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भारत में ईवीएम से हो सकती है वोटों की हेराफेरी

उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड के विधान सभा चुनावों के नतीजे आने के बाद मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल पर बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सवाल उठाने लगे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो अप्रैल में होने वाले दिल्ली महानगरपालिका के चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग कर दी है।

ऐसा नहीं है कि ईवीएम पर पहली बार सवाल खड़े हुए हैं। जब 2009 के लोक सभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को कांग्रेस गठबंधन से हार मिली थी तब पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा नेता और सैफोलॉजिस्ट जीवीएल नरसिम्हा ने तो ईवीएम के त्रुटियों पर पूरी किताब ही लिख दी जिसकी भूमिका खुद आडवाणी ने लिखी थी।

ईवीएम मशीन कैसे काम करती है? मतदान के लिए प्रयोग की जाने वाली ईवीएम मशीन में दो इकाइयां होती हैं- कंट्रोल यूनिट और बैलटिंग यूनिट। ये दोनों इकाइयां आपस में पांच मीटर के तार से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पोलिंग अफसर के पास होती है। बैलटिंग यूनिट मतदान कक्ष में होती है जिसमें मतदाता अपने वोट देते हैं।  मतदाता पूरी गोपनीयता के साथ अपने पसंदीदा उम्मीदवार और उसके चुनाव चिह्न को वोट देते हैं।

कंट्रोल यूनिट ईवीएम का दिमाग होती है। बैलटिंग यूनिट तभी चालू होती है जब पोलिंग अफसर उसमें लगा बैलट बटन दबाता है। ईवीएम छह वोल्ट के सिंगल अल्काइन बैटरी से चलती है जो कंट्रोल यूनिट में लगी होती है। जिन इलाकों में बिजली न हो वहाँ भी इसका सुविधापूर्वक इस्तेमाल हो सकता है।

चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में इलेक्ट्रानिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) से ईवीएम का प्रोटोटाइप (नमूना) बनाने के लिए संपर्क किया। छह अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को ईवीएम का प्रोटोटाइप दिखाया। उस समय ज्यादातर पार्टियों का रुख इसे लेकर सकारात्मक था। उसके बाद चुनाव आयोग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) को ईवीएम बनाने का जिम्मा दिया।

चुनाव आयोग ने 1982 में केरल विधान सभा चुनाव के दौरान पहली बार ईवीएम का व्यावहारिक परीक्षण किया। जनप्रतिनिधत्व  कानून (आरपी एक्ट) 1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था इसलिए आयोग ने सरकार से इस कानून में संशोधन करने की मांग की।

हालांकि आयोग ने संविधान संशोधन का इंतजार किए बगैर आर्टिकल 324 के तहत मिली आपातकालीन अधिकार का इस्तेमाल करके केरल की पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया। इस सीट से कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवान पिल्लई के बीच मुकाबला था।

सीपीआई उम्मीदवार सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर करके ईवीएम के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए। जब चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट को मशीन दिखायी तो अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब पिल्लई 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी एसी जोस हाई कोर्ट पहुंच गए। जोस का कहना था कि ईवीएम का इस्तेमाल करके आरपी एक्ट 1951 और चुनाव प्रक्रिया एक्ट 1961 का उल्लंघन हुआ है। हाई कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया।

एसी जोस ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। दोबार चुनाव हुए तो एसी जोस जीत गए।

सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में आरपी एक्ट में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया। नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधान सभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। वहीं दिल्ली की छह विधान सभा सीटों पर इनका प्रयोगात्मक इस्तेमाल किया गया। साल 2004 के लोक सभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ।

ईवीएम के इस्तेमाल पर उठने वाले सवालों के जवाब में चुनाव आयोग का कहना है कि जिन देशों में ईवीएम विफल साबित हुए हैं उनसे भारतीय ईवीएम की तुलना 'गलत और भ्रामक' है। आयोग ने कहा, ''दूसरे देशों में पर्सनल कम्प्यूटर वाले ईवीएम का इस्तेमाल होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती हैं इसलिए उन्हें हैक किया जा सकता है। जबकि भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले ईवीएम एक पूरी तरह स्वतंत्र मशीन होते हैं और वो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़े होते और न ही उसमें अलग से कोई इनपुट डाला जा सकता है।''

आयोग ने कहा, ''भारतीय ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर चिप को केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है और इसे इस तरह बनाया जाता है कि मैनुफैक्चरर द्वारा बर्नट इन किए जाने के बाद इन पर कुछ भी राइट करना संभव नहीं।''

जर्मनी और नीदरलैंड ने पारदर्शिता के अभाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इटली को भी लगता है कि ईवीएम से नतीजे प्रभावित किए जा सकते हैं। आयरलैंड ने तीन सालों तक ईवीएम पर शोध में पांच करोड़ 10 लाख पाउंड खर्च करने के बाद इनके इस्तेमाल का ख्याल छोड़ दिया। अमेरिका समेत कई देशों में बिना पेपर ट्रेल वाले ईवीएम पर रोक है। हालांकि इन सभी देशों में मतदाताओं की संख्या भारत की तुलना में बहुत कम है। चुनाव में खर्च होने वाले धन, समय और ऊर्जा के मामले में भी यही हाल है।

ईवीएम से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद साल 2010 में हुआ। तीन वैज्ञानिकों ने दावा किया है उन्होंने ईवीएम को हैक करने का तरीका पता कर लिया है। इन शोधकर्ताओं ने इंटरनेट पर एक वीडियो डाला जिसमें ईवीएम को हैक करते हुए दिखाए जाने का दावा किया गया। इस वीडियो में भारतीय चुनाव आयोग की वास्तविक ईवीएम मशीन में एक देसी उपकरण जोड़कर इसे हैक करने का दावा किया गया। इस रिसर्च टीम का नेतृत्व मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमैन ने किया था। प्रोफेसर एलेक्स ने दावा किया कि वो एक मोबाइल फोन से मैसेज भेजकर ईवीएम को हैक कर सकते हैं।

इस वीडियो के सामने आने के बाद भारतीय चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को खारिज किया। बाद में इस रिसर्च टीम में शामिल भारतीय वैज्ञानिक हरि प्रसाद को मुंबई के कलेक्टर कार्यालय से ईवीएम मशीन चुराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

गोवा-मणिपुर में बीजेपी सरकार

गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद यह साफ हो गया कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों में से ही किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला पाया है। वहीं दोनों राज्यों में सरकार बनाने की रस्सा-कशी में बीजेपी आगे निकल चुकी है।

जहां बीजेपी ने बिना कोई देरी किए गोवा के लिए अपना सीएम घोषित कर दिया है और उन्हें बहुमत साबित करने का मौका भी मिल गया है। वहीं कांग्रेस असमंजस के दौर में ही रह गई।

गोवा के अलावा जहां बीजेपी के पास मणिपुर में भी नबंर हैं, वहीं कांग्रेस इसी बात को लेकर कन्फ्यूस्ड रही कि वह सीएम का दावेदार किसे बनाए? गोवा फॉरवर्ड पार्टी को राज्य में 3 सीटे मिली। राज्य में सरकार बनवाने के लिए यह अहम भूमिका निभा सकती है, लेकिन पार्टी का राज्य कांग्रेस प्रेसिडेंट लुइजीन फालैरो से विरोध है।

हालांकि जीएफपी कांग्रेस के दिगंबर कामत के नाम पर राजी थी, लेकिन लॉबीइंग के चलते कांग्रेस की मुश्किले बढ़ गईं। राज्य में चुनकर आए नए 17 विधायकों ने सीक्रेट बैलेट के जरिए अपना लीडर चुना और हाई कमान को इसकी जानकारी दी, लेकिन उसी दौरान बीजेपी ने तेजी से काम करते हुए अपना सीएम घोषित कर दिया।

कांग्रेस पार्टी दिगंबर कामत और लुइजीन फालैरो के बीच ही उलझकर रह गई। दरअसल राज्य में चुनाव से पहले ही गोवा फॉरवर्ड पार्टी, कांग्रेस के साथ गठबंधन की इच्छुक थी और इसके लिए कामत तैयार थे, लेकिन फालैरो और उनके समर्थक इसके हक में नहीं थे।

12 मार्च को जब कांग्रेस, जीएफपी के साथ गठबंधन की कोशिश करने पहुंची तो पार्टी ने शर्त रख दी कि वह फालैरो को सीएम नहीं बनाएंगे।

इसी बीच बीजेपी ने बाजी मार ली जीएफपी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी, दोनों को अपने साथ साध लिया।

ऐसे ही कांग्रेस मणिपुर में भी नाकाम रही। सबसे ज्यादा, 28 सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस पार्टी के लिए गठबंधन के साथी जुटा पाना असंभव हो गया क्योंकि एनपीएफ और एनपीपी बीजेपी के साथ है।

इसके अलावा एलजेपी का झुकाव भी बीजेपी की तरफ है।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह बीजेपी को तोड़ लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और बीजेपी ने बाजी मार ली।

मारे गए संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के आईएसआईएस से लिंक के सबूत नहीं मिले: एटीएस

उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुधवार (8 मार्च) को स्पष्ट किया कि राजधानी लखनऊ में तड़के मारे गए संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के तार अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से जुड़े थे, इसका कोई प्रमाण नहीं है। हालांकि वह आईएसआईएस के साहित्य और विचारों से स्वत: प्रेरित था।

उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) दलजीत चौधरी ने मीडिया से कहा, ''इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि सैफुल्लाह के आईएसआईएस से संबंध थे। आज के युग में कोई भी युवा आईएसआईएस के बहकावे में आ सकता है। इंटरनेट, सोशल मीडिया के माध्यम से वे प्रेरित हो जाते हैं।''

मध्यप्रदेश में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में हुए विस्फोट के बाद गिरफ्तार तीन संदिग्ध आतंकी, उसके बाद कानपुर और इटावा में संदिग्धों की गिरफ्तारियां तथा सैफुल्लाह के साथ मुठभेड़ का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए चौधरी ने बताया कि गिरफ्तार संदिग्ध आतंकियों और सैफुल्लाह के आईएसआईएस से जुड़े होने का हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।

उन्होंने कहा, ''हम नहीं कहते कि वह किसी से जुड़े था। वह नेट सामग्री के प्रभाव में आ जाते हैं और अपना आचरण और संकल्प उसी तरह करने लगते हैं। इसी प्रभाव में इन सभी ने काम करने का विचार किया और धीरे-धीरे करने की कोशिश की। वह आईएस-खोरासान के नाम से अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। उन्होंने छोटी घटनाओं का प्रयास किया, मगर नाकाम रहा। मध्य प्रदेश की घटना के बाद उनकी असली गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली।''

जब सवाल किया गया कि आईएस-खोरासन माड्यूल का प्रमुख कौन था, तो चौधरी ने बताया कि सभी संदिग्ध आतंकियों का नेता अतीक मुजफ्फर था।

चौधरी ने बताया कि सैफुल्लाह की जब आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) ने घेराबंदी की तो वह शहादत की बात करने लगा। उसे आत्मसमर्पण के लिए राजी करने के काफी प्रयास किये गये, लेकिन वह लगातार गोलीबारी करता रहा। एटीएस ने भी जवाबी फायरिंग की और अंत में सैफुल्लाह मारा गया। उन्होंने बताया कि ठाकुरगंज के मकान में सैफुल्लाह के साथ तीन अन्य युवक रहते थे। ट्रेन विस्फोट के बाद पकडे गये संदिग्ध आतंकियों से पूछताछ के दौरान मिली जानकारी के आधार पर कानपुर, औरैया और लखनऊ में छापेमारी की गयी।

चौधरी ने बताया कि संदिग्धों के पास बरामद लैपटॉप की जांच करने पर पता चला कि वे लगातार आईएसआईएस के साहित्य का अध्ययन करते थे। इंटरनेट से ही उन्होंने असलहा और बम बनाना सीखा। इन्हें कहीं बाहर से धन नहीं मिलता था बल्कि धन की व्यवस्था उन्होंने खुद की थी। उन्होंने बताया कि कई जगह छापेमारी के बाद गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन दो संदिग्ध अभी भी बाकी हैं, जिनकी गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है।

यह पूछने पर कि उत्तर प्रदेश पुलिस को माड्यूल की जानकारी किस राज्य की ओर से मुहैया करायी गयी, तो चौधरी ने कहा कि कई राज्यों और एजेंसियों से जानकारी आयी थी लेकिन वह किसी का नाम नहीं बताएंगे। इस सवाल पर कि क्या बाराबंकी के मशहूर देवाशरीफ सहित प्रदेश की दरगाहों और अन्य धार्मिक स्थानों पर यह माड्यूल हमले की फिराक में था, चौधरी ने स्पष्ट कहा, ''यह कहना गलत होगा। लक्ष्य पर दरगाहें आदि थीं, इस बारे में ना तो किसी संदिग्ध ने बयान दिया है और ना ही कोई प्रमाण है।''

इस सवाल पर कि पकड़े गये संदिग्ध आपस में भाई या रिश्तेदार हैं क्या, चौधरी ने कहा कि आपस में कुछ तो भाई और रिश्तेदार हैं, लेकिन साथ में कुछ दोस्त भी हैं। जब पूछा गया कि क्या सभी संदिग्ध नौसिखिये हैं, चौधरी ने कहा, ''ये नहीं कहेंगे कि नौसिखिये हैं। जिस ढंग से उनके पास हथियार और गोला बारूद सामग्री, बम बनाने का सामान मिला है, जिस ढंग से वे स्वत: प्रेरित थे और कट्टर थे, उनको नौसिखिया नहीं कहा जा सकता। आखिर ट्रेन विस्फोट तो उन्होंने कर ही दिया।''

चौधरी ने बताया कि मध्यप्रदेश पुलिस ने पिपरिया से उत्तर प्रदेश के रहने वाले तीन संदिग्धों दानिश अख्तर उर्फ जफर, सैयद मीर हुसैन उर्फ हजमा और अतीक मुजफ्फर उर्फ अल कासिम को गिरफ्तार किया। उन्होंने बताया कि लखनऊ में मारे गये संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के पास से आठ पिस्टल, चार चाकू, 32 बोर के 630 जिन्दा कारतूस, 71 खोखा राउण्ड, 45 ग्राम सोना, तीन मोबाइल, बैंकों की चेक बुक, एटीएम कार्ड तथा पैन कार्ड, सिम कार्ड, दो वाकी टाकी सैट, बम बनाने का सामान, तीन पासपोर्ट, डेढ़ लाख रुपए नकद, काले रंग के कपड़े का बैनर बरामद किया गया।

मोदी के मेक इन इंडिया प्‍लान को झटका, नौकरियां जाने का खतरा बढ़ा

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ की चाहे चाहे जितनी भी बातें कर ले और निवेशकों का आकर्षित करने के प्लान बना ले लेकिन उसका असर होता नहीं दिख रहा है। सात साल में पहली बार भारत में निर्मित माल की बिक्री में 3.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इस स्थिति से निर्माण क्षेत्र में छंटनी की आशंका बढ़ गई है, लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और बैंकों के डिफॉल्टर्स की सूची लंबी हो सकती है। जानकारों का कहना है कि नोटबंदी से पहले जारी वैश्विक मंदी और कमजोर मांग की वजह से भारत में निर्मित वस्तुओं की मांग कम हुई है। यह गिरावट लेदर, टेक्सटाइल और स्टील सेक्टर में ज्यादा देखने को मिला है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक साल 2009-10 में निर्माण क्षेत्र में विकास दर 12.9 फीसदी था जो 2015-16 में घटकर 3.7 फीसदी रह गया है।

वैश्विक गिरावट की वजह से सितंबर 2016 में छमाही औद्योगिक समीक्षा के बाद इंजीनियरिंग सेक्टर की बड़ी कंपनी लार्सन एंड टुब्रो ने करीब 14000 कर्मचारियों की छंटनी की थी। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और नोकिया जैसी बड़ी कंपनियों में भी साल 2016 में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की खबर है। इन कंपनियों ने भी छंटनी के लिए कमजोर मांग को ही जिम्मेदार ठहराया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान की लॉन्चिंग से ठीक एक सप्ताह बाद ही नवंबर 2014 में नोकिया ने चेन्नई में अपने दफ्तर को बंद करते हुए करीब 6600 लोगों को रातों रात बेरोजगार बना दिया था।

अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की मदद करनी चाहिए जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 15-16 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं और करीब 12 फीसदी कर्मचारियों को रोजगार मुहैया कराते हैं। हालांकि, साल 2015-16 में सर्विस सेक्टर में 4.9 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है। यह पिछले वित्त वर्ष में 3.7 फीसदी था।

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्र की छोटी कंपनियां जिनकी सालाना बिक्री 100 करोड़ से कम है, वो सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इन कंपनियों की बिक्री में पिछले सात सालों में कुछ खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इन कंपनियों की बिक्री में साल 2009-10 में 8.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी जो साल 2015-16 में बढ़कर 19.2 फीसदी तक पहुंच गई है।

बीएमडब्लू की उड़ने वाली होवर बाइक की शुरू हुई प्री-बुकिंग

उड़ने वाली कार की प्री बुकिंग शुरू हुए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि आज जर्मन कंपनी बीएमडब्लू ने फ्लाइंग बाइक की प्री बुकिंग शुरू कर दी।

कंपनी बीएमडब्लू उड़ने वाली बाइक पर बड़ी तेजी से काम कर रही है। कंपनी बीएमडब्लू ने ऐसी बाइक का मॉडल तैयार कर लिया है जो उड़ने में सक्षम होगा।

बीएमडब्लू ने एक होवर बाइक का मॉडल तैयार किया है। होवर बाइक या होवर बोर्ड ऐसा उपकरण होता है जो जमीन से कुछ फीट की ऊंचाई पर चलता है। आसान भाषा में कहें तो ये उपकरण हवा में उड़ता है। बीएमडब्लू ने ऐसी ही एक बाइक का मॉडल तैयार कर लिया है।

कंपनी ने आर 1200 जीएस एडवेंचर मोटरसाइकिल के बेस पर इस मॉडल को तैयार किया है। दिखने में यह मॉडल एकदम किसी फ्यूचरिस्टिक बाइक की तरह ही लगता है। कुछ समय पहले टॉय मेकर कंपनी 'लेगो' ने बीएमडब्लू की एक बाइक का मॉडल तैयार किया था। यह कोई असली बाइक नहीं थी बल्कि उनके खिलौनों से तैयार की गई बाइक थी जिसे बनाने का काम 'लेगो' ने किया था।

प्लास्टिक से बनाई गई वह बाइक लोगों को काफी पंसद आई थी। उसी से प्रेरणा लेते हुए बीएमडब्लू ने खुद R 1200 GS बाइक का होवर मॉडल बनाया है। दिखने में यह मॉडल बेहद खूबसूरत है। इसे वाकई काफी अच्छी लुक्स दी गई हैं। बाइक की सीट, हैंडल, सस्पेंशन, इंजिन सब एकदम असली नजर आता है।

उड़ने वाली कार की बिक्री शुरू

रोड पर ट्रैफिक की बढ़ती समस्या से निजात दिलाने के लिए फ्लाइंग कार अब कांसेप्ट से जल्द ही रोड से दौड़ते हुए हवा में उड़ती नजर आएगी। डच कार कंपनी पैल-वी ने उड़ने वाली कार चलाने के सपने को हकीकत में बदल दिया है।

दुनिया की पहली कमर्शियल उड़ने वाली कार की बिक्री आम लोगों के लिए शुरू कर दी है। ग्राहक दो उड़ने वाली कारें, लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर की प्री-बुकिंग शुरू कर सकते हैं।

मात्र 6.60 से 16.70 लाख रुपए देकर लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर को बुक कर सकते हैं। कंपनी ने लिबर्टी स्पोर्ट की कीमत 2 करोड़ 70 लाख रुपए और लिबर्टी पायनियर की कीमत 4 करोड़ 1 लाख रुपए रखी है। कार की डिलेवरी यूरोप में 2018 के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है।

इस कार को कॉपटर बनने में 10 मिनट लगता है। जमीन पर ये कार 161 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। हवा में 112 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकेंगी। एक लीटर इंधन में ये 11 किलोमीटर चलेंगी।

एक्स्ट्रा पैसे देने पर खरीदारों को ट्रेनिंग सेशन और सारे ही उपकरणों का डिस्प्ले देखने को मिलेगा। इन कारों में फोल्ड किए जा सकने वाले रोटर ब्लेड लगे हैं जो जमीन पर फोल्ड रहेंगे और उड़ने के लिए हेलीकॉप्टर की तरह घूमेंगे।

पैल-वी ने दो कार लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर की बिक्री शुरू की है। लिबर्टी स्पोर्ट की कीमत 4 लाख डॉलर (2.70 करोड़ रुपए) और लिबर्टी पायनियर की कीमत 6 लाख डॉलर (4.1 करोड़ रुपए) तय की गई है। लिबर्टी स्पोर्ट को 6.60 लाख रुपए देकर बुक कर सकते हैं। लिबर्टी पायनियर को रिजर्व करने के लिए 16.70 लाख रुपए खर्च करने होंगे। बुकिंग के लिए दिए हुए पैसे नॉन रिफंडेबल है।

इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजकर इतिहास रचा

आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और कामयाबी हासिल कर ली। इसरो ने पीएसएलवी-सी37 से एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर नया कीर्तिमान स्थापित किया।

इसरो का यह मिशन भारत की अंतरिक्ष में एक मजबूत मौजूदगी दर्ज करवाएगा। इसरो ने पीएसएलवी-सी 37 के जरिए सुबह 9 बजकर 28 मिनट पर 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया।

अब तक रूस के पास एक साथ सबसे अधिक उपग्रह छोड़ने का रिकॉर्ड है। उसने 37 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित कर यह मुकाम हासिल किया था। इसरो भी जून 2015 में एक साथ 23 उपग्रह प्रक्षेपित कर अपनी काबलियत साबित कर चुका है।

इस मिशन में मुख्य उपग्रह 714 किलोग्राम वजन वाला कार्टोसेट-2 सीरीज उपग्रह है जो इसी सीरीज के पहले प्रक्षेपित अन्य उपग्रहों के समान है।

इसके अलावा इसरो के दो तथा 101 विदेशी अति सूक्ष्म (नैनो) उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया गया है जिनका कुल वजन 664 किलोग्राम है।

विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक उपग्रह शामिल हैं।

इसरो के इस मिशन में सैन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के 88 छोटे सैटेलाइट लॉन्च किए गए।

भारत द्वारा ही विकसित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान इसरो का सबसे विश्वस्त रॉकेट है। पीएसएलवी-सी 37 इस श्रेणी के रॉकेट का 39वां मिशन है।

अब तक पीएसएलवी की मदद से 38 मिशन को अंजाम दिया जा चुका है।

कार्टोसेट-2 सीरीज का उपग्रह धरती की निगरानी के इस्तेमाल में आएगा। इसके अलावा दो नैनो उपग्रह आईएनएस-1ए और आईएनएस-1बी को भी कक्षा में स्थापित किया।

इसरो ने इस मिशन में सबसे भारी PSLV का इस्तेमाल किया है। PSLV-37 का वज़न 320 टन, ऊंचाई 44.4 मीटर है।

88 छोटे सैटेलाइटों का इस्तेमाल धरती की तस्वीरों के लिए किया जाएगा।

इसरो का यह रॉकेट 15 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है।

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