भारत में मोदी सरकार ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट का काम छीनकर कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के 9वें दिन रिलायंस की कंपनी को दे दिया। सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत सरकार की कंपनी के बदले मुकेश अम्बानी की रिलायंस कंपनी के हित को प्राथमिकता और वरीयता क्यों दी? इसका जवाब मोदी सरकार को देना होगा।
राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर भारत में मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला बोला है।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से सवाल पूछे हैं। राहुल ने पेरिस में राफेल खरीदने की पीएम मोदी की घोषणा पर भी सवाल उठाए हैं।
राहुल गांधी ने शनिवार को ट्वीट कर रक्षा मंत्री से 3 सवाल पूछे हैं। राहुल ने निर्मला सीतारमण पर तंज कसते हुए कहा कि यह कितना शर्मनाक है कि आपके बॉस आपको खामोश कर रहे हैं।
राहुल ने रक्षा मंत्री से पूछा कि कृपया हमें हर राफेल विमान की फाइनल कीमत बताएं।
दूसरा सवाल राहुल ने पीएम मोदी से जोड़कर पूछा। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पूछा कि क्या पीएम ने पेरिस में राफेल विमान खरीदने की घोषणा से पहले कैबिनेट कमिटी ऑफ सिक्यॉरिटी (CCS) की अनुमति ली थी।
राहुल गांधी ने तीसरे सवाल में राफेल डील के लिए अनुभवी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को बाइपास करने पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पूछा कि क्यों पीएम ने अनुभवी HAL को बाइपास करते हुए यह डील AA रेटेड बिजनसमैन को दी, जिनके पास कोई डिफेंस एक्सपीरियंस नहीं है।
इससे पहले भी राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे को लेकर पीएम मोदी पर निशाना साध चुके हैं। राहुल ने पहले भी आरोप लगाया था कि पीएम मोदी ने एक व्यवसायी को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे सौदे में कथित बदलाव किए।
हालांकि केंद्र सरकार ने कांग्रेस और राहुल गांधी के इन आरोपों को खारिज कर दिया था। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल सौदे का बचाव करते हुए कहा था कि इसपर आरोप लगाना बेशर्मी है। इस तरह से सुरक्षा बलों का हौसला घटेगा।
राफेल फाइटर्स की डील पर सत्ताधारी बीजेपी और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के बीच घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस ने राफेल फाइटर्स की डील को लेकर सत्ताधारी बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाया है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की डील को लेकर मोदी सरकार लगातार झूठ बोल रही है। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले को गुप्त रखकर सरकार देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।
सुरजेवाला ने कहा कि निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय को बीजेपी मंच बनाकर इस्तेमाल किया, लेकिन सवाल का जवाब नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि 36 राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत क्या है? सुरजेवाला ने कहा कि सरकार कीमत बताने से क्यों बच रही है?
उन्होंने दावा किया कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 526 करोड़ रुपये है, जबकि सौदा 1570 करोड़ रुपये का हुआ है।
उन्होंने कहा कि राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 3 गुना क्यों बढ़ी? इसका जवाब पीएम या रक्षा मंत्री क्यों नही दे रहे।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड से राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट का काम छीनकर कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के 9वें दिन रिलायंस की कंपनी को दे दिया। भारत सरकार की कंपनी छोड़कर निजी कंपनी का हित क्यों देखा मोदी जी ने?
सवाल उठना लाज़िमी है कि मोदी ने मुकेश अम्बानी की कंपनी को भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड पर वरीयता क्यों दी, जबकि मुकेश अम्बानी की कंपनी नयी और अनुभवहीन है। इसके बदले हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड पुरानी और अनुभवी कंपनी है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास प्रोडक्शन और मार्केटिंग का वर्षों का अनुभव है।
राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट की कीमत 526 करोड़ रुपये है, जबकि सौदा 1570 करोड़ रुपये का हुआ है। इसका क्या मतलब निकाला जाये?
वास्तव में यह बहुत बड़ा घोटाला है। मोदी सरकार राफेल फाइटर्स एयरक्राफ्ट सौदा में मुकेश अम्बानी की कंपनी को फायदा पहुंचा रही है।
सऊदी अरब में कुछ बड़ा होने वाला है, इसका संकेत यहां के कुछ लोगों को एक पत्र से पहले ही मिल गए थे। हालांकि उस समय किसी को इस बात का अहसास नहीं था कि कोई बड़ी कार्रवाई होने वाली है, जिसमें एक फाइव स्टार होटल की बड़ी भूमिका होने वाली है। ये लोग इसी होटल में ठहरे थे।
शनिवार 4 नवंबर को रियाद के आलीशान होटल रिट्स कार्लटन में मौजूद मेहमानों को सूचना दी जाती है कि 'स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई अप्रत्याशित बुकिंग के कारण हम गेस्ट्स को ठहराने में असमर्थ हैं.... जब तक कि सब सामान्य नहीं हो जाता।'
बताया गया कि इस बुकिंग की वजह से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ेगी। जिस समय यह सूचना दी जा रही थी, कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। कुछ ही घंटे के भीतर सुरक्षा बलों ने सऊदी अरब के कई बड़ी राजनीतिक और कारोबारी हस्तियों को अपने घेरे में ले लिया। इनमें से ज्यादातर राजधानी और तटीय शहर जेद्दा से थे। गिरफ्तार लोगों में 11 राजकुमारों के अलावा कई मंत्री और अमीर शख्स भी थे।
कुछ लोगों को मीटिंग के लिए बुलाया गया, जहां उन्हें हिरासत में ले लिया गया। अन्य लोगों को उनके घरों से गिरफ्तार कर लिया गया और प्लेन से रियाद ले जाया गया। कुछ ही समय में आलीशान रिट्स कार्लटन होटल एक अस्थायी जेल में तब्दील हो चुका था।
हिरासत में लिए गए लोगों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गईं।
32 साल के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के आदेश पर यह कार्रवाई की गई। आधिकारिक तौर पर अपने पिता किंग सलमान के बाद वह गद्दी के दावेदार हैं।
कुछ का यह भी मानना है कि वही देश को चला रहे हैं। युवराज सऊदी को एक आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इसके लिए और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए उन्होंने सऊदी के एलीट क्लास के खिलाफ कदम उठाने का बड़ा फैसला लिया, जिसमें शाही परिवार के कुछ लोग भी शामिल हैं। इन लोगों पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने और बिजनस प्रॉजेक्ट्स की लागत बढ़ाने जैसे कई गंभीर आरोप लगे थे। हालांकि गिरफ्तार लोगों का पक्ष सामने नहीं आ पाया है।
इस घटनाक्रम से दुनिया के सबसे ज्यादा तेल उत्पादक देश की राजनीतिक स्थिरता खतरे में पड़ गई है। शासन करने की युवराज की क्षमता अब इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कार्रवाई कितनी सफल रहती है। युवराज का मानना है कि देश नहीं बदला तो अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में फंस जाएगी और इससे अशांति पैदा हो सकती है। इससे शाही परिवार के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है और क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी ईरान के खिलाफ देश कमजोर पड़ जाएगा।
प्रिंस मोहम्मद के चचेरे भाई और शक्तिशाली नेशनल गार्ड के प्रमुख मुतैब बिन अब्दुल्ला को भी इस होटल में रखा गया है। मुतैब रियाद में अपने फार्म हाउस में थे, जब उन्हें मीटिंग के लिए बुलाया गया। वरिष्ठ पद पर बैठे अधिकारी को रात में इस तरह बुलाया जाना सामान्य बात नहीं थी। पर किसी को संदेह नहीं हुआ।
इन दिनों सऊदी अरब के शाही परिवार में जबरदस्त उठा-पटक चल रही है। यहां भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में अबतक 201 लोगों को हिरासत में लिया गया है। सऊदी के भावी शाह मोहम्मद बिन सलामन द्वारा छेड़े गए इस अभियान में देश के 11 राजकुमारों समेत शीर्ष अधिकारियों और पूर्व मंत्रियों पर भी शिकंजा कसा है।
बताया जा रहा है कि 32 साल का ये शहज़ादा सऊदी हुकूमत के सबसे ताकतवर शख्सियत के तौर पर उभर कर सामने आया है। जानकारों के मुताबिक, वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब उन्हें सऊदी अरब का सुल्तान बना दिया जाएगा। किंग सलमान कमज़ोर और बीमार हैं, वो कभी भी ताज छोड़ सकते हैं। वो कभी भी क्राउन प्रिंस सलमान को किंग बनाने की घोषणा कर सकते हैं।
जानकारों के मुताबिक, अभी भी क्राउन प्रिंस ही वास्तव में मुल्क चला रहे हैं। मुहम्मद बिन सलमान का जन्म 31 अगस्त 1985 को हुआ था और वह किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज अल-सऊद की तीसरी पत्नी फहदा बिन फलाह के सबसे बड़े बेटे हैं। रियाद स्थित किंग सऊद यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद प्रिंस मोहम्मद सलमान ने कई सरकारी महकमों में काम किया। किंग सलमान ने 2015 में सत्ता संभालते ही दो अहम बदलाव किए थे और अपने बेटे को सत्ता के और करीब कर दिया था। उस वक्त शहज़ादा सलमान केवल 29 वर्ष की आयु में दुनिया के सबसे कम उम्र के रक्षा मंत्री बन गए थे।
भारत के डॉक्टर या प्राइमरी केयर कंसल्टेंट, मरीजों को सिर्फ दो मिनट का वक्त देते हैं। इसका खुलासा एक रिसर्च से हुआ है। मेडिकल कंसल्टेशन पर हुए सबसे बड़े इंटरनेशनल शोध में यह बात सामने आई है।
पड़ोसी देशों बंग्लादेश और पाकिस्तान में स्थिति और भी बदतर है, यहां कंसल्टिंग टाइम औसतन 48 सेकंड से 1.3 मिनट ही है।
यह शोध गुरुवार को मेडिकल जर्नल बी एम जे ओपन में प्रकाशित हुआ है। इसके विपरीत स्वीडन, अमेरिका और नॉर्वे जैसे देशों में कंसल्टेशन का औसत समय 20 मिनट होता है।
यह शोध यूनाइटेड किंगडम के कई अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने किया था।
जर्नल में कहा गया है, ''यह चिंता की बात है कि 18 ऐसे देश, जहां की दुनिया की 50 फीसदी आबादी रहती है। यहां का औसत कंसल्टेशन टाइम 5 या इससे कम मिनट है।
स्टडी के मुताबिक, मरीज ज्यादा वक्त फार्मेसी में या ऐंटीबायॉटिक दवाएं खाकर बिता रहे हैं और उनके डॉक्टरों से रिश्ते उतने अच्छे नहीं है।
कंसल्टेशन का वक्त कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा बड़ी समस्या है। भारत के परिपेक्ष्य में लोकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये अस्पतालों में भीड़ और प्राइमरी केयर फिजिशन की कमी को दर्शाता है। प्राइमरी केयर डॉक्टर कंसल्टेंट्स से अलग होते हैं जो कि मेडिसिन की खास ब्रांच में ट्रेनिंग पाए होते हैं।
भारत में कंसल्टेशन को दो मिनट का वक्त मिलने वाली बात से किसी को भी हैरानी नहीं हुई। हेल्थ कंमेंटेटर रवि दुग्गल का कहना है, ''यह बात सभी को पता है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम वक्त दे पाते हैं।''
डॉ दुग्गल के मुताबिक, ''कोई नई बात नहीं है कि डॉक्टर मरीजों के लक्षणों में भ्रमित हो जाएं।''
वहीं प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में भी भीड़ का यही हाल है। यहां डॉक्टर सिर्फ लक्षण पूछते हैं और बहुत कम ही शारीरिक परीक्षण कर पाते हैं।
वेस्टर्न और इंडियन कंसल्टेशन में बीमारियों में फर्क होता है। महाराष्ट्र के डॉक्टर सुहास बताते हैं, ''स्वीडन में मरीज को वायरल फीवर के बजाय साइकोसोशल समस्या होती है। वही भारत में अगर डॉक्टर को हवा में मौजूद किसी खास तरह के वायरस के बारे में जानकारी है तो वह कई लोगों का आसानी से इलाज कर सकता है।'' बी एम जे ओपन स्टडी में कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब हालत को देखा गया।
पनामा पेपर की तर्ज पर लीक हुए पैराडाइज पेपर में मोदी सरकार के मंत्री, बीजेपी और गैर बीजेपी दलों के सांसदों, बॉलीवुड हस्तियों समेत कुल 714 भारतीयों के नाम शामिल हैं।
मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा, बिहार से बीजेपी के सांसद आर के सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोईली, पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, बॉलीवुड स्टार और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त के भी नाम इस दस्तावेज में हैं।
पैराडाइज पेपर के डेटा में कुल 180 देशों के नाम हैं। इनमें से भारत का स्थान 19वां है। भारत के कुल 714 लोगों का नाम पैराडाइज पेपर के डेटा लिस्ट में है।
अमेरिका स्थित इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आई सी आई जे) द्वारा जारी किए गए पैराडाइज दस्तावेज से यह खुलासा हुआ है। इसी संगठन ने पिछले साल पनामा दस्तावेजों का खुलासा किया था जिसने दुनियाभर की राजनीति में तूफान पैदा किया था। इंडियन एक्सप्रेस आई सी आई जे का सदस्य है और उसने भारत से जुड़े हुए सभी दस्तावेजों की पड़ताल की है।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा से इस्तीफे की मांग की और कहा कि उनकी पार्टी हर तरह की जांच का स्वागत करती है।
केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने सफाई दी है। उन्होंने कहा कि जब मैं राजनीति में नहीं था, तब मैंने अपने लिए नहीं, कंपनी के लिए यह काम किया था। इसकी जानकारी मैंने सार्वजनिक की थी।
अभिनेता संजय दत्त की पत्नी मान्यता (दिलनशीं संजय दत्त) का नाम भी पैराडाइज पेपर्स में है। मान्यता संजय दत्त से शादी करने से पहले प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल (2003) के एक ऑयटम सॉन्ग से चर्चा में आई थीं। वो संजय दत्त प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड की सदस्य हैं। अपने पति की कंपनी के अलावा भी मान्यता कई अन्य कंपनियों के बोर्ड में हैं जिनमें दिक्स्श (Diqssh) एनर्जी, स्पार्कमैटिक्स एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड, दिक्स्श रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड, ब्रिक बाई ब्रिक रियल्यटर्स प्राइवेट लिमिटेड, डूटो कमॉडिटीज प्राइवेट लिमिटेड, दिक्स्श इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, सेवंटी एम एम मूवीज प्राइवेट लिमिटेड और ट्रांसपरेंसी एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि शामिल हैं।
पैराडाइज पेपर्स में नाम आने पर बिहार से बीजेपी के राज्य सभा सांसद रविन्द्र किशोर सिन्हा ने लिखकर प्रतिक्रिया दी है कि उनका मौन व्रत है।
समाचार एजेंसी एएनआई के संवाददाता ने जब उनसे इस पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो सिन्हा ने इशारों में ही संवाददाता से कलम मांगी और कागज पर लिखा, ''7 दिन के भागवत यज्ञ में मौनव्रत है।''
पनामा पेपर की तर्ज पर लीक हुए पैराडाइज पेपर में बिहार से बीजेपी के राज्यसभा सांसद रविन्द्र किशोर सिन्हा का भी नाम है। सिन्हा साल 2014 में बिहार से राज्यसभा सांसद चुने गए हैं। वो संसद के ऊपरी सदन में सबसे अमीर सांसदों में एक हैं। सिन्हा एक पूर्व पत्रकार हैं, जिन्होंने सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस सर्विसेज (एस आई एस) नाम से प्राइवेट सिक्योरिटी सर्विस फर्म की स्थापना की है।
फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन 'कौन बनेगा करोड़पति' (के बी सी) के 2000-02 में प्रसारित पहले संस्करण के बाद बरमूडा की एक डिजिटल मीडिया कंपनी के शेयरधारक बने थे। साल 2004 में भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) के लिबरलाइज्ड रिमिटेंस स्कीम शुरू करने से पहले तक सभी भारतीयों को विदेश में किए गए निवेश की जानकारी आर बी आई को देनी होती थी। ये साफ नहीं है कि अमिताभ बच्चन ने ये जानकारी आरबीआई को दी थी या नहीं।
जर्मन अखबार Süddeutsche Zeitung को बरमूडा की कंपनी ऐपलबी, सिंगापुर की कंपनी एसियासिटी ट्रस्ट और कर चोरों के स्वर्ग समझे जाने वाले 19 देशों में कराई गई कार्पोरेट रजिस्ट्रियों से जुड़े करीब एक करोड़ 34 लाख दस्तावेज मिले। जर्मन अखबार ने ये दस्तावेज इंटरनेशनल कॉन्सार्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट (आई सी आई जे) के साथ साझा किया।
पैराडाइज पेपर के दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबियों से जुड़ी कंपनी के साथ कारोबारी संबंध हैं, जबकि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने विदेशों में टैक्स से बचाव करने वाले स्थानों पर निवेश किया हुआ है।
इसमें यह भी खुलासा किया गया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडू के लिए कोष जुटाने वाले और वरिष्ठ सलाहकार स्टीफन ब्रॉन्फमैन ने पूर्व सीनेटर लियो कोल्बर के साथ मिलकर विदेशों में कर पनाहगाहों में करीब 6 करोड़ डॉलर का निवेश कर रखा है।
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल लागू की गयी नोटबंदी के पक्ष-विपक्ष में बहसों का दौर अभी थमा नहीं है। पीएम मोदी ने आठ नवंबर 2016 को तत्काल प्रभाव से उसी रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी।
नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री भास्कर चक्रवर्ती ने हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में मोदी सरकार के इस फैसले की समीक्षा की है।
जब नोटबंदी लागू हुई तो भारत की कुल नकदी का करीब 86 प्रतिशत 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में था। नोटबंदी की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी मच गयी थी। अनगिनत लोगों की नौकरियां गईं, कई दर्जन लोगों की मौतों के लिए नोटबंदी को जिम्मेदार ठहराया गया।
प्रोफेसर भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, नोटबंदी बगैर उचित सोच-विचार के लागू किया गया फैसला था और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था खासकर गरीबों पर नकारात्मक असर पड़ा।
भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, नोटबंदी के फैसले से दुनिया के बाकी देश चार सबक सीख सकते हैं। नीचे पढ़िए भास्कर चक्रवर्ती की राय में वो सबक क्या हैं?
पहला सबक: सावधानी से विशेषज्ञों का चुनाव करें
भास्कर चक्रवर्ती के अनुसार, किसी भी नीति के आनुषंगिक परिणाम होते हैं इसलिए उन्हें लागू करने से पहले कुछ बुनियादी कवायदें जरूरी हैं। किसी भी नीति को लागू करने से पहले अर्थव्यवस्था, कारोबार और तकनीक क्षेत्र के विशेषओं का समेकित विचार जानना जरूरी है। भारत जैसी जटिल आर्थिकी वाले देश में ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
भास्कर ने लिखा है कि भारत में मोदी सरकार ने नोटबंदी लागू करने के खिलाफ रघुराम राजन जैसे काबिल आदमी की राय को नकार दिया।
भास्कर लिखते हैं कि अभी तक ये पूरी तरह साफ नहीं है कि नोटबंदी के लिए मोदी सरकार ने किन विशेषज्ञों से राय ली थी।
भास्कर लिखते हैं कि नोटबंदी जैसे दूरगामी प्रभाव वाले फैसले लेने से पहले विशेषज्ञों की राय, आंकड़ों और उनके विश्लेषण जानने की पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए और इसे आधिकारिक रूप से दर्ज भी किया जाना चाहिए। भले ही इस गुप्त रूप से किया जाए।
भास्कर मानते हैं कि लोकतांत्रिक देशों की सरकारों की जवाबदेही है कि वो अपने फैसलों के पीछे की तैयारी से जुड़े सवालों का जनता को जवाब दें।
दूसरा सबक: बुनियादी आंकड़ों की अनदेखी न करें
भास्कर के अनुसार, सभी नीतियों का उद्देश्य जनकल्याण होता है, लेकिन हर नीतिगत निर्णय के कुछ नकारात्मक पक्ष होते हैं। जन साधारण के फायदे में लिए गये फैसले समाज के किसी एक वर्ग के लिए भारी साबित होते हैं।
भास्कर के अनुसार, इसलिए किसी भी नीतिगत फैसले के पहले तथ्य आधारित नफा-नुकसान का मुल्यांकन जरूरी है।
भास्कर के अनुसार, किसी भी नीति को लागू करने से पहले उससे जुड़े बुनियादी आंकड़ों का विश्लेषण कर लेना चाहिए। अगर नीति को लागू करने में जोखिम ज्यादा है तो आगे बढ़ने से पहले उस पर खड़े किए गए सवालों के जवाब ढूंढने चाहिए। नोटबंदी लागू करने की सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम लगाने की मंशा बतायी गई।
भास्कर के अनुसार, नरेंद्र मोदी की कई विशेषज्ञों ने इस साहसी फैसले के लिए तारीफ भी की और हालिया प्रादेशिक चुनावों के नतीजे से इसकी लोकप्रियता का भी प्रमाण मिल गया, लेकिन इससे जुड़ी कुछ बुनियादी बातों का ख्याल नहीं रखा गया।
भास्कर के अनुसार, सबसे पहले, एक झटके में 86 प्रतिशत नकदी को गैर-कानूनी घोषित करने के फैसले को लेकर सरकार को पहले ही अति-सावधान हो जाना चाहिए था क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में अफरा-तफरी मचने की आशंका थी। इसके अलावा भारत का 90 प्रतिशत कामगार वर्ग असंगठित क्षेत्र में काम करता है जिसे नकद मेहनताना मिलता है। देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाली इस दोहरी मार को नजरंदाज करना मुश्किल था। तीसरा, आयकर विभाग के हालिया विश्लेषण के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में नकद अघोषित आय कुल अर्थव्यवस्था का करीब छह प्रतिशत है। यानी नोटबंदी का निशाना ही गलत था। साफ है कि देश की ज्यादातर अघोषित आय गैर-नकदी संपत्ति के रूप में मौजूद है। ये सारे आंकड़े पहले से मौजूद हैं और नोटबंदी लागू करने वालों को इन्हें देखकर थम जाना चाहिए था।
तीसका सबक: मानवीय व्यवहार का ध्यान रखें
भास्कर के अनुसार, किसी भी नीति को लागू करने से पहले उसकी जमीन पर उतारने के दौरान आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों पर जरूर विचार कर लेना चाहिए। यानी नीति-निर्धारकों को ये सोच-विचार कर लेना चाहिए कि जमीनी स्तर पर हाड़-मांस के बने लोग किस तरह से बरताव करेंगे।
भास्कर के अनुसार, नीति निर्धारण का यह अहम पहलू है कि आप आम बरताव को कितने सटीक तरीके से पहले से भांप लेते हैं।
भास्कर के अनुसार, नोटबंदी के मामले मे मोदी सरकार ऐसा करने में चूक गयी। सरकार ये नहीं भांप पायी कि लोग आसानी से पैसे नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने नोटबंदी से बचने के लिए कई चोर रास्ते निकाल लिए। मसलन, नोटबंदी के बाद मोटा कालाधन रखने वाले कुछ लोगों ने दलालों को कुछ प्रतिशत के कमीशन पर अपने पैसे दे दिए जिन्होंने आम लोगों को छोटी-छोटी रकम के तौर पर उस पैसे को बांट कर सफेद कर लिया।
भास्कर ने आरबीआई के हालिया आंकड़ों का हवाला दिया है जिनके अनुसार नोटबंदी के बाद 500 और 1000 रुपये में मौजूद करीब 99 प्रतिशत राशि बैंकों में वापस आ गयी।
भास्कर के अनुसार, इस आंकड़े से साफ है कि नोटबंदी से कालेधन के रद्दी में बदल जाने का बुनियादी तर्क गलत साबित हुआ।
चौथा सबक: चांदी की डिजिटिल गोली से सावधान रहें
भास्कर के अनुसार, मोबाइल संचार और डिजिटल तकनीक के प्रसार से कई बार ये भ्रम हो जाता है कि ये चीजें रातोंरात बदलाव ला सकती हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि इन चीजों पर जिन कंपनियों का कब्जा है, वो अपने प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी को हर बीमारी की रामबाण दवा के तौर पर पेश करती हैं।
भास्कर मानते हैं कि मोबाइल और डिजिटल टेक्नोलॉजी व्यवस्था को बेहतर बनाने में काफी मददगार हैं, लेकिन बगैर बुनियादी तैयारी के इन पर पूरी तरह निर्भर होना उचित नहीं।
भास्कर मानते हैं कि नोटबंदी के मामले में भी यही हुआ। नोटबंदी के बाद जब मोदी सरकार नकदी की कमी की भरपाई करने में विफल रही तो उनसे अपना एजेंडा बदलते हुए इसे अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की दिशा में उठाया गया कदम बताना शुरू कर दिया। मोदी सरकार ने भारत को कुछ ज्यादा ही तेजी से डिजिटल युग में धकेलना शुरू कर दिया।
भास्कर के अनुसार, आरबीआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी के समय तो देश में डिजिटल लेन-देन में बढ़ोत्तरी हुई क्योंकि शुरू के कुछ महीनों में लोगों के पास दूसरे विकल्प नहीं थे , लेकिन बाद में इसमें धीरे-धीरे कमी आती गई।
भास्कर लिखते हैं कि एक पेमेंट प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने के लिए 86 प्रतिशत नकदी को बंद कर देने का फैसला समझ से बाहर है।
नरेंद्र मोदी सरकार जहां मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना पर आगे बढ़ रही है, वहीं एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन के जरिए यह जानकारी मिली है कि इस क्षेत्र की ट्रेनों में 40 फीसदी सीटें खाली रहती हैं, और इससे पश्चिम रेलवे को भारी नुकसान हो रहा है।
मुंबई के कार्यकर्ता अनिल गलगली को मिले आरटीआई के जवाब में पश्चिम रेलवे ने कहा है कि इस क्षेत्र में पिछले तीन महीनों में 30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, यानी हर महीने 10 करोड़ रुपए का नुकसान।
गलगली ने कहा कि यह बुलेट ट्रेन परियोजना की व्यवहार्यता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है, चाहे जब भी इसका निर्माण किया जाए।
उन्होंने कहा, ''भारत सरकार अतिउत्साह में बुलेट ट्रेन परियोजना पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने जा रही है, लेकिन उसने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया है।''
भारतीय रेलवे ने यह भी स्वीकार किया कि इस क्षेत्र में उसकी कोई नई ट्रेन चलाने की योजना नहीं है क्योंकि यह पहले ही घाटे में है।
गलगली ने प्रश्न पूछा था कि दोनों शहरों के बीच की ट्रेनों की कितनी सीटें भरी होती हैं? पश्चिम रेलवे ने बताया कि पिछले तीन महीनों में मुंबई-अहमदाबाद क्षेत्र की सभी ट्रेनों में 40 फीसदी सीटें खाली रही हैं, जबकि अहमदाबाद-मुंबई के बीच चलने वाली ट्रेनों की 44 फीसदी सीटें खाली रही हैं।
पश्चिम रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक मनजीत सिंह ने आरटीआई के जवाब में मुंबई-अहमदाबाद-मुंबई मार्ग की सभी प्रमुख ट्रेनों की सीटों की जानकारी दी। इसमें दुरंतो, शताब्दी एक्सप्रेस, लोकशक्ति एक्सप्रेस, गुजरात मेल, भावनगर एक्सप्रेस, सुरक्षा एक्सप्रेस, विवेक-भुज एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनें शामिल हैं। इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय ट्रेन 12009 शताब्दी एक्सप्रेस की मुंबई-अहमदाबाद मार्ग की क्षमता 72,696 सीटों की है, जिसमें से जुलाई-सिंतबर के दौरान केवल 36,117 सीटें ही भरी गईं, जबकि इसी ट्रेन की अहमदाबाद-मुंबई मार्ग पर कुल 67,392 सीटों में से केवल 22,982 सीटों की ही बुकिंग हुई।
यह ट्रेन कभी सभी सीजन में भरी हुई होती थी, लेकिन अब यह घाटे में चल रही है। गलगली ने ध्यान दिलाया कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, जहां लोग विमान से अधिक सफर कर रहे हैं, दोनों शहरों के बीच सड़क मार्ग से सफर करना आसान हो गया है। केंद्र और गुजरात सरकार को बुलेट ट्रेन जैसे महंगे विकल्प की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि यह भारतीय करदाताओं के लिए सफेद हाथी साबित नहीं हो।
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार (25 अक्टूबर) को कर्नाटक विधानसभा को संबोधित करते हुए कहा कि टीपू सुल्तान अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद होने वाले योद्धा हैं। उन्होंने मैसूर रॉकेट के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और युद्ध के दौरान इनका बेहतरीन इस्तेमाल किया।
कर्नाटक विधानसभा और विधान परिषद की 60वीं वर्षगांठ पर संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बात कही।
गौरतलब है कि बीते दिनों 18वीं सदी में मैसूर के बादशाह की जयंती मनाने पर तब विवाद हो गया, जब मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता ने उन्हें 'मास रेपिस्ट' कहा था। केंद्रीय कौशल विकास राज्य मंत्री अनंत कुमार ने ना सिर्फ कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार दिया बल्कि कर्नाटक सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखकर इस आयोजन में उन्हें भी शामिल होने से रोकने की कोशिश की।
टीपू सुल्तान के वंशजों ने अनंत कुमार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है।
केंद्रीय मत्री के इस बयान पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी आलोचना करते हुए कहा है कि केंद्रीय मंत्री होने के नाते उन्हें इस तरह की टिप्पणी और पत्र नहीं लिखना चाहिए था।
उन्होंने बताया कि टीपू सुल्तान जयंती कार्यक्रम में राज्य के सभी मंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और अन्य गणमान्यों को पत्र भेजा जाता है, समारोह में शामिल होना या न होना उनकी मर्जी पर निर्भर करता है। सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ टीपू सुल्तान ने चार युद्ध लड़े थे।
जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने 10 नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती का आयोजन किया है। कर्नाटक सरकार साल 2015 से टीपू सुल्तान की जयंती मना रही है।
टीपू सुल्तान 18वीं सदी में मैसूर साम्राज्य के महान शासक थे। प्रजा के तकलीफों का उन्हें काफी ध्यान रहता था। अत: उनके शासन काल में किसान खुश थे, वह कट्टर मुसलमान होते हुए भी धर्मनिरपेक्ष थे। वह हिन्दुओं और मुस्लमानों को एक नजर से देखते थे। वह बहुत बड़े सुधारक भी थे और उन्होंने शासन के प्रत्यक्ष क्षेत्र में सुधार लाने की चेष्टा की। टीपू सुल्तान मैसूर के सबसे महान शासक थे।
टीपू को मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़ योग्य सेनापति और कवि भी थे। टीपू सुल्तान ने कई हिंदू मन्दिरों को तोहफ़े दिए।
अंग्रेज उनसे काफी भयभीत रहते थे। टीपू की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी।
टीपू जैसे महान शासक की आरएसएस और बीजेपी द्वारा छवि ख़राब करने की कोशिश की जा रही है। चूँकि टीपू सुल्तान एक महान मुस्लिम शासक थे इसलिए उनको आरएसएस और बीजेपी टारगेट कर रही है ताकि कर्नाटक में हिन्दुओं को गोलबंद करके चुनाव जीतकर राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा कर सके।
पिछले कुछ सप्ताह में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ट्विटर पर बेहद लोकप्रिय हो गये हैं। राहुल के कुछ ट्वीट्स को सबसे ज्यादा लोगों ने रिट्वीट किया है। ट्विटर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से बीजेपी परेशान हो गई है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट पर एएनआई की प्रायोजित रिपोर्ट के हवाले से सवाल उठाया जा रहा है। एएनआई की इस प्रायोजित रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच बहस छिड़ गई है।
एएनआई ने कहा है कि राहुल गांधी के OfficeofRG ट्विटर हैंडल देखने के बाद कुछ सवाल खड़े होते हैं। इस रिपोर्ट में सवाल खड़ा किया गया है कि क्या राहुल को ट्विटर पर लोकप्रिय बनाने के लिए 'बोट्स' का इस्तेमाल किया जा रहा है?
उधर, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी को निशाना बनाकर कहानी गढ़ी जा रही है।
ट्विटरबोट एक प्रकार का सॉफ्टवेयर है जो ट्विटर अकाउंट को ट्विटर एपीआई के ज़रिए नियंत्रित करता है। बोट सॉफ्टवेयर ख़ुद से रीट्वीट, लाइक्स, फॉलो और अनफॉलो की गतिविधियों को बढ़ा सकता है।
इसके ज़रिए किसी दूसरे अकाउंट पर सीधे मैसेज भी भेजा जाता है। किसी भी शख्स के ट्विटर अकाउंट में लाइक्स, रीट्वीट और फॉलोअर्स का ऐसा बड़ा हिस्सा हो सकता है जिसमें इंसानी हाथ की कोई भूमिका नहीं हो।
एएनआई की प्रायोजित रिपोर्ट के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से कांग्रेस पर तंज कसा जा रहा है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एएनआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ट्वीट किया, ''शायद राहुल गांधी रूस, इंडोनेशिया और कज़ाखस्तान में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं?''
बीजेपी के इस हमले का कांग्रेस नेता शहज़ाद पूनावाला ने जवाब दिया है। स्मृति पर कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने सवालिया लहजे में हमला बोला है। पूनावाला ने स्मृति ईरानी को टैग करते हुए पूछा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के ट्वीट को 'प्रॉस्टिट्यूशन एजेंसी' क्यों रिट्वीट कर रही है। ( Namaskar @BJP4India SM cell & respected @smritiirani ji ma'am. Why are " escort agencies" re-tweeting my hon @narendramodi ji ? 15th oct )
एएनआई ने राहुल के ट्वीट में जैसा उदाहरण दिया है, वैसा ही पूनावाला ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट को रीट्वीट करने वालों को पेश किया है।
पूनावाला ने भी मोदी के ट्वीट को रीट्वीट करने वाले कुछ ऐसे लोगों को सामने रखा है जिनके अकाउंट संदिग्ध मालूम पड़ते हैं।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी इस मामले में राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए उन्हें फ़र्ज़ी युवराज कहा है। गोयल की इस टिप्पणी पर कांग्रेस प्रवक्ता संजय झा ने कहा कि रेल मंत्री ट्विटर गेम खेल रहे हैं और आम आदमी एक टिकट के लिए मोहताज है।
संजय झा ने दूसरे ट्वीट में कहा है, ''एक ऊटपटांग और प्रायोजित रिपोर्ट का सहारा लेकर पूरी मोदी सरकार राहुल गांधी पर हमले में लगी है। बीजेपी, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके अंत की शुरुआत हो गई है?''
वहीं एक और कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट कर कहा, ''क्यों नहीं मोदी सरकार राहुल गांधी पर हमला करने के लिए एक पूर्णकालिक मंत्री बना देती है, ऐसे में दूसरे मंत्री अपना काम कर पाएंगे।''
पूनावाला के समर्थन में और स्मृति ईरानी के ट्वीट के खिलाफ कई कांग्रेस समर्थकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कांग्रेस की सोशल मीडिया का प्रभार देख रही कन्नड़ अभिनेत्री और नेता राम्या ने स्मृति ईरानी पर हमला करते हुए लिखा है कि हमें उनकी जरूरत क्यों पड़ेगी, जब आप हों?
दूसरे ट्वीट में राम्या ने लिखा है, ''स्टोरी तथ्यात्मक रूप से गलत है। मैं आपकी उत्सुकता और बोट्स जनता पार्टी की मजबूरी समझती हूं।'' (Story is factually wrong. Can understand your eagerness to please the I&B ministry and the Bots Janata Party.)
कई अन्य यूजर्स ने भी स्मृति पर तंज कसा है।
भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ समय से अपने ही वरिष्ठ नेताओं और पूर्व नेताओं की आलोचनाओं से घिरी हुई है। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर वार करने वाले गुजरात की बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
सुरेश मेहता अक्टूबर 1995 से सितंबर 1996 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। लेकिन उन्हें लगता है कि आगामी गुजरात चुनाव में बीजेपी की स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
मेहता के अनुसार, गुजरात की बीजेपी सरकार किसान विरोधी और कार्पोरेट हित वाले फैसले लेती रही है। समाचार वेबसाइट 'द वायर' को दिए इंटरव्यू में सुरेश मेहता ने दावा किया कि ''गुजरात में इस बार विकास का गुजरात मॉडल नहीं बिकेगा ... गुजरात मॉडल केवल शब्दों की बाजीगरी है। गुजरात की जमीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयाँ करती है।''
नरेंद्र मोदी को जब केशुभाई पटेल की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया तो मेहता उनके मंत्रिमंडल में थे।
सुरेश मेहता ने द वायर से कहा, ''साल 2004 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परिक्षक (कैग) ने गुजरात की वित्तीय स्थिति की समीक्षा की थी। उस समय राज्य सरकार पर चार से छह हजार करोड़ के बीच कर्ज था। इसलिए कैग ने राज्य को आगाह किया था कि वो कर्ज की दुष्चक्र में न फंसे। लेकिन सरकार ने कैग की बात को नजरअंदाज किया। राज्य सरकार द्वारा पेश किए गये ताजा बज़ट के अनुसार, साल 2017 में गुजरात पर कर्ज बढ़कर एक लाख 98 हजार करोड़ हो चुका है। ये मेरे आंकड़े नहीं हैं। ये सरकार के अपने आंकड़े हैं। जिसे फरवरी 2017 में राज्य सरकार ने गुजरात फिस्कल रिस्पांसबिलिटी एक्ट 2005 के तहत जारी बयान में घोषित किया है।''
सुरेश मेहता ने गुजरात की बीजेपी सरकार पर किसानों को मिलने वाली छूट में कमी करने का भी आरोप लगाया। मेहता ने द वायर से कहा, ''.... उसी दस्तावेज से पता चलता है कि गुजरात सरकार की प्राथमिकता क्या है। कृषि मद में दी जाने वाली छूट (सब्सिडी) जिसका लाभ किसानों को मिलता है वित्त वर्ष 2006-07 से लगातार कम होती जा रही है। वित्त वर्ष 2006-07 में 195 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2007-08 में 408 करोड़ रुपये की छूट दी गयी थी जो वित्त वर्ष 2016-17 में घटकर 80 करोड़ रुपये रह गयी है।''
मेहता ने आरोप लगाया कि गुजरात की बीजेपी सरकार किसानों की छूट कम करने के साथ ही अडानी और अंबानी जैसे कारोबारियों को फायदा पहुँचाने वाली ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल सेक्टर में छूट बढ़ाती जा रही है।
मेहता ने द वायर से कहा, ''.... इस (किसानों की) छूट की तुलना ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल सेक्टर को दी जा रही छूट से करिए, जो अडानी और अंबानी चलाते हैं। वित्त वर्ष 2006-07 में इन सेक्टर को मिलने वाली 1873 करोड़ की छूट वित्त वर्ष 2016-17 में बढ़कर 4471 करोड़ रुपये (संशोधित आंकड़े) हो गयी।''
मेहता ने दावा किया कि गरीब और आम लोगों को प्रभावित करने वाला खाद्य एवं आपूर्ति का बजट भी बीजेपी सरकार ने 130 करोड़ रुपये से घटाकर 52 करोड़ रुपये कर दिया।
मेहता ने आरोप लगाया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए भी नर्मदा परियोजना फंड से पैसा दिया जा रहा है।
मेहता ने दावा किया कि गुजरात के वित्त मंत्री ने विधान सभा में बताया कि नर्मदा प्रोजेक्ट फंड से तीन हजार करोड़ रुपये सरदार पटेल की मूर्ति बनाने के लिए दिए गए हैं।
मेहता ने पूछा कि सरकार सिंचाई और किसानों के हित के लिए बनाए गए फंड का पैसा मूर्ति बनाने में कैसे खर्च कर सकती है?
मेहता ने नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहा कि उनके शीर्ष पर आने से पहले बीजेपी अलग तरह की पार्टी थी।
मेहता ने द वायर से कहा कि उन्होंने नरेंद्र मोदी से साल 2002 में शुरू हुए मतभेदों के चलते ही साल 2007 बीजेपी छोड़ी थी।
चुनाव आयोग ने गुजरात में होने वाले विधान सभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन उससे पहले ही गुजरात इलेक्शन मोड में आ चुका है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं।
माना जा रहा है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात समेत पूरे भारत में जो लहर थी, वैसी लहर आज बीजेपी के पक्ष में नहीं है।
2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी। इसके साथ ही बीजेपी की झोली में 60 फीसदी वोट गए थे, लेकिन मौजूदा दौर में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में काफी कमी आई है।
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है ताकि अपने गढ़ को वो बचा सकें।
दरअसल, नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली जाने के बाद गुजरात बीजेपी में एक रिक्तता आई है। साथ ही राज्यस्तरीय शासन-तंत्र में भी मोदी की कमी महसूस हुई है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन साल में ही गुजरात में दो बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े हैं। पहले आनंदीबेन पटेल और अब विजय रुपाणी
गुजरात में हाल के दिनों में पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलनों ने भी पाटीदारों को बीजेपी से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर साल 2015 से ही पाटीदार समाज बीजेपी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी लागू की जिससे भारत के आर्थिक विकास दर में गिरावट आई। इससे भी बीजेपी और पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है।
वर्ल्ड बैंक समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने आगामी समय में भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम रहने की आशंका जताई है। इसके अलावा बेरोजगारी और महंगाई की वजह से भी बीजेपी सरकार की लोकप्रियता और जनाधार में कमी आई है।
चूंकि गुजरात एक व्यापार प्रधान राज्य है, इसलिए अर्थव्यवस्था की रफ्तार का सीधा-सीधा असर यहां के जनमानस पर पड़ता है।
जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। लिहाजा, उनका रुझान भी बीजेपी से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है।
पिछले कुछ सालों में गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में दलितों पर हुई हिंसा की वजह से भी दलित समाज का बीजेपी से मोहभंग होना स्वभाविक है। ऊना और बड़ोदरा में बड़े पैमाने पर दलित इसकी दस्तक पहले ही दे चुके हैं।
आदिवासी समाज भी बीजेपी सरकार की नीतियों और कार्यों से गुस्से में है क्योंकि अभी तक उन्हें विकास के 'गुजरात मॉडल' का कोई लाभ हासिल नहीं हो सका है।
गुजरात में आबादी के हिसाब से पांचवा स्थान रखने वाले आदिवासी समाज बीजेपी को ही समर्थन देता रहा है।
लिहाजा, विधानसभा की कुल 182 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 27 में से 14 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने से डूब क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी बहुल गांव ही आए हैं। उनका सही ढंग से विस्थापन नहीं हो सका है, इससे जनजातीय समुदाय में बीजेपी के खिलाफ आक्रोश है। इस वजह से माना जा रहा है कि उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
इन्हीं वजहों से 22 सालों से सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस को गुजरात में परिवर्तन की उम्मीद दिखाई दे रही है। राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत, गिरती अर्थव्यवस्था पर चौतरफा घिरी मोदी सरकार, दलित-आदिवासियों का बीजेपी से होता मोहभंग देख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ताबड़तोड़ गुजरात दौरे कर रहे हैं। बीजेपी की तरह ही कांग्रेस सोशल मीडिया को हथियार के रूप में प्रयोग रही है। कांग्रेस गुजरात में धार्मिक, जातीय और अन्य लामबंदी कर सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है।