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जोधाबाई मुगल बादशाह अकबर की पत्नी नहीं थी

ब्रिटिश इतिहासकार लुईस डे एसिस कोरैया ने मुगल बादशाह अकबर की जिंदगी पर सबसे अहम खुलासा किया है। कोरैया कहते हैं कि जोधाबाई को अकबर की पत्नी बताया जाता है, लेकिन वास्तव में अकबर की पत्नी जोधाबाई नहीं थी। कोरैया कहते हैं, असल में जोधाबाई जहांगीर की पत्नी थी।  

लंदन के ब्रिटिश इतिहासकार लुईस डे एसिस कोरैया पिछले कई वर्षों से भारत में रहकर स्वतंत्र रूप से पुर्तगाल और ईसाईयों पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने अब तक 6 किताबें लिखी हैं जिसमें से हाल ही में उन्होंने 'पुर्तगाल भारत और मुगल रिश्ते (1510-1735)' नाम की एक किताब रिलीज की है।

इस किताब में अकबर और पुर्तगाली मारिया मार्करनहस के बीच वैवाहिक गठबंधन के बारे में काफी विस्तार से बताया गया है।

वह कहते हैं कि इस संबंध का मुगल, पुर्तगाली और अंग्रेजी स्रोतों में भी जिक्र नहीं है।

मारिया मार्करनहस के बारे में कोरैया लिखते हैं, वह अपनी छोटी बहन जुलियाना के साथ लिस्बन से गोवा सितंबर 1558 में आई थीं।

किताब में कैरैया लिखते हैं, उस जमाने में पुर्तगाल के राजा की यह जिम्मेदारी थी कि वह राज्य के लिए बलिदान देने वालों के अनाथों की रक्षा करें और शादी की उम्र वाली लड़कियों को कॉलोनियों में भेजा जाए। लेकिन बीच में उनके जहाज पर डाकू ने हमला कर दिया और दोनों लड़कियों को गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के दरबार में लाया गया। सुल्तान बहादुर शाह ने दोनों लड़कियों को मुगल दरबार में पेश किया।

वह लिखते हैं, जैसे ही अकबर की नजर 17 साल की मारिया मार्करनहस पर पड़ी, उन्हें उससे मोहब्बत हो गई और अकबर ने जल्द से जल्द उसे अपनी पत्नी बनाने का फैसला कर लिया।

कोरैया कहते हैं, यूं तो अकबर के हरम में उनके बारे में काफी सामान उपलब्ध है, लेकिन फिर भी मुगल सूत्र इस रिश्ते के बारे में खामोश रहे।

उन्होंने कहा, अकबर के जीवन के बारे में सबसे भरोसेमंद दस्तावेज अबुल फजल द्वारा लिखा गया 'अकबरनामा' माना जाता है इसमें भी इस बारे में कुछ लिखा नहीं गया है।

वहीं मुगल स्रोत्र 'अल बदायूनी' में भी मारिया का कोई जिक्र नहीं मिलता।

कोरैया के मुताबिक, मुगल और पुर्तगालियों के बीच तल्ख रिश्ते होने के कारण उन्होंने यह नहीं कहा कि अकबर की एक ईसाई बीवी थी।

कोरैया ने बताया कि जोधाबाई वह महिला नहीं हैं जिसका जिक्र वह मारिया के तौर पर कर रहे हैं।

कोरैया कहते हैं कि न तो अकबरनामा में और न ही कभी जहांगीर की मां के तौर पर जोधाबाई का जिक्र मिलता है।

उन्होंने कहा, इस अवधि में फारसी रिकॉर्ड में भी इस नाम (जोधाबाई) के किसी शख्स का जिक्र नहीं आता।

जो इतिहासकार जोधाबाई का जिक्र करते हैं वे हैं इतिहासकार जेम्स टॉड। लेकिन वह उनका (जोधाबाई) जिक्र जहांगीर की पत्नी और शाहजहां की मां के तौर पर करते हैं।

कोरैया ने दावा किया कि जहांगीर की मां पुर्तगाली ईसाई (मारिया मार्करनहस) थीं जिसे मरियम-उज़-ज़मानी कहा जाता था।

कोरैया कहते हैं कि जहांगीर हमेशा क्रॉस की एक गोल्ड की चेन पहनकर रहते थे जिसे उन्होंने कभी नहीं उतारा।

कोरैया कहते हैं कि जहांगीर आधा ईसाई थे और उनके महल में यीशु की एक तस्वीर थी और वह आगरा के जेसुइट हाउस में हफ्ते में एक दिन जरूर बिताते थे।

(परवेज़ अनवर नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इतिहास विभाग के छात्र रहे हैं तथा आईबीटीएन ग्रुप के फाउंडर, सीईओ, डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ हैं।)

बीएसएफ अफसर बनने के बाद 16 ने किया ज्वाइन करने से मना

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर और जम्मू-कश्मीर में फैली अशांति के बीच बड़ी खबर है कि बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) में राजपत्रित अधिकारियों की भारी कमी है। इस साल चुने गए कुल लोगों में से 60 प्रतिशत ने ज्वॉइन करने से मना कर दिया है।

यह सब भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर फैली अशांति और बीएसफ जवान तेज बहादुर यादव द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो के बाद हुआ है।

2015 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में कुल 28 लोग सिलेक्ट किए गए थे। उन्हें 2017 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट की पोस्ट पर ज्वॉइन करना था। लेकिन 16 लोगों ने मना कर दिया।

पिछले कुछ सालों से ऐसे हालात बनने लगे हैं। 2016 में जिसके लिए 2014 में परीक्षा हुई थी उसमें कुल 31 लोग सिलेक्ट हुए थे जिसमें से 17 ने ही ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी। लेकिन 14 लोगों ने ज्वाइन नहीं किया।  

वहीं 2013 में परीक्षा में बैठे लोगों में से 110 सिलेक्ट हुए जिसमें से 69 ने ट्रेनिंग लेनी शुरू की, फिर इनमे से 15 ने ट्रेनिंग के दौरान छोड़ दिया।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बीएसएफ में राजपत्रित अधिकारियों की कुल 5,309 पोस्ट हैं जिनमें से 522 खाली हैं।

उनमें से कुछ ने कहा कि उनकी पहली च्वॉइस बीएसएफ नहीं थी। इसलिए वे लोग आगे पढ़कर सीआईएसएफ की तैयारी करना चाहते हैं।

कुछ ने कहा कि आईएएस बनना उनका लक्ष्य है। इसके पीछे की वजह बताते हुए एक ने कहा कि सीआईएसएफ में शहरों में पोस्टिंग होगी जिससे आगे की पढ़ाई भी करने में आसानी होगी।

 कुछ लोगों को यह भी डर था कि बीएसएफ में तरक्की में रोड़े अटकाए जाते हैं।

एक शख्स ने तो यह भी कहा कि लोगों की नजरों में आर्मी की इज्जत बीएसएफ के जवान से ज्यादा होती है।

दूसरे ने कहा कि लड़का खोज रहे परिवार की पहली पसंद भी आर्मी वाला होता है, बीएसएफ का जवान नहीं।

इस मामले पर बात करते हुए बीएसफ के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि बीएसएफ, सीआरपीएफ और आईटीबीपी में काफी कठिन जगहों पर पोस्टिंग होती है। इसलिए लोग इसमें आने से कतराते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग इसमें आने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं हैं उनको ज्वॉइन नहीं करना चाहिए।

भारत और पाकिस्तान में प्रेस की आज़ादी गंभीर ख़तरे के दौर से गुजर रही है

भारत और पाकिस्तानी मीडिया में कई लोग, भारत के मुक़ाबले पाकिस्तानी मीडिया के ताक़तवर होने के सबूत के तौर पर देखते हैं।

ठीक इसी दौरान, भारत के उदारवादी माने जाने वाले चैनलों में से एक एनडीटीवी ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए भारत के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम का इंटरव्यू ड्रॉप कर दिया।

एनडीटीवी की सह-संस्थापक और चेयरमैन राधिका रॉय ने ऑनलाइन प्रकाशन 'द वायर' को दिए एक स्टेटमेंट में कहा, ''सर्जिकल स्ट्राइक के मसले पर राजनीतिक छींटाकशी, जो बिना सबूत के की जा रही थी, उससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान हो रहा था।''

पाकिस्तानी पत्रकारों को भी लगता है कि वो ज़्यादा साहसी हैं और वो सरकार का समर्थन करने वाले भारतीय पत्रकारों की तुलना में अपनी सरकार के पक्ष से अलग पक्ष रख सकते हैं।

हालांकि इस बहस का कोई नतीजा नहीं निकल सकता है। इतना ज़रूर साबित होता है कि दोनों देशों में प्रेस की आज़ादी की स्थिति बहुत ख़राब है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बावजूद इसके 'रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स' संस्था की ओर से 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक, प्रेस की स्वतंत्रता के पैमाने पर भारत निचले पायदानों पर है।

2017 में प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक, 180 देशों की सूची में भारत का 136 वां स्थान दर्शाता है कि भारत में प्रेस की आज़ादी की स्थिति लगातार बिगड़ रही है।

भारत ज़िम्बॉब्वे और म्यांमार जैसे देशों से भी पीछे है।

निर्भीक पत्रकारिता करने के मामले में नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड अव्वल हैं।

इस मामले में चीन 176वें और पाकिस्तान 139 वें नंबर पर है।

'रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ''भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के राष्ट्रवाद से ख़तरा है और मीडिया डर की वजह से ख़बरें नहीं छाप रही है।''

रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय मीडिया में सेल्फ़ सेंसरशिप बढ़ रही है और पत्रकार कट्टर राष्ट्रवादियों के ऑनलाइन बदनाम करने के अभियानों के निशाने पर हैं। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए मुक़दमे तक किए जा रहे हैं।''

भारत में 2015 में चार पत्रकारों की हत्या हुई और हर महीने कम से कम एक पत्रकार पर हमला हुआ है। कई मामलों में पत्रकारों पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे दर्ज किए गए। इसका नतीजा रहा है कि पत्रकारों ने ख़ुद पर सेंशरशिप लगा ली।

मीडिया पर नजर रखने वाली वेबसाइट द हूट डॉट ओआरजी की गीता सेशू कहती हैं, ''इन हमलों का दायरा चौंकाने वाला है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कश्मीर में इंटरनेट और समाचार पत्रों पर पाबंदी लगाई गई। कारपोरेट धोखाधड़ी पर मानहानि के मुकदमे, स्थानीय माफिया के भ्रष्टाचार की ख़बर करने पर पत्रकारों की हत्याओं से लकर छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बल का स्वतंत्र पत्रकारों को प्रताड़ित करना और जेल भेजने की घटनाएं भी हुई हैं।''

भारत के कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए सरकार ने प्रेस की आज़ादी पर कई तरह के अंकुश लगाए हैं। पत्रकारों को कर्फ्यू के दौरान पास नहीं दिया गया, पत्रकारों पर हमले हुए, राज्य में समाचार पत्रों के प्रसार को रोक दिया गया और कश्मीर रीडर नामक अख़बार पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई।

दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में अगर एक अख़बार पर पाबंदी लगाई जाती तो इस पर हंगामा मच जाता, लेकिन भारतीय मीडिया ने बड़े पैमाने पर इसको नज़रअंदाज़ किया।

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई इस पर लिखते हैं, ''आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। भारत 136वें और पाकिस्तान 139वें नंबर पर है। बहुत कुछ कहा जा चुका है। उन चुनिंदा लोगों को सलाम जो अब भी आवाज़ उठा रहे हैं।''

अपने अगले ट्वीट में राजदीप ने लिखा, ''सच ये है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की महान परंपरा रही है। बिज़नेस मॉडलों और निजी हितों की वजह से इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग हुआ है।''

वहीं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने फ़ेसबुक पर लिखा, ''विश्व प्रेस स्वंत्रता दिवस दुनिया का सबसे बड़ा छलावा है। प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है।''

उन्होंने लिखा, ''दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं।''

काटजू ने लिखा, ''बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वो फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।''

पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिति भी डांवांडोल रही है, बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में चरमपंथ भी फैला हुआ है, इसलिए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पाकिस्तान का 139 वें पायदान पर होना बहुत चौंकाता नहीं है।  ये रैंकिंग पाकिस्तान के मुक्त मीडिया के दावे से मेल नहीं खाती है।

2016 की रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट पाकिस्तान के बारे में कहती है, ''पत्रकारों को जो निशाना बनाते हैं, उनमें चरमपंथी समूह, इस्लामिक संगठन, ख़ुफ़िया एजेंसियां शामिल है। ये प्रेस की आज़ादी में बाधा पहुंचाते हैं। ये सब एक-दूसरे से भले लड़ रहे हों, लेकिन जैसे हमेशा मीडिया को चोट पहुँचाने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे में समाचार संगठनों ने सेल्फ-सेंसरशिप को अपना लिया है।''

पाकिस्तान में 2014 में हत्या की नीयत से किए गए हमले में बाल बाल बचे और अब अमरीका में रह रहे पाकिस्तानी पत्रकार रज़ा रूमी कहते हैं, ''जहां तक पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है, अंग्रेजी अख़बारों में थोड़ी जगह अलग विचार व्यक्त करने के लिए हो सकती है, लेकिन टीवी न्यूज़ में सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध काफी ख़तरनाक है। संस्थाएं इसकी अनुमति नहीं देती हैं।''

रूमी एक टीवी शो होस्ट करते थे और उन्होंने पाकिस्तान की विदेश नीति से मतभेद जताए थे और अल्पसंख्यकों के अधिकार के मुद्दे को उठाया था।

बलूचिस्तान में मानवाधिकार के मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने के दौरान 2014 में पाकिस्तान के जाने माने एंकर और पत्रकार हामिद मीर पर भी जानलेवा हमला हुआ था। तब मीर के भाई ने टीवी चैनल पर आकर इस हमले के लिए पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराया था।

वैसे शारीरिक हमला और सीधी सेंसरशिप- समस्या का छोटा हिस्सा भर हैं, भारत और पाकिस्तान में मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं।

टेलीग्राफ़ अख़बार में मानिनी चटर्जी ने लिखा है, ''सेंसरशिप-सेल्फ सेंसरशिप, सच-प्रोपागैंडा और पत्रकारिता-अंधराष्ट्र भक्ति के बीच अंतर को शायद ही कोई जानता समझता हो।''

इतना ही नहीं, भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ख़बर तक पत्रकारों की पहुंच के तरीके कम कर दिए हैं और पीआर को बढ़ावा दिया है ताकि मीडिया की ख़बरों को बेहतर ढ़ंग से नियंत्रित किया जा सके।

पाकिस्तान में सेना की ओर से दबाव ज़्यादा होता है। पाकिस्तान की सुरक्षा संबंधी नीतियों पर लगातार लिखने वाली आयशा सिद्दिका के लेख पाकिस्तान में कई बार रिजेक्ट कर दिए जाते हैं और वो भारत में कहीं ज़्यादा छपती हैं।

आयशा सिद्दिका ने पाकिस्तानी अख़बार द न्यूज़ में लिखा है, ''मौजूदा समय में इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल हैं, सेना की पीआर एजेंसी आज बड़े पैमाने पर रेडियो चैनल चला रही है, कई टीवी चैनलों में हिस्सेदारी है। फ़िल्म और थिएटर को फ़ाइनेंस करते हैं। यह केवल संस्थागत विस्तार भर नहीं है, बल्कि यह देश (पाकिस्तान) के मीडिया की आवाज़ को आकार देने जैसा मामला है।"

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से जाने की इज़ाजत नहीं है। ऐसे में किस देश का मीडिया ज़्यादा स्वतंत्र है, इस बहस का कोई नतीजा नहीं निकल सकता।

भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में प्रेस की आज़ादी गंभीर ख़तरे के दौर से ज़रूर गुजर रही है।

'मोदी राज' में तीन गुना बढ़ीं 15 घंटे लेट चलने वाली ट्रेनें

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ट्रेनों की लेट लतीफी पर सख्त हो गए हैं। उन्होंने रेलवे बोर्ड के अधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा है कि सभी ट्रेनों को अपने नियत समय पर चलाएं।

अधिकारियों को फटकारते हुए रेल मंत्री ने कहा कि अगर ट्रेनों की लेट लतीफी जारी रही तो अधिकारी इसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें।

रेल मंत्री ने मीडिया में ट्रेनों के लेट लतीफी की खबरें आने के बाद यह आदेश दिया है। दरअसल, ट्रेन सुविधा डॉट कॉम ने पिछले चार सालों में 1 जनवरी से 31 मार्च के बीच ट्रेनों की लेट लतीफी पर एक रिपोर्ट जारी किया है। इसमें साल 2017 में ऐसी ट्रेनों की संख्या साल 2015 के मुकाबले तीन गुना बढ़ गई है जो 15 घंटे से ज्यादा लेट हुए हैं। साल 2015 में 15 घंटे से ज्यादा लेट होने वाली ट्रेनों की संख्या 479 थी जो 2017 में बढ़कर 1337 हो गई। इन ट्रेनों में देश की सबसे अहम राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनें भी शामिल हैं।

वेबसाइट के मुताबिक, साल 2017 में राजधानी एक्सप्रेस 53 बार, शताब्दी एक्सप्रेस 19 बार, गरीब रथ 46 बार, सुपरफास्ट ट्रेनें 86 बार और एक्सप्रेस ट्रेनें 451 बार देरी से अपने गंतव्य स्थल पर पहुंची हैं।

वेबसाइट के मुताबिक, साल 2017 में 15 घंटे से ज्यादा की देरी से पहुंचने वाली ट्रेनों की संख्या 1337 है जो 2016 में 165 थी। इसी तरह 10 घंटे से ज्यादा देरी से चल रही ट्रेनों की संख्या 2017 में 1382 और 2016 में 430 थी। पांच घंटे से ज्यादा की देरी से चलने वाली ट्रेनों की संख्या साल 2017 में 4613 और 2016 में 2641 थी। दो घंटे से ज्यादा की देरी से चलने वाली ट्रेनों की संख्या साल 2017 में 9564 और साल 2016 में 7441 थी।

वेबसाइट ने देर से चलने वाली टॉप 10 ट्रेनों की लिस्ट भी जारी की है। इनमें से सात ट्रेनें अकेले बिहार से गुजरती हैं या बिहार की हैं। बिहार जाने वाली ऐसी ट्रेनों में स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस पहले नंबर पर है जो 1 जनवरी 2017 से 31 मार्च 2017 के बीच कुल 80 दिन चली और सभी दिन देरी से ही गंतव्य स्थल पर पहुंची। यह ट्रेन एक दिन भी समय पर नहीं चल सकी। 80 दिनों में 41 दिन ऐसे रहे जब यह ट्रेन 15 घंटे से ज्यादा की देरी से चली। दूसरी लेट लतीफ ट्रेन उद्यान आभा तूफान एक्सप्रेस है जो इस दौरान 75 दिन चली और सभी दिन देरी से ही गंतव्य स्थल पर पहुंची। यह ट्रेन राजस्थान के श्रीगंगानगर से यूपी, बिहार होते हुए पश्चिम बंगाल के हावड़ा जाती है। 32 दिन ऐसे रहे जब यह ट्रेन 15 घंटे से ज्यादा की देरी से चली।

इसी तरह बरौनी-ग्वालियर मेल 61 दिनों में 60 दिन लेट से चली। यूपी संपर्क क्रांति एक्सप्रेस 67 दिनों में 37 दिन देरी से चली। दिल्ली से डिब्रूगढ़ जाने वाली ब्रह्मपुत्र मेल 42 दिनों में सभी दिन लेट से चली। लेट लतीफ जानेवाली बिहार की अन्य ट्रेनों में मगध एक्सप्रेस, भागलपुर गरीब रथ एक्सप्रेस, अमृतसर-हावड़ा एक्सप्रेस, पटना-मथुरा एक्सप्रेस भी शामिल है।

अब रेल मंत्रालय ने सभी जोनल प्रमुखों और रेल महाप्रबंधकों को रात 10 बजे से सुबह 7 बजे के बीच ट्रेनों के परिचालन की निगरानी और मुसाफिरों की दिक्कतों को सुलझाने के लिए वरीय अधिकारियों की तैनाती के निर्देश दिए हैं। जानकार बताते हैं कि लेटलतीफी के मामले में सबसे खराब हालत दानापुर, समस्तीपुर, झाँसी, जबलपुर, वाराणसी, मुंबई, इलाहाबाद डिवीजन रेलवे की है।

कश्मीरी युवक को सेना की जीप के आगे बांधने को अटार्नी जनरल ने सही ठहराया

कश्‍मीर के बड़गाम जिले में सेना द्वारा एक व्‍यक्ति को ढाल बनाकर जीप के आगे बांधने को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सही ठहराया है।

उन्‍होंने कहा कि हालात की मांग यही थी और किसी की जान न जाए, यह सुनिश्चित करने का यह एक प्रभावी उपाय था।

भारत की केंद्र सरकार ने भी उस सैन्‍य अधिकारी का साथ दिया है जिसने कथित पत्‍थरबाज को 'मानव ढाल' बनाने का फैसला किया।

भारत सरकार ने अधिकारी द्वारा अपनी यूनिट, पैरामिलिट्री सैनिकों और जम्‍मू-कश्‍मीर के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए इस कदम का समर्थन किया है।

सरकार ने सेना की उस जांच का संज्ञान लिया है जो 9 अप्रैल की घटना पर बिठाई गई थी।

जांच में कहा गया है कि कमांडिंग अधिकारी ने हिचकिचाते हुए आखिरी उपाय के तौर पर यह फैसला किया क्‍योंकि उसने महसूस किया कि उसकी यूनिट को उन सड़कों से होकर गुजरना है जहां पत्‍थरबाजों की भीड़ जमा है और जिन्‍होंने आस-पास की छतों पर पोजिशन ले रखी थी। जो जवान भीड़ के बीच फंसे थे, उनमें दर्जन भर स्‍थानीय सरकार के कर्मचारी, 9-10 आईटीबीपी जवान, कश्‍मीर पुलिस के दो कांस्‍टेबल और एक बस ड्राइवर शामिल था।

लोक सभा के बाद राज्‍य सभा से भी पास हुआ जीएसटी बिल

संसद ने देश में ऐतिहासिक कर सुधार व्यवस्था जीएसटी को लागू करने का मार्ग प्रशस्त करते हुए आज वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े चार विधेयकों को मंजूरी दे दी।

साथ ही सरकार ने आश्वस्त किया कि नयी कर प्रणाली में उपभोक्ताओं और राज्यों के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा जाएगा तथा कृषि पर कर नहीं लगाया जाएगा।

राज्यसभा ने आज केंद्रीय माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 'जीएसटी विधेयक', एकीकृत माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 आई जीएसटी विधेयक', संघ राज्य क्षेत्र माल एवं सेवाकर विधेयक 2017 और माल एवं सेवाकर 'राज्यों को प्रतिकर' विधेयक 2017 को सम्मिलित चर्चा के बाद लोकसभा को ध्वनिमत से लौटा दिया। इन विधेयकों पर लाये गये विपक्ष के संशोधनों को उच्च सदन ने खारिज कर दिया।

धन विधेयक होने के कारण इन चारों विधेयकों पर राज्यसभा में केवल चर्चा करने का अधिकार था। लोकसभा 29 मार्च को इन विधेयकों को मंजूरी दे चुकी है।

वस्तु एवं सेवा कर संबंधी विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विपक्ष की इन आशंकाओं को निर्मूल बताया कि इन विधेयकों के जरिये कराधान के मामले में संसद के अधिकारों के साथ समझौता किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह है कि इसी संसद ने संविधान में संशोधन कर जीएसटी परिषद को करों की दर की सिफारिश करने का अधिकार दिया है।

जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद पहली संघीय निर्णय करने वाली संस्था है। संविधान संशोधन के आधार पर जीएसटी परिषद को मॉडल कानून बनाने का अधिकार दिया गया। जहां तक कानून बनाने की बात है तो यह संघीय ढांचे के आधार पर होगा, वहीं संसद और राज्य विधानसभाओं की सर्वोच्चता बनी रहेगी। हालांकि इन सिफारिशों पर ध्यान रखना होगा क्योंकि अलग-अलग राज्य अगर-अलग दर तय करेंगे तो अराजक स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। यह इसकी सौहार्दपूर्ण व्याख्या है और इसका कोई दूसरा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन कर यह सुनिश्चित किया गया है कि यह देश का एकमात्र ऐसा कर होगा जिसे राज्य एवं केंद्र एक साथ एकत्र करेंगे। एक समान कर बनाने की बजाए कई कर दर होने के बारे में आपत्तियों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कई खाद्य उत्पाद हैं जिनपर अभी शून्य कर लगता है और जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद भी कोई कर नहीं लगेगा। कई चीजें ऐसी होती हैं जिन पर एक समान दर से कर नहीं लगाया जा सकता। जैसे तंबाकू, शराब आदि की दरें ऊँची होती हैं जबकि कपड़ों पर सामान्य दर होती है।

जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद में चर्चा के दौरान यह तय हुआ कि आरंभ में कई कर लगाना ज्यादा सरल होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद ने विचार-विमर्श के बाद जीएसटी व्यवस्था में 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें तय की है। लक्जरी कारों, बोतल बंद पेयों, तंबाकू उत्पाद जैसी अहितकर वस्तुओं एवं कोयला जैसी पर्यावरण से जुड़ी सामग्री पर इसके ऊपर अतिरिक्त उपकर भी लगाने की बात कही है।

उन्होंने कहा कि 28 प्रतिशत से अधिक लगने वाला उपकर (सेस) मुआवजा कोष में जायेगा और जिन राज्यों को नुकसान हो रहा है, उन्हें इसमें से राशि दी जायेगी। ऐसा भी सुझाव आया कि इसे कर के रूप में लगाया जाए। लेकिन कर के रूप में लगाने से उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता। बहरहाल, उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर नहीं लगाया जायेगा।

जेटली ने कहा कि मुआवजा उन राज्यों को दिया जायेगा जिन्हें जीएसटी प्रणाली लागू होने से नुकसान हो रहा हो। यह आरंभ के पांच वर्षो के लिए होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के दौरान इसलिए जीएसटी पर आमसहमति नहीं बन सकी क्योंकि नुकसान वाले राज्यों को मुआवजे के लिए कोई पेशकश नहीं की गई थी। जीएसटी में मुआवजे का प्रावधान 'डील करने में सहायक' हुआ और राज्य साथ आए।

जीएसटी में रीयल इस्टेट क्षेत्र को शामिल नहीं किये जाने पर कई सदस्यों की आपत्ति पर स्पष्टीकरण देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें राज्यों को काफी राजस्व मिलता है। इसमें रजिस्ट्री तथा अन्य शुल्कों से राज्यों की आय होती है इसलिए राज्यों की राय के आधार पर इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीएसटी परिषद में कोई भी फैसला लेने में केंद्र का वोट केवल एक तिहाई है जबकि दो तिहाई वोट राज्यों को है। इसलिए कोई भी फैसला करते समय केंद्र अपनी राय थोपने के पक्ष में नहीं है।

वस्तु एवं सेवा कर को संवैधानिक मंजूरी प्राप्त पहला संघीय अनुबंध करार देते हुए जेटली ने कहा कि उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर का भार नहीं डालते हुए जीएसटी के माध्यम से देश में 'एक राष्ट्र, एक कर' की प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद कर ढांचे को सर्वसम्मति से तय कर रही है और इस बारे में अब तक 12 बैठकें हो चुकी हैं। यह विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझी संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है और यह ऐसी पहली पहल है।

जीएसटी के लागू होने पर केंद्रीय स्तर पर लगने वाले उत्पाद शुल्क, सेवाकर और राज्यों में लगने वाले मूल्य वर्धित कर (वैट) सहित कई अन्य कर इसमें समाहित हो जायेंगे। जेटली ने विधेयकों को स्पष्ट करते हुए कहा कि केंद्रीय जीएसटी संबंधी विधेयक के माध्यम से उत्पाद, सेवा कर और अतिरिक्त सीमा शुल्क समाप्त हो जाने की स्थिति में केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा। समन्वित जीएसटी या आईजीएसटी के जरिये वस्तु और सेवाओं की राज्यों में आवाजाही पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा।

कर छूट के संबंध में मुनाफे कमाने से रोकने के उपबंध के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि अगर 4.5 प्रतिशत कर छूट दी जाती है तब इसका अर्थ यह नहीं कि उसे निजी मुनाफा माना जाए बल्कि इसका लाभ उपभोक्ताओं को भी दिया जाए। इस उपबंध का आशय यही है।

वित्त मंत्री ने कहा कि रियल इस्टेट की तरह ही स्थिति शराब और पेट्रोलियम उत्पादों के संबंध में भी थी। राज्यों के साथ चर्चा के बाद पेट्रोलियम पदार्थो को इसके दायरे में लाया गया है, लेकिन इसे अभी शून्य दर के तहत रखा गया है। इस पर जीएसटी परिषद विचार करेगी। शराब अभी भी इसके दायरे से बाहर है।

वित्त मंत्री ने कहा कि पहले एक व्यक्ति को व्यवसाय के लिए कई मूल्यांकन एजेंसियों के पास जाना पड़ता था। आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य वैट, मनोरंजन कर, प्रवेश शुल्क, लक्जरी टैक्स एवं कई अन्य कर से गुजरना पड़ता था।

वित्त मंत्री ने कहा कि वस्तुओं और सेवाओं का देश में सुगम प्रवाह नहीं था। ऐसे में जीएसटी प्रणाली को आगे बढ़ाया गया। एक ऐसा कर जहां एक मूल्यांकन अधिकारी हो। अधिकतर स्व मूल्यांकन हों और आॅडिट मामलों को छोड़कर केवल सीमित मूल्यांकन हो।

जेटली ने कहा कि कर के ऊपर कर लगता है जिससे मु्रदास्फीति की प्रवृत्ति बढ़ती है। इसलिए सारे देश को एक बाजार बनाने का विचार आया। यह बात आई कि सरल व्यवस्था देश के अंदर लाई जाए। कृषि को जीएसटी के दायरे में लाने को निर्मूल बताते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि एवं कृषक को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 23 के तहत कृषक एवं कृषि को छूट मिली हुई है। इसलिए इस छूट की व्याख्या के लिए परिभाषा में इसे रखा गया है। इस बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जेटली ने कहा कि कृषि उत्पाद जब शून्य दर वाले हैं तब इस बारे में कोई भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए।

इस बारे में कांग्रेस की आपत्तियों को खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि 29 राज्य, दो केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र ने इस पर विचार किया जिसमें कांग्रेस शासित प्रदेश के आठ वित्त मंत्री शामिल थे। ''तब क्या इन सभी ने मिलकर एक खास वर्ग के खिलाफ साजिश की?'' जीएसटी लागू होने के बाद वस्तु एवं जिंस की कीमतों में वृद्धि की आशंकाओं को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कर की दर वर्तमान स्तर पर रखी जाएगी ताकि इसका मुद्रास्फीति संबंधी प्रभाव नहीं पड़े।

जेटली ने कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा जीएसटी के बारे में अपना एक विधान लाएगी। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के वित्त मंत्री ने जीएसटी परिषद की सभी बैठकों में भाग लिया है।

उच्च सदन ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन का जो संशोधन खारिज किया उसमें कहा गया था कि जीएसटी परिषद के सभी फैसलों की संसद से मंजूरी दिलवायी जानी चाहिए।

जलवायु परिवर्तन से बिगड़ रही दिमागी सेहत

जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ पर्यावरण पर ही नहीं पड़ रहा बल्कि यह इंसान के सेहत पर भी विपरीत असर डाल रही है, खासकर दिमागी सेहत पर।

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसियशन और ईको अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया कि ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न हुई स्थितियों से इंसानों में अवसाद, चिंता और अनिद्रा बढ़ रही है और वह लगातार हिंसक होता जा रहा है। इससे मस्तिष्काघात का खतरा भी बढ़ गया है और लोग 'पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर' (पीटीएसडी) का शिकार हो रहे हैं।

क्या है पीटीएसडी
पीटीएसडी कई मानसिक विकारों जैसे गंभीर अवसाद, गुस्सा, अनिद्रा से जुड़ा रोग है। इससे व्यक्ति अधिक चिड़चिड़ा हो जाता है, चीजें भूलने लगता है। काम में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अति सतर्कता, अचानक तेज गुस्सा आना और कभी-कभी व्यक्ति बीमारी में हिंसक हो जाता है। सोते समय अचानक डर से दिल का दौरा पड़ने की समस्या हो सकती है।

कैटरीना तूफान प्रभावित क्षेत्रों पर शोध
शोधकर्ताओं ने 2005 में आए तूफान कैटरीना से प्रभावित हुए क्षेत्र के हजारों लोगों पर शोध किया और पाया कि तूफान के बाद उनमें आत्महत्या का ख्याल अधिक बढ़ गया था।

49 फीसदी अवसाद के शिकार
इलाके के 49 फीसदी लोगों में पीटीएसडी और अवसाद का खतरा पाया गया। साथ ही वह समाजिक स्तर पर अलगाव महसूस करने लगे।

प्रतिरोधक क्षमता पर असर
जलवायु परिवर्तन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करता है। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

BS-3 वाहन बंद: सस्ती हुई बाइक, 22000 तक मिल रही छूट

दिल्ली एनसीआर में बीएस-3 मानकों के दुपहिया वाहनों पर ऑटो कंपनियों ने भारी छूट का ऐलान किया है। कंपनियों ने बीएस-3 मानकों की मोटरसाइकिलों पर 22000 रुपए तक की छूट का ऐलान किया है।

कंपनियों का यह ऐलान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के ठीक एक दिन बाद आया है जिसमें कहा गया है कि एक अप्रैल से बीएस-3 मानकों वाले दुपहिया वाहनों पर रजिस्ट्रेशन पर रोक लगाने का आदेश दिया गया है।

दुपहिया वाहन बनाने वाली प्रमुख कंपनियों जैसे हीरो मोटो कार्प, एचएमएसआई, बजाज ऑटो और सुजकी मोटरसाइकिल ने अपने कई मॉडल्स पर 22000 रुपए तक की छूट का ऐलान किया है।

रिपोर्ट के अनुसार, एनसीआर में कंपनियों के स्टॉक में मौजूद आठ लाख वाहनों में 6 लाख 70 हजार बाइक्स बीएस -3 मानक वाली हैं।

डीलरों का कहना है कि वह इन वाहनों को अगले 24 घंटे में जल्द से जल्द निकालने की कोशिश में हैं जिससे उनकी कम से कम लागत वसूल हो सके।

होंडा ने शुरू में अपने वाहनों पर अपने बीएस-3 वाले स्कूटरों में सीधे 10 हजार रुपए की छूट देने का ऐलान किया था, लेकिन अब यह छूट मोटरसाइकिलों में बढ़ाकर 22000 रुपए तक कर दी गई है।

जिन मॉडलों पर 22000 रुपए तक की छूट है उनमें एक्टिवा 3जी (कीमत Rs 50,290), ड्रीम युगा (Rs 51,741), सीबी शाइन (Rs 55,799 to Rs 61,283), सीडी 110 डीएक्स (Rs 47,202 to Rs 47,494)।

हीरो मोटरसाइकिल ने अपने बीएस-3 वाले वाहनों में 12500 रुपए तक की छूट का ऐलान किया है। कंपनी ने अधिकतम छूट अपने स्कूटरों पर देने का ऐलान किया है।

वहीं प्रीमियम बाइकों में 7500 रुपए की छूट और सबसे ज्यादा बिकने वाली हल्की मोटरसाइकिलों में 5000 रुपए तक की छूट का ऐलान किया है।

फेडरेशन आफ आटोमोबाइल डीलर्स (एफएडीए) के निदेशक (अंतरराष्ट्रीय मामले) निकुंज सांघी ने पीटीआई भाषा से कहा, उद्योग में अबतक इस तरह की छूट कभी सुनने को नहीं मिला।

यह पूछे जाने पर कि शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर डीलर क्या कदम उठा रहे हैं, उन्होंने कहा, हमारा जोर समय सीमा से पहले यथासंभव अधिक से अधिक वाहनों को बेचने पर है। हमारे लोग संभावित ग्राहकों को कॉल कर रहे हैं और उन्हें छूट के बारे में बता रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कल कहा कि लोगों का स्वास्थ्य विनिमार्ताओं के वाणिज्यिक हित से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वाहन कंपनियां इस बात से पूरी तरह अवगत हैं कि उन्हें एक अप्रैल 2017 से केवल बीएस- 4 मानकों वाले वाहनों का ही विनिमार्ण करना है, लेकिन इसके बावजूद वे स्वयं से कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 1 अप्रैल के बाद भारत में बीएस 3 उत्सर्जन मानक वाले वाहन नहीं बिकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों का जीवन विनिर्माताओं के व्यावसायिक हितों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। 1अप्रैल से देश में बीएस 4 मानक लागू हो रहे हैं। कारखानों में तैयार खडे बीएस 3 वाहनों की संख्या 8.24 लाख है जिसमें से 6 लाख के करीब दोपहिया वाहन हैं।

जस्टिस मदन लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने यह आदेश बुधवार को दिया। आटो कंपनियां बीएस 4 मानक 1 अप्रैल से लागू करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आई थी। इस मामले में सरकार ने भी कंपनियों का समर्थन किया था और कहा था कि उन्हें बीएस 3 वाले वहन बेचने दिए जाएं।

भारतीय कंपनियों और इसके डीलरों के पास बीएस-3 वाले दोपहिया वाहनों की कुल इन्वेंट्री 20 मार्च तक करीब 6.71 लाख थी। ज्यादातर ऐसे वाहन अग्रणी दोपहिया कंपनियों हीरो मोटोकॉर्प व होंडा मोटरसाइकल ऐंड स्कूटर इंडिया के पास हैं। इस स्टॉक में बजाज की हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी है। हीरो के पास करीब 2.90 लाख वाहन थे, वहीं एचएमएसआई के पास वाहनों की अनुमानित इन्वेंट्री करीब 2.5 लाख है। दोनों कंपनियां मार्च से पूरा उत्पादन बीएस-4 मानक वाले वाहनों की कर रही हैं।

बूचड़खाने बंद हुए तो हिंदू-मुसलमान दोनों को नुक़सान होगा

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों कुछ बूचड़खाने बंद कराए गए। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि वो 'अवैध' रूप से चलाए जा रहे थे।

बूचड़खानों का ज़िक्र आने पर आम लोग जहाँ मानते हैं कि इस पेशे में एक ख़ास मज़हब और वर्ग के लोग ही काम करते हैं।

हकीकत क्या है? भारत के 10 बड़े बीफ़ एक्सपोर्टर्स का संबंध हिंदू समुदाय से है? भारत के केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की संस्था कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) से मंजूर देश के 74 बूचड़खानों में 10 के मालिक हिंदू हैं।

भारत के सबसे बड़े और आधुनिक बूचड़खाने अल कबीर के मालिक ग़ैर-मुस्लिम हैं। भारत का सबसे बड़ा बूचड़खाना तेलंगाना के मेडक ज़िले में रूद्रम गांव में है। तक़रीबन 400 एकड़ में फैले इस बूचड़खाने के मालिक सतीश सब्बरवाल हैं। यह बूचड़खाना अल कबीर एक्स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड चलाता है।

मुंबई के नरीमन प्वॉइंट स्थित मुख्यालय से मध्य-पूर्व के कई देशों को बीफ़ निर्यात किया जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक भी है और मध्य-पूर्व के कई शहरों में इसके दफ़्तर हैं।

अल कबीर के दफ़्तर दुबई, अबू धाबी, क़ुवैत, ज़ेद्दा, दम्मम, मदीना, रियाद, खरमिश, सित्रा, मस्कट और दोहा में हैं। दुबई दफ़्तर से फ़ोन पर बातचीत में अल कबीर मध्य पूर्व के चेयरमैन सुरेश सब्बरवाल ने बीबीसी से कहा, ''धर्म और व्यवसाय दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं और दोनों को एक-दूसरे से मिला कर नहीं देखा जाना चाहिए। कोई हिंदू बीफ़ व्यवसाय में रहे या मुसलमान ब्याज पर पैसे देने के व्यवसाय में रहे तो क्या हर्ज़ है?''

अल कबीर ने बीते साल लगभग 650 करोड़ रुपये का कुल व्यवसाय किया था।

अरेबियन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लमिटेड के मालिक सुनील कपूर हैं। इसका मुख्यालय मुंबई के रशियन मैनशन्स में है। कंपनी बीफ़ के अलावा भेड़ के मांस का भी निर्यात करती है। इसके निदेशक मंडल में विरनत नागनाथ कुडमुले, विकास मारुति शिंदे और अशोक नारंग हैं।

एमकेआर फ़्रोज़न फ़ूड एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक मदन एबट हैं। कंपनी का मुख्यालय दिल्ली में है।

एबट कोल्ड स्टोरेजेज़ प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना पंजाब के मोहाली ज़िले के समगौली गांव में है। इसके निदेशक सनी एबट हैं।

अल नूर एक्सपोर्ट्स के मालिक सुनील सूद हैं। इस कंपनी का दफ़्तर दिल्ली में है, लेकिन इसका बूचड़खाना और मांस प्रसंस्करण संयंत्र उत्तर प्रदेश के मुजफ़्फ़रनगर के शेरनगर गांव में है।

इसके अलावा मेरठ और मुबई में भी इसके संयंत्र हैं। इसके दूसरे पार्टनर अजय सूद हैं। इस कंपनी की स्थापना 1992 में हुई और यह 35 देशों को बीफ़ निर्यात करती है।

एओवी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना उत्तर प्रदेश के उन्नाव में है। इसका मांस प्रसंस्करण संयंत्र भी है। इसके निदेशक ओपी अरोड़ा हैं।

यह कंपनी साल 2001 से काम कर रही है। यह मुख्य रूप से बीफ़ निर्यात करती है। कंपनी का मुख्यालय नोएडा में है।

अभिषेक अरोड़ा एओवी एग्रो फ़ूड्स के निदेशक हैं। इस कंपनी का संयंत्र मेवात के नूह में है।

स्टैंडर्ड फ़्रोज़न फ़ूड्स एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कमल वर्मा हैं। इस कंपनी का बूचड़खाना और सयंत्र उत्तर प्रदेश के उन्नाव के चांदपुर गांव में है। इसका दफ्तर हापुड़ के शिवपुरी में है।

पोन्ने प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट्स के निदेशक एस सास्ति कुमार हैं। यह कंपनी बीफ़ के अलावा मुर्गी के अंडे और मांस के व्यवसाय में भी है। कपंनी का संयंत्र तमिलनाडु के नमक्काल में परमति रोड पर है।

अश्विनी एग्रो एक्सपोर्ट्स का बूचड़खाना तमिलनाडु के गांधीनगर में है। कंपनी के निदेशक के राजेंद्रन धर्म को व्यवसाय से बिल्कुल अलग रखते हैं। वे कहते हैं, ''धर्म निहायत ही निजी चीज है और इसका व्यवसाय से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए।''

राजेंद्रन ने इसके साथ यह ज़रूर माना कि उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कई बार स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें परेशान किया है।

महाराष्ट्र फ़ूड्स प्रोसेसिंग एंड कोल्ड स्टोरेज के पार्टनर सन्नी खट्टर का भी यही मानना है कि धर्म और धंधा अलग-अलग चीजें हैं और दोनों को मिलाना ग़लत है। वो कहते हैं, ''मैं हिंदू हूं और बीफ़ व्यवसाय में हूं तो क्या हो गया? किसी हिंदू के इस व्यवसाय में होने में कोई बुराई नहीं है? मैं यह व्यवसाय कर कोई बुरा हिंदू नहीं बन गया।"

इस कंपनी का बूचड़खाना महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के फलटन में है।

इसके अलावा हिंदुओं की ऐसी कई कंपनियां हैं, जो सिर्फ बीफ़ निर्यात के क्षेत्र में हैं। उनका बूचड़खाना नहीं है, पर वे मांस प्रसंस्करण, पैकेजिंग कर निर्यात करते हैं। कनक ट्रेडर्स ऐसी ही एक कंपनी है।

इसके प्रोप्राइटर राजेश स्वामी ने कहा, ''इस व्यवसाय में हिंदू-मुसलमान का भेदभाव नहीं है। दोनों धर्मों के लोग मिलजुल कर काम करते हैं। किसी के हिंदू होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।''

वे यह भी कहते हैं कि बूचड़खाने बंद हुए तो हिंदू-मुसलमान दोनों को नुक़सान होगा।

बड़ी तादाद में हिंदू मध्यम स्तर के प्रबंधन में हैं। वे कंपनी के मालिक तो नहीं, लेकिन निदेशक, क्वॉलिटी प्रबंधक, सलाहकार और इस तरह के दूसरे पदों पर हैं।

लालकृष्ण आडवाणी भारत के अगले राष्ट्रपति बनना चाहते हैं

बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि वो बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े हैं और उन्हें इस पर गर्व है।

राजस्थान के माउंट आबू में ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में शामिल हुए आडवाणी ने कहा, ''मैं बचपन से जिस संगठन के साथ जुड़ा हूं उसका सम्मान करता हूँ और मुझे उस पर गर्व है और ये संगठन आरएसएस है।''

आडवाणी का ये बयान संघ के प्रति आस्था व्यक्त करना भर है या फिर इसके कुछ सियासी मायने भी हैं।

आडवाणी का संघ से गहरा नाता रहा है और वो राजस्थान में संघ के प्रचारक रहे हैं। साल 2005 में कराची यात्रा के दौरान जिन्ना के बारे उनकी टिप्पणी आरएसएस को नागवार गुजरी थी जिसकी वजह से दोनों के रिश्ते में थोड़ी खटास आ गई थी।

हालांकि फिर साल 2009 में संघ के कहने पर ही भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री के रूप में उनका नाम आगे बढ़ाया था।

लेकिन आडवाणी ने इस समय आरएसएस की तारीफ़ की है जिसके अपने मायने हैं क्योंकि वो इस समय भाजपा के उस मार्गदर्शक मंडल में हैं जो हाशिए पर है और जिसकी कभी कोई बैठक नहीं हुई।

बिहार चुनाव के बाद आडवाणी का बस एक बयान आया था जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व पर कुछ सवाल उठाए गए थे, लेकिन उसके बाद कहीं कुछ सुनने में नहीं आया।

आरएसएस वर्तमान सरकार में अहम भूमिका अदा कर रहा है और आडवाणी अपने लिए एक रास्ता खोलना चाहते हैं क्योंकि आरएसएस के मौजूदा नेतृत्व के साथ उनके वैसे संबंध नहीं हैं जैसे पुराने नेतृत्व के साथ थे।

आडवाणी के ताज़ा बयान को अगले राष्ट्रपति चुनाव के नज़रिए से भी देखने की ज़रूरत है।

मीडिया के एक हिस्से में चर्चा है कि आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रपति पद के लिए नामित कर सकती है।

मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई 2017 को खत्म होगा। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद तय है कि बीजेपी अगले राष्ट्रपति के लिए अपना उम्मीदवार उतारेगी।

इस तरह की तमाम ख़बरें सामने आ चुकी हैं जो कहती हैं कि राष्ट्रपति की कुर्सी में आडवाणी की दिलचस्पी है।  

हालांकि बाबरी मस्जिद वाला केस सुप्रीम कोर्ट में दोबारा आ गया है जिसमें उनका नाम है।

वैसे अभी ये नहीं पता है कि आडवाणी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की कितनी दिलचस्पी है ?

फिर भी इतना तो तय है कि आडवाणी आरएसएस के ज़रिए ये संदेश देना चाहते हैं कि उनके नाम पर भी विचार किया जाए।