भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कोरोना वायरस संक्रमण के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए जारी लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा न रहे।
राष्ट्रपति कोविंद ने डॉक्टरों, स्वास्थकर्मियों और पुलिसकर्मियों पर हो रहे हमलों पर भी चिंता जताई है।
उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन की सख़्त ज़रूरत भी बताई।
राष्ट्रपति ने कहा कि आनंद विहार में मज़दूरों के इकट्ठा होने और निज़ामु्द्दीन में मरकज़ के सम्मेलन से संक्रमण रोकने की कोशिशों को झटका लगा।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार पिछले 24 घंटों में भारत में आठ हज़ार सैंपल चेक किए गए।
आईसीएमआर ने कहा कि भारत में कोरोना वायरस की जाँच के लिए 182 लैब काम कर रहे हैं और इनमें से 130 लैब सरकार के हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण का तबलीग़ी जमात से 19 राज्यों से जुड़े मामले हैं। पिछले दो दिनों में कोरोना वायरस के 647 नए मामले मिले हैं और ये तबलीग़ी जमात से जुड़े हैं।
आईसीएमआर ने यह भी कहा कि पिछले 24 घंटों में भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण से कुल 12 लोगों की मौत हुई है।
भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि चौबीस घंटों मे कोरोना वायरस संक्रमण से 12 लोगों की मौत हुई है। देश भर में अब तक कोरोना वायरस से 50 लोगों की मौत हुई है।
तबलीग़ी जमात से संबंधित 400 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। चौबीस घंटे में कोरोना के 328 नए मामले सामने आए हैं। तबलीग़ी जमात में शामिल होने वाले 2804 लोग क्वारंटीन में। जिन जगहों से मामले सामने आ रहे हैं वे हमारे लिए हॉटस्पॉट हैं। अब तक 151 लोग कोरोनावायरस संक्रमण से ठीक हो चुके हैं।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि धार्मिक नेता अनुयायियों को सोशल डिसटेंसिंग का पालन करने के लिए कहें। मोदी ने राज्यों से कहा है कि सामूहिकता ही हमारी शक्ति है। कोरोनावायरस के साथ युद्ध अभी शुरू ही हुआ है।
भारतीय खाद्य निगम ज़रूरतमंदों को पांच किलो प्रति महीने राशन उपलब्ध कराने के लिए तैयार है। कोविड-19 मरीजों की डायलिसिस के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रेस कॉन्फ़्रेंस की प्रमुख बातें -
- टेस्टिंग प्रोटोकॉल में अभी कोई बदलाव नहीं, लेकिन बदलाव पर चर्चा जारी।
- स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए डेढ़ करोड़ से ज़्यादा पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्युपमेंट्स) का ऑर्डर।
- एक करोड़ एन-95 मास्क के ऑर्डर दिए गए हैं। पीपीई की सप्लाई शुरू कर दी गई है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की।
- मुख्यमंत्रियों को ज़िला स्तर पर कड़ाई से काम करने के निर्देश।
- आने वाले दिनों में टेस्टिंग, आइसोलेशन, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और निगरानी पर ज़ोर।
- राहत शिविरों के लिए गाइडलाइन जारी। शिविरों में काउंसलिंग और ज़रूरी सामानों की सप्लाई अनिवार्य।
- भारत और अन्य देशों में संक्रमण फैलने के तरीके में कोई ख़ास अंतर नहीं।
भारत की राजधानी दिल्ली में रह रहे हज़ारों ग़रीब सरकार की ओर से मिलने वाले राशन के लिए लगने वाली कतार में खड़े हैं। जिन फैक्ट्रियों में ये हजारों गरीब दैनिक मज़दूरी करते थे वो बंद हो गई है और उनकी आमदनी का ज़रिया भी ठप हो गया है। आने वाले वक़्त में ये गरीब लोग अपने परिवार का पेट कैसे भरेंगे? इसकी चिंता उन्हें सता रही है।
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ''कोई भी भूखा न रहे, सरकार इसका प्रयास कर रही है।''
लेकिन जिन कतारों में हजारों गरीब खड़े हैं वो बहुत लंबी हैं और खाने की मात्रा पर्याप्त नहीं है।
कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से जिस वक़्त भारत में लाखों लोग घरों में हैं और वो ऑनलाइन डिलिवरी सिस्टम का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और घर बैठे मनचाही चीज़ें भी हासिल कर पा रहे हैं, उसी वक़्त भारत में हज़ारों लोग सड़कों पर हैं। उनके सामने रोज़ी और भोजन का संकट है।
यह विकट संकट की घड़ी है। 130 करोड़ आबादी वाले भारत में तीन हफ़्तों के लिए लॉकडाउन घोषित किया गया है। लोगों को घरों में रहने के लिए कहा गया है और कारोबार पूरी तरह ठप हैं। बड़ी संख्या में लोग घरों से काम कर रहे हैं और प्रोडक्टिविटी में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।
बीते सप्ताह भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आर्थिक उपायों की घोषणा करते हुए कहा था, ''दुनिया भर के देश एक अदृश्य हत्यारे से लड़ने के लिए लॉकडाउन कर रहे हैं।''
कोरोना वायरस के भारत में पहुंचने से पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक थी।
कभी दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर बीते साल 4.7 फ़ीसदी रही। यह छह सालों में विकास दर का सबसे निचला स्तर था।
साल 2019 में भारत में बेरोज़गारी 45 सालों के सबसे अधिकतम स्तर पर थी और पिछले साल के अंत में भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों से औद्योगिक उत्पादन 5.2 फ़ीसदी तक गिर गया। यह बीते 14 वर्षों में सबसे खराब स्थिति थी। कम शब्दों में कहें तो भारत की आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब हालत में थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से जहां एक ओर लोगों के स्वास्थ्य पर संकट छाया है तो दूसरी ओर पहले से कमज़ोर अर्थव्यवस्था को और बड़ा झटका मिल सकता है।
कोविड-19 का संक्रमण ऐसे वक़्त में फैला है जब भारत की अर्थव्यवस्था मोदी सरकार के साल 2016 के नोटबंदी के फ़ैसले की वजह से आई सुस्ती से उबरने की कोशिश कर रही है। नोटबंदी के ज़रिए मोदी सरकार कालाधन सामने लाने की कोशिश कर रही थी लेकिन भारत जैसी अर्थव्यवस्था जहां छोटे -छोटे कारोबार कैश पेमेंट पर ही निर्भर थे, इस फैसले से उनकी कमर टूट गई। अधिकतर धंधे नोटबंदी के असर से उबर ही रहे थे कि कोरोना वायरस की मार पड़ गई।
भारत में असंगठित क्षेत्र देश की करीब 94 फ़ीसदी आबादी को रोज़गार देता है और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 45 फ़ीसदी है। लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र पर बुरी मार पड़ी है क्योंकि रातोंरात हज़ारों लोगों का रोज़गार छिन गया।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की जिससे भारत के गरीब 80 करोड़ लोगों को आर्थिक बोझ से राहत मिल सके और उनकी रोज़ीरोटी चल सके। खातों में पैसे डालकर और खाद्य सुरक्षा का बंदोबस्त करके सरकार गरीबों, दैनिक मज़दूरी करने वालों, किसानों और मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों की मदद करने का प्रयास कर रही है।
लेकिन क्या भारत की अर्थव्यवस्था इस थोड़े से सरकार के प्रयास से मंदी से उबर पायेगी। अर्थव्यवस्था को इस संकट के बुरे असर से बचाने के लिए और भी प्रयास किए जाने की ज़रूरत है।
राहत पैकेज की घोषणा को ज़मीनी स्तर पर लागू करना सबसे बड़ी चुनौती है। लॉकडाउन के वक़्त जब अतिरिक्त मुफ़्त राशन देने की घोषणा की गई है, गरीब लोग उस तक कैसे पहुंच पाएंगे? सरकार को सेना और राज्यों की मशीनरी की मदद से सीधे ग़रीबों तक खाने की चीज़ें पहुंचानी चाहिए।
इस वक़्त हज़ारों लोग अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं, ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो खातों में पैसे डालने का काम तेज़ी से करे और खाने की चीज़ों की सप्लाई को भी प्राथमिकता पर रखे।
ये वो लोग हैं जिनके खातों में तत्काल कैश ट्रांसफर किए जाने की ज़रूरत है। उन्हें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं मिली है। सरकार को राजकोषीय घाटे की चिंता नहीं करनी चाहिए। वो आरबीआई से उधार ले और इस विपदा की घड़ी में लोगों पर खर्च करे।
सरकार ने राहत पैकेज में किसानों के लिए अलग से घोषणा की है। सरकार अप्रैल से तीन महीने तक किसानों के खातों में हर महीने 2000 रुपये डालेगी। सरकार किसानों को सालाना 6000 रुपये पहले ही देती थी।
लेकिन दो हज़ार रुपये की मदद पर्याप्त नहीं है क्योंकि निर्यात ठप हो चुका है, शहरी क्षेत्रों में कीमतें बढ़ेंगी क्योंकि मांग बढ़ रही है और ग्रामीण क्षेत्र में कीमतें गिरेंगी क्योंकि किसान अपनी फसल बेच नहीं पाएंगे।
यह संकट बेहद गंभीर समय में आया है, जब नई फसल तैयार है और बाज़ार भेजे जाने के इंतज़ार में है। भारत जैसे देश में जहां लाखों लोग गरीबी में जी रहे हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कठिन लॉकडाउन की स्थिति में गांवों से खाने-पीने की ये चीज़ें शहरों और दुनिया के किसी भी देश तक कैसे पहुंचेंगी। अगर सप्लाई शुरू नहीं हुई तो खाना बर्बाद हो जाएगा और भारतीय किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। भारत की कुल आबादी का 58 फ़ीसदी हिस्सा खेती पर निर्भर है और कृषि का देश की अर्थव्यस्था में 256 बिलियन डॉलर का योगदान है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में बेरोज़गारी बढ़ने के पूरे आसार हैं। बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां बंद होने की वजह से उत्पादन में भारी गिरावट आई है।
स्वयं रोज़गार करने वाले या छोटे कारोबार में जुड़े लोगों को राहत देने के लिए सरकार ब्याज़ और टैक्स चुकाने में छूट देकर उनकी मदद कर सकती है ताकि कारोबार उबर पाए।
भारत में बेरोज़गारी अब भी रिकॉर्ड स्तर पर है और अगर यह स्थिति जारी रहती है तो असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को बड़ी मुश्किल झेलनी पड़ेगी। छोटे कारोबार में काम करने वाले लोग या तो कम पैसे में काम करने को मज़बूर होंगे या फिर उनकी नौकरी छिन जाएगी। कई कंपनियों में यह चर्चा चल रही है कि कितने लोगों को नौकरी से निकाले जाने की ज़रूरत है।
भारत में हवाई सफ़र पर फिलहाल 14 अप्रैल तक के लिए रोक लगी है। बंद का असर एविएशन इंडस्ट्री पर भी पड़ा है। सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (CAPA) के अनुमान के मुताबिक एविएशन इंडस्ट्री को करीब चार अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ेगा। इसका असर हॉस्पिटैलिटी और टूरिज्म सेक्टर पर भी होगा। भारत में होटल और रेस्टोरेंट चेन बुरी तरह प्रभावित हैं और कई महीनों तक यहां सन्नाटा पसरे रहने से बड़ी संख्या में लोगों को सैलरी न मिलने का भी संकट नज़र आ रहा है।
बंद की वजह से ऑटो इंडस्ट्री को भी भारी नुकसान हुआ है और करीब दो अरब डॉलर का अनुमानित नुकसान झेलना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए जिस राहत पैकेज की घोषणा की है वो देश के कुल जीडीपी का एक फ़ीसदी है। सिंगापुर, चीन और अमरीका की तुलना में यह राहत पैकेज ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा जल्द करनी चाहिए ताकि कोरोना की तबाही में डूब रहे कारोबार को वापस पटरी पर लाया जा सके।
जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका इकोनॉमिस्ट के सालाना 'डेमोक्रेसी इंडेक्स' में भारत 10 स्थान नीचे खिसक गया है।
ब्रिटेन का जाना-माना प्रकाशन समूह 'द इकोनॉमिस्ट ग्रुप' अपने रिसर्च विभाग 'द इंटेलिजेंस यूनिट' की मदद से हर वर्ष एक 'डेमोक्रेसी इंडेक्स' जारी करता है।
बुधवार को इस यूनिट ने 165 देशों के बारे में अपनी ताज़ा रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार भारत दस स्थान नीचे खिसक गया है।
भारत को 2019 के लिए सूचकांक में 51वें स्थान पर रखा गया है। इससे पहले के साल में भारत 41वें स्थान पर था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेमोक्रेसी इंडेक्स में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के समग्र स्कोर में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।
शून्य से 10 के पैमाने पर भारत का स्कोर 2018 में 7.23 से गिरकर 2019 में 6.90 हो गया और इसकी प्राथमिक वजह देश में नागरिक स्वतंत्रता में कटौती करना रहा।
वर्ष 2019 के स्कोर की तुलना अगर पिछले वर्षों से करें, तो 2006 में रैंकिंग शुरू होने के बाद से यह सबसे कम स्कोर है।
इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग गिरने और स्कोर घटने की वजह भी बताई गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत प्रशासित कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने, असम में एनआरसी पर काम शुरू होने और फिर विवादित नागरिकता क़ानून, सीएए की वजह से नागरिकों में बढ़े असंतोष के कारण भारत के स्कोर में गिरावट दर्ज की गई।
इस रिपोर्ट में भारत को एक ओर जहाँ 'राजनीतिक सहभागिता' के मामले में अच्छे नंबर मिले हैं, वहीं देश के मौजूदा 'राजनीतिक क्लचर' की वजह से कई नंबर कट भी गए हैं।
'द इंटैलिजेंस यूनिट' का कहना है कि वो सभी देशों के स्कोर का आंकलन वहाँ की चुनाव प्रक्रिया, बहुलतावाद, नागरिक स्वतंत्रता और सरकार के कामकाज के आधार पर करते हैं।
ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि 'साल 2019 लोकतंत्र के लिए सबसे ख़राब रहा। वैश्विक गिरावट मुख्य रूप से लैटिन अमरीकी, उप-सहारा अफ़्रीका और पश्चिम एशिया क्षेत्र में देखी गई। अधिकांश एशियाई देशों की रैंकिंग में 2019 में गिरावट देखी गई है'।
नई रिपोर्ट में नॉर्वे टॉप पर बना हुआ है। अमरीका इस रिपोर्ट में 25वें, ऑस्ट्रेलिया 9वें, जपान 24वें, इसराइल 28वें और ब्रिटेन 14वें पायदान पर है।
यदि भारत के पड़ोसी देशों की बात की जाए तो चीन 153वें, पाकिस्तान 108वें, नेपाल 92वें, बांग्लादेश 80वें और श्रीलंका 69वें नंबर पर है।
भारत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) पर बिना सुनवाई के रोक नहीं लगाई जा सकती।
देशभर में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ और समर्थन में दायर 144 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार हफ़्ते बाद ही इस मामले पर कोई अंतरिम राहत दी जा सकती है। किसी भी हाई कोर्ट में सीएए से जुड़ा कोई मामला नहीं सुना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चार हफ़्ते में जवाब दाखिल करने के कहा गया है। बिना केंद्र को सुने सुप्रीम कोर्ट ने सीएए पर रोक लगाने से फ़िलहाल इनकार किया।
जब इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई तो अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट में भीड़ को लेकर शिकायत की।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एस ए बोबड़े से कहा कि माहौल शांत रहना चाहिए, ख़ासकर सुप्रीम कोर्ट में। उन्होंने कहा कि कोर्ट को यह आदेश देना चाहिए कि सुनवाई के लिए कौन आ सकता है, इसे लेकर कुछ नियम बनाए जाने चाहिए। सिब्बल ने भी इसी तरह की चिंता जाहिर की।
चीफ़ जस्टिस ने कहा कि वो कोर्ट में भारी भीड़ को लेकर कुछ कर रहे हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अमरीका में सुप्रीम कोर्ट और पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट रूम में विजिटर्स के आने को लेकर कुछ नियम हैं।
सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को यह सुनिश्चित करना है कि क्या इस मामले को संवैधानिक पीठ को भेजा जाना है। नागरिकता एक बार दिये जाने के बाद वापस नहीं ली जा सकती।
सिंघवी ने कहा कि कोर्ट को संवैधानिक पीठ गठित करने पर विचार करना चाहिए और राज्यों ने इस क़ानून को अमल में लाना शुरू कर दिया।
ए जी वेणुगोपाल ने कहा कि सीएए में दी गई नागरिकता को वापस लेने के लिए प्रावधान है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, असदुद्दीन ओवैसी, समेत कई अन्य लोगों और संगठनों ने ये याचिका दायर की हैं।
9 जनवरी को अदालत ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान हो रही हिंसक घटनाओं पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई तभी होगी जब हिंसक घटनाएं बंद हो जाएंगी।
इन याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता में जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने नौ जनवरी को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
बीते वर्ष दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिंसा के बाद 18 दिसंबर को इस संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाख़िल की गई थीं। तब सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर फ़ौरन सुनवाई करने से मना कर दिया था और इसके लिए 22 जनवरी की तारीख़ तय की थी।
कोर्ट ने साथ ही इस क़ानून पर रोक लगाने से इनकार भी कर दिया था। हालांकि उसने इसकी समीक्षा करने का फ़ैसला किया था।
इस क़ानून का विरोध करने वालों का कहना है कि मुसलमानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है जो भारतीय संविधान का उल्लंघन है।
ज्यादातर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह क़ानून भारत के पड़ोसी देशों से हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख और जैन समुदाय के सताए हुए लोगों को नागरिकता देने की बात करता है, लेकिन इसमें जानबूझकर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। संविधान इस तरह के भेदभाव करने की इजाज़त नहीं देता।
याचिकाकर्ताओं ने इस क़ानून को संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ और विभाजनकारी बताते हुए रद्द करने का आग्रह किया है।
जहां एक तरफ ज़्यादातर याचिकाओं में नागरिकता संशोधन क़ानून की वैधता को चुनौती दी गई है, वहीं कुछ याचिकाओं में इस क़ानून को संवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
नागरिकता संशोधन क़ानून में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 तक आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।
इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ साथ कई संगठन भी विरोध कर रहे हैं। साथ ही इसे संविधान विरोधी करार दिया जा रहा है।
इस सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट के बाहर कुछ महिलाओं ने नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध भी किया।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के बाहर कुछ महिलाएं पोस्टर, बैनर लेकर पहुंचीं। हालांकि, कुछ समय के बाद उन्हें वहां से हटा दिया गया था।
दिल्ली के शाहीन बाग में इस क़ानून के ख़िलाफ़ बीते 38 दिनों से महिलाएं धरना दे रही हैं। वहीं समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पूर्वोत्तर के कई यूनिवर्सिटी इस क़ानून के विरोध में बंद हैं।
12 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल को क़ानून के तौर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी थी।
पंजाब विधानसभा ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास कर इस क़ानून को वापस लिए जाने की मांग की है।
केरल के बाद इस तरह का प्रस्ताव करने वाला पंजाब दूसरा राज्य बन गया है।
दो दिन के विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पंजाब सरकार के मंत्री ब्रह्म मोहिन्द्र ने इस क़ानून के विरोध में प्रस्ताव पेश किया।
उन्होंने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा, "इस क़ानून के विरोध में देश के कई हिस्सों में लोग सड़कों पर हैं।''
विधानसभा में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि सरकार भेदभाव करने वाले क़ानून को राज्य में लागू नहीं कर सकती।
अमरिंदर सिंह ने इससे पहले भी इसका विरोध करते हुए कहा था कि पंजाब जैसे राज्य जिनकी सीमा पड़ोसी देशों से मिलती है उनके लिए ये नया क़ानून ख़तरनाक है।
उनका कहना था, "नागरिकता क़ानून को लेकर मैं चिंतित हूं क्योंकि घुसपैठिए इसका इस्तेमाल देश में आने के लिए कर सकते हैं। सीमावर्ती राज्यों को इनसे अधिक ख़तरा है। क्या केंद्र सरकार को अंदाज़ा भी है कि वो क्या कर रही है।''
विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने भी उनके इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने इसका विरोध करने के लिए पंजाब सरकार की तारीफ़ की है।
इससे पहले केरल सरकार ने 31 दिसंबर को विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर इस क़ानून को वापस लेने की माँग की थी।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी पत्र लिख कर इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास करने की गुज़ारिश की थी।
केरल सरकार ने इस क़ानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की है।
भारत में केरल सरकार नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है।
इससे पहले 31 दिसंबर को केरल विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से अपील की गई थी कि वो इस क़ाननू को वापस ले ले।
मोदी सरकार ने केरल सरकार की अपील को ख़ारिज कर दिया था।
अब केरल सरकार इस क़ानून को रद्द किए जाने की माँग के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीएए के ख़िलाफ़ अपना विरोध जताया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून को चुनौती देने वाला केरल पहला राज्य है।
केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत याचिका दायर की है।
केरल की याचिका के अनुसार सीएए संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के अलावा संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है।
नोएडा-दिल्ली के बीच कालिंदी कुंज का बंद रास्ता खुलवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि वो जनहित और क़ानून व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए उचित कार्रवाई करे।
नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में महिलाएं पिछले 15 दिसंबर से धरने पर बैठी हैं। इस कारण नोएडा और दिल्ली का रास्ता बंद है। रास्ता बंद होने के कारण आम लोगों को परेशानी हो रही है। स्कूल जाने वाले बच्चों को भी दिक़्क़त हो रही है।
लोगों को हो रही परेशानी को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें रास्ता खुलवाने की अपील की गई थी।
मंगलवार को हाईकोर्ट ने सुनवाई तो की लेकिन कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन उसे जनहित और क़ानून-व्यवस्था का ध्यान रखना होगा।
कोर्ट ने कोई समय सीमा भी निर्धारित नहीं की है।
रविवार शाम को जेएनयू परिसर में नक़ाब लगाए 50 छात्रों ने होटल में घुसकर छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया जिसमें जेएनयू के कई छात्र और शिक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल छात्रों में जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्षा भी शामिल हैं जिन्हें हेड इंजरी हुई है। जेएनयू छात्र संघ ने आरएसएस और बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी पर छात्रों और शिक्षकों पर लाठी और रॉड से हमला करने का आरोप लगाया। हालांकि एबीवीपी ने आरोप से इनकार किया।
जेएनयू हिंसा के ख़िलाफ़ पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जेएनयू हिंसा के ख़िलाफ़ चेन्नई में कैंडल मार्च निकला गया। युवक कांग्रेस ने जेएनयू में हुई हिंसा के विरोध में दिल्ली के इंडिया गेट पर मशाल जुलूस निकाला। जूलूस में कई कार्यकर्ता चेहरे पर मास्क लगाकर शामिल हुए।
झारखंड की राजधानी रांची में भी सोमवार को युवाओं और छात्रों ने जेएनयू में हुई हिंसा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर जमा हुए और जेएनयू छात्रों के प्रति समर्थन जाहिर किया। छात्रों ने अपने हाथों में तख्तियां और बैनर थामे हुए थे। विरोध प्रदर्शन का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने विरोध किया। इसे लेकर दोनों पक्षों के बीच हल्की झड़प भी हुई।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि जब वो जेएनयू में पढ़ते थे तो उन्होंने वहाँ कोई 'टुकड़े टुकड़े' गैंग नहीं देखे थे।
दिल्ली पुलिस ने जेएनयू हिंसा मामले में ख़ुद पर उठ रहे सवालों की सफाई देते हुए सोमवार को बताया कि जेएनयू हिंसा मामले की जांच क्राइम ब्रांच करेगी।
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता एम एस रंधावा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, "मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच ने अलग से टीमें बनाई हैं। पुलिस के अधिकारियों ने आज मौके का मुआयना किया। पुलिस को कई अहम जानकारियां मिली हैं।''
उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस ने तथ्य जुटाने के लिए ज्वाइंट सीपी शालिनी सिंह की अगुवाई में एक कमेटी बनाई है। उन्होंने बताया कि पुलिस सीसीटीवी फुटेज इकट्ठा कर रही है।
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता ने पुलिस की कार्रवाई पर उठ रहे सवालों को लेकर सफ़ाई देते हुए कहा कि पुलिस ने प्रोफेशनल तरीके से काम किया। उन्होंने ये भी बताया कि हमले में घायल हुए सभी 34 लोग अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके हैं।
फ़िल्म अभिनेता अनिल कपूर ने जेएनयू कैंपस में हुई हिंसा की निंदा करते हुए कहा है कि जो कुछ हुआ वो बहुत परेशान करने वाला था। अनिल कपूर के मुताबिक वो 'पूरी रात इसके बारे में सोचते रहे और सो नहीं पाए।
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी कैंपस में हिंसा के विरोध में सोमवार को मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया पर प्रदर्शन हुए।
कई प्रदर्शनकारी अपने हाथों में बैनर और तख्तियां थामे हुए थे। इन पर हिंसा के ख़िलाफ़ और संविधान और विश्वविद्यालयों को बचाने के नारे लिखे हुए थे। कई प्रदर्शनकारी दिल्ली पुलिस के कामकाज पर भी सवालिया निशान लगा रहे थे।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की अध्यक्ष आइशी घोष ने यूनिवर्सिटी कैंपस में रविवार को हुई हिंसा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) पर आरोप लगाए हैं।
आइशी को भी हमलें में चोटें आईं थीं। आइशी ने कहा, "कल का हमला आरएसएस और एबीवीपी के गुंडों द्वारा किया गया एक संगठित हमला था। पिछले 4-5 दिनों से कैंपस में कुछ आरएसएस से जुड़े प्रोफेसरों और एबीवीपी द्वारा हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा था।''
भारत के केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा है कि जेएनयू मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। पोखरियाल ने कहा कि विश्वविद्यालयों को राजनीति का 'अड्डा' नहीं बनने दिया जाएगा।
जेएनयू में हुए हमले के विरोध में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों में से एक मलिगे सिरीमाने ने कहा, "जेएनयू देशभर में कई संघर्षों के लिए प्रेरणा बना है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि ये एक आदर्श विश्वविद्यालय है। ऐसा इसलिए भी है कि यहां संघर्ष की भावना दिखती है। यहां के छात्रों ने कई जुल्म सहे हैं। पहले भी कुछ छात्र यूनियन के अध्यक्ष मारे गए हैं।''
मोदी सरकार में शामिल जनता दल (यूनाइटेड) ने एक बयान जारी कर जेएनयू कैंपस में हुए हमले की निंदा की है और मामले की सुप्रीम कोर्ट के जज से 'स्वतंत्र और निष्पक्ष' जांच कराने की मांग की है।
जेडीयू ने जेएनयू छात्रों के साथ एकजुटता भी जाहिर की है। जेडीयू के महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "जेएनयू कैंपस में गुंडों की ओर से हिंसात्मक गतिविधियों की जनता दल (यू ) कड़ी निंदा करता है।''
बयान में आगे कहा गया है, "जेएनयू की पहचान बहस, बातचीत और वैचारिक मतभेदों की रही है न कि ऐसी घटनाओं की। ये बहस में वैचारिक हार झेलने वालों की कायरताभरी कार्रवाई है।''
बयान में जेएनयू के कुलपति और दूसरे अधिकारियों की 'मूक दर्शक' बने रहने के लिए निंदा की गई है और उन्हें हटाने की मांग की गई है। जेडीयू ने पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र जेएनयू हिंसा के विरोध में विश्वविद्यालय के उत्तरी गेट के सामने एकत्र हुए।
जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन ने यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्रों और शिक्षकों पर हुए हमले को लेकर कुलपति को हटाने की मांग की है।
एसोसिएशन ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा, "कुलपति ने शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया का मजाक बनाया है।''
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी कैंपस में हुई हिंसा के विरोध में सोमवार को यूनिवर्सिटी के शिक्षक भी विरोध में उतरे। शिक्षकों ने हाथ में तख्तियां थामी हुईं थीं। इनमें फ़ीस बढ़ाने और हिंसा के विरोध में बातें लिखी हुईं थीं।
कांग्रेस ने जेएनयू में हुए हमले के दोषियों को 24 घंटे के अंदर गिरफ़्तार करने की मांग उठाई है।
कांग्रेस नेता पी चिंदबरम ने कहा, "ये घटना शायद इस बात की सबसे पुख़्ता सबूत है कि हम तेज़ी के साथ अराजक राज्य में तब्दील हो रहे हैं। ये राष्ट्रीय राजधानी में भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में केंद्र सरकार, गृहमंत्री, एलजी और पुलिस कमिश्नर की देखरेख में हुआ।''
चिदंबरम ने कहा, "हम मांग करते हैं कि हिंसा की साजिश रचने वाले पहचाने जाएं और 24 घंटे के अंदर गिरफ़्तार किए जाएं और उन्हें क़ानून के दायरे में लाया जाए। हम ये भी मांग करते हैं कि अधिकारियों की भी जवाबदेही तय हो और तुरंत कार्रवाई की जाए।''
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जेएनयू में छात्रों पर हुए हमले को 'सदमे में डालने वाला' बताते हुए दिल्ली पुलिस के कामकाज पर सवाल उठाए हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की भारत इकाई के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर अविनाश कुमार ने एक बयान जारी कर कहा है, "जेएनयू कैंपस में छात्रों पर हुई हिंसा सदमे में डालने वाली है। दिल्ली पुलिस के लिए, ऐसा हिंसक हमला बर्दाश्त करना और भी बुरा है। ये अभिव्यक्ति की आज़ादी और शांतिपूर्वक तरीके से इकट्ठा होने के अधिकार के प्रति शर्मनाक उदासीनता दिखाता है।''
बेंगलुरु से वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी ने बताया कि वहाँ टाउन हॉल में नागरिक संशोधन कानून के ख़िलाफ़ धरने के दौरान एक रिटायर्ड प्रोफ़ेसर और जेएनयू के एक पूर्व छात्र भी शामिल हुए।
71वर्षीय प्रोफ़ेसर टी वेंकटेश मूर्ति ने हिंसा पर दुःख जताते हुए कहा, "हमारे समय छात्राएँ कैंपस में देर रात तक घूम सकती थींं। कल रात जो हुआ वैसी घटना कभी नहीं हुई जब छात्रों को होस्टलों में बर्बरता से पीटा गया।''