दिल्ली ब्लास्ट : डार दोषी, लेकिन रिहा करने का आदेश, दो अन्य आरोपी बरी

2005 के सीरियल ब्लास्ट मामले में दिल्ली पुलिस को करारा झटका लगा है। पुलिस किसी भी अपराधी के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास और देश द्रोह जैसे आरोप साबित करने में नाकाम रही है।

अदालत ने इस मामले में एक आरोपी तारिक अहमद डार को दोषी ठहराया है। डार को सिर्फ गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने का दोषी माना गया है। उसे दस साल की सजा हुई है। ग्यारह साल की सजा पूरी कर लेने के कारण अदालत ने उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है, जबकि इस मामले के अन्य दो आरोपी मोहम्मद रफीक और मोहम्मद फाजली को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

वर्ष 2005 में दिवाली से 2 दिन पहले, 29 अक्तूबर, 2005 की शाम जब भारत की राजधानी नई दिल्ली के सरोजिनी नगर बाजार में लोग धनतेरस की खरीददारी कर रहे थे। तभी एक के बाद एक तीन जगहों पर बम धमाके हुए। इस बम धमाके से दिल्ली सहित पूरा भारत दहल गया।

दिल्ली को दहला देने वाला पहला धमाका नई दिल्ली स्टेशन से सटे पहाड़गंज के भीड़भाड़ वाले मार्केट में हुआ। इसके कुछ ही मिनटों में दूसरा बम धमाका गोविंद पुरी इलाके में दिल्ली परिवहन निगम की बस में हआ। पुलिस व सुरक्षा एजेंसियां कुछ समझ पाती, इसके चंद मिनटों बाद तीसरा धमाका सरोजनी नगर मार्केट में हुआ। जहां सबसे अधिक मौते हुई।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सीरियल ब्लास्ट को अंजाम देने में तारिक अहमद डार की भूमिका के बारे में तब पता चला जब इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) ने पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तयब्बा के प्रमुख अबु अलकाम के सेटेलाइन फोन (008821621523999) को टैप किया। अलकामा थुराया सेटेलाइट फोन के माध्यम से तारिक अहमद डार से बात करता था। अलकामा ने तारिक अहमद डार के मोबाइल (नंबर-9906719815) पर दो बार काल किया था। इसे भी आईबी ने ट्रेस किया।

बतौर दिल्ली पुलिस, डार ने अलकामा से कहा था कि 'दिल्ली के बाजारों में सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं, लड़कों के पहचान होने का खतरा रहता है। लेकिन इस बार के बाजारों में कैमरे नहीं है और इससे कोई खतरा नहीं है। साथ ही कहा था कि इस धमाके की जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है।'

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के मुताबिक, तारिक अहमद डार लश्कर के लिए प्रवक्ता का काम भी संभालता था। उसने इस बम धमाके के बाद भी बीबीसी को फोन कर कहा था कि दिल्ली के सीरियल ब्लास्ट में लश्कर-ए-तयब्बा की कोई भूमिका नहीं है।

अदालत में दाखिल आरोप पत्र के अनुसार, महज दस हजार रुपये प्रतिमाह कमाने वाले डार के एचडीएफसी, एसबीआई और जम्मू-कश्मीर बैंक में खाता था। इन खातों में खाड़ी देशों से पैसा आता था। जांच में पाया गया था कि बहुत ही कम समय में डार के खाते में 84 लाख रुपये जमा हुए थे और इनमें से 26 लाख रुपये खाड़ी देशों से आया था।

अदालत में दिल्ली पुलिस किसी भी अपराधी के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास और देश द्रोह जैसा आरोप साबित करने में नाकाम रही है। परिणामस्वरूप अदालत ने इस मामले में महज एक आरोपी तारिक अहमद डार को सिर्फ गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने का दोषी माना। उसे दस साल की सजा हुई है। तारिक अहमद डार पहले ही ग्यारह साल की सजा काट चुका है इसलिए अदालत ने उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है, जबकि इस मामले के अन्य दो आरोपी मोहम्मद रफीक और मोहम्मद फाजली को सभी आरोपों से बरी कर दिया।