भारत में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बाबरी मस्जिद-अयोध्या मामले में दाख़िल सभी 18 पुनर्विचार याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया है।
बंद चैंबर में पाँच जजों की संवैधानिक बेंच ने सभी याचिकाओं पर सुनवाई की और उन्हें ख़ारिज कर दिया। यानी बाबरी मस्जिद-अयोध्या केस के फैसले का रिव्यू नहीं होगा।
बीबीसी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के 9 नंवबर 2019 के बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि फ़ैसले पर दिए गए फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की माँग करते हुए 18 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें से 9 याचिकाएं पक्षकार की ओर से थीं, जबकि 9 अन्य याचिकाएं अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से लगाई गई थीं। इन सभी याचिकाओं की मेरिट पर गुरुवार को विचार किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार संवैधानिक बेंच ने बंद चैंबर में कुल 18 पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार किया। इस मामले में सबसे पहले 2 दिसंबर को पुनर्विचार याचिका मूल वादी एम सिद्दकी के क़ानूनी वारिस मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने दायर की थी।
इसके बाद 6 दिसंबर को मौलाना मुफ़्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफ़ूज़ुर्रहमान, हाजी महबूब और मिसबाहुद्दीन ने छह याचिकाएं दायर कीं। इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त था।
इसके बाद 9 दिसंबर को दो और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। इनमें से एक याचिका अखिल भारत हिंदू महासभा की थी, जबकि दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की थी।
संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफ़ान हबीब, अर्थशास्त्री व राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल थे।
हिंदू महासभा ने अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करके मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को आवंटित करने के आदेश पर सवाल उठाये थे।
साथ ही हिंदू महासभा ने फ़ैसले से उस अंश को हटाने का अनुरोध किया था जिसमें बाबरी मस्जिद ढांचे को मस्जिद घोषित किया गया है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ये स्पष्ट कर दिया कि इनमें से किसी भी दलील के आधार पर वो अपने फ़ैसले को रिव्यू नहीं करेगा।
अयोध्या केस पर फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया था जिसमें कुल पाँच जज थे। यह फ़ैसला सभी जजों ने सर्वसम्मति से सुनाया था।
जस्टिस गोगोई अब रिटायर हो चुके हैं। उनकी जगह जस्टिस एस ए बोबडे ने ली है।
पुनर्विचार की याचिकाओं पर एकमुश्त फ़ैसला भी पाँच जजों की बेंच ने ही सुनाया है।
मुख्य न्यायाधीश बोबडे सहित चार वो जज हैं जिन्होंने नौ नवंबर को फ़ैसला सुनाया था। जबकि जस्टिस संजीव खन्ना को पाँचवें जज के तौर पर शामिल किया गया।
इस फ़ैसले पर पुनर्विचार की माँग ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, हिंदू महासभा, निर्मोही अखाड़ा और कई एक्टिविस्टों ने की थी। उनका कहना था कि इस निर्णय में कई ग़लतियाँ हैं।
अपने नौ नवंबर के फ़ैसले में पाँच जजों की बेंच ने बाबरी मस्जिद की जमीन को राम मंदिर बनाने के लिए देने का आदेश दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाने और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही कहीं और पाँच एकड़ ज़मीन देने का आदेश दिया था।
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में स्थिति बिगड़ती जा रही है। असम के कई इलाक़ों में हिंसा की कई घटनाएँ हुई हैं। कई इलाक़ों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत हुई है।
डिब्रूगढ़ में कर्फ़्यू की परवाह किए बग़ैर सड़कों पर निकले प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फ़ायरिंग हुई है। डिब्रूगढ़ के पुलिस अधीक्षक गौतम बोरा ने बीबीसी को बताया कि पुलिस को इसलिए फ़ायरिंग करनी पड़ी, क्योंकि प्रदर्शनकारी काफ़ी उग्र हो गए थे और पुलिस पर हमला कर रहे हैं।
स्थानीय पत्रकार अलख निरंजन सहाय के मुताबिक़ फ़ायरिंग में कुछ लोगों को गोलियाँ लगी हैं। घायलों को विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
गुवाहाटी समेत असम के अधिकतर इलाक़ों में इंटरनेट सेवाएँ भी बंद करा दी गई हैं।
असम के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) संजय कृष्ण ने कहा है कि यह प्रतिबंध फ़िलहाल आज शाम 7 बजे तक के लिए ही है। इसका असर सभी मोबाइल और डेटा कंपनियों की इंटरनेट सेवाओं पर पड़ा है। इंटरनेट पूरी तरह बंद है।
कई इलाक़ों में इंटरनेट सेवा बंद होने के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर असम के लोगों को आश्वस्त किया है कि उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
अपने ट्वीट में मोदी ने कहा है- कोई भी आपका अधिकार, आपकी विशेष पहचान और सुंदर संस्कृति को आपसे ले नहीं सकता। मैं असम के बहनों और भाइयों को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि उन्हें नागरिकता विधेयक से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं।
इससे पहले आक्रोशित लोगों ने वहाँ के आरएसएस दफ़्तर में तोड़फोड़ की और वहाँ आगज़नी की कोशिशें की। गुवाहाटी में सेना की दो टुकड़ियाँ फ़्लैग मार्च कर रही है। डिब्रूगढ़ में भी सेना तैनात की गई है। सेना के जनसंपर्क अधिकारी लेफ़्टिनेंट कर्नल पी खोंगसाई ने बीबीसी को यह जानकारी दी है।
स्थानीय मीडिया में यह खबर भी है कि कश्मीर में तैनात पारा मिलिट्री के पाँच हज़ार जवान असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में भेजे जा रहे हैं।
गुवाहाटी के पुलिस कमिश्नर दीपक कुमार ने बीबीसी को बताया कि कर्फ़्यू के दौरान जरुरी सेवाओं को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। एम्बुलेंस, मीडिया और विशेष आवश्यकता में घरों से निकले लोगों के अनुमति पास देखने के बाद पुलिस उन्हें नहीं रोक रही है।
असम की हिंसा के बीच बुधवार को ये विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये विधेयक क़ानून बन जाएगा।
डिब्रूगढ़ में भी कर्फ़्यू लगा दिया गया है। वहाँ प्रदर्शनकारियों ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली के घर को निशाना बनाया। असम के मुख्यमंत्री के घर पर पथराव किया गया। केंद्रीय मंत्री के घर पर हमले में संपत्ति को भी नुक़सान पहुँचा है।
असम जाने वाली कई ट्रेनें या तो रद्द कर दी गई हैं या फिर उनका रास्ता बदल दिया गया है। बुधवार रात प्रदर्शनकारियों ने डिब्रुगढ़ ज़िले के चाबुआ में एक रेलवे स्टेशन को आग लगा दी।
तिनसुकिया में पानीटोला रेलवे स्टेशन को भी आग लगा दी गई। असम के अलावा पड़ोसी त्रिपुरा में असम राइफ़ल्स के जवानों को तैनात किया गया है।
त्रिपुरा में भी सेना की दो टुकड़ियाँ तैनात की गई हैं। गुरुवार को विपक्षी कांग्रेस ने त्रिपुरा में बंद का आह्वान किया है।
11 दिसंबर की सुबह सड़कों पर रोज़ की तरह आवाजाही रही। लोग अपने-अपने दफ्तरों और दुकानों के लिए निकल गए। लेकिन, दोपहर 12 बजे के बाद गुवाहाटी के फैंसी बाज़ार, क्रिश्चियन बस्ती, नेटपी हाउस, गुवाहाटी यूनिवर्सिटी, चांदमारी, पलटन बाज़ार जैसे इलाक़ों में छात्र-छात्राओं की अलग-अलग टुकड़ियां नो कैब की तख्तियां लेकर निकलने लगीं।
प्रदर्शनकारियों ने दिसपुर चलो का आह्वान किया और महज़ दो घंटे के अंदर गुवाहाटी-शिलांग हाईवे (जीएस रोड) पर हज़ारों प्रदर्शनकारी जमा हो गए। आक्रोशित लोगों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पुतले फूंके और दर्जनों जगहों पर आगज़नी कर सड़क को जाम कर दिया। इस कारण कई किलोमीटर तक सैकड़ों मोटर गाड़ियों की क़तारें लग गईं। पुलिस को वहां लाठीचार्ज करना पड़ा और आँसू गैस के गोले भी छोड़े गए।
इसके बावजूद लोगों का ग़ुस्सा कम नहीं हुआ और प्रदर्शनकारियों की भीड़ लगातार बढ़ती चली गई। लोगों ने जीएस रोड फ्लाइओवर पर रखे गमले तोड़ दिए और पास की खुली दुकानों पर पत्थरबाज़ी की।
शाम होने के बाद हालात और बिगड़ गए और ऐसा लगा मानो हर जगह आग लगी हो। शहर की मुख्य सड़कों और उनको जोड़ने वाली सब्सिडियरी सड़कों पर टायरों और प्लास्टिक की बनी बैरिकेटिंग्स में आग लगाकर जाम कर दिया गया। तब सैकडों गाड़ियां जहां-तहां फंस गईं। इस दौरान गाड़ियों में तोड़फोड़ भी की गई। अंधेरा ढलने के बाद हर जगह जलते हुए टायरों से निकलती आग की लपटें दिखायी देने लगीं और फ़ायरिंग और विस्फोट की आवाज़ें भी सुनी गईं।
ऑल असम गोरखा स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष प्रेम तमांग ने बीबीसी को बताया कि 11 दिसंबर के बंद का आह्वान किसी संगठन ने नहीं किया था। यह स्वतः स्फूर्त है और इसका नेतृत्व कोई नहीं कर रहा है। यह दरअसल जन आंदोलन है। लोगों को लगता है कि कैब के कारण असमिया विरासत और वजूद पर संकट आ जाएगा। इस कारण लोग आंदोलन कर रहे हैं।
जीएस रोड पर प्रदर्शन में शामिल पंकज हातकर ने बीबीसी से कहा कि असम में लोगों के पास पहले से ही बहुत समस्याएं हैं। अब जब सरकार बाहरी लोगों को यहां का नागरिक बना देगी, तब हमलोग कहां जाएंगे। हम पहले से ही बेरोज़गारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
भारत में इंडियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। गुरुवार को उसकी ओर से एक याचिका दायर की गई है।
सोमवार को लोकसभा ने और बुधवार को राज्यसभा ने इस बिल को बहुमत से मंज़ूर किया है, यह बिल 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव के लिए लाया गया है।
इस बदलाव के बाद भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, जैन, पारसी, ईसाई, बौद्ध और सिखों को भारत की नागरिकता दिए जाने का रास्ता खुल गया है।
मुस्लिम लीग के सांसदों पी के कुन्हालिकुट्टी, ईटी मोहम्मद बशीर, अब्दुल वहाब और के एन कनी ने सामूहिक तौर पर यह याचिका दायर की है।
याचिका दायर करने वालों का कहना है कि वे किसी को शरण दिए जाने के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन इस सूची से मुसलमानों को अलग रखना उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव है जिसकी अनुमति भारत का संविधान नहीं देता।
याचिका दायर करने वाले के वकीलों का कहना है कि यह संशोधन संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है, संविधान की प्रस्तावना में लिखा गया है कि भारत एक सेकुलर देश है नागरिकता को धर्म से जोड़ा जा रहा है जो सही नहीं है।
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मोदी सरकार से जुड़े लोगों ने बार-बार दावा किया है कि इसका भारत के अल्पसंख्यकों से कोई संबंध नहीं है, इससे उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह संशोधन तीन देशों में बसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए है और मुसलमान इन तीन देशों में अल्पसंख्यक नहीं हैं।
याचिका में श्रीलंका के तमिल हिंदुओं और बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल न किए जाने पर एतराज़ किया गया है और इसे भेदभाव बताया गया है।
याचिका दायर करने वालों की मांग है कि इस संशोधन विधेयक को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया जाए।
लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद अब इस बिल को क़ानून का रूप देने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है।
भारत में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उद्धव ठाकरे ने गुरुवार देर शाम कैबिनेट की पहली बैठक की।
इस बैठक के बाद सीएम उद्धव ठाकरे ने मीडिया को सम्बोधित किया। उद्धव ठाकरे ने कहा, ''मैंने अधिकारियों से कहा है कि किसानों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की जो योजनाएँ हैं, मुझे उसकी पूरी जानकारी दी जाए। अगले दो दिनों में महाराष्ट्र सरकार किसानों के लिए बड़े ऐलान करेगी। सरकार किसानों की खुशहाली के लिए काम करेगी।''
उद्धव ठाकरे सरकार ने रायगढ़ के शिवाजी किले के सरंक्षण के लिए 20 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी है। शिवाजी की रियासत की राजधानी रायगढ़ रहा था और फिलहाल इस किले की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने उद्धव ठाकरे से पूछा कि क्या शिवसेना सेक्यूलर हो गई है?
इस पर ठाकरे ने कहा, ''सेक्यूलर का मतलब क्या है? आप मुझसे पूछ रहे हैं सेक्यूलर का मतलब। आप बताओ न सेक्यूलर का मतलब क्या है? संविधान में जो कुछ है वो है।''
इस सवाल से उद्धव ठाकरे साफ़ असहज नज़र आए। संभवत: उद्धव ने इस सवाल की उम्मीद नहीं की होगी।
दूसरा ये कि उद्धव ने अब तक अपने घोर राजनीतिक विरोधी रहे कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई है।
इसकी कल्पना कुछ वक़्त पहले तक राजनीति के जानकारों ने भी नहीं की होगी। शिवसेना 60 के दशक में अपने गठन के बाद से ही और ख़ासकर 80 के दशक से अपने कट्टर हिंदुत्व की छवि के लिए जानी जाती रही है।
वहीं कांग्रेस हमेशा ये दावा करती रही है कि वो एक सेक्यूलर पार्टी है। ऐसे में दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं की पार्टियों के एक साथ आने से ऐसे सवालों का उठना लाज़िमी है।
शिव सेना और कांग्रेस सत्ता में कभी साथ नहीं रहे लेकिन कई मुद्दों पर दोनों पार्टियां एक साथ रही हैं।
शिव सेना उन पार्टियों में से एक है जिसने 1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया था। तब बाल ठाकरे ने कहा था कि आपातकाल देशहित में है।
आपातकाल ख़त्म होने के बाद मुंबई नगर निगम का चुनाव हुआ तो दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला। इसके बाद बाल ठाकरे ने मुरली देवड़ा को मेयर बनने में समर्थन देने का फ़ैसला किया था।
1980 में कांग्रेस को फिर एक बार शिव सेना का समर्थन मिला। बाल ठाकरे और कांग्रेस नेता अब्दुल रहमान अंतुले के बीच अच्छे संबंध थे और ठाकरे ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में मदद की।
1980 के दशक में बीजेपी और शिव सेना दोनों साथ आए तो बाल ठाकरे ने खुलकर कांग्रेस का समर्थन कम ही किया लेकिन शिव सेना ने 2007 में एक बार फिर से राष्ट्रपति की कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को समर्थन दिया, ना कि बीजेपी के उम्मीदवार को।
शिव सेना ने प्रतिभा पाटिल के मराठी होने के तर्क पर बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया था। पाँच साल बाद एक बार फिर से शिव सेना ने कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी को समर्थन दिया। बाल ठाकरे शरद पवार को पीएम बनाने पर भी समर्थन देने की घोषणा कर चुके थे।
इन उदाहरणों से साबित होता है कि शिव सेना को मराठी और हिदुत्व में से किसी एक को चुनना होगा तो वह मराठी को चुनेगा और हिंदुत्व को छोड़ देगा।
जो महाराष्ट्र में शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन सरकार बनने से एक बार फिर से साबित हो गया है।
भारत में मार्च 2018 तक बीजेपी की 21 राज्यों में सरकारें थीं। कुछ राज्यों में बीजेपी अपने दम पर सरकार में थी और कुछ राज्यों में सहयोगी दलों की मदद से सरकार चला रही थी।
2019 में जम्मू-कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बँटने से पहले भारत में कुल 29 राज्य थे। केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 7 थी। अब राज्यों की संख्या घटकर 28 हो गई है। केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या बढ़कर 9 हो गई है।
महाराष्ट्र में एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बीजेपी एक और राज्य में सत्ता से बाहर हो गई है।
2018 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हारने के बाद महाराष्ट्र बीजेपी के लिए ताज़ा झटका है।
किसी एक राजनीतिक पार्टी का भारत में इस संख्या में राज्यों की सरकारों में होना पहली बार नहीं है। 1993 में कांग्रेस पार्टी की भारत के 26 राज्यों में से 16 राज्यों में सरकारें थीं। इनमें से 15 राज्यों में कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में थी।
भारत में 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में सत्ता संभाल रही थी।
मार्च 2018 आते-आते बीजेपी तेज़ी से बढ़ते हुए 21 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही। बीजेपी ने चार साल में तिगुना विस्तार किया।
2015 में जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने पीडीपी से हाथ मिलाया था। इन चुनावों में पीडीपी 28, बीजेपी 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस 15 और कांग्रेस 12 सीटें जीत सकी थी। उस समय जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं।
ये पहली बार था, जब पंजाब को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में बीजेपी अकेले या अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार में थी।
लेकिन बीजेपी का विस्तार 2018 से रुकना शुरू हुआ, जब कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन ने सरकार बना ली। हालांकि ये सरकार ज़्यादा दिन नहीं चली और कुछ वक़्त बाद बीजेपी ने फिर से राज्य में सरकार बना ली।
महाराष्ट्र के ताजा नतीजों के बाद ये साफ़ है कि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की राज्यों में पकड़ कम हो रही है।
हालांकि एक साल में बीजेपी जिन राज्यों में सत्ता से बाहर हुई है, उसकी संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी भारत के बड़े राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता से बाहर हो चुकी है जो बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका है।
ये ऐसे राज्य हैं, जिनमें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की पकड़ मज़बूत रही है। इन राज्यों की जनसंख्या भी दूसरे कई राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी ज़्यादा है।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो 2018 में बीजेपी जिन राज्यों में सरकार में थी, वहां की कुल आबादी क़रीब 84 करोड़ थी। यानी भारत की कुल आबादी का 70 फ़ीसदी हिस्सा पर बीजेपी का शासन था।
हालिया चुनावों में हार के बाद बीजेपी की राज्य सरकारें भारत की कुल 47 फ़ीसदी आबादी पर राज कर रही हैं। यानी 2018 से क़रीब 23 फ़ीसदी की गिरावट आई है।
अब निगाहें दिसंबर में होने वाले झारखंड चुनावों पर हैं, जहां बीजेपी फिर से सत्ता में लौटने की कोशिश में है।
लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा कहना मुश्किल है!
भारत में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर ताज़ा हमला किया है। उन्होंने एक ट्वीट कर लिखा, "नए भारत में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं।''
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट के साथ हफिंग्टन पोस्ट की उस ख़बर को शेयर किया जिसमें यह लिखा गया है कि आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर असहमति जताते हुए सवाल उठाए थे।
इससे पहले कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि आरबीआई को दरकिनार करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किए, ताकि काले धन को बीजेपी के कोष में लाया जा सके। कांग्रेस ने योजना को तुरंत समाप्त करने की मांग भी की।
वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी कहा था कि, रिजर्व बैंक को दरकिनार करते हुए चुनावी बॉन्ड लाया गया ताकि कालाधन बीजेपी के पास पहुंच सके।
ट्वीट के जरिए प्रियंका ने लिखा, "आरबीआई को दरकिनार करते हुए और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को ख़ारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड को मंजूरी दी गई ताकि बीजेपी के पास कालाधन पहुंच सके। ऐसा लगता है कि बीजेपी को कालाधान ख़त्म करने के नाम पर चुना गया था, लेकिन यह उसी से अपना जेब भरने में लग गई। यह देश की जनता के साथ निंदनीय धोखा है।''
भारत सरकार सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया और सरकारी तेल रिफ़ाइनरी भारत पेट्रोलियम कोर्पोरेशन को मार्च तक बेचने पर विचार कर रही है।
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को ख़ास इंटरव्यू में कहा कि सरकार चाहती है मार्च तक एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) की बिक्री की प्रक्रिया पूरी कर ली जाए।
सीतारमण ने कहा, ''दोनों कंपनियों को लेकर हमारी जो योजना है हम उम्मीद कर रहे हैं कि अगले साल की शुरुआत तक उन्हें पूरा कर लेंगे।''
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार को इन दोनों कंपनियों को बेचने से इस वित्त वर्ष में एक लाख करोड़ का फायदा होगा।
सरकार ने पिछले साल भी एयर इंडिया को बेचने की योजना बनाई थी लेकिन तब निवेशकों ने एयर इंडिया को खरीदने में ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया था इसलिए इसे बेचा नहीं जा सका था।
सीतारमण ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि एयर इंडिया की बिक्री प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही निवेशकों में उत्साह देखा गया है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण को 'जीने के मूलभूत अधिकार का गंभीर उल्लंघन' बताते हुए सोमवार को कहा कि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अपनी 'ड्यूटी निभाने में नाकाम' रहे हैं।
पराली जलाने और प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के चीफ़ सेक्रेटरी को तलब किया है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अगर दिल्ली एनसीआर में कोई व्यक्ति निर्माण और तोड़ फोड़ पर लगी रोक का उल्लंघन करता पाया जाए तो उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। कूड़ा जलाने पर पांच हज़ार रुपये का जुर्माना होगा।
कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से कहा है कि वो विशेषज्ञों की मदद से प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कदम उठाएं। इस की अगली सुनवाई बुधवार 6 अक्टूबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हर साल दिल्ली का दम घुट रहा है और हम कुछ भी कर पाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं।''
कोर्ट ने कहा, "ये हर साल हो रहा है और 10-15 दिन तक यही स्थिति बनी रहती है। सभ्य देशों में ऐसा नहीं होना चाहिए।''
कोर्ट ने ये भी कहा कि "जीने का अधिकार सबसे अहम है। ये वो तरीका नहीं है जहां हम जी सकें। केंद्र और राज्य को इसके लिए कदम उठाने चाहिए। ऐसे चलने नहीं दिया जा सकता। अब बहुत हो चुका है।''
कोर्ट ने कहा, "इस शहर में जीने के लिए कोई कोना सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि घर में भी नहीं। इसकी वजह से हम अपनी ज़िंदगी के अहम बरस गंवा रहे हैं।''
बीते कई दिनों से दिल्ली और आसपास के शहरों में वायु प्रदूषण बेहद ख़राब स्तर पर पहुंच गया है। दिल्ली में रविवार को वायु की गुणवत्ता (एयर क्वालिटी/एक्यूआई) 1,000 के आंकड़ों को भी पार कर गई। इसे लेकर दिल्ली में 'हेल्थ इमरजेंसी' लागू कर दी गई। प्रदूषण की वजह से दिल्ली और आसपास के शहरों में पांच नवंबर तक स्कूलों में छुट्टी घोषित कर दी गई है।
कोर्ट ने सोमवार से लागू 'ऑड ईवन' योजना को लेकर दिल्ली सरकार से भी सवाल पूछे और कहा कि वो शुक्रवार को कोर्ट के सामने डाटा रखते हुए जानकारी दें कि इस 'योजना से प्रदूषण घटा है'।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने दिल्ली सरकार से पूछा, "ऑड ईवन स्कीम के पीछे क्या तर्क है? हम डीज़ल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की बात समझ सकते हैं लेकिन ऑड ईवन योजना का क्या मतलब है?''
जस्टिस मिश्रा ने कहा, "कारों से कम प्रदूषण होता है। आप (दिल्ली सरकार) ऑड ईवन से क्या हासिल कर रहे हैं।''
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली की सरकार से कहा कि वो स्थिति को बदलने के लिए क्या कर रहे हैं, इसकी जानकारी दें।
कोर्ट ने कहा, ''स्थिति भयावह है। केंद्र और दिल्ली सरकार के तौर पर आप प्रदूषण को घटाने के लिए क्या करना चाहते हैं? लोग मर रहे हैं और क्या वो ऐसे ही मरते रहेंगे?"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारी नाक के नीचे हर साल ऐसी चीजें हो रही हैं। लोगों को सलाह दी जा रही है कि वो दिल्ली न आएं या दिल्ली छोड़ दें। इसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार है। लोग उनके राज्य और पड़ोसी राज्यों में जान गंवा रहे हैं। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम हर चीज का मज़ाक बना रहे हैं।''
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने कोर्ट से कहा कि दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश रोका जाना चाहिए। सिर्फ़ उन्हीं ट्रकों को आने की अनुमति होनी चाहिए जो ज़रूरी रोजमर्रा के सामान लेकर आ रहे हों।
पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कहा कि प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत पंजाब है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कार्रवाई या संदेश साफ़ होना चाहिए।
जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के बाद भारत की ओर से जारी नए राजनीतिक नक्शे को पाकिस्तान ने ख़ारिज कर दिया है।
जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को भारत ने 5 अगस्त, 2019 को निष्प्रभावी कर दिया था। इसके साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में बांटने का भी फ़ैसला लिया गया था।
इस निर्णय के बाद 31 अक्टूबर को दोनों केन्द्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आए। इसके बाद भारत के गृह मंत्रालय ने 2 नवंबर 2019 को एक राजनीतिक नक्शा जारी किया जिसे पाकिस्तान ने ख़ारिज कर दिया।
इस नक्शे में दोनों नए केंद्र शासित प्रदेशों के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान और पाक प्रशासित कश्मीर के हिस्सों को भी दिखाया गया है।
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के हिस्सों को भारत के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर दिखाए जाने को पाकिस्तान ने ग़लत, कानूनी रूप से अपुष्ट, अमान्य और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों की प्रासंगिकता का पूर्ण उल्लंघन करार दिया है।
पाकिस्तान की ओर से जारी बयान में कहा गया कि 'हम ज़ोर देकर कहते हैं कि भारत का कोई भी क़दम संयुक्त राष्ट्र से जम्मू कश्मीर को "विवादित" दर्जे के रूप में मिली मान्यता को नहीं बदल सकता है।'
पाकिस्तान ने कहा, "भारत सरकार के इस तरह के उपायों से भारत के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर में रह रहे लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।''
पाकिस्तान ने कहा कि वह "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार आत्मनिर्णय के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए भारत के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर के लोगों के वैध संघर्ष को अपना समर्थन देना जारी रखेगा।''
ग़ौरतलब है कि भारत सरकार ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद नया नक्शा जारी किया था।
भारत के सर्वे जनरल ने इस नक्शे को तैयार किया है। गृह मंत्रालय के बयान के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में दो ज़िले होंगे- करगिल और लेह। इसके बाद बाक़ी के 26 ज़िले जम्मू और कश्मीर में होंगे।
भारत सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सुपरविज़न में जम्मू कश्मीर और लद्दाख की सीमा को निर्धारित किया गया है।
भारत में अब 28 राज्य और नौ केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं।
इस नक्शे के मुताबिक, भारत में अब 28 राज्य और नौ केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं।
5 अगस्त, 2019 को भारतीय संसद में संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए को निष्प्रभावी बनाने का फ़ैसला बहुमत से लिया गया था, संसद की अनुशंसा के बाद राष्ट्रपति ने इन अनुच्छेदों को निरस्त करते हुए जम्मू कश्मीर पुनर्गठन क़ानून को मंजूरी दी।
1947 में जम्मू कश्मीर में 14 ज़िले होते थे- कठुआ, जम्मू, उधमपुर, रइसी, अनंतनाग, बारामुला, पूंछ, मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, लेह और लद्दाख, गिलगित, गिलगित वज़ारत, चिल्लाह एवं ट्रायबल टेरेरिटी।
2019 में भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर का पुर्नगठन करते हुए 14 ज़िलों को 28 ज़िले में बदल दिया हैं।
नए ज़िलों के नाम है- कुपवाड़ा, बांदीपुर, गेंदरबल, श्रीनगर, बडगाम, पुलवामा, सोपियां, कुलगाम, राजौरी, डोडा, किश्तवार, संबा, लेह और लद्दाख।
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिव सेना गठबंधन को भले स्पष्ट बहुमत मिल गया है लेकिन सरकार गठन को लेकर दोनों पार्टियों में कड़वाहट पैदा हो गई है।
शिव सेना ने बीजेपी से मुख्यमंत्री पद ढाई-ढाई साल के लिए दोनों पार्टियों के पास रहने देने की मांग की है। इसके लिए शिव सेना ने बीजेपी से लिखित वादा मांगा है।
शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शनिवार को अपने आवास पर पार्टी के कुल 56 विधायकों के साथ बैठक की। इसी बैठक में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि दोनों पार्टियों के बीच 50-50 फार्मूला रहेगा और इसके तहत दोनों के पास ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री का पद रहेगा।
इसके साथ ही शिव सेना ने कैबिनेट में भी समान संख्या में दोनों पार्टियों के मंत्रियों के होने की शर्त रखी है। कहा जा रहा है कि शिव सेना की इन शर्तों को बीजेपी के लिए मानना आसान नहीं है। ऐसे में बीजेपी शरद पवार की एनसीपी से समर्थन लेने की कोशिश कर सकती है।
बीजेपी को 2014 की तुलना में महाराष्ट्र में इस बार के विधानसभा चुनाव में 17 सीटें कम मिली हैं। शिव सेना को भी पिछली बार की तुलना में सात सीटें कम मिली हैं। सरकार बनाने के लिए 145 विधायक चाहिए जबकि बीजेपी के पास 105 हैं और शिव सेना के पास 56 विधायक हैं।
मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई समझौता नहीं
महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर खींचतान बढ़ती ही जा रही है। हालांकि इस बीच जहां शिवसेना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब बात सिर्फ़ शीर्ष नेताओं के साथ ही होगी वहीं बीजेपी ने भी स्पष्ट संकेत दिये हैं कि मुख्यमंत्री पद उसी के पास रहेगा और वो उसे लेकर किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करेगी।
हालांकि बीजेपी सरकार में शिवसेना को लगभग चालीस फ़ीसद मंत्री पद मिल सकती है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार राज्य कैबिनेट में शिवसेना को कुछ अहम मंत्रालय भी दिये जाएं।
शिवसेना मुख्यमंत्री पद के लिए 50-50 फार्मूला पर आगे बढ़ना चाहती है जबकि बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है।