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सरदार सरोवर बांध: पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम लेना भूल गए मोदी

सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की परिकल्पना भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल ने की थी। बाद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की नींव रखी थी।

लेकिन मोदी ने अपने सम्बोधन में सरदार पटेल का नाम तो लिया, लेकिन सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की नींव रखने वाले भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम लेना भूल गए।

सवाल उठता है कि क्या ऐसा मोदी से अनजाने में हुआ? सच्चाई यह है कि मोदी पिछले कई सालों से कहते आ रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार ने 60 सालों में कोई काम नहीं किया ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण करते समय पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम किस मुँह से लेते।

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 3 साल के शासन में कोई काम नहीं किया है।

अभी तक कश्मीर में जवाहर टनल (कांग्रेस के मनमोहन सिंह सरकार का प्रोजेक्ट), ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे लम्बा नदी पुल (कांग्रेस के मनमोहन सिंह सरकार का प्रोजेक्ट), सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना (कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार का प्रोजेक्ट) सहित कई परियोजनाओं का मोदी ने लोकार्पण किया। वे सभी कांग्रेस सरकार की देन है।

अगर आरएसएस और बीजेपी की भाषा में कहा जाए तो मोदी ने केवल तस्वीर खिंचवाने का काम किया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा नदी पर बनने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना सरदार सरोवर नर्मदा बांध का आज लोकार्पण करते हुए पिछले सात दशकों में इस परियोजना में आई तमाम बाधाओं का उल्लेख किया और उम्मीद जताई कि यह परियोजना नए भारत के निर्माण में सौ करोड़ भारत वासियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी।

मोदी ने इस बांध परियोजना के लोकार्पण के बाद यहां एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व बैंक सहित कई पक्षों ने सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न की।

उन्होंने कहा कि उनके पास हर उस आदमी का कच्चा चिट्ठा है, जिसके कारण इस बांध परियोजना में विलंब हुआ।

उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा भी आया, जब विश्व बैंक ने इस परियोजना के लिए ऋण देने से इंकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए वह दो लोगों के आभारी हैं- सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबा साहेब अंबेडकर।

लेकिन सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की नींव रखने वाले भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम लेना भूल गए।

उन्होंने कहा, ''भारत के लौह पुरुष की आत्मा आज जहां कहीं भी होगी,  वह हम पर ढेर सारे आशीर्वाद बरसा रही होगी।''

उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने एक दिव्य दृष्टि की तरह इस गुजरात क्षेत्र में सिंचाई और जल संकट को देखते हुए नर्मदा पर बांध की परिकल्पना की थी।

मोदी ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मंत्री परिषद में रहते हुए देश के विकास के लिए तमाम योजनाओं की परिकल्पना की थी।

उन्होंने कहा कि अगर ये दोनों महापुरुष अधिक समय तक जीवित रहते तो देश को उनकी प्रतिभा का और भी लाभ मिलता।

नर्मदा बांध का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह बांध आधुनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एक विषय होगा, साथ ही यह देश की ताकत का प्रतीक भी बनेगा।

उन्होंने कहा कि पर्यावरणविदों तथा कुछ अन्य लोगों ने इसका विरोध किया था। साथ ही विश्व बैंक ने इस परियोजना के लिए धन देने से मना कर दिया था।

उन्होंने कहा कि इस बांध परियोजना से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के करोड़ों किसानों का भाग्य बदलेगा।

नर्मदा बांध परियोजना में हुए विलंब का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह इसे राजनीति से नहीं जोड़ रहे हैं अन्यथा उनके पास उन सभी लोगों का कच्चा चिट्ठा है जिन्होंने इस परियोजना में बाधाएं उत्पन्न की, आरोप लगाए और षडयंत्र किया।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जब-जब नर्मदा नदी का सम्मान करने वाली सरकारे आईं, तब-तब इस परियोजना के कार्य में काफी गति आई और बाकी समय इस परियोजना का काम तेजी से नहीं बढ़ा।

उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नर्मदा बांध के लिए अनशन भी किया था।

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण किया। इस बांध की उंचाई को 138..68 मीटर तक बढ़ाया गया है।

सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की परिकल्पना भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल ने 1946 में की थी। बाद में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस परियोजना की नींव रखी थी।

इसके बाद से इस परियोजना का काम पिछले सात दशकों से रूक-रूक कर चलता रहा। इस बांध परियोजना से पानी और यहां उत्पादित होने वाली बिजली से चार राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान को लाभ मिलेगा।

मोदी राज में 4 साल के उच्चतम स्तर पर चालू बचत घाटा

भारत में पीएम नरेंद्र मोदी के शासनकाल में व्यापार घाटा बढ़ने से देश का चालू खाते का घाटा बढ़कर चार साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।

वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में यह तेजी से बढ़कर 14.3 अरब डॉलर हो गया।

यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.4 फीसदी है।

वित्त वर्ष 2016-17 की इसी तिमाही में चालू खाते का घाटा (कैड) 0.4 अरब डॉलर या जीडीपी का 0.1 प्रतिशत था। मार्च 2017 को समाप्त तिमाही में यह 3.4 अरब डॉलर (0.6 प्रतिशत) था।

रिजर्व बैंक के अनुसार, ''सालाना आधार पर चालू खाते का घाटा में वृद्धि का मुख्य कारण व्यापार घाटा बढ़ना है। वस्तुओं के निर्यात के मुकाबले आयात बढ़ने के कारण यह 41.2 अरब डॉलर रहा।''

सामान्य रूप से चालू खाते का घाटा विदेशी मुद्रा के प्रवाह और निकासी के अंतर को बताता है।

भारत का निर्यात अगस्त महीने में 10.29 प्रतिशत बढ़कर 23.81 अरब डॉलर रहा। पिछले चार महीने में यह सर्वाधिक वृद्धि है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पादों, इंजीनियरिंग और रसायन निर्यात में वृद्धि से कुल निर्यात बढ़ा है।

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में आयात भी 21.02 प्रतिशत बढ़कर 35.46 अरब डॉलर हो गया जो एक साल पहले इसी महीने में 29.3 अरब डॉलर था। आलोच्य महीने में व्यापार घाटा बढ़कर 11.64 अरब डॉलर हो गया।

मुख्य रूप से सोने का आयात बढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ा है।

सोने का आयात अगस्त महीने में 69 प्रतिशत बढ़कर 1.88 अरब डॉलर रहा।

अगस्त माह में तेल का आयात भी 14.22 प्रतिशत बढ़कर 7.75 अरब डॉलर हो गया। अप्रैल-अगस्त के दौरान कुल निर्यात 8.57 प्रतिशत बढ़कर 118.57 अरब डॉलर रहा,  जबकि आयात 26.63 प्रतिशत बढ़कर 181.71 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इससे व्यापार घाटा बढ़कर 63.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

गुजरात में बुलेट ट्रेन उद्घाटन: नरेंद्र मोदी के पूरे चुनाव अभियान का हिस्सा है

जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने भारत में पहले बुलेट ट्रेन नेटवर्क के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया है।

ये ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच दौड़ेगी। इसकी ज़्यादातर फ़ंडिंग जापान के मिलने वाले $17 अरब (क़रीब 1088 अरब रुपये) के कर्ज़ से होगी।

उम्मीद जताई जा रही है कि इससे 500 किलोमीटर की यात्रा करने में अभी लगने वाला 8 घंटे का समय घटकर तीन घंटे का रह जाएगा।

गुजरात में बुलेट ट्रेन के नाम पर जिस तरह से सीक्वेंस में इवेंट का आयोजन चल रहा है, ये पूरे चुनाव अभियान का हिस्सा है।

गुजरात को मेट्रो देने की बात चली थी, तब जब मोदी मुख्यमंत्री बने थे। 2001 में मोदी मुख्यमंत्री बने थे और यहां से 2014 में प्रधानमंत्री बन कर चले गए। गुजरात में मेट्रो ट्रेन आज तक शुरू नहीं हो पाई है।

उसका काम अब जाकर शुरू हुआ है। कोशिश बहुत चल रही है कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले उसका छोटा-सा हिस्सा भी शुरू हो जाए।

मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद कई महीनों तक गुजरात आए भी नहीं, वाइब्रेंट गुजरात में आए थे, लेकिन उसके बाद लंबे समय तक नहीं आए, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय नज़दीक आ रहा है उनकी गुजरात की यात्राएं बढ़ती जा रही हैं।

इसकी वजहें भी हैं क्योंकि जैसे विशाल पेड़ के नीचे दूसरा पेड़ नहीं उग पाता है, उसी तरह से मोदी के जाने के बाद जो भी आए, चाहे वो आनंदीबेन पटेल हों या विजय रुपाणी हों- वे लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए।

मोदी लोगों को रिझाने की कोशिश बहुत कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्थिति और जो दिखाने की कोशिश हो रही है, उसमें काफ़ी फर्क है।

अभी पिछले दिनों अहमदाबाद में बारिश हुई तो सारी सड़कें ध्वस्त हो गईं। ख़बरें लगातार आती रही हैं कि लोग सड़कों पर घायल हो कर अस्पताल पहुंच रहे थे।

इसके बाद ख़बर आई कि शिंजो आबे आ रहे हैं तो उन सड़कों को चमकाया जाने लगा, जिन पर उन्हें जाना था।

आम लोगों को ये लगने लगा है कि हम लोगों के लिए कुछ नहीं करते, लेकिन बाहरी मेहमान के लिए गुजरात का पूरा प्रशासन जुट गया।

मोदी इस आयोजन के बहाने चुनावी राजनीति ही कर रहे हैं। शिद्दी सैयद मस्जिद में फ़ंक्शन हुआ, लेकिन इस मस्जिद से जुड़े लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया। उस मस्जिद के ऐतिहासिक संदर्भ बताने का काम उन्होंने ख़ुद किया। मस्जिद के लोगों को इजाज़त नहीं मिली।

अगर पीछे देखें तो मोदी ने जब सद्भावना का व्रत रखा था, तब उन्होंने मुसलमानी टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। तो एक तरफ़ तो दुनिया भर में अपनी छवि मज़बूत करने के लिए दो क़दम आगे चलते हैं, लेकिन भारत के मतदाताओं के लिए वो एक क़दम पीछे चलते हैं।

गुजरात पर दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है, उस राज्य पर ऐसी चीज़ लाद रहे हैं जिससे क्या फर्क़ पड़ेगा, कितना फर्क़ पड़ेगा।

नर्मदा बांध के पास सरदार पटेल की मूर्ति लगाई जा रही है, इस मूर्ति को बनाने का चुनावी फ़ायदा लेने के लिए राज्य में यात्रा निकल रही है, लेकिन इस यात्रा में सरदार पटेल की तस्वीर है ही नहीं, केवल नरेंद्र मोदी हैं और राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

ये चुनावी अभियान है, इसलिए इसका उद्घाटन गुजरात से हो रहा है, महाराष्ट्र से क्यों नहीं हो रहा है?

इन सबकी वजह से गुजरात के सोशल मीडिया पर लोग अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं और 'विकास पागल हो गया है' टॉप ट्रेंड बन गया है।

लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस इसके पीछे है, लेकिन ये हक़ीकत नहीं है। कांग्रेस तो लोगों के ग़ुस्से पर सवारी करने की कोशिश कर रही है।

मौजूदा समय में अगर भारतीय जनता पार्टी की ताक़त या मज़बूती की बात करें तो नरेंद्र मोदी के समय में गुजरात में बीजेपी कभी उतनी कमज़ोर नहीं रही जितना कि इस समय है।

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की ताक़त की सबसे बड़ी वजह पाटीदारों का सहयोग था।

बीजेपी के सत्ता में आने की सबसे बड़ी वजहों में एक पाटीदारों का साथ था, लेकिन मौजूदा समय में ये समुदाय विद्रोह पर उतारू है।

उनके विरोध को बांटने की कोशिश हो रही है, लेकिन ये समुदाय विद्रोह पर उतारू है। ओबीसी भी बीजेपी से नाराज़ चल रही है।

आम आदमी पार्टी ने गुजरात में शिंज़ो आबे के आने पर कोई प्रदर्शन नहीं किया है, ना ही करने वाली है, लेकिन राज्य प्रशासन, उनके एक छोटे से नेता को घर से निकलने नहीं दे रहा है।

ऐसी ज़रूरत क्यों पड़ रही है? ये समझने की ज़रूरत है। ये सब स्थितियां बताती हैं कि जो बताने की कोशिश हो रही है स्थिति वैसी है नहीं।

इन सबके बीच बीजेपी 182 में से 150 सीटें जीतने का दावा कर रही है। इस मर्म को भी समझने की ज़रूरत है। 1985 में कांग्रेस ने माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में इतनी सीटें जीती थीं।

नरेंद्र मोदी ने गुजरात में तमाम झंडे गाड़े, लेकिन माधव सिंह सोलंकी का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए। लिहाज़ा बीजेपी जो भी दावा करे, जो भी बताने की कोशिश करे, लेकिन हक़ीकत यही है कि पार्टी के अंदर चिंता है।

नरेंद्र मोदी रोहिंग्या संकट पर हिंदू कार्ड खेल रहे हैं!

म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को अवैध और देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए भारत सरकार ने हाल ही में उन्हें भारत से निकालने का फ़ैसला किया है। ये फ़ैसला ऐसे समय में लिया गया है जब म्यांमार से हज़ारों रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के सुरक्षाबलों की कार्रवाई से अपनी जान बचाकर बांग्लादेश सीमा की ओर भाग रहे हैं।

भारत ने उन रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत से बाहर निकालने का फ़ैसला किया है जो कई सालों से यहां शरण लिए हुए हैं।

भारत सरकार ने रोहिंग्या विद्रोहियों के ख़िलाफ़ म्यांमार सुरक्षाबलों की कार्रवाई का भी समर्थन किया है।

भारत में ज़्यादातर रोहिंग्या शरणार्थी पांच साल पहले म्यांमार में सुरक्षाबलों और बौद्ध अतिवादियों के अत्याचारों से जान बचाकर भारत आए थे।

शरणार्थियों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 14 हजार से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी हैं।

ताज़ा घटनाक्रम के कारण हज़ारों रोहिंग्या मुसलमान एक बार फिर म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश की ओर भाग रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन ने रोहिंग्या संकट को बेहद चिंताजनक क़रार दिया है।

म्यांमार में आंग सान सू ची की नज़रबंदी और लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के दौरान वहां के हज़ारों नागरिकों और राजनीतिक नेताओं ने भारत में शरण ली थी।

अपने आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के नेतृत्व में हजारों तिब्बती हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तरांचल में सालों से रह रहे हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के हजारों हिन्दू शरणार्थियों ने भारत में शरण ले रखी है।

नेपाली नागरिकों के लिए भारत खुला है। लाखों नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और यहाँ काम करते हैं।

श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान लाखों तमिलों ने भारत में शरण ली थी।

ऐसे में सवाल उठता है कि सवा अरब की आबादी वाले भारत में मोदी सरकार को कुछ हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों से ही दिक्कत क्यों है?

कुछ पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि मोदी सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों का विरोध कर 'हिंदू कार्ड' खेल रही है।

टीवी चैनलों पर रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा क़रार दिया जा रहा है।

बहस में बताया जाता है कि इन शरणार्थियों के अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी संगठनों से रिश्ते हैं और वे भारत में आतंकवाद का नेटवर्क फैला रहे हैं।

उनकी संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती है। कुछ चैनल तो अपनी नफ़रतों में इतना खुलकर सामने आए कि उन्होंने 'विदेशी मुसलमानों भारत छोड़ो' का नारा दे डाला है।

रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में मौजूदा मोदी सरकार की नीति कोई हैरत की बात नहीं है।

नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में अपने चुनाव अभियान के दौरान असम में कहा था कि वे केवल हिंदू शरणार्थियों को देश में आने देंगे। गैर हिंदू शरणार्थियों को शरण नहीं दी जाएगी और जो ग़ैर-हिंदू अवैध शरणार्थी देश में हैं, उन्हें यहां से निकाल दिया जाएगा।

भारत में कुछ लोगों के द्वारा मुसलमानों को लेकर नफ़रत की भावना बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। मीडिया के एक वर्ग का ये सबसे पसंदीदा विषय है। हर शाम कुछ न्यूज़ चैनलों पर घृणा की लहर चल रही होती है।

भारत में जो बातें लोग दिलों में रखते थे, अब वह खुलकर उसे जता रहे हैं। पूरा समाज इस समय बंटा हुआ दिखता है।

रोहिंग्या मुसलमान भी भारत की इसी नफ़रत की राजनीति का शिकार हो गए हैं। उन्हें भारत से निकालना आसान नहीं होगा क्योंकि म्यांमार उन्हें अपना नागरिक ही स्वीकार नहीं करता और शरणार्थियों को जबरन किसी दूसरे देश नहीं भेजा जा सकता है।

लेकिन मोदी सरकार द्वारा उन्हें निर्वासित करने की घोषणा से इन शरणार्थियों का जीवन और भी कठिन हो गया है।

मीडिया के एक वर्ग ने उन्हें जेहादी और उग्रवादी बताकर आम लोगों के दिलोदिमाग में उनके बारे में संदेह पैदा कर दिए हैं।

रोहिंग्या शरणार्थी किसी तरह अपनी जान बचाकर हज़ारों मील का सफर तय करके भारत पहुंचे थे।

यहाँ भी शिविरों में उनका जीवन एक ऐसी मौत की तरह है जिसे जीने के लिए वे मजबूर हैं।

अपने देश (म्यांमार) में उन्हें नस्ल और धर्म के कारण अत्याचार का सामना करना पड़ा। म्यांमार में उनकी बस्तियां जल रही हैं। लाखों लोग सुरक्षित पनाह लेने के लिए हर तरफ़ भाग रहे हैं।

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इन स्थितियों में भारत में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने का मोदी सरकार का फैसला अमानवीय है। इससे जातीय और धार्मिक घृणा का भी पता चलता है।

मोदी भक्त ही चलाते हैं झूठ की ज्यादातर फैक्ट्रियां: गौरी लंकेश का आखिरी संपादकीय

पत्रकार गौरी लंकेश की कर्नाटक में मंगलवार (पांच सितंबर) को गोली मारकर हत्या कर दी गयी। उनकी हत्या से पत्रकारों समेत समस्त बुद्धिजीवी वर्ग में आक्रोश है।

हिंदुत्ववादी संगठन सोशल मीडिया पर यूजर्स के निशाने पर हैं। गौरी लंकेश अपनी पत्रिका में और सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी संगठनों और बीजेपी सरकार की आलोचना करती रहती थीं।

सामाजिक कार्यकर्ता लंकेश की हत्या और साल 2015 में कर्नाटक में हुई एमएम कलबुर्गी की हत्या के बीच साम्य देख रहे हैं। इससे पहले गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के तार भी दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े बताए गए थे।

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने गौरी लंकेश द्वारा अपनी पत्रिका में लिखे आखिरी संपादकीय का अपने मित्र की मदद से अनुवाद किया है। रवीश ने इसे अपने ब्लॉग क़स्बा पर पेश किया है। नीचे रवीश कुमार के इंट्रो के साथ ही लंकेश का संपादकीय।

रवीश कुमार का इंट्रो: गौरी लंकेश नाम है पत्रिका का। 16 पन्नों की यह पत्रिका हर हफ्ते निकलती है। 15 रुपये कीमत होती है। 13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आख़िरी साबित हुआ। हमने अपने मित्र की मदद से उनके आख़िरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि आपको पता चल सके कि कन्नडा में लिखने वाली इस पत्रकार की लिखावट कैसी थी, उसकी धार कैसी थी। हर अंक में गौरी 'कंडा हागे' नाम से कालम लिखती थीं। कंडा हागे का मतलब होता है जैसा मैने देखा। उनका संपादकीय पत्रिका के तीसरे पन्ने पर छपता था। इस बार का संपादकीय फेक न्यूज़ पर था और उसका टाइटल था- फेक (झूठा) न्यूज़ के ज़माने में-

गौरी लंकेश का आखिरी संपादकीय: इस हफ्ते के इश्यू में मेरे दोस्त डॉ वासु ने गोएबल्स की तरह इंडिया में फेक न्यूज़ बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है। झूठ की ऐसी फैक्ट्रियां ज़्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं। झूठ की फैक्ट्री से जो नुकसान हो रहा है मैं उसके बारे में अपने संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी।

अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी। उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया। फैलाने वाले संघ के लोग थे। ये झूठ क्या है? झूठ ये है कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी, वहीं गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करनी है, उसके पहले दस लाख का डिपाज़िट करना होगा, मूर्ति की ऊंचाई कितनी होगी, इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी, दूसरे धर्म के लोग जहां रहते हैं, उन रास्तों से विसर्जन के लिए नहीं ले जा सकते हैं। पटाखे वगैरह नहीं छोड़ सकते हैं।

संघ के लोगों ने इस झूठ को खूब फैलाया। ये झूठ इतना ज़ोर से फैल गया कि अंत में कर्नाटक के पुलिस प्रमुख आर के दत्ता को प्रेस बुलानी पड़ी और सफाई देनी पड़ी कि सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है। ये सब झूठ है।

इस झूठ का सोर्स जब हमने पता करने की कोशिश की तो वो जाकर पहुंचा POSTCARD.IN नाम की वेबसाइट पर। यह वेबसाइट पक्के हिन्दुत्ववादियों की है। इसका काम हर दिन फ़ेक न्यूज़ बनाकर बनाकर सोशल मीडिया में फैलाना है।

11 अगस्त को POSTCARD.IN में एक हेडिंग लगाई गई। कर्नाटक में तालिबान सरकार। इस हेडिंग के सहारे राज्य भर में झूठ फैलाने की कोशिश हुई। संघ के लोग इसमें कामयाब भी हुए। जो लोग किसी न किसी वजह से सिद्धारमैया सरकार से नाराज़ रहते हैं, उन लोगों ने इस फ़ेक न्यूज़ को अपना हथियार बना लिया। सबसे आश्चर्य और खेद की बात है कि लोगों ने भी बग़ैर सोचे समझे इसे सही मान लिया। अपने कान, नाक और भेजे का इस्तमाल नहीं किया।

पिछले सप्ताह जब कोर्ट ने राम रहीम नाम के एक ढोंगी बाबा को बलात्कार के मामले में सज़ा सुनाई, तब उसके साथ बीजेपी के नेताओं की कई तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल होने लगी। इस ढोंगी बाबा के साथ मोदी के साथ-साथ हरियाणा के बीजेपी विधायकों की फोटो और वीडियो वायरल होने लगा। इससे बीजेपी और संघ परिवार परेशान हो गए।

इसे काउंटर करने के लिए गुरमीत बाबा के बाज़ू में केरल के सी पी एम के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बैठे होने की तस्वीर वायरल करा दी गई। यह तस्वीर फोटोशाप थी।

असली तस्वीर में कांग्रेस के नेता ओमन चांडी बैठे हैं, लेकिन उनके धड़ पर विजयन का सर लगा दिया गया और संघ के लोगों ने इसे सोशल मीडिया में फैला दिया।

शुक्र है संघ का यह तरीका कामयाब नहीं हुआ क्योंकि कुछ लोग तुरंत ही इसका ओरिजनल फोटो निकाल लाए और सोशल मीडिया में सच्चाई सामने रख दी।

एक्चुअली, पिछले साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के फ़ेक न्यूज़ प्रोपेगैंडा को रोकने या सामने लाने वाला कोई नहीं था। अब बहुत से लोग इस तरह के काम में जुट गए हैं, जो कि अच्छी बात है। पहले इस तरह के फ़ेक न्यूज़ ही चलती रहती थी, लेकिन अब फ़ेक न्यूज़ के साथ-साथ असली न्यूज़ भी आनी शुरू हो गए हैं और लोग पढ़ भी रहे हैं।

उदाहरण के लिए 15 अगस्त के दिन जब लाल क़िले से प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया तो उसका एक विश्लेषण 17 अगस्त को ख़ूब वायरल हुआ। ध्रुव राठी ने उसका विश्लेषण किया था। ध्रुव राठी देखने में तो कालेज के लड़के जैसा है, लेकिन वो पिछले कई महीनों से मोदी के झूठ की पोल सोशल मीडिया में खोल देता है।

पहले ये वीडियो हम जैसे लोगों को ही दिख रहा था, आम आदमी तक नहीं पहुंच रहा था, लेकिन 17 अगस्त को यह वीडियो एक दिन में एक लाख से ज़्यादा लोगों तक पहुंच गया। (गौरी लंकेश अक्सर मोदी को बूसी बसिया लिखा करती थीं जिसका मतलब है जब भी मुंह खोलेंगे झूठ ही बोलेंगे)।

ध्रुव राठी ने बताया कि राज्य सभा में 'बूसी बसिया' की सरकार ने राज्य सभा में महीना भर पहले कहा कि 33 लाख नए करदाता आए हैं। उससे भी पहले वित्त मंत्री जेटली ने 91 लाख नए करदाताओं के जुड़ने की बात कही थी। अंत में आर्थिक सर्वे में कहा गया कि सिर्फ 5 लाख 40 हज़ार नए करदाता जुड़े हैं। तो इसमें कौन सा सच है, यही सवाल ध्रुव राठी ने अपने वीडियो में उठाया है।

आज की मेनस्ट्रीम मीडिया केंद्र सरकार और बीजेपी के दिए आंकड़ों को जस का तस वेद वाक्य की तरह फैलाती रहती है। मेन स्ट्रीम मीडिया के लिए सरकार का बोला हुआ वेद वाक्य हो गया है। उसमें भी जी टीवी न्यूज चैनल हैं, वो इस काम में दस कदम आगे हैं।

उदाहरण के लिए, जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो उस दिन बहुत सारे अंग्रज़ी टीवी चैनलों ने ख़बर चलाई कि सिर्फ एक घंटे में ट्वीटर पर राष्ट्रपति कोविंद के फोलोअर की संख्या 30 लाख हो गई है। वो चिल्लाते रहे कि 30 लाख बढ़ गया, 30 लाख बढ़ गया। उनका मकसद यह बताना था कि कितने लोग कोविंद को सपोर्ट कर रहे हैं।

बहुत से टीवी चैनल आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की टीम की तरह हो गए हैं। संघ का ही काम करते हैं। जबकि सच ये था कि उस दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सरकारी अकाउंट नए राष्ट्रपति के नाम हो गया। जब ये बदलाव हुआ, तब राष्ट्रपति भवन के फोलोअर अब कोविंद के फोलोअर हो गए।

इसमें एक बात और भी गौर करने वाली ये है कि प्रणब मुखर्जी को भी तीस लाख से भी ज्यादा लोग ट्वीटर पर फोलो करते थे।

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस तरह के फैलाए गए फ़ेक न्यूज़ की सच्चाई लाने के लिए बहुत से लोग सामने आ चुके हैं। ध्रुव राठी वीडियो के माध्यम से ये काम कर रहे हैं। प्रतीक सिन्हा altnews.in नाम की वेबसाइट से ये काम कर रहे हैं। होक्स स्लेयर, बूम और फैक्ट चेक नाम की वेबसाइट भी यही काम कर रही है।

साथ ही साथ THEWIERE.IN, SCROLL.IN, NEWSLAUNDRY.COM, THEQUINT.COM जैसी वेबसाइट भी सक्रिय हैं। मैंने जिन लोगों के नाम बताए हैं, उन सभी ने हाल ही में कई फ़ेक न्यूज़ की सच्चाई को उजागर किया है। इनके काम से संघ के लोग काफी परेशान हो गए हैं। इसमें और भी महत्व की बात यह है कि ये लोग पैसे के लिए काम नहीं कर रहे हैं। इनका एक ही मकसद है कि फासिस्ट लोगों के झूठ की फैक्ट्री को लोगों के सामने लाना।

कुछ हफ्ते पहले बंगलुरू में ज़ोरदार बारिश हुई। उस टाइम पर संघ के लोगों ने एक फोटो वायरल कराया। कैप्शन में लिखा था कि नासा ने मंगल ग्रह पर लोगों के चलने का फोटो जारी किया है। बंगलुरू नगरपालिका बी बी एम सी ने बयान दिया कि ये मंगल ग्रह का फोटो नहीं है।

संघ का मकसद था, मंगल ग्रह का बताकर बंगलुरू का मज़ाक उड़ाना। जिससे लोग यह समझें कि बंगलुरू में सिद्धारमैया की सरकार ने कोई काम नही किया, यहां के रास्ते खराब हो गए हैं, इस तरह के प्रोपेगैंडा करके झूठी खबर फैलाना संघ का मकसद था।

लेकिन ये आरएसएस को भारी पड़ गया था क्योंकि ये फोटो बंगलुरू का नहीं, महाराष्ट्र का था, जहां बीजेपी की सरकार है।

हाल ही में पश्चिम बंगाल में जब दंगे हुए तो आरएसएस के लोगों ने दो पोस्टर जारी किए। एक पोस्टर का कैप्शन था, बंगाल जल रहा है, उसमें प्रोपर्टी के जलने की तस्वीर थी। दूसरे फोटो में एक महीला की साड़ी खींची जा रही है और कैप्शन है बंगाल में हिन्दु महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है।

बहुत जल्दी ही इस फोटो का सच सामने आ गया। पहली तस्वीर 2002 के गुजरात दंगों की थी जब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार गुजरात में थी। दूसरी तस्वीर भोजपुरी सिनेमा के एक सीन की थी।

सिर्फ आरएसएस ही नहीं, बीजेपी के केंद्रीय मंत्री भी ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में माहिर हैं। उदाहरण के लिए, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फोटो शेयर किया कि जिसमें कुछ लोग तिरंगे में आग लगा रहे थे। फोटो के कैप्शन पर लिखा था गणतंत्र दिवस पर हैदराबाद में तिरंगे को आग लगाया जा रहा है।

अभी गूगल इमेज सर्च एक नया अप्लिकेशन आया है, उसमें आप किसी भी तस्वीर को डालकर जान सकते हैं कि ये कहां और कब की है? प्रतीक सिन्हा ने यही काम किया और उस अप्लिकेशन के ज़रिये गडकरी के शेयर किए गए फोटो की सच्चाई उजागर कर दी।

पता चला कि ये फोटो हैदराबाद का नहीं है। पाकिस्तान का है जहां एक प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन भारत के विरोध में तिरंगे को जला रहा है।

इसी तरह एक टीवी पैनल के डिस्कशन में बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि सरहद पर सैनिकों को तिरंगा लहराने में कितनी मुश्किलें आती हैं, फिर जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में तिरंगा लहराने में क्या समस्या है? यह सवाल पूछकर संबित ने एक तस्वीर दिखाई।

बाद में पता चला कि यह एक मशहूर तस्वीर है। मगर इसमें भारतीय नहीं, अमरीकी सैनिक हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीकी सैनिकों ने जब जापान के एक द्वीप पर क़ब्ज़ा किया, तब उन्होंने अपना झंडा लहराया था।

मगर फोटोशाप के ज़रिये संबित पात्रा लोगों को चकमा दे रहे थे। लेकिन ये उन्हें काफी भारी पड़ गया। ट्वीटर पर संबित पात्रा का लोगों ने काफी मज़ाक उड़ाया।

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक तस्वीर साझा की। लिखा कि भारत सरकार ने 50,000 किलोमीटर रास्तों पर तीस लाख एलईडी बल्ब लगा दिए हैं। मगर जो तस्वीर उन्होंने लगाई, वो फेक निकली।

यह तस्वीर भारत की नहीं, 2009 में जापान के सडकों की तस्वीर थी।

इसी पीयूष गोयल ने पहले भी एक ट्वीट किया था कि कोयले की आपूर्ति में सरकार ने 25,900 करोड़ की बचत की है। उस ट्वीट की तस्वीर भी झूठी निकली।

छत्तीसगढ़ के पी डब्ल्यू डी मंत्री राजेश मूणत ने एक ब्रिज का फोटो शेयर किया। अपनी सरकार की कामयाबी बताई। उस ट्वीट को 2000 लाइक मिले। बाद में पता चला कि वो तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं, वियतनाम की है।

ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में हमारे कर्नाटक के आरएसएस और बीजेपी लीडर भी कुछ कम नहीं हैं। कर्नाटक के सांसद प्रताप सिम्हा ने एक रिपोर्ट शेयर किया, कहा कि ये टाइम्स आफ इंडिया में आया है। उसकी हेडलाइन ये थी कि हिन्दू लड़की को मुसलमान ने चाकू मारकर हत्या कर दी।

दुनिया भर को नैतिकता का ज्ञान देने वाले प्रताप सिम्हा ने सच्चाई जानने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। किसी भी अखबार ने इस न्यूज को नहीं छापा था बल्कि फोटोशाप के ज़रिए किसी दूसरे न्यूज़ में हेडलाइन लगा दिया गया था और हिन्दू-मुस्लिम रंग दिया गया। इसके लिए टाइम्स आफ इंडिया के नाम का इस्तेमाल किया गया।

जब हंगामा हुआ कि ये तो फ़ेक न्यूज़ है तो सांसद ने डिलिट कर दिया, मगर माफी नहीं मांगी। साम्प्रदायिक झूठ फैलाने पर कोई पछतावा ज़ाहिर नहीं किया।

जैसा कि मेरे दोस्त वासु ने इस बार के कॉलम में लिखा है, मैंने भी बिना सोचे समझे एक फ़ेक न्यूज़ शेयर कर दिया। पिछले रविवार को पटना की अपनी रैली की तस्वीर लालू यादव ने फोटोशाप करके साझा कर दी। थोड़ी देर में दोस्त शशिधर ने बताया कि ये फोटो फर्ज़ी है। नकली है। मैंने तुरंत हटाया और ग़लती भी मानी।

यही नहीं, फेक और असली तस्वीर दोनों को एक साथ ट्वीट किया। इस गलती के पीछे सांप्रदायिक रूप से भड़काने या प्रोपेगैंडा करने की मंशा नहीं थी। फासिस्टों के ख़िलाफ़ लोग जमा हो रहे थे, इसका संदेश देना ही मेरा मकसद था। फाइनली, जो भी फ़ेक न्यूज़ को एक्सपोज़ करते हैं, उनको सलाम । मेरी ख़्वाहिश है कि उनकी संख्या और भी ज़्यादा हो।

म्यांमार में जारी हिंसा के डर से 123,000 रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश पहुंचे: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने बताया है कि म्यांमार के राखिने प्रांत में जारी हिंसा के कारण कम से कम 123,000 रोहिंग्या मुसलमान सीमा पार कर बांग्लादेश पहुंच गए हैं।

बांग्लादेश में यू एन एच सी आर के प्रवक्ता जोसेफ सूरजमोनी त्रिपुरा ने समाचार एजेंसी ए एफ ई को बताया कि हाल ही में पहुंचे शरणार्थियों में 30 हजार से ज्यादा पिछले 24 घंटे के दौरान पहुंचे हैं, जो अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों के मुताबिक, 123,000 में से सिर्फ छह हजार शरणार्थी अपने परिवार के सदस्यों के साथ कॉक्स बाजार जिले में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

मंगलवार को रोहिंग्या मुसलमानों का तांता लग गया। म्यांमार ने इस समुदाय को अपने यहां नागरिकता देने से इंकार कर दिया है और बांगलादेश ने इन्हें शरणार्थी का दर्जा दे दिया है।

ए एफ ई के मुताबिक, टेकनाफ इलाके में बंगाल की खाड़ी से होते हुए रोहिंग्या शरणार्थियों की नौका लगातार तट पर पहुंच रही हैं।

बांग्लादेश में करीब तीन से पांच लाख के बीच रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं, जिनमें से केवल 32 हजार को ही शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है और वे कॉक्स बाजार जिले में रहते हैं।

अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ए आर एस ए) के विद्रोहियों ने पिछले दो दिनों में उत्तरी म्यांमार के गांवों के सैकड़ों मकानों को आग के हवाले कर दिया। एक सरकारी समिति ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, विद्रोहियों ने औकप्युमा गांव में सुरक्षा बलों के साथ झड़प होने के बाद 50 घरों को आग के हवाले कर दिया और औंता गांव में भी 120 घर फूंक डाले। दिंगार, सॉकीनामा और होंटारया में विस्फोटक उपकरणों में विस्फोट करके 90 से ज्यादा घरों को आग के हवाले कर दिया गया।

म्यांमार के सुरक्षा बलों ने बताया कि थिनबॉग्वे गांव में आतंकवादियों ने 400 से अधिक घरों को आग के हवाले कर दिया।

विद्रोहियों ने उत्तरी राखिने में 25 अगस्त को 30 पुलिस चौकियों पर हमले किए थे। 31 अगस्त तक 52 से ज्यादा हमले हुए, जिनमें 13 सुरक्षाकर्मी मारे गए। हमलों के दौरान भागने की कोशिश कर रहे सात हिंदू और पांच दैंगनैत जाति के लोगों सहित 14 नागरिक मारे गए।

राखिने राज्य के करीब 38,000 रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सीमा की ओर पलायन कर गए हैं।

म्यांमार की सेना ने कहा कि सुरक्षाबलों ने 11,720 जनजातीय ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है और उन्हें मदद मुहैया कराई जा रही है। म्यांमार की सेना ने बताया कि ग्रामीणों का निकालने का अभियान जारी है।

क्या भारत का मुस्लिम फिर से वोट बैंक बन पायेगा?

जब बारिश से पूरा मुंबई बेहाल था तो इस मुसीबत की घड़ी में मुंबई के लोगों को मस्जिदों ने सहारा दिया।

जब मुसलमान इस तरह का कोई अच्छा काम करते है तो भारत के न्यूज़ चैनल्स इन कामों को नही दिखाते हैं। बस बगदादी को दिखाते रहते हैं क्योंकि इससे टीआरपी मिलती है। जबकि मुसलमानों द्वारा किये जा रहे अच्छे कामों को दिखाने से न्यूज़ चैनल्स को टीआरपी नहीं मिलती है!

भारत का 20 करोड़ मुसलमान आज न तो वोट बैंक हैं। ना ही टीआरपी न्यूज़ चैनल्स की निगाह में।

क्योंकि मुसलमानों से संबंधित कार्यक्रम दिखाने से न्यूज़ चैनल्स को विज्ञापन नहीं मिलते। वजह सबको पता है।

रही वोट बैंक की बात तो बीजेपी और आरएसएस ने कई सालों तक मुसलमानों को वोट बैंक कहकर कोसती रही परिणामस्वरूप मुसलमानों को ऐसा लगने लगा कि वोट बैंक होना गलत बात है।

और कई वजहों से मुसलमानों में इतना बिखराव आया कि आज मुसलमान कोई वोट बैंक नहीं है। इस तरह से मुसलमानों ने लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत को खो दिया। इसका सबसे ज्यादा फायदा हुआ बीजेपी और आरएसएस को।

बीजेपी और आरएसएस जो चाहती थी, मुसलमानों ने बीजेपी और आरएसएस की मुराद को पूरा किया।

आज बाबाओं ने अपने-अपने वोट बैंक बना लिए हैं, लेकिन मुसलमानों ने अपने वोट बैंक को ख़त्म कर दिया।

क्या भारत का मुस्लिम फिर से वोट बैंक बन पायेगा, यह बड़ा सवाल है!

हजरत मुहम्मद साहब के जमाने में भी ट्रिपल तलाक की व्यवस्था नहीं थी

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इंस्टैंट ट्रिपल तलाक़ को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद आज से भारत में मुस्लिम महिलाएं धर्मगुरुओं द्वारा जबरदस्ती थोपी गई इस गैर इस्लामिक कुप्रथा से आज़ाद हो गई। भले ही भारत 70 साल पहले आज़ाद हुआ हो, लेकिन वास्तव में भारतीय मुस्लिम महिलाएं आज के दिन ही आज़ाद हुई हैं। अब भारत की केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि कानून बनाकर इस कुप्रथा को हमेशा के लिए दफ़न कर दे ताकि अब भारत की किसी बेटी को 'सायरा बनो' नहीं बनना पड़े।

ऑल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को इस्लाम और देश की मुस्लिम महिलाओं की जीत करार देते हुए कहा कि इससे तलाक के नाम पर मुसलमान औरतों के साथ होने वाली नाइंसाफी पर रोक लगने की उम्मीद है।

ऑल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने पी टी आई से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम समाज के लिये ऐतिहासिक है। यह देश की मुस्लिम महिलाओं की जीत है, लेकिन उससे भी ज्यादा अहम यह है, कि यह इस्लाम की जीत है। उम्मीद है कि आने वाले वक्त में तीन तलाक को हमेशा के लिये खत्म कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अब तक तीन तलाक की वजह से मुस्लिम औरतों पर जुल्म होते रहे हैं, जबकि इस्लाम में कहीं भी तीन तलाक की व्यवस्था नहीं है। यह सिर्फ कुछ तथाकथित धर्मगुरुओं की बनायी हुई अन्यायपूर्ण व्यवस्था थी जिसने लाखों औरतों की जिंदगी बरबाद की है। इस फैसले से मुस्लिम औरतों को एक नई उम्मीद मिली है।

शाइस्ता ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत से छेड़छाड़ किये बगैर छह महीने के अंदर संसद में कानून बनाये जाने की बात कही है। मुझे विश्वास है कि यह कानून बिना किसी दबाव के बनेगा और मुस्लिम महिलाओं को खुशहाली का रास्ता देगा।''

तीन तलाक के मुकदमे में प्रमुख पक्षकार रहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसी तरह की टिप्पणी से इनकार करते हुए कहा कि बोर्ड मिल बैठकर आगे का कदम तय करेगा।

ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि अब देश में तीन तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय को रोका जा सकेगा।

उन्होंने कहा, ''हजरत मुहम्मद साहब के जमाने में भी तीन तलाक की व्यवस्था नहीं थी। हम चाहते हैं कि जिस प्रकार कानून बनाकर सती प्रथा को खत्म किया गया, वैसे ही तीन तलाक के खिलाफ भी सख्त कानून बने। मैं संसद से गुजारिश करता हूं कि वह इंसानियत से जुड़े इस मसले पर नैर्सिगक न्याय के तकाजे के अनुरूप कानून बनाए।''

सृजन घोटाले की सीबीआई जांच से खुलासे की उम्मीद

विपक्ष के बढ़ते दवाब के कारण बिहार की नीतीश सरकार ने भागलपुर सृजन एनजीओ फर्जीवाड़े की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी।

यह फर्जीवाड़ा 700 करोड़ रूपए से ज्यादा का है।

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री व बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर बिहार सरकार पर गुरूवार को प्रेस कांफ्रेंस कर जमकर हमला बोला। नीतीश और सुशील मोदी को इसमें लिप्त होने का आरोप लगाया। साथ ही सीबीआई से निष्पक्ष जांच कराने की मांग की।

उनका कहना था कि इसमें बडे बड़े लोग शरीक है जिन्हें हिरासत में लेना एसएसपी के बूते के बाहर है। सवालिया लहजे में तेजस्वी ने पूछा कि अब नीतीश कुमार की भष्ट्राचार पर जीरो टालरेंस वाली आत्मा कहां गई?

एक हद तक यह ठीक भी लग रहा। कल्याण विभाग के डिप्टी कलेक्टर रैंक के अधिकारी अरुण कुमार और नाजीर महेश मंडल को हिरासत में लेकर पूछताछ के दौरान भागलपुर के डीएम पर भी इनमें शरीक होने का आरोप लगाया।

उनका कहना था कि पीएनबी में कल्याण विभाग का खाता बंद कर बैंक आफ बड़ौदा में रूपए जमा कराके सृजन के खाते में ट्रांसफर किया जाए। तभी वहां से बीते साल नवंबर में 6 करोड़ रूपए का चेक काट कर बैक आफ बड़ौदा में रकम भेजी। इन दोनों से तीन रोज तक गहन पूछताछ एसएसपी के आवास पर एसआईटी और आर्थिक अपराध इकाई की टीम ने की थी।

इसके बाद से पुलिस आगे कुछ न कर पाने के हालात में थी। एसएसपी को कई दफा जानकारी लेने के बाबत फोन लगाया तो मोबाइल पर लगाया फोन डायवर्ट कर आवास फोन ड्यूटी पर एसएसपी ने कर दिया।

इससे भी जाहिर हुआ कि उनके पास आगे क्या करे और क्या न करे के हालात हो गए है। तभी वे पत्रकारों से कतराते रहे।

वैसे भी रिजर्व बैंक का नियम है कि यदि 30 करोड़ रूपए से ज्यादा का फर्जीवाड़ा बैंक में होता है तो मामला सीबीआई को सौप देना है। लिहाजा बिहार सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी।

यहां बताना जरूरी है कि सृजन के दफ्तर में लगी दर्जनों तस्वीरे बताती है कि रसूखदारों के सृजन महिला विकास सहयोग समिति से गहरे रिश्ते रहे है। इन रिश्तों की वजह से इनके प्यादों की हैसियत रैंक से ज्यादा हुई है।

एक दर्जन डीएम और डीडीसी और दूसरे अफसरों के गिरेबां पर हाथ डालना पुलिस के बूते के बाहर लगती है। इनमें कई अफसरों की पत्नियां भी शामिल है।

सृजन की फरार सचिव प्रिया कुमार और इनके पति अमित कुमार व पूर्व भू- अर्जन अधिकारी राजीव रंजन और दूसरे फरार संलिप्त लोगों को ढूँढना पुलिस के लिए टेडी खीर है।

दिलचस्प बात कि जिला पार्षद और जनता दल यूनाइटेड युवा के भागलपुर अध्यक्ष शिव मंडल को भी अबतक न दबोचना भी कुछ कहता है। यह कल्याण विभाग का गिरफ्तार नाजिर महेश मंडल का बेटा है। इन्होंने जिला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। कहते है करोड़ों रूपए खर्च कर भी ये टुनटुन साह के सामने नहीं टिक पाए। इनकी शानो शौकत की हकीकत उजागर करना भी बाकी है।

यह सब लोगों, राजनैतिक दलों और ईमानदार अधिकारियों को भरोसा है कि सीबीआई जांच से सब साफ़ हो जाएगा। जो डीएम रैंक के आईएएस अधिकारी बैंकों में पेश चेक जिन पर किए दस्तखत को फर्जी बता रहे है। उनका भी खुलासा हो सकेगा। तभी बैंकों की साख पर लगा बट्टा भी साफ़ हो पाएगा।

सभी को सीबीआई जांच से बड़ी उम्मीद है। नोटबंदी के दौरान सृजन के जरिए अपनी काली कमाई किस-किस ने सफेद की। इसका भी खुलासा होने की उम्मीद है।

बीजेपी को 2987 कॉरपोरेट्स ने 706 करोड़ के दान द‍िए

उद्योगपतियों, कॉरपोरेट्स और बिजनेस घरानों ने बीजेपी को पिछले चार सालों में सबसे ज्यादा चंदा दिया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ए डी आर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कॉरपोरेट्स ने ज‍ितना आठ साल में राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया था, उसका करीब तीन गुना केवल प‍िछले चार साल में द‍िया है।

कुल चंदा का 89 फीसदी केवल कॉरपोरेट्स ने द‍िया। बीजेपी को 2987 डोनर्स ने करीब 706 करोड़ रुपए द‍िए।

ए डी आर की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2012-13 से 2015-16 के बीच भारत की पांच राष्ट्रीय पार्टियों को कुल 956.77 करोड़ रुपये दान दिए गए। इनमें से बीजेपी को अकेले 2987 दाताओं ने कुल 705.81 करोड़ रुपये दान दिए, जबकि कांग्रेस को 167 कॉरपोरेट/बिजनेस घरानों से कुल 198.16 करोड़ रुपये दान प्राप्त हुए।

एनसीपी को 50 दानदाताओं ने कुल 50.73 करोड़, जबकि सीपीएम को 45 दाताओं के जरिए 1.89 और सीपीआई को 17 दाताओं के माध्यम से 0.18 करोड़ रुपये दान में मिले हैं।

बसपा राष्ट्रीय दल है, बावजूद उसके दान का विवरण इस रिपोर्ट में नहीं है क्योंकि बसपा ने यह घोषणा की है कि 20 हजार रुपये से अधिक एक भी दाता ने उसे दान नहीं दिया है।

बीजेपी के दान दाताओं का विश्लेषण करने से पता चलता है कि पिछले दो सालों में 20 हजार रुपये से ज्यादा के स्वैच्छिक दान करने वाले बिजनेस घरानों का आंकड़ा 92 फीसदी है, जबकि कांग्रेस के ज्ञात स्रोत के मुताबिक मात्र 85 फीसदी बिजनेस घराने हैं जिसने 20 हजार से ज्यादा की रकम दान दी है। राष्ट्रीय दलों को सबसे ज्यादा दान 2014-15 में मिला है, जब देश में लोकसभा चुनाव होने थे।

कॉर्पोरेट या व्यापारिक घरानों से सबसे कम योगदान सीपीआई और सीपीएम ने घोषित किया है। राष्ट्रीय दलों के कुल कॉर्पोरेट दान का केवल 4 फीसदी सीपीआई को और 17 फीसदी सीपीएम को मिला है।

साल 2012-13 में दान न देने के बावजूद सत्या इलेक्टरल ट्रस्ट तीन राष्ट्रीय दलों का सबसे बड़ा दान दाता है।  2013- 14 और 2015-16 के बीच इस ट्रस्ट ने 35 दान द्वारा कुल 260.87 करोड़ रुपये दान बीजेपी, कांग्रेस और एनसीपी को दिए हैं। सत्या इलेक्टरल  ट्रस्ट से बीजेपी को 193.62 करोड़ रुपये, कांग्रेस को 57.25 करोड़ और एनसीपी को कुल 10 करोड़ रुपये मिले हैं।