भारत

बीजेपी को समर्थन करते ही दुष्यंत चौटाला के पिता को जेल से छुट्टी मिली

हरियाणा में बीजेपी को समर्थन करते ही दुष्यंत चौटाला के पिता को जेल से दो सप्ताह की छुट्टी मिली। क्या दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला को जेल से दो सप्ताह की छुट्टी बीजेपी और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के बीच हरियाणा में साझा सरकार बनाने के लिए हुई डील का नतीजा है?

गौरतलब है कि हरियाणा विधान सभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिली है। इसलिए बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला और गोपाल कांडा जैसे निर्दलीय विधायकों के समर्थन से हरियाणा में सरकार बनाई है।

मनोहर लाल खट्टर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री के तौर पर लगातार दूसरी बार शपथ लिया। वहीं जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा के उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया।

इस बीच दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला को दो हफ़्ते के लिए जेल से छुट्टी मिली है।

हरियाणा सरकार ने उनकी दो हफ़्ते की फरलो मंज़ूर कर ली है।

अजय चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद से तिहाड़ जेल में बंद हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स: भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पिछड़ा

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की सूची में भारत 102वें नंबर पर आ गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में नीचे होने का मतलब है कि भारत में लोग भर पेट खाना नहीं खा पा रहे हैं, बाल मृत्यु दर ज़्यादा है, बच्चों का लंबाई के अनुसार वजन नहीं है और बच्चे कुपोषित हैं

भारत एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत दक्षिण एशिया में भी सबसे नीचे है।

इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल के लोग भारतीयों से पोषण के मामले में आगे हैं। भारत इस मामले में ब्रिक्स देशों में भी सबसे नीचे है। पाकिस्तान 94वें नंबर पर है, बांग्लादेश 88वें, नेपाल 73वें और श्रीलंका 66वें नंबर पर है।

भारत 2010 में 95वें नंबर पर था और 2019 में 102वें पर आ गया। 113 देशों में साल 2000 में जीएचआई रैंकिंग में भारत का रैंक 83वां था और 117 देशों में भारत 2019 में 102वें पर आ गया।

बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत जीएचआई रैंक में अव्वल हैं। यहां तक कि रवांडा और इथियोपिया जैसे देशों के जीएचआई रैंकों में सुधार हुए हैं। जीएचआई इंडेक्स की रैंकिंग आयरलैंड की ऐड एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन ऑर्गेनाइज़ेशन वेल्ट हंगर तैयार करते हैं। 

नोबेल के बाद अभिजीत बोले, भारत की अर्थव्यवस्था संकट में है

भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्टेयर ड्युफ़लो के साथ माइकल क्रेमर को 2019 के अर्थशास्त्र का नोबेल सम्मान दिया गया है।

अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी ड्युफ़लो अमरीका की मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में प्रोफ़ेसर हैं।

नोबेल सम्मान की घोषणा होने के बाद एमआईटी में बनर्जी अपनी पत्नी के साथ पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे।

इसी दौरान उनसे एक पत्रकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि बहुत बुरी स्थिति है।

बनर्जी ने कहा कि भारत में लोग अभावग्रस्तता के कारण उपभोग में कटौती कर रहे हैं और गिरावट जिस तरह से जारी है उससे लगता है कि इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

बनर्जी और डुफलो एमआईटी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर हैं। इन दोनों की शादी 2015 में हुई थी। अभिजीत बनर्जी भारत में भी कई रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर पूछे गए सवाल के जवाब में बनर्जी ने कहा, ''मेरी समझ से भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ही ख़राब है। एनएसएस के डेटा देखें तो पता चलता है कि 2014-15 और 2017-18 के बीच शहरी और ग्रामीण भारत के लोगों ने अपने उपभोग में भारी कटौती की है। सालों बाद ऐसा पहली बार हुआ है। यह संकट की शुरुआत है।''

पत्रकार के अनुरोध पर अभिजीत बनर्जी ने सवालों का जवाब अपनी मातृभाषा बांग्ला में भी दिया। उनकी पत्नी ड्युफ़लो फ़्रांस की हैं और ड्युफ़लो ने भी अंग्रेज़ी के अलावा फ़्रेंच में जवाब दिया।

अभिजीत बनर्जी ने भारत में डेटा संग्रह के तरीक़ों में हुए विवादित बदलाव पर भी बोला। कई लोगों का आरोप है कि भारत सरकार जीडीपी ग्रोथ और राजस्व घाटे का जो डेटा दिखाती है वो असल डेटा नहीं है। ऐसा आरोप मोदी सरकार के आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम भी लगा चुके हैं। अभिजीत बनर्जी ने कहा कि सरकार के डेटा पर कई तरह के संदेह हैं।

अभिजीत बनर्जी को मिला अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार

भारतीय मूल के अमरीकी इकॉनामिस्ट अभिजीत बनर्जी, इश्तर डूफलो और माइकल क्रेमर को संयुक्त रूप से इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया है।

इन तीनों को दुनिया भर में ग़रीबी दूर करने के लिए एक्सपेरिमेंट अप्रोच के लिए ये सम्मान दिया गया है। माना जा रहा है कि बीते दो दशक के दौरान इस अप्रोच का सबसे अहम योगदान रहा। दुनिया भर में ग़रीबों की आबादी 70 करोड़ के आसपास मानी जाती है।

अभिजीत बनर्जी के ही एक अध्ययन पर भारत में विकलांग बच्चों की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाया गया, जिसमें क़रीब 50 लाख बच्चों को फ़ायदा पहुंचा है।

तीन लोगों में अभिजीत बनर्जी की पार्टनर इश्तर डूफलो भी शामिल हैं, जो अर्थशास्त्र में नोबेल जीतने वाली सबसे कम उम्र की महिला हैं। अर्थशास्त्र में नोबेल जीतने वाली वे महज दूसरी महिला हैं।

पुरस्कार की घोषणा होने के बाद इश्तर डूफेलो ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा है, "महिलाएं भी कामयाब हो सकती हैं ये देखकर कई महिलाओं को प्रेरणा मिलेगी और कई पुरुष औरतों को उनका सम्मान दे पाएंगे।''

कोलकाता यूनिवर्सिटी से 1981 में बीएससी करने के बाद अभिजीत बनर्जी ने 1983 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई पूरी की।  1988 में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की।

अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें बधाई दी है। मोदी ने ट्वीट करके कहा है, ''अभिजीत बनर्जी ने ग़रीबी उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।''

उनके बारे में ये भी कहा जा रहा है कि उन्होंने राहुल गांधी के न्याय योजना की रुपरेखा तैयार की थी। इसकी पुष्टि खुद राहुल गांधी ने भी की है, उन्होंने ट्वीट किया है कि अभिजीत ने न्याय योजना को तैयार किया था, जिसमें ग़रीबी को नष्ट करने और भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की क्षमता है।

उनके जेएनयू कनेक्शन को लेकर भी सोशल मीडिया पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।

रामचंद्र गुहा ने ट्वीट किया है, "अभिजीत बनर्जी और इश्तर डूफेलो को नोबेल मिलने की ख़बर से खुश हूं। वे इसके योग्य हैं। अभिजीत बहुत बदनाम किए जा रहे यूनिवर्सिटी के गर्व भरे ग्रेजुएट हैं। उनका काम कई युवा भारतीय विद्वानों को प्रभावित करेगा।''

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अभिजीत बनर्जी को बधाई दी है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की रैंकिंग में भारत 10 पायदान गिरा

वर्ल्ड इकॉनोमिक फ़ोरम (WEF) की एक सालाना रिपोर्ट में भारत काफ़ी नीचे फिसल गया है। अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता के लिए लाई जाने वाली बेहतरी को आंकने वाली इस रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है।

ग्लोबल कॉम्पिटिटिव इंडेक्स में पिछले साल भारत 58वें नंबर पर था लेकिन अब वह 68वें नंबर पर पहुंच गया है।

इस इंडेक्स में सबसे ऊपर सिंगापुर है। उसके बाद अमरीका और जापान जैसे देश हैं। ज़्यादातर अफ़्रीकी देश इस इंडेक्स में सबसे नीचे हैं।

भारत की रैंकिंग गिरने की वजह दूसरे देशों का बेहतर प्रदर्शन बताया जा रहा है। इस इंडेक्स में चीन भारत से 40 पायदान ऊपर 28वें नंबर पर है, उसकी रैंकिंग में कोई बदलाव नहीं आया है।

वियतनाम, कज़ाकस्तान और अज़रबैजान जैसे देश भी इस सूची में भारत से ऊपर हैं। ब्रिक्स देशों में चीन सबसे ऊपर है जबकि ब्राज़ील भारत से भी नीचे 71वें नंबर पर हैं।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है और काफ़ी स्थिर भी है लेकिन आर्थिक सुधारों की रफ़्तार काफ़ी धीमी है।

बेहतर आर्थिक माहौल के मामले में कोलंबिया, दक्षिण अफ़्रीका और तुर्की ने पिछले साल भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है और वे भारत से आगे निकल गए हैं।

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनिया भर में मंदी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं जिनसे जूझना अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ी चुनौती होगी।

इस रैंकिंग में पाकिस्तान 110वें नंबर पर है जबकि नेपाल (108) और बांग्लादेश (105) भी उससे ऊपर हैं।

इस रिपोर्ट में भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था, मज़ूदरों की दशा और बैंकिंग सेवाओं की हालत को इस गिरावट के लिए ज़िम्मेदार माना गया है।

यह गिरावट भारत के लिए निस्संदेह चिंता की बात है। ख़ासतौर पर ऐसे समय में जब भारत को अधिक निवेश और कारोबारी गतिविधियों की ज़रूरत है ताकि सुस्ती से निबटा जा सके।

मॉब लिंचिंग पर पीएम मोदी को ख़त लिखने वालों पर देशद्रोह का मामला दर्ज

भारत में बढ़ रहीं मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला खत लिखने वाली करीब 50 मशहूर हस्तियों पर बिहार के मुज़फ़्फरपुर में एफ़आईआर दर्ज की गई है।

इस एफ़आईआर में देशद्रोह, उपद्रव, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने और शांति में बाधा डालने से संबंधित अलग-अलग धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

जिन लोगों के ख़िलाफ़ यह एफ़आईआर की गई है उनमें मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फ़िल्म निर्देशक मणि रत्नम, अनुराग कश्यप और अभिनेत्री अपर्णा सेन समेत करीब 50 लोग शामिल हैं।

ख़बर के मुताबिक स्थानीय वकील सुधीर कुमार ओझा की ओर से दो महीने पहले दायर की गई एक याचिका पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) सूर्य कांत तिवारी के आदेश के बाद यह प्राथमिकी दर्ज हुई है।  ओझा ने कहा कि सीजेएम ने 20 अगस्त को उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी।

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फ़िल्म निर्देशक अदूर गोपालकृष्णन का नाम भी इस एफ़आईआर में दर्ज है। उन्होंने इस पर चिंता जताई है और कहा है कि सिर्फ इस बात से कोई देशद्रोही नहीं हो जाता कि वो सत्तापक्ष से सहमत नही है।

गांधी के अस्थि अवशेष 2 अक्टूबर को चोरी

भारत में मध्य प्रदेश के रीवा में महात्मा गांधी के अस्थि अवशेष चोरी होने की ख़बर है। मध्य प्रदेश पुलिस ने इसकी पुष्टि की है।

दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई गई।  यह घटना उसी दिन की है।

साल 1948 में गांधी के अस्थि अवशेषों का एक हिस्सा रीवा स्थित बापू भवन में रखा गया था।

इस मामले में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार न सिर्फ अस्थि अवशेष की चोरी हुई है बल्कि उनकी तस्वीर से भी छेड़छाड़ की गई। गांधी की तस्वीर पर हरे रंग से 'राष्ट्रद्रोही' लिख दिया गया है।  

रीवा पुलिस ने स्थानीय पत्रकार शुरैह नियाज़ी से कहा कि वो इस मामले की जांच कर रही है।

रीवा स्थित बापू भवन की देखरेख करने वाले मंगलदीप ने इस घटना को शर्मनाक बताया है।

उन्होंने कहा, ''मैंने सुबह भवन का गेट खोला क्योंकि गांधी जयंती थी। मैं रात करीब 11 बजे जब वापस आया तो देखा कि गांधी जी की अस्थियां गायब थीं और उनकी तस्वीर को ख़राब किया गया था।''

इस घटना के सामने आने के बाद कांग्रेस के स्थानीय नेता गुरमीत सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।

उन्होंने कहा, ''यह पागलपन बंद होना चाहिए। मैं रीवा पुलिस से गुज़ारिश करता हूं कि वो बापू भवन में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच करें।''

महात्मा गांधी ने भारत को ब्रिटिश हकूमत से आज़ादी दिलाने में बेहद अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने सत्याग्रह और अहिंसक आंदोलन के ज़रिए पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की।

हालांकि भारत में एक समूह उन्हें हिंदुओं के ख़िलाफ़ मानता है। इस समूह का सोचना है कि महात्मा गांधी मुसलमानों के पक्षधर थे। इसी सोच के चलते हिंदू महासभा के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 में उनकी हत्या कर दी थी।

मृत्यु के बाद महात्मा गांधी की अस्थियों को नदी में विसर्जित नहीं किया गया था।

उन्हें अलग-अलग हिस्सों में बांटकर भारत में बने गांधी के विभिन्न संग्रहालयों में रखा गया, इन्हीं में से एक रीवा का बापू भवन भी है।

अनुच्छेद 370: सुप्रीम कोर्ट ने जवाब देने के लिए केंद्र को 28 दिनों का वक़्त दिया

भारत में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच ने अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने और कश्मीर से जुड़ी अन्य याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 28 दिनों का वक़्त दिया है।

जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ ने याचिकाकर्ताओं से भी कहा है कि वो केंद्र के जवाब के बाद एक हफ़्ते के भीतर अपना पक्ष अदालत में रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 नवंबर की तारीख़ तय की है।

भारत में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने जम्मू-कश्मीर याचिकाओं के जवाब देने के लिए अदालत से चार हफ़्ते का वक़्त मांगा था।

सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को चुनौती देने, प्रेस की आज़ादी, संचार सुविधाओं पर रोक, लॉकडाउन की वैधता और आने-जाने पर पाबंदियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी कई याचिकाएं दायर की गई हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में इस बारे में कोई आदेश नहीं दिया और इस बारे में दलीलें तुरंत सुनने से भी इनकार किया। अदालत ने कहा, "अगर फ़ैसला आपके पक्ष में आता है तो सब कुछ बहाल किया जा सकता है।''

अदालत ने ये भी कहा कि वो इस सम्बन्ध में कोई अन्य याचिका स्वीकार नहीं करेगी।

हालांकि याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार को चार हफ़्ते का वक़्त दिए जाने का विरोध किया और कहा कि इससे याचिकाएं दायर करने का उद्देश्य ही निरर्थक हो जाएगा।

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और जम्मू-कश्मीर औपचारिक रूप से 31 अक्टूबर, 2019 को अस्तित्व में आ जाएंगे। दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के बीच संपत्तियों के विभाजन के लिए तीन सदस्यीय कमिटी बनाई गई है।

पीएम मोदी के 'अब की बार ट्रंप सरकार' भाषण पर राहुल ने कसा तंज

अमरीका में पिछले महीने ह्यूस्टन में अमरीकी राष्ट्रपति की मौजूदगी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'अबकी बार ट्रंप सरकार' कहने को लेकर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्टीकरण दिया है।

जयशंकर ने कहा कि उन्होंने अगले चुनाव के लिए डोनल्ड ट्रंप का समर्थन बिल्कुल नहीं किया और उनके बयान को तोड़-मरोड़कर नहीं पेश किया जाना चाहिए।

भारत के प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को लेकर विपक्षी कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई थी और आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री ने ट्रंप का चुनाव प्रचार कर विदेश नीति का उल्लंघन किया है।

लेकिन समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऐसी आपत्तियों को ख़ारिज कर दिया है।

जयशंकर ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा, ''प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं कहा। अगर आप ध्यान से देखें, तो जहाँ तक मुझे याद है वो गुज़रे समय की बात कर रहे थे कि ट्रंप ने इस पंक्ति का इस्तेमाल किया था। तो हमें जो कहा गया, उसे तोड़-मरोड़कर पेश नहीं किया जाना चाहिए।''

मगर विदेश मंत्री के स्पष्टीकरण के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तंज कसते हुए एक ट्वीट किया है।

राहुल गांधी ने इस ट्वीट में कहा, ''शुक्रिया मिस्टर जयशंकर, जो आपने प्रधानमंत्री की अक्षमता पर पर्दा डाला। उनका समर्थन करने से डेमोक्रेट्स के साथ भारत गंभीर मुश्किल में फंस गया था। आशा है आपके हस्तक्षेप से ये संकट सुलझ पाएगा। आप जब ये कर ही रहे हैं तो उन्हें कूटनीति के बारे में भी थोड़ा सिखाएँ।''

22 सितंबर को ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम की शुरुआत में डोनल्ड ट्रंप का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी तारीफ़ की और उन्हें भारत का सच्चा दोस्त बताया।

मोदी ने राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रंप के चुनाव प्रचार का ज़िक्र करते हुए कहा, "भारत के लोग अच्छे से ख़ुद को राष्ट्रपति ट्रंप के साथ जोड़ पाए हैं और कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप के शब्द "अबकी बार ट्रंप सरकार" भी हमें स्पष्ट समझ में आए थे।''

दरअसल 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले डोनल्ड ट्रंप ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें उन्होंने भारतीय मूल के लोगों को दिवाली की शुभकामनाएं दी थीं। इस वीडियो के आख़िर में उन्होंने "अबकी बार ट्रंप सरकार" शब्द इस्तेमाल किए थे।

भारत में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा दिया था और उसे चुनाव में जीत भी हासिल हुई थी।

हाउडी मोदी कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने ट्वीट करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्रंप के लिए प्रचार करने का आरोप लगाया।

आनंद शर्मा ने लिखा, "मिस्टर प्रधानमंत्री, आपने दूसरे देशों के आंतरिक चुनावों में दख़ल न देने के भारतीय विदेश नीति के स्थापित सिद्धांत का उल्लंघन किया है। यह भारत के दीर्घकालिक कूटनीति हितों के लिए अभूतपूर्व झटका है।''

दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, "अमरीका के साथ हमारा रिश्ता हमेशा से रिपब्लिकन और डेमोक्रेट को लेकर समान रहा है। आपका खुलकर ट्रंप के लिए प्रचार करना भारत और अमरीका जैसे संप्रभु और लोकतांत्रिक देशों में दरार पैदा करने वाला है।''

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आख़िर में लिखा था, "याद रखें, आप भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर अमरीका गए हैं न कि अमरीकी चुनाव के स्टार प्रचारक के तौर पर।''

जम्मू में अनुच्छेद 371 को लागू करने की मांग क्यों उठ रही है?

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों में जैसे-जैसे सरकार की तरफ़ से ढील दी जा रही है, बाज़ार में चहल-पहल बढ़ने लगी है और ज़िंदगियां पटरी पर आती नज़र आ रही हैं। जम्मू के थोक बाज़ार में व्यापार सामान्य रूप से चल रहा है।

राज्य के जिन हिस्सों में प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनकी तुलना में जम्मू की स्थिति कहीं बेहतर है। ख़ासकर कश्मीर के मुकाबले।

इलाक़े में सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले प्रावधानों को ख़त्म किए जाने के क़रीब दो महीने होने वाले हैं, लेकिन अभी भी हाई स्पीड इंटरनेट यहां के लोगों के लिए एक सपना है।

यहां के लोगों को लैंडलाइन और मोबाइल के ज़रिये इंटरनेट की सुविधा तो मिल रही है, लेकिन उसकी स्पीड बहुत ही कम है। नतीजतन लोग समय पर जीएसटी और इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल नहीं कर पाए हैं।

जम्मू के लोग अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। स्थानीय लोगों के मन में कई सवाल हैं, जिनका उत्तर अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है। उदाहरण के लिए, क्या जम्मू और कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा या फिर इसे अंततः राज्य का दर्जा दिया जाएगा?

यह सवाल सभी के लिए बहुत मायने रखता है, चाहे वो राज्य के सरकारी कर्मचारी हों या फिर व्यापारी और आम आदमी।

अनुच्छेद 370 के तहत बाहरी लोग राज्य में जमीन नहीं खरीद सकते थे, लेकिन अब सभी खरीद-फरोख़्त कर सकते हैं।

यही बात जम्मू के स्थानीय लोगों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है और वे राज्य के राजनीतिक भविष्य की तरफ़ उम्मीद लगा कर देख रहे हैं।

जम्मू की थोक मंडी में सेब का बाज़ार सही चल रहा है। यह यहां की बड़ी मंडियों में से एक है।

मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष श्यामलाल का कहना है कि सेब के दाम पिछले साल की तुलना में काफ़ी कम हैं।

मैदानी इलाक़ों में सेब नहीं उगाए जाते हैं। वे कश्मीर की घाटी से आते हैं।  श्यामलाल का कहना है कि उन्होंने इस सीज़न के लिए बाग मालिकों को अग्रिम भुगतान किया था, लेकिन किसी ने उन्हें सेब नहीं भेजे।

वो कहते हैं, "कश्मीर घाटी के बागान मालिकों ने इस सीज़न के लिए हमसे अग्रिम भुगतान लिया था, लेकिन हमारे पास फ़लों का एक ट्रक भी नहीं आया। हमारा पैसा फंसा हुआ है। पहली समस्या यह है कि हम उनसे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। अगर हमारी बात भी होती है तो वे कहते हैं कि वहां की स्थिति अच्छी नहीं है और उनके आने-जाने पर रोक लगी हुई है।''

ऐसी स्थिति में प्रति किलोग्राम सेब 50 से 70 रुपये तक बेचे जा रहे हैं।  लेकिन यहां के बाज़ारों को घाटी की सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले सेब का इंतज़ार है।

श्यामलाल को यह उम्मीद है कि घाटी में स्थितियां बेहतर होंगी और उन्हें उनके फंसे पैसे और माल वापस मिल पाएंगे।

राज्य से बाहर के लोग निवेश करने के लिए लंबे वक़्त से जम्मू पर अपनी नज़र गड़ाए हुए हैं और काफ़ी समय से विभिन्न परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 के ख़त्म किए जाने के बाद से कुछ स्थानीय व्यवसायी परेशान है।

जम्मू और कश्मीर के पूर्व विधान पार्षद और भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम रंधावा को लगता है कि कई व्यापारी बाज़ार के बड़े खिलाड़ियों के आगे नहीं टिक पाएंगे।

वो कहते हैं, "जम्मू में बहुत बड़े कारोबारी घराने नहीं हैं, लेकिन यह सच है कि उनके मन में यह डर है कि वे बड़े खिलाड़ियों का सामना नहीं कर पाएंगे। भारी उद्योगों के मालिक पहले से बाहर के लोग हैं। जम्मू में बड़ा निवेश भी बाहरी लोग ही करेंगे। स्थानीय लोगों को नहीं पता है कि वे उस स्थिति का सामना कैसे करेंगे। हम उनसे मुकाबला भी नहीं कर सकते हैं। हमारे पास उतना पैसा या संसाधन नहीं है।''

विक्रम एक क्रशिंग यूनिट के मालिक भी है। जब फ़ोर लेन की सड़क परियोजना आई तो वो ख़ुश हुए। उन्हें लगा कि उनके लिए व्यापार के अवसर बढ़ेंगे लेकिन अब उनका विचार बदल गया है।

उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से जिन लोगों को फ़ोर लेन की सड़क परियोजना का कॉन्ट्रैक्ट मिला था, वो अपनी क्रशिंग यूनिट ख़ुद लेकर आए हैं। सिर्फ क्रशिंग यूनिट ही नहीं, बाहर से अपने श्रमिक भी लेकर आए हैं। हम निराश हुए कि विकास की योजनाओं में हमारा कोई योगदान नहीं है।''

जम्मू के स्थानीय डोगरा भारत सरकार के फ़ैसले से फ़िलहाल तो खुश हैं लेकिन वे चाह रहे हैं कि अनुच्छेद 371 जैसी व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में भी होनी चाहिए, जिससे युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सके।

युवा डोगरा नेता तरुण उप्पल कहते हैं कि सरकार को कुछ ऐसे प्रबंध करने चाहिए जिससे स्थानीय लोगों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

उन्हें लगता है कि अनुच्छेद 370 को ख़त्म किए जाने के बाद सरकार को संविधान का अनुच्छेद 371 राज्य में लागू करना चाहिए ताकि स्थानीय लोगों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

संविधान का अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के कई राज्यों में लागू है, जिसके तहत राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

राज्यों के लिए विशेष प्रावधान इसलिए किए गए थे क्योंकि वे अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी पिछड़े थे और उनका विकास समय के साथ सही तरीक़े से नहीं हो पाया था। साथ ही यह अनुच्छेद उनकी जनजातीय संस्कृति को संरक्षण प्रदान करता है। साथ ही स्थानीय लोगों को नौकरियों के अवसर मुहैया कराता है।

अनुच्छेद 371 में ज़मीन और प्राकृति संसाधनों पर स्थानीय लोगों के विशेषाधिकार की बात कही गई है।

मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और मणिपुर में अनुच्छेद 371 लागू है और बाहरी लोगों को यहां ज़मीन ख़रीदने की अनुमति नहीं है।

जम्मू के कई लोगों का मानना है कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद बाहरी लोगों को वहां के खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के अवसर मिलेंगे।

सुनील पंडिता एक कश्मीरी पंडित हैं। तीन दशक पहले वो कश्मीर से आकर जम्मू में बसे थे। पंडिता कहते हैं कि जम्मू में पहले से ही कई बाहरी लोग हैं।

वो कहते हैं, "कश्मीरी पंडितों से लेकर प्रवासी मज़दूरों तक। शहर पर पहले से ही भार बढ़ रहा है। बाहरी लोगों के लिए हम तैयार नहीं हैं।  सरकार के इस क़दम से स्थानीय युवाओं में बेरोज़गारी और अपराध बढ़ेगा।''

राज्य में नई कानून व्यवस्था लागू हो चुकी है। यह बदलाव का वक़्त है और स्थानीय लोग अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं कि क्या राज्य एक केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा या फिर उसे राज्य का दर्जा मिल पाएगा?