भारत

सीएए: गांधी की विचारधारा और आंबेडकर का संविधान अभी ज़िंदा है

उत्तर प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि सार्वजनिक सम्पत्ति का जो नुकसान हुआ है और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जो खर्च आया है, उसे उपद्रवी तत्वों से वसूला जाएगा। जो जुर्माना नहीं दे पाएंगे, उनकी संपत्तियों की नीलामी करके भरपाई की जाएगी।

साल 2018 में बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने असम में डिटेन्शन सेन्टर से बाहर आए लोगों से बात कर उनका दर्द जाना था। उनकी रिपोर्ट ने असम के डिटेंशन सेंटर से निकले लोगों का दर्द दिखाया था।

पूर्वी उत्तरप्रदेश के लिए कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आज बिजनौर पहुंचकर अनस के परिवारवालों से मुलाक़ात की। 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में हुए एक प्रदर्शन के दौरान 22 साल के अनस की मौत हो गई थी।

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शनों में अब तक कम से कम 15 लोगों की मौत हुई है। बिजनौर में दो युवकों की मौत हुई है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने राजस्थान में एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने से इनकार किया है।

उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संदेश दिया है कि आपको नौ राज्यों की आवाज़ सुननी चाहिए जिन्होंने अपने प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने से इनकार किया है।

अशोक गहलोत ने कहा, "संसद में आपका समर्थन करने वाले बिहार और ओडिशा के मुख्यमंत्री तक अब कह रहे हैं कि वो एनआरसी को लागू नहीं करेंगे। आपको जनभावना को समझना चाहिए और घोषणा करनी चाहिए कि एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून को मौजूदा स्वरूप में लागू नहीं किया जाएगा।''

कांग्रेस ने इसी साल संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आज पोस्ट किया है जिसमें भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्यसभा में ये कहते हुए देखे जा सकते हैं कि एनआरसी की प्रक्रिया असम समेत पूरे देश में होगी।

कांग्रेस ने लिखा, "असम समझौते के तहत कांग्रेस ने एनआरसी केवल असम में लागू करने के बारे में विचार किया था। इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि जो भी असम में अवैध रूप से आया है, चाहे वो किसी भी धर्म का हो, उसे निकाला जाएगा। लेकिन बीजेपी पूरे देश में एनआरसी लाना चाहती है। इसकी घोषणा संसद में तो की गई थी, साथ ही कई भाषणों में भी की गई है।''

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता असदउद्दीन ओवैसी ने कहा है, बीजेपी और आरएसएस को संदेश दीजिए कि गांधी की विचारधारा और आंबेडकर का दिया संविधान अभी ज़िंदा है। उन्हें बताइए कि ये देश गांधी, आंबेडकर, नेहरू और मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की विचारधारा पर बना है, न कि गोलवलकर की विचारधारा पर।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के ज़रिए देश के युवाओं के नाम संदेश दिया है। उन्होंने लिखा- मोदी और शाह हमारे भविष्य तबाह कर रहे हैं। बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था को हुई क्षति पर वो आपका गुस्सा देखना नहीं चाहते। नफरत की चादर के पीछे छिपकर देश को तोड़ने का काम कर रहे हैं। इस भावना को हराने का हर एक भारतीय से प्यार ही रास्ता है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा, ''बीजेपी एनआरसी के ज़रिए देश को लाइन में लगाना चाहती है। अर्थव्यवस्था चौपट है, बेरोज़गार नौकरियों के लिए भटक रहे हैं। इन सबसे ध्यान भटकाने के लिए नागरिकता संशोधन क़ानून बनाया और एनआरसी की धमकी देते हैं।''

नागरिकता संशोधन क़ानून पर फ़िल्मकार अनुराग कश्यप मोदी सरकार पर लगातार हमला कर रहे हैं। अनुराग ने ट्वीट कर कहा, ''संविधान के शरणार्थी बन के जो आए थे वो दोनों आज संविधान के घुसपैठिए बन गए हैं। हमें इनसे अपना संविधान बचाना है।''

भारत के जाने-माने इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जैसा दमन देखने को मिला है वो अंग्रेज़ों के राज में भी नहीं था।

88 साल के इरफ़ान हबीब ने कैंपस लाइफ़ के अनुभव के बारे में अपने अनुभव को साझा करते हुए एक वाक़ये का ज़िक्र किया है। इरफ़ान हबीब ने कहा, ''तब स्टूडेंट और पुलिस के बीच झड़प हुई थी। एसपी अंग्रेज़ था और छात्रों ने उसे पीट दिया था। लेकिन पुलिस कैंपस के भीतर नहीं घुस पाई थी। तब इस तरह का अंकुश था।''

इरफ़ान हबीब के अनुसार, ''तब के प्रो-वाइस चांसलर सर शाह सुलेमान थे जो बाद में एएमयू के पहले भारतीय वीसी बने। वो आंदोलित छात्रों को समझाने आए थे लेकिन छात्र नहीं माने थे। आज तक छात्रों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई।''

बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने नागरिकता संशोधन क़ानून में मुसलमानों को भी शामिल करने की मांग की है। हालांकि अकाली दल ने संसद में सराकर के बिल के पक्ष में मतदान किया था।

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता केसी त्यागी ने बीजेपी से एनआरसी पर एनडीए की बैठक बुलाने की मांग की है।

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर देश भर में विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई में देश भर में एक दर्जन से ज़्यादा लोगों की जान गई है।

नागरिकता संशोधन कानून: हिंसक प्रदर्शनों पर विदेशी मीडिया ने क्या कहा?

नागरिकता क़ानून में संशोधन को संसद की मंज़ूरी मिलने के बाद से ही पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

पिछले दो-तीन दिन में अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस सिलसिले में काफी कुछ लिखा है।  

अमरीकी अख़बार 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने लिखा है कि भारत में हो रहे प्रदर्शनों के ज़रिये भारतीय मुसलमान मोदी सरकार को पीछे धकेलने का प्रयास कर रहे हैं।

अख़बार ने लिखा, "सत्तारूढ़ दल बीजेपी की मुस्लिम समुदाय को प्रभावित करने वाली अन्य नीतियों की तुलना में नागरिकता क़ानून को अधिक प्रभाव छोड़ने वाले नियम के तौर पर देखा जा रहा है।''

भारत की राजधानी दिल्ली में छात्रों की पिटाई और दूरसंचार सेवाओं को बाधित किये जाने के सरकार-पुलिस के फ़ैसले पर भी 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने रिपोर्ट लिखी है।

दैनिक अमरीकी अख़बार 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा है कि भारत के देशव्यापी प्रदर्शन प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक चुनौती हैं।

अख़बार लिखता है, "मई 2019 में दूसरी बार बड़ी जीत हासिल करने के बाद मोदी ने अपनी पार्टी के एजेंडे को लागू करने की कोशिशें तेज कर दी हैं और वो हिंदुत्व को प्राथमिकता देते हुए फ़ैसले ले रहे हैं।''

'द वॉशिंगटन पोस्ट' के एडिटोरियल बोर्ड ने भारत के मौजूदा हालात पर एक अन्य लेख भी लिखा है जिसका शीर्षक है, "भारतीय लोकतंत्र ने एक नए निम्न स्तर को छुआ''।

इस लेख में अख़बार ने सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शनों के बीच कश्मीर घाटी में अब तक के सबसे लंबे इंटरनेट शट-डाउन को केंद्र में रखा है।

'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने मोदी सरकार द्वारा बनाए गए नए नागरिकता क़ानून पर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की चुप्पी की वजहों को टटोलने की कोशिश की है।

अख़बार ने लिखा है कि अमरीका के पास मोदी की नीतियों पर ना बोलने या मोदी पर किसी तरह का दबाव ना डालने की स्पष्ट वजहें रही होंगी क्योंकि वो एक बैलेंस बनाना चाहेंगे ताकि भारत, अमरीका के व्यापारिक और रक्षा हितों का ध्यान रखे। यही वजह है कि अमरीकी सरकार ने भारत के नए विवादित क़ानून पर कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया।

'द न्यू यॉर्क टाइम्स' ने एक लेख प्रकाशित किया है 'भारत उठ खड़ा हुआ है ताकि अपनी आत्मा को जीवित रख सके'।

वेबसाइट ने अपने इस लेख में लिखा है कि मोदी सरकार की सत्तावादी और विभाजनकारी नीतियों ने भारतीयों को देश की सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत के मुसलमान जो क़रीब छह वर्ष तक चुप्पी साधे रहे, जिसे डर कहना भी ग़लत नहीं होगा, वो संगठित होकर अब सड़कों पर हैं क्योंकि वो अपनी नागरिकता और वजूद को लेकर चिंतित हैं।

एक अन्य लेख को 'द न्यू यॉर्क टाइम्स' ने शीर्षक दिया है, 'मोदी देश में हिंदू एजेंडा थोपने की कोशिश कर रहे हैं, तो धर्मनिरपेक्ष भारत उसका करारा जवाब देने को उठ खड़ा हुआ है।''

इस लेख में प्रदर्शनकारियों के हवाले से लिखा गया है कि मोदी सरकार जिस तरह देश की बुनियाद रही यहाँ की विविधता पर हमला बोल रही है, लोग सरकार के उस रवैये के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए सड़कों पर हैं।

'द न्यू यॉर्क टाइम्स' के एडिटोरियल बोर्ड ने लिखा है कि भारत के नागरिकता अधिनियम में जिस तरह का संशोधन किया गया है, उसने पीएम मोदी के कट्टरपन का पर्दाफ़ाश कर दिया है।

इस लेख में लिखा है, "नागरिकता क़ानून भारत में ऐसी पहली कार्रवाई है जिसने धर्म को नागरिकता से जोड़ दिया है।''

अख़बार लिखता है कि दुनिया की अन्य सरकारों की तरह बिना दस्तावेज़ वाले शरणार्थियों को भारत सरकार ने भी एक राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है।  अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप यह कर चुके हैं। लेकिन भारतीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसके ज़रिए अपने सबसे बड़े टारगेट यानी बांग्लादेशी मुसलमानों को निशाना बनाया है जिन्हें वो दीमक तक कह चुके हैं।

ब्रितानी दैनिक अख़बार 'द गार्जियन' ने भारत में चल रहे प्रदर्शनों पर प्रकाशित एक रिपोर्ट को शीर्षक दिया है, "भारत में दशकों बाद हो रहे इतने बड़े विरोध प्रदर्शनों से संकेत मिलते हैं कि मोदी वाक़ई काफ़ी आगे बढ़ गए।''

अख़बार ने लिखा है कि बीते चार दशकों में ये सबसे विशाल प्रदर्शन कहे जा सकते हैं जिनकी आवाज़ को दबाने के लिए मोदी सरकार ने लगभग पूरे भारत में निषेधाज्ञा लगा दी है। लेकिन हिंदू हों या मुसलमान, जवान या बुज़ुर्ग, किसान और छात्र, सभी इन प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं।

इसके साथ ही अख़बार ने भारत के राजधानी क्षेत्र में इंटरनेट सेवाएं बाधित किये जाने की अपनी रिपोर्ट में आलोचना की है।

अमरीकी टीवी चैनल सीएनएन ने अपनी वेबसाइट पर शीर्षक लगाया है, 'घातक हिंसा के एक दिन बाद भारत ने प्रदर्शनों पर कसा शिकंजा'।

इस शीर्षक पर आधारित ख़बर में लिखा है कि भारत के कम से कम 15 शहरों में 10 हज़ार से अधिक लोग सड़कों पर उतरे हैं। इन शहरों में नई दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु और कोलकाता शामिल हैं। इन शहरों में लोगों ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ बड़े विरोध प्रदर्शन किये।

सीएनएन ने इन ख़बरों के अलावा अपनी वेबसाइट पर एक फ़ोटो गैलरी भी प्रकाशित की है जिसमें विरोध प्रदर्शन के दौरान घटी अलग-अलग घटनाओं को दिखाया गया है।

एक तस्वीर में जहाँ पुलिसकर्मी प्रदर्शनकारियों पर लाठी बरसा रहे हैं, वहीं दूसरी फ़ोटो में आग में घिरे थाने से पुलिसकर्मी बाहर भागते दिखाई दे रहे हैं।

सीएनएन ने अपनी फ़ोटो गैलरी में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में छात्रों के विरोध प्रदर्शनों से लेकर पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की रैली तक को जगह दी है।

क़तर का समाचार टीवी चैनल अल-जज़ीरा लगातार भारत में जारी विरोध प्रदर्शनों को कवर कर रहा है।

अल-जज़ीरा अपनी वेबसाइट पर इससे जुड़ी तस्वीरों को भी प्रमुखता से जगह दे रहा है।

शनिवार को अल-जज़ीरा ने अपनी वेबसाइट पर शीर्षक लगाया, 'नागरिकता क़ानून को लेकर प्रदर्शनों में 8 वर्षीय लड़के समेत कई लोग मारे गए'।

अल-जज़ीरा लिखता है कि मुस्लिम विरोधी समझे जा रहे क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में मरने वालों की संख्या 21 पहुँची, उत्तरी भारत के प्रांत उत्तर प्रदेश में कम से कम 15 लोगों की मौत।

इन प्रदर्शनों के साथ-साथ अल-जज़ीरा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आलोचना करने की ख़बरों को भी अपने पन्ने पर जगह दी है।

मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की नागरिकता क़ानून की आलोचना करने को भी अल-जज़ीरा ने अपने पन्ने पर जगह दी।

'द जापान टाइम्स' ने भी इन प्रदर्शनों से जुड़ी ख़बरें प्रकाशित की हैं।

वेबसाइट ने अपने यहाँ एक नज़रिया प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक दिया गया है कि 'भारत अपने संस्थापक सिद्धांतों को ही छोड़ रहा है'।

इस लेख में 'द जापान टाइम्स' ने लिखा है कि हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए राष्ट्र-निर्माण का कार्य तब तक अधूरा है जब तक कि देश में कई पहचान वाले लोग हैं जो सभी भारतीय होने का दावा कर सकते हैं।

वेबसाइट ने लिखा है कि 'हिंदू राष्ट्रवादी मानते हैं कि एकीकृत राष्ट्र के बिना देश की मज़बूती और आर्थिक विकास असंभव हैं'।

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में देश भर में प्रदर्शन

पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि भारत के सेना प्रमुख बिपिन रावत का हालिया बयान विवादित नागरिकता क़ानून को लेकर भारत के भीतर हो रहे भारी विरोध प्रदर्शनों से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए है। जनरल रावत ने बुधवार को कहा था कि नियंत्रण रेखा पर स्थिति बहुत तनावपूर्ण हैं और किसी भी वक़्त हालात बिगड़ सकते हैं। बिपिन रावत ने कहा था कि भारत इन हालात से निपटने के लिए तैयार है। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर ने गुरुवार को कहा, ''जनरल बिपिन रावत का बयान भारत में नए नागरिकता क़ानून से ध्यान हटाने की कोशिश है।''

भारत के लोकप्रिय उपन्यासकार चेतन भगत मोदी सरकार पर जमकर हमला कर रहे हैं।

चेतन भगत ने एनआरसी और नए नागरिकता क़ानून का विरोध करते हुए कई ट्वीट किए हैं।

चेतन भगत का कहना है कि नागरिकता क़ानून अकेले कोई मुद्दा नहीं है।  लेकिन एनआरसी और नागरिकता क़ानून को साथ देखें तो यह भेदभाव वाला है।

एनआरसी: सभी को साबित करना है कि आप भारतीय हैं।

ग़ैर-मुस्लिम: सर, मेरे पास कोई दस्तावेज़ नहीं है।

सरकार: ठीक है, कोई बात नहीं है। सीएए आपको बचाएगा। आप भारतीय हैं।

मुस्लिम: सर, मेरे पास कोई दस्तावेज़ नहीं है।

सरकार: ये तो बहुत बुरा है। आप भारतीय नहीं हैं। बाहर जाइए।

चेतन भगत ने गीता के एक श्लोक को ट्वीट किया है - ''मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूँ, जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढ़ता है तब-तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूँ, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूँ, धर्म की स्थापना के लिए मैं आता हूँ और युग-युग में जन्म लेता हूँ।''

बीबीसीआई प्रमुख और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली की बेटी सना गांगुली ने खुशवंत सिंह की किताब 'दि एंड ऑफ़ इंडिया' के जिस अंश को इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था। उसी अंश को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्विटर पर पोस्ट किया है।

हालांकि बाद में सना गांगुली की पोस्ट डिलीट कर दी गई थी। सौरभ गांगुली को अपनी बेटी की पोस्ट पर सफ़ाई देनी पड़ी थी। गांगुली ने कहा था कि उनकी बेटी की उम्र राजनीति समझने लायक नहीं है।

खुशवंत सिंह की किताब 'दि एंड ऑफ़ इंडिया' का वो अंश है- "हर फ़ासीवादी हुकूमत को ऐसे समुदायों और गुटों की ज़रूरत होती है जिसे वह दानव की तरह पेश करके ख़ुद को आगे बढ़ा सके। इसकी शुरुआत एक-दो गुटों से होती है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है। एक अभियान जो नफ़रत पर टिका हो वह सिर्फ़ भय और उन्माद के बूते ही बना रह सकता है। हममें से जो लोग ख़ुद को इसलिए सुरक्षित समझते हैं कि वे मुसलमान या ईसाई नहीं हैं, वे बेवकूफ़ी कर रहे हैं। संघ पहले ही वामपंथी इतिहासकारों और 'पाश्चात्य' रुझान वाले छात्रों पर निशाना साध रहा है।  कल उसकी नफ़रत का निशाना स्कर्ट पहनने वाली लड़कियां होंगी, फिर माँस खाने वाले, उसके बाद शराब पीने वाले, विदेशी फ़िल्में देखने वाले, तीर्थयात्रा पर नहीं जाने वाले, दंत मंजन की जगह टूथपेस्ट इस्तेमाल करने वाले, वैद्यों की जगह डॉक्टर के पास जाने वाले, जय श्रीराम कहने की जगह मिलने पर हाथ मिलाने वाले लोग .... होंगे। कोई सुरक्षित नहीं होगा।  अगर हम भारत को ज़िंदा रखना चाहते हैं तो हमें इस बात का अहसास होना चाहिए।''

इस पोस्ट को मोदी सरकार के नए नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

स्वराज इंडिया नेता योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर लोगों से जंतर-मंतर पहुंचने की अपील की है। योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर कहा है, ''जो गिरफ़्तारी से बच गए हैं वो जंतर-मंतर पहुंचें और विरोध-प्रदर्शन जारी रखें। मैं नज़रबंदी से जैसे ही मुक्त होता हूं सीधे जंतर-मंतर आऊंगा।''

अभिनेता रितिक रौशन ने भी पूरे मामले पर ट्वीट कर चिंता जताई है।  रितिक ने ट्वीट कर कहा, ''एक पिता और भारत के नागरिक के तौर पर देश के कई शैक्षणिक संस्थानों में अशांति और गतिरोध से मैं चिंतित हूं। मैं उम्मीद और दुआ करता हूं कि जल्दी ही शांति बहाल हो जाएगी। महान शिक्षक अपने छात्रों से सीखते हैं। मैं दुनिया के सबसे युवा लोकतंत्र को सलाम करता हूं।''

बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने देश भर में नए नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन किया है।

प्रियंका चोपड़ा ने ट्वीट कर कहा है, ''सभी बच्चों के लिए शिक्षा हमारा सपना है। स्वतंत्र रूप से सोचने में शिक्षा मदद करती है। एक सफल लोकतंत्र में शांतिपूर्ण तरीक़े से आवाज़ उठाना ज़रूरी है और इस आवाज़ के ख़िलाफ़ हिंसा ग़लत है। हर आवाज़ को शामिल करना ज़रूरी है और हर आवाज़ भारत को बदलने में भूमिका अदा करेगी।''

नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ लंदन में भारतीय उच्चायोग के सामने विरोध-प्रदर्शन, स्टूडेंट के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर मोदी सरकार को घेरा।

दिल्ली के मंडी हाउस से हिरासत में लिए गए सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को वहाँ से दूर ले जाने की तैयारियां की जा रही हैं।

दिल्ली में कई इलाकों में प्रदर्शन होने की ख़बरें हैं। प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने भी पुख्ता इंतज़ाम किए हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर कहा है कि सरकार, छात्रों से डर गई है। ये सरकार एक इतिहासकार के द्वारा नागरिक संशोधन कानून और एनआरसी पर मीडिया से बात करने और गांधीजी का पोस्टर हाथ में लेने से डर गई है। मैं राम गुहा को हिरासत में लेने के कदम की निंदा करती हूँ। हम हिरासत में लिए गए सभी लोगों के साथ अपनी पूरी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं।

राजदीप सरदेसाई ने ट्ववीट किया कि इस युवा छात्र मिनाजुद्दीन ने अपनी आंख खो दी है। उसका अपराध? जब पुलिस लाइब्रेरी में दाखिल हुई तो वह जामिया लाइब्रेरी में पढ़ रहा था! क्या किसी सरकार के मंत्री के पास भी इस जवान छात्र के लिए शोक शब्द होगा? किस पर दया करें?

राजदीप सरदेसाई के ट्ववीट को शेयर करते हुए हरभजन सिंह ने ट्ववीट कर पूछा है कि क्या उसका अपराध ये था कि वो इंसान है......उसके साथ जो कुछ हुआ उसे सुनकर बहुत दुख हुआ। दिल्ली में जो कुछ हो रहा है, उससे दुखी हूं और ये रुकना चाहिए।

कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले में 21 दिसंबर तक निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। मगर इसके बावजूद वामपंथी दलों ने वहाँ विरोध प्रदर्शन किया।  हैदराबाद, चेन्नई और चंडीगढ़ में भी विरोध प्रदर्शन की ख़बरें आ रही हैं।  बैंगलुरू में इतिहासकार और गांधीवादी रामचंद्र गुहा को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।

आशुतोष उज्जवल ने ट्ववीट किया कि 'भारत गांधी के बाद' किताब का टाइटल आज पूरा हुआ।

पत्रकार अजित अंजुम ने ट्ववीट किया कि बाहर निकलोगे और विरोध करोगे तो पकड़े जाओगे। यही फरमान है सरकार का। गांधी और आज़ादी पर लिखने वाले इतिहासकार @Ram_Guha जब #CAA_NRC के विरोध में बेंगलुरु की सड़क पर एक प्ले कार्ड लेकर निकले तो कैसे इन्हें धकियाकर पकड़ा गया, देखिए और समझिए कि कहां जा रहे हैं हम।

दिल्ली मेट्रो ने कई स्टेशनों के एंट्री और एक्ज़िट गेट बंद कर दिए गए हैं।  दिल्ली मेट्रो के मुताबिक सुरक्षा इंतजामों के मद्देनज़र बाराखंभा, वसंत विहार, मंडी हाउस, केंद्रीय सचिवालय, पटेल चौक, कोल कल्याण मार्ग, उद्योग भवन, आईटीओ, प्रगति मैदान, ख़ान मार्केट को बंद कर दिया गया है।

इन स्टेशनों पर मेट्रो ट्रेन नहीं रुक रही हैं। उधर, बेंगलुरु में प्रदर्शन में शामिल हुए जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा को हिरासत में ले लिया गया है।

वहाँ मौजूद बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने बताया है कि पुलिस ने स्वराज पार्टी के नेता योगेंद्र यादव समेत कई लोगों को हिरासत में ले लिया है। दिल्ली के कई इलाक़ों में टेलीकॉम सेवाओं पर भी असर हुआ है।  टेलीकॉम कंपनी एयरटेल और वोडाफ़ोन - आईडिया ने उपभोक्ताओं की शिकायत के जवाब में कहा है कि दिल्ली के कुछ इलाक़ों में इंटरनेट सेवा निलंबित की गई है। हालाँकि बाद में एयरटेल के कस्टमर केयर विभाग ने इन ट्वीट को डिलीट कर दिया।

वामपंथी दलों ने गुरुवार को भारत बंद का आह्वान किया था। कई अन्य राजनैतिक दलों और संगठनों ने भी समर्थन किया। भारत की राजधानी दिल्ली में प्रशासन ने प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी थी। दिल्ली में योगेंद्र यादव और बेंगलुरु में रामचंद्र गुहा हिरासत में लिए गए।

नागरिकता संशोधन क़ानून: ममता बनर्जी सरकार ने एनपीआर का अपडेशन रोका

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध के बीच पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) के अपडेशन का काम रोक दिया है।

इस बाबत ममता सरकार ने सभी ज़िलाधिकारियों को निर्देश भेज दिए हैं।

सोमवार को जारी इस आदेश को जनहित में लिया गया फ़ैसला बताया गया है।

ममता पहले यह लगातार कहती रही हैं कि वो अपने राज्य में एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून लागू नहीं होने देंगी, लेकिन एनपीआर को लेकर उहापोह की स्थिति में थी।

एनआरसी का विरोध और एनपीआर का समर्थन करने के कारण बीजेपी को छोड़कर विपक्षी पार्टियां ममता बनर्जी की खिंचाई करती रही हैं।

अब ममता के नए फ़ैसले का सीपीएम ने स्वागत किया है।

वहीं बीजेपी का कहना है कि एनपीआर का काम राष्ट्रीय जनगणना अधिनियम के तहत हो रहा था लिहाजा ममता बनर्जी का फ़ैसला असंवैधानिक है।

एनपीआर पर अस्थायी रोक की वजह क्या है? ममता बनर्जी एनआरसी के ख़िलाफ़ हैं। बंगाल में अल्पसंख्यक बड़ा वोट बैंक है और वे निर्णायक स्थिति में हैं। तीन दशकों से भी अधिक समय तक ये वोट बैंक वामदल के साथ था। 2011 में जब ममता सत्ता में आईं तो ज़मीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के साथ उन्हें अल्पसंख्यक वोट बैंक का भी समर्थन मिला और बंगाल में ये लगभग 30 फ़ीसदी हैं।

असम में एनआरसी की लिस्ट जब आई और उसमें क़रीब 19 लाख लोग बाहर रहे तो उसका असर बंगाल पर भी पड़ा। ममता तब से एनआरसी का मुखर विरोध करती रही हैं।

घुसपैठ की समस्या असम से ज़्यादा बंगाल में है। इसकी लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ सटी हुई है। विभाजन के बाद से ही हिन्दू बंगाली यहां आते रहे हैं। 1971 में बांग्लादेश के गठन के साथ ही वहां से बड़ी संख्या में हिन्दू बंगाली यहां आए।

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने कहा कि राज्य में विरोध प्रदर्शन और हिंसा हो रही है उसको देखते हुए सरकार ने अस्थायी तौर पर यह फ़ैसला किया है ताकि लोगों में और डर न फैले।

बंगाल सरकार के इस फ़ैसले से उपजी स्थिति के मद्देनज़र चलिए जानते हैं कि क्या है एनपीआर, एनआरसी और जनगणना और ये एक-दूसरे से कैसे अलग हैं?

आखिर जनगणना क्यों करवाई जाती है? दरअसल, देश के प्रत्येक नागरिक की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आकलन करने और इसके आधार पर किसी क्षेत्र विशेष में विकास कार्यों को लेकर सरकारी नीतियों का निर्धारण करने के लिए लोगों की गिनती (जनगणना) हर 10 साल में की जाती है।

इसमें गांव, शहर में रहने वालों की गिनती के साथ साथ उनके रोज़गार, जीवन स्तर, आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक स्थिति, उम्र, लिंग, व्यवसाय इत्यादि से जुड़े आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इन आंकड़ों का इस्तेमाल केंद्र और राज्य सरकारें नीतियां बनाने के लिए करती हैं।  

जनगणना कराने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के दफ़्तर की होती है।

इसे वैधानिक दर्जा देने के लिए 1948 में जनगणना अधिनियम पारित किया गया था।

भारत के गृह मंत्रालय के मुताबिक अंग्रेजों ने ब्रिटिश इंडिया में पहली बार 1872 में जनगणना की थी। तब से लेकर 1941 की  जनगणना तक इसमें नागरिकों की जाति पूछी जाती थी लेकिन 1947 में भारत की आज़ादी के बाद 1951 की  जनगणना से जाति को हटा दिया गया।

वैसे जनगणना में यह सवाल ज़रूर पूछा जाता रहा है कि क्या आप किसी अनुसूचित जाति से संबंधित हैं और इसमें आपकी जाति क्या है? हालांकि, इसके पक्ष में तर्क यह दिया जाता है कि अनुसूचित जाति को आबादी के अनुपात में राजनीतिक आरक्षण दिया जाएगा, यह संविधान में प्रावधान है।  इसलिए उनकी आबादी को जानना एक संवैधानिक ज़रूरत है।

आज़ादी के बाद 1951 में पहली जनगणना करवाई गई। प्रत्येक 10 साल में होने वाली जनगणना आज़ादी के बाद अब तक कुल 7 बार करवाई जा चुकी है।

अभी 2011 में की गई जनगणना के डेटा उपलब्ध हैं और 2021 की जनगणना का काम चल रहा है।

इसे तैयार करने में क़रीब तीन साल का समय लगता है। सबसे पहले जनगणना के लिए अधिकारी निर्धारित किए जाते हैं जो घर-घर जाकर निजी आंकड़े जमा करते हैं और लोगों से सवाल पूछकर जनगणना फॉर्म भरते हैं।

इसमें आयु, लिंग, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति, धर्म, व्यवसाय आदि से जुड़े सवाल होते हैं। 2011 की जनगणना में ऐसे कुल 29 सवाल पूछे गए।

इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि देश में जनसंख्या क्या है, इनमें कितनी महिलाएं और कितने पुरुष हैं, ये किस आयु वर्ग के हैं, कौन सी भाषाएं बोलते हैं, किस धर्म का पालन करते हैं, उनके शिक्षा का स्तर क्या है, कितने लोग शादीशुदा हैं, बीते 10 सालों में कितने बच्चों को जन्म हुआ, कितने लोग रोज़गार में हैं, कितने लोगों ने बीते 10 सालों में अपने रहने का स्थान बदल लिया है, इत्यादि। नियमानुसार, लोगों की इन निजी सूचनाओं को सरकार गोपनीय रखती है।

इन आंकड़ों से देश के नागरिकों की वास्तविक स्थिति सरकारों तक पहुंचती है और वो इसके आधार पर वो अपनी नीतियां तैयार करती हैं।

अब सरकार ने जनगणना का डिजिटलीकरण करने का फ़ैसला किया है।  भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 18 नवंबर को बताया कि इस बार जनगणना में मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें डिजिटल तरीके से डेटा एकत्र किए जाएंगे। यानी यह कागजों से डिजिटल फॉर्मेट की तरफ बढ़ने की शुरुआत होगी।

एनआरसी से अलग कैसे है एनपीआर? केंद्र सरकार भारत के नागरिकों की बायोमेट्रिक और वंशावली डेटा तैयार करना चाहती है और इसकी अंतिम सूची जारी करने के लिए सितंबर 2020 का समय तय किया गया है।

यह प्रक्रिया किसी भी तरह से जनगणना (Census) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से नहीं जुड़ी है।

एनआरसी की तरह एनपीआर नागरिकों की गणना नहीं है। इसमें वो विदेशी भी जोड़ लिया जाएगा जो देश के किसी हिस्से में 6 महीने से रह रहा हो।

एनपीआर का लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान का डेटा तैयार करना है।

एनपीआर क्या है? एनपीआर देश के सामान्य नागरिकों की सूची है।  2010 से सरकार ने देश के नागरिकों के पहचान का डेटाबेस जमा करने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की शुरुआत की।

गृह मंत्रालय के अनुसार सामान्य नागरिक वो है जो देश के किसी भी हिस्से में कम से कम 6 महीने से स्थायी निवासी हो या किसी जगह पर उसका अगले 6 महीने रहने की योजना हो।

गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक एनपीआर को सभी के लिए अनिवार्य किया जाएगा। इसमें पंचायत, ज़िला, राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर गणना की जा रही है।

डेमोग्राफिक डेटा में 15 कैटेगरी हैं जिनमें नाम से लेकर जन्म स्थान, शैक्षिक योग्यता और व्यवसाय आदि शामिल हैं।

इसके लिए डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक दोनों तरह का डेटा एकत्र किए जाएंगे।

बायोमेट्रिक डेटा में आधार को शामिल किया गया है जिससे जुड़ी हर जानकारी सरकार के पास पहुंचेगी।

विवाद भी इसी बात पर है कि इससे आधार का डेटा सुरक्षित नहीं रह जाएगा।

2011 में जब एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया गया तो उसमें आधार, मोबाइल नंबर और राशन कार्ड की जानकारी इकट्ठा की गई थी।

लेकिन 2015 में इसे अपडेट किया गया और नागरिकों को अब इसमें अपना नाम दर्ज करवाने के लिए पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी और पासपोर्ट की जानकारी भी देनी होगी।

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 14(ए) के तहत वैध नागरिक बनने के लिए इसमें नाम दर्ज करना अनिवार्य है।

इसमें असम को शामिल नहीं किया जाएगा क्योंकि वहां एनआरसी लागू कर दिया गया है।

एनआरसी क्या है? नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स (एनआरसी) से पता चलेगा कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं।

पूर्वोत्तर राज्य असम में बांग्लादेश से आने वाले अवैध लोगों के मुद्दे पर वहां कई हिंसक आंदोलन हुए हैं।

1985 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया जिसे असम समझौता कहते हैं जिसके तहत 25 मार्च 1971 के पहले जो बांग्लादेशी असम में आए हैं केवल उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी।

लेकिन लंबे वक्त तक इसे ठंडे बस्ते में रखा गया। फिर 2005 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इस पर काम शुरू किया।

2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस काम में तेज़ी आई और एनआरसी को तैयार किया गया।

यानी मूल रूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया है।

अगस्त 2019 में एनआरसी प्रकाशित की गई। लेकिन क़रीब 19 लाख लोगों के पास उचित दस्तावेज़ नहीं पाए जाने की वजह से उन्हें प्रकाशित रजिस्टर से बाहर रखा गया।

जिन्हें इस सूची से बाहर रखा गया उन्हें वैध प्रमाण पत्र के साथ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए वक्त दिया गया।

हालांकि इसे लेकर सड़क से संसद तक हड़कंप मच गया। 

नागरिकता संशोधन क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को नोटिस जारी किया

भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर फ़िलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

इस मामले में अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ कुल मिलाकर 59 याचिकाएं दाखिल की गई थी।

याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस के नेता जयराम रमेश, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा के अलावा जमीयत उलेमा-ए-हिंद, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग शामिल हैं।

ज्यादातर याचिकाओं में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले क़ानून को संविधान के ख़िलाफ़ बताया गया है।  

इस क़ानून के मुताबिक़ पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।

सरकार का पक्ष रखते हुए डॉक्टर राजीव धवन ने कहा कि क़ानून पर रोक लगाने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि क़ानून अभी अमल में नहीं आया है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्य कांत ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर रोक लगाने से फ़िलहाल इनकार कर दिया और कहा कि वो इस मामले की सुनवाई जनवरी में करेंगे।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि ऐसे चार फ़ैसले हैं जिनके मुताबिक इस क़ानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस को जारी करते हुए जवाब मांगा है।

नागरिकता संशोधन क़ानून में पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से ग़ैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नियमों में ढील देने का प्रावधान है।

नागरिकता संशोधन क़ानून: सीलमपुर में प्रदर्शनों के दौरान 15 पुलिसवाले घायल

दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार ने कहा है कि सीलमपुर की घटना में 21 लोग घायल हुए हैं, जिनमें 12 दिल्ली पुलिस के और तीन रैपिड एक्शन फ़ोर्स के हैं। पाँच लोगों को हिरासत में लिया गया है। दो पुलिस बूथ को नुक़सान पहुँचा है। पुलिस ने कोई लाठीचार्ज नहीं किया है। न ही कोई गोली चलाई गई है। सिर्फ़ आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं। स्थिति अब नियंत्रण में है।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ़ ख़ान के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है।

मोदी सरकार में केंद्रीय रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी ने कहा है कि वे ज़िला प्रशासन और रेलवे अधिकारियों को चेतावनी देते हैं कि अगर कोई भी सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाता है, तो मैं एक मंत्री होने के नाते उन्हें निर्देश देता हूँ कि उन्हें देखते ही गोली मार दें।

दिल्ली के सीलमपुर इलाक़े में मंगलवार को प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंके। रविवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जुलेना, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, भरत नगर और मथुरा रोड इलाके में काफ़ी हंगामा हुआ था।

दिल्ली के साकेत कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के मामले में छह अभियुक्तों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में ध्रुवीकरण के लिए जिन्ना का रास्ता अपना रहे हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून के माध्यम से केंद्र हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि पुलिस ने जिस तरह शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की, उससे उन्हें काफ़ी पीड़ा हुई है।

दिल्ली पुलिस के पीआरओ एम एस रंधावा ने सीलमपुर में हुई झड़प पर कहा कि सीलमपुर में हालात नियंत्रण में हैं। हालात पर हमलोग की नज़र बनी हुई है। हमलोग इलाक़े का सीसीटीवी फुटेज देख रहे हैं। वीडियो रिकॉर्डिंग भी हुआ है।

भारत के राष्ट्रपति से मिलने गईं कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी ने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर भारत में शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया है। सोनिया ने कहा कि बहुत ही गंभीर हालात हैं और डर है कि हालात बेकाबू न हो जाएं। कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के साथ पुलिस ग़लत तरीक़ा अपना रही है।

दिल्ली में विरोध-प्रदर्शनों के बीच विपक्षी पार्टियों के नेता कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले। सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति से मोदी सरकार की शिकायत की और कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को सरकार कुचलने की कोशिश कर रही है। सोनिया गांधी ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों की आवाज़ नहीं दबाई जा सकती।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीलमपुर वालों से शांति की अपील की। नए नागरिकता संशोधन क़ानून पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ''मेरी सभी दिल्लीवासियों से अपील है कि शांति बनाए रखें। एक सभ्य समाज में किसी भी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती। हिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा। अपनी बात शांति से कहनी है।''

पुलिस का कहना है कि हालात नियंत्रण में हैं लेकिन तनाव अब भी बना हुआ है। कई मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं। पुलिस का कहना है कि इलाक़े की शांति समिति ने लोगों से घर में रहने की अपील की है।

दिल्ली के जॉइंट सीपी आलोक कुमार ने कहा, ''सीलमपुर टी पॉइंट पर एक घंटे तक शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों में से ही कुछ लोगों ने पत्थरबाजी शुरू की। मदरसों और मस्जिदों से शांति की अपील की गई है। अब हालात नियंत्रण में हैं। कुछ पुलिस वाले ज़ख़्मी हुए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक हज़ार से ज़्यादा प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे थे। प्रदर्शन के दौरान ही पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प हुई।  डीएमआरसी के अनुसार सीलमपुर और गोकुलपुरी मेट्रो स्टेशन की एंट्री और एग्ज़िट को बंद कर दिया गया है।

इसके अलावा वेलकम, जाफ़राबाद, मौज़पुर और बाबरपुर मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिए गए हैं। डीटीसी की एक बस को भी नुकसान पहुंचाया गया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इस झड़प में दो पुलिसकर्मी ज़ख़्मी हुए हैं। कहा जा रहा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन क़ाबू से बाहर हो गया। टीवी फुटेज में दिख रहा है कि पुलिसकर्मियों के सामने लोगों की भारी भीड़ है।  बसों और कारों को नुक़सान पहुंचा है और सड़क पर ईंट-पत्थर बिखरे हुए हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस इलाक़े में सड़कों पर कई बैरिकेड लगाए गए हैं।

दिल्ली के सीलमपुर में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई है। इस दौरान एक स्कूल बस को नुक़सान पहुंचा है और एक पुलिस चौकी में आग लगा दी गई है। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया है और आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं।

नागरिकता संशोधन क़ानून: सोनिया गांधी ने कहा, शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को सरकार कुचलने की कोशिश कर रही है

दिल्ली के सीलमपुर इलाक़े में मंगलवार को प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंके। रविवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जुलेना, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, भरत नगर और मथुरा रोड इलाके में काफ़ी हंगामा हुआ था।

दिल्ली के साकेत कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के मामले में छह अभियुक्तों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में ध्रुवीकरण के लिए जिन्ना का रास्ता अपना रहे हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून के माध्यम से केंद्र हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि पुलिस ने जिस तरह शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की, उससे उन्हें काफ़ी पीड़ा हुई है।

दिल्ली पुलिस के पीआरओ एम एस रंधावा ने सीलमपुर में हुई झड़प पर कहा कि सीलमपुर में हालात नियंत्रण में हैं। हालात पर हमलोग की नज़र बनी हुई है। हमलोग इलाक़े का सीसीटीवी फुटेज देख रहे हैं। वीडियो रिकॉर्डिंग भी हुआ है।

भारत के राष्ट्रपति से मिलने गईं कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी ने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर भारत में शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया है। सोनिया ने कहा कि बहुत ही गंभीर हालात हैं और डर है कि हालात बेकाबू न हो जाएं। कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के साथ पुलिस ग़लत तरीक़ा अपना रही है।

दिल्ली में विरोध-प्रदर्शनों के बीच विपक्षी पार्टियों के नेता कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले। सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति से मोदी सरकार की शिकायत की और कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को सरकार कुचलने की कोशिश कर रही है। सोनिया गांधी ने कहा कि लोकतंत्र में लोगों की आवाज़ नहीं दबाई जा सकती।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीलमपुर वालों से शांति की अपील की। नए नागरिकता संशोधन क़ानून पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ''मेरी सभी दिल्लीवासियों से अपील है कि शांति बनाए रखें। एक सभ्य समाज में किसी भी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती। हिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा। अपनी बात शांति से कहनी है।''

पुलिस का कहना है कि हालात नियंत्रण में हैं लेकिन तनाव अब भी बना हुआ है। कई मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं। पुलिस का कहना है कि इलाक़े की शांति समिति ने लोगों से घर में रहने की अपील की है।

दिल्ली के जॉइंट सीपी आलोक कुमार ने कहा, ''सीलमपुर टी पॉइंट पर एक घंटे तक शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों में से ही कुछ लोगों ने पत्थरबाजी शुरू की। मदरसों और मस्जिदों से शांति की अपील की गई है। अब हालात नियंत्रण में हैं। कुछ पुलिस वाले ज़ख़्मी हुए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक हज़ार से ज़्यादा प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे थे। प्रदर्शन के दौरान ही पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प हुई।  डीएमआरसी के अनुसार सीलमपुर और गोकुलपुरी मेट्रो स्टेशन की एंट्री और एग्ज़िट को बंद कर दिया गया है।

इसके अलावा वेलकम, जाफ़राबाद, मौज़पुर और बाबरपुर मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिए गए हैं। डीटीसी की एक बस को भी नुकसान पहुंचाया गया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इस झड़प में दो पुलिसकर्मी ज़ख़्मी हुए हैं। कहा जा रहा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन क़ाबू से बाहर हो गया। टीवी फुटेज में दिख रहा है कि पुलिसकर्मियों के सामने लोगों की भारी भीड़ है।  बसों और कारों को नुक़सान पहुंचा है और सड़क पर ईंट-पत्थर बिखरे हुए हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस इलाक़े में सड़कों पर कई बैरिकेड लगाए गए हैं।

दिल्ली के सीलमपुर में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई है। इस दौरान एक स्कूल बस को नुक़सान पहुंचा है और एक पुलिस चौकी में आग लगा दी गई है। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया है और आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं।

सीएए और एनआरसी पर ममता बनर्जी की मोदी सरकार को सीधी चेतावनी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को नागरिकता संशोधन क़ानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स (एनआरसी) पर खुली चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि अगर केंद्र चाहे तो उनकी सरकार को बर्खास्त कर सकता है, लेकिन वो नागरिकता संशोधन क़ानून को बंगाल में लागू नहीं होने देंगी।

ममता ने सोमवार को एक रैली में कहा, "यदि वह इसे लागू करेंगे तो यह मेरी लाश पर होगा।''

इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर कहा कि यह राज्यपाल का दायित्व है कि वह राज्य में शांति बनाए रखने में राज्य सरकार का सहयोग करें, न कि उकसावे के जरिए स्थिति को भड़काएं।

राज्यपाल ने यह कहते हुए इसका जवाब दिया कि वह बनर्जी द्वारा अपनाए गए ''अनुचित दृष्टिकोण'' से बहुत पीड़ित हैं। उन्होंने लोगों के हित में मिलकर काम करने का आग्रह किया।

राज्यपाल ने ट्वीट कर कहा था कि मुख्यमंत्री और राज्य के अन्य मंत्रियो ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ रैली बुलाई है, वह असंवैधानिक है और संवैधानिक पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति क़ानून का विरोध नहीं कर सकता।

उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी से उनकी मंगलवार को मुलाक़ात होगी और उम्मीद है कि उसमें सभी अहम मसलों पर बातचीत होगी।

नागरिकता संशोधन क़ानून: उत्तर प्रदेश में उथल-पुथल, कई शहरों में विरोध प्रदर्शन

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और लखनऊ से शुरू हुए उग्र प्रदर्शनों का असर राज्य के दूसरे शहरों में भी दिखने लगा है। मऊ ज़िले में सोमवार शाम जहां स्थानीय नागरिकों ने हिंसक प्रदर्शन किया। वहीं वाराणसी में नागरिकता क़ानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हो गई। कई शहरों में आज भी प्रदर्शन हो रहे हैं।

मऊ में सोमवार को बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने दोपहर बाद सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, वहीं शाम को भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने क़रीब एक दर्जन वाहनों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी। इसके अलावा भीड़ ने दक्षिण टोला थाने को भी आग के हवाले करने की कोशिश की। घटना की जानकारी होते ही ज़िले के आला अधिकारी वहां पहुंचे और भीड़ को क़ाबू करने की कोशिश की। प्रशासन ने लोगों को अनावश्यक घरों से न निकलने की भी चेतावनी दी गई।

मऊ के ज़िलाधिकारी ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी ने बताया, "मिर्ज़ा हादीपुरा में कुछ युवकों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस की कार्रवाई के विरोध में ज्ञापन देने की योजना बनाई थी। देखते ही देखते मौक़े पर भीड़ बढ़ने लगी। पुलिस ने भीड़ को हटाने का प्रयास किया लेकिन प्रदर्शनकारियों का कोई नेतृत्व नहीं कर रहा था इसलिए दिक़्क़त आ रही थी। अचानक भीड़ ने दक्षिण टोला थाने के आस-पास पथराव और आगज़नी शुरू कर दी। वीडियो फुटेज देखकर उपद्रवियों की धरपकड़ की जाएगी।''

ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी का कहना है कि पूरे शहर में धारा 144 लगा दी गई है। उनका कहना था, "प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए ये घोषणा की गई कि आप लोग शांत नहीं होंगे तो कर्फ़्यू लगा दिया जाएगा। अभी कर्फ़्यू लगाया नहीं गया है। लोगों से ये भी कहा गया कि जब तक ज़रूरत न हो लोग घरों से न निकलें।''

हालांकि स्थानीय लोगों के मुताबिक, शहर में देर रात तक पुलिस और प्रशासन वाले ये घोषणा करते रहे कि पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया है और जो भी बाहर निकलेगा उसे गिरफ़्तार करके उसके ख़िलाफ़ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। सोमवार को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी छोड़े। पूरे शहर में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।

मऊ ज़िले के तमाम छात्र दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं। दोनों ही जगह छात्रों के ख़िलाफ़ हुई पुलिस कार्रवाई से युवाओं और स्थानीय लोगों में कई दिन से ग़ुस्सा था और लोग प्रदर्शन के लिए इकट्ठे होने की तैयारी कर रहे थे।

मऊ नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन अरशद जमाल हिंसक प्रदर्शन के लिए कुछ असामाजिक तत्वों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं, "जिस लड़ाई को शान्तिपूर्वक लड़ना था उसमें सेंध लगाकर आंदोलन की धार कुंद करने का काम किया गया है। इस काम को हम लोग राजनैतिक दलों के बैनर तले करने वाले थे। 19 दिसम्बर को वाम दलों और समाजवादी पार्टी का मार्च और धरना पहले से निर्धारित है जिसकी सूचना ज़िला प्रशासन को भी दी गई है।''

फ़िलहाल मऊ ज़िले में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। ज़िला प्रशासन का कहना है कि शहर के कुछ स्थानीय नेताओं ने सोशल मीडिया पर इस मामले में लोगों को भड़काने की कोशिश की थी जिसकी वजह से प्रदर्शन हिंसक हुआ है। डीएम के मुताबिक, यही वजह है कि कुछ समय के लिए इंटरनेट सेवाएं बाधित की गई हैं और जिन लोगों ने 'आग में घी' डालने का काम किया है, उनकी पहचान की जा रही है।

वहीं बीएचयू और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी सोमवार को नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए और आज भी दोनों जगह प्रदर्शन की घोषणा की गई है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों में प्रदर्शनों को देखते हुए दो दिन के अवकाश की घोषणा की है।  

बीएचयू में सोमवार शाम सिंह द्वार पर नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ छात्रों ने मशाल जुलूस भी निकाला। एक जगह पर क़ानून का विरोध करने वाले छात्रों और समर्थन कर रहे छात्रों का आमना-सामना भी हुआ लेकिन कोई अप्रिय स्थिति नहीं उत्पन्न होने पाई।

उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच राज्य सरकार ने पश्चिमी यूपी में हाई अलर्ट जारी कर दिया है। अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, कासगंज ज़िलों में इंटरनेट सेवाएं बाधित की गई हैं और तनाव को देखते हुए इन ज़िलों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की कंपनियां तैनात की गई हैं।

अलीगढ़ में रविवार को हुई हिंसा में क़रीब दो दर्जन लोग गिरफ़्तार किए गए हैं। इनकी रिहाई का दबाव बनाने के लिए कुछ बाज़ार भी सोमवार को बंद रखे गए। बताया जा रहा है कि कई छात्र लापता भी हैं, हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसकी पुष्टि नहीं की है।

सोमवार को लखनऊ के नदवा कॉलेज में हुए प्रदर्शन के बाद, कॉलेज को पांच जनवरी तक के लिए बंद कर दिया गया है। कॉलेज में रह रहे छात्रों को उनके घर भेज दिया गया है। वहीं एएमयू में 28 नवंबर से ही परीक्षाएं चल रही थीं जो 21 दिसंबर तक होनी थीं।  

लेकिन हिंसा के बाद एएमयू कैंपस को बंद कर दिया गया है और छात्रावास खाली करा लिए गए हैं। पांच जनवरी तक एएमयू बंद कर दिया गया है और परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं। एएमयू प्रशासन के मुताबिक एएमयू के किशनगंज, मुर्शिदाबाद और मल्लापुरम केंद्रों पर भी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।

जामिया लाइव : नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध की आग दिल्ली पहुंची

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों की आग दिल्ली भी पहुंच गई है। मथुरा रोड पर जामिया नगर से सटे इलाक़े में डीटीसी की बसों में आग लगाई गई।

चश्मदीदों के अनुसार नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ लोग प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन के दौरान पुलिस और भीड़ में टकराव हुआ। प्रदर्शनकारियों ने कई बसें, कारें और दोपहिया वाहर फूंके।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चीफ़ प्रॉक्टर ने कहा कि पुलिस जबरदस्ती कैंपस में घुसी। जामिया स्टूडेंट्स ने भी हिंसा की निंदा की।

रविवार शाम को दिल्ली से मथुरा जाने वाली सड़क पर प्रदर्शनकारियों ने कई बसों में आग लगा दी।

बसों में लगी आग बुझाने के लिए पहुंची फायर ब्रिग्रेड की गाड़ियों पर भी प्रदर्शनकारियों ने धावा बोला और तोड़ फोड़ की।

प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव दिल्ली के ओखला, जामिया और कालिंदी कुंज वाले इलाके में हुआ।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों सहित प्रदर्शनकारियों ने कालिंदी कुंज रोड पर नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया।

मीडिया की ख़बरों में दावा किया जा रहा है कि हिंसा में जामिया के छात्र शामिल थे।

इन ख़बरों पर समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया के आला अधिकारियों ने ये दावा किया है कि हिंसा इसी इलाक़े में स्थानीय लोगों द्वारा किए गए प्रदर्शन के दौरान हुई, ना कि यूनिवर्सिटी के छात्रों के प्रदर्शन के समय।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मौजूद बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ने बताया कि इन घटनाओं के बाद दिल्ली पुलिस ने जामिया परिसर की घेराबंदी कर दी है।

यूनिवर्सिटी के चीफ़ प्रॉक्टर वसीम अहमद ख़ान ने ट्वीट किया कि दिल्ली पुलिस ने बिना अनुमति के परिसर में प्रवेश किया है। उनके कर्मचारियों और छात्रों को पीटा गया और परिसर छोड़ने पर मजबूर किया गया है।  

जामिया टीचर एसोसिएशन ने छात्रों से अपील की है कि वो इलाक़े में स्थानीय नेताओं द्वारा किए जा रहे दिशाहीन प्रदर्शनों में कतई शामिल ना हों।

जामिया की वीसी नजमा अख्तर ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि पुस्तकालय के भीतर के छात्रों को बाहर निकाला गया और वो सुरक्षित हैं। उन्होंने पुलिस की कार्रवाई की निंदा की।

घटनास्थल पर मौजूद बीबीसी संवाददाता बुशरा शेख ने बताया कि एक पुरुष पुलिसवाले ने ना सिर्फ़ उनका मोबाइल छीन कर तोड़ दिया बल्कि बदसलूकी भी की।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदर्शनकारियों से शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने की अपील की है।

उन्होंने कहा है कि किसी भी तरह की हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, हुआ ये कि जामिया के स्टूडेंट्स ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध मार्च निकाला था।

छात्रों का जुलूस जैसे ही न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के कम्यूनिटी सेंटर के पास से गुज़रा, वहां पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बैरीकेड्स लगा रखे थे।  

वहां कुछ छात्र बैठ गए थे, इन छात्रों में जामिया के स्टूडेंट्स के अलावा भी दूसरे स्टूडेंट भी शामिल थे।

पुलिस की नाकेबंदी को देखते हुए छात्रों का समूह दूसरे रास्ते से आश्रम की तरफ़ बढ़ने लगा।

ये रास्ता जंतर मंतर की तरफ़ जाता था। हालांकि ये बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती कि छात्रों का ये समूह जंतर-मंतर की तरफ़ ही जा रहा था या कहीं और।

छात्रों ने आश्रम के पास रास्ता जाम कर दिया। ये सड़क दिल्ली-फरीदाबाद रोड थी।  

पुलिस ने सड़क खाली कराने के लिए वहां लाठी चार्ज किया। इन छात्रों में लड़के-लड़कियां दोनों ही थे। पुलिस ने इन छात्रों की वहां पर पिटाई की।

इस दौरान दूसरी तरफ़ मौजूद प्रदर्शनकारियों की ओर से भी पुलिस पर पत्थरबाज़ी हुई।  

फिर पुलिस ने वहां लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। अभी भी पुलिस वहां आंसू गैस के गोले छोड़ रही है।

इससे पहले भी जामिया के छात्रों ने 13 दिसंबर को मार्च निकालने की कोशिश की थी लेकिन पुलिस ने उन्हें बैरीकेड लगाकर रोक दिया था।

पिछले दो-तीन दिनों से पुलिस ने न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के कम्यूनिटी सेंटर के पास बैरीकेड लगा रखा था।  

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने ट्वीट किया है कि सुरक्षा कारणों से वसंत विहार, मुनिरका और आर के पुरम मेट्रो स्टेशनों को फ़िलहाल बंद कर दिया गया है।

इसके अलावा पटेल चौक, विश्वविद्यालय, जीटीबी नगर, शिवाजी स्टेडियम मेट्रो स्टेशनों को भी बंद किया गया है।

डीएमआरसी ने सुखदेव विहार, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, ओखला विहार, जसोला और शाहीन बाग मेट्रो स्टेशनों को भी बंद करने का अपडेट जारी किया है।

दक्षिण-पूर्व दिल्ली के डीसीपी चिन्मय बिस्वाल ने कहा है कि प्रदर्शन में आई भीड़ बहुत आक्रामक थी। स्थिति को कंट्रोल करने के लिए हमने उग्र भीड़ को तितर-बितर किया था जिसके जवाब में पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाज़ी की गई। इसमें क़रीब छह पुलिसवाले घायल हुए हैं।

बिस्वाल ने कहा, "हमें जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों से कोई शिक़ायत नहीं थी। पर कैंपस के अंदर से भी हम पर पथराव किया गया। हम यूनिवर्सिटी प्रशासन से कहेंगे कि वे उन छात्रों की पहचान करें।''

बिस्वाल ने कहा कि उग्र भीड़ ने डीटीसी की चार बसों और पुलिस के दो वाहनों समेत कुछ अन्य वाहनों में भी आग लगाई जिसकी वजह से पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े।

दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि जामिया यूनिवर्सिटी और इससे सटे इलाक़ों में फ़िलहाल स्थिति नियंत्रण में है।

पुलिसिया कार्रवाई के बाद जामिया के छात्र दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्रों के समर्थन में सीपीआई नेता डी. राजा और सीपीएम नेता वृंदा करात आईटीओ पहुंची है।

वहीं, दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने ट्वीट करके बस जलाने के लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार ठहराया है।

मनीष सिसौदिया ने ट्वीट करके कल दक्षिण पूर्वी दिल्ली के ओखला, जामिया, न्यू फ्रैंड्स कॉलोनी, मदनपुर खादर क्षेत्र के सभी सरकारी और निजी स्कूलों को बंद करने की घोषणा की है।