी किया। हाल में दावोस के दौरे के दौरान भी मोदी ने विश्व बैंक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि धरती का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
बिहार में फिरौती वसूली के लिए कम, शादी के लिए ज्यादा अपहरण हो रहे हैं। खुद यह बिहार पुलिस के आंकड़े कहते हैं।
बिहार में भी गजब-गजब की घटनाएं होती हैं। ऐसी ही एक घटना है पकड़ुआ यानी जबरन विवाह की। लड़की के मां-बाप को जो लड़का अच्छा लग जाता है, उससे शादी के लिए किसी भी कीमत तक चले जाते हैं। यहां तक कि अपहरण कर घर लाते हैं और जबरन शादी रचा देते हैं।
बिहार में अपहरण की आधी से ज्यादा घटनाएं शादी से जुड़ी होती हैं। यानी यहां फिरौती से ज्यादा शादी के लिए अपहरण होता है।
बिहार पुलिस का दावा है कि पिछले साल जितने अपहरण के केस हुए, उनमें से क़रीब आधे तो शादी के लिए हुए। 2017 में 8336 अपहरण के केस दर्ज हुए, इनमें से 3075 का कनेक्शन शादी ब्याह से रहा।
पुलिस के मुताबिक, राज्य में हर साल औसतन तीन से चार हजार के बीच युवाओं के अपहरण सिर्फ शादी के लिए हो रहे हैं। हर साल मामले बढ़ने पर राज्य पुलिस मुख्यालय से शादियों के सीजन में सभी एसपी को खास हिदायतें भी जारी की जाती हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक, 2014 में 2526, 2015 में 3000, वहीं 2016 में 3070 युवकों का अपहरण कर बंदूक के दम पर शादी कराई गई। खुद पुलिस बताती है कि शादी के सीजन में हर तीन घंटे पर एक और 24 घंटे में औसतन आठ से नौ लोगों का अपहरण कर सामूहिक विवाह रचाने की घटनाएं होती हैं।
बिहार के कई जिले पकड़ुआ विवाह को लेकर बदनाम हैं। इन जिलों में नवादा, बेगूसराय, लखीसराय और मुंगेर आदि शामिल हैं। कुछ जगहों पर अब इस रिवाज को स्वीकार किया जाने लगा हैं।
हालांकि कई जगहों पर काफी विवाद हो जाता है तो पुलिस की मध्यस्थता के बाद समझौता होता है, फिर दूल्हा दुल्हन को घर लाने के लिए राजी होता है। पुलिस इन मामलों को आपराधिक वारदात से कहीं ज्यादा सामाजिक कुरीति और समस्या के रूप में देखती है। यही वजह है कि थानों में पहले अपहरण की घटनाएं दर्ज तो होती हैं, मगर बाद में वर-वधू पक्ष के बीच समझौता हो जाने के बाद केस को खत्म कर दिया जाता है।
गणतंत्र दिवस के मौके पर कासगंज में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इस सांप्रदायिक दंगा का सच क्या है? जानना जरूरी है। मुस्लिम गणतंत्र दिवस के मौके पर वीर अब्दुल हमीद चौक पर तिरंगा झंडा फहराने जमा हुए थे, हिंदुओं ने मांगा रास्ता और बिगड़ बात गई।
यह हिंसा केवल तिरंगा यात्रा के लिए रास्ता न देने के लिए हुई थी क्योंकि दूसरे पक्ष के लोग तिरंगा फहराने के लिए सड़कों पर कुर्सी लगा रहे थे।
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और इस घटना के चश्मदीदों ने बताया कि अनाधिकृत मोटरसाइकिल पर निकली तिरंगा यात्रा कासगंज के बद्दू नगर पहुंची, जिसने बाद में साम्प्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया था। एक स्थानीय निवासी के मुताबिक, मोटरसाइकिल पर रैली कर रहे लोगों ने कुर्सी हटाने के लिए कहा ताकि वे वहां से निकल सके।
वकील और स्थानीय निवासी मोहम्मद मुनाज़ीर रफी ने कहा, ''वे मुस्लिम विरोधी नारे लगा रहे थे। हमने उनसे आग्रह किया कि पहले हमारा गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम खत्म होने दें, लेकिन वे अपनी बात पर अड़े रहे और वहां से नहीं हटे।''
रफी ने कहा, ''मैंने गणतंत्र दिवस मनाने के लिए 200 रुपए का अपनी तरफ से योगदान दिया था। मैं सुबह घर से कासगंज कोर्ट के लिए निकल गया था, जहां पर तिरंगा फहराने का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जब मैं वापस आया तो हमारे स्थानीय इलाके में लोग गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के लिए कुर्सी लगा रहे थे। इसी दौरान अचानक 50-60 लोगों का एक ग्रुप बाइक पर वहां पहुंचा और कुर्सी हटाने के लिए कहने लगा।''
रफी ने कहा, ''हमने उनसे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। वहां कई लोग इकट्ठे हो गए और धक्का-मुक्की भी हुई। इसके बाद वे लोग अपनी बाइक लेकर वहां से निकल गए। मैंने कासगंज पुलिस को फोन किया और उन्हें घटना की जानकारी दी। इसी प्रकार की एक रैली पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित की गई थी, लेकिन उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ था। हम देशभक्त हैं, लेकिन अभी हमें देशद्रोहियों की तरह प्रदर्शित किया जा रहा है।''
कासगंज एडिशनल एसपी पवित्र मोहन त्रिपाठी के अनुसार, पुलिस ने दोनों पक्षों को अलग कराया था। उन्होंने कहा, बाइक सवार लोग फिर से एक जगह इकट्ठा हुए और तेहसील रोड के चक्कर लगाने लगे। वहां एक अन्य मुस्लिम बहुल इलाके के लोगों ने सोचा कि वे लोग प्रतिशोध की भावना से वहां चक्कर लगा रहे हैं। यहीं से हिंसा की शुरुआत हुई, जिसमें गोली लगने के कारण 28 साल के एक युवक की जान चली गई।
इस मामले पर बात करते हुए आईजीपी ध्रुव कांत ठाकुर ने कहा, ''जिस समय यह घटना हुई, उस वक्त मुस्लिम समुदाय के लोग तिरंगा फहराने ही वाले थे।''
बता दें कि इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जहां पर करीब 60 लोगों का एक ग्रुप हाथ में तिरंगा और भगवा रंग का झंडा लिए चिल्ला रहे थे कि ''बाइक तो यहीं से जाएगी।''
उत्तर प्रदेश के कासगंज में शुक्रवार को भड़की हिंसा पर शनिवार को भी पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका। शनिवार को कई इलाक़ों में पथराव, लूटपाट और आगजनी की ख़बरें आईं।
हालांकि इन घटनाओं में किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं है, लेकिन शहर में तनाव बरक़रार है। दूसरी तरफ पुलिस स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में बता रही है।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, घटना को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज़ की गई हैं और नौ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। 39 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
शुक्रवार को तिरंगा यात्रा निकाले जाने के दौरान हुई हिंसा में मारे गए युवक का शनिवार को अंतिम संस्कार किया गया और इसी के बाद शहर में एक बार फिर अचानक हिंसा भड़क उठी।
सहावर गेट इलाक़े में क़रीब दो दर्जन दुकानों में लूटपाट करने के बाद आगजनी करने की कोशिश की गई।
इसके अलावा नदरई गेट और बाराद्वारी में कई दुकानों में आग लगा दी गई।
ये दोनों इलाक़े कासगंज नगर कोतवाली से मुश्किल से तीन सौ मीटर की दूरी पर हैं।
ये घटनाएं तब हुईं, जबकि पूरे कासगंज शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। हर जगह पुलिस और सुरक्षाबलों की मौजूदगी है। कासगंज शहर के भीतर दाख़िल होने वाले सारे रास्तों को लगभग बंद कर दिया गया है और आने-जाने वालों की तलाशी ली जा रही है।
कासगंज की सड़कों पर पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी गश्त लगा रहे हैं और सड़क पर किसी को भी देखते ही भगा रहे हैं।
लेकिन चौकसी के बावजूद शहर के अंदर तीन बसों को आग के हवाले कर दिया गया जिनमें एक रोडवेज़ बस भी शामिल है।
इसके अलावा कई दोपहिया वाहन भी जला दिए गए। दुकानों और वाहनों में लगी आग घंटों बाद भी बुझाई नहीं जा सकी है।
नदरई गेट पर अलीगढ़ परिक्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजय आनंद भी गश्त कर रहे थे।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अब स्थिति बिल्कुल नियंत्रण में है। ये पूछने पर कि इतने भारी-भरकम पुलिस बल के बावजूद शनिवार को हिंसा दोबारा कैसे भड़क गई, तो उनका जवाब था, ''देखिए हर एक व्यक्ति पर तो निगरानी रखी नहीं जा सकती है, लेकिन पुलिस और प्रशासन पूरी मुस्तैदी से तैनात हैं। जो लोग भी हिंसा के लिए दोषी हैं उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी। 39 लोगों को एहतियात के तौर पर हिरासत में लिया गया है और दूसरे लोगों की तलाश की जा रही है।''
एडीजी अजय आनंद के मुताबिक, घटना से संबंधित दो एफ़आईआर दर्ज की गई हैं और उन्हीं के आधार पर नौ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है।
इससे पहले, शुक्रवार रात क़रीब नौ बजे कासगंज शहर में ही मथुरा-बरेली हाइवे पर सफ़ारी सवार एक मुस्लिम परिवार पर कुछ दंगाइयों ने हमला कर दिया। हमले में गाड़ी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई और उसमें सवार एक व्यक्ति की आँख में गंभीर चोटें आई हैं। इस व्यक्ति को दंगाइयों ने गोली भी मारी है, इसी हालत गंभीर है, इसका इलाज आई सी यू में चल रहा है। एक अन्य मुस्लिम युवक को गोली लगी है, उसका भी इलाज चल रहा है।
इस बीच, बीजेपी के द्वारा इस मामले को राजनीतिक रंग देने की भी कोशिश की गई। कासगंज-एटा क्षेत्र के बीजेपी सांसद राजवीर सिंह और इलाक़े के तीन बीजेपी विधायक मृत युवक के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
इससे पहले साध्वी प्राची भी कासगंज आने की कोशिश कर रही थी, लेकिन प्रशासन ने उसे अनुमति नहीं दी।
कासगंज में शुक्रवार की शाम हिंसा उस वक़्त शुरू हुई, जब कुछ युवक तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे और मुस्लिम विरोधी नारे लगा रहे थे, परिणामस्वरूप बड्डूनगर इलाक़े में मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों के साथ उनकी झड़पें हो गई। तिरंगा यात्रा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के लोगों ने निकाली थी। झड़प होने के बाद पत्थर और गोलियां चलीं। वाहनों और दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की गई।
इन्हीं झड़पों के बाद दोनों पक्षों के बीच पथराव और आगजनी की घटनाओं के अलावा गोलीबारी भी हुई जिसमें चंदन गुप्ता नाम के एक युवक की मौत हो गई और नौशाद नाम के एक युवक गोली से गंभीर रूप से घायल हो गए जिसे अलीगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एक अन्य मुस्लिम युवक को गोली लगी है, उसका भी इलाज हॉस्पिटल में चल रहा है।
क्या 'काले सोने' के उदय के पीछे है?
2014 के बाद से तेल की कीमतें पहली बार 70 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग देशों के संगठन (ओपेक) ने कहा कि तेल की कीमतों के अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड ने आपूर्ति को सीमित करना जारी रखेगा। संगठन दुनिया के 40% उत्पादन के लिए जिम्मेदार है।
लंदन स्थित थिंक मार्केट्स के मुख्य बाजार विश्लेषक नईम असलम कहते हैं कि कीमतें बढ़ने के तीन प्रमुख कारक हैं: आपूर्ति में कटौती, मांग में स्थिरता और सबसे महत्वपूर्ण, अरमको आईपीओ।
असलम का कहना है, "सउदी अरब की कीमत स्थिरता के पीछे मुख्य कारण आईपीओ है ... (यह है) क्योंकि हमने आपूर्ति कटौती के फैसले में निरंतरता को देखा है।"
असलम ने आगे कहा, ''(यह प्रवृत्ति) जारी रखने की बहुत संभावना है कीमत निश्चित रूप से ऊपर की तरफ बढ़ सकती है। क्योंकि मुझे लगता है कि मांग के संदर्भ में स्थिरता है, विशेषकर चीनी मांग .... हमने पिछले वर्ष में 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी है; प्रति दिन 8 मिलियन बैरल से अधिक।''
लेकिन औसत उपभोक्ता के लिए इसका क्या मतलब है? माल और सेवाओं जैसे परिवहन और उड़ानों की कीमतों में वृद्धि होगी? असलम का मानना है कि मुद्रास्फीति अपरिहार्य है।
''यूके में, हमने पहले ही देखा है कि (मूल्य वृद्धि हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती है) कई विभिन्न कारकों में। वैश्विक परिप्रेक्ष्य से, उच्च तेल की कीमतें पहले से ही समीकरण के विभिन्न हिस्सों में बढ़ोत्तरी जारी रखा है।"
अमेरिकी तेल उत्पादन के साथ अब सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित हो गया है, यह भविष्यवाणी वैश्विक तेल उत्पादन परिदृश्य को कैसे प्रभावित करेगा?
असलम कहते हैं, ''जब तक यहाँ मांग है, तब तक उच्च तेल उत्पादन समस्या नहीं है और न ही यह स्थायित्व को प्रभावित करेगा।''
एक नया संतुलन: चीन और फ्रांस
फ्रांस और चीन के राष्ट्रपतियों ने एयरोस्पेस और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं सहित साझेदारी-निर्माण अभ्यास के दौरान अरबों के व्यापार सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के एक नए युग की शुरुआत के रूप में तीन दिनों की यात्रा, जिसका उद्देश्य आर्थिक संबंधों को गहरा करना है, दोनों पक्षों ने स्वागत किया। यह भी देखा गया कि वैश्विक सुरक्षा, मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक पारस्परिक सहमति पहुंच गई है - एक ऐसा दृष्टिकोण जो पूरी तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विपरीत है।
जैसा कि अमेरिका के साथ संबंध तनाव से भरा है और ब्रिटेन पर ब्रेटीट करघे हैं, क्या चीन के साथ एक मुक्त व्यापार संबंध है जो यूरोप के लिए हमेशा की तरह आकर्षक है?
नाटिक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री फिलिप वाएकटर कहते हैं, ''यह वाकई एक आकर्षक बाजार है। हम एक वसूली अवधि में हैं और ब्रेक्सिट का प्रबंधन हमारे लिए कुछ है। यूरोप में पुनर्प्राप्ति सबसे महत्वपूर्ण है: अमेरिका, अफ्रीका, एशिया से।"
क्या मैक्रॉन के प्रयासों को फ्रेंच और फिर आखिरकार, यूरोपीय बाजारों को चीनी बाजारों में व्यापार करने के लिए और अधिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास की सफलता है?
वाएकटर कहते हैं, ''यह यूरोपीय रणनीति में पहला कदम था। जब हम विश्व व्यापार को देखते हैं, तो तीन चैंपियन हैं: अमेरिका, चीन और यूरोप .... हमें चीन और यूरोप के बीच एक नया संतुलन बनाना होगा।''