भारत

भारत ने दुनिया को बुद्ध दिया, युद्ध नहीं: पीएम मोदी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध दिया है।

शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ''हम उस देश के वासी हैं जिसने युद्ध नहीं, बुद्ध दिया है। पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया है।''

मोदी ने केवल 17 मिनट का भाषण दिया लेकिन इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को उठाया।

उन्होंने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों में ज़रूर पाकिस्तान पर हमला किया

मोदी ने चरमपंथ को दुनिया के लिए ख़तरा बताते हुए कहा, ''हमारी आवाज़ में आतंक के ख़िलाफ़ दुनिया को सतर्क करने की गंभीरता भी है और आक्रोश भी।''

मोदी ने कहा कि आतंकवाद किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए चुनौती है और इसलिए ये ज़रूरी है कि पूरी दुनिया आतंक के ख़िलाफ़ एक जुट हो।

इससे पहले उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में लोगों के बीच इसलिए हैं क्योंकि भारत में लोगों ने जनतांत्रिक तरीक़े से उनके हक़ में अपना जनादेश दिया है।

मोदी ने अपने भाषण में महात्मा गांधी को याद किया। उन्होंने कहा कि ये साल इसलिए भी काफ़ी अहम है क्योंकि भारत इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है।

मोदी ने भारत में उनकी सरकार के ज़रिए चलाए जा रहे कई योजनाओं का भी ज़िक्र किया।

उन्होंने आयुष्मान भारत, स्वच्छता अभियान, जनधन योजना का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया।

मोदी ने कहा कि उनकी सरकार अगले पाँच वर्षों में 15 करोड़ घरों में पीने का पानी सप्लाई करेगी। इसके अलावा उनकी सरकार ग़रीबों के लिए दो करोड़ नए घरों का निर्माण करेगी।

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में आज कल सिंग्ल यूज़ प्लास्टिक बैन की बात हो रही है, भारत तो इसके लिए एक बड़ा अभियान चला रहा है।

भारत में चल रही बहुत सारी योजनाओं का ज़िक्र करते हुए मोदी ने कहा, ''हमारा मंत्र है जन भागीदारी से जन कल्याण और जन कल्याण से जग कल्याण।''

भाषण से पहले भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बारे में ट्वीट भी किया है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी शुक्रवार को ही महासभा को संबोधित करेंगे।

दोनों के भाषण को लेकर बस यही अनुमान लगाया जा रहा है कि वह क्या-क्या बोल सकते हैं। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे की शुरुआत पर कहा था, मोदी अनुच्छेद 370 पर कुछ नहीं बोलेंगे, उनके भाषण में आतंकवाद, सुरक्षा और पर्यावरण शामिल होगा।

वहीं, पाकिस्तान कह चुका है कि वह भारत के कब्जे वाले कश्मीर में कथित ज़्यादतियों का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाएगा।

न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शुक्रवार को मोदी ने चौथे पायदान पर अपना भाषण दिया। वहीं, सातवें नंबर पर इमरान ख़ान बोलने आएंगे।

नरेंद्र मोदी अमरीका इस हफ़्ते की शुरुआत में ही पहुंच गए थे। वहां उन्होंने ह्यूस्टन में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ भारतीय-अमरीकी लोगों के कार्यक्रम में शिरकत की थी।

'हाउडी मोदी' नामक इस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने डोनल्ड ट्रंप की तारीफ़ की थी। साथ ही अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की उन्होंने प्रशंसा की थी।

इसके बाद डोनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से मुलाक़ात की थी। इस मुलाक़ात में ट्रंप ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाउडी मोदी कार्यक्रम में 50 हज़ार लोगों के सामने बहुत ही आक्रामक बयान दिया था।

ट्रंप ने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान और भारत साथ आएंगे और कुछ ऐसा करेंगे जो दोनों के लिए अच्छा हो। और वो मानते हैं कि हर चीज़ का हल होता है और इसका भी हल होगा।

वहीं, मोदी से मुलाक़ात के दौरान ट्रंप ने कोई ख़ास बात नहीं की। लेकिन भारतीय पत्रकारों के पाकिस्तान के ऊपर सवाल पूछने पर ट्रंप ने मोदी से कहा था कि उनके पास अच्छे रिपोर्टर्स हैं।

क्या टैक्स में राहत देने से ही मंदी की मार ठीक हो जाएगी?

भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कॉरपोरेट कंपनियों को टैक्स में छूट देने की घोषणा की। वित्त मंत्री की घोषणा के बाद कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है।

मोदी सरकार ने घरेलू कंपनियों, नयी स्थानीय विनिर्माण कंपनियों के लिये कॉरपोरेट टैक्स को कम करते हुए इसे 25.17 फ़ीसदी कर दिया है। वित्त मंत्री ने कहा कि यदि कोई घरेलू कंपनी किसी प्रोत्साहन का लाभ नहीं ले तो उसके पास 22 प्रतिशत की दर से आयकर भुगतान करने का विकल्प होगा। जो कंपनियां 22 प्रतिशत की दर से आयकर भुगतान करने का विकल्प चुन रही हैं, उन्हें न्यूनतम वैकल्पिक कर का भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होगी।

मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा ​कि सावन के अंधे की कहावत भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा सरकार के लिए सच साबित हो रही है।

सुरजेवाला ने कहा कि अर्थव्यवस्था डूब रही है, देश मंदी की मार से जूझ रहा है और कंपनियां बंद हो रही हैं। उन्होंने कहा कि जीडीपी गिर रही है, निर्यात फेल हो गया है और भाजपा के मंत्री और सरकार ये कह रहे हैं कि सब ठीक है। उनके अनुसार सब कुछ ग़लत है लेकिन यह सत्ता में कुर्सी पर बैठे हुक्मरानों को समझ नहीं आ रहा।

कांग्रेस ने मोदी सरकार पर ज़ोरदार निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार एक क़दम आगे और चार क़दम पीछे है। कांग्रेस प्रवक्ता ने प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि वे देश की अर्थव्यवस्था नौसिखियों की तरह चला रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार द्वारा लिया गया हालिया निर्णय केवल डगमगाते संसेक्स इंडेक्स को बचाने के लिए लिया गया है। इसके निर्णय के तहत कॉरपोरेट जगत को सालाना एक लाख 45 हज़ार करोड़ रूपये की छूट दी गई है।

इसके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पाँच सवाल पूछे।

1. कॉरपोरेट टैक्स की दरों को 30 प्रतिशत से कम कर 22 प्रतिशत और 25 प्रतिशत से कम कर 15 प्रतिशत करने से सालाना एक लाख 45 हज़ार करोड़ रूपये का नुक़सान होगा। प्रधानमंत्री जी और वित्त मंत्री जी देश को यह बताएं कि इस वित्तीय घाटे की भरपाई कहां से होगी? क्या इसके लिए एक बार फिर वेतनभोगियों, मध्यम वर्ग के लोगों, ग़रीब, किसान, छोटे दुकानदार, छोटे-छोटे व्यवसायियों पर कर लगा कर और पेट्रोल, डीज़ल, बिजली के दामों में बढ़ोतरी कर किया जाएगा? या फिर देश की मुनाफ़े वाली पीएसयू का ख़ून निचोड़ कर किया जाएगा।

2. क्या प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बताएंगे कि कॉरपोरेट टैक्स के तहत एक लाख 45 हज़ार करोड़ रूपये का सालाना छूट दिया गया है उससे जो फिस्कल डिफिसिट (वित्तीय घाटा) जो बढ़ जाएगा। उसके लिए आपके पास क्या उपाय है? अब जब ​वित्तीय घाटा सात प्रतिशत तक पहुंच जाएगा जिसका सीधा असर देश की प्रगति और महंगाई पर पड़ेगा तो उसके लिए आपके पास क्या उपाय हैं?

3. प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बजट पास करने वाले संसद की बार-बार अवहेलना और उसे दरकिनार क्यों कर रहे हैं? 70 सालों में यह पहली सरकार है जिसने बजट पेश करने के 45 दिनों के अंदर ख़ुद के पेश किए हुए बजट को ही ख़ारिज कर दिया या संशोधन कर दिया या उसे वापस ले लिया। क्या देश की संसद और संसदीय प्रणाली की इस प्रकार व्यापक अवहेलना उचित है?

4. अगर आपको इनकम टैक्स में राहत ही देना था तो फिर इस देश के साधारण जनता, नौकरीपेशा लोगों और मध्यम वर्ग को इसमें राहत क्यों नहीं दिया गया? आज भी जब आर्थिक मंदी की मार पड़ रही है तो इसका सबसे ज्यादा असर नौकरीपेशा, मध्यम वर्ग और साधारण व्यक्ति पर पड़ रहा है। तो फिर सरकार इस वर्ग को कोई राहत नहीं देती है, ऐसा क्यों?

5. क्या केवल टैक्स राहत देने से ही मंदी की मार ठीक हो जाएगी? क्या यही आपका आर्थिक ​विज़न है? और अगर टैक्स राहत देने से मंदी की मार दूर हो जाती है तो फिर व्यक्तिगत इनकम टैक्स देने वाले जो लोग हैं वो 30 प्रतिशत पर टैक्स देंगे और हज़ारों करोड़ रूपये का मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियां वो 22 और 15 प्रतिशत की दर से टैक्स देंगी, यह इस देश में कौन सी न्यायसंगत और उचित बात है?

क्या एनसीपी का बीजेपी को समर्थन देना सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल थी?

भारत के महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो गई हैं।

बीजेपी की तरफ़ से चुनाव प्रचार का आगाज़ करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दो दिन पहले नासिक पहुंचे थे तो उन्होंने कांग्रेस पर तो निशाना साधा ही था लेकिन एनसीपी और उसके वरिष्ठ नेता शरद पवार पर भी तल्ख़ टिप्पणियां की थीं। उन्होंने अनुच्छेद 370 पर विपक्ष को घेरते हुए कहा कि एक ओर जहां पूरा देश इसके समर्थन में है वहीं कांग्रेस और एनसीपी इसका विरोध कर रहे हैं।

और अब एनसीपी ने बीजेपी को निशाने पर लेते हुए कहा है कि बीजेपी को समर्थन देना उनकी सबसे बड़ी भूल थी।

एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्र आव्हाड ने बीबीसी मराठी के एक कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी को समर्थन देना उनकी पार्टी की सबसे बड़ी भूल थी।  

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र बीबीसी मराठी द्वारा पुणे में आयोजित कार्यक्रम राष्ट्र-महाराष्ट्र के एक सेशन में जितेंद्र आव्हाड ने कहा "पार्टी ने अलीबाग़ (महाराष्ट्र) में एक गोपनीय बैठक बुलायी थी। जहां पार्टी के 35-40 नेताओं को ही आमंत्रित किया गया था। मैं एनसीपी प्रमुख शरद पवार के ठीक बगल में ही खड़ा था और कहा कि अगर हमने अपने आदर्शों के साथ समझौता किया तो हम ख़त्म हो जाएंगे।''  

जितेंद्र आव्हाड का ये बयान इसलिए ख़ास है क्योंकि एनसीपी एक ऐसी पार्टी है जो किसी भी विवादास्पद निर्णय पर बात करने से बचती है।

साल 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने त्रिशंकु विधानसभा बना दी थी। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसे 122 सीटें मिली थीं लेकिन उसे बहुमत साबित करने के लिए 23 और सीटों की ज़रूरत थी।  145 सीटों पर बहुमत साबित होना था। शिव सेना, चुनाव से पहले ही बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़कर चुनाव में स्वतंत्र रूप से लड़ रही थी और वो किसी क़ीमत पर सरकार बनाने के लिए बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं थी।  

यह शरद पवार की एनसीपी पार्टी ही थी जो 41 सीटें लेकर बीजेपी की नैया पार लगाने के लिए आगे आई थी। चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद एनसीपी ने बीजेपी को बाहर से समर्थन देने का प्रस्ताव दिया। शरद पवार ने कहा था, "एक स्थायी सरकार के निर्माण के लिए और महाराष्ट्र के भले के लिए, हमारे पास सिर्फ़ एक ही विकल्प बचता है कि हम बीजेपी को समर्थन दें ताकि वो सरकार बना सकें।''

एनसीपी के समर्थन ने बीजेपी के लिए ना सिर्फ़ देश के सबसे अमीर राज्य में सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि इससे शिव सेना पर भी दबाव बढ़ा और उसे राज्य की राजनीति में अपना स्थान तय करने के लिए सोचना पड़ा।

विशेषज्ञों का मानना है कि पवार के इस क़दम ने शिवसेना की योजना को झटका दिया और वो बीजेपी से मोलभाव करने की स्थिति में नहीं रह गई क्योंकि बीजेपी के पास अब शिवसेना से इतर एनसीपी का समर्थन, प्लान बी के तौर पर मौजूद था।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत बहुत से नेताओं ने उस समय कहा था कि शिवसेना से हाथ मिलाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी ना की एक हारी हुई और दागी पार्टी एनसीपी से। एक लंबी बहस चली उसके बाद काफी मोलभाव हुआ और उसके बाद शिव सेना के दस सदस्य फडणवीस सरकार में शामिल हो गए।  

लेकिन अगर किसी को यह लगता है कि बीजेपी और एनसीपी के बीच का प्यार शिवसेना के साल 2014 में सरकार में शामिल हो जाने से ख़त्म हो गया था तो ऐसा बिल्कुल नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2015 में शरद पवार के बारामती घर भी गए थे।

सुप्रिया ने कहा था कि यह मुलाक़ात विकास पर आधारित थी। वह बारामती से सांसद हैं और शरद पवार की बिटिया भी।

इसके बाद साल 2016 में, मोदी एक अन्य कार्यक्रम के सिलसिले में पुणे में थे। जहां उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पवार की तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था, "मुझे यह कहने में या स्वीकार करने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं है कि गुजरात में मेरे राजनीतिक जीवन के शुरुआती चरण में पवार ने ही मेरा हाथ पकड़कर मुझे चलना सिखाया था।''

लेकिन इसके बाद साल 2017 में स्थानीय चुनावों में जब एनसीपी को बीजेपी से करारी मात मिली तो उसी के बाद से समीकरण बदल गए।

एनसीपी ने उन चुनावों के बाद बीजेपी के साथ बेहद कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया। सांप्रदायिक बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ने से लेकर, स्थिरता के लिए बीजेपी को समर्थन देने और अब फासीवादी बीजेपी की ख़िलाफ़त तक...एनसीपी ने यू-टर्न तो ले लिया है लेकिन अब उसके लिए अपने ही लिए फ़ैसलों का बचाव करना मुश्किल हो रहा है।

यू-टर्न लेने वाली एक अन्य पार्टी है- स्वाभिमानी किसान पार्टी। इसके संस्थापक और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने लंबे समय तक शरद पवार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। फिर इसके बाद वो 2014 में एनडीए में शामिल हो गए लेकिन 2017 में ही इसे छोड़ दिया। अब उनकी पार्टी एनसीपी की सहयोगी है। इस पार्टी का दक्षिणी महाराष्ट्र में दबदबा भी है।

शेट्टी से जब उनके यू-टर्न के बारे में बीबीसी कार्यक्रम के दौरान सवाल किया गया तो उनका कहना था "हमने ये कभी नहीं कहा कि एनसीपी के नेता संत हैं। लेकिन बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हमें उनका समर्थन चाहिए। शिवाजी ने सिखाया है कि अगर आपको मुगलों से लड़ना है तो आदिल शाह और कुतुब शाह का सहयोगी बनना होगा।''

शेट्टी अब पवार के सहयोगी हैं। वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "हम इस बात की उम्मीद नहीं करते हैं कि अगर एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन गई तो राम राज्य आ जाएगा लेकिन कम से कम हमें इस बात की आज़ादी तो मिल जाएगी कि हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाएं।''

पुणे से बीजेपी के सांसद और पूर्व कबीना मंत्री गिरीश बापट का कहना है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन निश्चित तौर पर हो जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि शिवसेना वाजिब सीटों की मांग करेगी।

सीटों के बंटवारे को लेकर 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले दोनों भगवा पार्टियों के बीच गठबंधन टूट गया था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।

भाजपा और शिवसेना के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर गहन बातचीत चल रही है। बीजेपी ने सार्वजनिक रूप से शिवसेना को कुल सीटों का आधा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन बीजेपी लोकसभा चुनावों में भारी जीत के बाद इससे मुकर रही है।

क्या निर्मला सीतारमण ने हाउडी मोदी की वजह से कॉरपोरेट टैक्स में रियायत की घोषणा की?

भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कॉरपोरेट कंपनियों को टैक्स में छूट देने की घोषणा की। इसके बाद शेयर बाज़ार में रिकॉर्ड तेज़ी देखी गई।

घरेलू कंपनियों, नयी स्थानीय विनिर्माण कंपनियों के लिये कॉरपोरेट टैक्स को कम करते हुए इसे 25.17 फ़ीसदी कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि यदि कोई घरेलू कंपनी किसी प्रोत्साहन का लाभ नहीं ले तो उसके पास 22 प्रतिशत की दर से आयकर भुगतान करने का विकल्प होगा। जो कंपनियां 22 प्रतिशत की दर से आयकर भुगतान करने का विकल्प चुन रही हैं, उन्हें न्यूनतम वैकल्पिक कर का भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होगी।

इस फैसले की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तारीफ़ की है जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे अमरीका के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी के कार्यक्रम से जोड़ कर ट्वीट किया है।

यह रियायत घरेलू कंपनियों और नयी स्थानीय मैनुफ़ैक्चरिंग कंपनियों के लिये होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की इस घोषणा के बाद शेयर बाज़ार में ज़बरदस्त उछाल देखा गया।  

एक समय सेंसेक्स में 2000 अंकों का उछाल आया जोकि पिछले एक दशक में एक दिन में आने वाला सबसे बड़ा उछाल है। 550 अंक के साथ ही निफ़्टी ने 10 का रिकॉर्ड तोड़ा।  

वित्त मंत्री ने कहा कि मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए इनकम टैक्स के नए नियमों में इसे शामिल किया गया है।

सीतारमण ने कहा कि बाज़ार में मुद्रा-प्रवाह को बनाए रखने के लिए यह क़दम उठाया गया है।

सरचार्ज के साथ टैक्स की प्रभावी दर 25.17 फ़ीसदी होगी। इनकम टैक्स एक्ट में नया प्रावधान जोड़ा गया है। ये प्रावधान वित्त वर्ष 2019-20 से लागू होगा।

भारत, दुनिया में सबसे ज़्यादा दर से कॉरपोरेट टैक्स देने वाले देशों में से एक है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती को ऐतिहासिक क़दम बताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, "ये मेक इन इंडिया के लिए बड़ा प्रोत्साहन देगा, पूरी दुनिया से निजी निवेश को आकर्षित करेगा, हमारे निजी क्षेत्र की प्रतियोगी क्षमता को बढ़ाएगा, अधिक नौकरियां पैदा करेगा और ये 130 करोड़ भारतीयों के लिए जीत है।''

राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है, "ताज्जुब है कि शेयर बाज़ार में उथल पुथल के लिए अपने 'हाउडी इंडियन इकोनॉमी' जमावड़े के दौरान प्रधानमंत्री क्या करने जा रहे हैं। 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च वाला ह्यूस्टन का कार्यक्रम दुनिया का अबतक का सबसे महंगा कार्यक्रम है। लेकिन कोई भी समारोह अर्थव्यवस्था में उस गड़बड़ी को छिपा नहीं सकता जो 'हाउडी मोदी' ने भारत में पैदा किया है।''

भारत में घरेलू कंपनियों पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स लगता है जबकि विदेशी कंपनियों पर यही टैक्स चालीस फ़ीसदी हो जाता है। इसके साथ ही उन्हें पूरे टैक्स पर चार प्रतिशत स्वास्थ्य और शिक्षा का सरचार्ज देना होता है।

इसके साथ ही अगर उनकी टैक्स की राशि सौ मिलियन से ज़्यादा हो जाती है तो घरेलू कंपनियों को 12 फ़ीसदी सरचार्ज और विदेशी कंपनियों को पांच प्रतिशत सरचार्ज देना होता है।

रॉयटर्स ने इसी साल अगस्त में एक ख़बर में कहा था कि सीबीडीटी के सदस्य अखिल रंजन की अध्यक्षता में सीधे कर से जुड़ी एक टीम कर में कटौती करने पर विचार कर रही है। एजेंसी ने कहा था कि कमेटी कर दर को 30 प्रतिशत से 25 करने पर विचार कर रही है।

हालांकि उस समय वित्त मंत्रालय ने इसकी पुष्टि नहीं की थी।

आर्थिक मामलों के जानकार आशुतोष सिन्हा का कहना है कि लोगों को अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक नक़दी की ज़रूरत है। लेकिन सरकार ने पेट्रोल/डीज़ल के दाम में कटौती नहीं की है। इससे उत्पादों की लागत में कमी आती और अर्थव्यवस्था और मज़बूत होती।

उनके अनुसार, ''ईंधन पर टैक्स कम करने से लोगों की बचत बढ़ती, उनके हाथ में और पैसे आते और उपभोग बढ़ता, जिसमें पिछले कुछ महीनों से कमी आने के कारण चिंता का माहौल बन गया है। इस स्थिति को पलटा जा सकता है।''

आशुतोष सिन्हा कहते हैं, "साल 2008 के संकट के दौरान सरकार ने कुछ कच्चे माल और उत्पादों पर टैक्स कम किया था ताकि मांग को प्रोत्साहित किया जा सके। लेकिन ऐसा करना कोई बेहतर विकल्प नहीं है क्योंकि जीएसटी और कर वसूली में भारी कमी के चलते सरकार का राजस्व काफ़ी दबाव में है।''

वैश्विक अकाउंटिंग कंपनी ईएंडवाई से जुड़े परेश पारिख कहते हैं, "ये बहुत बड़ा क़दम है, अमरीका, ब्रिटेन, सिंगापुर की तरह ये क़दम पूरी दुनिया में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के ट्रेंड के अनुसार है। इसके अलावा भारत सरकार की, देश में मैन्युफ़ैक्चरिंग को प्रोत्साहन देने की नीति के ये अनुकूल है। इससे पहले एफ़डीआई में ढील भी इसी दिशा में रही है। ये फ़ैसला लेने का समय बहुत सही है क्योंकि अमरीकी कंपनियां मैन्युफ़ैक्चरिंग के लिए चीन से बाहर देख रही हैं।''

पीएमएस प्रभुदास लीलाधर के सीईओ अजय बोडके का कहना है, "व्यापार के लिहाज़ से भारत को पसंदीदा जगह बनाने के लिए और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के मक़सद से सरकार ने कई घोषणाएं की हैं जो कि गिरती अर्थव्यवस्था में एक नई ताक़त पैदा करेगी। मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर इसे 35 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक करके और एक अक्तूबर के बाद मैन्युफ़ैक्चरिंग के क्षेत्र में आने और 2023 से पहले अपना संचालन शुरू करने वाली नई कंपनियों के लिए 15 प्रतिशत टैक्स करके सरकार ने लाल क़ालीन बिछा दी है जोकि आने वाले 5-10 सालों में एफ़डीआई और एफ़आईआई के अरबो डॉलर निवेश को सुनिश्चित करेगा।''

उन्होंने कहा, "सही मायने में रोशनी का त्योहार पहले आया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के अंधेरे को ख़त्म करेगा।''

हिंदुजा ग्रुप के को-चेयरमैन गोपीचंद पी हिंदुजा के अनुसार, "वित्त मंत्री द्वारा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की घोषणा एक बहुत बढ़िया क़दम है जोकि भारतीय अर्थव्यवस्था और मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में जान डालने के लिए बहुत ज़रूरी था। ये दिखाता है कि अर्थव्यवस्था में हमारे सामने जो चुनौतियां है उसके लिए सरकार पूरी तरह तैयार है। मैं चाहता हूं कि इस तरह के और क़दम उठाए जाएं, जोकि सरकार पहले से कर रही है।''

मोदी को पाकिस्तान से गुजरने की इजाजत नहीं

पाकिस्तान ने कहा है कि वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश के एयरस्पेस से गुजरने की इजाज़त नहीं देगा।

मोदी 21 सितंबर को अमरीका की यात्रा पर जा रहे हैं, वहां वे 22 सितंबर को ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में शामिल होंगे।

अपने हवाई क्षेत्र से गुजरने की इजाज़त देने से इनकार करते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा, "हिंदुस्तान से दरख्वास्त आई थी कि हिंदुस्तान के वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के एयर स्पेस से होकर जर्मनी जाना चाह रहे थे। कश्मीर के हालात को देखते हुए हमने फ़ैसला किया है कि हम इसकी इजाज़त नहीं देंगे।''

उन्होंने कहा, "हमने भारतीय उच्चायोग को अवगत कराया है कि नरेंद्र मोदी की उड़ान के लिए हम अपने हवाई क्षेत्र की इजाज़त नहीं देंगे।''

महमूद क़रैशी ने कहा, ''मोदी के लिए 20 सितंबर को जर्मनी जाने और 28 सितंबर को वापसी के लिए भारत ने पाकिस्तान से हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी लेकिन हमने नहीं दी।''  

मोदी इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करने न्यूयॉर्क पहुंचेंगे। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी न्यूयॉर्क आ रहे हैं और उन्होंने कहा है कि वो यूएन की आम सभा में कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे।  इमरान ख़ान 27 सितंबर को यूएन की आम सभा को संबोधित करेंगे।

ये भी कहा जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ पाकिस्तान भारतीय प्रधानमंत्री को अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल पर रोक नहीं लगा सकता। अगर पाकिस्तान इसे ख़ारिज करता है और भारत इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन में चुनौती देता है तो पाकिस्तान को भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है।  

इससे पहले पाकिस्तान ने भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हवाई जहाज को भी अपने हवाई क्षेत्र से उड़ने की इजाज़त नहीं दी थी।

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तीन देशों के दौरे के लिए आइसलैंड की यात्रा पर रवाना होने वाले थे, जिसके लिए उनके विमान को पाकिस्‍तानी हवाई क्षेत्र से जाना था। लेकिन पाकिस्तान ने इजाजत नहीं दी।

चंद्रयान-2 असफल क्यों हुआ?

इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) का चंद्रयान-2 असफल क्यों हुआ? इसकी मुख्य वजह क्या थी? यह जानना बेहद जरूरी है। चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग चाँद पर करने में इसरो क्यों असफल हुआ? इसरो का कहना है कि उसे चांद की सतह पर विक्रम लैंडर से जुड़ी तस्वीरें मिली हैं।  

इसरो के प्रमुख के सिवन ने कहा कि, "इसरो को चांद की सतह पर लैंडर की तस्वीर मिली है। चांद का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है।''

इसरो प्रमुख ने यह भी कहा है कि चंद्रयान-2 में लगे कैमरों ने लैंडर के भीतर प्रज्ञान रोवर के होने की पुष्टि की है।

इन सभी बातों के बाद अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि क्या भारत का सपना, जो शुक्रवार की रात अधूरा रह गया था वो पूरा हो पाएगा।

शुक्रवार की रात विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर पहुंचने से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही था जब उसका संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया।

के सिवन ने कहा है कि इसरो लगातार विक्रम लैंडर से संपर्क बनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि वैज्ञानिक इसकी बहुत कम उम्मीद जता रहे हैं।

उनका कहना है कि अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह एक अद्भुत बात होगी।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने बीबीसी से कहा, "यह बहुत मुश्किल है। संपर्क दोबारा साधने के लिए लैंडर का चांद की सतह पर सही सलामत उतरना ज़रूरी है, इतना ही नहीं वो इस तरह से उतरे कि उसके पांव सतह पर ही हों और उसके वो हिस्से काम कर रहे हों, जिससे हमारा संपर्क टूट गया था।''

"दूसरी ज़रूरी बात यह है कि लैंडर इस स्थिति में हो कि वो 50 वॉट पावर जेनरेट कर सके और उसके सोलर पैनल को सूरज की रोशनी मिल रही हो।''

गौहर रज़ा बहुत उम्मीद नहीं रखते हैं कि लैंडर का संपर्क ऑर्बिटर से दोबारा हो सकेगा। उनके मुताबिक अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह अद्भुत बात होगी।

हालांकि इसरो इसमें कितना कामयाब होगा, आने वाले दिनों में इसका पता चलेगा।

के सिवन ने लैंडर की 'थर्मल' इमेज लेने की बात कही है। ऑर्बिटर में जो कैमरे लगे हुए हैं वो 'थर्मल' तस्वीरें लेता है।

हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है। ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आँखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे।

जैसे लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है।

इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैप्चर करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं। ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है। ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं।

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है या फिर सही सलामत स्थिति में है।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं, "रविवार तक प्राप्त सूचना के हिसाब से लैंडर पूरी तरह टूटा नहीं है। अगर टूट के बिखर जाता तो हम नहीं कह पातें कि लैंडर की तस्वीरें ली गई हैं।''

हार्ड लैंडिंग में लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है, इस बारे में के सिवन ने साफ़ तौर पर कुछ नहीं बताया है।

वैज्ञानिक इसका मतलब यह निकाल रहे हैं कि उसकी स्पीड में इतनी कमी तो आ ही गई थी कि सतह से टकरा कर लैंडर पूरी तरह बर्बाद नहीं हुआ है।

गौहर रज़ा कहते हैं, "इसका यह भी मतलब है कि उसकी स्पीड तब तक कम होती रही, जब तक वो चांद की सतह पर उतर नहीं गया।''

ऑर्बिटर के द्वारा ली गई तस्वीरों के विश्लेषण के बाद ही पता चल पाएगा कि लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है।

इस सवाल के जवाब में गौहर रज़ा कहते हैं कि 2.1 किलोमीटर पर जब हमारा संपर्क लैंडर से टूट गया था, उस दूरी से चंद्रमा की सतह पहुंचने तक की सही सूचना हमें नहीं मिल पाई थी।

"अब लैंडर की तस्वीरें हमें मिल गई हैं, ऐसे में अब इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतिम क्षणों में क्या हुआ होगा।''

अभी तक वैज्ञानिक यह कयास लगा रहे हैं कि अंतिम वक़्त में लैंडर की स्पीड कंट्रोल नहीं हो पाई थी। यह एक बड़ी चुनौती होती है कि एक लैंडर को तय स्पीड पर सतह पर उतारा जाए ताकि उसे कोई क्षति न हो और उसके पैर जमीन पर ही पड़ें।

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड को 21 हज़ार किलोमीटर से 7 किलोमीटर प्रति घंटा करना था। यह कहा जा रहा है कि इसरो से स्पीड कंट्रोलिंग में ही चूक हुई और उसकी सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई।

लैंडर में चारों तरफ़ चार रॉकेट या फिर कहे तो इंजन लगे थे, जिन्हें स्पीड कम करने के लिए फायर किया जाना था। जब ये ऊपर से नीचे आ रहा होता है, तब ये रॉकेट नीचे से ऊपर की तरफ फायर किए जाते हैं ताकि स्पीड कंट्रोल किया जा सके।

अंत में पांचवा रॉकेट लैंडर के बीच में लगा था, जिसका काम 400 मीटर ऊपर तक लैंडर को जीरो स्पीड में लाना था, ताकि वो आराम से लैंड कर सके, पर ऐसा नहीं हो सका। परेशानी करीब दो किलोमीटर ऊपर से ही शुरू हो गई थी।

इसरो प्रमुख के सिवन ने शनिवार को डीडी न्यूज को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सात सालों तक काम कर सकेगा, हालांकि लक्ष्य एक साल का ही है।

आख़िर यह कैसे होगा, इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं कि ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के काम करने के लिए दो तरह की ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

एक तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है।  ये ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा होती है। इसके लिए उपकरणों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं ताकि सूरज की किरणों से यह ऊर्जा मिल सके।

दूसरी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की दिशा बदलने के लिए किया जाता है। यह ज़रूरत बिना ईंधन से पूरी नहीं की जा सकती है।

हमारे ऑर्बिटर में ईंधन अभी बचा हुआ है और यह सात सालों तक काम कर सकेगा।

ऑर्बिटर तो काम कर रहा है। चाँद पर पानी की खोज भारत का मुख्य लक्ष्य था और वो काम ऑर्बिटर कर रहा है। भविष्य में इसका डेटा ज़रूर आएगा।

लैंडर विक्रम मुख्य रूप से चाँद की सतह पर जाकर वहाँ का विश्लेषण करने वाला था। वो अब नहीं हो पाएगा। वहाँ की चट्टान का विश्लेषण करना था वो अब नहीं हो पाएगा। विक्रम और प्रज्ञान से चाँद की सतह की सेल्फी आती और दुनिया देखती, अब वो संभव नहीं है। विक्रम और प्रज्ञान एक दूसरे की सेल्फी भेजते, अब वो नहीं हो पाएगा।  

यह एक साइंटिफिक मिशन था और इसे बनने में 11 साल लगे थे। इसका ऑर्बिटर सफल रहा और लैंडर, रोवर असफल रहे। इस असफलता से इसरो पीछे नहीं जाएगा। इसरो पहले समझने की कोशिश करेगा कि क्या हुआ है, उसके बाद अगले क़दम पर फ़ैसला करेगा।

अमरीका, रूस और चीन को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली है। भारत शुक्रवार की रात इससे चूक गया। सॉफ्ट लैन्डिंग का मतलब होता है कि आप किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित लैंड करवाए और वो अपना काम सुचारू रूप से कर सके। चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था लेकिन आख़िरी क्षणों में संभव नहीं हो पाया।

भारत की अर्थव्यवस्था शून्य की दर से बढ़ रही

भारत में पांच तिमाही पहले अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की दर से विकास कर रही थी। अब वो गिरते-गिरते पांच प्रतिशत पर पहुंच गई है। ऐसा नहीं है कि यह गिरावट एकाएक आई है।

वास्तव में ये पाँच प्रतिशत से भी कम है क्योंकि जो तिमाही विकास दर के आँकड़े हैं, वो संगठित और कॉर्पोरेट सेक्टर पर आधारित होते हैं।

असंगठित क्षेत्र को इसमें पूरी तरह शामिल नहीं किया जाता है, तो ये मान लिया जाता है कि असंगठित क्षेत्र भी उसी रफ़्तार से बढ़ रहा है, जिस रफ़्तार से संगठित क्षेत्र।

लेकिन चारों तरफ़ से ख़बरें आ रही हैं कि लुधियाना में साइकिल और आगरा में जूते जैसे उद्योगों से जुड़े असंगठित क्षेत्र बहुत बड़ी तदाद में बंद हो गए हैं।

असंगठित क्षेत्र का विकास दर गिर रहा है तो यह मान लेना कि असंगठित क्षेत्र, संगठित क्षेत्र की रफ़्तार से बढ़ रहा है, ग़लत है।

हमारे असंगठित क्षेत्र में 94 प्रतिशत लोग काम करते हैं और 45 प्रतिशत उत्पादन होता है। अगर जहां 94 प्रतिशत लोग काम करते हैं, वहां उत्पादन और रोज़गार कम हो रहे हैं तो वहां मांग घट जाती है।

यह जो मांग घटी है, वो नोटबंदी से बाद से शुरू हुआ। फिर आठ महीने बाद जीएसटी का असर पड़ा और उसके बाद बैंकों के एनपीए का असर पड़ा। इन सबके बाद ग़ैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट का असर पड़ा।

यानी अर्थव्यवस्था को तीन साल में तीन बड़े-बड़े झटके लगे हैं, जिनकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी है। सीएमआई के आँकड़े दिखाते हैं कि भारत में कर्मचारियों की संख्या 45 करोड़ थी, जो घट कर 41 करोड़ हो गई है।

इसका मतलब यह है कि चार करोड़ लोगों की नौकरियां या काम छिन गए हैं। जब इतने बड़े तबके की आमदनी कम हो जाएगी तो ज़ाहिर सी बात है मांग घट जाएगी। जब मांग घट जाएगी तो उपभोग की क्षमता कम हो जाएगी और जब उपभोग की क्षमता कम हो जाएगी तो निवेश कम हो जाएगा।

भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश की दर 2012-13 में सबसे ऊपर थी। उस वक़्त निवेश की दर 37 फ़ीसदी की दर से बढ़ रही थी और वो आज गिरकर 30 फ़ीसदी से कम हो गई है।

जब तक निवेश नहीं बढ़ता है, विकास दर नहीं बढ़ती है।

जो समस्या है, ये असंगठित क्षेत्र से शुरू हुई और अब वो धीरे-धीरे संगठित क्षेत्र पर भी असर डाल रही है। उदाहरण के तौर पर आप ऑटोमोबिल और एफ़एमसीजी सेक्टर को देख सकते हैं।

आपने पारले-जी बिस्किट की मांग घटने के बारे में सुना होगा। यह एक संगठित क्षेत्र है। इनका उपयोग असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोग करते हैं। जब असंगठित क्षेत्र में आमदनी कम होगी तो मांग अपने-आप कम हो जाएगी।  एफ़एमसीजी का भी यही हाल है।

अगर भारत की अर्थव्यवस्था छह या पाँच प्रतिशत की रफ़्तार से भी बढ़ रही है तो यह एक बहुत अच्छी रफ़्तार है। इसके बाद भी खपत कम क्यों हो रही है, इसे बढ़ना चाहिए था। निवेश भी पाँच प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ना चाहिए था।

जब खपत में कमी आई है, निवेश नहीं बढ़ रहा है तो यह दर्शाता है कि आर्थिक विकास दर पाँच, छह या सात प्रतिशत नहीं है बल्कि यह शून्य प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र के आँकड़े इसमें शामिल ही नहीं किए जाते हैं।

जिस दिन आप असंगठित क्षेत्र के आँकड़े उसमें जोड़ लेंगे तो पता लग जाएगा कि विकास दर शून्य या एक प्रतिशत है। असंगठित क्षेत्र के आँकड़े पाँच सालों में एक बार इकट्ठे किए जाते हैं। इस दरमियान यह मान लिया जाता है कि असंगठित क्षेत्र भी उसी रफ़्तार से बढ़ रहा है जिस रफ़्तार से संगठित क्षेत्र।

यह अनुमान लगाना नोटबंदी के पहले तक तो ठीक था, लेकिन जैसे ही नोटबंदी की गई, उसका जबरदस्त असर पड़ा। असंगठित क्षेत्रों पर और उसकी गिरावट शुरू हो गई।

8 नवंबर 2016 के बाद जीडीपी के आँकड़ों में असंगठित क्षेत्र के विकास दर के अनुमान को शामिल करने का यह तरीक़ा ग़लत है।

यह भी कहा जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुज़र रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से नहीं सुस्ती के दौर से गुज़र रही है। जब विकास दर ऋणात्मक हो जाए तो उस स्थिति को मंदी का दौर माना जाता है।

लेकिन अभी जो आँकड़े सरकार ने प्रस्तुत किए हैं, अगर उनमें असंगठित क्षेत्र के आँकड़ों को शामिल कर लिया जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर गुजर रही है।

नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र पिट गया। उसके बाद जीएसटी लागू किया गया।  हालांकि जीएसटी असंगठित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है।

संगठित क्षेत्रों पर जीएसटी का असर हुआ है। पिछले ढाई साल से जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से 1400 से अधिक बदलाव किए गए हैं। इससे संगठित क्षेत्र के लोगों में उलझन बहुत बढ़ी है।

लोग जीएसटी फाइल नहीं कर पा रहे हैं। क़रीब 1.2 करोड़ लोगों ने जीएसटी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है, लेकिन सिर्फ़ 70 लाख लोग जीएसटी फाइल करते हैं और एनुअल रिटर्न सिर्फ़ 20 प्रतिशत लोगों ने फाइल किया है।

तो कुल मिलाकर जीएसटी का अर्थव्यवस्था को जबरदस्त धक्का लगा है।

समस्या असंगठित क्षेत्र से शुरू होती है और संगठित क्षेत्र भी अछूता नहीं है। अर्थव्यवस्था में मंदी या फिर सुस्ती के चलते सरकार के टैक्स कलेक्शन में कमी आई है। पिछले साल जीएसटी में 80 हज़ार करोड़ की कमी आई और डायरेक्ट टैक्स में भी इतने की ही कमी आई।

कुल मिलाकर सरकारी ख़ज़ाने को 1.6 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ। जब सरकार की आमदनी कम हुई तो उसने खर्चे कम कर दिए। जब खर्चे कम होंगे तो मंदी और गहरा जाएगी।

अब कहा जा रहा है कि बैंकों का विलय अर्थव्यवस्था को मज़बूती देगा। लेकिन ये बात ग़लत है। बैंकों के विलय का असर पाँच से दस साल बाद दिखेगा। उसका कोई तत्कालिक असर नहीं होगा।

सरकार की तरफ़ से दिए गए बयानों से यह बात स्पष्ट होती है कि उसने मान लिया है कि अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुई है और एक के बाद एक पैकेज की घोषणा की जा रही है। आरबीआई भी घोषणा कर रहा है।

वे सभी अभी मंदी की बात नहीं कह रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे बाद में सब मंदी की बात कहने लगेंगे, जब असगंठित क्षेत्र के आँकड़ों को शामिल किया जाएगा।

आरबीआई ने 1.76 लाख करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया है। इसका इस्तेमाल भी संगठित क्षेत्र के लिए किया जाएगा। असंगठित क्षेत्र के लिए किसी तरह के पैकेज की घोषणा नहीं की गई है। रोज़गार बढ़ाने के लिए पैकेज की घोषणा नहीं की गई है।

जहां से समस्या शुरू हुई है, उन क्षेत्रों पर सरकार का ध्यान नहीं है। जब तक इन क्षेत्रों के लिए पैकेज की घोषणा नहीं की जाएगी, तब तक कोई सुधार होता नहीं दिखेगा।

विदेशों से भारतीयों को निकाल दिया जाए, तब भारत क्या करेगा?

ठीक 47 साल पहले सात अगस्त 1972 को युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने आदेश दिया कि देश में कई पीढ़ियों से आबाद 80 हज़ार के लगभग एशियाई लोग 90 दिन में यहां से निकल जाएं, वर्ना उनकी ज़मीन-ज़ायदाद और पूंजी ज़ब्त कर ली जाएगी।

और जो एशियन देश में रहना चाहते हैं, उन्हें फिर से नागरिकता के लिए आवेदन करना पड़ेगा और ऐसे हर आवेदन का फ़ैसला जांच के बाद मैरिट पर होगा।

इनमें से ज़्यादातर की युगांडा में दूसरी या तीसरी पीढ़ी थी और इन्होंने तसव्वुर भी नहीं किया था कि यहां से ऐसे निकाले जाएंगे।

इनमें अग्रेज़ी शासन के वक़्त से आबाद एशियन आबादी में एक बड़ी संख्या गुजराती कारोबारियों की थी। उन्हें अचानक देश से कान पकड़कर निका लने का मुख्य कारण ये बताया गया कि ये एशियन ना तो युगांडा के वफ़ादार हैं और ना ये स्थानीय अफ़्रीकी लोगों से घुलना-मिलना चाहते हैं। इनका एक ही मक़सद है, कारोबार के बहाने अफ़्रीकियों की जेबें ख़ाली करके अपनी तिजोरियां भरना।

इन एशियाइयों को निकालने का मक़सद युगांडा के असल रहवासियों को लौटाना है।

भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने ईदी अमीन के इस निर्णय को मानवाधिकारों और नागरिकता के अंतरराष्ट्रीय उसूलों का खुला उल्लंघन बताते हुए भारतीय राजदूत को राजधानी कंपाला से वापस बुला लिया और युगांडा के राजदूत को दिल्ली से चलता कर दिया।

ईदी अमीन ने भारत और ब्रिटेन समेत पश्चिमी दुनिया के विरोध को बिल्कुल घास नहीं डाली और कहा कि युगांडा के लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है, ये फ़ैसला सिर्फ़ युगांडा वाले ही करेंगे। उन्होंने कहा कि हम किसी ब्लैकमेलिंग में नहीं आएंगे।

80 हज़ार में से 20 हज़ार एशियाई लोगों को कागज़ात की जांच के बाद युगांडा में रहने की इजाज़त दे दी गई। मगर 60 हज़ार एशियाई लोगों को बोरिया-बिस्तर बांधना ही पड़ा।

आज से 47 साल पहले का संसार इतना कठोर नहीं था। जो एशियाई लोग निकाले गए, उनमें से ज़्यादातर पैसे-जायदाद वाले थे। इसलिए बहुतों को ब्रिटेन ने अपने यहां बुला लिया। कुछ कीनिया चले गए और वहां अपना काम फिर से शुरू कर दिया।

तीन से चार हज़ार भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बस गए। ईदी अमीन तो कब के चले गए, लेकिन उनका भूत रह गया।

बर्मा के 10 लाख रोहिंग्या और असम में रहने वाले बीस लाख के लगभग इंसान अवैध, अप्रवासी या घुसपैठिए बन चुके हैं। ये सब धरती का बोझ और दीमक बताए जा रहे हैं।

इस वक़्त ब्रिटेन और उत्तरी अमरीका में कुल मिलाकर साठ लाख के लगभग भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी रहते हैं।

अगर आज ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन या कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो या अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ऐलान कर दें कि जो भी लोग 1971 के बाद से अमरीका, कनाडा या ब्रिटेन में आबाद हुए उन्हें दोबारा से नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा, नहीं तो उन्हें निकलना होगा।

ऐसी नीति अगर घोषित होती है तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री, गृह मंत्री अमित शाह इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे। स्वागत करेंगे, निंदा करेंगे या फिर चुप्पी साध लेंगे?

इसके आलावा दुबई, मलेशिया और दुनिया के कई देशों में लाखों भारतीय रहते हैं। अगर दुबई के शेख मुहम्मद बिन रशीद अल मक्तोउम, मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहमद और दुनिया भर की सरकारें ऐलान कर दें कि जो भी लोग 1971 के बाद से दुबई, मलेशिया या विभिन्न देशों में आबाद हुए उन्हें दोबारा से नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा, नहीं तो उन्हें निकलना होगा।

ऐसी नीति अगर घोषित होती है तो भारत क्या प्रतिक्रिया देगा। स्वागत करेगा, निंदा करेगा या फिर चुप्पी साध लेगा?

मोदी सरकार के कुप्रबंधन के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी: मनमोहन सिंह

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ही चिंताजनक है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के चौतरफ़ा कुप्रबंधन के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी है। सरकार ने दो दिन पहले ही डेटा जारी किया था जिसमें अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पिछले छह सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गई है।

वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर पाँच प्रतिशत पर आकर ठहर गई है। इससे पहले की तिमाही में यह आँकड़ा 5.8 फ़ीसदी था और जून 2018 में यह वृद्धि दर 8.0 फ़ीसदी थी।

डॉ. मनमोहन सिंह की पहचान की एक अर्थशास्त्री की भी है। उन्होंने कहा, ''लगतार गिरावट जारी रही तो भारत के लिए बहुत मुश्किल स्थिति होगी। इसलिए मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि वो प्रतिशोध की राजनीति से बाहर आए और दिमाग़ से काम लेते हुए सभी की सुने।  अर्थव्यवस्था की यह हालत सरकार की ग़लतियों से बनी है।''

मनमोहन सिंह ने कहा कि जीडीपी की वृद्धि दर पाँच फ़ीसदी होने से संकेत मिल रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था लंबी अवधि की मंदी के बीच में है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ गति से वृद्धि करने की क्षमता है।

लगातार पाँच तिमाही से अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की जा रही है। इससे पहले मार्च 2013 में भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 4.3 फ़ीसदी पर थी।

ऑटो इंडस्ट्री से लेकर एफ़एमसीजी तक में सुस्ती का दौर है और इसी वजह से हज़ारों नौकरियां भी गईं।

केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले कुछ दिनों में अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए कई क़दम उठाए हैं। सरकार ने एफ़डीआई के नियम और आसान बनाए हैं। शुक्रवार को भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों में सुधार के लिए भी कई घोषणाएं की थीं।  

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक वीडियो संदेश में कहा, ''सबसे ज़्यादा चिंताजनक स्थिति मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर की है, जहां वृद्धि दर 0.6 फ़ीसदी पर आ गई है। इससे साफ़ है कि हमारी अर्थव्यवस्था सरकार की ग़लतियों से उबर नहीं पाई है। जीएसटी को जल्दीबाजी में लागू किया गया। घरेलू मांगों में गिरावट आ रही है। खपत वृद्धि दर पिछले 18 महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। टैक्स को जटिल बना दिया गया। निवेशकों में निराशा है।''

मनमोहन सिंह ने कहा कि मोदी सरकार की ख़राब नीतियों के कारण जॉबलेस ग्रोथ को बढ़ावा मिल रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ''ऑटोमोबिल सेक्टर में 3.5 लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग असंगठित क्षेत्र में भी बेरोज़गार हुए हैं। ग्रामीण भारत की हालत बहुत ही ख़राब है। किसानों को उचित क़ीमत नहीं मिल रही है और ग्रामीण आय में भी लगातार गिरावट आ रही है। संस्थानों की स्वायत्तता ख़त्म की जा रही है। सरकार ने आरबीआई से 1.76 लाख करोड़ रुपए ले लिए लेकिन इसके इस्तेमाल की कोई योजना नहीं है।''

मनमोहन सिंह ने कहा कि इस सरकार में डेटा की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में है। 

राहुल गांधी समेत विपक्षी नेताओं को श्रीनगर से क्यों लौटाया गया?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और विपक्ष के कई अन्य नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को भारत के कश्मीर के श्रीनगर पहुंचा लेकिन इन नेताओं को एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने दिया गया और एयरपोर्ट से ही उन्हें वापस दिल्ली लौटा दिया गया।

श्रीनगर एयरपोर्ट से बैरंग लौटाए जाने के बाद जब ये नेता दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने मीडिया से बात की।

विपक्ष के प्रतिनिधिमंडल में राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, केसी वेणुगोपाल, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, डीएमके नेता तिरुची शिवा, शरद यादव, टीएमसी के नेता दिनेश त्रिवेदी, एनसीपी नेता माजिद मेमन और सीपीआई महासचिव डी राजा शामिल थे। हालांकि बसपा और सपा इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं थे।

कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने कहा, "मुझे राज्यपाल ने जम्मू-कश्मीर आने का न्योता दिया था। मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा था कि वहां सब कुछ सामान्य है। उन्होंने कहा था कि वो मेरे लिए एक हवाई जहाज भेजेंगे। मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए विमान लेना अस्वीकार कर दिया था। लेकिन मैंने उनका निमंत्रण स्वीकारते हुए कहा था कि मैं वहां आउंगा। मैं विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं के साथ वहां गया था। हम वहां लोगों से मिलना चाहते थे। लोग किन परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं यह जानना चाहते थे और इस स्थिति में उनकी मदद करना चाहते थे। दुर्भाग्य से हमें एयरपोर्ट से आगे जाने की इजाजत नहीं दी गई। वास्तव में यह बहुत दुखद है लेकिन मीडिया के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया, उनमें से कुछ लोगों को पीटा भी गया। इससे यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं है।''

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, "जब हमें एयरपोर्ट पर हिरासत में लिया गया तब हमने पूछा कि ऐसा किन आरोपों में किया गया है और हम आदेश देखना चाहते हैं। क़ानून के मुताबिक हमें उस आदेश की एक प्रति दी जानी चाहिए। उन्होंने हमें वो कॉपी नहीं दी और उसे पढ़कर सुनाया। उन्होंने हमसे गुजारिश की कि कृपया प्रति हासिल करने पर ज़ोर नहीं दें। और जब हमने वो आदेश देखा तो उस आदेश में लिखा था कि हम लोगों को एकजुट कर व्यवधान पैदा करने आए हैं।''

गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "केंद्र सरकार ने एक ऐसा क़ानून बनाया जिसे कश्मीर के लोगों ने स्वीकार नहीं किया। वहां की स्थिति पर पर्दा डालने के लिए पूरे राज्य को बंद कर के रखा गया है। न वहां के लोग देश के किसी आदमी से बात कर सकते हैं और न बाकी लोग उनसे। ये देश के लिए चिंता का विषय है।''

विपक्ष के नेताओं के दौरे को कवर करने के लिए एयरपोर्ट पर जुटे मीडियाकर्मियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके साथ बदसलूकी की। न्यूज़ चैनल के पत्रकारों ने बताया कि मीडियाकर्मियों से बदसलूकी यह कहते हुए की गई कि यह डिफेंस एयरपोर्ट है और आप यहां रिपोर्टिंग नहीं कर सकते।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने की घोषणा के बाद से ही वहां टेलीफ़ोन, मोबाइल, इंटरनेट समेत सभी संचार सुविधाएं बंद हैं और धारा 144 लागू है।

न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक विपक्ष के नेता एयर विस्तारा की उड़ान से सुबह 11.50 बजे श्रीनगर के लिए रवाना हुए।

राहुल गांधी के साथ विपक्ष के इस प्रतिनिधिमंडल के श्रीनगर जाने से पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन का बयान आया था कि ये नेता कश्मीर न आएं और सहयोग करें।

साथ ही पुलिस सूत्रों ने भी कहा था कि विपक्षी प्रतिनिधिमंडल को श्रीनगर एयरपोर्ट से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा।

प्रशासन ने ट्वीट किया था, "नेताओं के दौरे से असुविधा होगी। हम लोगों को आतंकियों से बचाने में लगे हैं। प्रशासन ने कहा कि नेता उन प्रतिबंधों का भी उल्लंघन कर रहे होंगे, जो अभी भी कई क्षेत्रों में हैं। वरिष्ठ नेताओं को समझना चाहिए कि शांति, व्यवस्था बनाए रखने और नुकसान को रोकने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।''

हालांकि विपक्ष के नेताओं ने कहा कि उन्हें ऐसे किसी सलाह की कोई जानकारी नहीं है।

कश्मीर रवाना होने से पहले कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने पत्रकारों से कहा कि अगर हालात सामान्य हैं तो विपक्ष के नेताओं को वहां जाने से क्यों रोका जा रहा है, क्यों दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को घरों में नज़रबंद करके रखा गया है। उन्होंने कहा कि "मेरा वहां घर है और मैं अपने घर नहीं जा पा रहा हूं।''

जबसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत भारत के कश्मीर का विशेष दर्ज़ा छिना है, ग़ुलाम नबी आज़ाद जम्मू कश्मीर जाने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन उन्हें लौटा दिया गया।

शरद यादव ने कहा, "हम कौन क़ानून भंग कर रहे हैं। वो हमारे देश के नागरिक हैं, वहां हमारी पार्टी के लोग हैं और उनसे मिलने जाते रहे हैं।''

अभी कुछ दिन पहले सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई महासचिव डी राजा श्रीनगर पहुंचे थे लेकिन उन्हें एयरपोर्ट से बाहर नहीं जाने दिया गया और बैरंग लौटा दिया गया था।

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद से ही राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमलावर हैं और राज्य की स्थिति को लेकर चिंता जताने के साथ ही सरकार के इस फ़ैसले पर कई सवाल खड़े किए थे।

इसके बाद जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने दावा किया कि घाटी में हालात सामान्य हैं और राहुल को कश्मीर आने का निमंत्रण दिया।

उन्होंने कहा, "मैं राहुल गांधी को कश्मीर आने का निमंत्रण देता हूं। मैं उनकी यात्रा का भी इंतज़ाम करूंगा ताकि वो आकर ज़मीनी हकीक़त देख सकें।''

राहुल गांधी ने तुरंत ट्वीट कर उनका न्योता स्वीकार करते हुए एक ऑल पार्टी डेलीगेशन के साथ घाटी का दौरा करने की इच्छा व्यक्त की थी।