गुजरात की सत्ता में वापसी के लिए अपनी जुमलेबाजी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार और मायावती का धन्यवाद करना चाहिए। मायावती का तो खास शुक्रिया अदा करना जरूरी है, जिसका हाथी कांग्रेस के वोट काटता रहा।
भाजपा के खाते में कम से कम 20 ऐसी सीटें गई हैं, जहां जीत का अंतर केवल 300 - 400 से एक हज़ार वोटों तक रहा।
जानकारों के अनुसार, इन स्थानों पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी को दो से चार हज़ार तक वोट मिले।
नीतीश कुमार का भी मायावती की ही तरह कहीं खाता तो नहीं खुला, लेकिन मोदी से वफ़ादारी निभाने में पीछे नहीं रहे।
सवाल उठता है कि बिहार में महा गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार ने गुजरात में मोदी की बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा ? नीतीश अगर मोदी के साथ मिलकर चुनाव लड़ते तो सेक्युलर वोट बैंक में कैसे सेंध लगा पाते ?
गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार की भूमिका 'वोट कटवा' की रही जिससे कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ, जबकि बीजेपी गुजरात में निश्चित हार से बच गई और सत्ता में वापस भी आ गई।
गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार ने सेक्युलर वोट में सेंध लगाने का काम किया। ऐसा करके गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार ने बीजेपी को फायदा पहुँचाया। अब वक़्त आ गया है कि लोगों को मायावती और नीतीश कुमार को वोट देने से बचना चाहिए।
मायावती की सियासत बेजोड़ है। विपक्ष की एकता की बात हो, चंद्रशेखर की भीम सेना हो, गुजरात के ऊना में दलित उत्पीड़न हो, जिग्नेश मेवाणी का आन्दोलन हो, किसी से लेना-देना नहीं।
याद रहे, 2002 की हिंसा के बाद 2004 में हुए चुनावों में मायावती ने गुजरात जाकर भाजपा के समर्थन में प्रचार किया था। कांशीराम का संघर्ष कहाँ तक ले आया 'बहिन' जी को !
गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण में कम-से-कम 11 सीटें कांग्रेस महज 2,000 से भी कम मार्जिन से हारी, जहां बसपा को इस मार्जिन से कहीं ज्यादा वोट मिले हैं।
जिन सीटों पर कांग्रेस बहुत ही कम वोटों से हारी है। वे हैं: गोधरा से 258, धोलका से 327, बोटाद से 906, हिम्मतनगर से 1712, खंभात से 2318, पोरबंदर से 1855, प्रांतिज से 2551, राजकोट रूरल से 2179, उमरेथ से 1883, वागरा से 2370 और वीजापुर से 1164 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशियों की हार हुई है। इन सीटों पर इन प्रत्याशियों के हार के मार्जिन से कहीं अधिक वोट बहुजन समाज पार्टी को मिली।
अगर इन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार खड़े नहीं होते तो गुजरात का रिजल्ट कुछ और होता। बीजेपी चुनाव हार जाती और गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनती !
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का 15 वां दिल्ली राज्य सम्मेलन आज दक्षिण-पश्चिम ज़िले के विजय एन्कलेव, पालम डाबरी रोड, नई दिल्ली में शुरू हुआ। यह 2 दिवसीय सम्मेलन 16 और 17 दिसम्बर, 2017 तक चलेगा। पार्टी के वरिष्ठ साथी बलदेव सिंह ने झण्डारोहण किया। सम्मेलन का उद्घाटन कॉमरेड प्रकाश कारात पोलिट ब्यूरो सदस्य, सी.पी.आई. (एम) ने किया।
प्रकाश कारात ने अपने उद्घाटन भाषण में वर्तमान राजनीतिक हालात पर बोलते हुए कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा अपनाई गई जन-विरोधी नीतियों के चलते मोदी सरकार रोजगार के नए अवसरों को पैदा करने में पूरी तरह विफल रही हैं, बल्कि उलटे उन्होंने बची हुई रोजगारपरक संभावनाओं को भी खत्म करने का काम किया है। प्रति वर्ष 2 करोड रोजगार देने का वायदा करके आज रोजगार देने की बात तो दूर इसके उल्ट 'नोटबंदी' व 'जी.एस.टी.' लाने के बाद से 70 लाख रोजगार छीन गए। निजीकरण के माध्यम से देशी-विदेशी निवेश को सरकारी क्षेत्रों में ले आने का विनाशकारी असर रोजगार के सृजन पर भी पड़ेगा। कृषि संकट के चलते तथा मानरेगा में कटौती के कारण देहातों में उपलब्ध रोजगार में भारी कमी आई है। किसानों को उनकी फसल की सही कीमत न मिल पाने के कारण आज लाखों किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया है।
उन्होंने कहा कि तेल व गैस खनन में निजी क्षेत्र को और बढ़ावा दिया गया है। जिसका नतीजा है कि रसोई गैस व डीजल-पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। महंगाई से आज देश की गरीब मेहनतकश जनता बुरी तरह त्रस्त है। सब्जियां, दालें और खाद्य तेल के दाम काफी बढ़ गए हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा के केन्द्र में आने के बाद से सांप्रदायिक हिंसा में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। पिछले साढे़ 3 सालों में ऐसी अनेक घटनाएँ सामने आई हैं, जहां तथाकथित गोरक्षकों ने पशु-व्यापार में लगे लोगों या गोमांस रखने-खाने के आरोपितों की या तो हत्या की है या उन्हें बुरी तरह घायल किया है। गोरक्षा के नाम पर मुसलमानों के साथ ही दलितों को भी निशाना बनाया जा रहा है। वास्तव में इस प्रकार की हिंसा सरकार के खिलाफ उठने वाले स्वर को दबाने तथा भय का ऐसा माहौल बनाने के लिए की जाती है जिसमें कोई भी सरकार के खिलाफ कुछ न बोल सके। अनेकों तार्किक-वैज्ञानिक बुद्धिजीवियों तथा पत्रकारों की हत्याएँ और उनके हत्यारों का आज तक पता न चलना इस बात की पुष्टि करता है। सांप्रदायिकता मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों को विभाजित करती है। लिहाजा, इसके खि़लाफ़ लड़ने के लिए हमें पूरी तरह सावधान रहना चाहिए।
साथ ही, उन्होंने दलित समुदाय की बदहाली, उनके साथ किये जा रहे भेद-भाव व तिरस्कार और विभिन्न शासक वर्गीय पार्टियों द्वारा उपेक्षा की कड़ी निंदा करते हुए, दलितों के बुनियादी हकों को हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष करने पर भी जोर दिया।
उद्घाटन भाषण की समाप्ति पर काॅमरेड प्रकाश कारात ने सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की इन विनाशकारी जनविरोधी नीतियों के खि़लाफ़ संघर्ष को और मजबूत बनाने का संकल्प करना होगा और भाजपा को हराने का आह्वान किया।
सीपीआई (एम) के 15 वें दिल्ली राज्य सम्मेलन में राज्य सम्मेलन की प्रस्तावित रिपोर्ट सीपीआई (एम) के राज्य सचिव के एम तिवारी ने रखा। आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के विरोध में अनुराग सक्सेना ने प्रस्ताव रखा और समर्थन गंगेश्वर दत्त ने किया। सांप्रदायिकता के विरुद्ध प्रस्ताव सहबा फारुकी ने रखी और समर्थन बृजेश सिंह ने किया। जाति के उत्पीड़न के खिलाफ प्रस्ताव नत्थू प्रसाद ने रखा और समर्थन जगदीश शर्मा ने किया। महिला उत्पीड़न के विरुद्ध प्रस्ताव मैमूना मौला ने रखा और समर्थन सुबीर बनर्जी ने किया, रोजगार की मांग को लेकर प्रस्ताव प्रमोद ने रखा और समर्थन अमन ने किया।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बुधवार को भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का अनुमान चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। इस गिरावट के लिए बैंक ने पहली छमाही के कमजोर प्रदर्शन, नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के लागू होने के बाद की चुनौतियों का हवाला दिया है।
बहुपक्षीय ऋणदाता ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत का जीडीपी अनुमान 7.4 फीसदी से घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया है, जिसका मुख्य कारण कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोत्तरी तथा भारत में स्थिर निजी निवेश को बताया है।
एडीबी ने एशियाई विकास परिदृश्य रपट में कहा है, ''वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में उत्साहविहीन विकास दर, साल 2016 के नवंबर में की गई नोटबंदी के असर, नई कर प्रणाली को लागू करने में आनेवाली शुरुआती चुनौतियों, 2017 में अपूर्ण मानसून के कारण कृषि क्षेत्र पर होनेवाले असर को देखते हुए अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब 6.7 फीसदी की दर से बढ़ेगी, जबकि पहले के अनुमानों में इसके सात फीसदी रहने की बात कही गई थी।''
अपने सितंबर के अपडेट में एडीबी ने भारत के विकास दर अनुमान को चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर सात फीसदी कर दिया था, तथा अगले वित्त वर्ष के लिए इसे 7.6 फीसदी से घटाकर 7.4 फीसदी किया था।
बता दें कि हाल ही में आए दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) के आंकड़ों के मुताबिक, जीडीपी दर बढ़कर 6.3 फीसदी पर पहुंच गई। इससे पहले अप्रैल से जून के बीच पहली तिमाही की जीडीपी दर 5.7 फीसदी रही थी। तब मोदी सरकार की खूब आलोचना हुई थी।
लेकिन बुधवार को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का अनुमान चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। इससे मोदी सरकार को करारा झटका लगा है।
6 वामपंथी पार्टियों सी.पी.आई. (एम), सी.पी.आई., ए.आई.एफ.बी., आर.एस.पी., सी.पी.आई. (एम-एल) लिब्रेशन तथा एस.यू.सी.आई. (कम्युनिस्ट) की दिल्ली राज्य इकाईयों की ओर से बाबरी मस्जिद ध्वंस की 25वीं बरसी पर आज मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च आयेाजित किया गया।
6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में जो हुआ, सिर्फ़ एक साढ़े चार सौ साल पुरानी मस्जिद के ढहाए जाने का मामला नहीं था, बल्कि संघ गिरोह (आर.एस.एस, भाजपा, बजरंग दल) द्वारा भारतीय संविधान को और उसके धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक मूल्यों को सीधे-सीधे चुनौती भी थी।
संसद मार्ग पहुंचकर मार्च एक सभा में बदल गया, सभा को सी.पी.आई. (एम) से सीताराम येचुरी; सी.पी.आई. से डी. राजा; ए.आई.एफ.बी से देवब्रत विश्वास; आर.एस.पी. से शत्रूजीत; सी.पी.आई. (एम-एल) लिब्रेशन से कविता कृष्णन तथा एस.यू.सी.आई.(कम्युनिस्ट) से रमेश शर्मा ने सम्बोधित किया।
वक्ताओं ने कहा कि आरएसएस-भाजपा द्वारा देश में झूठी अफवाहों का सहारा लेकर अलग-अलग समुदाय के लोगों के बीच नफरत के बीज बोकर दंगे भड़काए जा रहे हैं। यह साम्प्रदायिक एजेंडा जनता के आपसी सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर खतरा है। आज गौरक्षा के नाम पर लोगों को पीट-पीट कर उनकी हत्या की जा रही है तथा नवयुवकों एवं नवयुवतियों के स्वतंत्र फैसलों को लव जेहाद का नाम देकर समाज में ज़हर घोला जा रहा है। आज भारतीयता के नाम पर विज्ञान और शिक्षा का संप्रदायिकरण किया जा रहा है, यह चिंता की बात है। संघ परिवार ने पूरे देश में साम्प्रदायिक ज़हर एवं घृणा का माहौल पैदा कर दिया है। ऐसे में 6 दिसंबर को यादकर बाबरी मस्जिद का ध्वंस और सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करना ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। बाबरी मस्जिद के ध्वंस व उसके अंजाम को याद करते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि सांप्रदायिकता अंततः जनता की एकता को तोड़ने के लिए शासक वर्गों का आज़माया हुआ हथियार है। आज देश की जनता एनडीए सरकार की नव-उदारवादी नीतियों से उत्पन्न बेलगाम महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार आदि की चौतरफ़ा मार झेल रही है। इन हमलों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए हर धर्म, जाति, क्षेत्र व भाषा के मेहनतकशों की एकता निहायत ज़रूरी है। इसलिए सांप्रदायिकता से लड़ना महज़ मानवतावादी कर्तव्य ही नहीं है बल्कि भारत के ग़रीब-गुरबा की फौरी और अहम ज़रूरत भी है।
सभी वक्ताओं ने आरएसएस एवं भाजपा द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर समाज को तोड़ने की राजनीति की कठोर शब्दों में निंदा की। वक्ताओं ने समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाने तथा अल्पसंख्यकों को सुरक्षित महसूस करने का माहौल विकसित करने की ज़रूरत पर जोर दिया।
लॉजिस्टिक्स कंपनियों के लिए अच्छी खबर है। भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स कंपनियों को उद्योग का दर्जा देने का फैसला किया है।
भारत सरकार के इस कदम से इस तरह की कंपनियों को बैंकों से सस्ता लोन मिल सकेगा। सरकार के इस फैसले से इस उद्योग का इंफ्रास्टक्चर मजबूत होगा और इसका विकास हो सकेगा।
इतना ही नहीं, इससे भारत में ई कंपनियों को भी बढ़ावा मिलेगा। वित्त मंत्रालय ने इस सिलसिले में अधिसूचना जारी किया है।
आपको बता दें कि लॉजिस्टिक्स कंपनियां वस्तुओं, सूचना, उर्जा समेत अन्य संसाधनों को एक जगह से दूसरे जगह यानी उपभोक्ता तक पहुंचाने का काम करती है। इसमें यातायात, इन्वेन्टरी, गोदाम, वस्तुओं को उतारना-चढ़ाना (हैडिलिंग), उनकी पैकेजिंग, उनकी सुरक्षा समेत कई अन्य चीजें शामिल होती है।
अल शॉप 24, फ्लिपकार्ट, आमेजन समेत ई कंपनियां लॉजिस्टिक्स कंपनियों के जरिए ही आम लोगों के घर तक अपना सामान जल्द से जल्द पहुंचाने का काम करती है।
लॉजिस्टिक्स कंपनियाँ क्या है?
लॉजिस्टिक्स आमतौर पर विस्तृत संगठन और एक जटिल परिचालन का कार्यान्वयन है। एक सामान्य व्यवसाय अर्थ में, लॉजिस्टिक्स, ग्राहक या निगमों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मूल बिंदु और खपत के बीच की वस्तुओं के प्रवाह का प्रबंधन है।
एक कंपनी जो मूल बिंदु और उपभोक्ताओं के बीच माल और सामग्री के प्रवाह पर प्रबंधन प्रदान करती है, जो अंत-उपयोग गंतव्य के लिए होती है। प्रदाता अक्सर शिपमेंट्स के लिए शिपिंग, इन्वेंट्री, वेयरहाउसिंग, पैकेजिंग और सुरक्षा कार्यों को संभालता है।
लॉजिस्टिक्स एक कंपनी के लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
अब, लॉजिस्टिक्स एक उद्योग और किसी भी व्यापार मॉडल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है; यह एक व्यवसाय के अंदर और बाहर सामान के प्रवाह और संग्रहण का नियंत्रण है। ... रसद प्रबंधन ग्राहकों की मांगों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार है। कंपनी की आपूर्ति श्रृंखला में दृश्यता बनाने के लिए रसद प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है।
लॉजिस्टिक्स के कुछ उदाहरण क्या हैं?
लॉजिस्टिक्स प्रबंधन आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का हिस्सा है जो मूल बिंदु और खपत के बीच ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पाद, सेवाओं और संबंधित जानकारी के कुशल, प्रभावी अग्रिम और रिवर्स प्रवाह और भंडारण की योजना, क्रियान्वयन और नियंत्रण करता है।
अब जब हम स्पष्ट रूप से लॉजिस्टिक्स को निरुपित करते हैं और यह कैसे उत्पादों और सेवाओं के लिए मूल्य प्रदान करता है। साथ ही साथ यह एक देश की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार सहायता करता है, आइए अब हम लॉजिस्टिक्स संचालन में शामिल प्रमुख गतिविधियों के बारे में बताते हैं।
लॉजिस्टिक्स सुविधा उत्पत्ति के बिंदु से उत्पादों के उपभोग बिंदु तक प्रवाह की सुविधा है। लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में निम्नलिखित गतिविधियों को समग्र लॉजिस्टिक्स प्रक्रिया के भाग के रूप में माना जाता है।
- ग्राहक सेवाएं
- मांग पूर्वानुमान / योजना
- सूची प्रबंधन
- लॉजिस्टिक्स संचार
- सामग्री प्रबंधन
- आदेश प्रसंस्करण
- पैकिंग
- पार्ट्स और सेवाएं समर्थन
- संयंत्र और गोदाम साइट चयन
- खरीद
- रिटर्न्स गुड्स हैंडलिंग
- रिवर्स लॉजिस्टिक्स
- आवागमन और परिवहन
- वेयरहाउसिंग और भंडारण
भारत में मोदी सरकार ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट का काम छीनकर कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के 9वें दिन रिलायंस की कंपनी को दे दिया। सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत सरकार की कंपनी के बदले मुकेश अम्बानी की रिलायंस कंपनी के हित को प्राथमिकता और वरीयता क्यों दी? इसका जवाब मोदी सरकार को देना होगा।
राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर भारत में मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला बोला है।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से सवाल पूछे हैं। राहुल ने पेरिस में राफेल खरीदने की पीएम मोदी की घोषणा पर भी सवाल उठाए हैं।
राहुल गांधी ने शनिवार को ट्वीट कर रक्षा मंत्री से 3 सवाल पूछे हैं। राहुल ने निर्मला सीतारमण पर तंज कसते हुए कहा कि यह कितना शर्मनाक है कि आपके बॉस आपको खामोश कर रहे हैं।
राहुल ने रक्षा मंत्री से पूछा कि कृपया हमें हर राफेल विमान की फाइनल कीमत बताएं।
दूसरा सवाल राहुल ने पीएम मोदी से जोड़कर पूछा। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पूछा कि क्या पीएम ने पेरिस में राफेल विमान खरीदने की घोषणा से पहले कैबिनेट कमिटी ऑफ सिक्यॉरिटी (CCS) की अनुमति ली थी।
राहुल गांधी ने तीसरे सवाल में राफेल डील के लिए अनुभवी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को बाइपास करने पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पूछा कि क्यों पीएम ने अनुभवी HAL को बाइपास करते हुए यह डील AA रेटेड बिजनसमैन को दी, जिनके पास कोई डिफेंस एक्सपीरियंस नहीं है।
इससे पहले भी राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर पीएम मोदी पर निशाना साध चुके हैं। राहुल ने पहले भी आरोप लगाया था कि पीएम मोदी ने एक व्यवसायी को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे सौदे में कथित बदलाव किए।
हालांकि केंद्र सरकार ने कांग्रेस और राहुल गांधी के इन आरोपों को खारिज कर दिया था। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल सौदे का बचाव करते हुए कहा था कि इसपर आरोप लगाना बेशर्मी है। इस तरह से सुरक्षा बलों का हौसला घटेगा।
राफेल फाइटर्स की डील पर सत्ताधारी बीजेपी और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के बीच घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस ने राफेल फाइटर्स की डील को लेकर सत्ताधारी बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाया है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की डील को लेकर मोदी सरकार लगातार झूठ बोल रही है। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को गुप्त रखकर सरकार देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।
सुरजेवाला ने कहा कि निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय को बीजेपी मंच बनाकर इस्तेमाल किया, लेकिन सवाल का जवाब नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि 36 राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत क्या है? सुरजेवाला ने कहा कि सरकार कीमत बताने से क्यों बच रही है?
उन्होंने दावा किया कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 526 करोड़ रुपये है, जबकि सौदा 1570 करोड़ रुपये का हुआ है।
उन्होंने कहा कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 3 गुना क्यों बढ़ी? इसका जवाब पीएम या रक्षा मंत्री क्यों नही दे रहे।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट का काम छीनकर कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के 9वें दिन रिलायंस की कंपनी को दे दिया। भारत सरकार की कंपनी छोड़कर निजी कंपनी का हित क्यों देखा मोदी जी ने?
सवाल उठना लाज़िमी है कि मोदी ने मुकेश अम्बानी की कंपनी को भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड पर वरीयता क्यों दी, जबकि मुकेश अम्बानी की कंपनी नयी और अनुभवहीन है। इसके बदले हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड पुरानी और अनुभवी कंपनी है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास प्रोडक्शन और मार्केटिंग का वर्षों का अनुभव है।
राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 526 करोड़ रुपये है, जबकि सौदा 1570 करोड़ रुपये का हुआ है। इसका क्या मतलब निकाला जाये?
वास्तव में यह बहुत बड़ा घोटाला है। मोदी सरकार राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट सौदा में मुकेश अम्बानी की कंपनी को फायदा पहुंचा रही है।
सऊदी अरब में कुछ बड़ा होने वाला है, इसका संकेत यहां के कुछ लोगों को एक पत्र से पहले ही मिल गए थे। हालांकि उस समय किसी को इस बात का अहसास नहीं था कि कोई बड़ी कार्रवाई होने वाली है, जिसमें एक फाइव स्टार होटल की बड़ी भूमिका होने वाली है। ये लोग इसी होटल में ठहरे थे।
शनिवार 4 नवंबर को रियाद के आलीशान होटल रिट्स कार्लटन में मौजूद मेहमानों को सूचना दी जाती है कि 'स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई अप्रत्याशित बुकिंग के कारण हम गेस्ट्स को ठहराने में असमर्थ हैं.... जब तक कि सब सामान्य नहीं हो जाता।'
बताया गया कि इस बुकिंग की वजह से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ेगी। जिस समय यह सूचना दी जा रही थी, कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। कुछ ही घंटे के भीतर सुरक्षा बलों ने सऊदी अरब के कई बड़ी राजनीतिक और कारोबारी हस्तियों को अपने घेरे में ले लिया। इनमें से ज्यादातर राजधानी और तटीय शहर जेद्दा से थे। गिरफ्तार लोगों में 11 राजकुमारों के अलावा कई मंत्री और अमीर शख्स भी थे।
कुछ लोगों को मीटिंग के लिए बुलाया गया, जहां उन्हें हिरासत में ले लिया गया। अन्य लोगों को उनके घरों से गिरफ्तार कर लिया गया और प्लेन से रियाद ले जाया गया। कुछ ही समय में आलीशान रिट्स कार्लटन होटल एक अस्थायी जेल में तब्दील हो चुका था।
हिरासत में लिए गए लोगों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गईं।
32 साल के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के आदेश पर यह कार्रवाई की गई। आधिकारिक तौर पर अपने पिता किंग सलमान के बाद वह गद्दी के दावेदार हैं।
कुछ का यह भी मानना है कि वही देश को चला रहे हैं। युवराज सऊदी को एक आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इसके लिए और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए उन्होंने सऊदी के एलीट क्लास के खिलाफ कदम उठाने का बड़ा फैसला लिया, जिसमें शाही परिवार के कुछ लोग भी शामिल हैं। इन लोगों पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने और बिजनस प्रॉजेक्ट्स की लागत बढ़ाने जैसे कई गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि गिरफ्तार लोगों का पक्ष सामने नहीं आ पाया है।
इस घटनाक्रम से दुनिया के सबसे ज्यादा तेल उत्पादक देश की राजनीतिक स्थिरता खतरे में पड़ गई है। शासन करने की युवराज की क्षमता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कार्रवाई कितनी सफल रहती है। युवराज का मानना है कि देश नहीं बदला तो अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में फंस जाएगी और इससे अशांति पैदा हो सकती है। इससे शाही परिवार के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है और क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी ईरान के खिलाफ देश कमजोर पड़ जाएगा।
प्रिंस मोहम्मद के चचेरे भाई और शक्तिशाली नेशनल गार्ड के प्रमुख मुतैब बिन अब्दुल्ला को भी इस होटल में रखा गया है। मुतैब रियाद में अपने फार्म हाउस में थे, जब उन्हें मीटिंग के लिए बुलाया गया। वरिष्ठ पद पर बैठे अधिकारी को रात में इस तरह बुलाया जाना सामान्य बात नहीं थी। पर किसी को संदेह नहीं हुआ।
इन दिनों सऊदी अरब के शाही परिवार में जबरदस्त उठा-पटक चल रही है। यहां भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में अबतक 201 लोगों को हिरासत में लिया गया है। सऊदी के भावी शाह मोहम्मद बिन सलामन द्वारा छेड़े गए इस अभियान में देश के 11 राजकुमारों समेत शीर्ष अधिकारियों और पूर्व मंत्रियों पर भी शिकंजा कसा है।
बताया जा रहा है कि 32 साल का ये शहज़ादा सऊदी हुकूमत के सबसे ताकतवर शख्सियत के तौर पर उभर कर सामने आया है। जानकारों के मुताबिक, वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब उन्हें सऊदी अरब का सुल्तान बना दिया जाएगा। किंग सलमान कमज़ोर और बीमार हैं, वो कभी भी ताज छोड़ सकते हैं। वो कभी भी क्राउन प्रिंस सलमान को किंग बनाने की घोषणा कर सकते हैं।
जानकारों के मुताबिक, अभी भी क्राउन प्रिंस ही वास्तव में मुल्क चला रहे हैं। मुहम्मद बिन सलमान का जन्म 31 अगस्त 1985 को हुआ था और वह किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज अल-सऊद की तीसरी पत्नी फहदा बिन फलाह के सबसे बड़े बेटे हैं। रियाद स्थित किंग सऊद यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद प्रिंस मोहम्मद सलमान ने कई सरकारी महकमों में काम किया। किंग सलमान ने 2015 में सत्ता संभालते ही दो अहम बदलाव किए थे और अपने बेटे को सत्ता के और करीब कर दिया था। उस वक्त शहज़ादा सलमान केवल 29 वर्ष की आयु में दुनिया के सबसे कम उम्र के रक्षा मंत्री बन गए थे।
भारत के डॉक्टर या प्राइमरी केयर कंसल्टेंट, मरीजों को सिर्फ दो मिनट का वक्त देते हैं। इसका खुलासा एक रिसर्च से हुआ है। मेडिकल कंसल्टेशन पर हुए सबसे बड़े इंटरनेशनल शोध में यह बात सामने आई है।
पड़ोसी देशों बंग्लादेश और पाकिस्तान में स्थिति और भी बदतर है, यहां कंसल्टिंग टाइम औसतन 48 सेकंड से 1.3 मिनट ही है।
यह शोध गुरुवार को मेडिकल जर्नल बी एम जे ओपन में प्रकाशित हुआ है। इसके विपरीत स्वीडन, अमेरिका और नॉर्वे जैसे देशों में कंसल्टेशन का औसत समय 20 मिनट होता है।
यह शोध यूनाइटेड किंगडम के कई अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने किया था।
जर्नल में कहा गया है, ''यह चिंता की बात है कि 18 ऐसे देश, जहां की दुनिया की 50 फीसदी आबादी रहती है। यहां का औसत कंसल्टेशन टाइम 5 या इससे कम मिनट है।
स्टडी के मुताबिक, मरीज ज्यादा वक्त फार्मेसी में या ऐंटीबायॉटिक दवाएं खाकर बिता रहे हैं और उनके डॉक्टरों से रिश्ते उतने अच्छे नहीं है।
कंसल्टेशन का वक्त कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा बड़ी समस्या है। भारत के परिपेक्ष्य में लोकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये अस्पतालों में भीड़ और प्राइमरी केयर फिजिशन की कमी को दर्शाता है। प्राइमरी केयर डॉक्टर कंसल्टेंट्स से अलग होते हैं जो कि मेडिसिन की खास ब्रांच में ट्रेनिंग पाए होते हैं।
भारत में कंसल्टेशन को दो मिनट का वक्त मिलने वाली बात से किसी को भी हैरानी नहीं हुई। हेल्थ कंमेंटेटर रवि दुग्गल का कहना है, ''यह बात सभी को पता है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम वक्त दे पाते हैं।''
डॉ दुग्गल के मुताबिक, ''कोई नई बात नहीं है कि डॉक्टर मरीजों के लक्षणों में भ्रमित हो जाएं।''
वहीं प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में भी भीड़ का यही हाल है। यहां डॉक्टर सिर्फ लक्षण पूछते हैं और बहुत कम ही शारीरिक परीक्षण कर पाते हैं।
वेस्टर्न और इंडियन कंसल्टेशन में बीमारियों में फर्क होता है। महाराष्ट्र के डॉक्टर सुहास बताते हैं, ''स्वीडन में मरीज को वायरल फीवर के बजाय साइकोसोशल समस्या होती है। वही भारत में अगर डॉक्टर को हवा में मौजूद किसी खास तरह के वायरस के बारे में जानकारी है तो वह कई लोगों का आसानी से इलाज कर सकता है।'' बी एम जे ओपन स्टडी में कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब हालत को देखा गया।
पनामा पेपर की तर्ज पर लीक हुए पैराडाइज पेपर में मोदी सरकार के मंत्री, बीजेपी और गैर बीजेपी दलों के सांसदों, बॉलीवुड हस्तियों समेत कुल 714 भारतीयों के नाम शामिल हैं।
मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा, बिहार से बीजेपी के सांसद आर के सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोईली, पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, बॉलीवुड स्टार और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त के भी नाम इस दस्तावेज में हैं।
पैराडाइज पेपर के डेटा में कुल 180 देशों के नाम हैं। इनमें से भारत का स्थान 19वां है। भारत के कुल 714 लोगों का नाम पैराडाइज पेपर के डेटा लिस्ट में है।
अमेरिका स्थित इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आई सी आई जे) द्वारा जारी किए गए पैराडाइज दस्तावेज से यह खुलासा हुआ है। इसी संगठन ने पिछले साल पनामा दस्तावेजों का खुलासा किया था जिसने दुनियाभर की राजनीति में तूफान पैदा किया था। इंडियन एक्सप्रेस आई सी आई जे का सदस्य है और उसने भारत से जुड़े हुए सभी दस्तावेजों की पड़ताल की है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा से इस्तीफे की मांग की और कहा कि उनकी पार्टी हर तरह की जांच का स्वागत करती है।
केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने सफाई दी है। उन्होंने कहा कि जब मैं राजनीति में नहीं था, तब मैंने अपने लिए नहीं, कंपनी के लिए यह काम किया था। इसकी जानकारी मैंने सार्वजनिक की थी।
अभिनेता संजय दत्त की पत्नी मान्यता (दिलनशीं संजय दत्त) का नाम भी पैराडाइज पेपर्स में है। मान्यता संजय दत्त से शादी करने से पहले प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल (2003) के एक ऑयटम सॉन्ग से चर्चा में आई थीं। वो संजय दत्त प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड की सदस्य हैं। अपने पति की कंपनी के अलावा भी मान्यता कई अन्य कंपनियों के बोर्ड में हैं जिनमें दिक्स्श (Diqssh) एनर्जी, स्पार्कमैटिक्स एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड, दिक्स्श रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड, ब्रिक बाई ब्रिक रियल्यटर्स प्राइवेट लिमिटेड, डूटो कमॉडिटीज प्राइवेट लिमिटेड, दिक्स्श इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, सेवंटी एम एम मूवीज प्राइवेट लिमिटेड और ट्रांसपरेंसी एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि शामिल हैं।
पैराडाइज पेपर्स में नाम आने पर बिहार से बीजेपी के राज्य सभा सांसद रविन्द्र किशोर सिन्हा ने लिखकर प्रतिक्रिया दी है कि उनका मौन व्रत है।
समाचार एजेंसी एएनआई के संवाददाता ने जब उनसे इस पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो सिन्हा ने इशारों में ही संवाददाता से कलम मांगी और कागज पर लिखा, ''7 दिन के भागवत यज्ञ में मौनव्रत है।''
पनामा पेपर की तर्ज पर लीक हुए पैराडाइज पेपर में बिहार से बीजेपी के राज्यसभा सांसद रविन्द्र किशोर सिन्हा का भी नाम है। सिन्हा साल 2014 में बिहार से राज्यसभा सांसद चुने गए हैं। वो संसद के ऊपरी सदन में सबसे अमीर सांसदों में एक हैं। सिन्हा एक पूर्व पत्रकार हैं, जिन्होंने सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज (एस आई एस) नाम से प्राइवेट सिक्योरिटी सर्विस फर्म की स्थापना की है।
फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन 'कौन बनेगा करोड़पति' (के बी सी) के 2000-02 में प्रसारित पहले संस्करण के बाद बरमूडा की एक डिजिटल मीडिया कंपनी के शेयरधारक बने थे। साल 2004 में भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) के लिबरलाइज्ड रिमिटेंस स्कीम शुरू करने से पहले तक सभी भारतीयों को विदेश में किए गए निवेश की जानकारी आर बी आई को देनी होती थी। ये साफ नहीं है कि अमिताभ बच्चन ने ये जानकारी आरबीआई को दी थी या नहीं।
जर्मन अखबार Süddeutsche Zeitung को बरमूडा की कंपनी ऐपलबी, सिंगापुर की कंपनी एसियासिटी ट्रस्ट और कर चोरों के स्वर्ग समझे जाने वाले 19 देशों में कराई गई कार्पोरेट रजिस्ट्रियों से जुड़े करीब एक करोड़ 34 लाख दस्तावेज मिले। जर्मन अखबार ने ये दस्तावेज इंटरनेशनल कॉन्सार्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट (आई सी आई जे) के साथ साझा किया।
पैराडाइज पेपर के दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबियों से जुड़ी कंपनी के साथ कारोबारी संबंध हैं, जबकि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने विदेशों में टैक्स से बचाव करने वाले स्थानों पर निवेश किया हुआ है।
इसमें यह भी खुलासा किया गया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडू के लिए कोष जुटाने वाले और वरिष्ठ सलाहकार स्टीफन ब्रॉन्फमैन ने पूर्व सीनेटर लियो कोल्बर के साथ मिलकर विदेशों में कर पनाहगाहों में करीब 6 करोड़ डॉलर का निवेश कर रखा है।
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल लागू की गयी नोटबंदी के पक्ष-विपक्ष में बहसों का दौर अभी थमा नहीं है। पीएम मोदी ने आठ नवंबर 2016 को तत्काल प्रभाव से उसी रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी।
नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री भास्कर चक्रवर्ती ने हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में मोदी सरकार के इस फैसले की समीक्षा की है।
जब नोटबंदी लागू हुई तो भारत की कुल नकदी का करीब 86 प्रतिशत 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में था। नोटबंदी की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी मच गयी थी। अनगिनत लोगों की नौकरियां गईं, कई दर्जन लोगों की मौतों के लिए नोटबंदी को जिम्मेदार ठहराया गया।
प्रोफेसर भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, नोटबंदी बगैर उचित सोच-विचार के लागू किया गया फैसला था और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खासकर गरीबों पर नकारात्मक असर पड़ा।
भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, नोटबंदी के फैसले से दुनिया के बाकी देश चार सबक सीख सकते हैं। नीचे पढ़िए भास्कर चक्रवर्ती की राय में वो सबक क्या हैं?
पहला सबक: सावधानी से विशेषज्ञों का चुनाव करें
भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, किसी भी नीति के आनुषंगिक परिणाम होते हैं इसलिए उन्हें लागू करने से पहले कुछ बुनियादी कवायदें जरूरी हैं। किसी भी नीति को लागू करने से पहले अर्थव्यवस्था, कारोबार और तकनीक क्षेत्र के विशेषओं का समेकित विचार जानना जरूरी है। भारत जैसी जटिल आर्थिकी वाले देश में ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
भास्कर ने लिखा है कि भारत में मोदी सरकार ने नोटबंदी लागू करने के खिलाफ रघुराम राजन जैसे काबिल आदमी की राय को नकार दिया।
भास्कर लिखते हैं कि अभी तक ये पूरी तरह साफ नहीं है कि नोटबंदी के लिए मोदी सरकार ने किन विशेषज्ञों से राय ली थी।
भास्कर लिखते हैं कि नोटबंदी जैसे दूरगामी प्रभाव वाले फैसले लेने से पहले विशेषज्ञों की राय, आंकड़ों और उनके विश्लेषण जानने की पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए और इसे आधिकारिक रूप से दर्ज भी किया जाना चाहिए। भले ही इस गुप्त रूप से किया जाए।
भास्कर मानते हैं कि लोकतांत्रिक देशों की सरकारों की जवाबदेही है कि वो अपने फैसलों के पीछे की तैयारी से जुड़े सवालों का जनता को जवाब दें।
दूसरा सबक: बुनियादी आंकड़ों की अनदेखी न करें
भास्कर के अनुसार, सभी नीतियों का उद्देश्य जनकल्याण होता है, लेकिन हर नीतिगत निर्णय के कुछ नकारात्मक पक्ष होते हैं। जन साधारण के फायदे में लिए गये फैसले समाज के किसी एक वर्ग के लिए भारी साबित होते हैं।
भास्कर के अनुसार, इसलिए किसी भी नीतिगत फैसले के पहले तथ्य आधारित नफा-नुकसान का मुल्यांकन जरूरी है।
भास्कर के अनुसार, किसी भी नीति को लागू करने से पहले उससे जुड़े बुनियादी आंकड़ों का विश्लेषण कर लेना चाहिए। अगर नीति को लागू करने में जोखिम ज्यादा है तो आगे बढ़ने से पहले उस पर खड़े किए गए सवालों के जवाब ढूंढने चाहिए। नोटबंदी लागू करने की सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम लगाने की मंशा बतायी गई।
भास्कर के अनुसार, नरेंद्र मोदी की कई विशेषज्ञों ने इस साहसी फैसले के लिए तारीफ भी की और हालिया प्रादेशिक चुनावों के नतीजे से इसकी लोकप्रियता का भी प्रमाण मिल गया, लेकिन इससे जुड़ी कुछ बुनियादी बातों का ख्याल नहीं रखा गया।
भास्कर के अनुसार, सबसे पहले, एक झटके में 86 प्रतिशत नकदी को गैर-कानूनी घोषित करने के फैसले को लेकर सरकार को पहले ही अति-सावधान हो जाना चाहिए था क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में अफरा-तफरी मचने की आशंका थी। इसके अलावा भारत का 90 प्रतिशत कामगार वर्ग असंगठित क्षेत्र में काम करता है जिसे नकद मेहनताना मिलता है। देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाली इस दोहरी मार को नजरंदाज करना मुश्किल था। तीसरा, आयकर विभाग के हालिया विश्लेषण के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में नकद अघोषित आय कुल अर्थव्यवस्था का करीब छह प्रतिशत है। यानी नोटबंदी का निशाना ही गलत था। साफ है कि देश की ज्यादातर अघोषित आय गैर-नकदी संपत्ति के रूप में मौजूद है। ये सारे आंकड़े पहले से मौजूद हैं और नोटबंदी लागू करने वालों को इन्हें देखकर थम जाना चाहिए था।
तीसका सबक: मानवीय व्यवहार का ध्यान रखें
भास्कर के अनुसार, किसी भी नीति को लागू करने से पहले उसकी जमीन पर उतारने के दौरान आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों पर जरूर विचार कर लेना चाहिए। यानी नीति-निर्धारकों को ये सोच-विचार कर लेना चाहिए कि जमीनी स्तर पर हाड़-मांस के बने लोग किस तरह से बरताव करेंगे।
भास्कर के अनुसार, नीति निर्धारण का यह अहम पहलू है कि आप आम बरताव को कितने सटीक तरीके से पहले से भांप लेते हैं।
भास्कर के अनुसार, नोटबंदी के मामले मे मोदी सरकार ऐसा करने में चूक गयी। सरकार ये नहीं भांप पायी कि लोग आसानी से पैसे नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने नोटबंदी से बचने के लिए कई चोर रास्ते निकाल लिए। मसलन, नोटबंदी के बाद मोटा कालाधन रखने वाले कुछ लोगों ने दलालों को कुछ प्रतिशत के कमीशन पर अपने पैसे दे दिए जिन्होंने आम लोगों को छोटी-छोटी रकम के तौर पर उस पैसे को बांट कर सफेद कर लिया।
भास्कर ने आरबीआई के हालिया आंकड़ों का हवाला दिया है जिनके अनुसार नोटबंदी के बाद 500 और 1000 रुपये में मौजूद करीब 99 प्रतिशत राशि बैंकों में वापस आ गयी।
भास्कर के अनुसार, इस आंकड़े से साफ है कि नोटबंदी से कालेधन के रद्दी में बदल जाने का बुनियादी तर्क गलत साबित हुआ।
चौथा सबक: चांदी की डिजिटिल गोली से सावधान रहें
भास्कर के अनुसार, मोबाइल संचार और डिजिटल तकनीक के प्रसार से कई बार ये भ्रम हो जाता है कि ये चीजें रातोंरात बदलाव ला सकती हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि इन चीजों पर जिन कंपनियों का कब्जा है, वो अपने प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी को हर बीमारी की रामबाण दवा के तौर पर पेश करती हैं।
भास्कर मानते हैं कि मोबाइल और डिजिटल टेक्नोलॉजी व्यवस्था को बेहतर बनाने में काफी मददगार हैं, लेकिन बगैर बुनियादी तैयारी के इन पर पूरी तरह निर्भर होना उचित नहीं।
भास्कर मानते हैं कि नोटबंदी के मामले में भी यही हुआ। नोटबंदी के बाद जब मोदी सरकार नकदी की कमी की भरपाई करने में विफल रही तो उनसे अपना एजेंडा बदलते हुए इसे अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की दिशा में उठाया गया कदम बताना शुरू कर दिया। मोदी सरकार ने भारत को कुछ ज्यादा ही तेजी से डिजिटल युग में धकेलना शुरू कर दिया।
भास्कर के अनुसार, आरबीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी के समय तो देश में डिजिटल लेन-देन में बढ़ोत्तरी हुई क्योंकि शुरू के कुछ महीनों में लोगों के पास दूसरे विकल्प नहीं थे , लेकिन बाद में इसमें धीरे-धीरे कमी आती गई।
भास्कर लिखते हैं कि एक पेमेंट प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए 86 प्रतिशत नकदी को बंद कर देने का फैसला समझ से बाहर है।