चीन का अंतरिक्ष में बड़ी कामयाबी: चांद के नमूने लेकर चांग ई-5 यान लौटा
चीन का चांग ई-5 यान चंद्रमा की सतह से पत्थर और मिट्टी के नमूने लेकर पृथ्वी पर लौट आया है।
अमेरिका के अपोलो और सोवियत संघ के लूना चंद्र अभियानों के बाद पहली बार कोई देश चांद की सतह से नमूने लेकर आया है।
इन नमूनों से पृथ्वी के इस उपग्रह की सतह और उसके अतीत के बारे में नई जानकारियाँ मिल सकेंगी।
चांग ई-5 यान स्थानीय समयानुसार 17 दिसंबर 2020 की रात क़रीब डेढ़ बजे मंगोलिया के भीतरी इलाक़े में उतरा।
अंतरिक्ष में लगातार अपनी क्षमता बढ़ाता जा रहा चीन इस मिशन की कामयाबी को एक बड़ी उपलब्धि मान रहा है।
पिछले सात वर्षों में चांग ई-5 मिशन चीन का तीसरा सफल चंद्र अभियान रहा है।
अमेरिकी अपोलो अंतरिक्ष यान से चांद पर गए अंतरिक्ष यात्रियों और सोवियत रूस के रोबोटिक लूना मिशन ने चांद की सतह से क़रीब 400 किलो तक मिट्टी और पत्थर जमा किए थे।
चांद से लाए ये सभी नमूने क़रीब तीन अरब साल पुराने हैं।
चांग ई-5 मिशन
चांग ई-5 को 24 नवंबर 2020 को दक्षिणी चीन के वेनचांग स्टेशन से एक अंतरिक्षयान के ज़रिए छोड़ा गया था।
पहले ये मिशन चांद के ऊपर पहुंचा और इसने खुद को चांद की कक्षा में स्थापित किया और चांद के चक्कर लगाने लगा।
बाद में ये दो टुकड़ों में बंट गया - पहला सर्विस व्हीकल और रिटर्न मॉड्यूल जो चांद की कक्षा में ही रुका रहा और दूसरा मून लैंडर जो धीरे-धीरे चांद की सतह की तरफ बढ़ने लगा।
8.2-टन के इस यान ने 1 दिसंबर 2020 को चांद की सतह पर निर्धारित जगह के क़रीब सॉफ्ट लैंडिंग की।
इस मिशन को मॉन्स रूमकेर में उतारा गया जो चांद की ज्वालामुखी वाली पहाड़ियों के पास मौजूद एक जगह है।
लैंडिंग के कुछ दिनों बाद इस यान ने चांद की सतह से पहली रंगीन तस्वीर भेजीं।
इसने चांद की सतह पर अपने पैर के पास लेकर क्षितिज तक की तस्वीर ली।
चांद की सतह के मिट्टी और पत्थरों के नमूनों को इकट्ठा करने के लिए चांग ई-5 के लैंडर में कैमरा, रडार, एक ड्रिल और स्पेक्ट्रोमीटर फिट किया गया था।
ये लैंडर क़रीब दो किलो तक के वज़न के पत्थर और मिट्टी इकट्ठा कर सकता था। इकट्ठा नमूनों को ये एक ऑर्बिटिंग मिशन तक पहुँचाया जो इसे आगे पृथ्वी पर भेजा।
चांग ई-5 मिशन से पहले चीन ने चांद पर दो और यान भेजे थे।
2013 में चांग ई-3 और 2019 में चांग ई-4 मून मिशन। इन दोनों में ही एक लैंडर के साथ-साथ एक छोटा मून रोवर शामिल किया गया था।
इन दोनों की तुलना में चांग ई-5 जटिल मिशन था।
माना जा रहा है कि मॉन्स रूमकेर से लाए गए नमूनों की उम्र 1.2 से 1.3 अरब साल होगी, यानी वो पहले लाए गए नमूनों की अपेक्षा नए होंगे। जानकारों का मानना है कि इससे चांद के भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में अधिक जानकारी मिल सकेगी।
इन नमूनों की मदद से वैज्ञानिकों को सटीक रूप से 'क्रोनोमीटर' तैयार करने में भी मदद मिलेगी जिससे सौर मंडल के ग्रहों के सतहों की उम्र को माना जाता है।
ये किसी ग्रह या उपग्रह की सतह पर मौजूद ज्वालामुखी की संख्या पर निर्भर करता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार जिस ग्रह की सतह पर अधिक ज्वालामुखी होंगे वो अधिक पुरानी होगी यानी उसकी उम्र अधिक होगी (इसके लिए वैज्ञानिक ज्वालामुखी के क्रेटर की संख्या की गिनती करते हैं)। हालांकि इसके लिए अलग-अलग जगहों को देखा जाना ज़रूरी होता है।
अपोलो और लूना मिशन के भेजे गए नमूनों से 'क्रोनोमीटर' तैयार करने में वैज्ञानिकों को काफी मदद मिली थी।
अब चांग ई-5 मिशन के भेजे नमूनों से उन्हें इसे और सटीक रूप से विकसित करने में मदद मिलेगी।